UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 23 Unemployment: Causes and Remedies

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Sociology
Chapter Chapter 23
Chapter Name Unemployment: Causes and Remedies (बेकारी : कारण तथा उपचार)
Number of Questions Solved 25
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 23 Unemployment: Causes and Remedies (बेकारी : कारण तथा उपचार)

विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
“बेरोजगारी एक समस्या है।” विवेचना कीजिए। [2014]
या
भारत के विशेष सन्दर्भ में ‘बेकारी के प्रकारों की विवेचना कीजिए। [2007]
या
बेरोजगारी किसे कहते हैं ? भारत में बेरोजगारी के कारण एवं निवारण के उपाय बताइए। [2009, 10, 11, 13]
या
बेरोजगारी से आप क्या समझते हैं? बेरोजगारी समाप्त करने के सुझाव दीजिए। [2013, 15]
या
भारत में बेरोजगारी दूर करने के उपाय बताइए। [2009, 10, 16]
या
भारत में बेकारी के कारणों का विश्लेषण कीजिए और इसके उन्मूलन के सुझाव दीजिए। [2013]
या
बेरोजगारी भारतीय निर्धनता को आधारभूत कारण है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए। [2007, 10]
उत्तर:
बेरोजगारी का अर्थ तथा परिभाषाएँ
प्रायः जब किसी व्यक्ति को अपने जीवन-निर्वाह के लिए कोई कार्य नहीं मिलता तो उस व्यक्ति को बेरोजगार और इस समस्या को बेरोजगारी की समस्या कहते हैं। अन्य शब्दों में, जब कोई व्यक्ति कार्य करने का इच्छुक हो और वह शारीरिक व मानसिक रूप से कार्य करने में समर्थ भी हो, लेकिन उसको कोई कार्य नहीं मिलता जिससे कि वह अपनी जीविका कमा सके, तो इस प्रकार के व्यक्ति को बेरोजगार कहा जाता है। जब समाज में इस प्रकार के बेरोजगार व्यक्तियों की पर्याप्त संख्या हो जाती है, तब उत्पन्न होने वाली आर्थिक स्थिति को बेरोजगारी की समस्या कहा जाता है।

प्रो० पीगू के अनुसार, “एक व्यक्ति को तभी बेरोजगार कहा जाता है जब एक तो उसके पास कोई कार्य नहीं होता और दूसरे वह कार्य करना चाहता है। किन्तु व्यक्ति में कार्य पाने की इच्छा के साथ-साथ कार्य करने की योग्यता भी होनी चाहिए; अत: एक व्यक्ति जो काम करने के योग्य है तथा काम करना चाहता है, किन्तु उसे उसकी योग्यतानुसार कार्य नहीं मिल पाता, वह बेरोजगार कहलाएगा और उसकी समस्या बेरोजगारी कहलाएगी। कार्ल प्रिव्राम के अनुसार, “बेकारी श्रम बाजार की वह दशा है जिसमें श्रम-शक्ति की पूर्ति काम करने के स्थानों की संख्या से अधिक होती है।”

गिलिन तथा गिलिन के अनुसार, “बेकारी वह दशा है जिसमें एक समर्थ एवं कार्य की इच्छा रखने वाला व्यक्ति, जो साधारणतया स्वयं के लिए एवं अपने परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अपनी कमाई पर आश्रित रहता है, लाभप्रद रोजगार पाने में असमर्थ रहता है।”
संक्षेप में, मजदूरी की प्रचलित दरों पर स्वेच्छा से काम चाहने वाले उपयुक्त व्यक्ति को उसकी योग्यतानुसार काम न मिल सके, इस स्थिति को बेरोजगारी कहते हैं।

बेकारी के प्रकार

बेकारी अनेक प्रकार की है। इसके कुछ प्रकार निम्नलिखित हैं

  1. छिपी बेकारी – जो बेकारी प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देती उसे छिपी बेकारी कहते हैं। इसका कारण किसी कार्य में आवश्यकता से अधिक लोगों का लगे होना है। यदि उनमें से कुछ व्यक्तियों को हटा लिया जाए, तो भी उस कार्य या उत्पादन में कोई अन्तर नहीं आएगा। ऐसी बेकारी छिपी बेकारी कहलाती है।
  2. मौसमी बेकारी – यह बेकारी मौसमों एवं ऋतुओं के हेर-फेर से चलती रहती है। कुछ मौसमी उद्योग होते हैं; जैसे-बर्फ का कारखाना। गर्मी में तो इसमें लोगों को रोजगार मिल जाता है, परन्तु सर्दी में कारखाना बन्द होने से इसमें लगे लोग बेकार हो जाते हैं।
  3. चक्रीय बेकारी – यह बेकारी वाणिज्य या क्रय-विक्रय में आने वाली मन्दी या तेजी अर्थात् उतार-चढ़ाव के कारण पैदा होती है। मन्दी के समय बेकारी बढ़ जाती है, जब कि तेजी के समय घट जाती है।
  4.  संरचनात्मक बेकारी – आर्थिक ढाँचे में परिवर्तन, दोष या अन्य किसी कारण से यह बेरोजगारी विकसित होती है। जब स्वचालित मशीनें लगने लगती हैं तो उद्योगों में लगे अनेक व्यक्ति बेकार हो जाते हैं।
  5. खुली बेकारी – काम करने की शक्ति तथा इच्छा होते हुए भी नागरिकों को काम न मिलना खुली बेकारी कहलाती है। राष्ट्र में कार्य करने वालों की अपेक्षा रोजगार के अवसर कम होने पर खुली बेकारी पायी जाती है।।
  6. तकनीकी बेकारी – तकनीकी या प्रौद्योगिकीय बेकारी यन्त्रों या मशीनों की प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों से पैदा होती है। बड़े-बड़े उद्योगों के विकास तथा नवीन मशीन तकनीक के कारण यह बेकारी पैदा होती है।
  7.  सामान्य बेकारी – यह बेकारी प्राय: सभी समाजों में कुछ-न-कुछ अंश तक पायी जाती है, जो कभी समाप्त नहीं होती। इसका कारण कुछ लोगों का स्वभावतः एवं प्रकृति से ही अथवा आलस्य या क्षमताहीन होने के कारण रोजगार के योग्य न होना है।
  8.  शिक्षित बेकारी – इसका कारण उच्च शिक्षा व प्रशिक्षण प्राप्त लोगों में अत्यधिक वृद्धि है। उन्हें अपनी क्षमता एवं योग्यता के अनुसार रोजगार नहीं मिलता। यह बेकारी भारत तथा अन्य देशों में चिन्ता का विषय बनी हुई है।

