UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 21 रोगी का बिस्तर

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UP Board Solutions for Class 9 Home Science Chapter 21 रोगी का बिस्तर

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
रोगी के बिस्तर के लिए आवश्यक वस्तुओं की सूची बनाइए। रोगी का बिस्तर लगाते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगी?
उत्तर:
रोगी के बिस्तर के लिए आवश्यक वस्तुएँ . रोगी को आरामदायक बिस्तर उपलब्ध कराने के लिए निम्नलिखित वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है

  1.  पलंग: भली-भाँति कसा हुआ बान, निवाड़ अथवा स्प्रिंगदार पलंग लगभग हर दृष्टिकोण से उपयुक्त रहता है।
  2.  दरी: सबसे नीचे बिछाने के लिए मोटी दरी अथवा टाट।
  3.  गद्दा: लगभग 6-7 सेन्टीमीटर मोटा मंजबूत गद्दा।
  4.  चादर: दो या तीन सफेद व स्वच्छ चादर।
  5. ड्रॉ: शीट-मोमजामे के टुकड़े के नाप की छोटी चादर।
  6.  मोमजामे का टुकड़ा: चादर से लगभग आधी नाप का।
  7.  ओढ़ने का सामान:  मौसम के अनुसार भारी अथवा हल्का कम्बल अथवा लिहाफ।
  8.  तकिया: मुलायम रुई या हवा वाले दो तकिए।

रोगी का बिस्तर लगाते समय ध्यान देने योग्य बातें

रोगी का बिस्तर लगाते समय आवश्यक वस्तुओं का उपयोग विधिपूर्वक करना अधिक उपयुक्त रहता है। यह कार्य निम्नलिखित चरणों में किया जाता है

  1. सर्वप्रथम दरी बिछाई जाती है। दरी को पलंग की चूल व पाटी आदि के साथ बाँध देना चाहिए ताकि बिछाए जाने के पश्चात् बिस्तर फिसलने न पाए।
  2.  दरी बिछाने के पश्चात् उस पर गद्दा बिछाना चाहिए।
  3.  गद्दे के ऊपर चादर बिछायें। चादर को चारों ओर से मोड़कर गद्दे के नीचे दबा देना उचित रहता है। इसके लिए पहले सिरहाने की ओर से तथा फिर पैरों की ओर तथा सबसे अन्त में लम्बाई की ओर से सलवटें निकाल देनी चाहिए।
  4. अब चादर पर मोमजामे का टुकड़ा बिछाया जाता है। यह चौड़ाई में चादर को लगभग आधा होता है। तथा लम्बाई में तकिए के सिरे से रोगी के घुटनों तक होता है। यह बिस्तर को गीला नहीं होने देता।
  5. रोगी को गीलेपन से बचाने तथा स्वच्छ स्थिति में रखने के लिए ड्रॉ-शीट का प्रयोग किया जाता है। यह चादर व गद्दे को भी सुरक्षित रखती है। इस छोटी चादर को इस (UPBoardSolutions.com) प्रकार बिछाया जाता है कि मोमजामा पूर्ण रूप से ढक जाए। मोमजामे में और ड्रॉ-शीट में सलवटें नहीं रहनी चाहिए।
  6. ऊपर की चादर इस प्रकार बिछाए कि यह बिस्तर को पूर्णरूप से ढक ले। इसे चारों ओर से लिफाफे के कोनों की तरह मोड़ देना चाहिए।
  7. मौसम के अनुसार ओढ़ने के लिए जो भी चादर, कम्बल अथवा लिहाफ हो उसे रोगी के पैरों की तरफ भली-भाँति तह बनाकर रखना चाहिए। |
  8. यदि ओढ़ने के लिए कम्बल देना है, तो चादर के ऊपर कम्बल को इस प्रकार लगाना चाहिए कि चादर सिरहाने की ओर कम-से-कम 15-20 सेन्टीमीटर बाहर निकली रहे। अब इसको कम्बल के ऊपर मोड़ देना उपयुक्त रहेगा। इस प्रकार की व्यवस्था से कम्बल रोगी को चुभेगा नहीं तथा कम्बल के इस भाग को गन्दा होने से बचाया जा सकेगा।
  9.  सिरहाने के लिए मुलायम व आरामदायक तकिया लगा देना चाहिए।

