UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 7 गणतन्त्रदिवसः (गद्य – भारती)

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Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 5
Chapter Name गणतन्त्रदिवसः (गद्य – भारती)
Number of Questions Solved 3
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 7  गणतन्त्रदिवसः  (गद्य – भारती)

पाठ-सारांश

‘गणतन्त्र’ से आशय- हमारे देश में प्रतिवर्ष 26 जनवरी को गणतन्त्र महोत्सव मनाया जाता है। सन् 1950 ई० में इसी दिन हमारा देश ‘गणतन्त्र घोषित हुआ था। इसी दिन से भारतीय संविधान देश में लागू हुआ और उसके अनुसार देश का शासन चलाया जाने लगा। इसी दिन,हमें ज्ञात हुआ कि देश की प्रभुसत्ता जनता में निहित है और जनता के द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। जनतन्त्र का यह सार्वभौम सिद्धान्त भी इसी दिन चरितार्थ हुआ। यही ‘गणतन्त्र’ का तात्पर्य है।

महत्त्व-26-  जनवरी का दिन राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। सन् •1930 ई० में 26 जनवरी को ही राष्ट्रीय नेताओं ने पंजाब में रावी नदी के तट पर ‘कॉग्रेस के महाधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य प्राप्त करने की प्रतिज्ञा की थी। तब से यह दिन स्वतन्त्रता-दिवस के रूप में मनाया जाने (UPBoardSolutions.com) लगा था, किन्तु सन् 1947 ई० में भारत के स्वतन्त्र होने पर 15 अगस्त का दिन स्वतन्त्रता-दिवस के रूप में प्रसिद्ध हो गया। इससे 26 जनवरी का महत्त्व किसी तरह कम नहीं हुआ। राष्ट्रीय नेताओं ने 26 जनवरी, 1950 ई० को भारतीय संविधान लागू करके इसके महत्त्व की रक्षा की। इस प्रकार स्वतन्त्रता की पूर्णरूपेण पुष्टि इसी दिन हुई।

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मनाने का ढंग– यह महोत्सव प्रतिवर्ष सम्पूर्ण देश में अत्यधिक हर्षोल्लासपूर्वक मनाया जाता है। इस दिन भवनों पर तिरंगा झण्डा फहराया जाता है और जन-सभाएँ की जाती हैं। विद्यालयों में बालक-बालिकाएँ राष्ट्रगीत गाते हैं, कविता-पाठ और भाषण प्रतियोगिताएँ होती हैं। छोटे-छोटे बच्चे झण्डियाँ लेकर सड़कों पर राष्ट्रगीत गाते हुए और मातृभूमि की जय बोलते हुए प्रभात-फेरियाँ निकालते हैं। इसे देखकर राष्ट्र के लिए आत्म-समर्पण करने वाले राष्ट्र-प्रेमियों की याद तरोताजा हो जाती है।

दिल्ली में मनाने का ढंग- यद्यपि यह महोत्सव प्रत्येक गाँव में, प्रत्येक नगर में, विद्यालय में और कार्यालय में मनाया जाता है, फिर भी मुख्य उत्सव देश की राजधानी दिल्ली में लालकिले के मैदान में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन दिल्ली नववधू के समान सजायी जाती है।

निश्चित समय पर राष्ट्रपति सुसज्जित बग्घी में चढ़कर आते हैं। उनके अंगरक्षक विशिष्ट वेशभूषा में उनके आगे-आगे चलते हैं। राष्ट्रपति लालकिले की प्राचीर पर राष्ट्रीय (UPBoardSolutions.com) ध्वज फहराते हैं और उपस्थित नर-नारी जयघोष करते हुए हर्ष व्यक्त करते हैं। पंक्ति बनाये बालक-बालिकाएँ राष्ट्रपति का अभिवादन करते हैं। इसके बाद स्थल सेना, जल सेना और नभ सेना के जवान अभिनन्दन करते हैं।

इस अवसर पर आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों और सामरिक वाहनों का प्रदर्शन किया जाता है। आंकाश में उड़ते हुए वायुयान क्षणभर में कभी तिरछे होकर, कभी ऊपर, कभी नीचे आकर अपना उड्डयन-कौशल दिखाते हैं और पुष्प वर्षा करके राष्ट्र का अभिनन्दन करते हैं। | यह उत्सव किसी धर्म, जाति अथवा सम्प्रदाय का नहीं है। यह सम्पूर्ण राष्ट्र की प्रगति के लिए किये गये त्याग और बलिदान का स्मारक है। यह हमें परस्पर प्रेम, सहिष्णुता और सर्वप्रथम समभाव से रहने की प्रेरणा देता है।