भारत में बेरोजगारी के कारण
भारत में बेरोजगारी के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

1. तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या – भारत में जनसंख्या 25 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रही है, जब कि रोजगार के अवसरों में इस दर से वृद्धि नहीं हो रही है। जनसंख्यावृद्धि दर के अनुसार भारत में प्रति वर्ष लगभग 50 लाख व्यक्तियों को रोजगार के अवसर सुलभ होने चाहिए। जनसंख्या की स्थिति विस्फोटक होने के कारण हमारे देश में बेरोजगारी विद्यमान है।

2. दोषपूर्ण शिक्षा-प्रणाली – हमारे देश की शिक्षा-पद्धति दोषपूर्ण है। यह शिक्षा रोजगारमूलक नहीं है, जिससे शिक्षित बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। प्रतिवर्ष लगभग 10 लाख शिक्षित व्यक्ति बेरोजगारों की पंक्ति में सम्मिलित हो जाते हैं।

3. लघु एवं कुटीर उद्योगों का पतन – मशीनों का प्रयोग बढ़ने तथा देश में औद्योगीकरण के कारण हस्तकला तथा लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास मन्द हो गया है या प्रायः पतन हो गया है, जिससे बेरोजगारी में वृद्धि होती जा रही है।

4. त्रुटिपूर्ण नियोजन – यद्यपि भारत में सन् 1951 से आर्थिक नियोजन के द्वारा देश का आर्थिक विकास किया जा रहा है, परन्तु पाँचवीं पंचवर्षीय योजना तक नियोजन में रोजगारमूलक नीति नहीं अपनायी गयी, जिसके कारण बेरोजगारों की संख्या बढ़ती गयी। आठवीं पंचवर्षीय योजना में सरकार का ध्यान इस समस्या की ओर गया। अतः त्रुटिपूर्ण नियोजन भी बेरोजगारी के लिए उत्तरदायी है।।

5. पूँजी-निर्माण एवं निवेश की धीमी गति – हमारे देश में पूँजी-निर्माण की गति धीमी है। पूँजी निर्माण की धीमी गति के कारण पूँजी-निवेश भी कम ही हो पाया है, जिसके कारण उद्योग-धन्धों का विस्तार वांछित गति से नहीं हो पा रहा है। भारत में बचत एवं पूँजी निवेश में कमी के कारण बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हुई है।

6. आधुनिक यन्त्रों एवं मशीनों का प्रयोग – स्वचालित मशीनों एवं कम्प्यूटरों के प्रयोग से श्रमिकों की माँग कम होती जा रही है। उद्योग व कृषि के क्षेत्र में भी यन्त्रीकरण बढ़ रहा है। औद्योगीकरण के साथ-साथ यन्त्रीकरण एवं अभिनवीकरण में भी वृद्धि हो रही है, जिसके कारण बेरोजगारी में वृद्धि हो रही है।

7. व्यक्तियों में उचित दृष्टिकोण का अभाव – हमारे देश में शिक्षित एवं अशिक्षित सभी नवयुवकों का उद्देश्य नौकरी प्राप्त करना है। श्रम के प्रति निष्ठावान न होने के कारण वे स्वतः उत्पादन प्रक्रिया में भागीदार नहीं होना चाहते हैं। वे कोई व्यवसाय नहीं करना चाहते हैं। इस कारण भी बेरोजगारी बढ़ती जा रही है।

8. शरणार्थियों का आगमन – भारत में बेरोजगारी में वृद्धि का एक कारण शरणार्थियों का आगमन भी है। देश-विभाजन के समय, बाँग्लादेश युद्ध के समय तथा श्रीलंका समस्या उत्पन्न होने से भारी संख्या में शरणार्थी भारत में आये हैं, साथ ही गत वर्षों में भारत के मूल निवासियों को कुछ देशों द्वारा निकाला जा रहा है। इन देशों में ब्रिटेन, युगाण्डा, कीनिया आदि प्रमुख हैं। वहाँ से भारतीय मूल के निवासी भारत आ रहे हैं, जिसके कारण बेरोजगारों की संख्या में वृद्धि होती जा रही है।

9. कृषि की अनिश्चितता – भारत एक कृषि-प्रधान देश है। अधिकांश व्यक्ति कृषि पर ही निर्भर हैं। भारतीय कृषि प्रकृति पर निर्भर है। प्रतिवर्ष कभी सूखा और कभी बाढ़, कभी अतिवृष्टि और कभी अनावृष्टि व अन्य प्राकृतिक प्रकोप आते रहते हैं, जिसके कारण लाखों श्रमिक बेरोजगार हो जाते हैं। कृषि की अनिश्चितता के कारण रोजगार में भी अनिश्चितता बनी रहती है। इस कारण बेरोजगारी बढ़ जाती है।

