UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 5 स्वास्थ्य का अर्थ एवं परिभाषा तथा व्यक्तिगत स्वास्थ्य की देख-रेख और रक्षा

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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 5 स्वास्थ्य का अर्थ एवं परिभाषा तथा व्यक्तिगत स्वास्थ्य की देख-रेख और रक्षा

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
स्वास्थ्य का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा परिभाषा निर्धारित कीजिए। स्वास्थ्य के लक्षणों का भी उल्लेख कीजिए।
या
‘स्वास्थ्य से आप क्या समझती हैं? स्वास्थ्य के प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वास्थ्य का अर्थ एवं परिभाषा

प्राणीमात्र के लिए सर्वाधिक महत्त्व उत्तम स्वास्थ्य का है। मनुष्यों के लिए भी जीवन में सर्वाधिक महत्त्व स्वास्थ्य का ही है। इसीलिए सभी मनुष्य चाहते हैं कि उनका स्वास्थ्य अच्छा रहे तथा वे हर प्रकार से रोगमुक्त रहें। वास्तव में स्वस्थ व्यक्ति ही जीवन का भरपूर आनन्द प्राप्त कर सकता है तथा समाज एवं राष्ट्र के हित के लिए भी आवश्यक कार्य कर सकता है।
स्वास्थ्य के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए मानव-समाज द्वारा स्वास्थ्य के विषय में बहुमुखी अध्ययन किए जाते हैं। सर्वप्रथम यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि स्वास्थ्य का अर्थ क्या है? सामान्य (UPBoardSolutions.com) रूप से रोग मुक्त तथा देखने में हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति को स्वस्थ माना जाता है, परन्तु स्वास्थ्य का यह अर्थ सीमित अर्थ है। वास्तव में स्वास्थ्य का अर्थ पर्याप्त व्यापक है। स्वास्थ्य का सम्बन्ध व्यक्ति के विभिन्न आन्तरिक एवं बाहरी पक्षों से होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्वास्थ्य का अर्थ इन शब्दों में स्पष्ट किया गया है-“शरीर की रोगों से मुक्त दशा स्वास्थ्य नहीं है, व्यक्ति के स्वास्थ्य में तो उसका सम्पूर्ण शारीरिक, मानसिक व संवेगात्मक कल्याण निहित है।” इस कथन के आधार पर कहा जा सकता है कि व्यक्ति के स्वास्थ्य का सम्बन्ध उसके शरीर, मन तथा संवेगों से होता है। यह भी कहा जा सकता है कि स्वस्थ व्यक्ति के लिए अनिवार्य है कि वह शारीरिक, मानसिक तथा संवेगात्मक दृष्टि से पूर्ण स्वस्थ हो। इस प्रकार स्वास्थ्य के तीन मुख्य पक्ष होते हैं—शारीरिक, (UPBoardSolutions.com) मानसिक तथा संवेगात्मक। स्वास्थ्य के अर्थ को व्यावहारिक दृष्टिकोण से स्पष्ट करते हुए जे० एफ० विलियम ने कहा है, “स्वास्थ्य जीवन का वह गुण है जो व्यक्ति को अधिक समय तक जीवित रहने तथा सर्वोत्तम प्रकार से सेवा करने के योग्य बनाता है।’

स्वास्थ्य के लक्षण

‘स्वास्थ्य’ अपने आप में एक व्यापक धारणा है। स्वास्थ्य के व्यवस्थित अध्ययन के लिए स्वास्थ्य के लक्षणों को जानना आवश्यक है। स्वास्थ्य के लक्षणों का व्यवस्थित अध्ययन करने के लिए उन्हें मुख्य रूप से दो वर्गों में बाँटा जाता है
(अ) स्वास्थ्य के प्रत्यक्ष लक्षण,
(ब) स्वास्थ्य के अप्रत्यक्ष लक्षण। इन दोनों वर्गों के लक्षणों का संक्षिप्त विवरण निम्नवर्णित है

(अ) स्वास्थ्य के प्रत्यक्ष लक्षण:
स्वास्थ्य के प्रत्यक्ष लक्षणों का विवरण निम्नलिखित है

  1.  स्वस्थ व्यक्ति के शरीर का वजन उसके कद के अनुसार उचित होता है। वजन के निर्धारित मानक से कम या अधिक वजन होना अस्वस्थता का एक लक्षण माना जाता है।
  2. अस्थि-संस्थान के उचित विकास को भी स्वास्थ्य का एक प्रत्यक्ष लक्षण माना गया है। स्वस्थ व्यक्ति का सम्पूर्ण अस्थि-संस्थान सधा हुआ होता है। उसकी अस्थियों में अनावश्यक झुकाव या वक्रता नहीं पाई जाती। अस्थि-संस्थान के सभी जोड़ सुचारू रूप से कार्य करते हैं। स्वस्थ व्यक्ति के वक्ष-स्थल का समुचित विकास होता है तथा श्वसन द्वारा उसमें स्वाभाविक फैलाव सरलता से हो जाता है।
  3. स्वास्थ्य का एक प्रत्यक्ष लक्षण है व्यक्ति की आँखों में एक प्रकार की स्वाभाविक चमक होना। स्वस्थ व्यक्ति की आँखों के नीचे काले धब्बे यो गहरे गड़े नहीं होते।
  4. स्वस्थ व्यक्ति का शरीर देखने में सुन्दर लगता है। उसके शरीर की मांसपेशियाँ सुविकसित तथा सुसंगठित होती हैं।
  5. स्वास्थ्य का एक लक्षण शरीर के बालों का मुलायम, चिकना, घना तथा चमकदार होना है।

(ब) स्वास्थ्य के अप्रत्यक्ष लक्षण:
स्वास्थ्य के अप्रत्यक्ष लक्षणों के अन्तर्गत उन लक्षणों को सम्मिलित किया जाता है जिन्हें बाहर से देखा तो नहीं जा सकता, परन्तु इनका सम्बन्ध शरीर के संचालन से होता है। स्वास्थ्य के इस प्रकार के मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. स्वस्थ व्यक्ति के शरीर के समस्त संस्थान सुचारू रूप से कार्य करते हैं। यह भी कह सकते हैं। कि शरीर के पाचन संस्थान, परिसंचरण संस्थान, स्नायु संस्थान, श्वसन संस्थान तथा विसर्जन संस्थान आदि का सुचारू रूप से कार्य करना भी स्वास्थ्य को अप्रत्यक्ष लक्षण है।
  2.  व्यक्ति का संवेगात्मक दृष्टि से सामान्य होना भी स्वास्थ्य का एक लक्षण है। स्वस्थ व्यक्ति संवेगात्मक दृष्टि से स्थिर होता है। संवेगात्मक दृष्टि से अस्थिर व्यक्ति को स्वस्थ व्यक्ति नहीं माना जा सकता।
  3.  स्वास्थ्य के कुछ अन्य अप्रत्यक्ष लक्षण हैं – व्यक्ति द्वारा आत्म-निरीक्षण, सामंजस्यता, जीवन में नियमितता, परिपक्वता, सर्वांग जीवन दृष्टिकोण, अपने व्यवसाय से सन्तुष्ट होना तथा सामाजिक सामंजस्यता। वास्तव में इन लक्षणों को सीधा सम्बन्धं मानसिक स्वास्थ्य से होता है, परन्तु इनका प्रभाव शारीरिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।

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प्रश्न 2:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य से आप क्या समझती हैं? व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य का अर्थ

किसी व्यक्ति विशेष के शारीरिक, मानसिक एवं संवेगात्मक पक्षों के कल्याण को व्यक्तिगत स्वास्थ्य के रूप में जाना जा सकता है। अतः वह शारीरिक रूप से रोगमुक्त, बलशाली, कुशल एवं प्रफुल्ल होना चाहिए तथा मानसिक रूप से उत्साही, सक्रिय एवं विवेकशील होना चाहिए और इनके साथ-साथ उसका पारिवारिक एवं सामाजिक अनुकूलन सही होना चाहिए।

व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक

व्यक्तिगत स्वास्थ्य को विभिन्न कारक प्रभावित करते हैं। उत्तम स्वास्थ्य के लिए इन कारकों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक निम्नलिखित हैं.

