UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 15 Role of Women Entrepreneurship in Social Development

 UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 15 Role of Women Entrepreneurship in Social Development, free PDF download of UP Board Solutions for prepared by experts in such a way that they explain each and every concept in a simple and easily understandable manner.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Sociology
Chapter Chapter 15
Chapter Name Role of Women Entrepreneurship in Social Development (सामाजिक विकास में महिला उद्यमिता की भूमिका)
Number of Questions Solved 21
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 15 Role of Women Entrepreneurship in Social Development (सामाजिक विकास में महिला उद्यमिता की भूमिका)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
महिला उद्यमिता से आपका क्या आशय है ? सामाजिक विकास में महिला उद्यमिता की भूमिका की समीक्षा कीजिए। [2009, 10, 15, 16]
या
सामाजिक पुनर्निर्माण में महिला उद्यमियों के योगदान का क्या महत्त्व है ? [2011]
या
भारत में सामाजिक विकास के क्षेत्र में महिलाओं के योगदान की विवेचना कीजिए। [2010, 11]
या
सामाजिक विकास में महिला उद्यमिता का महत्त्व दर्शाइए। [2014, 16]
या
महिला उद्यमिता तथा सामाजिक विकास को आप एक-दूसरे से कैसे सम्बन्धित करेंगे ? भारत में महिला सशक्तीकरण पर एक निबन्ध लिखिए। [2011, 14]
या
उद्यमिता से आप क्या समझते हैं? अपने देश के सामाजिक विकास में महिला उद्यमिता के महत्त्व को समझाइए। [2012, 13]
या
महिला उद्यमिता एवं सामाजिक विकास का विश्लेषण कीजिए। [2015]
उत्तर:
महिला उद्यमिता से आशय
नारी समाज का एक महत्त्वपूर्ण और अभिन्न अंग है। वर्तमान काल में उसकी भूमिका बहुआयामी हो गयी है। वह परिवार, समाज, धर्म, राजनीति, विज्ञान और प्रौद्योगिकी से लेकर व्यवसाय और औद्योगिक क्षेत्र में अपनी पूरी भागीदारी निभा रही है। आज एक उद्यमी के रूप में उसका विशेष योगदान है। औद्योगिक और व्यावसायिक क्षेत्र में अब नारी पुरुष के समकक्ष है। व्यवसाय और उद्योग को नारी की सूझबूझ और कौशल ने नयी दिशाएँ प्रदान की हैं।

उद्यमिता शब्द की व्युत्पत्ति उद्यमी’ शब्द से हुई है। उद्यमिता का अर्थ किसी व्यवसाय या उत्पादन-कार्य में लाभ-हानि के जोखिम को वहन करने की क्षमता है। प्रत्येक व्यवसाय या उत्पादनकार्य में कुछ-न-कुछ जोखिम या अनिश्चितता अवश्य होती है। यदि व्यवसायी या उत्पादक इस जोखिम का पूर्वानुमान लगाकर ठीक से कार्य करता है तो उसे लाभ होता है अन्यथा उसे हानि भी हो सकती है। किसी भी व्यवसाय के लाभ-हानि को जोखिम अथवा अनिश्चितता ही उद्यमिता कहलाती है। इसे वहन करने वाले को; चाहे वह स्त्री हो या पुरुष; ‘उद्यमी’ या ‘साहसी’ कहते हैं। विभिन्न समाजशास्त्रियों ने उद्यमी को निम्नलिखित रूप से परिभाषित किया है

शुम्पीटर के अनुसार, “एक उद्यमी वह व्यक्ति है जो देश की अर्थव्यवस्था में उत्पादन की किसी नयी विधि को जोड़ता है, कोई ऐसा उत्पादन करता है जिससे उपभोक्ता पहले से परिचित न हो। किसी तरह के कच्चे माल के नये स्रोत अथवा नये बाजारों की खोज करता है अथवा अपने अनुभवों के आधार पर उत्पादन के नये तरीकों को उपयोग में लाता है।

नॉरमन लॉन्ग के अनुसार, “कोई भी व्यक्ति जो उत्पादन के साधनों के द्वारा नये रूप में लाभप्रद ढंग से आर्थिक क्रिया करता है, उसे एक उद्यमी कहा जाएगा।” उद्यमी की उपर्युक्त परिभाषाओं के प्रकाश में महिला उद्यमी की परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है कि “महिला उद्यमी वह स्त्री है जो एक व्यावसायिक या औद्योगिक इकाई का संगठन

तथा संचालन करती है और उसकी उत्पादन-क्षमता को बढ़ाने का प्रयास करती है। इस प्रकार महिला उद्यमिता से आशय, “किसी महिला की उस क्षमता से है, जिसका उपयोग करके वह जोखिम उठाकर किसी व्यावसायिक अथवा औद्योगिक इकाई को संगठित करती है तथा उसकी उत्पादनक्षमता बढ़ाने का भरपूर प्रयास करती है।” वास्तव में, महिला उद्यमिता वह महिला व्यवसायी है, जो व्यवसाय के संगठन व संचालन में लगकर जोखिम उठाने के कार्य करती है। भारत में महिला उद्यमिता से आशय किसी नये उद्योग के संगठन और संचालन से लगाया जाता है।

सामाजिक विकास में महिला उद्यमिता की भूमिका
सामाजिक विकास से अभिप्राय उस स्थिति से है, जिसमें समाज के व्यक्तियों के ज्ञान में वृद्धि हो और व्यक्ति प्रौद्योगिकीय आविष्कारों के कारण प्राकृतिक पर्यावरण पर अपना नियन्त्रण स्थापित कर ले तथा आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर हो जाए। समाज का विकास करने में सभी वर्गों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। यदि महिलाएँ इसमें सक्रिय योगदान नहीं देतीं, तो समाज में विकास की गति अत्यन्त मन्द हो जाएगी।