राष्ट्रीयता का पोषक-यह महोत्सव हममें राष्ट्रीय भावना जाग्रत करता है। भूमि, जन और संस्कृति–राष्ट्र के इन तीन तत्त्वों का तादात्म्य ही राष्ट्रीयता है। भारतभूमि पर जन्म लेकर उसके अन्न और वायु से हम जीवित रहते हैं। वह हमारी माता के समान पालन-पोषण करती है; अंतः भारतभूमि (UPBoardSolutions.com) हमारी माता और हम उसके पुत्र हैं। भारतभूमि के हम सब निवासी आपस में भाई हैं। वर्ण, जाति, भाषा, धर्म आदि स्थान का भेद होते हुए भी हम भारतमाता के ही पुत्र हैं; अतः हम सभी को मातृभूमि की सेवा में तत्पर होना चाहिए-गणतन्त्र दिवस हमें इसी की याद दिलाता है।

गद्यांशों का ससन्दर्भ अनुवाद

(1) प्रतिवर्ष जनवरीमासस्य षड्विंशे दिनाङ्केऽस्माकं देशे गणतन्त्रोत्सवः आयोजितो भवति। एतस्मिन्नेव दिनाङ्के पञ्चाशदुत्तरैकोनविंशतिशततमे वर्षे (1950) देशोऽयमस्माकं गणतन्त्रो जातः। अस्मिन्नैव दिनाङ्केऽस्माभिर्निर्मितं संविधानं व्यवहारे आगतम्। एतस्माद्दिनादेवास्य देशस्य शासनं स्वनिर्मितेन विधानेन सञ्चाल्यमानमभूत्। राष्ट्रस्य प्रभुत्वशक्तिः जनेषु निहितेति संविधान प्रतिपादितः सिद्धान्तः तद्दिन एव प्रतिफलितः। जननिर्वाचिताः प्रतिनिधयो जनताम्प्रत्येवोत्तरदायिन इति जनतन्त्रस्य सार्वभौमः सिद्धान्तः तद्दिन एवं चरितार्थो जातः। अयमेव गणतन्त्रस्याशयोऽस्ति।

शाब्दार्थ-
षड्विंशे दिनाङ्के = छब्बीसवें दिन।
आयोजितो भवति = मनाया जाता है।
जातः = बना।
व्यवहारे आगतम् = व्यवहार में आया।
सञ्चाल्यमानम् = संचालित होने वाला।
प्रभुत्वशक्तिः = प्रभुसत्ता की शक्ति।
निहिता = स्थित है।
प्रतिपादितः = स्वीकार किया, विवेचित किया।
प्रतिफलितः = कार्यान्वित किया।
निर्वाचिताः = चुने गये।
उत्तरदायिनः = उत्तरदायी।
सार्वभौमः = सारे संसार का।
चरितार्थः = सफल।
आशयः अस्ति = अभिप्राय है।

सन्दर्थ
प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत गद्य-भारती’ में संकलित ‘गणतन्त्रदिवसः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है।

संकेत
इस पाठ के शेष गद्यांशों के लिए भी यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गणतन्त्र का आशय स्पष्ट किया गया है।

अनुवाद
प्रतिवर्ष जनवरी महीने की 26 तारीख को हमारे देश में गणतन्त्र का उत्सव मनाया जाता है। सन् 1950 ईसवी में इसी दिन हमारा यह देश गणतन्त्र हुआ था। इसी तारीख को हमारे द्वारा बनाया गया संविधान व्यवहार में आया था। इसी दिन से इस देश का शासन अपने द्वारा निर्मित कानून से चलाया गया। (UPBoardSolutions.com) राष्ट्र की प्रभुत्वशक्ति जनता में निहित है, यह संविधान के द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त रस दिन ही प्रतिफलित हुआ था। जनता के द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि जनता के प्रति ही उत्तरदायी होते हैं। जनतन्त्र का यह सार्वभौम सिद्धान्त उसी दिन चरितार्थ (लागू) हुआ था। यही गणतन्त्र का आशय है।