(1) उचित पोषण:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला मुख्यतम कारक है–उचित पोषण। शरीर के स्वस्थ रहने के लिए पर्याप्त मात्रा में सन्तुलित आहार की आवश्यकता होती है। सन्तुलित आहार से शरीर का उत्तम पोषण होता है तथा व्यक्ति अभावजनित रोगों का शिकार नहीं होता। उचित पोषण की अवस्था में (UPBoardSolutions.com) समस्त शारीरिक क्रियाएँ सुचारू रूप से चलती रहती हैं तथा शरीर का ढाँचा भी स्वस्थ एवं सुविकसित होता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि उत्तम स्वास्थ्य के लिए उचित पोषण अनिवार्य कारक है।

(2) रोगों से मुक्त रहना:
रोग से मुक्त रहने वाला व्यक्ति ही स्वस्थ कहलाता है। यदि कोई व्यक्ति अक्सर किसी-न-किसी रोग से ग्रस्त रहता है, तो उस व्यक्ति को स्वस्थ व्यक्ति नहीं कहा जा सकता, भले ही रोग साधारण ही क्यों न हो। उदाहरण के लिए-निरन्तर नजला-जुकाम रहने से भी व्यक्ति स्वस्थ नहीं कहला सकता। (UPBoardSolutions.com) यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि यदा-कदा रोगग्रस्त हो जाना। कोई विशेष बात नहीं है तथा इसे स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला कारक नहीं माना जा सकता।

(3) नियमबद्धता:
दैनिक कार्यों को सदैव एक नियमित योजना के अनुसार करना चाहिए। उदाहरण के लिए-सुबह शीघ्र उठना, शौच जाना, नाश्ता-भोजन समय पर करना, नित्यप्रति व्यायाम करना तथा समय से सोना इत्यादि। अनियमित जीवन का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि स्वस्थ व्यक्ति अपनी दिनचर्या के नियमों का निर्धारण स्वयं करता है। तथा उनका स्वेच्छा से पालन करता है। बाहरी रूप से थोपे हुए नियमों का कोई महत्त्व नहीं है।

(4) शारीरिक स्वच्छता:
शरीर स्वच्छ रखने से स्फूर्ति बनी रहती है, मन प्रसन्न रहता है तथा रोगों की सम्भावना बहुत कम रहती है। शारीरिक स्वच्छता के लिए त्वचा की स्वच्छता, मुँह एवं दाँतों की स्वच्छता, नाखूनों की स्वच्छता, बालों की स्वच्छता, नेत्रों एवं नाक-काने की स्वच्छता आवश्यक है। नियमित शारीरिक (UPBoardSolutions.com) स्वच्छता का व्यक्तिगत स्वास्थ्य से घनिष्ठ सम्बन्ध है। शारीरिक स्वच्छता के अभाव में व्यक्ति का स्वस्थ रह पाना प्रायः कठिन हो जाता है। शारीरिक स्वच्छता के साथ-साथ शरीर पर धारण किए जाने वाले वस्त्रों की स्वच्छता भी शारीरिक स्वास्थ्य के लिए एक अनिवार्य कारक है।

(5) नियमित व्यायाम करना:
शरीर को स्वस्थ एवं स्फूर्तियुक्त बनाए रखने के लिए नियमित व्यायाम करना आवश्यक है। व्यायाम से मांसपेशियों की क्रियाशीलता एवं कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। व्यायाम का व्यक्ति के पाचन-तन्त्र, श्वसन तन्त्र तथा रुधिर परिसंचरण तन्त्र पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है। स्पष्ट है कि नियमित व्यायाम करना भी स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला कारक है।

(6) विश्राम एवं निद्रा:
लगातार कार्य करने से शरीर थक जाता है तथा इसकी कार्यक्षमता कम हो जाती है। पुनः शक्ति प्राप्त करने के लिए विश्राम करना अत्यधिक आवश्यक है। निद्रा सबसे अच्छे प्रकार का विश्राम है। अत: प्रत्येक व्यक्ति को उपयुक्त एवं आवश्यक समय के लिए निद्रा लेनी चाहिए।

(7) मादक वस्तुओं से दूर रहना:
अफीम, भाँग, चरस, कोकीन, शराब व तम्बाकू इत्यादि मादक पदार्थ स्वास्थ्य को कुप्रभावित करते हैं। इनका आवश्यकता से अधिक सेवन करने से शारीरिक बल घटता जाता है तथा अनेक घातक रोगों की आशंका हो जाती है। अतः स्वस्थ रहने के लिए तथा पारिवारिक एवं सामाजिक हित में मादक पदार्थों से दूर रहना ही विवेकपूर्ण एवं कल्याणकारी है।

(8) स्वस्थ मनोरंजन:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला एक महत्त्वपूर्ण कारक स्वस्थ मनोरंजन भी है। मनोरंजन द्वारा व्यक्ति के जीवन की ऊब दूर होती है तथा व्यक्ति अपने अवकाश के समय को व्यक्तित्व के विकास के लिए उपयोग में लाता है। स्वस्थ मनोरंजन से व्यक्ति का शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य उत्तम बनता है।

प्रश्न 3:
व्यक्तिगत स्वच्छता क्यों आवश्यक है? आप बालकों में स्वच्छता की आदत कैसे डालेंगी? समझाइए।
या
व्यक्तिगत स्वच्छता क्यों आवश्यक है? एक तीन वर्ष के बालक को स्वच्छता की आदत आप कैसे सिखाएँगी ?
उत्तर:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला मुख्यतम कारक है-व्यक्तिगत स्वच्छता। व्यक्तिगत स्वच्छता से आशय है-व्यक्ति की आन्तरिक एवं बाहरी शारीरिक स्वच्छता। वास्तव में, शारीरिक स्वच्छता के अभाव में व्यक्ति विभिन्न प्रकार के रोगों का शिकार हो सकता है। गन्दगी में विभिन्न रोगों के जीवाणु अधिक पनपते हैं। अतः हमें अपने स्वास्थ्य को उत्तम बनाए रखने के लिए व्यक्तिगत स्वच्छता का विशेष रूप (UPBoardSolutions.com) से ध्यान रखना चाहिए। व्यक्तिगत स्वच्छता के अन्तर्गत मुख्यतः शरीर की त्वचा, मुंह, आँख, नाक, कान, बालों तथा पेट की स्वच्छता का ध्यान रखना अनिवार्य होता है। इसके साथ-साथ शरीर पर धारण किए जाने वाले वस्त्रों की सफाई भी अति आवश्यक मानी जाती है।
व्यक्ति को पूर्ण रूप से स्वस्थ रहने के लिए स्वास्थ्य के नियमों का भली-भाँति न केवल ज्ञान होना चाहिए, बल्कि उसे आपनी आदतें भी इस प्रकार बना लेनी चाहिए कि वह चाहे एक बार भोजन न करे, लेकिंन स्वच्छता का पूरा-पूरा ध्यान रखे।
व्यक्तिगत स्वच्छता का महत्त्व-व्यक्तिगत स्वच्छता उत्तम स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कारक है। यह प्रत्येक आयु वर्ग के व्यक्ति के लिए अत्यावश्यक है। इससे होने वाले विभिन्न लाभों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

  1. स्वच्छ व्यक्ति मानसिक रूप से प्रसन्न व शारीरिक रूप से स्फूर्तियुक्त रहता है।
  2. स्वच्छ रहने पर त्वचा कान्तियुक्त रहती है तथा चर्म रोगों की आशंका बहुत कम रहती है।
  3.  मुँह एवं दाँतों की नियमित स्वच्छता के फलस्वरूप मुँह में दुर्गन्ध नहीं रहती तथा पायरिया जैसे गन्दे रोगों की आशंका नहीं रहती।
  4.  नाखूनों को समय-समय पर काटते रहने व इनकी सफाई करने से नाखून सुन्दर दिखाई पड़ते हैं। इससे टायफाइड जैसे भयानक ज्वर के फैलने की सम्भावना घटती है तथा अन्य बहुत से रोगों से बचाव होता है।
  5.  बालों को स्वच्छ रखने से व्यक्तिगत सौन्दर्य में वृद्धि होती है। स्वच्छ बालों में जूं व रूसी नहीं होतीं।
  6. नेत्रों को स्वच्छ रखने से ये अधिक क्रियाशील व रोगमुक्त रहते हैं।’
  7. नाक को प्रतिदिन स्वच्छ जल से साफ करने से श्वसन-वायु के साथ कीटाणुओं के प्रवेश की आशंका कम हो जाती है।
  8.  कानों की आवश्यक सफाई करने से श्रवण-शक्ति ठीक बनी रहती है।

बच्चों में स्वच्छता की आदत डालना
स्वच्छता सम्बन्धी आदतों का निर्माण उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए अत्यावश्यक है। इस महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए बाल्यकाल ही उपयुक्त अवस्था है, क्योंकि बाल्यावस्था में पड़ी आदतें जीवनपर्यन्त बनी रहती हैं। छोटे बच्चे माता-पिता, भाई-बहनों व साथ के बड़े बच्चों की गतिविधियों का प्राय: अनुसरण करते हैं। इस प्रकार से बच्चों को अनुसरणीय वातावरण स्कूल व घर में मिलता है। अतः (UPBoardSolutions.com) माता-पिता, भाई-बहनों व शिक्षकों का कर्तव्य है कि वे इस सम्बन्ध में सदैव बच्चों का विशेष ध्यान रखें। बड़े व्यक्तियों, विशेष रूप से माता-पिता को बच्चों के सामने स्वच्छता, नियमबद्धता व सुव्यवस्था का सदैव प्रदर्शन व पालन करना चाहिए।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बुरी आदतों को छुड़ाने की अपेक्षा अच्छी आदतों की उत्पत्ति का कार्य अधिक सरल है। अतः अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों में निम्नलिखित अच्छी आदतों के विकास के लिए हर सम्भव उपाय करें

