UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 4 धातु-रूप प्रकरण (व्याकरण) the students can refer to these answers to prepare for the examinations. The solutions provided in the Free PDF download of UP Board Solutions for Class 9 are beneficial in enhancing conceptual knowledge.
Board | UP Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 9 |
Subject | Sanskrit |
Chapter | Chapter 4 |
Chapter Name | धातु-रूप प्रकरण (व्याकरण) |
Number of Questions Solved | 25 |
Category | UP Board Solutions |
UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 4 धातु-रूप प्रकरण (व्याकरण)
धातु-रूप प्रकरण
जिस शब्द के द्वारा किसी काम के करने या होने का बोध होता है, उसे क्रिया कहते हैं; जैसे-‘राम: पुस्तकं पठति।’ इस वाक्य में ‘पठति से पढ़ने के काम का बोध होता है; अतः ‘पठति क्रिया है।
क्रिया के मूल रूप को संस्कृत में ‘धातु’ कहते हैं; जैसे—राम: पुस्तकं पठति। इस वाक्य में ‘पठति’ क्रिया का मूल ‘पद्’ है; अतः ‘पद्’ धातु है।
धातुओं में प्रत्यय जोड़ने से ही क्रिया के विभिन्न रूप बनते हैं। क्रियाएँ ‘तिङ’ प्रत्यय जोड़कर बनायी जाती हैं; अतः तिङन्त कहलाती हैं। संस्कृत में क्रिया का ही प्रयोग होता है, धातु का नहीं।
क्रियाएँ दो प्रकार की होती हैं-(1) सकर्मक क्रिया तथा (2) अकर्मक क्रिया।।
(1) सकर्मक क्रिया- ये वे क्रियाएँ हैं, जिनका अपना कर्म होता है। समर्कक क्रिया के व्यापार को फल कर्ता को छोड़कर किसी और (कर्म) पर पड़ता है; जैसे-राम: पुस्तकं पठति। इस वाक्य में ‘पठति’ क्रिया के व्यापार का फल ‘राम:’ कर्ता को छोड़कर ‘पुस्तकम्’ (कर्म) पर पड़ता है; अतः ‘पठति’ (UPBoardSolutions.com) क्रिया सकर्मक है।। क्रिया के पूर्व ‘क्या’ या ‘किसको’ लगाकर प्रश्न करने पर मिलने वाला उत्तर कर्म होता है। ऊपर के वाक्य में ‘क्या’ पढ़ता है; प्रश्न करने पर उत्तर में ‘पुस्तकम्’ आता है; अतः ‘पुस्तकम् कर्म है और ‘पठति’ क्रिया, सकर्मक है।
(2) अकर्मक क्रिया- अकर्मक क्रिया के व्यापार का फल केवल कर्ता तक ही सीमित होता है। अकर्मक क्रियाओं का अपना कोई कर्म नहीं होता है; जैसे-रामः हसति। इस वाक्य में हसति’ (हँसना) क्रिया के व्यापार का फल केवल ‘राम:’ कर्ता पर ही पड़ता है; अतः ‘हसति’ क्रिया अकर्मक है।। अकर्मक क्रिया के पूर्व ‘क्या’ या ‘किसको’ लगाकर प्रश्न करने से उत्तर में कुछ नहीं आता है।
लकार या काल
प्रयोग की दृष्टि से क्रियाओं की विभिन्न अवस्थाएँ होती हैं, संस्कृत में उन्हें लकारों द्वारा प्रकट किया जाता है। संस्कृत में प्राय: सभी कालों के प्रारम्भ में ‘ल’ वर्ण आता है, अत: इन्हें लकार कहते हैं। ये 10 होते हैं
- लट् लकार (वर्तमानकाल),
- लिट् लकार (परोक्ष भूतकाल),
- लुट् लकार (अनद्यतन भविष्यत्),
- लृट् लकार (सामान्य भविष्यत्),
- लङ् लकार (अनद्यतन भूत),
- लिङ् लकार (विधिलिङ) अनुमति, आज्ञा, प्रार्थना आदि अर्थ में,
- आशीलिङ् (आशीर्वाद अर्थ में),
- लोट् लकार (आज्ञा अर्थ में)
- लुङ् लकार (सामान्य भूतकाल) तथा
- लुङ् लकार (हेतु-हेतुमद्भूत)
उम्रर्युक्त लकारों में लट्, लोट्, लङ, विधिलिङ ये चार लकार सार्वधातुक और शेष छ: लकार आर्धधातुक कहलाते हैं।नवीं कक्षा के छात्रों को केवल निम्नलिखित पाँच लकारों के रूप जानना आवश्यक है
(1) लट् लकार (वर्तमानकाल)- निरन्तर होती हुई, वर्तमानकाले की क्रिया लट् लकार द्वारा बतायी जाती है।