10. एक व्यक्ति द्वारा अनेक व्यवसाय – भारतीय श्रमिक कृषि-कार्य के साथ-साथ अन्य व्यवसाय भी करते हैं। इस कारण भी बेरोजगारी में वृद्धि होती है।

11. आर्थिक विकास की धीमी गति – भारत में बेरोजगारी में वृद्धि का एक कारण आर्थिक विकास की धीमी गति रही है। अभी भी देश के प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण दोहन नहीं हो पाया है। इस कारण रोजगार के साधनों का वांछित विकास नहीं हो पाया है।

बेरोजगारी निवारण के उपाय

यद्यपि बेरोजगारी को पूर्ण रूप से समाप्त नहीं किया जा सकता, परन्तु कम अवश्य किया जा सकता है। बेरोजगारी की समस्या के समाधान हेतु निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं

1. जनसंख्या-वृद्धि पर नियन्त्रण – भारत में बेरोजगारी को कम करने के लिए सबसे पहले देश की जनसंख्या को नियन्त्रित करना होगा। परिवार नियोजन का राष्ट्रीय स्तर पर प्रचार, सन्तति निरोध की सरल, सुरक्षित तथा व्यावहारिक विधियाँ इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम सिद्ध होंगी।

2. आर्थिक विकास को तीव्र गति प्रदान करना – देश का आर्थिक विकास तीव्र गति से करना चाहिए। प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण दोहन करके रोजगार के अवसरों में वृद्धि की जा सकती है।

3. शिक्षा – प्रणाली में परिवर्तन – शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। आज की शिक्षा व्यवसाय मूलक होनी चाहिए। शिक्षा को रोजगार से सम्बद्ध कर देने से बेरोजगारी की समस्या कुछ सीमा तक स्वतः ही हल हो जाएगी। देश की नयी शिक्षा-नीति में इस ओर विशेष ध्यान दिया गया है।

4. लघु एवं कुटीर उद्योग-धन्धों का विकास – आज की परिस्थितियों में यह आवश्यक हो गया है कि देश में योजनाबद्ध आधार पर लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास किया जाए, क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है। अत: कृषि से सम्बन्धित उद्योगों के विकास की अधिक आवश्यकता है। इसके द्वारा प्रच्छन्न बेरोजगारी तथा मौसमी बेरोजगारी दूर करने में सहायता मिलेगी।

5. बचतों में वृद्धि की जाए – देश के आर्थिक विकास के लिए पूँजी की आवश्यकता होती है। पूँजी-निर्माण बचतों पर निर्भर रहता है। अत: बचतों में वृद्धि करने के लिए हर सम्भव प्रयत्न किये जाने चाहिए।

6. उद्योग-धन्धों का विकास- भारत में पूँजीगत, आधारभूत एवं उपभोग सम्बन्धी उद्योगों का विस्तार एवं विकास किया जाना चाहिए। भारत में श्रमप्रधान उद्योगों का अभाव है, कार्यरत उद्योगों की स्थिति भी अच्छी नहीं है। अत: रोगग्रस्त उद्योगों का उपचार आवश्यक है। मध्यम व छोटे पैमाने के उद्योगों की ओर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, क्योंकि अधिक बड़े उद्योगों की अपेक्षा मध्यम श्रेणी के उद्योगों में रोजगार के अवसर अधिक सुलभ हो सकते हैं।

7. विदेशी व्यापार में वृद्धि – भारत के निर्यात में वृद्धि करने की आवश्यकता है, क्योंकि वस्तुओं के अधिक निर्यात के द्वारा उत्पादन वृद्धि को प्रोत्साहन मिलेगी, जिससे बेरोजगारी की समस्या हल होगी।

8. मानव-शक्ति का नियोजन – हमारे देश में मानव-शक्ति का नियोजन अत्यन्त दोषपूर्ण है। अत: यह आवश्यक है कि वैज्ञानिक ढंग से मानव-शक्ति का नियोजन किया जाए, जिससे मॉग एवं पूर्ति के बीच समन्वय स्थापित किया जा सके।

9. प्रभावपूर्ण रोजगार – नीति – देश में बेरोजगारी की समस्या को हल करने के लिए प्रभावपूर्ण रोजगार-नीति अपनायी जानी चाहिए। स्वरोजगार कार्यक्रम का विकास एवं विस्तार किया जाना चाहिए। रोजगार कार्यालयों की कार्य-प्रणाली को प्रभावशाली बनाने की अधिक आवश्यकता है। भारत में आज भी बेरोजगारी से सम्बन्धित ठीक आँकड़े उपलब्ध नहीं हो पाते हैं, जिससे एक सबल और संगठित बेरोजगारी निवारण-नीति नहीं बन पाती है। अत: आवश्यकता यह है कि बेरोजगारी से सम्बन्धित सही आँकड़े एकत्रित किये जाएँ और उनके समाधान हेतु एक दीर्घकालीन योजना क्रियान्वित की जाए।

10. निर्माण-कार्यों का विस्तार – देश में निर्माण-कार्यो; जैसे – सड़कों, बाँधों, पुलों व भवन निर्माण आदि को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए, जिससे बेरोजगारों को रोजगार देकर बेरोजगारी को कम किया जा सके। निर्माण कार्यों के क्रियान्वयन से रोजगार के नये अवसर बढ़ेंगे तथा रोजगार के बढ़े हुए अवसर बेकारी उन्मूलन के कारगर उपाय सिद्ध होंगे।