(1) नियमित समय पर उठना व सोना:
अच्छे स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त निद्रा आवश् श्यक है। अतः समये पर रात्रि में सोना और सुबह-सवेरे निश्चित समय पर जागना अच्छी आदत है।

(2) नियमित समय पर शौच-निवृत्ति:
सुबह उठने के तुरन्त बाद शौच-निवृत्ति का कार्य आवश्यक है। बच्चों को इस कार्य के लिए प्रेरित करना चाहिए।

(3) दाँतों और मुँह की सफाई:
शौच-निवृत्ति के पश्चात् दाँतों और मुँह की भली-भाँति सफाई करनी चाहिए।

(4) नियमित रूप से व्यायाम:
नियमित व्यायाम शरीर को क्रियाशील एवं स्वस्थ रखता है। बच्चों को इस कार्य के लिए आवश्यक निर्देश देने चाहिए।

(5) नियमित रूप से स्नान:
स्नान से शरीर में ताजगी और स्फूर्ति आती है। बच्चों को नियमित रूप से स्नान करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

(6) निश्चित समय पर स्वच्छता से भोजन:
भोजन हमेशा करके तथा सही समय पर स्वच्छ स्थान पर करना चाहिए।

(7) घर में गन्दगी न फैलाना:
घर को स्वच्छ रखना चाहिए। इसके लिए बच्चों को प्रारम्भ से ही आवश्यक उपाय बताए जाने चाहिए।
बच्चों में स्वच्छता की आदतों को उत्पन्न करने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें

  1.  बच्चों में प्रायः अनुकरण की प्रवृत्ति पाई जाती है; अतः इनमें आदतों का निर्माण सहज ही सम्भव है।
  2. परामर्श की अपेक्षा सक्रिय उदाहरण सदैव ही अधिक प्रभावकारी होते हैं।
  3. किसी भी कार्य की बार-बार पुनरावृत्ति उसकी आदत के रूप में निर्माण का आधार होती है। उदाहरण के लिए-3-5 वर्ष का बच्चा यदि कुछ शब्दों का उच्चारण तुतलाकर करता है, तो उसकी नकल न बनाकर उसे बार-बार शुद्ध उच्चारण के लिए प्रेरित करें, इससे उसे धीरे-धीरे साफ बोलने की आदत पड़ेगी।
  4. स्वास्थ्य सम्बन्धी क्रियाओं का एक निश्चित कार्यक्रम बनाकर बच्चों से उसका अनुकरण दृढ़तापूर्वक कराना चाहिए।
  5. बुरी आदतों के लिए बच्चों को सदैव हतोत्साहित करना चाहिए। जगह-जगह थूकना, कूड़े-कचरे को इधर-उधर फैलानी, वस्तुओं की तोड़-फोड़ करना इत्यादि बुरी आदतों के लिए बच्चों को रोकना व समझाना चाहिए।
  6. बच्चों के कमरे में प्रेरणादायक चित्र; जैसे कि टूथपेस्ट करता हुआ बच्चा, पढ़ता हुआ बच्चा, स्कूल जाते हुए बच्चे आदि; लगाने चाहिए। इससे बच्चों को अच्छी आदतों की प्रेरणा मिलती है।
  7. कुछ बच्चों में जिद करने की, मिट्टी खाने की व गन्दगी फैलाने की बुरी आदतें होती हैं। इस प्रकार के बच्चों से अपने बच्चे को यथासम्भव दूर रखें।

प्रश्न 4:
व्यायाम से आप क्या समझती हैं? व्यायाम के महत्त्व एवं आवश्यक नियमों का वर्णन कीजिए।
या
व्यायाम के महत्व को स्पष्ट करते हुए कुछ उपयोगी व्यायामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
व्यायाम का अर्थ

व्यायाम का अर्थ है-“वे शारीरिक क्रियाएँ एवं गतिविधियाँ जो मनुष्य के समस्त अंगों के पूर्ण एवं सन्तुलित विकास में सहायक होती हैं।” व्यायाम के अन्तर्गत व्यक्ति को शरीर के विभिन्न अंगों की विभिन्न प्रकार से गति करनी पड़ती है। व्यायाम के विभिन्न प्रकार हो सकते हैं, जैसे कि सुबह-शाम को घूमना, भागना-दौड़ना, दण्ड-बैठक लगाना, मलखम्भ, योगाभ्यास अथवा कोई खेल खेलना। वर्तमान में सन्तुलित व्यायाम के लिए विभिन्न मशीनें भी तैयार कर ली गई हैं।

व्यायाम की महत्त्व

व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला एक मुख्य कारक है–नियमित रूप से व्यायाम करना। नियमित रूप से व्यायाम करने के अनेक लाभ हैं, जिनमें निम्नलिखित अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं

  1. व्यायाम करने से रक्त संचार तीव्र गति से होता है, जिसके फलस्वरूप मांसपेशियाँ पुष्ट होती हैं। तथा शरीर में नई स्फूर्ति उत्पन्न होती है।
  2.  व्यायाम करते समय श्वास क्रिया तेज होती है, जिससे शरीर को अधिक मात्रा में ऑक्सीजन प्राप्त होती है।
  3. व्यायाम करने से पाचन तन्त्र की मांसपेशियाँ अधिक क्रियाशील हो जाती हैं, इससे पाचन-शक्ति में वृद्धि होती है तथा अधिक भूख लगती है।
  4. व्यायाम करने से पसीना अधिक निकलता है, परिणामस्वरूप शरीर के विजातीय तत्त्व शरीर से बाहर निकल जाते हैं।
  5.  नियमित व्यायाम करने से अधिक प्यास लगती है। अधिक पानी पीने से शरीर की आन्तरिक सफाई भी अधिक होती है।
  6.  व्यायाम करने से रक्त को परिभ्रमण सारे शरीर में तीव्र गति से होता है। इससे मस्तिष्क में भी रक्त का संचार अधिक होता है। अतः मस्तिष्क की कार्यक्षमता में लाभकारी वृद्धि होती है।
  7. व्यायाम करने से शरीर सुन्दर, सुडौल एवं कान्तिमयं होता है।

व्यायाम के लिए आवश्यक नियम

  1. व्यायाम नित्य प्रति नियमित रूप से करना चाहिए।
  2. व्यायाम शौच-निवृत्ति के पश्चात् मुँह वे दाँतों की सफाई करके बिना कुछ खाए-पीए करना चाहिए।
  3. व्यायाम सदैव खुली हवा में ढीले वस्त्र पहनकर करना चाहिए।
  4. व्यायाम सदैव अपनी क्षमता के अनुसार ही करना चाहिए।
  5.  योगाभ्यास व कठिन व्यायाम सदैव उपयुक्त प्रशिक्षक की देख-रेख में करने चाहिए। पूर्णरूप से निपुण हो जाने पर इन्हें स्वयं किया जा सकता है।
  6. व्यायाम के तुरन्त बाद पानी कभी नहीं पीना चाहिए। कुछ समय उपरान्त सदैव दूध एवं पौष्टिक अल्पाहार लेना चाहिए।
  7.  रोगी अथवा रोग के कारण दुर्बल हुए व्यक्ति को व्यायाम नहीं करना चाहिए।

कुछ उपयोगी व्यायाम

(क) प्रातःकाल दौड़ना व टहलना:
प्रौढ़ों व वृद्ध पुरुषों के लिए टहलना सर्वश्रेष्ठ व्यायाम है। इससे उन्हें शुद्ध वायु मिलती है तथा शरीर चुस्त रहता है। बालकों एवं युवा वर्ग के लिए नित्य प्रति दौड़ना एक उपयोगी व्यायाम है। इससे शरीर की मांसपेशियाँ पुष्ट होती हैं, पाचन क्रिया में वृद्धि होती है तथा शरीर में रक्त का संचार तीव्र गति से होता है।