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(2) जनवरीमासस्य षड्विंशदिनाङ्के भारतस्य राष्ट्रियान्दोलनस्यैतिहासिको दिवसो वर्तते। त्रिंशदुत्तरैकोनविंशतिशततमेऽस्मिन्नेव दिनाङ्के श्रीजवाहरलालनेहरूमहोदयस्य नेतृत्वे पञ्चनदप्रदेशे रावीनद्यस्तटे सम्पन्ने भारतीयराष्ट्रियकॉङ्ग्रेसमहाधिवेशने पूर्णस्वराज्यस्य सङ्कल्पो गृहीतोऽस्मन्नेतृवर्गौः। तत आरभ्य प्रतिवर्षमेष दिवसः स्वतन्त्रतादिवस इति नाम्ना समग्रे देशे समायोजितो भवति। सप्तचत्वारिंशदुत्तरैकोनविंशतिशततमे वर्षे अगस्तमासस्य पञ्चदशदिनाङ्के भारतं स्वातन्त्र्यमलभत्। (UPBoardSolutions.com) अतोऽगस्तमासस्य पञ्चदशदिनाङ्के एव स्वतन्त्रतादिवसरूपेण ख्यातोऽभूत्। जनवरीमासस्य षड्विंशदिनाङ्कस्य महिमा न हीयेत इति राष्ट्रियनेतार नेतृभिः एतस्मिन् दिनाङ्के स्वनिर्मितं संविधानं प्रयुज्य तस्य महत्त्वं संरक्षितं किञ्च ततोऽप्यधिकं महत्त्वं तस्मै तैः प्रदत्तम्।

शब्दार्थ-
आन्दोलनस्य = आन्दोलन का।
ऐतिहासिको दिवसो = इतिहास से सम्बद्ध महत्त्व वाला दिन।
पञ्चनदप्रदेशे = पंजाब प्रदेश में सम्पन्ने = पूर्ण हुए।
सङ्कल्पः = निश्चित प्रतिज्ञा।
समायोजितो भवति = मनाया जाता है।
अलभत्= प्राप्त किया।
ख्यातः = प्रसिद्ध।
हीयते = कम होती है।
प्रयुज्य = प्रयोग करके, लागू करके।
प्रदत्तं = प्रदान किया गया।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में बताया गया है कि 26 जनवरी के महत्त्व को बनाये रखने के लिए इस दिन स्वनिर्मित संविधान को लागू किया गया।

अनुवाद
जनवरी महीने की 26 तारीख भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन का ऐतिहासिक दिन (तारीख) है। सन् 1930 ई० में इसी तारीख को श्री जवाहरलाल नेहरू महोदय के नेतृत्व में पंजाब में रावी नदी के किनारे पर हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महाधिवेशन में हमारे नेताओं ने पूर्ण स्वराज्य की प्रतिज्ञा की थी। तब से लेकर प्रतिवर्ष यह दिन स्वतन्त्रता दिवस (के), इस नाम से सारे देश में मनाया जाता रहा। सन् 1947 ईसवी में (UPBoardSolutions.com) अगस्त महीने की 15 तारीख को भारत ने स्वतन्त्रता प्राप्त की थी; अतः अगस्त महीने की 15 तारीख ही स्वतन्त्रता दिवस के रूप में प्रसिद्ध हुई। जनवरी महीने की 26 तारीख की महिमा कम न हो जाये, इसलिए राष्ट्रीय नेताओं ने इस तिथि को अपने द्वारा निर्मित संविधान को प्रयोग कर (लागू करके) उसके महत्त्व की उन्होंने रक्षा की और क्या, उन्होंने उसे (26 जनवरी को) उससे (15 अगस्त से) अधिक महत्त्व प्रदान किया।