प्रश्न 2:
निर्धनता और बेकारी दूर करने के शिक्षा के योगदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
निर्धनता वह दशा है जिसमें व्यक्ति अपर्याप्त आय या अविवेकपूर्ण व्यय के कारण अपने जीवन-स्तर को इतना ऊँचा रखने में असमर्थ होता है कि उसकी शारीरिक व मानसिक कुशलता बनी रह सके और न ही वह व्यक्ति तथा उस पर आश्रित वह समाज जिसका वह सदस्य है, निश्चित स्तर के अनुसार उपयोगी ढंग से कार्य कर पाते हैं। बेकारी या बेरोजगारी व्यक्ति की उस अवस्था का नाम है, जब कि वह काम तो करना चाहता है तथा काम करने के योग्य भी है, परन्तु उसे काम नहीं मिलता।
निर्धनता तथा बेरोजगारी को दूर करने के लिए अथक प्रयास किये जा रहे हैं, परन्तु आशातीत सफलता प्राप्त नहीं हो रही है। इन दोनों दोषों को दूर करने के प्रयासों में शिक्षा का योगदान सराहनीय है, जिसका विवरण निम्नवत् है

 1. शिक्षा एवं सीमित परिवार की अवधारणा – भारत जैसे देश के सम्मुख प्रमुख रूप से तीन समस्याएँ हैं – निधर्नता, जनसंख्या और बेरोजगारी। जनसंख्या विस्फोट का कारण अधिकांश भारतीयों को अशिक्षित तथा रूढ़िवादी होना है। शिक्षा हमें विवेकी बनाती है तथा सीमित परिवार की आवश्यकता, महत्त्व तथा लाभ को ज्ञान कराती है। आँकड़े बताते हैं कि शिक्षित दम्पति के परिवार छोटे आकार के हैं तथा वे निर्धनता तले दबे हुए नहीं हैं। वे पुत्र-पुत्री दोनों को समान रूप से महत्त्व देते हैं।

2.  शिक्षा एवं कर्मण्यता – अशिक्षित व्यक्ति अकर्मण्य होते हैं। अकर्मण्य व्यक्ति किसी प्रकार का कार्य करना पसन्द नहीं करते और ईश्वर भरोसे जीवन व्यतीत करते हैं। परिणाम होता है। निर्धनता तथा बेरोजगारी। शिक्षा मनुष्य को कर्मण्य बनाती है। कर्मण्य व्यक्ति कर्म में विश्वास करता है जो जीविकोपार्जन के लिए प्रयत्नशील रहता है। वह हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठता और निर्धनता व बेरोजगारी उसके पास नहीं फटकती।

3. शिक्षा एवं ज्ञान – अज्ञानी और अशिक्षित व्यक्ति उचित व अनुचित में अन्तर नहीं कर पाता और अपने उत्तरदायित्व को पहचानने में असमर्थ होता है। ऐसा व्यक्ति अपने पारिवारिक तथा सामाजिक कर्तव्यों का सम्पादन अपने विवेक के आधार पर नहीं बल्कि दूसरे व्यक्तियों के फुसलाने में आकर कर बैठता है। अज्ञानी व्यक्ति भेड़ के समान होता है जिसे कोई भी हाँककर ले जाता है। शिक्षा व्यक्ति को विवेकी और ज्ञानी बनाती है तथा उसे अपने परिवार के पालन-पोषण करने की राह पर ढकेलती है। वह अपने उत्तरदायित्वों को पूरा करने के लिए प्रयत्नशील रहता है।

4. शिक्षा एवं मितव्ययिता – शिक्षित व्यक्ति जितनी चादर उतने पैर पसारने में विश्वास करते हैं। अशिक्षित व रूढ़िवादी व्यक्ति की तरह वे कर्ज लेकर परिवार में जन्म-मरण या विवाह पर अनाप-शनाप खर्च नहीं करते जो निर्धनता का मुंह देखना पड़े। शिक्षित व्यक्ति सदैव प्राथमिकताएँ निश्चित करने के उपरान्त उपलब्ध धन का सदुपयोग करते हैं। बहुधा निर्धनता
उनसे कोसों दूर रहती है।

प्रश्न 3
भारत में शिक्षित बेकारी के कारणों की व्याख्या कीजिए। या। भारत में शिक्षित बेकारी के कारण तथा शिक्षित बेकारी को दूर करने के उपाय बताइए।
या
शिक्षित बेरोजगारी दूर करने के विभिन्न उपायों का विवेचन कीजिए। [2007, 09, 10, 11, 12]
उत्तर:
भारत में शिक्षित बेकारी के कारण
भारत में शिक्षित बेकारी के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं

1. शिक्षा-प्रणाली का दोषपूर्ण होना – विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों का मत है कि हमारी वर्तमान शिक्षा-प्रणाली अपने आपमें दोषपूर्ण है। हमारी शिक्षा प्रणाली के प्रारम्भ करने वाले अंग्रेज थे। उस काल में लॉर्ड मैकाले ने भारतीय शिक्षा को इस रूप में गठित किया था कि शिक्षा प्राप्त युवक अंग्रेजी शासन में क्लर्क या बाबू बन सकें। वही शिक्षा आज भी प्रचलित है। शिक्षित युवक कार्यालयों में बाबू बनने के अतिरिक्त और कुछ बन ही नहीं पाते। कार्यालयों में सीमित संख्या में ही भर्ती हो सकती है। इस स्थिति में अनेक शिक्षित नवयुवकों को बेरोजगार रह जाना अनिवार्य ही है।