महिलाएँ विविध रूप से सामाजिक विकास में योगदान दे सकती हैं। इनमें से एक अत्यन्त नवीन क्षेत्र, जिस पर अब भी पुरुषों का ही अधिकार है, उद्यमिता का है। प्रत्येक व्यवसाय या उत्पादनकार्य में कुछ जोखिम या अनिश्चितता होती है। इस जोखिम व अनिश्चितता की स्थिति को वहन करने की क्षमता को उद्यमिता कहते हैं और इसे सहन करने वाली स्त्री को महिला उद्यमिता कहते हैं।

भारतीय समाज में महिला उद्यमिता की अवधारणा एक नवीन अवधारणा है, क्योंकि परम्परागत रूप से व्यापार तथा व्यवसायों में महिलाओं की भूमिका नगण्य रही है। वास्तव में, पुरुष प्रधानता एवं स्त्रियों की परम्परागत भूमिका के कारण ऐसा सोचना भी एक कल्पना मात्र था। ऐसा माना जाता था कि आर्थिक जोखिमों से भरपूर जीवन केवल पुरुष ही झेल सकता है, परन्तु आज भारतीय महिलाएँ इस जोखिम से भरे जीवन में धीरे-धीरे सफल और सबल कदम रखने लगी हैं। नगरों में आज सफल या संघर्षरत महिला उद्यमियों की उपस्थिति दृष्टिगोचर होने लगी है।

दिल्ली नगर के निकटवर्ती क्षेत्रों में महिला व्यवसायियों और उद्यमियों में से 40% ने गैरपरम्परागत क्षेत्रों में प्रवेश करके सबको आश्चर्यचकित कर दिया है। ये क्षेत्र हैं

  1. इलेक्ट्रॉनिक,
  2. इन्जीनियरिंग,
  3. सलाहकार सेवा,
  4. रसायन,
  5. सर्किट ब्रेकर,
  6.  एम्प्लीफायर, ट्रांसफॉर्मर, माइक्रोफोन जैसे उत्पादन,
  7.  सिले-सिलाये वस्त्र उद्योग,
  8.  खाद्य-पदार्थों से सम्बन्धित उद्योग,
  9. आन्तरिक घरेलू सजावट के व्यवसाय तथा
  10.  हस्तशिल्प व्यवसाय।

बिहार जैसे औद्योगिक रूप से पिछड़े राज्य में भी करीब 30 से 50 महिला उद्यमी हैं, जिनमें से दो तो राज्य के चैम्बर ऑफ कॉमर्स की सदस्या भी रही हैं। उत्तरी भारत में भी महिला उद्यमियों की संख्या बढ़ रही है। सरकार और निजी संस्थानों द्वारा इन्हें पर्याप्त सहायता और प्रोत्साहन भी दिये जा रहे हैं।
पर्याप्त आँकड़े न उपलब्ध हो पाने के कारण महिला उद्यमियों की बदलती हुई प्रवृत्ति के आयामों और सामाजिक विकास में इनकी भूमिका का पता लगाना कठिन है, परन्तु महानगरों में यह परिवर्तन स्पष्ट देखा जा सकता है और पहले की अपेक्षाकृत छोटे नगरों में भी अब इनकी झलक स्पष्ट दिखायी देने लगी है।

सामाजिक पुनर्निर्माण में महिला उद्यमियों का योगदान (महत्त्व)
सामाजिक विकास में महिला उद्यमिता के योगदान का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के माध्यम से किया जा सकता है

1. आर्थिक क्षेत्र में योगदान – महिला उद्यमिता उत्पादन में वृद्धि करके राष्ट्रीय आय में वृद्धि करती है। व्यवसाय और उद्योगों की आय बढ़ने से प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है, जिससे आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त होता है। इस प्रकार महिला उद्यमिता राष्ट्र के आर्थिक क्षेत्र में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देकर राष्ट्र का नवनिर्माण कर रही है।

2. रोजगार के अवसरों में वृद्धि – महिला उद्यमिता द्वारा जो व्यवसाय, उद्योग तथा प्रतिष्ठान स्थापित किये जाते हैं उनमें कार्य करने के लिए अनेक व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। इनमें लगकर महिलाएँ तथा पुरुष रोजगार प्राप्त करते हैं। भारत जैसे विकासशील देशों में महिला उद्यमिता का यह योगदान बहुत ही उपयोगी सिद्ध हो रहा है।

3. उत्पादन में वृद्धि – भारत में महिला उद्यमिता की संख्या लगभग 18 करोड़ है। यदि यह समूचा समूह उत्पादन में लग जाए तो राष्ट्र के सकल उत्पादन में भारी वृद्धि होने लगेगी। यह उत्पादक श्रम निर्यात के पर्याप्त माल जुटाकर राष्ट्र को विदेशी मुद्रा दिलाने में भी सफल हो सकता है। इस प्रकार राष्ट्र की सम्पन्नता में इनकी भूमिका अनूठी कही जा सकती है।

4. सामाजिक कल्याण में वृद्धि – महिला उद्यमिता द्वारा उद्योगों और व्यवसायों में उत्पादन बढ़ाने से वस्तुओं के मूल्य कम हो जाएँगे। उनकी आपूर्ति बढ़ने से जनसामान्य के उपभोग में वृद्धि होगी। उपभोग की मात्रा बढ़ने से नागरिकों के रहन-सहन का स्तर ऊँचा उठेगा, जो सामाजिक कल्याण में वृद्धि करने में अभूतपूर्व सहयोग देगा।

5. स्त्रियों की दशा में सुधार – भारतीय समाज में नारी को आज भी हीन दृष्टि से देखा जाता है। आर्थिक दृष्टि से वे आज भी पुरुषों पर निर्भर हैं। महिला उद्यमिता महिलाओं को क्रियाशील बनाकर उन्हें आर्थिक क्षेत्र में सबलता प्रदान करती है। महिला उद्यमिता समाज में एक स्वस्थ वातावरण का निर्माण करके महिला-कल्याण और आर्थिक चेतना का उदय कर सकती है। इस प्रकार महिलाओं की दशा में सुधार लाने में इसकी भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकती