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प्रश्न 2:
रोगी का बिस्तर कितने प्रकार का हो सकता है? बिस्तर लगाने की विधि का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोगी के विभिन्न प्रकार के बिस्तर–अलग-अलग प्रकार के रोगियों के लिए अलग प्रकार के बिस्तर प्रयोग किए जाते हैं। ये प्रायः निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

  1. साधारण बिस्तर,
  2.  विशेष बिस्तर,
  3.  ऑपरेशन का बिस्तर,
  4. अस्थि-भंग का बिस्तर,
  5. जले का बिस्तर,
  6. कम्बल का बिस्तर।

विभिन्न प्रकार के बिस्तर लगाना

बिस्तर लगाते समय रोगी के आराम व सुविधाओं का अधिकाधिक ध्यान रखना चाहिए। भिन्न-भिन्न रोगियों के लिए उनकी सुविधा एवं दशा के दृष्टिकोण से निम्न प्रकार के बिस्तर लगाना उपयुक्त रहता है

(1) साधारण बिस्तर:
बिस्तर लगाने से पूर्व निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1.  पलंग की निवाड़, स्प्रिंग आदि ठीक प्रकार कसी हों,
  2.  पलंग दीवार से इतनी दूरी पर हो कि परिचारिका को उसके चारों ओर पर्याप्त स्थान मिल सके तथा
  3. रोगी को तीव्र वायु अथवा धूप न लगे।

पलंग पर पहले दरी बिछाई जाती है। ध्यान रहे कि दरी में सलवटें न हों। सिकुड़ने से बचाने के लिए दरी को पलंग के साथ बाँध देना चाहिए। अब गद्दा बिछाया जाता है। गद्दे के ऊपर सफेद चादर बिछाते समय सलवटों को दूर किया जाता है। चादर को गद्दे के चारों ओर दबा देना चाहिए। मौसम के अनुसार लिहाफ, कम्बल या चादर को ओढ़ने के प्रयोग में लाया जाता है। इन्हें भली प्रकार से तह बनाकर पलंग पर रोगी के पैरों की ओर रख दिया जाता है। सिर के नीचे एक मुलायम तकिया रख दिया जाता है और अन्त में रोगी को लिटाकर उसे छाती तक आवश्यक कपड़े से ढक देते हैं। ओढ़ने वाले कपड़े को तीनों ओर से गद्दे के नीचे दबा देना उपयुक्त रहता है ताकि अनजाने में रोगी के इधर-उधर होने से यह सिकुड़ने न पाए।

(2) विशेष बिस्तर:
यदि रोगी ठीक प्रकार से उठ-बैठ नहीं सकता तो उसके लिए विशेष बिस्तर लगाना सुविधाजनक रहता है। इस प्रकार के बिस्तर में सामान्य बिस्तर के अतिरिक्त रबर-शीट तथा ड्रॉ-शीट लगाई जाती है। रबर-शीट के स्थान पर मोमजामा या रैक्सीन भी लगाई जा सकती है। यह रोगी की कमर से (UPBoardSolutions.com) घुटने तक की लम्बाई की होती है। पहले रबर-शीट लगाकर फिर उसके ऊपर ड्रॉ-शीट (छोटी चादर) बिछाई जाती है। रबर-शीट व ड्रॉ-शीट की सलवटें निकालकर चौड़ाई में दोनों ओर गद्दे के नीचे दबा देनी होती है ताकि यह फिर से सिकुड़ने न पाए।

(3) ऑपरेशन का बिस्तर:
ऑपरेशन अथवा शल्य-क्रिया वाले रोगी का बिस्तर भी विशेष बिस्तर की ही तरह होता है। इसमें एक तौलिया तथा एक रबर-शीट अथवा मोमजामे का टुकड़ा अलग से रखी जाता है, जिससे कि रोगी के वमन करने से अथवा दूध व चाय आदि के फैलने पर ब्रिस्तर गन्दा न होने के पाए। रोगी के बिस्तर के नीचे चिलमची तथा मल-मूत्र विसर्जन पात्र भी रखे जाते हैं।