2. विश्वविद्यालयों में छात्रों की अधिक संख्या – एक सर्वेक्षण के अनुसार, हमारे देश में विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों की संख्या बहुत अधिक है। ये छात्र प्रतिवर्ष डिग्रियाँ प्राप्त करके शिक्षित व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि करते हैं। इन सबके लिए रोजगार के समुचित अवसर उपलब्ध नहीं होते; अतः शिक्षित बेरोजगारी की समस्या बढ़ती ही जाती है।

3. व्यावसायिक शिक्षा की कमी – भारत में व्यावसायिक शिक्षा की पर्याप्त व्यवस्था एवं | सुविधा उपलब्ध नहीं है। यदि व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा की समुचित व्यवस्था हो तो शिक्षित बेरोजगारी की दर को नियन्त्रित किया जा सकता है।

4. शारीरिक श्रम के प्रति उपेक्षा का दृष्टिकोण – हमारे देश में शिक्षित बेरोजगारी की समस्या के दिन-प्रतिदिन बढ़ते जाने का एक कारण यह है कि हमारे अधिकांश शिक्षित नवयुवक, शारीरिक श्रम के प्रति उपेक्षा की दृष्टिकोण रखते हैं। ये नवयुवक इसलिए शारीरिक श्रम करना नहीं चाहते क्योंकि वे उसके प्रति हीनता का भाव रखते हैं। इस दृष्टिकोण के कारण वे उन सभी कार्यों को प्रायः अस्वीकार कर देते हैं, जो शारीरिक श्रम से जुड़े हुए होते हैं इससे बेरोजगारी की दर में वृद्धि होती जाती है।

5. सामान्य निर्धनता – शिक्षित नवयुवकों के बेरोजगार रह जाने का एक कारण हमारे देश में व्याप्त सामान्य निर्धनता भी है। अनेक नवयुवक धन के अभाव के कारण व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करने के उपरान्त भी अपना व्यवसाय प्रारम्भ नहीं कर पाते। इस बाध्यता के कारण वे निरन्तर नौकरी की ही खोज में रहते हैं व बेरोजगारों की संख्या में वृद्धि करते हैं।

6. देश में माँग तथा पूर्ति में असन्तुलन – हमारे देश में अनेक कारणों से कुछ इस प्रकार की स्थिति उत्पन्न हो गई है कि जिन क्षेत्रों में शिक्षित एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों की आवश्यकता है, वहाँ इस प्रकार के नवयुवक उपलब्ध नहीं है। इसके विपरीत, कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं जहाँ पर्याप्त संख्या में शिक्षित एवं प्रशिक्षित नवयुवक तो हैं परन्तु उनके लिए नौकरियाँ उपलब्ध नहीं है; अर्थात् उनकी आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार माँग एवं पूर्ति में असन्तुलन के कारण बेरोजगारी की स्थिति बनी रहती है।

भारत में शिक्षित बेकारी दूर करने के उपाय

भारत में शिक्षित बेकारी को दूर करने के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं

1. शिक्षा प्रणाली में आवश्यक सुधार – अंग्रेजों द्वारा भारत में प्रारम्भ की गयी शिक्षा प्रणाली दोषपूर्ण है। इस शिक्षा प्रणाली का पूर्णतया पुनर्गठन करना चाहिए तथा वर्तमान परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इसे अधिक-से-अधिक व्यवसायोन्मुख बनाया जाना चाहिए। इस प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् नवयुवक अपने स्वयं के व्यवसाय प्रारम्भ कर पाएँगे तथा
उन्हें नौकरी के लिए विभिन्न कार्यालयों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे।

2. लघु उद्योगों को प्रोत्साहन – शिक्षित बेरोजगारी को नियन्त्रित करने के लिए सरकार को चाहिए कि लघु उद्योगों को प्रोत्साहन दे। इन लघु उद्योगों को स्थापित करने के लिए शिक्षितयुवकों को प्रोत्साहित करना चाहिए तथा उन्हें आवश्यक सुविधाएँ भी उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

3. सरल ऋण व्यवस्था – शिक्षित नवयुवकों को अपना व्यवसाय स्थापित करने के लिए। सरकार द्वारा आसान शर्तों पर ऋण प्रदान करने की सुविधा प्रदान की जानी चाहिए। इससे धनाभाव के कारण शिक्षित नवयुवक व्यवसाय स्थापित करने से वंचित नहीं रह पाएँगे।

4. शारीरिक श्रम के प्रति अनुकूल दृष्टिकोण का विकास – हमारी शिक्षा-प्रणाली एवं पारिवारिक संस्कार इस प्रकार के होने चाहिए कि नवयुवकों में शारीरिक श्रम के प्रति किसी प्रकार की घृणा या उपेक्षा की भावना न हो। शारीरिक श्रम के प्रति अनुकूल दृष्टिकोण का विकास हो जाने पर शिक्षित युवक शारीरिक कार्यों के करने में किसी प्रकार का संकोच नहीं करेंगे; अतः उनका रोजगार-प्राप्ति का दायरा विस्तृत हो जाएगा तथा परिणामस्वरूप बेरोजगारी की दर घटेगी।

5. रोजगार सम्बन्धी विस्तृत जानकारी – शिक्षित नवयुवकों को रोजगारों से सम्बन्धित विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराई जानी चाहिए। युवकों को समस्त सम्भावित रोजगारों की जानकारी होनी चाहिए ताकि वे अपनी योग्यता, रुचि आदि के अनुकूल व्यवसाय को प्राप्त करने के लिए सही दिशा में प्रयास करें।

