UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1 लक्ष्य-वेध-परीक्षा (पद्य – पीयूषम्)

Free PDF download of UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1 लक्ष्य-वेध-परीक्षा (पद्य – पीयूषम्), Having good knowledge and help you revise the whole chapter 1 in minutes, in exam days is one of the best tips recommended by teachers during exam days.

UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1 लक्ष्य-वेध-परीक्षा (पद्य – पीयूषम्)

10 वीं कक्षा संस्कृत पुस्तक UP Board परिचय

प्रस्तुत पाठ के ये श्लोक महाभारत (भण्डारकर संस्करण, पुणे) के आदिपर्व के 123वें अध्याय से संगृहीत किये गये हैं। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित ‘महाभारत’ एक विशालकाय ग्रन्थ है। आचार्य द्रोण ने कौरवों और पाण्डवों को धनुर्विद्या की शिक्षा दी थी। एक बार वे (UPBoardSolutions.com) कौरवों-पाण्डवों और अन्य राजकुमारों की निशाना लगाने की कला की परीक्षा लेते हैं। प्रस्तुत पाठ में उसी का वर्णन किया गया है। इस पाठ से छात्रों को यह शिक्षा मिलती है कि उन्हें अपने लक्ष्य के प्रति सदैव एकाग्रचित्त होना चाहिए।

Lakshyavedh Pariksha पाठ-सारांश

धनुर्विद्या की परीक्षा का विचार द्रोणाचार्य ने दुर्योधन आदि कौरवों, अर्जुन आदि पाण्डवों तथा अन्य देश के राजकुमारों को अस्त्र-शस्त्र-चालन की शिक्षा दी थी। एक दिन उन्होंने लक्ष्य-वेध कला की परीक्षा लेने के लिए सभी राजकुमारों को एकत्र किया। लक्ष्य-वेध के लिए उन्होंने शिल्पी से एक कृत्रिम गिद्ध पक्षी बनवाया और उसे वृक्ष के शीर्ष पर रखवा दिया तथा सभी शिष्यों को कहा कि मेरी अनुमति मिलते ही इस गिद्ध का सिर बाण से काटकर पृथ्वी पर गिरा दें।।

UP Board Solution Class 10 Sanskrit युधिष्ठिर की परीक्षा
सर्वप्रथम द्रोणाचार्य ने राजकुमार युधिष्ठिर को बाण साधने के लिए कहा। जब युधिष्ठिर अपने धनुष पर बाण चढ़ाकर गिद्ध को लक्ष्य करके तैयार हो गये, तब द्रोणाचार्य ने उनसे । पूछा-“हे नरश्रेष्ठ! क्या आप वृक्ष की चोटी पर रखे गिद्ध पक्षी को देख रहे हैं?” उत्तर में युधिष्ठिर ने कहा-“आचार्य! देख रहा हूँ।” सुनकर पुनः उन्होंने पूछा- “क्या आप वृक्ष को, मुझे और अपने सभी भाइयों को भी देख रहे हैं?” युधिष्ठिर ने कहा-“हाँ आचार्य! मैं आपको, सभी भाइयों और गिद्ध को बारम्बार देख रहा हूँ।” उनके उत्तर से अप्रसन्न होकर द्रोण ने कहा- “आप इस लक्ष्य को नहीं बेध सकते और उन्हें लक्ष्य-वेध से विरत कर दिया।

UP Board Class 10 Sanskrit Solution अन्य राजकुमारों की परीक्षा
इसके पश्चात् द्रोणाचार्य ने अपने दुर्योधन, भीम आदि अन्य शिष्यों एवं अन्य देश के राजकुमारों को एक-एक करके लक्ष्य-वेध के लिए बुलाया और उन सभी से वही प्रश्न किया। सभी शिष्यों से युधिष्ठिर के समान ही उत्तर पाकर सभी को; लक्ष्य-वेध के अयोग्य सिद्ध करके; हटा दिया।

अर्जुन की परीक्षा अन्त में आचार्य द्रोण ने अर्जुन को लक्ष्य बेधने के लिए बुलाया। गुरु का आदेश सुनते ही अर्जुन अपने धनुष पर बाण चढ़ाकर और गिद्ध को निशाना बनाकर खड़े हो गये। आचार्य द्रोण ने अर्जुन से भी वही प्रश्न किया कि “हे अर्जुन! क्या तुम गिद्ध को, वृक्ष को, मुझको, अन्य राजकुमारों (UPBoardSolutions.com) को और भाइयों को देख रहे हो?” अर्जुन ने उत्तर दिया-“गुरुवर! मैं तो गिद्ध को ही देख रहा हूँ और मुझे तो केवल उसका सिर नजर आ रहा है।” तब गुरु द्रोण ने उसे बाण छोड़ने का आदेश दिया। आदेश पाते ही अर्जुन ने अपने तीक्ष्ण बाण से गिद्ध का सिर काटकर पृथ्वी पर गिरा दिया। आचार्य द्रोण ने हर्ष से रोमाञ्चित होकर उसे अपने गले से लगा लिया।