(2) लङ् लकार- भूतकाल की क्रिया को बताने के लिए लङ् लकार का प्रयोग होता है। यह लकार, जो कार्य आज से पहले हुआ हो, उसका बोध कराने के लिए प्रयोग किया जाता है।
(3) लृट् लकार- हिन्दी की उन क्रियाओं का, जिनके अन्त में गा, गे, गी लगे होते हैं, का अनुवाद करने के लिए भविष्यत्काल के वाक्यों में लुट् लकार का प्रयोग किया जाता है।
(4) लोट् लकार– अनुमति, निमन्त्रण, आमन्त्रण, अनुरोध, जिज्ञासा और सामर्थ्य अर्थ में लोट् लकार का प्रयोग किया जाता है।(5) विधिलिङ् लकार- उनुमति को छोड़कर शेष (निमन्त्रण, आमन्त्रण, अनुरोध, जिज्ञासा, सामर्थ्य तथा विधि) अर्थों में विधिलिङ् लकार का प्रयोग किया जाता है। :
क्रिया क पद
क्रिया के तीन पद होते हैं—
- परस्मैपद,
- आत्मनेपद तथा
- उभयपद।।
(1) परस्मैपद- क्रिया के व्यापार का परिणाम जब कर्ता को प्राप्त न होकर किसी अन्य को प्राप्त होता है तब वहाँ क्रिया के परस्मैपदी रूप का प्रयोग होता है; जैसे-पठति।
(2) आत्मनेपद- जब क्रिया के व्यापार का परिणाम कर्ता तक ही सीमित रहता है, वहाँ क्रिया का आत्मनेपदी रूप प्रयुक्त होता है; जैसे-लभते।
(3) उभयपद- जिन धातुओं के ‘परस्मैपदी’ तथा ‘आत्मनेपदी’ दोनों रूप प्रसंगानुसार प्रयुक्त होते हैं, वे उभयपदी धातुएँ कहलाती हैं; जैसे—कृ—करोति, कुरुते; नी-नयति, नयते; जि- जयति, जयते।
पुरुष
संज्ञा और सर्वनामों की तरह क्रियाओं के भी तीन पुरुष होते हैं—
- प्रथम पुरुष,
- मध्यम । पुरुष तथा
- उत्तम पुरुष।
वचन
वन संज्ञा और सर्वनामों की तरह क्रियाओं के भी तीन वचन होते हैं—
- एकवचन,
- द्विवचन तथा
- बहुवचन ।
लिंग
लिग संस्कृत में लिंग के कारण क्रियाओं में कोई अन्तर नहीं आता।
धातुगण
उन अनेक धातुओं के समूह को गण कहते हैं, जिनमें एक विकरण प्रत्यय होता है। संस्कृत में विकरण प्रत्ययों के आधार पर समस्त धातुओं को दस गणों में विभक्त किया गया है। (UPBoardSolutions.com) प्रत्येक गण का नाम उसकी प्रथम धातु के आधार पर रखा गया है; जैसे-भ्वादिगण की प्रथम धातु ‘भू’ (भू + आदि गण) है। दस गणों में कुल धातुओं की संख्या 1970 है। इन गणों के नाम इस प्रकार हैं
- भ्वादिगण,
- अदादिगण,
- जुहोत्यादिगण,
- दिवादिगण,
- स्वादिगण,
- तुदादिगण,
- रुधादिगण,
- तनादिगण,
- क्रयादिगण,
- चुरादिगण।
घातुओं के प्राथय
विशेष— नवीं कक्षा के पाठ्यक्रम में ‘पद्, गम्, अस्, शक्, प्रच्छ’ परस्मैपदी धातुओं; ‘लभ्’ आत्मनेपदी धातु तथा ‘याच्, ग्रह, कथ्’ उभयपदी धातुओं के रूप (UPBoardSolutions.com) निर्धारित हैं। विद्यार्थियों के ज्ञान एवं. अनुवादोपयोगी होने के कारण कुछ अन्य प्रमुख धातु-रूपों को भी यहाँ दिया जा रहा है।
वस्तनिष्ठ प्रश्नोत्तर
अधोलिखित प्रश्नों में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। इनमें से एक विकल्प शुद्ध है। शुद्ध विकल्प का चयन कर अपनी उत्तर-पुस्तिका में लिखिए-
1. वर्तमानकाल के लिए किस लकार का प्रयोग किया जाता है?
(क) विधिलिङ् लकार का
(ख) लट् लकार का
(ग) लृट् लकार का
(घ) लङ् लकार का
2. लङ् लकार किस काल को प्रदर्शित करता है? |
(क) वर्तमानकाल को ।
(ख) भविष्यत्काल को ।
(ग) भूतकाल को
(घ) किसी काल को नहीं
3. विधिलिङ् लकार का प्रयोग किस प्रकार के वाक्यों में होता है?
(क) आज्ञा अर्थ के वाक्यों में
(ख) चाहिए अर्थ के वाक्यों में
(ग) भविष्यत्काल के वाक्यों में ।
(घ) इच्छा अर्थ के वाक्यों में
4. आज्ञा अर्थ में कौन-सा लकार प्रयुक्त होता है?