(ख) नियमित योगाभ्यास:
योग की विभिन्न क्रियाएँ लगभग सभी आयु वर्गों के पुरुषों एवं . महिलाओं के लिए उपयोगी रहती हैं। उदाहरण के लिए प्राणायाम फेफड़ों को स्वस्थ रखने के लिए एक उत्तम व्यायाम है। इसी प्रकार अलग-अलग शारीरिक भागों के लिए अलग-अलग योगासन होते हैं। इस विषय पर अनेक (UPBoardSolutions.com) पुस्तकें सुलभ हैं तथा टेलीविजन पर भी अनेक बार प्रायोजित कार्यक्रम दिखाए जाते हैं, परन्तु किसी उपयुक्त शिक्षक की देख-रेख में योगासन करना सदैव अच्छा व लाभप्रद रहता है।

(ग) खेल-कूद में भाग लेना:
फुटबॉल, हॉकी, बैडमिण्टन, टेनिस, क्रिकेट व तैराकी इत्यादि खेल; व्यायाम के दृष्टिकोण से अत्यधिक उपयोगी हैं। इनसे शरीर सुन्दर, सुविकसित एवं सबल होता है। तथा इसकी कार्यक्षमता में भी वृद्धि होती है।

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प्रश्न 5:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य के एक उपाय के रूप में विश्राम तथा निद्रा का वर्णन कीजिए।
या
विश्राम तथा निद्रा की क्या आवश्यकता है? इसके मुख्य नियमों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विश्राम एवं निद्रा की आवश्यकता व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए व्यायाम एवं शारीरिक श्रम के साथ-साथ विश्राम भी नितान्त आवश्यक होता है। वास्तव में हम जो भी शारीरिक अथवा मानसिक कार्य करते हैं, उससे हमारे शरीर में थकान आ जाती है। यह थकान क्या है? वास्तव में शारीरिक परिश्रम करते समय हमारे शरीर में अनेक विषैले तत्त्व एकत्र हो जाते हैं। ये तत्त्व ही हमारी माँसपेशियों को थकाते हैं। इसके (UPBoardSolutions.com) अतिरिक्त कार्य करते समय हमारे शरीर के ऊतक अधिक टूटते-फूटते रहते हैं। कार्य के दौरान इनकी मरम्मत नहीं हो पाती, अतः शरीर के उत्तम स्वास्थ्य के लिए इन ऊतकों की मरम्मत तथा विषैले तत्त्वों का बाहर निकलना अनिवार्य होता है। इस उद्देश्य के लिए विश्राम अति आवश्यक है। विश्राम का सर्वोत्तम उपाय है-निद्रा।

विश्राम एवं निद्रा के नियम

अनियमित विश्राम एवं निद्रा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध होते हैं। विश्राम व निद्रा के सामान्य नियम निम्नलिखित हैं

  1. अधिक शारीरिक श्रम अथवा मानसिक कार्य के फलस्वरूप होने वाली थकान को दूर करने के लिए विश्राम तथा निद्रा ही एकमात्र विकल्प है।
  2. दोपहर के खाने के पश्चात् कुछ समय के लिए विश्राम करना स्वास्थ्य के लिए हितकर रहता है।
  3. रात्रि भोजन के लगभग एक घण्टे के पश्चात् सोना चाहिए।
  4. सोने का बिस्तर स्वच्छ एवं कोमल होना चाहिए।
  5. सदैव खुले स्थान में सोना चाहिए अथवा सोते समय सोने के कमरे के दरवाजे, खिड़कियाँ व रोशनदान खुले रखने चाहिए।
  6. (सोने से पूर्व ऋतु के अनुकूल ठण्डे अथवा गर्म जल से मुँह, हाथ व पैर धो लेने चाहिए।
  7. सदैव ढीले-ढाले सूती वस्त्र पहनकर सोना चाहिए।

नींद का महत्त्व
विश्राम का सबसे उत्तम उपाय नींद है। नींद व्यक्ति के लिए वरदान है। निद्रा के समय हमारे शरीर में कार्य के परिणामस्वरूप हुई टूट-फूट ठीक हो जाती है तथा हमारा शरीर नई ऊर्जा एवं स्फूर्ति अर्जित कर लेता है। पर्याप्त नींद ले लेने से व्यक्ति एकदम तरो-ताजा एवं स्वस्थ हो जाता है। नींद के समय हमारे शरीर के सभी अंगों को विश्राम मिलता है। नींद के समय हमारी नाड़ी एवं श्वास की गति भी कुछ मन्द हो जाती है तथा रक्तचाप भी घट जाता है, अतः सम्बन्धित अंगों को भी विश्राम मिल जाता है। यदि किसी व्यक्ति को (UPBoardSolutions.com) पर्याप्त नींद नहीं आती है, तो उसका जीवन कठिनाइयों से भर जाता है। नींद के अभाव में व्यक्ति दुर्बल हो जाता है, स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है तथा चेहरे पर उदासी छा जाती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि स्वस्थ व्यक्ति के लिए पर्याप्त शान्त नींद अति आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 6:
मादक द्रव्य कौन-कौन से होते हैं? इनका शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है? सोदाहरण वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रमुख मादक द्रव्य तथा उनका शरीर पर प्रभाव,

सभी मादक द्रव्य अनिवार्य रूप से स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं, परन्तु फिर भी अनेक पुरुष एवं स्त्रियाँ इनका सेवन करते हैं। विभिन्न राजकीय एवं व्यक्तिगत माध्यमों के द्वारा मादक द्रव्यों से होने वाली हानियों के विषय में समय-समय पर जानकारियाँ दी जाती हैं, परन्तु आश्चर्य की बात है कि मादक द्रव्यों का सेवन करने वाले मनुष्यों की संख्या में कोई विशेष कमी होती नहीं दिखाई पड़ती है। कुछ प्रमुख मादक द्रव्य निम्नलिखित हैं

(1) अफीम:
यह पोस्त के पौधे से प्राप्त होने वाला एक तीव्र मादक पदार्थ है। पोस्त के कच्चे फलों में चाक लगाकर निकलने वाले दूध अथवा लेटेक्स को सुखाकर अफीम प्राप्त की जाती है। यद्यपि अफीम की खेती एवं व्यापार पूर्ण रूप से राजकीय नियन्त्रण में किया जाता है फिर भी इसकी तस्करी न केवल हमारे देश में, बल्कि प्रायः सम्पूर्ण विश्व में होती है। अफीम को एक मादक पदार्थ के रूप में अनेक प्रकार से उपयोग किया (UPBoardSolutions.com) जाता है। कुछ लोग चूर्ण के रूप में खाते हैं, तो कुछ अन्य इसे सँघकर नशा करते हैं। गरीब लोग प्रायः पोस्त के बेकार फलों को पानी में उबालकर इनके संत का सेवन कर नशा प्राप्त करते हैं। अफीम के निरन्तर प्रयोग से होने वाले शारीरिक कुप्रभाव निम्नलिखित हैं

  1. अफीम का सेवन करने से मनुष्य सुस्त एवं आलसी हो जाता है।
  2. अफीम के सेवन से शरीर पीला पड़ जाता है, रक्त की कमी हो जाती है तथा शारीरिक शक्ति क्षीण हो जाती है।
  3. अफीम का सेवन नेत्रों की ज्योति पर कुप्रभाव डालता है।

(2) भाँग:
भाँग के पौधे की पत्तियों को पीसकर प्रयोग करने योग्य भाँग प्राप्त की जाती है। पत्तियों की इस चटनी को सीधे खाया जाता है। कुछ लोग ठण्डाई बनाकर इसका सेवन करते हैं। भाँग से होने वाली हानियाँ निम्नलिखित हैं

  1.  मानसिक सन्तुलन कुप्रभावित होता है।
  2.  शरीर सुस्त हो जाता है।
  3. भाँग का सेवन, आँतों को दुर्बल व शुष्क बनाता है, जिसके फलस्वरूप पाचन शक्ति कुप्रभावित होती है।

(3) चरस व गाँज़ा:
भाँग के पौधों से प्राप्त होने वाले मादक द्रव्य अत्यन्त नशीले पदार्थ हैं। इनका सेवन सिगरेट-बीड़ी एवं चिलम में तम्बाकू के साथ मिलाकर किया जाता है। इनका शरीर पर होने वाला प्रभाव भाँग के समान परन्तु भाँग से कई गुना अधिक होता है।

(4) कोकीन:
यह भी पत्तियों से प्राप्त होने वाला मादक पदार्थ है। कोकीन का सेवन करने वाले मनुष्यों का शरीर एवं सभी इन्द्रियाँ धीरे-धीरे शिथिल पड़ने लगती हैं तथा अन्त में शरीर अत्यधिक दुर्बल हो जाता है।

(5) तम्बाकू:
तम्बाकू के पौधे की पत्तियों को विशिष्ट प्रक्रियाओं द्वारा प्रयोग करने योग्य बनाया जाता है। तम्बाकू का प्रयोग प्राय: तीन प्रकार से किया जाता है। इसे सुपारी, कत्था, पान इत्यादि के साथ खाया जाता है। सिगरेट, बीड़ी व हुक्का इत्यादि के रूप में तम्बाकू का प्रयोग करे धूम्रपान किया जाता है। तथा नसवार के रूप में सुँघने में भी इसका प्रयोग किया जाता है। तम्बाकू में निकोटिन नामक विषैला पदार्थ होता है। तम्बाकू से होने वाली हानियाँ निम्नलिखित हैं