पद्यांशों की ससन्दर्भ हिन्दी व्याख्या

UP Board Sanskrit Class 10 (1-2)
तांस्तु सर्वान् समानीय सर्वविद्यास्त्रशिक्षितान्।
द्रोणः प्रहरणज्ञाने जिज्ञासुः पुरुषर्षभः ॥
कृत्रिमं भासमारोप्य वृक्षाग्रे शिल्पिभिः कृतम्।।
अविज्ञातं कुमाराणां लक्ष्यभूतमुपादिशत् ॥ [2015)

शब्दार्थ तान् सर्वान् = उन सभी (राजकुमारों) को। समानीय = लाकर। सर्वविद्यास्त्रशिक्षितान् = सभी विद्याओं और शस्त्रास्त्रों में शिक्षित किये गये। प्रहरणज्ञाने जिज्ञासुः = निशाना लगाने के ज्ञान के बारे में जानने की इच्छा करने वाले पुरुषर्षभः (पुरुष + ऋषभः) = पुरुषों में श्रेष्ठ भासम् = गिद्ध को। आरोप्य = रखकर। वृक्षाग्रे = वृक्ष की चोटी पर। शिल्पिभिः कृतम् = कारीगरों के द्वारा बनाये गये। अविज्ञातं = न जाने गये। लक्ष्यभूतम् = निशाने के रूप में उपादिशत् = बताया।

सन्दर्भ प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत’ के पद्य-खण्ड ‘पद्य-पीयूषम्’ के ‘लक्ष्य-वेध-परीक्षा’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है।

[ संकेत इस पाठ के शेष सभी श्लोकों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

अन्वय प्रहरणज्ञाने जिज्ञासुः पुरुषर्षभः द्रोणः सर्वविद्यास्त्रशिक्षितान् तान् तु सर्वान् समानीय शिल्पिभिः कृतं कृत्रिमं भासं वृक्षाग्रे आरोप्य कुमाराणाम् अविज्ञातं लक्ष्यभूतम् उपादिशत्।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोकद्वय में द्रोणाचार्य द्वारा शिष्यों की लक्ष्य-वेध की परीक्षा लेने के लिए (UPBoardSolutions.com) लक्ष्य निर्धारित किये जाने का वर्णन है।

व्याख्या निशाना लगाने के ज्ञान के विषय में जानने की इच्छा रखने वाले पुरुष-श्रेष्ठ द्रोणाचार्य ने सभी विद्याओं और अस्त्र चलाने में शिक्षा प्राप्त किये हुए उन सब राजकुमारों को लाकर कारीगरों द्वारा बनाये गये बनावटी गिद्ध पक्षी को वृक्ष की चोटी पर रखकर राजकुमारों के न जानते हुए लक्ष्य के रूप में बेधने को कहा।

Sanskrit Class 10 UP Board (3)
शीघ्रं भवन्तः सर्वेऽपि धनूष्यादाय सत्वराः ।
भासमेतं समुद्दिश्य तिष्ठध्वं सन्धितेषवः ॥

शब्दार्थ शीघ्रम्
= शीघ्रता से। भवन्तः सर्वेऽपि = आप सभी लोग। धनूषि = धनुषों को। आदाय = लेकर सत्वराः = शीघ्रतापूर्वक भासं एतं = इस गिद्ध पर। समुद्दिश्य = निशाना साधकर। तिष्ठध्वम् = खड़े हो जाओ। सन्धितेषवः = धनुष पर बाण चढ़ाये हुए।

अन्वय (द्रोणोऽकथयत्) भवन्तः सर्वे अपि धनूषि आदाय शीघ्रम् (आगच्छन्तु)। (यूयं) एतं भासं समुद्दिश्य सन्धितेषवः सत्वराः तिष्ठध्वम् (तिष्ठत)।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में आचार्य द्रोण शिष्यों को निशाना साधने के लिए आदेश दे रहे हैं।

व्याख्या द्रोणाचार्य ने राजकुमारों से कहा कि आप सभी अपने-अपने धनुष लेकर शीघ्र आ जाएँ। इस गिद्ध पक्षी को लक्ष्य करके धनुष पर बाण चढ़ाये हुए शीघ्र खड़े हो जाएँ।

Class 10 Sanskrit UP Board (4)
मद्वाक्यसमकालं तु शिरोऽस्य विनिपात्यताम्।
एकैकशो नियोक्ष्यामि तथा कुरुत पुत्रकाः ॥

शब्दार्थ मद्वाक्यसमकालम् = मेरे कथन के साथ ही। शिरोऽस्य (शिरः + अस्य) = इसका (UPBoardSolutions.com) (गिद्ध का) सिर। विनिपांत्यताम् = गिरा दिया जाये। एकैकशः = एक-एक करके। नियोक्ष्यामि = नियुक्त करूंगा। तथा कुरुत = वैसा ही करना। पुत्रकाः = हे पुत्रो (शिष्यो)

अन्वय हे पुत्रकोः ! मद्वाक्यसमकालं तु अस्य शिरः (उत्कृत्य) विनिपात्यताम्। (अहं) एकैकशः नियोक्ष्यामि तथा कुरुत।

