UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 11 White Collar Crime

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Sociology
Chapter Chapter 11
Chapter Name White Collar Crime (श्वेतवसन अपराध)
Number of Questions Solved 28
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sociology Chapter 11 White Collar Crime (श्वेतवसन अपराध)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
भारत में श्वेतवसन अपराध पर एक लेख लिखिए। [2011, 12]
या
श्वेतवसन अपराध से आप क्या समझते हैं ? इसके कारणों का वर्णन कीजिए। [2009, 11, 16]
या
श्वेतवसन अपराध क्या है ? श्वेतवसन अपराध के कुछ उदाहरण दीजिए। [2011]
या
याश्वेतवसन अपराध से आप क्या समझते हैं ? भारत में श्वेतवसन अपराध के उत्तरदायी कारकों को समझाइए। [2012, 14, 15]
या
श्वेतवसन अपराध से आप क्या समझते हैं ? भारतीय समाज में यह किन-किन रूपों में प्रचलित है? [2009]
या
भ्रष्टाचार श्वेतवसन अपराध का स्रोत है।” स्पष्ट कीजिए। [2016]
या
श्वेतवसन अपराध किसे कहते हैं ? किन-किन क्षेत्रों को यह अधिक प्रभावित करता है ? [2010]
या
श्वेतवसन अपराध की विशेषताएँ बताइए। [2016]
या
भारत में श्वेतवसन अपराध की समस्याओं पर प्रकाश डालिए। [2008]
या
श्वेतवसन अपराध को परिभाषित करते हुए भारत में श्वेतवसन अपराध पर निबन्ध लिखिए। [2012, 14]
या
श्वेतवसन (सफेदपोश) अपराध का क्या अर्थ है? भारत में इसके लिए उत्तरदायी मुख्य कारकों की विवेचना कीजिए। [2015]
या
श्वेतवसन अपराध के कारणों की विवेचना कीजिए। [2017]
या
श्वेतवसन (सफेदपोश) अपराध की प्रकृति को व्यक्त कीजिए और इसके प्रमुख स्वरूपों का विवेचन कीजिए। [2016]
उत्तर:
श्वेतवसन अपराध वह अपराध होता है जो उच्च वर्ग के व्यक्तियों द्वारा किया जाता है, क्योंकि इन व्यक्तियों के पास धन की कोई कमी नहीं होती; अतः ये व्यक्ति अपराध करके धन की आड़ में बच निकलते हैं। अधिकांशतः बड़े-बड़े सरकारी अधिकारियों, राजनेताओं तथा पुलिस का इन्हें सहयोग भी मिलता रहता है। बड़े-बड़े उद्योगपति, उच्च राजकीय पदाधिकारी, वकील तथा डॉक्टर इस श्रेणी में आते हैं।

श्वेतवसन अपराध का अर्थ तथा परिभाषा

श्वेतवसन अपराध प्रतिष्ठित एवं उच्च सामाजिक पद वाले व्यक्तियों द्वारा किया जाने वाला अपराध है। इस संकल्पना का प्रयोग सर्वप्रथम सदरलैण्ड द्वारा किया गया। प्रमुख विद्वानों ने इसे निम्नलिखित रूप से परिभाषित किया है

  • सदरलैण्ड के अनुसार, “प्रतिष्ठित एवं उच्च सामाजिक पद के व्यक्ति के द्वारा अपने व्यवसाय के समय में किया गया अपराध ही श्वेतवसन अपराध है।”
  • हारटुंग के अनुसार, “श्वेतवसन अपराध वह अपराध है जो समाज के उच्च आर्थिक वर्ग से सम्बन्धित होता है और साधारणतया शिक्षित व्यक्ति द्वारा किया जाता है।”
  • क्लीनार्ड के अनुसार, “श्वेतवसन अपराध प्राथमिक रूप से उस कानून का उल्लंघन है, जो व्यवसायी, पेशेवर लोग और राजनीतिज्ञों आदि जैसे समूहों द्वारा अपने व्यवसाय के सम्बन्ध में किया जाता है।”
  • टैफ्ट के अनुसार, “श्वेतवसन अपराध का तात्पर्य उन सभी संगठित अपराधों से है, जो कानून भंग करने वाले विशेषज्ञ व्यक्ति अथवा समूह द्वारा अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए किये जाते

श्वेतवसन अपराध के लक्षण (विशेषताएँ)
सदरलैण्ड ने श्वेतवसन अपराध की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है

  1. श्वेतवसन अपराध उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त सामाजिक-आर्थिक वर्ग के व्यक्तियों के द्वारा किया गया अपराध है।
  2.  श्वेतवसन अपराध में कानून का उल्लंघन बड़ी चतुरता के साथ किया जाता है।
  3. श्वेतवसन अपराधी अपनी प्रतिष्ठा के कारण कानूनी दण्ड से बच जाता है तथा उसकी प्रतिष्ठा पर कोई आँच नहीं आती।
  4.  श्वेतवसन अपराध जनता के विश्वास की आड़ में किये जाते हैं। अतः यह विश्वासघात पर आधारित अपराध है। निर्धन किसानों का साहूकार लोग इसी प्रकार शोषण करते हैं।
  5.  अप्रत्यक्ष रूप से किये जाने के कारण श्वेतवसन अपराध का जनता द्वारा विरोध नहीं किया जाता है।
  6.  श्वेतवसन अपराध धनी वर्ग, उच्च सामाजिक व राजनीतिक पद प्राप्त व्यक्ति द्वारा ही सम्भव है।
  7.  श्वेतवसन अपराध समाज के लिए अधिक अहितकारी होते हैं।
  8.  श्वेतवसन अपराधियों का सरकार और शासन के संचालन में भी हाथ रहता है, जिसके कारण उन्हें पकड़ना तथा सजा दिलवाना सम्भव नहीं होता।
  9. श्वेतवसन अपराध आर्थिक क्षेत्र में अधिक होते हैं, जिनका उद्देश्य धन एकत्र करके विलासी जीवन बिताना होता है।
  10.  श्वेतवसन अपराध सामान्य समाज और उपसमूहों में पाये जाते हैं।
  11. यह अपराध नेताओं, चिकित्सकों, न्यायाधीशों, शिक्षाविदों, व्यापारियों तथा इन्जीनियरों द्वारा अधिक किया जाता है।
  12. श्वेतवसन अपराध सोच-समझकर यत्नपूर्वक किये जाते हैं। अतः इनका पता लगाना कठिन होता है।

श्वेतवसन अपराध के विभिन्न स्वरूप
समाज में आज श्वेतवसन अपराध के निम्नलिखित स्वरूप देखने को मिल रहे हैं

1. व्यापारिक क्षेत्र में श्वेतवसन अपराध – आज व्यापारिक जगत् में श्वेतवसन अपराध का बोलबाला है। लुभावने तथा झूठे विज्ञापन, पेटेण्ट, ट्रेडमार्क और कॉपीराइट का उल्लंघन, आर्थिक ठगी, सेल्स-टैक्स तथा आयकर की चोरी व श्रमिकों के साथ विश्वासघात व्यापारिक क्षेत्र में पनपने वाले श्वेतवसन अपराध हैं। भारत में व्यापारिक क्षेत्र में श्वेत अपराधों का बोलबाला है। शेयर निर्गत करने वाली कम्पनियाँ अपने शेयरों का मूल्य बढ़वाकर इसी प्रकार के अपराध में संलिप्त रहती हैं।