(3) महोत्सवोऽयं महोल्लासेन समग्रे च देशे जनैः प्रतिवर्षमायोज्यते। पूर्वाह्नत्रिवर्णोऽस्माकं राष्ट्रध्वजो भवनेषु समुच्छुितो भवति, जनसभाश्च विधीयन्ते। तासु सभासु राष्ट्रं प्रति कर्त्तव्यं बोधयन्ति विशिष्टाः जनाः नेतारो विद्वांसश्च। विद्यालयेषु बालकाः बालिकाश्चानेकराष्ट्रियकार्यक्रमान् सोत्साहं सोल्लासं च सम्पादयन्ति, राष्ट्रियगीतानि गायन्ति, कवितापाठं कुर्वन्ति, भाषणप्रतियोगितासु सम्मिलिताः भवन्ति। प्रातः शिशुच्छात्राः (UPBoardSolutions.com) स्वप्रमाणानुरूपान् लघुलघून, ध्वजान् गृहीत्वा पङक्तिबद्धाः सन्तः वीथीषु राष्ट्रगीतं गायन्तः मातृभूमेः जयघोष कुर्वन्तः जनानुबोधयन्तः परिभ्रमन्ति। अदभुतं मनोहरं दृश्यमिदं जनमानसं बलादाकर्षदिवे राष्ट्रभावान् हदि-हृदि सञ्चारयत् स्मारयति तान् युवकान् महापुरुषान् यैः स्वतन्त्रतामाप्तुं, स्वातन्त्र्यान्दोलनाग्नौ स्वसुखं स्ववैभवं स्वप्राणा अपि सानन्दं सर्वं हुतम्।

शब्दार्थ-
महोल्लासेन (महा + उल्लासेन) = अत्यधिक प्रसन्नता से।
आयोज्यते = मनाया जाता है।
पूर्वाह्न = दिन के पूर्वभाग में।
समृच्छुितो भवति = फहराया जाता है।
विधीयन्ते = की जाती हैं।
बोधयन्ति = बताते हैं।
स्वप्रमाणानुरूपान् = अपने प्रमाण के अनुरूप।
लघु-लघून् = छोटे-छोटों को।
वीथीषु = गलियों में परिभ्रमन्ति = घूमते हैं।
बलादाकर्षदिव = बलपूर्वक आकर्षित करता हुआ।
हृदि-हृदि = प्रत्येक हृदय में।
स्मारयति = याद दिलाता है।
आप्तुम् = पाने के लिए।
आन्दोलनाग्नौ = आन्दोलन रूपी अग्नि में।
हुतम् = उत्सर्ग कर दिया।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में सम्पूर्ण देश में गणतन्त्र दिवस मनाये जाने की विधि का वर्णन किया। गया है।

अनुवाद
यह महान् उत्सव लोगों के द्वारा अत्यधिक उत्साह से सारे देश में प्रतिवर्ष मनाया जाता है। सवेरे के समय हमारा तिरंगा झण्डा भवनों पर फहराया जाता है और जन-सभाएँ की जाती हैं। उन सभाओं में विशेष लोग, नेता और विद्वान राष्ट्र के प्रति कर्तव्य समझाते हैं। विद्यालयों में बालक और बालिकाएँ अनेक राष्ट्रीय कार्यक्रमों को उत्साह और प्रसन्नता से सम्पन्न करते हैं। वे राष्ट्रीय गीत गाते हैं, कविता पाठ करते हैं, भाषण-प्रतियोगिताओं में सम्मिलित होते हैं। सवेरे के समय छोटे बच्चे अपने (शरीर के) परिमाण के अनुसार छोटे-छोटे ध्वजों (UPBoardSolutions.com) को लेकर पंक्ति बनाकर रास्तों में राष्ट्रगीत गाते हुए, मातृभूमि की जय बोलते हुए लोगों को जाग्रत करते हुए घूमते हैं। यह अद्भुत मनोहर दृश्य लोगों के मनों को बलपूर्वक खींचता हुआ, हृदय-हृदय में राष्ट्रीय भावों का संचार करता हुआ, उन युवक महापुरुषों की याद दिलाता है, जिन्होंने स्वतन्त्रता को प्राप्त करने के लिए स्वतन्त्रता के आन्दोलन की आग में अपने समस्त सुख, वैभव और प्राणों को भी आनन्दपूर्वक होम कर दिया था।

(4) यद्यपि महोत्सवोऽयं ग्रामे-ग्रामे, नगरे-नगरे प्रतिविद्यालयं प्रतिकार्यालयं सर्वत्र समायोजिता भवति, तथापि मुख्योत्सवो देशस्य राजधान्यां दिल्लीनगरे स्थितस्य प्रख्यातस्य ‘लालकिलाख्यस्य’ महादुर्गस्य विशाले प्राङ्गणे महता समारम्भेण सम्पन्नो भवति। अमुं महोत्सव द्रष्टुं देशस्य सुदूराञ्चलेभ्यो जनास्तत्र समुपयान्ति। वैदेशिकाः तत्रोपस्थितास्तन्महोत्सवस्य भव्यं रूपमवलोक्य चकितास्तिष्ठन्ति। दिल्लीनगरी तद्दिने नवोढयुवतिरिव सज्जिताऽलङ्कृता च सुशोभते।।