(4) अस्थि-भंग का बिस्तर:
हड्डी टूटने पर प्रायः रोगी को एक लम्बी अवधि तक बिस्तर पर लेटना पड़ता है। अतः उसे एक-सा चौरस बिस्तर चाहिए। मेरुदण्ड अथवा कूल्हे की हड्डी टूटने पर रोगी सीधा नहीं लेट पाता तथा पैर की हड्डी टूटने पर रोगी को पैर कुछ ऊँचा उठाकर रखना होता है। ऐसी अवस्था में फ़ैक्चर बोर्ड अथवा बैड-कैडिल की आवश्यकता पड़ती है। ये प्रायः 2.5 सेमी मोटे, 30 सेमी चौड़े तथा एक मीटर लम्बे होते हैं। इनका उपयोग घायल के टूटे अंगों पर वस्त्रों के भार को रोकने के लिए किया जाता है।

(5) जले का बिस्तर:
यह भी एक प्रकार से विशेष बिस्तर ही होता है। जले हुए स्थान पर अक्सर न तो पट्टी ही बाँधी जाती है और न ही इसे कपड़े से ढकना सरल होता है। जले हुए स्थान से प्रायः पानी स्रावित होता रहता है; अतः इसके लिए विशेष व्यवस्था की आवश्यकता होती है। बिस्तर पर रबर-शीट या मोमजामे (UPBoardSolutions.com) काटुकड़ा बिछाकर उसे ड्रॉ-शीट से ढक दिया जाता है। जले हुए स्थान के ऊपर बैड-कैडिल का उपयोग कर इसे महीन कपड़े अथवा कम्बल इत्यादि से मौसम के अनुसार ढक दिया जाता है।

(6) कम्बल का बिस्तर:
कुछ विशेष प्रकार के रोगियों के लिए कम्बलों के बिस्तर की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए-हृदय रोग तथा गठिया आदि से पीड़ित व्यक्ति। ऐसा इसलिए आवश्यक होता है कि रोगी को पूरी तरह से गर्म रखना होता है। इस प्रकार के बिस्तर में गद्दे बिछाने तक की क्रिया एक सामान्य बिस्तर की तरह होती है। इसमें गद्दे के ऊपर एक अथवा दो कम्बल बिछाए जाते हैं। ओढ़ने के लिए रोगी को कम्बल ही दिया जाता है।

प्रश्न 3:
रोगी के बिस्तर की चादर बदलने की विधि का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रोगी के बिस्तर की चादर बदलना

प्रत्येक प्रकार के बिस्तर का बाह्य अथवा ऊपरी आवरण चादर होती है; अत: बिस्तर की स्वच्छता बनाए रखने के लिए नियमित रूप से चादर बदलते रहना अति आवश्यक है। (UPBoardSolutions.com) यह कार्य रोगी की अवस्था एवं सुविधा को दृष्टिगत रखते हुए सतर्कता एवं विधिपूर्वक करना होता है। यदि रोगी बिस्तर से उठने में असमर्थ हो, तो उसके बिस्तर की चादर बदलने के लिए निम्नलिखित प्रक्रिया को अपनाना चाहिए
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  1.  चादर बदलने के लिए दो परिचारिकाओं का होना अधिक सुविधाजनक रहता है।
  2.  सर्वप्रथम एक स्वच्छ सफेद चादर को उसकी लम्बाई के आधे भाग में लपेटकर पास की मेज । पर रख दें।
  3. रोगी के ऊपर केवल चादर छोड़कर बिस्तर के शेष कपड़े हटाकर धूप में रख देने चाहिए।
  4. एक परिचारिका को रोगी के ऊपर झुककर अपने हाथ उसकी कमर व पुट्ठों के पीछे रखकर उसे धीरे से अपनी ओर करवट दिलानी चाहिए। दूसरी परिचारिका इस बीच रोगी को सावधानीपूर्वक ढके रखे तथा सँभाले रहे।
  5. अब बिस्तर पर बिछी चादर को धीरे से लपेटकर रोगी की पीठ के पास ले जाना चाहिए। पुरानी चादर के रिक्त स्थान पर मेज पर तह की हुई चादर बिछाए।
  6.  उपर्युक्त विधि के अनुसार रोगी को दूसरी ओर करवट दिलाए। अब पुरानी चादर के शेष भाग को हटाकर नई चादर को पूरी तरह बिछा दें।
  7. अब नई चादर को चारों ओर से सावधानीपूर्वक थोड़ा खींचकर उसकी सलवटें हटा दें और नीचे लटकने वाले भाग को गद्दे के नीचे अच्छी प्रकार से दबा दें।
  8. इसी प्रकार रबर-शीट एवं ड्रॉ-शीट (छोटी चादर) को लगाना चाहिए। रोगी को धीरे-धीरे साफ बिस्तर की ओर करवट बदलवा देनी चाहिए।
  9. अब दूसरी ओर जाकर पुराने कपड़ों को निकाल देना चाहिए। रबर-शीट एवं ड्रॉ-शीट की शेष तहों को खोलकर फैला देना चाहिए। पूर्व तरह से नीचे लटकते हुए भागों को चारों ओर से मोड़कर दबा देना चाहिए।
  10. सबसे बाद में ऊपर की चादर एवं कम्बल को बदलना चाहिए।