  1. धूम्रपान करने से नाक, गले तथा फेफड़ों में शुष्कता आती है, जिसके फलस्वरूप खाँसी व कफ बनने की बीमारी उत्पन्न हो जाती है।
  2. पाचन शक्ति कुप्रभावित होती है।
  3. तम्बाकू के निरन्तर प्रयोग से निद्रा कम आती है।
  4. इसके सेवन से हृदयगति तीव्र हो जाती है, जिसके फलस्वरूप उच्च रुधिर चाप रहने लगता है।
  5. तम्बाकू में पाया जाने वाला विषैला पदार्थ निकोटिन रुधिर केशिकाओं को संकुचित करता रहता है, जिसके परिणामस्वरूप हृदय रोगों के होने की सम्भावनाओं में वृद्धि होती है।
  6. तम्बाकू का अधिक सेवन मस्तिष्क को भी कुप्रभावित करता है।
  7.  आधुनिक वैज्ञानिक खोजों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि तम्बाकू का सेवन करने वाले मनुष्यों में कैंसर जैसा असाध्य रोग अधिक होता है।

(6) मदिरा या शराब:
मदिरा का मादक अवयव ऐल्कोहॉल होता है। विभिन्न प्रकार की मदिरा में ऐल्कोहॉल की प्रतिशत मात्रा भिन्न-भिन्न होती है। उदाहरण के लिए–बीयर में ऐल्कोहॉल 7% तक (UPBoardSolutions.com) तथा अंग्रेजी व देशी मदिरा में 42% तक होता है। मदिरा एक मूल्यवान् मादक पेय है, जिसके सेवन की आदत पड़ जाने पर अच्छे-अच्छे परिवारों की आर्थिक व्यवस्था चरमरा जाती है। मदिरापान से शरीर परे | होने वाले कुप्रभाव निम्नलिखित हैं

  1.  मदिरापान का मस्तिष्क पर सीधा प्रभाव पड़ता है। कम मात्रा में यह मादकता वे उत्तेजना उत्पन्न करती है। अधिक मात्रा में यह केन्द्रीय तन्त्रिका-तन्त्र को दुर्बल कर देती है तथा स्मरण-शक्ति एवं नेत्र-ज्योति को कुप्रभावित करती है।
  2.  मदिरापान उच्च रक्तचाप उत्पन करता है, जिससे हृदय रोगों की सम्भावनाओं में वृद्धि होती है।
  3. मांसपेशियाँ धीरे-धीरे शिथिल एवं दुर्बल हो जाती हैं।
  4. पाचन-तन्त्र दुर्बल एवं विकृत हो जाती है।
  5.  अधिक मदिरापान से गुर्दो की कार्यक्षमता क्षीण हो जाती है।
  6.  शरीर में विटामिन्स की कमी हो जाती है; अतः रोग-प्रतिरोधक शक्ति क्षीण हो जाती है।
  7. गर्भवती महिला के मदिरापान करने से गर्भस्थ शिशु विकृत हो सकता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
थकान के प्रकार बताइए।
या
शारीरिक एवं मानसिक थकान को दूर करने के उपाय बताइए।
उत्तर:
दैनिक कार्यों द्वारा उत्पन्न थकान दो प्रकार की होती है
(1) शारीरिक थकान तथा
(2) मानसिक थकान।

(1) शारीरिक थकान:
लगातार परिश्रम करने से मांसपेशियों की कार्यक्षमता कम होती रहती है। तथा शरीर के कुछ ऊतकों में टूट-फूट होती रहती है तथा शरीर में कुछ विजातीय तत्त्व एकत्र हो जाते हैं, परिणामस्वरूप शरीर थकानग्रस्त हो जाता है। निरन्तर थके रहने पर तथा आवश्यक विश्राम न मिलने पर शरीर दुर्बल हो जाता है। शारीरिक थकान दूर करने की सर्वश्रेष्ठ विधि (UPBoardSolutions.com) विश्राम है तथा निद्रा विश्राम की सर्वश्रेष्ठ विधि है। निद्रामग्न मनुष्य की नाड़ी, रक्तचाप, श्वास-गति इत्यादि महत्त्वपूर्ण शारीरिक क्रियाएँ मन्द गति से होती हैं, परिणामस्वरूप शारीरिक ऊर्जा भी बहुत ही कम व्यय होती है। निद्रा की अवधि में ऊतकों में हुई टूट-फूट की मरम्मत हो जाती है तथा मांसपेशियाँ नवीन कार्य-शक्ति अर्जित कर लेती हैं। कार्य-परिवर्तन भी शारीरिक थकान दूर करने का एक उपाय है। उदाहरण के लिए कपड़ों की धुलाई करने से थकी हुई महिला यदि बच्चों को पढ़ाए अथवा बुनाई करे तो एक सीमा तक शारीरिक थकान से मुक्ति का अनुभव कर सकती है। इसी प्रकार मनोरंजन (टी०वी०, रेडियो इत्यादि) द्वारा भी शारीरिक थकान दूर की जा सकती है।

(2) मानसिक थकान:
निरन्तर मानसिक कार्य करने से मस्तिष्क की मांसपेशियों की कार्यक्षमता क्षीण हो जाती है तथा ज्ञान-तन्तुओं में तनाव उत्पन्न हो जाता है। इस स्थिति को मानसिक थकान कहते हैं। मानसिक थकानग्रस्त व्यक्ति सिर दर्द का अनुभव कर सकता है तथा मानसिक कार्यों में न तो उसका मन लगता है और न ही उन्हें कुशलता से कर पाता है। इस प्रकार की थकान विश्राम करने से, कार्य-परिवर्तन करके अथवा (UPBoardSolutions.com) मनोरंजन करके दूर की जा सकती है। विश्राम करने से मांसपेशियाँ अपनी कार्यक्षुमता पुनः प्राप्त कर लेती हैं तथा ज्ञान-तन्तु भी तनाव मुक्त हो जाते हैं। कार्य-परिवर्तन अथवा मनोरंजन द्वारा भी मांसपेशियों एवं ज्ञान-तन्तुओं को विश्राम उपलब्ध हो जाता है।

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प्रश्न 2:
सूर्य के प्रकाश की वस्तुओं पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
सूर्य के प्रकाश के वस्तुओं पर पड़ने वाले प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं

  1. अन्धकार में अनेक प्रकार के कीड़े-मकोड़े व कीटाणु पनपते हैं। सूर्य का प्रकाश अथवा धूप इन हानिकारक जीव-जन्तुओं को नष्ट करती है। अतः खाद्य पदार्थों; जैसे कि गेहूँ, चना, मक्का इत्यादि को संग्रहीत करने से पूर्व धूप में रखकर अच्छी प्रकार से सुखा लेना चाहिए।
  2. सूर्य का प्रकाश घर की सीलन को नष्ट करता है।
  3.  सूर्य के प्रकाश में लेटने से चर्म रोग होने की कम सम्भावना रहती है।
  4.  सूर्य के प्रकाश में शरीर में विटामिन ‘डी’ उत्पन्न होता है जो कि एक आवश्यक पोषक तत्त्व है।
  5.  सूर्य का तेज प्रकाश नेत्रों के लिए हानिकारक होता है; अतः रंगीन ऐनक लगाकर आँखों का . बचाव करना चाहिए।

प्रश्न 3:
शारीरिक स्वच्छता के एक भाग के रूप में कानों की स्वच्छता के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
कान शरीर के वे अंग हैं, जिनसे सुनने का कार्य होता है। व्यक्तिगत शारीरिक स्वच्छता के अन्तर्गत कानों की नियमित सफाई का ध्यान रखना अति आवश्यक माना जाता है। कानों में बाहर से उड़ने वाली धूल-मिट्टी आदि पडूती रहती हैं। कान में ये सब बाहरी कण रुक जाते हैं। कान में एक चिकना पदार्थ रहता है जिस पर धूल-मिट्टी आदि चिपककर एक प्रकार की मैल का रूप धारण कर लेते हैं। यदि कान में यह मैल अधिक मात्रा में एकत्र हो जाए तो कान का सुनने वाला मार्ग अवरुद्ध हो जाता है। इससे सुनने में परेशानी हो सकती है, अत: कानों को साफ करना आवश्यक है। कानों को रुई अथवा साफ एवं नर्म कपड़े द्वारा साफ किया जा सकता (UPBoardSolutions.com) है। कभी-कभी कान में सरसों का तेल भी डालते रहना चाहिए। कान को सुचारु सफाई के लिए अब अनेक औषधियुक्त विलायक द्रवे भी उपलब्ध हैं, जो कान के मैल को शीघ्र ही घोलकर बाहर निकाल देते हैं। कान में पानी नहीं डालना चाहिए, स्नान करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि कभी भी कानों को साफ करने के लिए किसी तिनके या सलाई आदि का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इससे कान क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।