2. प्रशासनिक क्षेत्र में श्वेतवसन अपराध – प्रशासनिक क्षेत्र में सर्वाधिक श्वेतवसन अपराध होते हैं। उच्च अधिकार प्राप्त प्रशासनिक अधिकारी घूस लेकर, उपहार ग्रहण करके, ठेका छोड़कर, ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन कराकर, लाइसेन्स तथा परमिट देकर श्वेतवसन अपराधों में लिप्त रहते हैं। उत्तर प्रदेश में जनवरी 1987 ई० में आई० ए० एस० अधिकारियों के घरों पर लगे सी० बी० आई० के छापे इसका प्रत्यक्ष प्रेमोर्ण हैं। भारत में गैस एजेन्सी देने, शराब के ठेके छोड़ने, परम्परागत पत्र बनाने तथा निर्यात लाइसेन्स देने में अधिकारी भारी सुविधा शुल्क लेकर श्वेतवसन अपराध करते हैं।

3. न्याय के क्षेत्र में श्वेतवसन अपराध – आज श्वेतवसन अपराध से न्यायिक क्षेत्र भी अछूता नहीं रह गया है। वकील, न्यायाधीश तथा एटार्नी न्याय-क्षेत्र में श्वेतवसन अपराध करते हैं। झूठी गवाही, दुर्घटना करने वाले दोषी व्यक्तियों का बचाव व हत्या करने वालों को जमानत देकर न्यायाधीश श्वेतवसन अपराध को क्रियात्मक रूप देते हैं। अनेक प्रभावशाली व्यक्ति धन देकर मुकदमों का निर्णय अपने पक्ष में करा लेते हैं। वर्तमान समय में भारत में न्याय के क्षेत्र में श्वेतवसन अपराध का बोलबाला बढ़ गया है।

4. चिकित्सा के क्षेत्र में श्वेतवसन अपराध – श्वेतवसन अपराध से चिकित्सा जैसा पवित्र व्यवसाय भी वंचित नहीं है। डॉक्टर का प्रतिष्ठापूर्ण व्यवसाय रोगियों को नवजीवन प्रदान करने वाला माना जाता है। डॉक्टर द्वारा झूठा प्रमाण-पत्र, झूठी पोस्टमार्टम की रिपोर्ट, भ्रूणहत्या तथा उल्टे-सीधे ऑपरेशन करके फीस वसूलने के कार्य भारत में चिकित्सा के क्षेत्र में श्वेतवसन अपराध हैं।

5. शिक्षा के क्षेत्र में श्वेतवसन अपराध – भारत में शिक्षा जैसा आदर्श क्षेत्र भी श्वेतवसन अपराध से नहीं बचा है। झूठी डिग्रियाँ, डॉक्टर की उपाधियाँ, उत्तर-पुस्तिकाओं में अंकों की हेरा-फेरी, परीक्षा के प्रश्न-पत्र लीक कराना, फेल छात्रों को उत्तीर्ण करना तथा परीक्षा भवन में ठेके पर नकल कराना आदि शिक्षा के क्षेत्र में श्वेतवसन अपराध हैं।

श्वेतवसन अपराध के कारण
श्वेतवसन अपराध को जन्म देने वाले किसी एक कारण की ओर ही संकेत नहीं किया जा सकता, श्वेतवसन अपराध को अनेक कारण प्रोत्साहित करते हैं। श्वेतवसन अपराध के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हैं

1. अत्यधिक वर्ग चेतना – सदरलैण्ड के अनुसार, अत्यधिक वर्ग चेतना और सामाजिक स्थिति के बारे में जागरूकता सफेदपोश अपराध का मुख्य कारण है। पहले से ही उच्च वर्ग के व्यक्ति अपनी स्थिति को सुदृढ़ बनाये रखने के लिए अपने व्यवसाय की आड़ में अधिकाधिक धनोपार्जन करने के लिए प्रेरित होते हैं।

2. सामाजिक विभेदीकरण व आर्थिक असमानता – टैफ्ट तथा हारटुंग जैसे विद्वानों के अनुसार, श्वेतवसन अपराध सामाजिक विभेदीकरण वाले समाजों में ही अधिकतर होते हैं। सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक असमानता वाले समाजों में उच्च वर्ग के साथ-साथ मध्य स्तरीय व्यक्ति भी श्वेतवसन अपराध द्वारा लोगों को ठगने लगते हैं। जालसाजी, झूठा विज्ञापन, धोखाधड़ी, चोर-बाजारी आदि अपराध ऐसे समाजों में इसीलिए अधिक पनपते हैं।

3. पूँजीवादी व्यवस्था –  पूँजीवादी व्यवस्था भी श्वेतवसन अपराध को बढ़ावा देती है। सदरलैण्ड के अनुसार, पूँजीवादी समाजों में सम्पत्ति इने-गिने व्यक्तियों के हाथों में केन्द्रित होती है। धनी व पूँजीपति वर्ग धन के लालच में समाज, श्रम व सम्पत्ति का शोषण करता है। इस प्रकार चोर-बाजारी तथा अवैधानिक रूप से वस्तुओं का निर्माण पूँजीवादी व्यवस्था में श्वेतवसन
अपराध के ही उदाहरण हैं।

4. भौतिकवादी मनोवृत्तियाँ – आज तकनीकी के साथ-साथ व्यक्ति का जीवन उत्तरोत्तर विलासिता की ओर बढ़ता जा रहा है। भौतिकवादी मनोवृत्तियों के कारण धन का महत्त्व निरन्तर बढ़ गया है, क्योंकि धन ही प्रतिष्ठा, मर्यादा व शक्ति का स्रोत बन गया है। अतः . समृद्ध वर्ग श्वेतवसन अपराध करके भौतिक सुख-समृद्धि और विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत ‘, करना चाहता है।

5. राजनीतिक कारण – बहुत-से देशों में राजनीतिक भ्रष्टाचार भी श्वेतवसन अपराध का एक : कारण है। राजनीतिक नेता व सरकारी क्षेत्र के प्रतिनिधि व मन्त्री पूँजीपतियों व अन्तर्राष्ट्रीय – अपराधियों के साथ गठबन्धन करके श्वेतवसन अपराध को बढ़ावा देते हैं। अनेक राजनेता, मन्त्रीगण एवं जन-प्रतिनिधि अपने स्वार्थ के लिए चोरों, डाकुओं, तस्करों आदि का सहारा – लेते हैं। इनका सम्बन्ध पूँजीपतियों एवं अपराधी गिरोहों से होता है। पकड़े जाने पर राजनेता -अपराधियों को छुड़ाने में उनकी सहायता करते हैं। भारत में सांसदों की खरीद, यूरिया घोटाला, रंगीन टी० वी० घोटाला, हवाला काण्ड, चारा काण्ड, दवाई काण्ड, जमीन घोटाला राजनीतिक क्षेत्र के ऐसे ही श्वेतवसन अपराध हैं। अस्थिर राजनीतिक व्यवस्था वाले समाजों में अर्थव्यवस्था बड़ी ढीली हो जाती है, जो कि श्वेतवसन अपराधों को प्रोत्साहन देती है। भारत में श्वेतवसन अपराध का एक प्रमुख कारण यही है।