प्रसंग पूर्ववत्।

व्याख्या द्रोणाचार्य ने अपने शिष्यों से कहा कि हे पुत्रो (शिष्यो)! मेरे कहने के साथ ही इस पक्षी का सिर काटकर गिरा दो। मैं एक-एक करके लक्ष्य-भेद के लिए तुम्हें बुलाऊँगा, तुम लोग वैसा ही करना। तात्पर्य यह है कि जब मैं तुम्हें अनुमति प्रदान करू तब तुम इस पक्षी का सिर काटकर गिरा देना।

10 वीं कक्षा संस्कृत पुस्तक Pdf (5)
ततो युधिष्ठिरं पूर्वमुवाचाङ्गिरसां वरः।
सन्धत्स्व बाणं दुर्धर्षं मद्वाक्यान्ते विमुञ्च तम् ॥

शब्दार्थ ततः = तत्पश्चात्। आङ्गिरसां वरः = आंगिरस गोत्र के ब्राह्मणों में श्रेष्ठ (द्रोणाचार्य)। सन्धत्स्व = निशाना लगाओ। दुर्धर्षम् = प्रचण्ड। मवाक्यान्ते = मेरे कथन के अन्त में; अर्थात् मेरे कहते ही। विमुञ्च = छोड़ दो। तं = उस (बाण) को।

अन्वये तत: आङ्गिरसां वरः पूर्वं युधिष्ठिरम् उवाच। (त्वं) दुर्धर्षं बाणं सन्धत्स्व। मद्वाक्यान्ते तं विमुञ्च।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में द्रोणाचार्य युधिष्ठिर को लक्ष्य-वेध के लिए तैयार कर रहे हैं।

व्याख्या इसके बाद आंगिरस गोत्र के ब्राह्मणों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य ने (UPBoardSolutions.com) पहले युधिष्ठिर से कहा—तुम प्रचण्ड बाण का सन्धान करो; अर्थात् उसे धनुष पर चढ़ा लो। मेरे कहने के अन्त में; अर्थात् मेरे कहते ही; उसे छोड़ देना।

UP Board Class 10 Sanskrit Book Pdf Download (6)
ततो युधिष्ठिरः पूर्वं धनुगृह्य परन्तपः।
तस्थौ भासं समुद्दिश्य गुरुवाक्यप्रणोदितः ॥

शब्दार्थ पूर्वं = सबसे पहले। धनुर्गुह्य = धनुष को लेकर। परन्तपः = शत्रुओं को पीड़ित करने वाले। तस्थौ = खड़ा हो गया। भासं समुद्दिश्य = गिद्ध को लक्ष्य करके। गुरुवाक्यप्रणोदितः = गुरु के वाक्य से प्रेरित हुआ।

अन्वय ततः गुरुवाक्य प्रणोदितः परन्तपः युधिष्ठिरः पूर्वं धनुः गृह्य (गृहीत्वा) भासं समुद्दिश्य तस्थौ।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में युधिष्ठिर को लक्ष्य-वेध के लिए तैयार होने का वर्णन है।

व्याख्या इसके बाद गुरु द्रोणाचार्य के वचन से प्रेरित हुए, शत्रुओं को सन्तप्त करने वाले युधिष्ठिर सबसे पहले धनुष को लेकर और गिद्ध पक्षी को लक्ष्य करके खड़े हो गये।

Sanskrit UP Board Class 10 (7)
ततो विततधन्वानं द्रोणस्तं कुरुनन्दनम्।
स मुहूर्तावाचेदं वचनं भरतर्षभ।

शब्दार्थ विततधन्वानं = चढ़ाये हुए धनुष वाले। कुरुनन्दनम् = कुरु वंश के लोगों को आनन्दित करने वाले।

मुहूर्तात् = थोड़ी देर में। उवाच = कहा। इदं = यह वचनं = कथन। भरतर्षभ = भरतवंशियों में श्रेष्ठ

अन्वय ततः सः द्रोणः विततधन्वानं तं भरतर्षभ कुरुनन्दनं मुहूर्तात् इदं वचनम् उवाच।

प्रसंग पूर्ववत्।

व्याख्या इसके बाद उन द्रोणाचार्य ने धनुष फैलाये हुए, उन भरतवंशियों में श्रेष्ठ (UPBoardSolutions.com) और कुरुवंशियों को आनन्दित करने वाले युधिष्ठिर से यह वचन कहा।।

Class 10th Sanskrit UP Board (8)
पश्यैनं त्वं दुमाग्रस्थं भासं नवरात्मज।।
पश्यामीत्येवमाचार्यं प्रत्युवाच युधिष्ठिरः ॥

शब्दार्थ पश्यैनं (पश्य + एनं) = इसे देखो। हुमाग्रस्थम् = वृक्ष की चोटी पर रखे हुए। नरवरात्मज = हे श्रेष्ठ पुरुष के पुत्र! पश्यामि = देखता हूँ। इति एवं = इस प्रकार प्रत्युवाच = बोले।

अन्वय हे नरवरात्मज! त्वं द्रुमाग्रस्थम् एनं भासं पश्य। युधिष्ठिरः ‘पश्यामि इति’ एवम् आचार्यं प्रत्युवाच।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में द्रोणाचार्य द्वारा लक्ष्य (गिद्ध) को दिखाये जाने पर युधिष्ठिर द्वारा उसे देखने का वर्णन है।