6. विकास कार्यक्रमों में सहायक – महिला उद्यमिता राष्ट्र के विकास-कार्यों में अपना अभूतपूर्व योगदान दे सकने में सहायक है। बाल-विकास, स्त्री-शिक्षा, परिवार कल्याण, स्वास्थ्य तथा समाज-कल्याण के क्षेत्र में इसका अनूठा योगदान रहा है।

7. नवीन कार्यविधियों का प्रसार – परिवर्तन और विकास के इस युग में उत्पादन की नयी-नयी विधियाँ और तकनीक आ रही हैं। महिला उद्यमिता ने व्यवसाय और उद्योगों को नवीनतम कार्य-विधियाँ तथा तकनीकी देकर अपना योगदान दिया है। उत्पादन की नवीनतम विधियों ने स्त्रियों के परम्परावादी विचारों को ध्वस्त कर उन्हें नया दृष्टिकोण प्रदान किया है।

8. आन्तरिक नेतृत्व का विकास – व्यवसाय तथा उद्योगों में लगी महिलाओं को गलाघोटू स्पर्धाओं से गुजरना पड़ता है। इससे उनमें आत्मविश्वास और आन्तरिक नेतृत्व की भावना बलवती होती है। यह नेतृत्व सामाजिक संगठन, सामुदायिक एकता और राष्ट्र-निर्माण में सहायक होता है। नैतिकता के मूल्यों पर टिका नेतृत्व समाज की आर्थिक और राजनीतिक दशाओं को बल प्रदान करता है। महिला उद्यमिता समाज में आन्तरिक नेतृत्व का विकास करके स्त्री जगत् में नवचेतना और जागरूकता का प्रचार करती है।

प्रश्न 2
भारतीय समाज में कामगार स्त्रियों की परिस्थिति में हो रहे परिवर्तनों को बताइए। [2011, 16]
या
समाज में कामकाजी महिलाओं की परिस्थिति में हो रहे परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए। [2015]
या
भारत में महिला उद्योग किन क्षेत्रों में विकसित हो रहा है ?
उत्तर:
कामगार स्त्रियों की परिस्थितियों में हो रहे परिवर्तन
आधुनिक युग में भारत में महिला उद्यमिता को पर्याप्त प्रोत्साहन मिला है। अब महिला उद्यमियों को केवल समान अधिकार ही प्राप्त नहीं हैं, बल्कि कुछ अतिरिक्त सुविधाएँ भी प्रदान की गयी हैं। उदाहरण के लिए, महिला उद्यमियों को प्रत्येक विभाग में मातृत्व-अवकाश की अतिरिक्त सुविधा उपलब्ध है। सरकार द्वारा निजी उद्योग या व्यवसाय स्थापित करने के लिए भी महिलाओं को अतिरिक्त सुविधाएँ एवं अनुदान प्रदान किये जाते हैं। इन सुविधाओं के कारण तथा सामान्य दृष्टिकोण के परिवर्तित होने के परिणामस्वरूप भारत में महिला उद्यमिता के क्षेत्र में तेजी से वृद्धि हुई है। आज लगभग प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं का सक्रिय योगदान है। शिक्षित एवं प्रशिक्षित महिलाएँ जहाँ सरकारी, अर्द्ध-सरकारी तथा गैर-सरकारी प्रतिष्ठानों में विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं, वहीं अनेक महिलाओं ने निजी प्रतिष्ठान भी स्थापित किये हैं। अनेक महिलाएँ सिले-सिलाये वस्त्रों के आयातनिर्यात का कार्य कर रही हैं, प्रकाशन संस्थानों का संचालन कर रही हैं, रेडियो तथा टेलीविजन बनाने वाली इकाइयों का कार्य कर रही हैं।

एक सर्वेक्षण के अनुसार नगरों में महिलाएँ जिन व्यवसायों तथा कार्यों से मुख्य रूप से सम्बद्ध हैं, वे निम्नलिखित हैं।

  1. स्कूलों व कॉलेजों/विश्वविद्यालयों में शिक्षण कार्य।
  2.  अस्पतालों में डॉक्टर तथा नर्स का कार्य।
  3.  सामाजिक कार्य।
  4. कार्यालयों एवं बैंकों में नौकरी सम्बन्धी कार्य।
  5. टाइपिंग तथा स्टेनोग्राफी सम्बन्धी कार्य।
  6. होटलों व कार्यालयों में स्वागती (Receptionist) का कार्य।
  7. सिले-सिलाए वस्त्र बनाने के कार्य।
  8. खाद्य पदार्थ बनाने, संरक्षण एवं डिब्बाबन्दी के कार्य।
  9. आन्तरिक गृह-सज्जा सम्बन्धी कार्य।
  10. हस्तशिल्प जैसे परम्परागत व्यवसाय।
  11. ब्यूटी पार्लर तथा आन्तरिक सजावट उद्योग।
  12. घड़ी निर्माण तथा इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग।
  13. पत्रकारिता, मॉडलिंग एवं विज्ञापन क्षेत्र।
  14. इंजीनियरिंग उद्योग।
  15. रसायन उद्योग आदि।

भारत में महिला उद्यमिता निरन्तर बढ़ रही है। सन् 1988 में किये गये एक सर्वेक्षण से ज्ञात हुआ है कि दिल्ली तथा आसपास के क्षेत्र में महिला व्यावसायियों तथा उद्यमियों में से लगभग 40% महिलाओं ने गैर-परम्परागत व्यवसायों का वरण किया है। भारत सरकार भी महिला उद्यमियों को आर्थिक तथा तकनीकी सहायता प्रदान कर रही है। भारत में जितने भी बड़े घराने हैं उनकी महिलाएँ अब महिला उद्यमिता के रूप में रुचि लेकर प्रमुख भूमिका निभाने लगी हैं। पहले महिला उद्यमी कुटीर उद्योग तथा लघु उद्योगों के साथ ही जुड़ी थीं, परन्तु अब वे बड़े पैमाने के संगठित उद्योगों में भी अपनी सहभागिता जुटाने लगी हैं। वर्तमान समय में महिला उद्यमियों ने गुजरात में सोलर कुकर बनाने, महाराष्ट्र में ढलाई-उद्योग चलाने, ओडिशा में टेलीविजन बनाने तथा केरल में इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण बनाने में विशेष सफलता प्राप्त की है।