प्रश्न 4:
नाक की सफाई का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
व्यक्तिगत शारीरिक स्वच्छता तथा स्वास्थ्य के लिए नाक की नियमित सफाई अनिवार्य है। नाक से मुख्य रूप से श्वास लेने का कार्य किया जाता है। इसके अतिरिक्त नाक द्वारा ही हम सँ किसी वस्तु की गन्ध का अनुभव करते हैं। नाक के अन्दर का चिपचिपा पदार्थ बाहर से आने वाली वायु की सभी अशुद्धियों को अपने में चिपकाकर रोक लेता है। इस स्थिति में नाक में रुकी इन अशुद्धियों की नित्य सफाई होनी चाहिए। (UPBoardSolutions.com) यदि नाक साफ नहीं रहती तो हम नाक से साँस नहीं ले सकते। इस स्थिति में व्यक्ति मुँह से साँस लेता है तथा इससे कुछ परेशानियाँ भी हो सकती हैं तथा स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 5:
नेत्रों की सफाई एवं सुरक्षा आप किस प्रकार करेंगी? या आँखों को कैसे सुरक्षित रख सकते हैं?
उत्तर:
नेत्र हमारे लिए प्रकृति की अमूल्य देन हैं। इनकी स्वच्छता एवं सुरक्षा सर्वोपरि है। हमें नेत्रों की सफाई एवं सुरक्षा के विषय में निम्नलिखित बातों का सदैव ध्यान रखना चाहिए

  1. नेत्रों को प्रातः उठने पर एवं रात्रि को सोने से पूर्व ठण्डे एवं स्वच्छ जल से धोना चाहिए।
  2. धूल अथवा इस प्रकार का कोई अन्य पदार्थ गिर जाने पर नेत्रों को मसलना अथवा रगड़ना नहीं चाहिए, बल्कि स्वच्छ जल से इन्हें धोना चाहिए।
  3.  गन्दे कपड़े अथवा रूमाल से नेत्रों को कभी साफ नहीं करना चाहिए।
  4. नेत्रों को तेज धूप अथवा तेज रोशनी से बचाना चाहिए। इसके लिए रंगीन शीशों वाली ऐनक का प्रयोग किया जा सकता है।
  5.  कम अथवा अधिक प्रकाश में नहीं पढ़ना चाहिए। पढ़ते समय प्रकाश यदि नेत्रों पर न पड़कर पुस्तक पर पड़े तो अधिक अच्छा रहता है।
  6. निकट अथवा दूर-दृष्टि में यदि कोई कमी हो, तो विशेषज्ञ की सलाह के अनुसार तुरन्त आवश्यक ऐनक प्रयोग की जाए।
  7.  किसी भी प्रकार के रोग की आशंका होने पर देर न करें, तुरन्त ही योग्य नेत्र-विशेषज्ञ से सम्पर्क करें।

प्रश्न 6:
त्वचा की स्वच्छता क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
त्वचा को स्वच्छ रखने के कारण निम्नलिखित हैं

  1.  व्यक्तिगत सुन्दरता एवं आकर्षण के लिए त्वचा को स्वच्छ रखना बहुत महत्त्वपूर्ण है।
  2.  पसीने के रूप में त्वचा के द्वारा शारीरिक गन्दगी बाहर निकला करती है। धूल व अन्य पदार्थों के जमा होने से त्वचा के छिद्र बन्द हो जाते हैं; अतः त्वचा को किसी अच्छे साबुन से दिन में एक बार अवश्य साफ करना चाहिए।
  3. प्रतिदिन सफाई न करने से चर्म रोग; जैसे-दाद, खुजली आदि के होने की आशंका रहती है।
  4. अधिक सर्दियों में त्वचा खुश्क हो जाती है तथा विभिन्न स्थानों पर फट भी जाती है। इसके लिए वैसलीन अथवा ग्लिसरीन अथवा सरसों या गोले के तेल का समय-समय पर प्रयोग करना चाहिए।

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प्रश्न 7:
त्वचा की स्वच्छता के उपाय के रूप में स्नान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
त्वचा की स्वच्छतों के लिए मुख्य तथा सर्वाधिक उपयोगी उपाय स्नान है। त्वचा की सफाई के लिए सामान्य परिस्थितियों में नित्य ही स्नान करना आवश्यक माना जाता है। गर्मियों में दिन में दो बार भी स्नान किया जा सकता है। साधारण रूप से ठण्डे पानी से ही स्नान करना चाहिए, परन्तु अधिक ठण्ड (UPBoardSolutions.com) में गर्म पानी से भी स्नान किया जा सकता है। स्नान करते समय पूरे शरीर को रगड़-रगड़कर साफ करना चाहिए। साबुन अथवा उबटन द्वारा भी त्वचा की गन्दगी को साफ किया जा सकता है। स्नान से जहाँ एक ओर त्वचा की सफाई होती है वहीं दूसरी ओर इससे चित्त प्रसन्न रहता है तथा शरीर में स्फूर्ति भी बनी रहती है।

प्रश्न 8:
टिप्पणी लिखिए–उत्तम स्वास्थ्य के लिए नाखूनों की स्वच्छता।
उत्तर:
व्यक्तिगत शारीरिक स्वच्छता के अन्तर्गत नाखूनों की स्वच्छता का विशेष महत्त्व है। नाखून अँगुलियों के अग्रभाग में होते हैं। हम अपने सभी कार्य हाथों से करते हैं। भोजन पकाना एवं खाना भी हाथों द्वारा ही होता है; अत: हाथों को तथा विशेष रूप से नाखूनों को स्वच्छ रखना अनिवार्य होता है। यदि नाखून बढ़े हुए एवं गन्दे होते हैं, तो अनेक प्रकार से नुकसान हो सकता है। बढ़े हुए नाखूनों में गन्दगी भर जाती है तथा इस गन्दगी में तरह-तरह के रोगों के कीटाणु पनपने लगते हैं। जब हम भोजन ग्रहण करते हैं। तब भोजन के साथ ही ये (UPBoardSolutions.com) कीटाणु भी हमारे मुँह में चले जाते हैं। इसलिए सामान्य रूप से नाखूनों को बढ़ने ही नहीं देना चाहिए। नाखूनों को सप्ताह में एक बार अवश्य ही काट देना चाहिए। नाखूनों को कैंची अथवा नेल-कटर द्वारा ही काटना चाहिए। कुछ लोग, विशेष रूप से बच्चे दाँतों से नाखून काटते हैं, यह बुरी एवं अस्वास्थ्यकर आदत है। अनेक फैशन-परस्त महिलाएँ नाखून बढ़ाकर रखती हैं। ऐसी महिलाओं के लिए यह अति आवश्यक सुझाव है कि वे नाखूनों की सफाई का विशेष रूप से ध्यान रखें अन्यथा स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

प्रश्न 9:
बालों में जूं क्यों पड़ जाती हैं? इनसे बचाव के उपाय बताइए।
उत्तर:
बालों में जें पड़ने के कारण निम्नलिखित हैं

  1. बालों में समय-समय पर कंघी न करना,
  2.  बालों की जड़ों में गन्दगी का जमा होना,
  3.  जू वाली महिला अथवा बच्चे के सम्पर्क में आने पर अथवा उसकी कंघी का प्रयोग करने पड़ जाना निश्चित है।

जूँ दूर करने के उपाय

  1. (1) स्वच्छ कंघी का बार-बार प्रयोग करना चाहिए।
  2. (2) लहसुन तथा नींबू का रस मिलाकर बालों की जड़ों में लगायें।
  3. (3) सिरका तथा खाने का सोडा मिलाकर प्रयोग करने से प्रायः जें समाप्त हो जाती हैं।
  4. (4) डी० डी० टी० पाउडर सिर में लगाएँ तथा तीन या चार घण्टे पश्चात् गर्म पानी से धोने पर हूँ नष्ट हो जाती हैं, परन्तु ध्यान रहे कि डी० डी० टी० पाउडर नेत्रों में न पड़ने पाए।
  5. (5) नीम के पत्तों को पानी में उबालकर, उस पानी से नियमित रूप से बालों को धोने से जूं नष्ट हो जाती हैं।
  6. (6) आजकल जू मारने वाली कुछ दवाएँ भी बाजार में उपलब्ध हैं। इनका प्रयोग करके भी हूँ समाप्त की जा सकती हैं।