शब्दार्थ-
प्रख्यातस्य = विख्यात।
समारम्भेण = तैयारी के साथ।
समुपयान्ति = आते हैं।
नवोढयुवतिरिव = नव-विवाहिता वधू के समान।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में दिल्ली नगर में गणतन्त्र दिवस का उत्सव मनाये जाने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
यद्यपि यह महोत्सव गाँव-गाँव में, नगर-नगर में, प्रत्येक विद्यालय में, प्रत्येक कार्यालय में सभी जगह मनाया जाता है तो भी मुख्य उत्सवं देश की राजधानी दिल्ली नगरी में स्थित प्रसिद्ध ‘लालकिला’ नाम के बड़े किले के विशाल प्रांगण में बड़ी तैयारी के साथ सम्पन्न होता है। इस महोत्सव को देखने के लिए देश के दूर के स्थानों से लोग वहाँ आते हैं। वहाँ आये हुए विदेशी भी उस महोत्सव के भव्य रूप को देखकर चकित रह जाते हैं। दिल्ली नगरी उस दिन नव-विवाहिता वधू के समान सुसज्जित, अलंकृत और सुशोभित होती है।

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(5) सुनिश्चित कालेऽस्माकं राष्ट्रपतिः विभूषितमश्वयानमारुह्य महोत्सवस्थलं प्रयाति। अश्वारोहास्तस्याङ्गरक्षकाः प्रभावोत्पादकाः विशिष्टभूषाभूषिताः राष्ट्रपतेरश्वयानस्य पुरतोऽग्रेसरन्ति। राष्ट्रपतिः दुर्गप्राचीरं प्राप्तय राष्ट्रप्रतीकभूतं राष्ट्रध्वजं तत्र समुच्छ्यति। तां भव्य दिव्यां शोभां दर्श-दर्श (UPBoardSolutions.com) तत्र समवेताः नराः नार्यः बालाः वृद्धाश्च जयघोषं कुर्वन्तः स्वहृदयहर्ष व्यञ्जयन्ति। बालकाः बालिकाश्च पङ्क्तिबद्धाः पुरस्सरन्तः राष्ट्रपतये आनतिमर्पयन्ति। ततोऽस्माकं स्थल-सैनिकाः जनसैनिकाः नभस्सैनिकाश्च तं नमन्तोऽग्रेसरन्ति।

शब्दार्थ-
विभूषितम् अश्वयानम् आरुह्य = सजी हुई बग्घी पर चढ़कर।
प्रयाति = जाते हैं।
पुरतोओसरन्ति (पुरतः + अग्रेसरन्ति) = आगे बढ़ते हैं।
दुर्गप्राचीरं प्राप्य = किले की चहारदीवारी पर पहुँचकर समुच्छ्य ति = फहराता है।
समवेताः = इकड़े हुए।
व्यञ्जयन्ति = प्रकट करते हैं।
पुरस्सरन्तः = आगे बढ़ते हुए।
आनतिम् = नमस्कार।
नमन्तोऽग्रेसरन्ति = झुकते हुए आगे बढ़ते हैं।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में देश की राजधानी दिल्ली में गणतन्त्र दिवस मनाये जाने का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
निश्चित समय पर हमारे राष्ट्रपति सजी हुई बग्घी पर चढ़कर महोत्सव के स्थान पर जाते हैं। उनके घुड़सवार अंगरक्षक प्रभाव डालने वाली विशेष वर्दी पहने हुए राष्ट्रपति की बग्घी के सामने आगे चलते हैं। राष्ट्रपति दुर्ग की प्राचीर पर पहुँचकर वहाँ राष्ट्र के प्रतीकस्वरूप राष्ट्रध्वज को फहराते हैं। उस भव्य, दिव्य शोभा को देख-देखकर वहाँ एकत्रित हुए स्त्री-पुरुष, बालक और वृद्ध जय बोलते हुए अपने हृदय के हर्ष को (UPBoardSolutions.com) व्यक्त करते हैं। बालक और बालिकाएँ पंक्ति बनाकर आगे चलते हुए राष्ट्रपति को अभिवादन करते हैं। इसके बाद हमारे स्थल सैनिक, जल सैनिक और नभ सैनिक उन्हें नमस्कार करते हुए आगे चलते हैं।