व्याख्या
द्रोणाचार्य युधिष्ठिर से कहते हैं कि हे श्रेष्ठपुरुष के पुत्र! तुम वृक्ष की चोटी पर स्थित; अर्थात् रखे हुए; इस गिद्ध पक्षी को देखो। युधिष्ठिर ने ‘देख रहा हूँ, ऐसा आचार्य को उत्तर दिया।

Class 10 UP Board Sanskrit (9)
स मुहूर्तादिव पुनद्रेणस्तं प्रत्यभाषत।
अथ वृक्षमिमं मां वा भ्रातृन् वाऽपि प्रपश्यसि ।।

शब्दार्थ मुहूर्तादिव (मुहूर्तात् + इव) = थोड़ी ही देर में। पुनः = फिर। प्रत्यभाषत = बोले। अथ = इसके बाद। वृक्षं = वृक्ष को। मां = मुझे। वा = अथवा। भ्रातृन् = भाइयों को। अपि = भी। प्रपश्यसि = अच्छी तरह देख रहे हो।

अन्वय स: द्रोण: मुहूर्तात् इव पुनः तं प्रत्यभाषत। अथ (त्वम्) इमं वृक्षं मां वा भ्रातृन् वा अपि प्रपश्यसि।

प्रसंग पूर्ववत्।

व्याख्या वह द्रोणाचार्य थोड़ी-सी देर में पुन: युधिष्ठिर से बोले—इस समय तुम इस वृक्ष को (UPBoardSolutions.com) अथवा मुझको अथवा अपने भाइयों को भी अच्छी तरह देख रहे हो।

Class 10 Sanskrit (10)
तमुवाच स कौन्तेयः पश्याम्येनं वनस्पतिम् ।
भवन्तं च तथा भ्रातृ भासं चेति पुनः पुनः॥ [2006, 10]

शब्दार्थ तं = उन (द्रोणाचार्य) से। उवाच = कहा। कौन्तेयः = कुन्ती-पुत्र युधिष्ठिर ने। पश्यामि = देखता हूँ। एवं वनस्पतिम् = इस वृक्ष को। भवन्तं = आपको। पुनः पुनः = बार-बार।

अन्वय स कौन्तेयः तम् इति उवाच। (अहम्) एनं वनस्पतिं भवन्तं च तथा भ्रातृन् भासं च पुनः पुनः पश्यामि।।

प्रसंग पूर्ववत्।

व्याख्या उस कुन्ती-पुत्र युधिष्ठिर ने उन द्रोणाचार्य जी से कहा कि मैं इस वृक्ष को, आपको, अपने सभी भाइयों को और गिद्ध पक्षी को बार-बार देख रहा हूँ।

कक्षा 10 संस्कृत पाठ 1 (11)
तमुवाचाऽपसर्पति द्रोणोऽप्रीतमना इव।
नैतच्छक्यं त्वया वेदधुं लक्ष्यमित्येव कुत्सयन् ॥

शब्दार्थ तं = उस (युधिष्ठिर) को। उवाच = कहा। अपसर्प = दूर हट जाओ। अप्रीतमनाः इव = अप्रसन्न से मन वाले। न = नहीं। एतत् = यह। शक्यं = सम्भव, समर्थ। त्वया = तुम्हारे द्वारा| वेधुम् = वेधना। लक्ष्यं = लक्ष्य को। कुत्सयन् = कोसते हुए।

अन्वय ‘त्वया एतत् लक्ष्यं वेधुम् न शक्यम्’ इति कुत्सयन् अप्रीतमनाः इव द्रोणः तम् ‘अपसर्प’ इति उवाच।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में युधिष्ठिर को लक्ष्य-वेध से विरत करने का वर्णन है।

व्याख्या ‘तुम्हारे द्वारा यह लक्ष्य बेधा नहीं जा सकता’ इस प्रकार युधिष्ठिर से कुछ (UPBoardSolutions.com) नाराज होकर अप्रसन्न मन से द्रोणाचार्य ने उनसे दूर हट जाओ’ इस प्रकार कहा। तात्पर्य यह है कि युधिष्ठिर के लिए लक्ष्य-वेध असम्भव जानकर द्रोणाचार्य ने उनसे हट जाने के लिए कहा।

कक्षा 10 संस्कृत (12-13)
ततो दुर्योधनादींस्तान् धार्तराष्ट्रवान् महायशाः।
तेनैव क्रमयोगेन जिज्ञासुः पर्यपृच्छत ।।
अन्यांश्च शिष्यान् भीमादीन् राज्ञश्चैवान्यदेशजान्।
तेंथा च सर्वे तत्सर्वं पश्याम इति कुत्सिताः ॥

शब्दार्थ दुर्योधनादीन् = दुर्योधन आदि को। तान् = उन| धार्तराष्ट्रवान् = धृतराष्ट्र के पुत्रों को। महायशाः = महान् यशस्वी (द्रोण ने)। तेनैव क्रमयोगेन = उसी प्रकार क्रमबद्धता से। जिज्ञासुः = जानने के इच्छुक पर्यपृच्छत = पूछा। अन्यदेशजान् = अन्य देशों में उत्पन्न हुए। राज्ञः = राजाओं के। तत्सर्वं = वह सब कुछ। इति = इस पर, ऐसा कहने पर। कुत्सिताः = फटकार दिये गये, तिरस्कृत कर दिये गये।