1983 ई० में महिला उद्यमिता से सम्बन्धित प्रशिक्षण सुविधाएँ प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय संस्थान’ की स्थापना की गयी थी। अनेक राज्यों में वित्तीय निगम, हथकरघा विकास बोर्ड तथा जिला उद्योग केन्द्र महिला उद्यमियों को ऋण तथा अनुदान देने की व्यवस्था कर रहे हैं। महिला उद्यमियों द्वारा उत्पादित वस्तुएँ सस्ती और श्रेष्ठ होती हैं, जो महिला उद्यमिता की सफलता और उपयोगिता की प्रतीक हैं।

भारत में महिला उद्यमियों के विषय में अलग से आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं। इसीलिए महिला उद्यमियों की परिवर्तित प्रवृत्ति के विषय में तथा इनके विस्तार के विषय में कुछ भी कह पाना कठिन है। हाँ, इतना अवश्य है कि आज महानगरों तथा नगरों में महिला उद्यमियों के परिवर्तित लक्षण स्पष्ट दिखाई देने लगे हैं। आज महिला को प्रत्येक क्षेत्र में कार्यरत देखा जा सकता है।

प्रश्न 3
भारत में महिला उद्यमिता को प्रोत्साहित करने वाले उपायों की चर्चा कीजिए। [2010, 11, 12]
उत्तर:
महिला उद्यमिता को प्रोत्साहित करने हेतु उपाय
जब हम भारत में महिला उद्यमिता के विकास के प्रश्न पर विचार करते हैं तो पाते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था में स्त्रियों की सहभागिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से उन्हें शिक्षा और प्रशिक्षण के माध्यम से तथा सुगम-ऋण, कच्चे माल की सप्लाई, माल के विपणन की तथा अन्य सुविधाएँ देकर उनकी क्षमता को बढ़ाया जा रहा है। इस कार्य में केन्द्रीय समाज-कल्याण मण्डल अग्रणी रहा है। यह मण्डल स्वयंसेवी संगठनों को स्त्रियों के लिए आय उपार्जन हेतु इकाई स्थापित करने में तकनीकी और आर्थिक सहायता देता है। महिला और बाल-विकास विभाग स्त्रियों को खेती, डेयरी, पशुपालन, मछली-पालन, खादी और ग्रामोद्योग, हथकरघा, रेशम प्रयोग के लिए प्रशिक्षण देने की कार्य योजनाओं, ऋण विपणन तथा तकनीकी सुविधा देकर उनकी सहायता करता है। विभाग की अन्य योजनाओं के अन्तर्गत कमजोर वर्ग की महिलाओं को इलेक्ट्रॉनिक्स घड़ियाँ तैयार करने, कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग, छपाई और जिल्दसाजी, हथकरघा, बुनाई जैसे आधुनिक उद्योगों में प्रशिक्षण दिया जाता है।

कृषि मन्त्रालय स्त्रियों को कृषक प्रशिक्षण केन्द्र के माध्यम से भू-संरक्षण, डेयरी विकास आदि में प्रशिक्षण प्रदान करता है। समन्वित ग्रामीण विकास योजना की एक उपयोजना ग्रामीण क्षेत्रों में महिला और बाल-विकास कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य स्त्रियों को समूहों में संगठित करना, उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण और रोजी-रोटी कमाने में सहायता देना है।

श्रम मन्त्रालय ऐसे स्वयंसेवी संगठनों को सहायता देता है जो महिलाओं को रोजी-रोटी कमाने वाले व्यवसायों का प्रशिक्षण देते हैं। राष्ट्रीय और छ: क्षेत्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थाओं द्वारा महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। महिलाओं के लिए विभिन्न राज्यों में अलग से औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (I.T.I.) चलाए जा रहे हैं। खादी और ग्रामोद्योग निगम ने भी अपने संस्थान में प्रबन्ध कार्य में महिलाओं को सम्मिलित करने के उपाय किये हैं।

सहकारी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर महिलाओं को शामिल करने के उद्देश्य से उनके लिए अलग से दुग्ध सहकारी समितियाँ चलायी जा रही हैं। जवाहर रोजगार योजना के अन्तर्गत लाभ प्राप्तकर्ताओं में 30 प्रतिशत महिलाएँ होंगी। अनेक राज्यों में महिला विकास निगम’ (W.D.C.) स्थापित किये गये हैं, जो महिलाओं को तकनीकी परामर्श देने तथा बैंक और अन्य वित्तीय संस्थाओं से ऋण दिलाने एवं बाजार की सुविधा दिलाने का प्रबन्ध करेंगे। महिलाओं में उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए औद्योगिक विकास विभाग उन्हें शेड और भूखण्ड देने की सुविधा देता है। हाल ही में महिला उद्यमियों को परामर्श देने के लिए अलग से एक व्यवसाय संचालन खोला गया है। जिनकी प्रधान एक महिला अधिकारी होती है। राष्ट्रीय स्तर पर एक स्थायी समिति गठित की गई है जो महिलाओं के उद्यमशीलता के विकास हेतु सरकार को सुझाव देगी। लघु उद्योग संस्थानों और देशभर में फैली उनकी शाखाओं की मार्फत उद्यमशीलता विकास कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है।

