UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 1 मङ्गलाचरणम् (पद्य-पीयूषम्)

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 1 मङ्गलाचरणम् (पद्य-पीयूषम्) the students can refer to these answers to prepare for the examinations. The solutions provided in the Free PDF download of UP Board Solutions for Class 9 are beneficial in enhancing conceptual knowledge.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 9
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 1
Chapter Name मङ्गलाचरणम् (पद्य-पीयूषम्)
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 1 मङ्गलाचरणम् (पद्य-पीयूषम्)

परिचय
विश्व-साहित्य में भारत के ‘वेद’ सबसे प्राचीन ग्रन्थ माने जाते हैं। वेदत्रयी’ के आधार पर वेद तीन माने गये-ऋग्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेद। कालान्तर में कभी ‘अथर्ववेद’ को भी इनके जोड़ दिया गया। वेदों में ज्ञान-विज्ञान के सभी क्षेत्रों में सम्बन्धित अथाह सामग्री भरी हुई है। प्रस्तुत पाठ में संकलित मन्त्र (UPBoardSolutions.com) इन्हीं वेदों से लिये गये। ये मन्त्र हमारे जीवन के लिए अत्यधिक उपयोगी हैं। विद्यार्थियों द्वारा इन्हें कण्ठस्थ किया जाना चाहिए। इनकी भाषा का स्वरूप संस्कृत का प्राचीनतर रूप है, जिसे विज्ञ जनों द्वारा ‘वैदिक संस्कृत’ नाम दिया गया है।

पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या

(1) (क) आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः

शब्दार्थ
आयन्तु = आयें।
नः = हमारे लिए।
भद्राः = कल्याणकारी।
क्रतवः = विचार, संकल्प।
विश्वतः = चारों ओर (दिशाओं) से।।

सन्दर्य
प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्य पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्’ के ‘मङ्गलाचरणम्’ पाठ से उद्धृत है, जो ‘ऋग्वेद’ से लिया गया है।

प्रसंग
प्रस्तुत मन्त्र में देवताओं से अपने कल्याण की प्रार्थना की गयी है।

अन्वय
भद्राः क्रतवः नः विश्वतः आयन्तु।।

व्याख्या
कल्याणकारी विचार हमारे मन में चारों ओर से आयें। तात्पर्य यह है कि कल्याणकारी विचार एवं संकल्प सभी दिशाओं से हमारे हृदय में आये।

UP Board Solutions

(ख) भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।।

शब्दार्थ
भद्रं = शुभ।
कर्णेभिः = कानों से।
शृणुयाम = सुनें।
पश्येम = देखें।
अक्षिभिः = आँखों से।
यजत्राः = यज्ञ करने वाले हम लोग।

सन्दर्भ
पूर्ववत्।।

प्रसंग
प्रस्तुत मन्त्र में याज्ञिक (यज्ञ करने वाले) देवताओं से प्रार्थना कर रहे हैं कि वे उन्हें बुरे कार्यों से बचाते रहें।

अन्वय
देवाः! यजत्राः (वयंम्) कर्णेभिः भद्रं शृणुयाम। अक्षिभिः भद्रं पश्येम।।

व्याख्या
हे देवो! यज्ञ करने वाले हम लोग कानों से कल्याणकारी वचनों को सुनें, आँखों से शुभ कार्यों को देखें। तात्पर्य यह है कि ईश्वर की उपासना करते हुए ईश्वर के प्रति हमारा भक्ति-भाव 
 निरन्तर बना रहे। हम अपने कानों से सदा अच्छे समाचार सुनते रहें तथा आँखों से अच्छी घटनाएँ। |’, देखते रहें।

(2)
मधु नक्तमुतोषसो मधुमत् पार्थिवं रजः।।
मधुः द्यौरस्तु नः पिता ॥
मधुमान् नो वनस्पतिर्मधुमान् अस्तु सूर्यः । ।
माध्वीर्गावो भवन्तु नः ॥