प्रश्न 10:
बालों की स्वच्छता के महत्त्व एवं उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
व्यक्तिगत शारीरिक स्वच्छता के अन्तर्गत बालों की सफाई का ध्यान रखना भी आवश्यक है। बाल नारियों के सौन्दर्य को बढ़ाते हैं। सौन्दर्य को बढ़ाने के अतिरिक्त बाल हमारे शरीर के विभिन्न की रक्षा भी करते हैं। बालों को साफ रखने के लिए इन्हें नियमित रूप से धोना अनिवार्य है। स्त्रियों के बाल काफी लम्बे होते हैं; अतः उन्हें सावधानीपूर्वक धोना चाहिए। बालों को धोने के लिए केवल वही साबुन इस्तेमाल करना चाहिए (UPBoardSolutions.com) जिसमें कम-से-कम सोडा हो। अधिक सोडे वाले साबुन बालों की जड़ों को कमजोर कर देते हैं तथा बाल टूटने लगते हैं। साबुन के अतिरिक्त बालों को शैम्पू, दही, आँवले, रीठे, स्वास्थ्य का अर्थ एवं परिभाषा तथा व्यक्तिगत स्वास्थ्य की देख-देख और रक्षा बेसन अथवा मुलतानी मिट्टी से भी धोया जा सकता है। बालों की रक्षा के लिए हमें नित्य कंघा भी करना चाहिए। इससे जहाँ एक ओर, बाल सँवरे रहते हैं वहीं दूसरी ओर, बालों में से धूल आदि भी निकल जाती है। बालों में कोई अच्छा तेल भी लगाते रहना चाहिए। सामान्य रूप से अधिक सुगन्ध वाले तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 11:
पोषक आहार खाने के क्या लाभ हैं?
उत्तर:
जिस आहार में सभी पोषक तत्त्व होते हैं, उसे पोषक आहार कहते हैं तथा जिसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, खनिज लवण तथा विटामिन्स उचित अनुपात तथा पर्याप्त मात्रा में होते हैं, उसे सन्तुलित आहार कहते हैं। पोषक आहार के उदाहरण दूध, दही, मांस, मछली, अण्डे, दालें, अनाज, हरी सब्जियाँ, फल इत्यादि हैं। पोषक आहार लेने से होने वाले लाभ निम्नलिखित हैं

  1.  मनुष्य स्वस्थ एवं स्फूर्तियुक्त रहता है।
  2.  विभिन्न रोगों; जैसे कि रक्त की कमी, सूखा रोग, घंघा, रिकेट्स, स्कर्वी, रतौंधी इत्यादि के होने की सम्भावना नहीं रहती है।
  3. शरीर की वृद्धि सही होती है तथा शरीर सुडौल व कान्तिमय रहता है।
  4. घाव शीघ्र भरते हैं तथा अंगों की टूट-फूट की मरम्मत भी शीघ्र हो जाती है।
  5.  हड्डियाँ मजबूत रहती हैं तथा जोड़ों में प्राय: किसी प्रकार का विकार उत्पन्न नहीं हो पाता है।।
  6.  शरीर को पर्याप्त ऊर्जा उपलब्ध होती है, जिसके फलस्वरूप कार्यक्षमता में वृद्धि होती है तथा थकान कम होती है।
  7.  मानसिक कार्य अधिक कुशलतापूर्वक सम्पन्न होते हैं तथा मन प्रसन्न रहता है।

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प्रश्न 12:
मुख एवं दाँतों की सफाई कैसे की जानी चाहिए?
उत्तर:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य एवं शारीरिक स्वच्छता के लिए मुख एवं दाँतों की नियमित सफाई अति आवश्यक है। यदि दाँतों की नियमित सफाई न की जाए तो एक तो दाँत खराब हो जाते हैं तथा समय से पहले ही गिरने लगते हैं। दूसरे, दाँतों में सफाई के अभाव में अनेक प्रकार के बैक्टीरिया विकसित होने लगते हैं। ये बैक्टीरिया पाचन तन्त्र में पहुँचकर पाचन क्रिया को अस्त-व्यस्त बनाते हैं। दाँतों की सफाई के लिए विभिन्न बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। सर्वप्रथम यह आवश्यक है कि दिन में दो बार अर्थात् प्रातः सोकर उठने के बाद तथा रात को सोने से पहले दाँतों की बहुत अच्छे ढंग से सफाई की जाए। इसके लिए किसी अच्छे मंजन, टूथपेस्ट (UPBoardSolutions.com) या दातुन को इस्तेमाल करना चाहिए। इसके अतिरिक्त कुछ भी खाने के बाद कुल्ला अवश्य करें। दाँतों में फंसने वाले अन्न कणों को टूथ पिक से निकाल देना चाहिए। दाँतों की सफाई के साथ-साथ मसूड़ों की सफाई एवं मालिश का भी ध्यान रखना चाहिए। दाँतों के स्वास्थ्य के लिए खान-पान का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। पान-सुपारी, पान, मसाला तथा तम्बाकू आदि के सेवन से बचना चाहिए। इसके अतिरिक्त अधिक ठण्डे तथा अधिक गर्म खाद्य पदार्थ भी नहीं खाने चाहिए।

प्रश्न 13:
पेट की आँतों की सफाई के लिए किन बातों को ध्यान में रखना आवश्यक है?
उत्तर:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए जहाँ बाहरी शारीरिक सफाई आवश्यक है वहीं अन्तरिक सफाई भी आवश्यक है। शरीर की आन्तरिक सफाई के लिए मुख्य रूप से पेट या आँतों की सफाई महत्त्वपूर्ण है। इसके लिए सर्वप्रथम आवश्यक है कि शौच की नियमित आदत डाली जाए। प्रात:काल सर्वप्रथम शौच के लिए जाना चाहिए। यदि किसी कारण से नियमित शौच न हो रहा हो, तो इसके लिए समुचित उपाय करने चाहिए। कब्ज़ से बचने के लिए आहार में हरी सब्जियाँ, फल तथा चोकरयुक्त आटे की रोटी का समावेश किया जाना चाहिए। इससे भी यदि कब्ज दूर न हो, तो सोते समय ईसबगोल की भूसी अथवा कोई अन्य हल्का रेचक पदार्थ लेना चाहिए।

प्रश्न 14:
टिप्पणी लिखिए–व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए वस्त्रों की स्वच्छता।
उत्तर:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य तथा शारीरिक स्वच्छता के लिए जहाँ एक ओर शरीर के विभिन्न अंगों को स्वच्छ रखना अनिवार्य है, वहीं शरीर पर धारण करने वाले वस्त्रों की स्वच्छता का भी ध्यान रखना आवश्यक है। वस्त्र चाहे जो भी पहना जाए, इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह स्वच्छ हो। गन्दा वस्त्र कभी नहीं पहनना चाहिए। गन्दे वस्त्र धारण करने से शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त यह (UPBoardSolutions.com) भी एक तथ्य है कि गन्दे वस्त्र धारण करने वाले व्यक्ति को कोई भी पसन्द नहीं करता तथा अपने पास बैठाना भी नहीं चाहता। साफ-सुथरे वस्त्र धारण करने से व्यक्ति का चित्त प्रसन्न रहता है तथा व्यक्ति चुस्त भी रहता है। वस्त्रों की सफाई के लिए वस्त्रों को नियमित रूप से धोना । आवश्यक होता है। गर्म कपड़ों को बीच-बीच में ब्रश से झाड़कर भी साफ किया जा सकता है।

प्रश्न 15:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए मनोरंजन का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यक्तिगत स्वास्थ्य में मानसिक स्वास्थ्य भी निहित होता है। मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला एक मुख्य कारक है—मनोरंजन। मनोरंजन के अर्थ को डॉ० नक्खुड़ा ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है, “मनोरंजन वह अवकाशकालीन कार्य है जो व्यक्ति के तत्कालीन सन्तोष के लिए चुना जाता है। और जो व्यक्तियों को उनके अवकाश का सृजनात्मक उपयोग तथा खोई हुई शक्ति की पुनः प्राप्ति द्वारा आत्माभिव्यक्ति तथा (UPBoardSolutions.com) आत्मानुभूति का अवसर देता है।” स्पष्ट है कि व्यक्ति के लिए स्वस्थ मनोरंजन का विशेष महत्त्व है। स्वस्थ मनोरंजन से व्यक्ति का मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य उत्तम बनता है। स्वस्थ मनोरंजन द्वारा व्यक्ति का चरित्र भी संगठित होता है। स्वस्थ मनोरंजन द्वारा व्यक्ति का चरित्र सुदृढ़ बनता है तथा आगे विभिन्न सद्गुणों का भी विकास होता है।

प्रश्न 16:
विद्यालय में खेल के मैदान होने से क्या लाभ हैं?
उत्तर:
विद्यालय में खेल के मैदान होने से निम्नलिखित लाभ हैं