‘राष्ट्रीय उद्यमशीलता संस्थान और लघु व्यवसाय विकास द्वारा महिलाओं के लिए प्रशिक्षण शुरू किया गया है। लघु उद्योग विकास संगठन 1983 ई० से सर्वोत्तम उद्यमियों को राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करता है। शिक्षित बेरोजगारों को अपना उद्योग-धन्धा शुरू करने की योजना में महिलाओं को प्राथमिकता दी जाएगी। छोटे-छोटे उद्योगों में स्त्रियों की सहभागिता को बढ़ाने के लिए महिला औद्योगिक सहकारी समितियों को गठित किया गया। इन समितियों के प्रयत्नों के परिणामस्वरूप स्त्रियों ने मधुमक्खियों को पालने, हाथ से चावल कूटने व देशी तरीके से तेल निकालने आदि के उद्योग प्रारम्भ किये। इन प्रयत्नों के बावजूद प्रगति नहीं हुई। भारत में वर्ष 1973 को ‘अन्तर्राष्ट्रीय महिला वर्ष’ के रूप में मनाया गया। उस समय स्त्रियों की प्रस्थिति का मूल्यांकन करने के उद्देश्य से एक राष्ट्रीय समिति का गठन किया गया। इस समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखकर ही सातवीं पंचवर्षीय योजना में एक ओर महिला रोजगार को प्रमुखता दी गयी और दूसरी ओर उद्योग की एक ऐसी सूची भी तैयार की गयी जिनके संचालन का कार्य महिलाओं को सौंपने की बात कही गयी। इस सूची में वर्णित उद्योगों में महिलाओं को प्राथमिकता दी गयी।

वर्तमान में भारत में महिलाओं द्वारा चलायी जाने वाली औद्योगिक इकाइयों की संख्या 4,500 से अधिक है। इनमें से केवल केरल में 800 से अधिक इकाइयों का संचालन महिलाओं द्वारा किया जा रहा है। आज तो महिला उद्यमिता का क्षेत्र काफी विस्तृत हो गया है। महिला उद्यमियों द्वारा चलाये जाने वाले प्रमुख उद्योग इस प्रकार हैं-इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, रबड़ की वस्तुएँ, सिले हुए वस्त्र, माचिस, मोमबत्ती तथा रासायनिक पदार्थ, घरेलू उपकरण आदि। महिलाओं को उद्योग लगाने की दृष्टि से प्रोत्साहित करने हेतु सरकार वित्तीय सहायता और अनुदान तो देती ही है, साथ ही इन उद्योगों में निर्मित वस्तुओं की बिक्री में भी सहायता करती है।

उद्यमिता से सम्बन्धित प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से 1983 ई० में राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना की गयी। इस संस्थान द्वारा महिला उद्यमियों के प्रशिक्षण पर विशेष जोर दिया गया। महिला उद्यमियों को विभिन्न राज्यों में प्रोत्साहन देने के लिए वित्तीय निगम, जिला उद्योग केन्द्र एवं हथकरघा विकास बोर्ड भी स्थापित किये गये हैं। साधारणतः यह पाया गया है कि महिलाओं द्वारा संचालित उद्योगों में श्रमिक एवं मालिकों के बीच सम्बन्ध अपेक्षाकृत अधिक मधुर हैं एवं उत्पादित वस्तुएँ तुलनात्मक दृष्टि से अधिक अच्छी हैं। इससे स्पष्ट है कि भारत में महिला उद्यमिता सफल होती जा रही है।
इन सभी उपायों का एक नतीजा यह निकला है कि काफी संख्या में स्त्रियाँ न केवल पारिवारिक उद्योगों को चलाने में सहयोग दे रही हैं, वरनु वे स्वयं अपने उद्योग-धन्धे चला रही हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
महिला उद्यमिता की परिभाषा देते हुए भारत में इसके वर्तमान स्वरूप का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अक्षर महिला उद्यमी वह स्त्री है जो एक व्यावसायिक या औद्योगिक इकाई का संगठनसंचालन करती है और उसकी उत्पादन-क्षमता को बढ़ाने का प्रयास करती है। दूसरे शब्दों में, महिला उद्यमिता से आशय किसी महिला की उस क्षमता से है, जिसका उपयोग करके वह जोखिम उठाकर किसी व्यावसायिक अथवा औद्योगिक इकाई को संगठित करती है तथा उसकी उत्पादनक्षमता बढ़ाने का भरपूर प्रयास करती है।”
वास्तव में, महिला उद्यमिता वह महिला व्यवसायी है जो व्यवसाय के संगठन व संचालन में लगकर जोखिम उठाने के कार्य करती है। भारत में महिला उद्यमिता से आशय किसी नये उद्योग के संगठन और संचालन से लगाया जाता है।

महिला उद्यमिता का वर्तमान स्वरूप

वर्तमान युग में नारी की स्थिति में महत्त्वपूर्ण सुधार हुआ है। शिक्षा-प्रसार के लिए लड़कियों की शिक्षा को अनिवार्य बनाया गया और हाईस्कूल तक की शिक्षा को नि:शुल्क रखा गया। बालिकाओं के अनेक विद्यालय खोले गये। सह-शिक्षा का भी खूब चलन हुआ। स्त्रियाँ सार्वजनिक चुनावों में निर्वाचित होकर एम० एल० ए०, एम० पी० तथा मन्त्री और यहाँ तक कि प्रधानमन्त्री भी होने लगी हैं। उन्हें पिता की सम्पत्ति में भाइयों के बराबर अधिकार प्राप्त करने की कानूनी छूट मिली है। पति की क्रूरता के विरोध में या मनोमालिन्य हो जाने पर तलाक प्राप्त करने का भी वैधानिक अधिकार उन्हें प्रदान किया गया है। विधवा-विवाह की पूरी छूट हो गयी है; हालाँकि व्यवहार में अभी इनका चलन कम है।

उन्हें कानून के द्वारा सभी अधिकार पुरुषों के बराबर प्राप्त हो गये हैं। आज स्त्रियाँ सभी सेवाओं में जिम्मेदारी के पदों पर कार्य करते हुए देखी जा सकती हैं; जैसे-डॉक्टर, इन्जीनियर, वकील, शिक्षिका, लिपिक, अफसर इत्यादि। बाल-विवाहों पर कठोर प्रतिबन्ध लग गया है। पर्दा-प्रथा काफी हद तक समाप्त हो गयी है। युवक समारोहों, क्रीड़ा समारोहों और राष्ट्रीय खेलों में उनका सहभाग बढ़ा है। वे पढ़ने, नौकरी करने और टीमों के रूप में विदेश भी जाने लगी हैं। अन्तर्जातीय विवाह बढ़े हैं। हिन्दुओं में बहुपत्नी-प्रथा पर रोक लग गयी है। अन्तर्साम्प्रदायिक विवाह भी होने लगे हैं। स्त्रियों को अपने जीवन का रूप निर्धारित करने की अधिक स्वतन्त्रता मिली है।
उपर्युक्त सुधार नगरों में अधिक मात्रा में हुए हैं। गाँवों में अब भी अशिक्षा, अन्धविश्वास, रूढ़िवादिता, पर्दा-प्रथा, परम्पराओं, दरिद्रता व पिछड़ेपन का ही बोलबाला है। इन सुधारों का गाँवों की स्त्रियों की परिस्थितियों पर बहुत कम प्रभाव पड़ा है।