6. कानूनों के प्रति अनभिज्ञता व कानूनी निष्क्रियता – साधारण जनता कानूनों के प्रति अनभिज्ञ होती है, जिसका लाभ पूँजीपति तथा अन्य वर्ग व पदों पर आसीन व्यक्ति उठाते हैं। वे कानून से अनभिज्ञ व्यक्तियों का सरलता से शोषण कर लेते हैं। साथ ही कई समाजों में बाजार-वाणिज्य व उद्योग नियन्त्रण सम्बन्धी कानून इतने दोषपूर्ण व निष्क्रिय होते हैं कि बड़े-बड़े अपराधियों को पकड़े जाने का भय नहीं रहता। ये कानून श्वेतवसन अपराधियों को दण्डमुक्त रखने में सहायता देते हैं और इस प्रकार ऐसे अपराधों को बढ़ावा देते हैं।

7. सामाजिक मूल्य व संस्कृति – अनेक विद्वानों (जैसे–क्लीनार्ड) का मत है कि श्वेतवसन अपराधी का सम्बन्ध सामाजिक मूल्यों व संस्कृति से भी होता है। प्रत्येक समाज में कुछ ऐसे मूल्य व परम्पराएँ होती हैं जो व्यक्तियों को अपनी सत्ता व स्थिति कायम रखने के लिए प्रेरित करती हैं, जिनके कारण उच्च पदों के व्यक्ति गलत हथकण्डे अपनाकर तथा लोगों का शोषण करके अपने को आर्थिक दृष्टि से मजबूत करने का प्रयास करते हैं।

8. नैतिकता का अभाव – सामाजिक व धार्मिक जीवन में नैतिकता का अभाव भी श्वेतवसन अपराध का एक कारण है। आज धार्मिक विश्वासों व नैतिक नियमों के कारण उच्च स्थिति, वाले व्यक्ति उन कार्यों को करना भी बुरा नहीं समझते जिनका सम्बन्ध भ्रष्टाचार व बेईमानी से है। अतः व्यक्ति अपने-अपने पदों का दुरुपयोग करके श्वेतवसन अपराध करने लगते हैं।

9. गोपनीय प्रकृति – अधिकतर श्वेतवसन अपराध की प्रकृति गोपनीय होती है तथा एक सीमा तक करने पर ऐसे अपराध जनसाधारण के सामने आते ही नहीं हैं। गुप्त कार्य-प्रणाली के कारण बड़े-बड़े अधिकारी व कर्मचारी, व्यापारी वर्ग तथा पूँजीपति श्वेतवसन अपराध करते हैं और पकड़े जाने पर भी उनके विरुद्ध कोई सबूत नहीं मिलता है।

10: सामाजिक विघटन – सामाजिक विघटन भी श्वेतवसन अपराध को जन्म देता है। इसीलिए संक्रमण काल से गुजरने वाले समाजों में श्वेतवसन अपराध भी अधिक होते हैं। टूटे हुए सामाजिक ढाँचे का सबसे अधिक लाभ बड़े-बड़े व्यापारियों को ही मिलता है, जो चोरबाजारी, धोखाधड़ी, गबन, घूसखोरी व कालाबाजारी करके पैसा कमाने लगते हैं।

भ्रष्टाचार श्वेतवसन अपराध का स्रोत – वर्तमान समय में श्वेतवसन अपराध की वृद्धि का मुख्य कारण भ्रष्टाचार में वृद्धि के साथ-साथ व्यक्तियों में अलगाव की मनोवृत्ति प्रबल होने लगती है तथा स्वयं को अधिक असहाय, कमजोर तथा सार्वजनिक जीवन से कटा हुआ अनुभव करने लगते हैं।

भ्रष्टाचार के कारण आज हमारे देश में राजनीति को राष्ट्रसेवा या समाज सेवा के स्थान पर एक व्यवसाय के रूप में माना जाने लगा है। भ्रष्टाचार के कारण ही अधिकांश नेता बहुत अधिक धन खर्च करके चुनाव जीव जाते हैं और सत्ता प्राप्त करने के बाद हर प्रकार की अपराधिक एवं समाज विरोधी गतिविधियों से अधिक-से-अधिक धन कमाने में लिप्त हो जाते हैं। अतः कहा जा सकता है कि भ्रष्टाचार श्वेतवसन अपराध का स्रोत है।

प्रश्न 2
भारत में श्वेतवसन अपराधों में वृद्धि के क्या कारण हैं ?
उत्तर:
भारत में श्वेतवसन अपराधों में वृद्धि के कारण
भारत में श्वेतवसन अपराध आज चरम सीमा पर है, परन्तु दुर्भाग्यवश इस क्षेत्र में अधिक अध्ययन नहीं किये गये हैं। हम अनेक प्रकार के श्वेतवसन अपराध अपने समाज में देख सकते हैं। उदाहरणार्थ-बड़े-बड़े व्यापारियों द्वारा टैक्स की चोरी करना, वस्तुओं में मिलावट करना, चोरबाजारी करना, अवैध व्यापार करना, प्रशासनिक अधिकारियों में फैला हुआ भ्रष्टाचार, न्यायालयों, सरकारी दफ्तरों, पुलिस विभाग, चिकित्सा विभाग, परिवहन व संचार आदि कोई भी विभाग श्वेतवसन अपराध के प्रभाव से अछूता नहीं है।

आज श्वेतवसन अपराधी भारतीय समाज को जितना खोखला कर रहे हैं तथा हानि पहुँचा रहे हैं उतनी हानि अन्य अपराधों से नहीं हो रही है।
विश्व के अन्य राष्ट्रों के समान भारत में भी श्वेतवसन अपराध निरन्तर बढ़ रहे हैं। यहाँ श्वेतवसन अपराधों में सतत वृद्धि होने के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हैं

1. अशिक्षा – भारत के अधिकांश व्यक्ति अशिक्षित हैं। अशिक्षा के कारण वे कानूनों से अनभिज्ञ हैं। इस कारण श्वेतवसन अपराधी साधारण लोगों को धोखा देकर उनसे धन हड़प लेते हैं तथा अपने उद्देश्य में सफल हो जाते हैं।

2. भ्रष्टाचार – भारत में ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार व्याप्त है। भारत के किसी भी सरकारी विभाग में तब तक कार्य नहीं होता है जब तक उन्हें रिश्वत नहीं मिल जाती है। अतः भारत की ग्रामीण साधारण जनता का कार्यालयों में कोई भी कार्य नहीं हो पाता है, वे कार्यालयों के चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं। ऐसी परिस्थितियों में श्वेतवसन अपराधी ग्रामीण साधारण जनता को कार्य कराने का लालच देकर उनसे रुपये हड़प लेते हैं तथा श्वेतवसन अपराध में लिप्त रहते हैं।