शब्दार्थ
मधु = मधुर, कल्याणकारी।
नक्तम् = रात्रि।
उत = और।
उषसः = उषाएँ, प्रभात, दिन।
मधुमत् = मधुमय, आनन्दपूर्ण।
पार्थिवं = पृथ्वी (भूमि) से सम्बन्धित, पृथ्वी की।
रजः = मिट्टी, धूल।
द्यौः = आकाश।
अस्तु = हो।
नः = हमारे लिए।
वनस्पतिः = वृक्ष, वृक्ष-समूह, वन।
माध्वीः = आनन्दकारिणी।
गावः = गाएँ।
भवन्तु = हों। |

सन्दर्भ
पूर्ववत्।। प्रसंग-प्रस्तुत मन्त्र में अपने चारों ओर के वातावरण को आनन्दपूर्ण बनाने की प्रार्थना की गयी है।

अन्वयनः
नक्तम् उत उषसः मधु अस्तु। (न:) पार्थिवं रज: मधुमत् (अस्तु)। नः पिताः द्यौः मधु (अस्तु)। (न:) वनस्पतिः मधुमान् (अस्तु)। (नः) सूर्यः मधुमान् अस्तु। न: गावः माध्वीः भवन्तु।|

व्याख्या
हमारी रात्रि और ऊषाकाल (सवेरा) आनन्दमय एवं प्रसन्नता से भरी हों। हमारी मातृभूमि की धूल मधुरता से भरी हो। हमारे पिता आकाश आनन्ददायक हों। हमारे देश की वृक्षादि वनस्पति आनन्ददायक हो। हमारा सूर्य आनन्द प्रदान करने वाला हो। हमारे देश की गायें मधुर (दूध देने वाली) हों। तात्पर्य यह है कि हमारा सम्पूर्ण पर्यावरण हमारे लिए कल्याणकारी हो।

(3)
सं गच्छध्वं सं वदध्वं, सं वो मनांसि जानताम् ।।
समानो मन्त्रः समितिः समानी, समानं मनः सह चित्तमेषाम् ॥

शब्दार्थ
सं गच्छध्वम् = साथ-साथ चलो।
सं वदध्वम् = साथ-साथ (मिलकर) बोलो।
सं जानताम् = अच्छी तरह जानो।
वः = तुम सभी।
मनांसि = मनों को।
मन्त्रः = मन्त्रणा, निश्चय।
समितिः = सभा, गोष्ठी।
समानी = एक समान।
चित्तं = मन।

सन्दर्भ
पूवर्वत्।। प्रसंग-प्रस्तुत मन्त्र में सह-अस्तित्व की भावना पर बल दिया गया है।

अन्वय
(यूयम्) सं गच्छध्वम् , सं वदध्वम् , वः मनांसि सं जानताम्। मन्त्रः समानः (अस्तु), समितिः समानी (अस्तु), मनः समानं (अस्तु), एषां चित्तं सह (अस्तु)। |

व्याख्या
तुम सब एक साथ मिलकर चलो, एक साथ मिलकर बोलो और अपने-अपने मनों को अच्छी तरह समझो। तुम सबका समान विचार हो, समिति (संगठन) समान हो, सबका मन समान हो, इनका चित्त भी एक साथ (एक जैसा) हो।।

UP Board Solutions

(4)
सुषारथिरश्वानिव यन्मनुष्यान् नेनीयतेऽभीषुभिर् वाजिन इव।
हृत्प्रतिष्ठं यदजिरं जविष्ठं तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु

शब्दार्थ
सुषारथिः (सु + सारथिः) = अच्छा सारथी।
इव = समान, तरह।
नेनीयते = ले जाता है (इच्छानुसार)।
अभीषुभिः = लगामों से।
वाजिनः = घोड़ों को।
हृत्प्रतिष्ठम् = हृदय में प्रतिष्ठित अर्थात् हृदय में
स्थित अजिरं = कभी बूढ़ा न होने वाला।
जविष्ठम् = तीव्र वेग वाला।
शिवसङ्कल्पमस्तु (शिव + सङ्कल्पम् + अस्तु) = कल्याणकारी विचार हो।

सन्दर्भ
प्रस्तुत मन्त्र हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्’ के ‘मङ्गलाचरणम्’ पाठ से उद्धृत है, जो कि शुक्ल यजुर्वेद’ से लिया गया है।

प्रसंग
प्रस्तुत मन्त्र में मन को नियन्त्रित करने एवं शुभ संकल्पों वाला बनाने के लिए प्रार्थना की गयी है।