6. अन्य उपाय – उपर्युक्त उपायों के अतिरिक्त वे समस्त उपाय भी शिक्षित बेरोजगारी के उन्मूलन के लिए किए जाने चाहिए, जो देश में सामान्य बेरोजगारी को नियन्त्रित करने के लिए आवश्यक समझे जाते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
ग्रामीण क्षेत्रों में बेकारी पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्र में हमें कृषि में मौसमी एवं छिपी प्रकृति की बेकारी मिलती है। भारत की 72.22 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में रहती है और 64 प्रतिशत लोग किसी-न-किसी प्रकार से कृषि पर निर्भर हैं। कृषि में फसल बोने एवं काटने के समय कार्य की अधिकता रहती है और शेष समय में किसानों को बेकार बैठे रहना पड़ता है। रायल कमीशन का मत है कि “भारतीय कृषक 4 – 5 महीने ही कार्य करता है।” राधाकमल मुखर्जी के अनुसार, “उत्तर प्रदेश में किसान वर्ष में 200 दिन एवं जैक के अनुसार, बंगाल में पटसन की खेती करने वाले वर्ष में 4-5 माह ही कार्यरत रहते हैं।” डॉ० स्लेटर के अनुसार, “दक्षिण भारत के किसान वर्ष में 200 दिन ही कार्यरत रहते हैं।”

कुटीर व्यवसायों का अभाव, कृषि की मौसमी प्रकृति आदि के कारण ग्रामीणों को वर्ष-भर कार्य नहीं मिल पाता। हमारे यहाँ कृषि मजदूरों की संख्या करीब 475 लाख है, जो वर्ष में 200 दिन से भी कम समय तक कार्य करते हैं। यहाँ कृषि-योग्य भूमि के 15 से 20 प्रतिशत भाग पर ही एक से अधिक बार फसल उगायी जाती है। इसका अर्थ यह है कि यहाँ ऐसे व्यक्ति अधिक हैं जो वर्ष में 165 दिन बेकार रहते हैं। इसके अतिरिक्त भारतीय ग्रामों में अदृश्य बेकारी भी व्याप्त है। संयुक्त परिवार प्रणाली के कारण एक परिवार के सभी सदस्य भूमि के छोटे-छोटे टुकड़ों पर कृषि-कार्य करते हैं, जिनकी सीमान्त उत्पादकता शून्य होती है। यदि इनको कृषि से हटाकर अन्य व्यवसायों में लगा दिया जाए तो भी कृषि उत्पादन पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा। इन्हें हम अतिरिक्त श्रम की श्रेणी में रख सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बेकारी का प्रतिशत 40 आँका गया है।

प्रश्न 2
शिक्षित वर्ग में बेकारी पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
बेकारी केवल निरक्षरों एवं कम पढ़े-लिखे लोगों में ही नहीं, वरन् शिक्षित, बुद्धिमान एवं प्रबुद्ध लोगों में भी व्याप्त है। डॉक्टर, इन्जीनियर, तकनीकी विशेषज्ञ आदि जिन्हें भारत में काम नहीं मिलता, विदेशों में चले जाते हैं और जो विदेशों में शिक्षा ग्रहण कर यहाँ आते हैं, उन्हें यहाँ उपयुक्त कार्य नहीं मिल पाता। लाल फीताशाही एवं आन्तरिक राजनीति से पीड़ित होकर वे पुनः विदेश चले जाते हैं। शिक्षित बेकारों में उन्हीं लोगों को सम्मिलित किया जाता है जो मैट्रिक या उससे अधिक शिक्षा ग्रहण किये हुए हैं। शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ शिक्षित बेकारी में भी वृद्धि होती गयी, क्योंकि आधुनिक शिक्षा छात्रों को रोजी-रोटी के लिए तैयार नहीं करती। शिक्षित व्यक्ति केवल वेतनभोगी सेवाएँ ही पसन्द करते हैं। उच्च शिक्षा सस्ती होने के कारण जब तक नौकरी नहीं मिलती विद्यार्थी पढ़ते रहते हैं। भारत में अधिकांश शिक्षित बेरोजगार पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र में केन्द्रित हैं।

प्रश्न 3
बेकारी को दूर करने में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम की क्या भूमिका रही है ?
उत्तर
ग्रामीण गरीबी, बेकारी एवं अर्द्ध-बेकारी को समाप्त करने के लिए यह योजना प्रारम्भ की गयी है। इसका उद्देश्य ग्रामीण लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान कर गरीब वर्ग में आय एवं उपभोग का पुनर्वितरण करना है। यह योजना अक्टूबर, 1980 ई० से प्रारम्भ की गयी है। इसमें केन्द्र और राज्य सरकारें आधा-आधा खर्च उठाती हैं। इसके अन्तर्गत नये रोजगार के अवसर पैदा करना, समुदाय में स्थायी सम्पत्ति का निर्माण करना तथा ग्रामीण गरीबों के पोषाहार के स्तर को ऊँचा उठाना तथा प्रत्येक ग्रामीण भूमिहीन श्रमिक परिवार के कम-से-कम एक सदस्य को वर्ष में 100 दिन का रोजगार देने की गारण्टी देना आदि लक्ष्य रखे गये हैं। इसमें 50 प्रतिशत धन कृषि मजदूरों एवं सीमान्त कृषकों के लिए एवं 50 प्रतिशत ग्रामीण गरीबों पर खर्च किया जाता है।

इस योजना के अन्तर्गत काम करने वाले मजदूरों को न्यूनतम वेतन अधिनियम के आधार पर भुगतान किया जाता है तथा कुछ भुगतान नकद वे कुछ अनाज के रूप में किया जाता है। इससे ग्रामों में रोजगार के अवसर बढ़े, लोगों के पोपहार स्तर में सुधार हुआ तथा गाँवों में सड़कों, स्कूल एवं पंचायत के भवनों आदि का निर्माण हुआ। बाद में, इस कार्यक्रम को जवाहर रोजगार योजना में मिला दिया गया। वर्तमान में इस योजना को जवाहर ग्राम समृद्धि योजना के रूप में संचालित किया जा रहा है।