उपर्युक्त प्रक्रिया उन रोगियों के लिए है जो कि ठीक प्रकार से उठ-बैठ नहीं सकते। अन्य उठने व चलने योग्य रोगियों के बिस्तर की चादर बदलने का कार्य एक ही परिचारिका सरलतापूर्वक कर सकती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
रोगी के बिस्तर की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रोगी के बिस्तर की मुख्य विशेषताएँ

रुग्णावस्था में प्रायः व्यक्ति को एक लम्बी अवधि बिस्तर पर लेटकर व्यतीत करनी पड़ती है; अतः रोगी के लिए बिस्तर का अत्यधिक महत्त्व होता है। एक अच्छे एवं उपयुक्त बिस्तर की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित होनी चाहिए|

(1) रोग के अनुकूल बिस्तर:
रोग के अनुकूल बिस्तर से रोगी को अधिक सुविधाएँ एवं आराम मिलता है। उदाहरण के लिए-गठिया एवं हृदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए कम्बलों का बिस्तर अधिक उपयुक्त रहता है।

(2) स्वच्छ बिस्तर:
साफ-सुथरा एवं स्वच्छ बिस्तर हर प्रकार के रोगी के लिए लाभदायक रहता। है। बिस्तर की अधिकांश वस्तुएँ; जैसे-दरी, चादर व तकिए के गिलाफ आदि सूती कपड़े के होने चाहिए ताकि उन्हें अच्छी प्रकार गर्म पानी से धोकर साफ किया जा सके। रोगी के बिस्तर को प्रतिदिन तीव्र धूप में सुखाना (UPBoardSolutions.com) चाहिए। ऐसा करने से खटमल आदि के होने का भय नहीं रहता है तथा अनेक प्रकार के अन्य कीटाणु भी नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार स्वच्छ एवं कीटाणुरहित बिस्तर शीघ्र स्वास्थ्य प्राप्त करने में रोगी की सहायता करता है।

(3) आरामदायक बिस्तर:
सलवटरहित कोमल बिस्तर रोगी को पर्याप्त आराम देता है; अतः समय-समय पर रोगी के बिस्तर से सलवटें दूर करते रहना चाहिए।

(4) ऋतु के अनुकूल बिस्तर:
ग्रीष्म ऋतु में रोगी को ओढ़ने के लिए महीन सूती चादर तथा शीत ऋतु में कम्बल अथवा लिहाफ देना सुविधाजनक रहता है।

(5) प्रकाशएवं वायु की उचित व्यवस्था:
रोगी का बिस्तर कमरे में ऐसी स्थिति में होना चाहिए कि प्रकाश एवं वायु उस पर सीधे न आएँ। ऐसा न होने पर रोगी कष्ट एवं बेचैनी का अनुभव कर सकता है।

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प्रश्न 2:
शय्या घाव से आप क्या समझती हैं? शय्या घाव के कारणों का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
शय्या घाव तथा उनके कारण यदि कोई व्यक्ति किसी गम्भीर रोग अथवा दुर्घटनाग्रस्त होने के कारण लम्बे समय तक बिस्तर पर लेटा रहता है तथा सामान्य रूप से (UPBoardSolutions.com) करवट भी नहीं बदल पाता तो उस स्थिति में व्यक्ति के शरीर के कुछ भागों में एक विशेष प्रकार के घाव हो जाते हैं। इस प्रकार के घावों को शय्या घाव (bed sore) कहते हैं। शय्या घाव हो जाने के मुख्य कारण निम्नलिखित होते हैं