(6) अस्मिन्नवसरे विशालानां विलक्षणानाञ्चात्याधुनिकास्त्रशस्त्राणां युद्धायुधानां सामरिकवाहनानाञ्च राष्ट्रपतेः पुरतः प्रदर्शनं क्रियते। आयुधयानानि यदा मन्थरंगत्या राष्ट्रपतिसमक्षमायान्ति तदानीमेव ध्वनितोऽप्यधिकवेगेन गगने क्षणमूर्ध्वं क्षणमधः क्षणं तिर्यग् उड्डीयमानानि वायुयानानि चेतश्चमत्कारकं स्वक्रियाकौशलं प्रदर्शयन्ति पुष्पवर्षाभिः राष्ट्रमभिनन्दन्ति देशरक्षाविधौ स्वसामर्थ्यञ्च साधु प्रकटयन्ति।

शब्दार्थ-
युद्धायुधानाम् = युद्ध के शस्त्रों का।
सामरिकवाहनानाम् = युद्ध के सामान को ढोने वाले।
पुरतः = सामने।
मन्थरगत्या = धीमी चाल से।
आयान्ति = आते हैं।
ऊर्ध्वम् = ऊपर।
तिर्यग् = तिरछे।
उड्डीयमानानि = उड़ते हुए।
चेतः चमत्कारकं = मन को चमत्कृत करने वाले।
साधु = अच्छी तरह।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में दिल्ली नगर में आयोजित गणतन्त्र समारोह का वर्णन किया गया है।

अनुवाद
इसी अवसर पर विशाल और विलक्षण आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों का, युद्ध के आयुधों का और युद्ववाहनों का राष्ट्रपति के सामने प्रदर्शन किया जाता है। युद्धवाहने जब धीमी गति से राष्ट्रपति के सामने आते हैं, तभी ध्वनि से भी अधिक गति से आकाश में क्षणभर ऊपर, क्षणभर नीचे और (UPBoardSolutions.com) क्षणभर तिरछे उड़ते हुए वायुयान हृदय को चमत्कृत करने वाले अपने कौशल को दिखाते हैं, पुष्प-वर्षा से राष्ट्र का सम्मान करते हैं और देश की रक्षा-विधि में अपनी क्षमता को अच्छी तरह प्रकट करते हैं।

(7) महोत्सवोऽयं न कस्यचिद्धर्मस्य सम्प्रदायस्य वर्णस्य जातेर्वाऽस्ति। समग्रस्य राष्ट्रस्य रक्षायै राष्ट्रस्य संवर्धनाय च विहितस्य त्यागस्य बलिदानस्य संस्मारकोऽयमस्माकं राष्ट्रियोत्सवः प्रतिवर्ष परस्परं प्रेम्णां सहिष्णुतया सर्वधर्मसमभावतया स्थातुमस्मान् प्रेरयति।

शब्दार्थ
संवर्धनाय = बढ़ाने के लिए।
विहितस्य = किये गये।
संस्मारकः = स्मारक।
प्रेरयति = प्रेरित करती है।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश में गणतन्त्र दिवस के उत्सव से मिलने वाली प्रेरणा का वर्णन किया गया हैं।

अनुवाद
यह महोत्सव किसी धर्म, सम्प्रदाय, वर्ण या जाति का नहीं है। सारे राष्ट्र की रक्षा के : लिए और राष्ट्र की प्रगति के लिए किये गये त्याग और बलिदान की याद कराने वाला हमारा यह राष्ट्रीय उत्सव प्रतिवर्ष आपस में प्रेम, सहिष्णुता और सर्वधर्म समभाव से रहने के लिए हमें प्रेरणा देता है।