प्रश्न 4
निर्धनता और बेकारी दूर करने में आरक्षण नीति कहाँ तक सफल रही है? [2007, 13]
उत्तर
निर्धनता और बेकारी दूर करने में आरक्षण नीति आंशिक रूप से ही सफल हो पाई है। इसका प्रमुख कारण यह है कि सरकार द्वारा निर्धनता और बेकारी दूर करने हेतु जो आरक्षण नीति बनाई गई है उसका लाभ वांछित लोगों तक नहीं पहुँच पाता है। अनेक अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि सभी अनुसूचित जातियाँ इन नीतियों का लाभ नहीं उठा पाई हैं। कुछ जातियों को इसका लाभ अधिक हुआ है तथा. इसी के परिणामस्वरूप आज निर्धनता एवं बेकारी की स्थिति से निकल कर अपनी सामाजिक-आर्थिक एवं शैक्षिक स्थिति में उल्लेखनीय सुधार कर पाए हैं। आरक्षण नीति की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि इसका लाभ उन लोगों तक पहुँचाने का प्रयास किया जाए जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।

प्रश्न 5
बेकारी के चार प्रमुख लक्षण क्या हैं ? [2015]
उत्तर:
बेकारी के चार प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं।

  1.  इच्छा – किसी भी व्यक्ति को बेकार उस समय कहेंगे जब वह काम करने की इच्छा रखता हो और उसे काम न मिले। साधु, संन्यासी और भिखारी को हम बेकार नहीं कहेंगे, क्योंकि वे शारीरिक दृष्टि से योग्य होते हुए भी काम करना नहीं चाहते।।
  2. योग्यता – काम करने की इच्छा ही पर्याप्त नहीं है, वरन् व्यक्ति में काम करने की शारीरिक एवं मानसिक योग्यता भी होनी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति बीमार, वृद्ध या पागल होने के कारण कार्य करने योग्य नहीं है तो उसे काम करने की इच्छा होते हुए भी बेकार नहीं कहेंगे।
  3. प्रयत्न – व्यक्ति को कार्य पाने के लिए प्रयत्न करना भी आवश्यक है। प्रयत्न के अभाव में योग्य एवं इच्छा रखने वाले व्यक्तियों को भी बेकार नहीं कह सकते।
  4.  योग्यता के अनुसार पूर्ण कार्य – व्यक्ति जिस पद एवं कार्य के योग्य है वह उसे मिलना चाहिए। उससे कम मिलने पर उसे हम आंशिक रोजगार प्राप्त व्यक्ति कहेंगे। जैसे-डॉक्टर को कम्पाउण्डर का या इन्जीनियर को ओवरसीयर का काम मिलता है तो यह आंशिक बेकारी की स्थिति है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
भारत में बेरोजगारी के दो कारणों का विश्लेषण कीजिए। [2015]
उत्तर:
भारत में बेरोजगारी के दो कारण निम्नलिखित हैं

  1. तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या – भारत में जनसंख्या 2.5% प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रही है, जब कि रोजगार के अवसरों में इस दर से वृद्धि नहीं हो रही है। जनसंख्या वृद्धि-दर के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष लगभग 50 लाख व्यक्तियों को रोजगार के अवसर सुलभ ” होने चाहिए। जनसंख्या की स्थिति विस्फोटक होने के कारण हमारे देश में बेरोजगारी विद्यमान है।
  2. दोषपूर्ण शिक्षा-प्रणाली – हमारे देश की शिक्षा-पद्धति दोषपूर्ण है। यह शिक्षा रोजगारमूलक नहीं है, जिससे शिक्षित बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। प्रतिवर्ष लगभग 10 लाख शिक्षित व्यक्ति
    बेरोजगारी की पंक्ति में सम्मिलित हो जाते हैं।

प्रश्न 2:
स्वरोजगार योजना के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
यह योजना 15 अगस्त, 1983 को घोषित दूसरी योजना है, जो शहरी पढ़े-लिखे उन बेरोजगारों के लिए है जिनकी उम्र 18 से 35 के मध्य है तथा जो हाईस्कूल या इससे अधिक शिक्षित हैं। इस योजना के अन्तर्गत या शिक्षित बेरोजगारी दूर करने के ₹ 35 हजार तक किसी भी बेरोजगार शहरी पढ़े-लिखे व्यक्ति को बैंकों के माध्यम से दिये जा सकते हैं जो स्वयं कोई काम करना चाहते हैं। इसके लिए चुनाव जिला उद्योग कार्यालयों द्वारा किया जाता है। इस योजना का उद्देश्य 2 से 2.5 लाख बेरोजगार पढ़े-लिखे युवकों को प्रतिवर्ष रोजगार देना है।

प्रश्न 3
बेकारी दूर करने के चार उपाय लिखिए।
या
शिक्षित बेरोजगारी दूर करने के कोई दो उपाय बताइए। [2016]
उत्तर:
बेकारी दूर करने के चार उपाय निम्नलिखित हैं

  1.  सरकार द्वारा उचित योजनाएँ बनाकर बेकारी की समस्या का समाधान किया जा सकता है।
  2.  कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास किया जाए।
  3. जहाँ पर श्रम-शक्ति अधिक है, वहाँ पर मशीनों के प्रयोग को प्रमुखता न दी जाए।
  4. शिक्षा-प्रणाली में सुधार करके उसे व्यवसायोन्मुख बनाया जाए।