(1) सलवटों वाला बिस्तर:
रोगी के बिस्तर की सलवटों की चुभन व रगड़ के कारण इस प्रकार के घाव बन जाया करते हैं।
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(2) बिस्तर की नमी-रोगी के हाथ:
मुँह धुलाते समय अथवा स्पंज कराते समय कई बार बिस्तर नम हो जाता है। पसीने से भी बिस्तर में नमी आ सकती है। ऐसे बिस्तर का उपयोग प्रायः रोगी को शय्या घाव अथवा शय्या-क्षत का शिकार बना देता है।

(3) अन्य कारण:
रोगी को मधुमेह रोग होना तथा पीठ के छिलने पर असावधानी करना आदि अन्य ऐसे कारण हैं जो कि शय्या घाव को बढ़ा देते हैं।

प्रश्न 3:
शय्या घाव के बचाव एवं उपचार के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
शय्या घाव का बचाव एवं उपचार जहाँ तक हो सके इस बात का प्रयास करना चाहिए कि रोगी को शय्या घाव होने ही न पाएँ। इसके लिए रोगी को समय-समय पर करवट बदलवाते रहना चाहिए, शरीर को साफ एवं सूखा रखें तथा नित्य प्रति कोई अच्छा पाउडर लगाते रहें। इन साधारण (UPBoardSolutions.com) सावधानियों के अतिरिक्त अब शय्या के बचाव के लिए हवा तथा पानी वाले गद्दे भी तैयार कर लिए गए हैं। इन गद्दों के इस्तेमाल से रोगी को शय्या घाव से बचाया जा सकता है। परन्तु यदि दुर्भाग्यवश रोगी को शय्या घाव हो जाएँ तो निम्नलिखित उपचार किए जाने चाहिए

  1.  साबुन के झाग बनाकर शय्या घाव के स्थान पर धीरे-धीरे मलकर स्वच्छ पानी से धोने पर रोगी को काफी आराम मिलता है।
  2.  साबुन के झाग से साफ करने के पश्चात् शय्या घाव के स्थान को स्प्रिट से साफ कर जिंक अथवा बोरिक पाउडर लगाने पर शय्या घाव धीरे-धीरे ठीक हो जाते हैं।
  3. शय्या घाव के अधिक फैलने पर प्रभावित स्थान पर साइकिल के ट्यूब के आकार के रबर के घेरे अथवा रिंग कुशन का प्रयोग करना चाहिए। इससे घाव बिस्तर से रगड़ नहीं खाता तथा इसे उपर्युक्त उपचारों द्वारा ठीक किया जा सकता है।
  4.  शय्या घाव के उपचार के लिए अनेक बार शल्य-क्रिया भी की जाती है। इससे संक्रमण को नियन्त्रित किया जाता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1:
रोगी के लिए बिस्तर का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
रुग्णावस्था की अवधि को आराम एवं सुविधापूर्वक व्यतीत करने के लिए रोगी को एक उपयुक्त बिस्तर की आवश्यकता होती है।

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प्रश्न 2:
ड्रॉ-शीट से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
यह सामान्य चादर से लगभग आधे आकार की सफेद चादर होती है जिसे रबर-शीट के ऊपर बिछाया जाता है। इसको बिछाने से पूरा बिस्तर गन्दा या गीला होने से बच जाता है।

प्रश्न 3:
रोगी के बिस्तर में गद्दे का क्या उपयोग है?
उत्तर:
गद्दे का प्रयोग प्रायः रोगी के बिस्तर को कोमल तथा आरामदायक बनाने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 4:
रबर-शीट अथवा मोमजामे के प्रयोग से क्या लाभ है?
उत्तर:
मुख्य बिस्तर को गीला व गन्दा होने से बचाने के लिए रोगी के बिस्तर में रबर-शीट अथवा मोमजामे का टुकड़ा लगाया जाता है।

प्रश्न 5:
बैड-क्रैडिल का प्रयोग कब किया जाता है?
उत्तर:
बैड-क्रैडिल का प्रयोग रोगी के जलने अथवा अस्थि-भंग होने की अवस्था में किया जाता है।

प्रश्न 6:
गठिया अथवा हृदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए किस प्रकार का बिस्तर उपयुक्त रहता है?
उत्तर:
गठिया अथवा हृदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए कम्बलों का बिस्तर उपयुक्त रहता है।