प्रश्न 2
भारत में महिला उद्यमियों के मार्ग में क्या बाधाएँ हैं ? [2010]
उत्तर:
हमारे देश में स्त्रियाँ सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं के कारण विकासात्मक गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग नहीं ले पाती हैं, जब कि देश की लगभग आधी जनसंख्या महिलाओं की है। लोगों की आम धारणा है कि स्त्रियाँ अपेक्षाकृत कमजोर होती हैं और उन्हें व्यक्तित्व के विकास के समुचित अवसर नहीं मिल पाते। इसलिए वे शिक्षा, दक्षता, विकास और रोजगार के क्षेत्र में पिछड़ गयी हैं। भारत में महिला उद्यमिता के मार्ग में प्रमुखत: दो प्रकार की बाधाएँ या समस्याएँ हैं – प्रथम, सामाजिक-सांस्कृतिक समस्याएँ व द्वितीय, आर्थिक समस्याएँ।।

  1. सामाजिक-सांस्कृतिक समस्याएँ – महिला उद्यमिता के क्षेत्र में सामाजिक-सांस्कृतिक समस्याएँ हैं–परम्परागत मूल्य, पुरुषों द्वारा हस्तक्षेप सामाजिक स्वीकृति तथा प्रोत्साहन का अभाव।।
  2. आर्थिक समस्याएँ – महिला उद्यमिता के मार्ग में आने वाली प्रमुख आर्थिक कठिनाइयाँ हैं – पंजीकरण एवं लाइसेन्स की समस्या, वित्तीय कठिनाइयाँ, कच्चे माल का अभाव, तीव्र । प्रतिस्पर्धा एवं बिक्री की समस्या। इसके अतिरिक्त महिला उद्यमियों को अनेक अन्य बाधाओं का भी सामना करना पड़ता है; यथा – सृजनता व जोखिम मोल लेने की अपेक्षाकृत कम क्षमता, प्रशिक्षण को अभाव, सरकारी बाबुओं व निजी क्षेत्र के व्यापारियों द्वारा उत्पन्न अनेक कठिनाइयाँ आदि।

प्रश्न 3
महिला उद्यमिता को कैसे प्रोत्साहित किया जा सकता है ? [2007]
उत्तर:
महिला उद्यमिता को प्रोत्साहित करने हेतु कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं

  1. महिला उद्यमिता को प्रोत्साहन देने के लिए यह आवश्यक है कि सरकार के द्वारा कुछ ऐसे उद्योगों की सूची तैयार की जाए जिनके लाइसेन्स केवल महिलाओं को ही दिये जाएँ। ऐसा होने पर महिलाएँ बाजार की प्रतिस्पर्धा से बच सकेंगी।
  2. महिलाएँ जिन उद्योगों को स्थापित करना चाहें, उनके सम्बन्ध में उन्हें पूरी औद्योगिक जानकारी दी जानी चाहिए। स्त्रियों को आय प्रदान करने वाले व्यवसायों का प्रशिक्षण दिया जाए।
  3.  महिला औद्योगिक सहकारी समितियों का गठन किया जाए जिससे कम पूँजी में महिलाओं द्वारा उद्योगों की स्थापना की जा सके।
  4.  ऋण सम्बन्धी प्रक्रिया को सरल बनाया जाना चाहिए तथा सुगमता से कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
  5.  महिला उद्यमियों को सरकारी एजेन्सी द्वारा आसान शर्तों पर कच्चा माल उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
  6. इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि महिला उद्यमियों द्वारा जो वस्तुएँ उत्पादि। की जाएँ, वे अच्छी किस्म की हों जिससे प्रतिस्पर्धा में टिक सकें।
  7.  महिला उद्यमियों को अपने द्वारा उत्पादित वस्तुओं को बेचने की समस्या का सामना करना पड़ता है। यदि सरकार स्वयं महिला उद्यमियों से कुछ निर्धारित मात्रा में माल खरीद ले तो उनके माल की बिक्री भी हो सकेगी तथा उन्हें तीव्र प्रतिस्पर्धा से भी बचाया जा सकेगा।

प्रश्न 4
भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
भारत में वैदिक और उत्तर-वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति पुरुषों के बराबर रही है। तथा उन्हें पुरुषों के समान ही सब अधिकार प्राप्त रहे हैं। धीरे-धीरे पुरुषों में अधिकार-प्राप्ति की लालसा बढ़ती गयी। परिणामस्वरूप स्मृति काल, धर्मशास्त्र काल तथा मध्यकाल में इनके अधिकार छिनते गये और इन्हें परतन्त्र, निस्सहाय और निर्बल मान लिया गया। परन्तु समय ने पलटा खाया। अंग्रेजी शासनकाल में देश में राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में जागृति आने लगी। समाज-सुधारकों एवं नेताओं का ध्यान स्त्रियों की दशा सुधारने की ओर गया। यहाँ पिछले कुछ वर्षों में स्त्रियों की स्थिति में काफी सुधार हुआ है।

विवेकानन्द ने कहा है – ‘स्त्रियों की अवस्था में सुधार हुए बिना विश्व के कल्याण का कोई दूसरा मार्ग नहीं हैं। यदि स्त्री-समाज निर्बल रहा तो हमारा सामाजिक ढाँचा भी निर्बल रहेगा, हमारी सन्तानों का विकास नहीं होगा, समाज में सामंजस्य स्थापित नहीं होगा, देश का विकास अधूरा रहेगा, स्त्रियाँ पुरुषों पर बोझ बनी रहेंगी, देश के विकास में 56 प्रतिशत जनता की भागीदारी नहीं होगी तथा देश में स्त्री-सम्बन्धी अपराधों में वृद्धि होगी। अतः भारत में महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता है।