निश्चित उत्तीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
बेकारी के तीन स्वरूपों के नाम बताइए।
उत्तर:
बेकारी के तीन स्वरूपों के नाम हैं-मौसमी, चक्रीय तथा आकस्मिक बेकारी।

प्रश्न 2
सर्दियों में बर्फ के कारखाने बन्द हो जाने के परिणामस्वरूप बेकार हुए मजदूर किस प्रकार की बेकारी का उदाहरण हैं ?
उत्तर:
मौसमी बेकारी।

प्रश्न 3
जवाहर ग्राम समृद्धि योजना का मुख्य लक्ष्य क्या है ?
उत्तर:
जवाहर ग्राम समृद्धि योजना का मुख्य लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्रों में बेकार और अर्द्ध-बेकार लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना है।

प्रश्न 4
किन दो कार्यक्रमों को मिलाकर जवाहर रोजगार योजना प्रारम्भ की गयी थी ?
उत्तर:
1 अप्रैल, 1989 से, ‘राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम तथा ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम’ को मिलाकर ‘जवाहर रोजगार योजना प्रारम्भ की गयी।

प्रश्न 5
‘भूमि सेना से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
उत्तर प्रदेश सरकार ने बेरोजगारी समाप्त करने के लिए भूमि सेना’ योजना प्रारम्भ की है। ‘भूमि सैनिक’ को जमीन पर वृक्ष लगाने के लिए सरकार द्वारा बैंक से ऋण दिया जाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न ( 1 अंक)

प्रश्न 1
निम्नलिखित में से किस व्यक्ति को आप बेकार कहेंगे ?
(क) एक पागल व्यक्ति जो कहीं भी नौकरी नहीं करता
(ख) गाँव का एक अशिक्षित किसान जिसे प्रयत्न करने पर भी काम नहीं मिल रहा है।
(ग) धनी परिवार का एम० ए० पास पुत्र जिसकी किसी भी काम में कोई रुचि नहीं है।
(घ) एक संन्यासी।

प्रश्न 2
यदि कारखाने के दोषपूर्ण प्रबन्ध के कारण कारखाना बन्द हो जाने से हजारों श्रमिक बेरोजगार हो जाते हैं, तो ऐसी बेरोजगारी को कहा जाएगा
(क) आकस्मिक बेरोजगारी
(ख) प्रबन्धकीय बेरोजगारी
(ग) नगरीय बेरोजगारी
(घ) औद्योगिक बेरोजगारी

प्रश्न 3
जब कार्यालयों व कारखानों में आवश्यकता से अधिक व्यक्तियों द्वारा काम करने के कारण
उन्हें अपनी योग्यता से कम पारिश्रमिक मिलता है, तब इसे कहा जाता है
(क) औद्योगिक बेरोजगारी
(ख) अर्द्ध-बेरोजगारी
(ग) नगरीय बेरोजगारी
(घ) अनियोजित बेरोजगारी

प्रश्न 4
निम्नलिखित में से किस एक दशा को बेरोजगारी का सामाजिक परिणाम नहीं कहा जाएगा?
(क) परिवार में तनाव
(ख) राजनीतिक भ्रष्टाचार
(ग) मानसिक तनाव
(घ) नैतिक पतन की सम्भावना

प्रश्न 5
बेकारी का प्रत्यक्ष परिणाम क्या है ? [2013, 14]
(क) एक विवाह
(ख) नगरीकरण
(ग) संयुक्त परिवार
(घ) निर्धनता

प्रश्न 6
निम्नांकित में से कौन भारत में गरीबी का कारण नहीं है? [2011, 12]
(क) अशिक्षा
(ख) भाषाई संघर्ष
(ग) बेरोजगारी
(घ) प्राकृतिक विपत्तियाँ

प्रश्न 7
निम्नलिखित में से कौन-सी दशा भारत में शैक्षिक बेरोजगारी का कारण है ?
(क) दोषपूर्ण शिक्षा-प्रणाली
(ख) तकनीकी शिक्षा-सुविधाओं की कमी
(ग) माँग और पूर्ति का असन्तुलन
(घ) शिक्षित युवकों में नौकरी के प्रति अधिक आकर्षण

प्रश्न 8
अत्यधिक निर्धन परिवार के बेरोजगार ग्रामीण युवकों को विभिन्न व्यवसायों का प्रशिक्षण देने तथा इसके लिए आर्थिक सहायता देने वाला सरकार का विशेष कार्यक्रम है
(क) सीमान्त कृषक रोजगार कार्यक्रम
(ख) रोजगार गारण्टी कार्यक्रम
(ग) भूमिहीन श्रमिक रोजगार कार्यक्रम
(घ) स्वरोजगार कार्यक्रम

प्रश्न 9
बँधुआ मजदूर प्रथा’ का कानून द्वारा उन्मूलन करने का प्रयास कब किया गया ?
(क) सन् 1976 में
(ख) सन् 1978 में
(ग) सन् 1986 में
(घ) सन् 1991 में

उत्तर:
1. (ख) गाँव का एक अशिक्षित किसान जिसे प्रयत्न करने पर भी काम नहीं मिल रहा है,
2. (घ) औद्योगिक बेरोजगारी,
3. (ख) अर्द्ध-बेरोजगारी,
4. (ख) राजनीतिक भ्रष्टाचार,
5. (घ) निर्धनता,
6. (ख) भाषाई संघर्ष,
7. (ख), तकनीकी शिक्षा-सुविधाओं की कमी,
8. (घ) स्वरोजगार कार्यक्रम,
9. (क) सन् 1976 में।

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