3. बेरोजगारी – भारत में बेरोजगारी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। भारत का बेरोजगार नवयुवक रोजगार की खोज में जब सड़कों पर घूमता है तब श्वेतवसन अपराधी उन्हें नौकरी का लालच देकर उनसे धन ऐंठ लेते हैं। अनेक धोखेबाज अधिकारी खाड़ी देशों में नौकरी दिलवाने के नाम पर धन वसूल कर साफ बच जाते हैं।

4. नैतिक मूल्यों का ह्रास – भारत में आज सामाजिक व धार्मिक जीवन में नैतिकता का अभाव होता जा रहा है, जिसके अभाव में श्वेतवसन अपराध बढ़ता जा रहा है। आज नैतिक मूल्यों में ह्रास के कारण उच्च स्थिति वाले व्यक्ति उन कार्यों को करना भी बुरी नहीं समझते जिनका सम्बन्ध भ्रष्टाचार व बेईमानी से है। अत: व्यक्ति अपने-अपने पदों का दुरुपयोग करके श्वेतवसन अपराध करने लगते हैं।

5. राजनीतिक कारण – भारत में राजनीतिक भ्रष्टाचार भी श्वेतवसन अपराध का कारण है। राजनीतिक नेता व सरकारी क्षेत्र के प्रतिनिधि व मन्त्री पूँजीपतियों व अन्तर्राष्ट्रीय अपराधियों के सौथ गठबन्धन करके श्वेतवसन अपराध को बढ़ा रहे हैं। भारत की भ्रष्ट राजनीति श्वेतवसन अपराध को बढ़ावा देने में सक्षम है। संचारमन्त्री सुखराम, मुख्यमन्त्री जयललिता, कैप्टन सतीश शर्मा व श्रीमती शीला कौल ने अपने पदों का दुरुपयोग कर श्वेतवसन अपराध को सुदृढ़ आधार प्रदान किया। भूतपूर्व प्रधानमन्त्री श्री पी० वी० नरसिंम्हा राव का नाम भी इन्हीं अपराधों के लिए खूब उछलता रहा है। चन्द्रास्वामी इस क्षेत्र के प्रमुख सूत्राधार होने के कारण जेल की सजा भी काट चुके हैं। भारत में राजनीतिक अस्थिरता के कारण भी समाज में श्वेतवसन अपराध बढ़ते जा रहे हैं। चुनाव के बाद सत्ता में आने के लिए विधायकों की खरीद तथा सांसदों की सौदेबाजी श्वेतवसन अपराध का मूल है।

6. भौतिकवादी मनोवृत्तियाँ – आज भारत के व्यक्तियों में भौतिकवादी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, जिसके कारण उनके लिए धन का महत्त्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है। आज उनके लिए धन ही प्रतिष्ठा, मान-मर्यादा व शक्ति का स्रोत बन गया है। अतः आज़ श्वेतवसनधारी येन-केनप्रकारेण धन प्राप्त करके समाज में अपनी झूठी शान व प्रतिष्ठा को दिखाकर भौतिक सुख और ऐशो-आराम का जीवन व्यतीत करना चाहता है, जिसके कारण श्वेतवसन अपराधों में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है।

7. अत्यधिक वर्ग चेतना – भारत के श्वेतवसन अपराध करने वाले व्यक्तियों में अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा अत्यधिक वर्ग चेतना होती है। श्वेतवसन अपराध का यह भी एक कारण है कि श्वेतवसन वर्ग के व्यक्ति अपनी स्थिति को सक्रिय और समृद्ध बनाये रखने के लिए अपने व्यवसाय की आड़ में अधिकाधिक धनोपार्जन करते रहते हैं।

8. सामाजिक विभेदीकरण व आर्थिक असमानता – सामाजिक व आर्थिक असमानता भी श्वेतवसन अपराध वृद्धि का एक कारण है। भारत में आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से अधिकांश व्यक्ति पिछड़ी व दयनीय स्थिति में हैं, जब कि कुछ लोग ही सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न हैं। सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न व्यक्ति व कुछ मध्यमवर्गीय व्यक्ति भी उनके साथ लगकर श्वेतवसन अपराध द्वारा लोगों को ठगने में लगे रहते हैं। वे अनेक प्रकार की जालसाजी, गलत विज्ञापन, फरेब, चोर-बाजारी आदि के कार्यों में लगे रहते हैं तथा समाज में श्वेतवसन अपराध करते हैं।

9. कानून के प्रति अनभिज्ञता व कानूनी निष्क्रियता – भारत में अधिकांश साधारण जनता कानूनों के प्रति अनभिज्ञ है, जिसका लाभ पूँजीपति तथा अन्य वर्ग व पदों पर आसीन सफेदपोश व्यक्ति उठाते हैं। वे कानून से अनभिज्ञ व्यक्तियों का सरलता से शोषण कर लेते हैं। भारत में कानूनों को शान्तिपूर्वक लागू नहीं किया जाता है। अतः श्वेतवसन धारण करने वाले व्यक्ति कर चोरी व अन्य भ्रष्टाचार का कार्य खुले रूप से करते रहते हैं; क्योंकि उन्हें यह मालूम है कि कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है और यदि वे कहीं पर कानून की पकड़ में आ भी जाते हैं तो रिश्वत व शक्ति का उपयोग करके सरलतापूर्वक बच निकलते हैं। इस कारण भी भारत में श्वेतवसन अपराध तेजी के साथ बढ़ रहा है।

10. गोपनीय प्रकृति – अधिकतर श्वेतवसन अपराध की प्रकृति गोपनीय होती है, क्योंकि अधिकतर अपराध जनसाधारण के सामने आते ही नहीं हैं। गुप्त कार्य-प्रणाली के कारण बड़े-बड़े अधिकारी व कर्मचारी, व्यापारी वर्ग तथा पूँजीपति श्वेतवसन अपराध करते हैं और पकड़े जाने पर उनके विरुद्ध किसी प्रकार का प्रमाण नहीं मिल पाता है, जिससे वे दण्ड के चंगुल से बच जाते हैं। इसीलिए भारत में श्वेतवसन अपराध बढ़ता जा रहा है।

प्रश्न 3
उपयुक्त उदाहरण देते हुए ‘अपराध और ‘श्वेतवसन अपराध की अवधारणाओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2007]
उत्तर:
श्वेतवसन अपराध तथा अपराध के बीच का अन्तर मुख्यतया दृष्टिकोण का अन्तर है, ज़िसे निम्नलिखित रूप में समझा जा सकता है

1. अपराधी वर्ग – साधारण अपराध का सम्बन्ध किसी वर्ग-विशेष से नहीं होता। उदाहरण के लिए, हत्या तथा बलात्कार का अपराध सभी वर्गों के व्यक्ति करते हैं। परन्तु श्वेतवसन अपराध सम्भ्रान्त तथा प्रतिष्ठित पद पर आसीन वर्ग के व्यक्तियों द्वारा ही किये जाते हैं।

2. अपराध का कारण – अपराध का कारण सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, मनोवैज्ञानिक आदि कोई भी हो सकता है। दूसरी ओर श्वेतवसन अपराध मुख्यतः आर्थिक प्रकृति के होते हैं। सम्भ्रान्त वर्ग के व्यक्ति श्वेतवसन अपराध अधिक-से-अधिक धन संचय करने के लिए करते हैं।