(क) लोट् लकार
(ख) लङ् लकार
(ग) विधिलिङ् लकार
(घ) लृट् लकार
5. लकार कुल कितने प्रकार के होते हैं?
(क) आठ
(ख) पाँच
(ग) सात
(घ) दस
6. संस्कृत में कुल कितने गण माने जाते हैं? ।
(क) पाँच
(ख) सात
(ग) दस
(घ) सोलह
7. गण का नाम किस आधार पर रखा गया है?
(क) धातु से जुड़े प्रत्यय के आधार पर
(ख) धातु से जुड़े उपसर्ग के आधार पर
(ग) लकार के आधार पर
(घ) गण की प्रथम धातु के आधार पर
8. संस्कृत में किस कारण से क्रिया में कोई परिवर्तन नहीं होता?
(क) क्रिया-पद के कारण।
(ख) लिंग के कारण
(ग) पुरुष के कारण
(घ) वचन के कारण
9. निम्नलिखित में से कौन क्रिया को पद नहीं है?
(क) सकर्मकाकर्मक
(ख) परस्मै
(ग) आत्मने
(घ) उभय
10. ‘युवां ग्रन्थम् अपठतम्’ में रेखांकित पद के स्थान पर क्रिया का क्या रूप होगा, जिससे वाक्य विधिलिङ्का बन जाए?
(क) पठेयम्
(ख) पठेव
(ग) पठतम्।
(घ) पठेतम् ।
11. ‘गच्छानि’ किस लकार, पुरुष और वचन का रूप है?
(क) लोट्, उत्तम, एक
(ख) लट्, उत्तम, एक
(ग) लङ, प्रथम, बहु ।
(घ) लृट्, मध्यम, एक
12. ‘अगच्छम्’ किस काल का रूप है?
(क) वर्तमानकाल का
(ख) सामान्य भूतकाल का ।
(ग) भविष्यत्काल का
(घ) भूतकाल का ।
13. ‘लभ्’ धातु के लट् लकार, प्रथम पुरुष एकवचन ( आत्मनेपदी) का रूप होगा
(क) लभेते
(ख) लभेत
(ग) लभताम्
(घ) लभते
14. ‘लभध्वम्’ ‘लभ्’ धातु (आत्मनेपदी) के किस लकार, पुरुष और वचन का रूप है?
(क) लोट्, मध्यम, एक ।
(ख) लोट, मध्यम, बह.
(ग) विधिलिङ, मध्यम, बहु
(घ) लृट्, मध्यम, बहु ।
15. परस्मैपद में ‘याचेत्’ किस लकार का रूप होगा?
(क) लोट् का
(ख) विधिलिङ को
(ग) लृट् को
(घ) लङ् का
16. “याचे’ आत्मनेपद में किस काल का रूप होगा?
(क) वर्तमानकाल का
(ख) भूतकाल का
(ग) विधिलिङ का
(घ) भविष्यत्काल का ।
17.’एधि’ किस धातु का रूप है?
(क) आप् का.
(ख) याच् का ‘
(ग) अस् का
(घ) इष् का
18. ‘शक्ष्याव:’ में मूल धातु और लकार कौन-से हैं?
(क) आस् और लृट्
(ख) शक् और लृट्
(ग) नश् और लोट् ।
(घ) अस् और विधिलिङ
19. ‘शिष्यः प्रश्नं प्रक्ष्यति।’ में रेखांकित पद के स्थान पर वाक्य को लोट् लकार में बदलने के | लिए क्या पद प्रयुक्त करेंगे? ।
(क) पृच्छेत्
(ख) अपृच्छत्
(ग) पृच्छति
(घ) पृच्छतु
20. ‘ग्रह्’ धातु ( आत्मनेपदं) में लट् लकार, प्रथम पुरुष, एकवचन का रूप होगा
(क) गृणीत.
(ख) गृहणीत
(ग) गृणीते
(घ)गृणीताम्।
21. ‘अगृह्णन्’ में लकार, पुरुष, वचन और पद होगा
(क) लङ प्रथम, बहु, परस्मैपद
(ख) लृट्, उत्तम, एक, उभये
(ग) लङ, प्रथम, एक, परस्मैपद
(घ) लङ, मध्यम, एक, आत्मनेपद
22. ‘कथ्’ धातु (परस्मैपदी) लोट् लकार, मध्यम पुरुष, बहुवचन का रूप है
(क) कथयते
(ख) कथयतम्
(ग) कथयताम्
(घ) कथयथ
23. निम्नलिखित में कौन-सी धातु उभयपदी है?
(क) अस्
(ख) लभ्
(ग) याच् :
(घ) प्रच्छ्।
24. ‘पृच्छाम’ रूप किस लकार, पुरुष तथा वचन का है?
(क) लट्, उत्तम, एके
(ख) लोट्, उत्तम, बहु ।
(ग) लङ, प्रथम, द्वि
(घ) विधिलिङ, उत्तम, बहु
25. ‘अस्’ धातु किस गण के अन्तर्गत आती है?
(क) अदादि
(ख) दिवादि
(ग) क्रयादि
(घ) रुधादि ।
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