अन्वय ततः जिज्ञासुः महायशाः दुर्योधनादीन् तान् धार्तराष्ट्रान् तेन एव क्रमयोगेन पर्यपृच्छत। सः भीमादीन् अन्यान् च शिष्यान् अन्य देशजान् राज्ञः च तथा (पर्यपृच्छत)। सर्वे ‘तत्सर्वं पश्यामः’ इति कुत्सिताः (अभवन्)।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोकद्वय में यह बताया गया है कि गलत उत्तर दिये जाने के कारण दुर्योधन-भीम अन्य राजादि द्रोणाचार्य द्वारा तिरस्कृत किये गये।

व्याख्या इसके अनन्तर जानने के इच्छुक, महान् यशस्वी द्रोणाचार्य ने दुर्योधन आदि उन धृतराष्ट्र के पुत्रों से; अर्थात् पहले दुर्योधन से और उसके बाद उसके शेष भाइयों से; उसी क्रम से पूछा। इसके बाद उन्होंने भीम आदि अन्य शिष्यों से और अन्य देशों में उत्पन्न राजाओं से भी वैसा ही (UPBoardSolutions.com) प्रश्न पूछा। सभी के द्वारा ‘हम वह सब कुछ देख रहे हैं यही उत्तर देने के कारण गुरु द्रोणाचार्य सभी से नाराज हुए।

Class 10 Sanskrit Chapter 1 UP Board (14)
ततो धनञ्जयं द्रोणः स्मयमानोऽभ्यभाषत ।
त्वयेदानीं प्रहर्त्तव्यमेतल्लक्ष्यं विलोक्यताम् ॥

शब्दार्थ धनञ्जयम् = अर्जुन को। स्मयमानः = मुस्कुराते हुए। अभ्यभाषत = बोले। त्वया = तुम्हारे द्वारा। इदानीं = अब। प्रहर्तव्यम् = प्रहार किया जाना चाहिए। एतत् लक्ष्यं = इस लक्ष्य को। विलोक्यताम् = देख लो।

अन्वय ततः स्मयमानः (सन्) द्रोणः धनञ्जयम् अभ्यभाषत। इदानीं त्वया प्रहर्तव्यम्। एतत् लक्ष्यं विलोक्यताम्।।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में द्रोणाचार्य अर्जुन से लक्ष्य-सन्धान के लिए कह रहे हैं।

व्याख्या इसके बाद मुस्कुराते हुए द्रोणाचार्य ने धनंजय अर्थात् अर्जुन से कहा-अब तुम्हें प्रहार करना है। तुम इसे लक्ष्य को देख लो।

10 वीं कक्षा संस्कृत पुस्तक UP Board Pdf (15)
एवमुक्तः सव्यसाची मण्डलीकृतकार्मुकः।
तस्थौ भासं समुद्दिश्य गुरुवाक्यप्रणोदितः ॥ [2007]

शब्दार्थ एवम् = इस प्रकार। उक्तः = कहा गया। सव्यसाची = अर्जुन का एक नाम; दाहिने और बाएँ दोनों हाथों से बाण चलाने की कला में निपुण। मण्डलीकृतकार्मुकः = धनुष को गोलाकार किये हुए; अर्थात् धनुष को ताने हुए। तस्थौ = बैठ गया। भासं = गिद्ध को। समुद्दिश्य = निशाना साधकर।

अन्वय (गुरुणा) एवम् उक्तः, गुरुवाक्यप्रणोदितः, मण्डलीकृतकार्मुकः सव्यसाची भासं समुद्दिश्य तस्थौ।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में लक्ष्य-वेध के लिए अर्जुन के तैयार होने का वर्णन है।

व्याख्या गुरु द्रोणाचार्य के द्वारा इस प्रकार आदेश देने पर गुरु के कथन से प्रेरित हुए, धनुष को मण्डलाकार बनाये हुए; अर्थात् धनुष को ताने हुए, दाहिने और बाएँ दोनों हाथों से धनुष पर बाण चलाने में सिद्धहस्त अर्जुन गिद्ध पक्षी को लक्ष्य करके; अर्थात् निशाना साधकर खड़े हो गये।

Kaksha 10 Sanskrit (16)
मुहूर्तादिव तं द्रोणस्तथैव समभाषत।
पश्यस्येनं स्थितं भासं द्वमं मामपि चार्जुन॥

शब्दार्थ मुहूर्तादिव
= थोड़ी देर बाद तथैव (तथा + एव) = उसी प्रकार समभाषत = पूछा। पश्यसि = देखते हो। स्थितं = स्थित। द्रुमं = वृक्ष को। माम् अपि = मुझे भी।

अन्वय मुहूर्तात् इव द्रोण: तं तथा एव समभाषत-“हे अर्जुन! त्वं (दुमम् अग्रे) स्थितम् (UPBoardSolutions.com) एनं भासं, द्रुमं माम् च अपि पश्यसि।”