3. जनता का दृष्टिकोण – जनता का दृष्टिकोण दोनों अपराधों के प्रति अलग है। चोरी, डकैती, राहजनी, हत्या अथवा बलात्कार जैसे अपराध के दोषी को लोग तिरस्कार करते हैं तथा उसके प्रति घृणा व आक्रोश का भाव रखते हैं। दूसरी ओर यदि कोई व्यक्ति जालसाजी, रिश्वतखोरी अथवा झूठे विज्ञापन देकर कोई लाभ प्राप्त कर रहा हो तो उसका कोई तिरस्कार नहीं करता। यह कहना गलत नहीं होगा कि श्वेतवसन अपराध से व्यक्ति की प्रतिष्ठा को कोई धक्का नहीं पहुंचता।।

4. अपराध की प्रकृति – अपराध की तुलना में श्वेतवसन अपराध की प्रकृति अप्रत्यक्ष होती है। उदाहरण के लिए, किसी महिला का बलात्कार कर देना जघन्य अपराध माना जाता है, लेकिन बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ जब नियोजित तरीके से हत्या करवाते हैं तब इसे श्वेतवसन अपराध कहा जाता है। अपराध की तुलना में श्वेतवसन अपराध गोपनीय तथा अमूर्त होते हैं। ये अपराध जनसाधारण की निगाह से छिपाकर किये जाते हैं। इनकी गोपनीयता भंग होने पर ही, ये अपराध बन जाते हैं।

5. दण्ड – किसी अपराध के लिए अपराधी को दण्ड देना राज्य के लिए सरल होता है, लेकिन श्वेतवसन अपराध को प्रमाणित कर सकना बहुत कठिन होता है। श्वेतवसन अपराध से सम्बन्धित लोग अपनी प्रतिष्ठा और आर्थिक शक्ति के बल पर अपने विरुद्ध साक्ष्य को तोड़ मोड़ देते हैं। उनको दण्डित करना प्रायः असम्भव होता है।

प्रश्न 4
“भ्रष्टाचार एक सार्वभौमिक बुराई है।” इसे हम अपने देश से कैसे मिटा सकते हैं? [2016]
उत्तर:
भ्रष्टाचार का अर्थ
भ्रष्टाचार का अभिप्राय उन सभी अवैध गतिविधियों से है जिससे निजी स्वार्थ के लिए धनोपार्जन व शक्तियों का दुरुपयोग कर बेइमानी की जाए। रिश्वत लेना, धन उगाही, धोखाधड़ी, मनी लॉन्ड्रिंग धन के लिए बल का प्रयोग, काला धन व अन्य सभी प्रकार के कृत्य जिससे अवैध रूप से लाभ उठाया जा रहा हो, वे सभी भ्रष्टाचार हैं। सरकारी विभागों या निजी क्षेत्रों द्वारा अनैतिक व्यवहार, लाभ के लिए सत्ता का दुरुपैयोग, इत्यादि सभी गतिविधियाँ भ्रष्टाचार के कुछ रूप हैं। आम जनता के अधिकारों को अनदेख कर सरकारी कर्तव्य को पूर्ण न कर धोखाधड़ी करना भ्रष्टाचार ही है। सरकारी व्यक्ति द्वारा अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर अपने या किसी और के हित को सर्वोपरि रखना भी भ्रष्टाचार है।

भ्रष्टाचार एवं घूसखोरी कोई नई अवधारणा नहीं है। सदियों पूर्व हिन्दू विधि के प्रवर्तक महर्षि मनु ने ‘मनु संहिता’ में तत्कालीन समाज में व्याप्त घूसखोरी का स्पष्ट शब्दों में उल्लेख किया है। अन्य अनेक ग्रन्थों तथा यात्रा वृत्तान्तों में भी भ्रष्टाचार का उल्लेख देखा जा सकता है।
आचार्य कौटिल्य (चाणक्य, 350-275 ई.पू.) ने ‘अर्थशास्त्र में लिखा है कि जिस प्रकार तालाब में तैरती मछली कब पानी गटक जाती है कोई देख नहीं सकता, उसी प्रकार नौकरशाही में अधिकारी वर्ग कब भ्रष्ट आचरण करे यहें पता लगाना मुश्किल है।”
भारत में भ्रष्टाचार की जड़े अत्यन्त गरी हो चुकी हैं। मर्यादाएँ धीरे-धीरे नष्ट हो रही हैं। नैतिक मूल्यों के पतन के कारण सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार दीमक की तरह व्याप्त होकर व्यवस्था को खोखला. किए जा रहा है।

भ्रष्टाचार या रिश्वतखोरी वह है जब अधिकार सम्पन्न व्यक्ति अपने पद/प्रभाव का उपयोग अनुचित लाभ प्राप्ति हेतु स्वार्थपूर्ण तरीके से करता है। भारत में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार प्रत्येक क्षेत्र-सामाजिक, वैधानिक, आर्थिक, राजनीतिक, राजनयिक, प्रशासनिक क्षेत्रों में देखा जा सकता है। भ्रष्टाचार सभी प्रकार के अपराधों में वृद्धि करने के लिए जिम्मेदार है।

भारत में भ्रष्टाचार मूलतः°1950 के दशक की एक अनहोनी शुरुआत है। 1957 के मूंदड़ा कांड को भारतीय गणतंत्र का पहला घोटाला माना जाता है, जिसमें राजनीतिक और किसी पूंजीपति के बीच अपवित्र गठजोड़ बना था। इसका भंडाफोड़ फिरोज गांधी ने किया था। लम्बी बहस के बाद त्किालीन वित्त मंत्री टी.टी. कृष्णमाचारी को इस्तीफा दिलाकर सारा मामला रफा-दफा दिया गया। पंडित नेहरू के समय में ऐसे करीब चार मामले प्रकाश में आए। 1949 में 216 करोड़ रुपए का जीप घोटाला ऐसा पहला मामला था, जिसमें ब्रिटेन स्थित तत्कालीन उच्चायुक्त कृष्ण मेनन का नाम उछला था। दूसरा मामला 1956 का सिराजुद्दीन प्रकरण था, जिसमें नेहरू मंत्रिमण्डल के खान एवं ऊर्जा मंत्री के.डी. मालवीय पर गम्भीर आरोप लगे थे। तीसरा प्रकरण जहाजरानी उद्योगपति धरमतेजा का था जिन्हें 1960 में पंडित नेहरू ने बिना किसी जाँच पड़ताल के १ 20 करोड़ का ऋण दिलवाया था। इस प्रकार यह सिलसिला बोफोर्स एवं टूजी घोटाले तक चलता गया। अतः ‘भ्रष्टाचार एक सार्वभौमिक बुराई है।”