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प्रश्न 7:
ठीक प्रकार से उठ-बैठ न सकने वाले रोगी के बिस्तर की चादर बदलने में कितने व्यक्तियों की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
इस प्रकार के रोगियों के बिस्तर की चादर बदलते समय दो व्यक्तियों का होना सुविधाजनक रहता है।

प्रश्न 8:
रोगी के बिस्तर पर सूती चादर क्यों बिछाते हैं?
उत्तर:
क्योंकि सूती चादर रोगी को पसीना सोख लेती है तथा इसे खौलते पानी में धोकर सहज ही नि:संक्रमित किया जा सकता है।

प्रश्न 9:
रोगी के बिस्तर के लिए कौन-कौन सी आवश्यक सामग्री चाहिए?
उत्तर:
रोगी को आरामदायक बिस्तर उपलब्ध कराने के लिए एक पलंग, दरी, गद्दा, चादर, ड्रॉशीट, एक मोमज़ामे का टुकड़ा, ओढ़ने की उपयुक्त सामग्री एवं तकिए आदि की आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 10:
शव्या घाव वाले रोगी के बिस्तर पर क्या बिछाना उपयुक्त है ताकि इससे लाभ हो सके?
उत्तर:
भेड़ की खाल बिछाने से शय्या घाव में लाभ होता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न:
प्रत्येक प्रश्न के चार वैकल्पिक उत्तर दिए गए हैं। इनमें से सही विकल्प चुनकर लिखिए

(1) कम्बलों का बिस्तर किस रोग से पीड़ित व्यक्ति के लिए प्रयोग किया जाता है?
(क) शय्या-क्षत,
(ख) गठिया,
(ग) शल्य-क्रिया,
(घ) अस्थि भंग।

(2) बैड-क्रैडिल का प्रयोग करते हैं
(क) गठिया के रोगी के लिए,
(ख) शय्या घाव के रोगी के लिए,
(ग) दमे के रोगी के लिए,
(घ) जले के रोगी के लिए।

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(3) ड्रॉ-शीट होती है
(क) एक छोटी सूती चादर,
(ख) मोमजामे का टुकड़ा,
(ग) रैक्सीन का टुकड़ा,
(घ) एक छोटा कम्बल।

(4) रोगी के बिस्तर पर रबड़शीट का प्रयोग किया जाता है
(क) बिस्तर को ठण्डा रखने के लिए,
(ख) बिस्तर को रोगी के मल-मूत्र से सुरक्षित रखने के लिए,
(ग) बिस्तर को सुन्दर बनाने के लिए,
(घ) रोगी को शय्या-घाव से बचाने के लिए।

(5) ठीक से उठ-बैठ न सकने वाले रोगी को चाहिए
(क) सामान्य बिस्तर,
(ख) कम्बलों का बिस्तर,
(ग) विशेष बिस्तर,
(घ) सलवटयुक्त बिस्तर।

(6) शय्या घाव होते हैं
(क) एक साधारण रोग के कारण,
(ख) दोषपूर्ण बिस्तर के कारण,
(ग) निरन्तर करवट बदले बिना लम्बे समय तक बिस्तर पर लेटे रहने के कारा,
(घ) इन सभी कारणों से।

(7) शय्या-क्षत का उपचार है
(क) सेंक करना,
(ख) रिंग कुशन लगाना,
(ग) बर्फ लगाना,
(घ) कुछ नहीं करना।

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(8) गम्भीर रोगी के बिस्तर पर हवा का गद्दा इस्तेमाल करके उसे बचाया जा सकता है
(क) संक्रमण से,
(ख) रोग की गम्भीरता से,
(ग) शय्या घाव से,
(घ) थकान से।

उत्तर:
(1) (ख) गठिया,
(2) (घ) जले के रोगी के लिए,
(3) (क) एक छोटी सूती चादर,
(4) (ख) बिस्तर को रोगी के मल-मूत्र से सुरक्षित रखने के लिए,
(5) (ग) विशेष बिस्तर,
(6) (ग) निरन्तर करवट बदले बिना लम्बे समय तक बिस्तर पर लेटे रहने के कारण,
(7) (ख) रिंग कुशन लगाना,
(8) (ग) शय्या घाव से।

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