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में आचार्य द्रोण द्वारा अर्जुन से प्रश्न पूछे जाने का वर्णन है।

व्याख्या थोड़ी देर में ही द्रोणाचार्य ने अर्जुन से उसी प्रकार प्रश्न किया-“हे अर्जुन! तुम पेड़ की चोटी पर स्थित इस गिद्ध को, वृक्ष को और मुझे भी देख रहे हो।”

UP Board Class 10 Sanskrit (17)
“पश्याम्येकं’ भासमिति द्रोणं पार्थोऽभ्यभाषत।
‘न तु वृक्षं भवन्तं वा पश्यामीति च भारत’ ।। [2009,10,12,14]

शब्दार्थ पार्थः = पृथा (कुन्ती) के पुत्र अर्जुन। अभ्यभाषत = उत्तर दिया, कहा। भारत = भरतवंशी।

अन्वय भारत पार्थः ‘एकं भासं पश्यामि’ इति न तु वृक्षं, भवन्तं वा पश्यामि। इति द्रोणम् अभ्यभाषत।

प्रसग प्रस्तुत श्लोक में अर्जुन द्वारा उत्तर दिये जाने का वर्णन है।

व्याख्या भरतवंशी अर्जुन ने “मैं केवल एक गिद्ध को देख रहा हूँ। मैं न तो वृक्ष को अथवा न आपको देख रही हूँ।” ऐसा द्रोण से कहा।

UP Board Class 10 Sanskrit Book Pdf (18)
ततः प्रीतमना द्रोणो मुहूर्तादिव तं पुनः।
प्रत्यभाषत दुर्धर्षः पाण्डवानां महारथम् ॥

शब्दार्थ प्रीतमनाः = प्रसन्नचित्त। दुर्धर्षः = किसी से न दबने वाला। महारथम् = महारथी। ‘महाभारत’ में कहा गया है कि जो अकेला दस हजार वीरों के साथ लड़ सके तथा अस्त्र-शस्त्र के प्रयोग में निपुण हो, उसे महारथी कहते हैं।

अन्वय ततः प्रीतमना दुर्धर्षः द्रोणः मुहूर्तात् इव पाण्डवानां महारथं तं पुनः प्रत्यभाषत।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में द्रोणाचार्य द्वारा अर्जुन से पुन: कुछ पूछने का वर्णन है।

व्याख्या इसके बाद प्रसन्न मन वाले और किसी से न दबने वाले द्रोणाचार्य (UPBoardSolutions.com) ने थोड़ी देर बाद ही पाण्डवों में महान् योद्धा उस अर्जुन से पुनः कहा।

UP Board Class 10th Sanskrit (19)
भासं पश्यसि यद्येनं तथा ब्रूहि पुनर्वचः।
शिरः पश्यामि भासस्य न गात्रमिति सोऽब्रवीत् ॥ [2006]

शब्दार्थ ब्रूहि = बताओ। गोत्रम् = शरीर के अब्रवीत् = कहा, बोला।

अन्वय यदि (त्वम्) एनं भासं पश्यसि, (तर्हि) तथा वचः पुन: ब्रूहि। सः ‘भासस्य शिरः पश्यामि, गात्रं न इति अब्रवीत्।।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में आचार्य द्रोण के प्रश्न और अर्जुन के उत्तर का वर्णन है।

व्याख्या द्रोणाचार्य ने अर्जुन से कहा कि यदि तुम इस गिद्ध को देख रहे हो तो वैसे ही वचन पुन: कहो। ‘मैं गिद्ध के सिर को देख रहा हूँ, शरीर को नहीं” ऐसा अर्जुन ने कहा।

Sanskrit Class 10 (20)
अर्जुनेनैवमुक्तस्तु द्रोणो हृष्टतनूरुहः।
मुञ्चस्वेत्यब्रवीत् पार्थं स मुमोचाविचारयन् ॥

शब्दार्थ हृष्टतनूरुहः = हर्षित रोमों वाले; अर्थात् हर्ष से रोमांचित हुए। मुञ्चस्व = (बाण) छोड़ो। मुमोच = (बाण) छोड़ दिया। अविचारयन् = बिना विचार किये।

अन्वय अर्जुनेन एवम् उक्तः तु हृष्टतनूरुहः द्रोणः पार्थं ‘मुञ्चस्व’ इति अब्रवीत्। सः अविचारयन् (बाएं) मुमोच।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में द्रोणाचार्य की स्वीकृति पर अर्जुन के बाण छोड़े जाने का वर्णन है।

व्याख्या अर्जुन के द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर हर्ष से रोमांचित हुए द्रोणाचार्य ने (UPBoardSolutions.com) अर्जुन से ‘बाण छोड़ दो’ ऐसा कहा। अर्जुन ने भी बिना विचार किये ही बाण छोड़ दिया।

UP Board Class 10th Sanskrit Solution (21)
ततस्तस्य नगस्थस्य क्षुरेण निशितेन च।
शिर उत्कृत्य तरेसा पातयामास पाण्डवः ।
हर्षाद्रिकेण तं द्रोणः पर्यष्वजत पाण्डवम् ॥