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(8) राष्ट्रियमहोत्सवोऽयं राष्ट्रभावमस्मासु जागरयति। राष्ट्रभावो राष्ट्रं प्रति जनानां तादात्म्यभावः। भूमिः जनाः संस्कृतिरिति त्रयाणां समुच्चय एव राष्ट्रम्। राष्ट्रस्यैतानि त्रीणि तत्त्वानीत्यपि वक्तुं शक्यते। भारतभूमिः भारतीयजनाः भारतीयसंस्कृतिरितित्रयाणां तादात्म्यमेव भारतराष्ट्रमिति संज्ञेयम्। भारतभूमौ वयं जन्म लब्ध्वा निवसामः तदन्नेन, तज्जलेन, तद्वायुना च जीवामः विविधभोगोपयुक्तवस्तूनि सो (UPBoardSolutions.com) अस्मभ्यं प्रयच्छन्ती मातृवदस्मान् पालयति पुष्णाति वर्धयति च। अतएव सा भूमिः मातृभूमिरित्युच्यते। ‘माताभूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः’ इति श्रुतिर्वदति। मातृभूमिं प्रति समादरं प्रदर्शयन् श्रीरामोऽपि ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ इत्यवोचत्। मातुः मातृभूमेश्च महिमा केनं न स्वीक्रियते? |

शब्दार्थ-
जागरयति = जगाता है।
समुच्चय = समूह।
वक्तुं शक्यते = कहा जा सकता है।
तादात्म्यम् एव = मिश्रित रूप ही।
संज्ञेयम् = जानना चाहिए।
लब्ध्वा = पाकर। जीवायः = जीते हैं।
अस्मभ्यम् = हम सबके लिए।
प्रयच्छन्ती = देती हुई।
मातृवत् अस्मान् = माता के समान हमको।
पुष्णाति = पुष्ट करती है।
श्रुतिः वदति = वेद कहता है।
स्वर्गादपि = स्वर्ग से भी।
गरीयसी = अधिक श्रेष्ठ है।
स्वीक्रियता = स्वीकार करता है।

प्रसंग
प्रस्तुत गद्यांश मे राष्ट्र के तत्त्व बताये गये हैं और जन-समुदाय को पृथ्वी का पुत्र बताया। गया है।

अनुवाद
यह राष्ट्रीय महोत्सव हममें राष्ट्रभावना जाग्रत करता है। लोगों का राष्ट्र के प्रति अपनापन ही राष्ट्रभावना है। भूमि, जन् और संस्कृति इन तीनों का समूह ही राष्ट्र है। ये राष्ट्र के तीन तत्त्व हैं, ऐसा कहा जाता सकता है। भारतभूमि, भारत के लोग और भारत की संस्कृति इन तीनों का मिश्रित रूप ही भारत राष्ट्र है, ऐसी जानना चाहिए। हम भारतभूमि पर जन्म लेकर रहते हैं, उसके अन्न से, उसके जल से और उसकी वायु से जीवित रहते हैं। अनेक प्रकार की भोग के योग्य वस्तुओं को वह .

हमें प्रदान करती हुई हमारा पालन करती है, पोषण करती है और बड़ा करती है। इसलिए उस भूमि को ‘मातृभूमि’ ऐसा कहा जाता है। ‘माता भूमि है और मैं पृथ्वी का पुत्र हूँ’, ऐसा वेद कहते हैं। मातृभूमि के प्रति आदर दिखाते हुए श्रीराम ने भी ‘माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान् है’, ऐसा कहा था। माता। और मातृभूमि की महिमा को कौन स्वीकार नहीं करता है?

(9) मातृभूमौ जनाः निवसन्ति। सर्वे जना एकमातुः सन्ततयोऽतस्ते मिथो भ्रातरः सन्ति। एकमातृजेषु भ्रातृषु सहजः स्नेहो भवति। तेषु भवतु नाम वर्णभेद, भाषाभेदः, धर्मभेदः, क्षेत्रभेदो वापरं सर्वे ते भारतभूतनया एव। पुष्पोद्याने प्रस्फुटितानि विविधवणकारभूतानि यथा स्ववैविध्येनोद्यानस्य सुषमामेव वर्धयन्ति तथैवेते बाह्यभेदाः अस्माकं मातृभूमेः दिव्यस्वरूपं व्यञ्जयन्ति। यथा सर्वेषु वर्णाकारस्वरूपभेदेषु सत्सु भूमेः (UPBoardSolutions.com) प्राप्त एक एव रसः प्रवहति, तस्मिन् से न कश्चिद्भेदः तथैव सर्वेषु जनेषु बाह्यभेदेषु सत्सु भारतीय संस्कृतिः रसरूपेण प्रवहति। स एव । संस्कृतिरसोऽस्मान् मिथः एकसूत्रे प्रतिबध्नाति। अतः सर्वे वयं भारतीयाः भारतपुत्राः पुत्र्यश्च सततं स्वमातृसेवापरा भवेम इति गणतन्त्रमहोत्सवः प्रतिवर्षमस्मान् स्मारयति।

