UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 पण्डितमूढयोर्लक्षणम् (पद्य-पीयूषम्)

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 पण्डितमूढयोर्लक्षणम् (पद्य-पीयूषम्) the students can refer to these answers to prepare for the examinations. The solutions provided in the Free PDF download of UP Board Solutions for Class 9 are beneficial in enhancing conceptual knowledge.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 9
Chapter Name पण्डितमूढयोर्लक्षणम् (पद्य-पीयूषम्)
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 पण्डितमूढयोर्लक्षणम्  (पद्य-पीयूषम्)

परिचय-भारतीय वाङमय में वेदों के पश्चात् प्राचीन और सर्वमान्य ग्रन्थों में वेदव्यास अथवा कृष्णद्वैपायन व्यास द्वारा रचित महाभारत का सर्वोच्च स्थान है। धार्मिक, राजनीतिक, व्यावहारिक, भौगोलिक, ऐतिहासिक तथा साहित्यिक दृष्टि से यह ग्रन्थ अत्यधिक गौरवपूर्ण है। भारतवर्ष में ही नहीं अपितु विश्व साहित्य में महाकाव्यों में सर्वप्रथम इसी की गणना की जाती है। महत्त्व की दृष्टि से इसे पाँचवाँ वेद भी कहा जाता है। (UPBoardSolutions.com) प्रस्तुत पाठ के श्लोक महाभारत से संगृहीत किये गये हैं। पाठ के प्रथम छः श्लोकों में पण्डित के और बाद के चार श्लोकों में मूर्ख के लक्षण बताये गये हैं।

[संकेत-श्लोकों की ससन्दर्भ व्याख्या’ शीर्षक से सभी श्लोकों के अर्थ संक्षेप में अपने शब्दों में लिखें।]

UP Board Solutions

(1)
निषेवते प्रशस्तानि निन्दितानि न सेवते ।
अनास्तिकः श्रद्दधानो ह्येतत्पण्डितलक्षणम् ॥

शब्दार्थ
निषेवते = आचरण करता है।
प्रशस्तानि = प्रशंसा करने योग्य।
निन्दितानि = निन्दित, बुरे कार्य।
सेवते = सेवन करता है।
अनास्तिकः = जो नास्तिक (वेद-निन्दक) न हो।
श्रद्दधानः = श्रद्धा रखता हुआ।
ह्येतत् (हि + एतत्) = यह ही।

सन्दर्य
प्रस्तुत श्लोक हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्’ के ‘पण्डितमूढयोर्लक्षणम्’ शीर्षक पाठ से उधृत है।

[संकेत-इस पाठ के शेष सभी श्लोकों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में पण्डित (विद्वान्) के लक्षण बताये गये हैं।

[संकेत-आगे के पाँच श्लोकों के लिए भी यही प्रसंग प्रयुक्त होगा।

अन्वय
(य:) प्रशस्तानि निषेवते, निन्दितानि न सेवते (यः) अनास्तिकः श्रद्दधानः (अस्ति)। एतत् हि पण्डित लक्षणम् (अस्ति)।

व्याँख्या
जो शुभ आचरणों का सेवन करता है, निन्दित आचरणों का सेवन नहीं करता है, जो नास्तिक (वेद-निन्दक-ईश्वर को न मानने वाला) नहीं है और श्रद्धालु है, इन सब गुणों से युक्त (UPBoardSolutions.com) होना ही पण्डित का लक्षण है। तात्पर्य यह है कि उत्तम कर्मों को करने वाला, अशुभ कर्मों को न करने वाला, ईश्वर की सत्ता में विश्वास और उसमें श्रद्धा रखने वाला व्यक्ति पण्डित होता है।

UP Board Solutions

(2)
क्रोधो हर्षश्च दर्पश्च हीः स्तम्भो मान्यमानिता।
यमर्थान्नापर्कषन्ति स वै पण्डित उच्यते ॥

शब्दार्थ
दर्पः = अहंकार।
हीः = लज्जा।
स्तम्भः= जड़ता।
मान्यमानिता = स्वयं को सम्मान के योग्य मानना।
यम् = जिसको।
अर्थाः = लक्ष्य से।
अपकर्षन्ति = पीछे खींचते हैं।
वै = निश्चय से।
उच्यते = कहा जाता है।

अन्वय
(य:) क्रोधः, हर्षः, दर्पः, हीः, स्तम्भः, मान्यमानिता च यमर्थान् न अपकर्षन्ति, वै स पण्डितः उच्यते।