शब्दार्थ ततः = इसके बाद। तस्य = उस गिद्ध के नगस्थस्य = पेड़ पर रखे हुए। क्षुरेण = बाण के द्वारा। निशितेन = पैने। उत्कृत्य = काटकर तरसा = वेग से। पातयामास = (पृथ्वी पर) गिरा दिया। हर्षाद्रिकेण = प्रसन्नता की अधिकता से पर्यष्वजत = गले लगा लिया। तं पाण्डवम् = उस पाण्डव (अर्जुन) को।

अन्वय ततः पाण्डव: नगस्थस्य तस्य शिरः निशितेन क्षुरेण उत्कृत्य तरसा (भूमौ) पातयामास। द्रोण: हर्षोंद्रेकेण पाण्डवं पर्यष्वजत।

प्रसंग प्रस्तुत श्लोक में अर्जुन द्वारा लक्ष्य-वेध में सफल होने का वर्णन है।

व्याख्या इसके पश्चात् पाण्डु के पुत्र अर्जुन ने वृक्ष की चोटी पर स्थित उस गिद्ध पक्षी का सिर तीक्ष्ण बाण से। काटकर वेग से भूमि पर गिरा दिया। द्रोणाचार्य ने अत्यधिक प्रसन्नता से उस अर्जुन को गले लगा लिया।

सूक्तिपरक वाक्यांशों की व्याख्या

संस्कृत श्लोक 10 वीं कक्षा UP Board (1) पाण्डवानां महारथम्।
सन्दर्भ
प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत’ के पद्य-खण्ड ‘पद्य-पीयूषम्’ के लक्ष्य-वेध-परीक्षा शीर्षक पाठ से उद्धृत है।

प्रसंग अर्जुन के उत्तर से प्रसन्न आचार्य द्रोण ने उसे पाण्डवों में महारथी कहा।

अर्थ पाण्डवों (युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव) में महारथी अर्थात् महान् वीर हो।

व्याख्या महाभारत में योद्धाओं की श्रेणियों का वर्गीकरण महारथी, अतिरथी आदि के रूप में किया गया है। इसमें ‘महारथी’ सबसे श्रेष्ठ योद्धा माना जाता था। महारथी को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि

एको दशसहस्राणि योधयेद्यस्तु धन्विनां ।
शस्त्रशास्त्रप्रवीणश्च विज्ञेयः स महारथः ॥

तात्पर्य यह है कि ऐसा योद्धा जो अकेले दस हजार वीरों के साथ युद्ध कर सके तथा अस्त्र-शस्त्र चलाने में कुशल हो, उसे महारथी जानना चाहिए। महारथी होना तत्कालीन योद्धाओं में गौरव की बात मानी जाती थी। द्रौपदी ने भी महाभारत में एक स्थल पर कहा है-“पञ्च मे पतयः सन्ति (UPBoardSolutions.com) भीमाऽर्जुन महारथाः।” द्रोणाचार्य ने अर्जुन में महारथी होने की प्रतिभा उनके अध्ययन-काल में ही पहचान ली थी, इसीलिए उन्हें ‘पाण्डवानां महारथम्’ कहकर सम्बोधित किया।

(2) शिरः पश्यामि भासस्य नगात्रमिति सोऽब्रवीत्। [2014]

सन्दर्भ पूर्ववत्।

प्रसंग प्रस्तुत सूक्तिपरक पंक्ति में द्रोणाचार्य के प्रश्न का अर्जुन के द्वारा उत्तर दिया जा रहा है।

अर्थ उसने कहा, “मैं गिद्ध के सिर को देख रहा हूँ, शरीर को नहीं।”

व्याख्या वृक्ष के शीर्ष भाग पर लक्ष्य-वेध के लिए रखे गये कृत्रिम गिद्ध पक्षी के सम्बन्ध में प्रश्न पूछे। जाने पर अर्जुन ने उत्तर दिया था कि वह मात्र गिद्ध के सिर को ही देख रहा था, उसके शरीर को नहीं; क्योंकि लक्ष्य तो गिद्ध के सिर का वेध करना था, शरीर का नहीं। प्रस्तुत सूक्ति का आशय यह है कि व्यक्ति की दृष्टि वहीं केन्द्रित होनी चाहिए जो उसका लक्ष्य है, अन्यत्र नहीं। लक्ष्य पर दृष्टि रखने वाले व्यक्ति ही जीवन-संग्राम में सफल होते हैं। यत्र-तत्र दृष्टि दौड़ाने वाले कभी (UPBoardSolutions.com) जीवन में सफल नहीं होते। जीवन का एक लक्ष्य निर्धारित करने वाले आगे बढ़ जाते हैं, जब कि लक्ष्य से भटकते रहने वाले पीछे छूट जाते हैं। कहा भी गया है “एकै साधे सब सधै, सब साधै सब जाइ।”

श्लोक का संस्कृत-अर्थ

(1)   तांस्तु सर्वान् …………………………………………लक्ष्यभूतम् उपादिशत् ॥ (श्लोक 1-2)
कृत्रिमं भासम् ………………………………………… लक्ष्यभूतम् उपादिशत् ॥ (श्लोक 2)