शब्दार्थ
सन्ततयः = सन्तान।
मिथः = आपस में।
एकमातृजातेषु = एक माता से जन्म लेने वालों में।
सहजः = स्वाभाविक।
भवतु नाम = भले ही हो।
वापरं (वा + अपरं) = अथवा अन्य।
भारतभूतनयाः = भारतभूमि में उत्पन्न हुए पुत्र।
प्रस्फुटितानि = खिले हुए।
स्ववैविध्येन = अपनी विविधता से।
उद्यानस्य = बगीचे की।
सुषमाम् = सुषमा को।
तथैवेते (तथा + एव + एते) = उसी प्रकार ये।
बाह्यभेदाः = बाहरी भेद।
व्यञ्जयन्ति = प्रकट करते हैं।
एकसूत्रे = एक सूत्र में।
प्रतिबध्नाति = बाँधती है।
संततम् = सदा, लगातार।
स्मारयति = याद दिलाता है। |

प्रसंग
भारत में रहने वाले लोगों में अनेक विविधताएँ होते हुए भी सभी एक हैं। हम सभी मातृभूमि के पुत्र हैं; अतः हमें मातृभूमि की सेवा करनी चाहिए। प्रस्तुत गद्यांश में यही बताया गया है।

अनुवाद
मातृभूमि पर लोग रहते हैं। सब लोग एक ही माता की सन्तान हैं; अतः वे आपस में भाई हैं। एक माता से उत्पन्न हुए भाइयों में स्वाभाविक स्नेह होता है। उनमें भले ही वर्णभेद, भाषाभेद, धर्मभेद अथवा स्थान भेद हो, परन्तु वे सब भारतभूमि के पुत्र ही हैं। पुष्पों के उद्यान में खिले हुए अनेक रंगों और आकारों के होते हुए भी पुष्प अपनी विविधता से उद्यान की शोभा ही बढ़ाते हैं, उसी प्रकार (हमारे) बाहरी भेदभाव हमारी मातृभूमि के दिव्य (सुन्दर) स्वरूप को प्रकट करते हैं। जिस प्रकार रंग, आकार, स्वरूप का भेद होते हुए भी सभी (वनस्पतियों) (UPBoardSolutions.com) में भूमि से प्राप्त एक ही रस बहता है, उसमें (रस में) कोई भी अन्तर नहीं (होता), वैसे ही बाहरी भेदभाव होते हुए भी सभी (भारतीय) लोगों में भारतीय संस्कृति रस रूप में बहती है। वही संस्कृति रस हमें आपस में एक सूत्र में बाँधती है; अत: हम सभी. भारत के रहने वाले भारत के पुत्र और पुत्रियाँ निरन्तर अपनी माता की सेवा में लगे रहें। .. । गणतन्त्र महोत्सव प्रतिवर्ष हमें इसकी याद दिलाता है।

लघु उत्तरीय प्ररन

प्ररन 1
गणतन्त्र दिवस के महत्त्व पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर
[संकेत-‘पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत दी गयी सामग्री को ध्यानपूर्वक पढ़कर अपने शब्दों में लिखिए।]

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प्ररन 2
गणतन्त्र दिवस का आशय स्पष्ट करते हुए इसके महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
[संकेत-‘पाठ-सारांश’ मुख्य शीर्षक के अन्तर्गत ‘गणतन्त्र से आशय’ और ‘महत्त्व शीर्षकों की सामग्री को पढ़िए और अपने शब्दों में लिखिए।]

प्ररन 3
गणतन्त्र दिवस को लाल किले पर क्या कार्यक्रम होता है और राष्ट्रपति को किस प्रकार सलामी दी जाती है।
उत्तर
गणतन्त्र दिवस के दिन राष्ट्रपति निश्चित समय पर बग्घी में चढ़कर आते हैं और लाल किले की प्राचीन पर राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं। उपस्थित स्त्री-पुरुष जयघोष करते हुए हर्ष व्यक्त करते हैं। पंक्तिबद्ध बालक-बालिकाएँ राष्ट्रपति का अभिवादन करते हैं। इसके पश्चात् तीनों सेनाओं (जल, थल और नभ) के जवान राष्ट्रपति का अभिवादन करते हैं।

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