भ्रष्टाचार के कारणों को आर्थिक, सामाजिक, वैधानिक, न्यायिक और राजनीतिक श्रेणियों में भी रखा जा सकता है। आर्थिक कारणों में उच्च जीवन शैली की आकांक्षा मुद्रा प्रसार, लाइसेंसिंग प्राणाली तथा ज्यादा लाभ लेने की प्रवृत्ति है। सामाजिक कारणों में जीवन के प्रति भौतिकवादी दृष्टिकोण, ईमानदारी की कमी, सामाजिक मूल्यों में गिरावट, अशिक्षा, सामंती प्रवृत्तियाँ, शोषणवादी सामाजिक संरचना आदि हैं। वैधानिक कारणों में अपर्याप्त कानून पालन कराने में ढील आदि हैं। न्यायिक कारणों में महंगी न्याय व्यवस्था, विलम्ब न्याय न्यायिक उदासीनता, न्यायाधीशों की प्रतिबद्धता की कमी तथा तकनीकी कारणों से अपराधियों का छूट जाना है। राजनीतिक कारणों में राजनीतिक संरक्षण, अप्रभावी राजनीतिक नेतृत्व राजनीतिक तटस्थता, राजनीतिक अनैतिकता, राजनीति एवं अपराधियों की सांठ-गांठ आदि हैं।

भ्रष्टाचार को रोकने के उपाय
देश में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए अनेक आयोग बने। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा श्री कस्तूरीरंगा संथानम (1895-1980) की अध्यक्षता में एक भ्रष्टाचार निरोधक समिति का गठन 1962 में किया गया था। इस समिति ने निम्नलिखित उपाय सुझाए थे।

  1.  सतर्कता अधिकारियों को भ्रष्टाचार की शिकायतों की जाँच करने की स्वतंत्रता देना। जाँच प्रक्रिया में राजनीतिक एवं प्रशासनिक दखल को नियंत्रित करना आवश्यक है।
  2. सतर्कता अधिकारियों को कुशल कार्य के लिए प्रोन्नति का आश्वासन देना।।
  3. उच्च अधिकारियों के मामलों की जाँच-पड़ताल के लिए सतर्कता अधिकारियों को उनके मूल कैडर में वापस भेजने से सुरक्षा का आश्वासन देना।
  4.  केन्द्रीय सतर्कता आयोग में केन्द्रीय लोक सेवाओं और तकनीकी सेवाओं को प्रतिनिधित्व देना।
  5.  सतर्कता विभाग के अराजपत्रित कर्मचारियों को विभाग के नियमों और कार्यप्रणाली के विषय में गहन प्रशिक्षण देना, क्योंकि सतर्कता के 80 प्रतिशत मामलों की छानबीन निचले स्तर पर ही होती है।

इस समिति की सिफारिशों के आधार पर ही केन्द्रीय सरकार और अन्य कर्मचारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार के मामलों को देखने के लिए 1964 में केन्द्रीय सतर्कता आयोग (CvC-Central Vigilance Commission) की स्थापना की गई थी। केन्द्र सरकार ने निम्नलिखित चार विभागों की स्थापना भ्रष्टाचार विरोधी उपायों के अन्तर्गत की है।

  1.  कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग में प्रशासनिक सतर्कता विभाग
  2.  केन्द्रीय जाँच ब्यूरो (CBI- Central Buearnu of Investigation)
  3. राष्ट्रीकृत बैंकों/सार्वजनिक उपक्रमों/मंत्रालयों/विभागों में घरेलू सतर्कता इकाइयाँ और
  4.  केन्द्रीय सतर्कता आयोग।

केन्द्रीय सतर्कता आयोग के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं।

  1.  किसी भी लोकसेवक के विरुद्ध भ्रष्टाचार की शिकायत आने पर उसकी जाँच-पड़ताल करना।
  2.  भ्रष्टाचार में लिप्त आरोपी व्यक्ति के विरुद्ध की जाने वाली कार्यवाही के प्रकार के विषय मेंअनुशासनात्मक अधिकारी को परामर्श देना।
  3. नियमित मामला पंजीकृत करने के लिए सी.बी.आई. को निर्देशित करना और मंत्रालयों या विभागों या बैंकों या सार्वजनिक उपक्रमों में सतर्कता और भ्रष्टाचार विरोधी कार्यों का निरीक्षण और उन पर रोक लगाना। इसके अतिरिक्त भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम-1988 इस दिशा में एक कारगर कदम है।

भ्रष्टाचार से निपटने के उपाय

  1. लोगों को विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को सब्सिडी और सरकारी अमूदानों के बारे में उनके हक की पूरी जानकारी दी जाए। सूचना का अधिकार ईमानदारी से लागू हो।
  2. नीतियों और फाइलों में किए गए विभिन्न निर्णयों को पारदर्शी बनाया जाए। हर आवेदक को जानने का अधिकार होना चाहिए कि उसका आवेदन-पत्र कहाँ रुका पंड़ा है।
  3. विलम्ब ही भ्रष्टाचार का मुख्य स्रोत है। प्रत्येक विभागीय अध्यक्ष या प्रत्येक कार्यालय के प्रमुख को किसी आवेदन या फाइल पर निर्णय करने के लिए समयावधि निर्धारित कर देनी चाहिए, जिससे कि किसी भी स्तर पर कार्यवाही में देरी न हो। अगर फाइलों पर कार्यवाही में देरी होती है तो उसके लिए जो कारण हो वह ऐसा हो, जिससे प्रमुख या अध्यक्ष संतुष्ट हो। फाइलों पर कार्यवाही में देर इसलिए न की जाए ताकि लाभार्थी उस पर कार्यवाही तेज करवाने के लिए रकम देने के लिए हाजिर हो।
  4.  जब कभी भी पता चले कि कोई कर्मचारी भ्रष्ट तरीके अपना रहा है, तो उसे तुरन्त निलम्बित . कर देना चाहिए। मुकदमा और विभागीय अनुशासनात्मक कार्यवाही साथ-साथ शुरू कर दी जाए और जल्द-से-जल्द पूरी की जाए।
  5. जिन भ्रष्ट व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी या अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की जाती है, उनकी सम्पत्तियों को सील कर दिया जाना चाहिए और उनके दोषी साबित होने पर सरकार को उन सम्पत्तियों को जब्त कर लेना चाहिए।
  6.  अधिकारी ऐसे होने चाहिए जो केवल प्रतिभावान और योग्य ही न हों, अपितु ईमानदार और साहसी भी हों।
  7.  लोकतंत्र में निर्वाचित प्रतिनिधियों की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है, लेकिन उन्हें अपने नजदीकी अधिकारियों को लाभ पहुँचाने के लिए नियमों की अवहेलना करते हुए तबादलों और पदोन्नतियों जैसे मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
  8.  विभिन्न स्तरों पर अधिकारियों का चयन करते समय यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वे ईमानदार हों और उस कार्य के लिए योग्य हों, जो उन्हें सौंपा जा रहा है।
  9.  देश ने पंचायत राज और सत्ता के विकेन्द्रीकरण के सिद्धान्त को स्वीकार कर लिया है। इसीलिए सत्ता का यथासम्भव विकेन्द्रीकरण किया जाना चाहिए और पंचायतों को अधिकतम अधिकार दिए जाने चाहिए।
  10.  नियमों को सरल बनाना चाहिए। अनेक कानून ऐसे हैं जिन्हें जनसाधारण समझ नहीं पाता। अनावश्यक कानून खत्म कर दिए जाने चाहिए। कानून और नियमों का यथासंभव सरलीकरण किया जाना चाहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
पूँजीवादी वर्ग संरचना श्वेतवसन अपराध का प्रमुख कारण है। समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
सदरलैण्ड ने अपने अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि जिस समाज के लोगों में वर्ग-चेतना एवं सामाजिक स्थिति के प्रति जागरूकता पायी जाती है, वहाँ लोग अधिकाधिक अपने व्यवसाय के द्वारा धनोपार्जन में लगे होते हैं, जिससे वे अपनी सामाजिक स्थिति एवं प्रतिष्ठा को बनाये रख सकें। पूँजीवादी व्यवस्था में पूँजीपति एवं उद्योगपति श्रमिक वर्ग का शोषण करते हैं और अधिकाधिक धन कमाते हैं। ये वैध और अवैध तरीकों से अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाये रखना चाहते हैं। उच्च वर्ग निम्न वर्ग को प्रतियोगिता में परास्त करना चाहता है। दोनों ही वर्ग आर्थिक प्रतिस्पर्धा में अनैतिक साधनों, झूठे विज्ञापनों, घूस, चोरबाजारी, जालसाजी आदि का सहारा लेते हैं। इस प्रकार पूँजीवादी व्यवस्था में पायी जाने वाली वर्ग-प्रतिस्पर्धा भी श्वेतवसन अपराध को बढ़ावा देती है। सदरलैण्ड कहते हैं कि “यही कारण है कि अमेरिका में श्वेतवसन अपराध अधिक होते हैं।”