व्याख्या
जिसको क्रोध, हर्ष, अहंकार, लज्जा, जड़ता, अपने को सम्मान के योग्य मानने की .. भावना ये सब अपने लक्ष्य से पीछे की ओर नहीं खींचते हैं। निश्चय ही पण्डित’कहलाता है। तात्पर्य यह है। 
कि इन सभी मनोविकारों के होने के बावजूद जो अपने उद्देश्य को पूरा करने में पीछे नहीं रहता, वही पण्डित होता है।

(3)
यस्य संसारिणी प्रज्ञा धर्मार्थावनुवर्तते । |
कामादर्थं वृणीते यः सवै पण्डित उच्यते ॥

शब्दार्थ
यस्य = जिसकी।
संसारिणी = व्यावहारिक।
प्रज्ञा = बुद्धि।
धर्मार्थी = धर्म और अर्थ का।
अनुवर्तते = अनुसरण करती है।
कामादर्थं = कार्य की अपेक्षा से अर्थ को।
वृणीते = वरण करता है।

अन्वय
यस्य संसारिणी प्रज्ञा धर्मार्थी अनुवर्तते, य: कामात् अर्थ वृणीते, वै सः पण्डितः उच्यते।।

व्याख्या
जिसकी व्यावहारिक बुद्धि धर्म और अर्थ का अनुसरण करती है, जो काम की अपेक्षा अर्थ का वरण करता है, निश्चय ही वह पण्डित कहा जाता है।

(4)
क्षिप्रं विजानाति चिरं शृणोति विज्ञाय चार्थं भजते न कामात् ।
नासम्पृष्टो व्युपयुङ्क्ते परार्थे तत्प्रज्ञानं प्रथमं पण्डितस्य ॥

शब्दार्थ
क्षिप्रम् = शीघ्र।
विजानाति = विशेष रूप से जानता है।
चिरम् = देरी से।
शृणोति = सुनता है।
विज्ञाय = अच्छी तरह जानकर।
अर्थम् कार्य को, प्रयोजन को।
भजते = स्वीकार करता है।
कामात् = स्वार्थ से, इच्छा से।
असम्पृष्टः = बिना पूछा गया।
व्युपयुङ्क्ते = अपने को लगाता है।
परार्थे = परोपकार में।
प्रज्ञानम् = लक्षण।

अन्वय
क्षिप्रं विजानाति, चिरं शृणोति, अर्थ विज्ञाय च भजते, कामात् न (भजते) असम्पृष्टः परार्थे न व्युपयुङ्क्ते, तत् पण्डितस्य प्रथमं प्रज्ञानम् (अस्ति)।

व्याख्या
जो किसी बात को संकेतमात्र से शीघ्र समझ जाता है, प्रत्येक तथ्य को बहुत देर तक अर्थात् तब तक सुनता रहता है, जब तक कि अच्छी तरह समझ नहीं लेता है, कार्य को अच्छी तरह जानकर ही कार्य करता है, स्वार्थ से नहीं करता है। भली-भाँति न पूछा गया दूसरों के काम में स्वयं को नहीं लगाता है, पण्डित का यही प्रथम लक्षण है।

UP Board Solutions

(5)
न हृष्यत्यात्मसम्माने नावमानेन तप्यते ।।
गाङ्गो हृद इवाक्षोभ्यो यः स पण्डित उच्यते ॥

शब्दार्थ
हृष्यति = प्रसन्न होता है।
आत्मसम्माने = अपने सम्मान में।
अवमानेन = अपमान से।
तप्यते = दु:खी होता है।
गाङ्गः = गंगा का।
हृदः = कुण्ड।
अक्षोभ्यः = क्षुभित (व्याकुल) न होने वाला।

अन्वय
(यः) आत्मसम्माने न हृष्यति, अवमानेन न तप्यते, यः गङ्गाः हृदः इव अक्षोभ्यः भवति सः पण्डितः उच्यते।।

व्याख्या
जो अपने सम्मान पर प्रसन्न नहीं होता है, अपने अपमान से दु:खी नहीं होता है, जो गंगा के निर्मल जलकुण्ड की तरह क्षुभित नहीं होता है, वह पण्डित कहलाता है। तात्पर्य यह है कि बुद्धिमान् व्यक्ति को न तो अपने सम्मान पर प्रसन्न होना चाहिए और ही अपने अपमान पर दु:खी। उसे । तो गंगाजल की तरह शान्त रहना चाहिए।