अन्वय
यत् (मन) मनुष्यान् सुषारथिः अश्वान् इव अभीषुभिः वाजिन इव नेनीयते, यत् हृत्प्रतिष्ठम् , यत् अजिरं जविष्ठम् (चे अस्ति) तत् मे मनः शिवसङ्कल्पम् अस्तु।

व्यख्या
जो (मन) मनुष्यों को उसी प्रकार नियन्त्रित करके ले जाता है, जैसे अच्छा सारथि घोड़ों को लगाम से (नियन्त्रित करके) सही दिशा की ओर ले जाता है। जो मन हृदय में स्थित है, जो बुढ़ापे से रहित अर्थात् वृद्धावस्था में भी युवावस्था के समान अनेक सुखों को भोगने की इच्छा करता है, तीव्र (UPBoardSolutions.com) वेगगामी है; वह मेरा मन सुन्दर विचारों से सम्पन्न बने अर्थात् वह मेरा मन इस प्रकार की कामना करे, जिससे हमारा कल्याण हो सके।

(5)
यो भूतं च भव्यं च सर्वं यश्चाधितिष्ठति ।
स्वर्यस्य च केवलं तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः ॥

शब्दार्थ
यः = जो।
भूतम् (भूतकाल में उत्पन्न) = हो चुका है।
भव्यम् = आगे होने वाला है।
अधितिष्ठति = व्याप्त कर स्थित है।
स्वः = स्वर्गलोक।
ज्येष्ठाय = सबसे महान्।
ब्रह्मणे = परमब्रह्म परमात्मा को।
नमः = नमस्कार है।

सन्दर्भ
प्रस्तुतः मन्त्र हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्’ के ‘मङ्गलाचरणम्’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है, जो कि. ‘अथर्ववेद’ से लिया गया है।

प्रसंग
प्रस्तुत मन्त्र में ब्रह्मा की महिमा बताकर उसे नमस्कार किया गया है। |

अन्वय
यः भूतं च भव्यं च (अस्ति), यः च सर्वम् अधितिष्ठति, स्वः केवलं यस्य (अस्ति) तस्मै ज्येष्ठाय ब्रह्मणे नमः।

व्याख्या
जो भूतकाल में उत्पन्न हुए तथा भविष्यकाल में उत्पन्न होने वाले सभी पदार्थों को व्याप्त करके स्थित है, दिव्य प्रकाश वाला स्वर्ग केवल जिसको है; अर्थात् जिसकी कृपा से ही मनुष्य परमपद को प्राप्त कर सकता है, उस महनीय परमब्रह्म को नमस्कार है।

UP Board Solutions

सूक्तिपरक वाक्यांशों की याख्या

(1) सं गच्छध्वं सं वदथ्वं।

सन्दर्भ
प्रस्तुत सूक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत पद्य-पीयूषम्‘ के ‘मङ्गलाचरणम्’ पाठ से ली गयी है।

प्रसंग
ऋग्वेद से संकलित इस सूक्ति में ईश्वर से प्रार्थना की गयी है कि हम सब आपस में प्रेम-भाव से मिलकर कार्य करें।

अर्थ
(हम) साथ-साथ मिलकर चलें और साथ-साथ मिलकर बोलें।

अनुवाद
व्यक्तिगत और सामाजिक उन्नति के लिए आवश्यक है कि हम सभी आपस में प्रेम-भाव से रहें। आपस में प्रेम-भाव होने से एक-दूसरे के प्रति द्वेष और घृणा की भावना स्वतः ही समाप्त हो जाती है। साथ-ही-साथ अहंकार और स्वार्थ की भावना भी नहीं रहती, क्योंकि ये दोनों भाव परस्पर कटुता और कलह उत्पन्न करते हैं। इसीलिए ऋग्वेद में शिक्षा दी गयी है कि हे ईश्वर! इस संसार में हम प्रेम-भाव से मिलकर साथ-साथ चलें और साथ-साथ मिलकर बोलें।

We hope the UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 1 मङ्गलाचरणम् (पद्य-पीयूषम्) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 9 Sanskrit Chapter 1 मङ्गलाचरणम् (पद्य-पीयूषम्), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

error: Content is protected !!
Scroll to Top