प्रश्न 2
श्वेतवसन अपराध के जालसाजी एवं रिश्वत के स्वरूपों का वर्णन कीजिए। या श्वेतवसन अपराध के किन्हीं दो स्वरूपों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
1. जालसाजी – सदरलैण्ड ने इसे श्वेतवसन अपराध में प्रमुख माना है। बैंकों में चेक पर दूसरों के गलत हस्ताक्षर करके रुपये ले लेना, बीमा कम्पनियों से गलत क्लेम द्वारा रुपया लेना, नकली दस्तावेज बनाकर रुपये कमाना, जाली खाते तैयार करना, जाली पासपोर्ट तैयार करना, नकली दवाइयाँ बनाना, जाली फर्मों के नाम परमिट एवं कोटा आवण्टित करवाना, अनाथालयों, मन्दिरों एवं मठों के निर्माण के नाम पर चन्दा एकत्रित करना, बाढ़-पीड़ितों के लिए सहायता प्राप्त करना और उसका दुरुपयोग करना आदि जालसाजी एवं फरेब के ही उदाहरण हैं।
2. रिश्वत – वर्तमान में सभी सरकारी विभागों में रिश्वत का बोलबाला है। पटवारी, ट्रैफिक ‘इन्स्पेक्टर, ओवरसियर, इन्जीनियर, डॉक्टर, पुलिस अधिकारी, सरकारी कर्मचारी, रेलवे कर्मचारी, – कर विभाग के कर्मचारियों आदि के द्वारा रिश्वत ली जाती है। कई बार रिश्वत पैसों के रूप में न दी जाकर वस्तुओं के रूप में भी दी जाती है, जिसे ‘भेट’ कहकर पुकारा जाता है।

प्रश्न 3
समाज में व्याप्त आर्थिक असमानता की श्वेतवसन अपराध को बढ़ाने में क्या भूमिका है ?
उत्तर:
औद्योगीकरण एवं मशीनीकरण ने समाज में आर्थिक विषमता पैदा की है। एक तरफ उत्पादन के साधनों पर नियन्त्रण रखने वाले पूँजीपति हैं, तो दूसरी तरफ श्रम बेचकर जीवन-यापन करने वाले गरीब श्रमिक और इन दोनों के बीच में है – मध्यम वर्ग। उच्च वर्ग वाले अन्य वर्ग के लोगों को आगे बढ़ने से रोकते हैं, क्योंकि इसमें उनका आर्थिक हित छिपा हुआ है। ऐसा करने के लिए वे मनमाने एवं कानून-विरोधी तरीके अपनाते हैं। सदरलैण्ड का मत है कि ये लोग इतने सक्षम होते हैं कि दण्ड से बच जाते हैं। टैफ्ट तथा हारटुंगे का मत है कि जिन समाजों में आर्थिक एवं सामाजिक भिन्नता अधिक होती है वहाँ मध्यम वर्ग द्वारा श्वेतवसन अपराध अधिक किये जाते हैं। लोग समाज के आर्थिक हितों को ध्यान में नहीं रखते और स्वार्थसिद्धि के लिए जालसाजी, झूठी विज्ञापनबाजी, फरेब, चोरबाजारी आदि के द्वारा उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने का प्रयत्न करते है।

प्रश्न 4
क्या श्वेतवसन अपराध का सम्बन्ध सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों से भी है ?
उत्तर:
जॉर्ज कैटोन तथा क्लीनार्ड आदि की मान्यता है कि श्वेतवसन अपराध का सम्बन्ध सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों से भी है। प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्य-व्यवस्था को बनाये रखना चाहता है और उसमें परिवर्तन नहीं चाहता। लोग सामाजिक प्रतिष्ठा की हानि के भय से परम्परागत मूल्यों को बनाये रखने के लिए गलत तरीकों का प्रयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, दहेज देना परम्परागत सामाजिक मूल्यों की दृष्टि से अच्छा माना गया है, इसे जुटाने के लिए व्यक्ति गलत साधनों द्वारा धन कमाता है और अपनी प्रतिष्ठा को बनाये रखता है। इसी प्रकार से भारत में धर्म का अधिक महत्त्व है। पूँजीपति लोग एक तरफ कालाबाजारी एवं मुनाफाखोरी के द्वारा धन कमाते हैं और दूसरी तरफ दान देकर एवं मन्दिर बनाकर समाज में प्रतिष्ठा भी प्राप्त कर लेते हैं। धर्मभीरु लोग ऐसे व्यक्तियों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं करना चाहते।

प्रश्न 5
श्वेतवसन अपराध से उत्पन्न प्रमुख सामाजिक दुष्परिणामों का उल्लेख कीजिए, जो सामाजिक विघटन के लिए उत्तरदायी हैं।
या
श्वेतवसन अपरांधों के दुष्परिणामों की विवेचना कीजिए। [2009]
उत्तर:
सदरलैण्ड कहते हैं कि श्वेतवसन अपराध के कारण आर्थिक हानि की तुलना में समाज को सामाजिक हानि अधिक होती है और सामाजिक विघटन को बढ़ावा मिलता है। श्वेतवसन अपराध से उत्पन्न प्रमुख सामाजिक दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं, जो सामाजिक विघटन के लिए उत्तरदायी हैं