(6)
तत्त्वज्ञः सर्वभूतानां योगज्ञः सर्वकर्मणाम्।।
उपायज्ञो मनुष्याणां नरः पण्डित उच्यते ॥ 

शब्दार्थ
तत्त्वज्ञः = वास्तविक रूप को जानने वाला।
सर्वभूतानाम् = सब प्राणियों के।
योगज्ञः = योग (समन्वय को जाननेवाला।
सर्व कर्मणाम् = सभी कर्मों के।
उपायज्ञः = हित के उपायों को जानने वाला।

अन्वय
(यः) सर्वभूतानां तत्त्वज्ञः, सर्वकर्मणां योगज्ञः, मनुष्याणाम् उपायज्ञः (भवति सः) नरः पण्डित उच्यते।

व्याख्या
जो मनुष्य सभी प्राणियों के वास्तविक रूप को जानने वाला है, जो सभी कर्मों के समन्वय को जानने वाला है, मनुष्यों के हित के उपायों को जानने वाला होता है, वह मनुष्य पण्डित कहलाता है। तात्पर्य यह है कि जो मनुष्य सभी प्राणियों के वास्तविक स्वरूप को, सभी कर्मों के समन्वय को और मनुष्यों के हित के उपायों को जानता है, वही बुद्धिमान होता है।

(7)
अश्रुतश्च समुन्नद्धो दरिद्रश्च महामनाः।
अर्थाश्चाकर्मणी प्रेप्सुर्मूढ इत्युच्यते बुधैः ॥
शब्दार्थ
अश्रुतः = वेद एवं शास्त्र के ज्ञान से रहित।
समुन्नद्धः = (शास्त्रज्ञ होने का) गर्व करने वाला।
महामनाः = उदार मन वाला, अधिक इच्छा रखने वाला।
अर्थान् = धनों को।
अकर्मणा = बिना कर्म किये।
प्रेप्सुः = प्राप्त करने की इच्छा रखने वाला।
बुधैः = विद्वानों के द्वारा।

प्रसंग
प्रस्तुत श्लोक में मूर्ख व्यक्ति के लक्षण बताये गये हैं।

[संकेत–आगे के तीन श्लोकों के लिए यही प्रसंग प्रयुक्त होगा।]

अन्वय
(यः) अश्रुतः (भूत्वा) (अपि) समुन्नद्धः (भवति यः) दरिद्रः च ( भूत्वा) महामनाः (भवति) (य:) अर्थान् च अकर्मणा प्रेप्सुः (भवति सः) बुधैः मूढः इति उच्यते।

व्याख्या
जो शास्त्रवेत्ता न होते हुए भी, अभिमानपूर्वक स्वयं को पण्डित कहता है, जो दरिद्र होकर भी उदार मन वाला (अधिक इच्छाओं वाला) होता है, जो धन को बिना कर्म किये (UPBoardSolutions.com) प्राप्त करने की इच्छा रखता है, विद्वानों ने उसे मूढ़ (विवेकहीन) पुरुष कहा है। तात्पर्य यह है कि अभिमानपूर्वक स्वयं को पण्डित कहने वाला, धनहीन होते हुए भी उदार मन वाला, बिना कर्म किये धन प्राप्ति की इच्छा करने वाला व्यक्ति मूर्ख होता है।

UP Board Solutions

(8)
स्वमर्थं यः परित्यज्य परार्थमनुतिष्ठति ।।
मिथ्याचरति मित्रार्थे यश्च मूढः स उच्यते ॥

शब्दार्थ
स्वमर्थं = अपने कार्य को।
परित्यज्य = छोड़कर।
परार्थम् = दूसरे के कार्य को।
अनुतिष्ठति = करता है।
मिथ्याचरति = मिथ्या आचरण करता है।
मित्रार्थे = मित्र के साथ भी।

अन्वेय
यः स्वम् अर्थं परित्यज्य परार्थम् अनुतिष्ठति, यः च मित्रार्थे मिथ्या आचरति, सः मूढः उच्यते।

व्याख्या
जो मनुष्य अपने काम को छोड़कर दूसरों के कार्य को करता है; अर्थात् जो अपने अधिकार से बाहर है उन कार्यों को करता है और जो मित्र के साथ भी मिथ्या आचरण करता है, वह मूढ़ कहलाता है। तात्पर्य यह है कि अपने काम को छोड़कर दूसरों के काम को करने वाला और मित्र के साथ मिथ्या आचरण करने वाला व्यक्ति मूर्ख होता है।