  1.  खेल के मैदान फुटबॉल, हॉकी, बैडमिण्टन, क्रिकेट, टैनिस वे बास्केट बॉल आदि खेलों के आयोजन के लिए आवश्यक हैं, जो कि व्यायाम के दृष्टिकोण से बहुत उपयोगी हैं।
  2. खेलों से शरीर सुन्दर, सुव्यवस्थित एवं सबले होता है।
  3. खेलों से परस्पर प्रेम व सहयोग की भावना में वृद्धि होती है।
  4.  विद्यालयों में होने वाले खेलों से राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी विकसित होते हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
स्वास्थ्य से क्या आशय है? या किस व्यक्ति को आप स्वस्थ व्यक्ति कहेंगी?
उत्तर:
व्यक्ति के स्वास्थ्य का सम्बन्ध उसके शरीर, मन तथा संवेगों से होता है। जो व्यक्ति शारीरिक, मानसिक तथा संवेगात्मक दृष्टि से पूरी तरह सामान्य होता है, उसे ही पूर्ण स्वस्थ व्यक्ति कहा जा सकता है।

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प्रश्न 2:
स्वास्थ्य के प्रत्यक्ष लक्षण क्या हैं?
उत्तर:
स्वस्थ व्यक्ति के शरीर का वजन उचित होता है, अस्थि-संस्थान सुविकसित तथा सन्तुलित होता है, आँखों तथा बालों में स्वाभाविक चमक होती है तथा शरीर की मांसपेशियाँ सुसंगठित तथा सुविकसित होती हैं।

प्रश्न 3:
स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले घटक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
नियमबद्धता, शारीरिक स्वच्छता, व्यायाम, पौष्टिक एवं सन्तुलित आहार, विश्राम एवं निद्रा तथा स्वस्थ मनोरंजन स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले प्रमुख घटक अथवा कारक हैं।

प्रश्न 4:
निद्रा और विश्राम क्यों आवश्यक हैं?
उत्तर:
दैनिक कार्यों से होने वाली थकान को दूर करने के लिए तथा कार्यरत रहते हुए ऊतकों में हुई टूट-फूट की मरम्मत के लिए निद्रा और विश्राम की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 5:
सोते समय किस प्रकार के वस्त्र पहनने चाहिए?
उत्तर:
सोते समय ढीले-ढाले सूती वस्त्र पहनने चाहिए।

प्रश्न 6:
दाँतों की नियमित सफाई न करने पर इनमें किस रोग के होने की आशंका रहती है?
उत्तर:
दाँतों की नियमित सफाई न करने पर इनमें पायरिया नामक घातक रोग के होने की आशंका रहती है।

प्रश्न 7:
नाखूनों की सफाई क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
नाखूनों की समुचित सफाई न होने पर उनमें गन्दगी तथा विभिन्न रोगों के रोगाणु एकत्र हो जाते हैं जो भोजन ग्रहण करते समय हमारे शरीर में प्रवेश करके रोग उत्पन्न कर सकते हैं।
अतः इन रोगों से बचाव के लिए नाखूनों की सफाई आवश्यक है।

प्रश्न 8:
फर्श पर थूकना क्यों हानिकारक है?
उत्तर:
थूक और कफ में रोगाणु होते हैं; अतः फर्श पर थूकने से इनके अन्य व्यक्तियों तक फैलने .. की सम्भावना रहती है।

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प्रश्न 9:
भोजन के सम्बन्ध में कौन-कौन सी मिथ्या धारणाएँ हैं?
उत्तर:
अच्छे स्वास्थ्य से सम्बन्धित भोजन के विषय में कुछ मिथ्या धारणाएँ निम्नलिखित हैं

  1.  देशी घी में पका खाना व अधिकाधिक देशी घी का प्रयोग लाभकारी है,
  2. भूख से अधिक भोजन करना चाहिए,
  3. महँगे फल अधिक पौष्टिक होते हैं, इत्यादि।

प्रश्न 10:
पौष्टिक एवं सन्तुलित आहार ग्रहण न करने से क्या हानि होती है?
उत्तर:
पौष्टिक एवं सन्तुलित आहार ग्रहण न करने से व्यक्ति विभिन्न अभाव जनित रोगों का शिकार हो सकता है।

प्रश्न 11:
व्यायाम का क्या महत्त्व है? या व्यायाम करने से क्या लाभ होता है?
उत्तर:
व्यायाम करने से हमारा शरीर सुन्दर व सुडौल बनता है, मांसपेशियाँ सुविकसित होती हैं। तथा कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।

प्रश्न 12:
व्यायाम कितना करना चाहिए?
उत्तर:
व्यायाम सदैव अपनी क्षमता के अनुसार करना चाहिए।

प्रश्न 13:
चाय का प्रयोग क्यों हानिकारक है?
उत्तर:
चाय का अधिक सेवन करने से निद्रा कम आती है, आमाशय खुश्क हो जाता है तथा भूख कम लगती है।

प्रश्न 14:
वस्त्र पहनना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:

  1. वस्त्र शरीर को ऋतओं के प्रभाव से सुरक्षित रखते हैं,
  2. वस्त्र शारीरिक सुन्दरता में वृद्धि करते हैं,
  3.  वस्त्र शरीर को धूल, मिट्टी तथा कीटाणुओं से बचाते हैं।

प्रश्न 15:
वस्त्रों का स्वच्छ होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
स्वच्छ वस्त्र स्वस्थ रहने में सहायक होते हैं तथा गन्दे वस्त्र स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। इसलिए वस्त्रों का स्वच्छ होना आवश्यक है।

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प्रश्न 16:
केंसर जैसे घातक रोग की सम्भावना में वृद्धि किससे होती है?
उत्तर:
धूम्रपान से कैंसर की सम्भावना में वृद्धि होती है।

प्रश्न 17:
शराब में मुख्य मादक अवयव कौन-सा होता है?
उत्तर:
शराब में मुख्य मादक अवयव ऐल्कोहॉल होता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) पूर्ण स्वस्थ व्यक्ति उसी को कहा जाता है
(क) जो शारीरिक रूप से स्वस्थ हो,
(ख) जो मानसिक रूप से स्वस्थ हो,
(ग) जो संवेगात्मक रूप से स्वस्थ हो,
(घ) इन सभी प्रकार से स्वस्थ हो।

(2) शारीरिक स्वच्छता आवश्यक है, क्योंकि
(क) इससे सौन्दर्य में वृद्धि होती है,
(ख) शरीर बलवान् बनता है,
(ग) कद बढ़ता है,
(घ) शरीर नीरोग एवं चुस्त रहता है।

(3) दैनिक कार्यों से हुई थकान को दूर करने के लिए
(क) कार्य करना चाहिए,
(ख) विश्राम करना चाहिए,
(ग) व्यायाम करना चाहिए,
(घ) भोजन करना चाहिए।

(4) अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं
(क) सन्तुलित आहार,
(ख) नियमित रूप से व्यायाम करना,
(ग) नियमित जीवन व्यतीत करना,
(घ) ये सभी उपाय।

(5) व्यायाम से हम बन सकते हैं
(क) आलसी तथा स्वस्थ,
(ख) स्वस्थ तथा क्रियाशील,
(ग) आलसी तथा निष्क्रिय,
(घ) निष्क्रिय तथा स्वस्था

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(6) व्यायाम करने के तुरन्त उपरान्त हमें
(क) गरिष्ठ एवं पौष्टिक आहार ग्रहण करना चाहिए,
(ख) महत्त्वपूर्ण कार्य करने चाहिए,
(ग) ठण्डे पानी से स्नान करना चाहिए,
(घ) कुछ समय के लिए विश्राम करना चाहिए।

(7) हमें सदैव बचना चाहिए
(क) मादक द्रव्यों से,
(ख) परिश्रम से,
(ग) व्यायाम से,
(घ) विश्राम से।

(8) अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए आवश्यक है
(क) दूध,
(ख) मांस व मछली,
(ग) हरी सब्जियाँ,
(घ) सन्तुलित आहार।

(9) सामान्य स्वस्थ व्यक्ति के शरीर का तापक्रम होता है
(क) 97°F
(ख) 96°E
(ग) 98.4°E
(घ) 99° FI

उत्तर:
(1) (घ) इन सभी प्रकार से स्वस्थ हो,
(2) (घ) शरीर नीरोग एवं चुस्त रहता है,
(3) (ख) विश्राम करना चाहिए,
(4) (घ) ये सभी उपाय,
(5) (ख) स्वस्थ तथा क्रियाशील,
(6) (घ) कुछ समय के लिए विश्राम करना चाहिए,
(7) (क) मादक द्रव्यों से,
(8) (घ) सन्तुलित आहार,
(9) (ग) 98.4°F

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