संस्कृतार्थः इमौ द्वौ श्लोकौ लक्ष्य-वेध-परीक्षा नामकात् पाठात् उद्धृतौ स्तः। अस्मिन् श्लोके कथितम्। अस्ति यत् ते राजकुमाराः सर्वविद्यासु शिक्षिताः आसन् तत् तेषां धनुर्विद्यायां निष्णातान् परीक्षां कर्तुम् ऐच्छत् आचार्यः द्रोणः तान् युधिष्ठिरादीन् राजकुमारान् आहूय शिल्पिभिः निर्मितं कृत्रिमं गृध्र वृक्षाग्रे समारोप्य लक्ष्यवेधार्य आज्ञां दत्तवान्।।

(2) शीघ्रं भवन्तः ………………………………………… तिष्ठध्वं सन्धितेषवः ॥ (श्लोक 3) [2011]

संस्कृतार्थः अस्मिन् श्लोके आचार्य: द्रोणः स्वशिष्यान् राजकुमारान् अकथयत् यत् भवन्तः सर्वे अपि स्वधनूंषि आदाय शीघ्रम् अत्र आगच्छन्तु। ततः एतं भासं लक्षयित्वा धनुषि वाणं आरुह्य सत्वरः तिष्ठ।

(3) मद्वाक्यंसमकालं ………………………………………… कुरुत पुत्रकाः॥ (श्लोक 4) [2006]

संस्कृतार्थः आचार्य द्रोण: शिष्या निर्दिशति-मत् वचनकालम् एव अस्य दक्षिणः शिरः क्षित्वा भूमौ निपात्यताम्। आचार्यः कथयति-अहम् एकम् एकम् आहूय उपादिशामि। प्रियाः वत्सा:! यूयं तथैव कुरुत यथा अहम् इच्छामि।

(4) ततो युधिष्ठिरः ………………………………………… गुरुवाक्यप्रणोदितः॥ (श्लोक 6) [2012, 14]

संस्कृतार्थः गुरोः द्रोणाचार्यस्य पूर्वम् उक्तं ‘दुर्धर्ष बाणं सन्धत्स्व मत् वाक्यान्ते तं विमुञ्च’। इति कथनं श्रुत्वा प्रेरयित्वा च शत्रुनाशकः युधिष्ठिरः स्वहस्ते धनुः गृहीत्वा पक्षिणं लक्षयित्वा स्थितः।।

(5) तमुवाचाऽपसपेंति ………………………………………… कुत्सयन् ॥ (श्लोक 11)

संस्कृतार्थः आचार्य द्रोण: युधिष्ठिरस्य उत्तरं श्रुत्वा अप्रसन्न: सन् तं कुत्सयनू अवदत्-त्वं गच्छ। इत्थं प्रकारेण त्वं लक्ष्यं वेद्धं न शक्नोसि। लक्ष्यवेधे परम एकाग्रतायाः आवश्यकता भवति।

(6) एवमुक्तः सव्यसाची ………………………………………… गुरुवाक्यप्रणोदितः ॥ (श्लोक 15) [2008, 11]

संस्कृतार्थः गुरोः द्रोणाचार्यस्य ‘इदानीं त्वया प्रहर्तव्यम् एतत् लक्ष्यं विलोक्यताम्’ इति कथनं श्रुत्वा प्रेरयित्वा (UPBoardSolutions.com) च सव्यसाची अर्जुन: स्वधनुः वृत्ताकारं कृतः। पक्षिणं लक्षयित्वा तं प्रहर्तुं उद्यत्वा सः अर्जुनः स्थितः। |

(7) पश्याम्येकं : ………………………………………… च भारत। (श्लोक 17) [2012]

संस्कृतार्थः आचार्यस्य प्रश्नानन्तरम् अर्जुनः अवदत्-भो भरतश्रेष्ठ गुरुवर! अहं केवलं लक्ष्यं पश्यामि न तु वृक्षं भवन्तं वा अन्यत् किम् अपि पश्यामि।

(8) ततः प्रीतमना ………………………………………… पाण्डवानां महारथम् ॥ (श्लोक 18) [2011, 14]

संस्कृतार्थः ततः आचार्यः द्रोणः प्रीतमना दुर्धर्षः च मुहूर्तात् अनन्तरं पाण्डवानां महान् योद्धा अर्जुनं पुनः अकथयत्।।

(9) भासं पश्यसि ………………………………………… सोऽब्रवीत् ॥ (श्लोक 19) [2006, 11, 12]

संस्कृतार्थः द्रोणाचार्यः अवदत्-वत्स अर्जुन! चेत् त्वं केवलं भासं लक्ष्यम् एव पश्यसि तर्हि मम प्रश्नस्य (UPBoardSolutions.com) उत्तरं देहि किं त्वं सम्पूर्ण भासं पश्यसि?” अर्जुन: प्रत्यवदत्-अहं तु केवलं भासस्य शिरः पश्यामि, न तु शरीरम्।

Hope given UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 1 are helpful to complete your homework.
If you have any doubts, please comment below. UP Board Solutions try to provide online tutoring for you

error: Content is protected !!
Scroll to Top