(9)

अमित्रं कुरुते मित्रं मित्रं द्वेष्टि हिनस्ति च।
कर्म चारभते दुष्टं तमाहुर्मूढचेतसम्॥

शब्दार्थ
अमित्रम् = शत्रु को।
कुरुते = करता है।
द्वेष्टि = द्वेष करता है।
हिनस्ति = नुकसान पहुँचाता है।
चारभते = आरम्भ करता है।
दुष्टम् = निन्दित।
आहुः = कहते हैं।
मूढचेतसम् = मूढ़ चित्त वाला।

अन्वय
(य:) अमित्रं मित्रं कुरुते, (यः) मित्रं द्वेष्टि हिनस्ति च (यः) दुष्टं कर्म आरभते, तं मूढचेतसम् आहुः।।

व्याख्या
जो शत्रु को मित्र बनाता है, जो मित्र से द्वेष करता है और हानि पहुँचाता है, जो निन्दित कर्म को आरम्भ करता है, उसे (विद्वान्) मूढ़ चित्त वाला (मूर्ख) कहते हैं। तात्पर्य यह है कि जो व्यवहारहीन व्यक्ति शत्रु के साथ मित्रता का और मित्र के साथ शत्रुता का व्यवहार करता है, उसे विद्वानों ने मूर्ख कहा है।

(10)

अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहु भाषते ।।
विश्वसिति प्रमत्तेषु मूढचेता नराधमः ॥

शब्दार्थ
अनाहूतः = बिना बुलाया गया।
प्रविशति = प्रवेश करता है।
अपृष्टः = बिना पूछा गया।
बहु भाषते = बहुत बोलता है।
विश्वसिति = विश्वास करता है।
प्रमत्तेषु = पागलों पर।
नराधमः = नीच मनुष्य।।

अन्वय
(यः) अनाहूतः (गृह) प्रविशति, (य:) अपृष्टः बहु भाषते, (य:) प्रमत्तेषु विश्वसिति, (स:) नराधमः मूढचेताः (भवति)।

व्याख्या
जो बिना बुलाये घर में प्रवेश करता है; अर्थात् अनाहूत ही सर्वत्र जाने का इच्छुक होता है, जो बिना पूछे बहुत बोलता है, जो पागलों पर विश्वास करता है, वह नीच मनुष्य मूढ़ चित्त वाला होता है। तात्पर्य यह है कि बिना बुलाये किसी के घर जाने वाला, बिना कुछ पूछे बोलने वाला। और पागल पर विश्वास करने वाला व्यक्ति मूर्ख होता है।

श्लोक का संस्कृत-अर्थ

(1) निषेवते प्रशस्तानि •••••••••••••••• ह्येतत्पण्डितलक्षणम्॥ (श्लोक 1)
संस्कृतार्थ-
महर्षिव्यासः महाभारते पण्डितस्य लक्षणं कथयति-यः पुरुषः प्रशंसनीयानि कार्याणि कॅरोति, निन्दितानि कर्माणि न करोति, ईश्वरे विश्वसिति वेदानां निन्दकः वा न अस्ति, यश्च श्रद्धां करोति, सः पण्डितः भवति। 

UP Board Solutions

(2) तत्त्वज्ञः सर्वभूतानां ••••••••••••• पण्डित उच्यते ॥ (श्लोक 6)
संस्कृतार्थः-
य: नरः सर्वेषां प्राणिनां वास्तविकं रूपं जानाति, यः सर्वेषां कर्मणां योगं (समन्वय) जानाति, यः नराणां हितानाम् उपायान् जानाति, सः नरः पण्डितः कथ्यते।।

(3) स्वमर्थम् “••••••••••••••••••••••••••• मूढः स उच्यते ॥ (श्लोक 8 )
संस्कृतार्थः–
महर्षिः वेदव्यासः कथयति यत् यः जनः स्वकीयं कार्यम् उपेक्ष्य परकार्यं कर्तुम् इच्छति, करोति च, स्वमित्रेषु मिथ्याचरणं भजते सः मूर्खः भवति।

We hope the UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 पण्डितमूढयोर्लक्षणम् (पद्य-पीयूषम्) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 9 पण्डितमूढयोर्लक्षणम् (पद्य-पीयूषम्), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

error: Content is protected !!
Scroll to Top