प्रश्न 5
महिला उद्यमिता के नारी उत्थान पर होने वाले लाभ बताइए। [2009, 10, 11, 12]
या
महिला उद्यमिता एवं नारी उत्थान एक-दूसरे के पूरक हैं। व्याख्या कीजिए। [2015]
उत्तर:
महिला उद्यमिता के नारी उत्थान पर निम्नलिखित लाभ हैं।

1. आत्मनिर्भरता – महिला उद्यमिता के कारण महिलाएँ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हुई हैं, इससे अन्य कार्यों के लिए भी इनकी पुरुष सदस्यों पर निर्भरता कम हुई है।
2. जीवन स्तर में सुधार – परम्परागत संयुक्त परिवारों में महिलाओं की शिक्षा-स्वास्थ्य इत्यादि आवश्यकताओं पर कम ध्यान दिया जाता था, जिससे इनका जीवन स्तर निम्न था। महिला उद्यमिता के कारण इनके जीवन स्तर में गुणात्मक सुधार हुआ है।
3. नेतृत्व क्षमता का विकास – महिलाओं द्वारा उद्यम एवं व्यवसायों के संचालन से उनमें नेतृत्व क्षमता का विकास हुआ है, फलतः महिलाएँ सामाजिक-राजनीतिक क्षेत्रों में भी नेतृत्व सम्भालने लगी हैं।
4. सामाजिक समस्याओं में कमी – महिला उद्यमिता से महिलाओं की परिवार व समाज में स्थिति सुधरी है, इससे घरेलू हिंसा, बाल विवाह, पर्दा प्रथा जैसी महिला सम्बन्धी समस्याएँ कम होने लगी हैं।
5. नारी सशक्तिकरण – महिला उद्यमिता, महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही उनमें संचालन, नेतृत्व, संगठन आदि गुणों का विकास करती है, इससे नारी सशक्तिकरण को बल मिलता है। अत: इन सब कारणों से कहा जा सकता है कि महिला उद्यमिता तथा नारी उत्थान
एक-दूसरे के पूरक हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
डेविड क्लिलैण्ड ने उद्यमी की क्या परिभाषा दी है ?
उत्तर:
डेविड क्लिलैण्ड ने लिखा है कि “उद्यमी व्यक्ति वह है जो किसी व्यापारिक व औद्योगिक इकाई को संगठित करता है या उसकी उत्पादन-क्षमता बढ़ाने का प्रयत्न करता है।” भारतीय सन्दर्भ में उद्यमी की यह परिभाषा अधिक उपयुक्त मालूम पड़ती है, क्योंकि यहाँ अधिकांश उद्यमी किसी औद्योगिक इकाई को संगठित करते हैं, अपनी औद्योगिक इकाई की क्षमता व उत्पादन बढ़ाने का प्रयत्न करते हैं और लाभ कमाते हैं।

प्रश्न 2
देश की आर्थिक प्रगति में महिला उद्यमिता का क्या योग है ?
या
सामाजिक विकास में महिला उद्यमिता की भूमिका का उल्लेख कीजिए। [2008]
उत्तर:
इस देश में 25 वर्ष से 40 वर्ष की आयु समूह में आने वाली स्त्रियों की संख्या करीब 20 करोड़ है। इनमें से करीब 5 करोड़ स्त्रियाँ घरों में ही रहती हैं। इन 5 करोड़ में से अधिकांश स्त्रियाँ शिक्षित हैं। यदि इन सब स्त्रियों में उद्यमिता के प्रति रुचि उत्पन्न की जाए तो देश के कुल उत्पादन में काफी वृद्धि होगी। यदि इस महिला शक्ति का उद्यमिता के क्षेत्र में अधिकतम उपयोग किया जाए तो देश आर्थिक दृष्टि से काफी कुछ प्रगति कर सकता है। यदि महिला उद्यमिता को प्रोत्साहित किया जाए तो महिलाएँ उत्पादक-शक्ति के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में काफी योग दे सकती हैं।

प्रश्न 3
महिला उद्यमिता ने स्त्रियों में आत्मनिर्भरता का विकास किस प्रकार किया है?
उत्तर:
महिला उद्यमिता के जरिए वर्तमान में स्त्रियाँ देश की उत्पादन शक्ति में अहम योगदान कर रही हैं। इसके जरिए वे आर्थिक रूप से मजबूत हुई हैं तथा उनमें नवचेतना और जागरुकता का प्रसार हुआ है। साथ ही उत्पादन की नवीनतम विधियों ने स्त्रियों के परम्परावादी विचारों को ध्वस्त कर उन्हें नया दृष्टिकोण तथा आत्मविश्वास दिया है। इस प्रकार महिला उद्यमिता ने स्त्रियों में आत्मनिर्भरता का विकास किया है।

प्रश्न 4
महिलाओं को उद्यमिता के परामर्श से क्या उनमें आत्मनिर्भरता का विकास हुआ है?
उत्तर:
अनुभव यह बताता है कि आर्थिक अधिकारों से वंचित होने के कारण ही स्त्रियों पर समय-समय पर अनेक प्रकार की निर्योग्यताएँ लाद दी गयीं। यदि उद्योगों के क्षेत्र में स्त्रियों को आगे बढ़ने का अवसर दिया जाए तो उनमें आत्मविश्वास जाग्रत होगा, वे स्वतन्त्र रूप से निर्णय ले सकेंगी और आर्थिक दृष्टि से उनको पुरुषों की कृपा पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। तात्पर्य यह है कि आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर होने पर स्त्रियाँ सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में भी अपनी स्थिति को ऊँचा उठा सकेंगी। स्त्रियों की आर्थिक आत्मनिर्भरता उनके लिए वरदान सिद्ध होगी और वे स्वयं सामाजिक विकास में बहुत कुछ योग दे सकेंगी।

प्रश्न 5
महिला उद्यमिता द्वारा पारिवारिक एवं सामाजिक समस्याओं का किस प्रकार निराकरण किया जा सकता है ? समझाइए।
उत्तर:
पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन से सम्बन्धित अधिकांश समस्याएँ किसी-न-किसी रूप में स्त्रियों से ही जुड़ी हुई हैं। इन समस्याओं की तह तक जाने पर पता चलता है कि इसका मुख्य कारण स्त्रियों का सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक अधिकारों से वंचित रहना है। जब महिला उद्यमिता को प्रोत्साहित किया जाएगा तो इसके परिणामस्वरूप स्त्रियाँ आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनेगी और वे कई महत्त्वपूर्ण निर्णय स्वयं ले सकेंगी। विधवा पुनर्विवाह की संख्या बढ़ेगी, पर्दाप्रथा समाप्त होगी और पुरुषों के द्वारा सामान्यत: स्त्रियों का शोषण नहीं किया जा सकेगा। आज आवश्यकता इस बात की है कि स्त्रियों में सामाजिक एवं आर्थिक चेतना का विकास किया जाए।

प्रश्न 6
एक सफल महिला उद्यमी के किन्हीं दो सामाजिक गुणों पर प्रकाश डालिए। [2012 ]
उत्तर:
1. नेतृत्व कुशलता – नेतृत्व कुशलता सफल उद्यमता का गुण हैं। प्रत्यक सफल उद्यमी महिला इस गुण से परिपूर्ण होती है तथा उद्योग में लगे हुए कर्मचारियों एवं श्रमिकों को अधिक-से-अधिक लगनपूर्वक कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
2. हम की भावना – सफल उद्यमी में ‘हम’ की भावना अत्यधिक प्रबल होती है। वह स्वयं के स्थान पर संगठन को प्राथमिकता देता है। प्रत्येक सफल महिला उद्यमी में भी यह भावना उसके श्रेष्ठ गुण के रूप में दिखाई देती है।

निश्चित उत्तीय प्रश्न ( 1 अंक)

प्रश्न 1
महिला उद्यमिता को क्या तात्पर्य है ? [2008, 09, 11]
उत्तर:
महिला उद्यमिता का तात्पर्य महिलाओं द्वारा किये जाने वाले किसी नये उद्योग के संचालन तथा व्यवस्था से है।

प्रश्न 2
देश की अर्थव्यवस्था में स्त्रियों की सहभागिता को बढ़ावा देने में कौन-सी संस्था अग्रणी रही है ?
उत्तर:
देश की अर्थव्यवस्था में स्त्रियों की सहभागिता को बढ़ावा देने में केन्द्रीय समाजकल्याण बोर्ड अग्रणी रहा है।

प्रश्न 3
महिला और बाल-विकास विभाग स्त्रियों को प्रशिक्षण देने की कौन-सी कार्य योजनाएँ तैयार करता है ?
उत्तर:
महिला और बाल-विकास विभाग स्त्रियों को खेती, डेयरी, पशुपालन, मछली-पालन, खादी और ग्रामोद्योग, हथकरघा, रेशम उद्योग के लिए प्रशिक्षण देने की कार्य-योजनाएँ तैयार करता है।

प्रश्न 4
महिला उद्यमियों द्वारा चलाये जाने वाले प्रमुख उद्योग कौन-से हैं ?
उत्तर:
महिला उद्यमियों द्वारा चलाये जाने वाले प्रमुख उद्योग इस प्रकार हैं – इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, रबड़ की वस्तुएँ, सिले हुए वस्त्र, माचिस, मोमबत्ती, रासायनिक पदार्थ, घरेलू उपकरण आदि।

प्रश्न 5
राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना क्यों की गयी ?
उत्तर:
राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना स्त्रियों को उद्यमिता से सम्बन्धित प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से की गयी।

प्रश्न 6
‘आँगन महिला बाजार’ क्या है ?
उत्तर:
महिलाओं को उद्यम क्षेत्र में बढ़ावा देने के लिए 1986 ई० में देश में सर्वप्रथम आँगन महिला बाजार की स्थापना की गयी। महिलाएँ इस उद्यम के द्वारा निर्मित अचार, चटनी, घरेलू उपयोग की वस्तुएँ, पौधों की नर्सरी, फोटोग्राफी के सामानों का विक्रय करती हैं।

प्रश्न 7
भारत में ‘अन्तर्राष्ट्रीय महिला वर्ष कब मनाया गया था ?
या
महिला सशक्तिकरण किस सन में प्रारम्भ हुआ? [2015]
उत्तर:
भारत में अन्तर्राष्ट्रीय महिला वर्ष 1973 ई० में मनाया गया था।

प्रश्न 8
जवाहर रोजगार योजना में महिलाओं को क्या विशेष लाभ दिया गया है ?
उत्तर:
जवाहर रोजगार योजना के अन्तर्गत लाभ प्राप्तकर्ताओं में 30 प्रतिशत महिलाओं को आरक्षण किया गया है।

बहुविकल्पीय प्रश्न ( 1 अंक)

प्रश्न 1
राष्ट्रीय संस्थान की स्थापना कब की गयी ?
(क) 1983 ई० में
(ख) 1984 ई० में
(ग) 1985 ई० में
(घ) 1986 ई० में

प्रश्न 2
उद्यमिता एक नव प्रवर्तनकारी कार्य है। यह स्वामित्व की अपेक्षा एक नेतृत्व कार्य हो।” यह परिभाषा किसने दी है? [2011]
(क) बी० आर० गायकवाड़
(ख) जोसेफ ए० शुम्पीटर
(ग) ए० एच० कोल
(घ) हिगिन्स

उत्तर:
1. (क) 1983 ई० में,
2. (ख) जोसेफ ए० शुम्पीटर।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 15 Role of Women Entrepreneurship in Social Development (सामाजिक विकास में महिला उद्यमिता की भूमिका) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 15 Role of Women Entrepreneurship in Social Development (सामाजिक विकास में महिला उद्यमिता की भूमिका), drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

error: Content is protected !!
Scroll to Top