  1. समाज में अनैतिकता, विश्वासहीनता एवं भ्रष्टाचार में वृद्धि होती है।
  2.  समाज में नियमहीनता बढ़ती है और प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक नियमों एवं आदर्शों की मनमाने ढंग से व्याख्या करता है और अपने पक्ष की पुष्टि के लिए उल्टे-सीधे तर्क भी प्रस्तुत करता है।
  3. श्वेतवसन अपराध समाज में असन्तोष को बढ़ावा देता है। फलस्वरूप लोग अनुशासनहीन एवं संघर्षशील हो जाते हैं।
  4. श्वेतवसन अपराध के कारण लोगों में मानसिक असन्तोष, निराशा एवं तनाव पैदा होते हैं।
  5.  लोगों में कर्त्तव्यहीनता एवं दायित्वहीनता की भावना में वृद्धि होती है।
  6. चूँकि श्वेतवसन अपराधी कानून को तोड़-मरोड़ कर अपने पक्ष में प्रस्तुत करने में समर्थ होते हैं; अतः उन्हें दण्ड नहीं भुगतना पड़ता। फलस्वरूप दण्ड, कानून एवं न्याय से लोगों को विश्वास उठ जाता है और कानूनी अव्यवस्था फैलती है।
  7. श्वेतवसन अपराध के कारण सामाजिक असुरक्षा पनपती है। जब समाज के नेता एवं संरक्षक ‘ कहे जाने वाले व्यक्ति ही अपराधी कार्यों में लगे होते हैं तो अन्य लोगों में असुरक्षा के भाव
    पैदा होते हैं।
  8. श्वेतवसन अपराध के कारण अर्थव्यवस्था विघटित हो जाती है। बेईमान एवं अपराधी लोग सुखी एवं समृद्ध जीवन व्यतीत करते हैं, जब कि ईमानदार व्यक्तियों का भरण-पोषण भी कठिन होता है। ऐसे अपराधी सारे देश को आर्थिक हानि पहुँचाते हैं और देश की अर्थव्यवस्था संकटग्रस्त हो जाती है।
  9. श्वेतवसन अपराध के कारण नयी पीढ़ी में अपराध की ओर झुकाव बढ़ता है।
  10. श्वेतवसन अपराध के कारण समाज व्यवस्था, सुरक्षा, प्रगति एवं विकास खतरे में पड़ जाते
  11.  श्वेतवसन अपराध सामाजिक संस्थाओं के मूलभूत मूल्यों पर आक्रमण है। स्पष्ट है कि श्वेतवसन अपराध सामाजिक विघटन के लिए उत्तरदायी है।

प्रश्न 6
बाल-अपराध व श्वेतवसन अपराध में अन्तर बताइए।
उत्तर:
बाल-अपराध व श्वेतवसन अपराध में अन्तर नीचे दी गयी तालिका में स्पष्ट किया गया है।

क्र०सं० बाल-अपराध श्वेतवसन अपराध
1. बाल-अपराधं कानून द्वारा निर्धारित 18 वर्ष से कम आयु में किया जाने वाला अपराध हैं। श्वेतवसन अपराध उच्च वर्ग अथवा प्रतिष्ठित पद पर आसीन व्यक्तियों द्वारा किये जाते हैं।
2. बाल-अपराध में कुछ ऐसे व्यवहार भी सम्मिलित हैं जो वास्तव में अपराध की श्रेणी में नहीं आते; जैसे-स्कूल से भागना, घर से बिना बताये गायब हो जाना, निरुद्देश्य रात्रि को घूमते रहना इत्यादि। श्वेतवसन अपराधों में करों की चोरी, रिश्वत, पदों का दुरुपयोग करके आर्थिक लाभ कमाना, नियोजित रूप से हत्या कराना आदि अपराध आते हैं।
3. बाल-अपराध सामान्यतः कम गम्भीर होते है। श्वेतवसन अपराधों की प्रकृति अप्रत्यक्ष, गोपनीय, परन्तु आर्थिक दृष्टि से गम्भीर होती है।
4. बाल-अपराधी अधिकांशतः संवेगता के कारण अपराध करते हैं। श्वेतवसन अपराध नियोजित और सामूहिक होते हैं।
5. बाल-अपराधी का अपराध करते समय अनिवार्य रूप से आर्थिक लक्ष्य नहीं होता है। श्वेतवसन अपराध मुख्यतः आर्थिक प्रकृति के ही होते हैं। सम्भ्रान्त वर्ग के व्यक्ति श्वेतवसन अपराध इसलिए करते हैं जिससे वे अधिक से-अधिक धन का संचय करके भौतिक सुख-सुविधाएँ प्राप्त कर सकें।
6. बाल-अपराधी बनने में मनोवैज्ञानिक व पारिवारिक कारणों को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। श्वेतवसन अपराधों का कारण समृद्धता तथा भौतिक सुख प्रा करना होता है।
7. बाल-अपराध के लिए विशिष्ट न्यायालयों की स्थापना होती है। श्वेतवसन अपराध के मामले सामान्य अदालतों और कभी-कभी विशेष अदालतों में सुने जाते हैं।
8. बाल-अपराधी को कठोर दण्ड से बचाने का प्रयास किया जाता है। श्वेतवसन अपराध से सम्बन्धित लोग अपनी प्रतिष्ठा और आर्थिक शक्ति की सहायता से न तो अपने विरुद्ध गवाहियाँ होने देते हैं और न ही कोई ऐसा ठोस प्रमाण छोड़ते हैं जिसके आधार पर उन्हें दण्डित किया जा सके।

प्रश्न 7
अपराध तथा श्वेतवसन अपराध में अन्तर बताइए। [2007, 11, 16]
या
‘सफेदपोश अपराध व अपराध में चार अन्तर बताइए। [2016]
उत्तर:
अपराध, अपराध ही है चाहे वह निम्न वर्ग के लोगों द्वारा किया जाए अथवा समाज के प्रतिष्ठित एवं उच्च वर्ग के लोगों द्वारा। फिर भी सामान्य अपराध और श्वेतवसने अपराध की प्रकृति, मनोवृत्ति एवं आधारों में अन्तर पाया जाता है। यह अन्तर निम्नलिखित है

  1. अपराध का सम्बन्ध समाज के सभी वर्गों से है, जब कि श्वेतवसन अपराध का केवल समाज के उच्च वर्ग से है।।
  2. श्वेतवसन अपराध आर्थिक प्रकृति के होते हैं, जब कि सामान्य अपराध आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक एवं मानसिक किसी भी कारण से किये जा सकते हैं।
  3. श्वेतवसन अपराध में व्यक्ति की प्रतिष्ठा को ठेस नहीं पहुँचती है, क्योंकि वह प्रत्यक्ष रूप से उसमें सम्मिलित नहीं होता है, जब कि अपराध में व्यक्ति को हीन एवं घृणा की दृष्टि से । देखा जाता है, क्योंकि वह प्रत्यक्ष रूप से अपराध में सम्मिलित होता है।
  4. अपराध की अपेक्षा श्वेतवसन अपराध योजनाबद्ध रूप से किये जाते हैं।
  5. अपराध की तुलना में श्वेतवसन अपराध अधिक गोपनीय ढंग से किये जाते हैं।
  6.  श्वेतवसन अपराध आधुनिक औद्योगिक एवं नगरीकृत समाजों की विशेषता है, जब कि अपराध आदिम और आधुनिक सभी समाजों में किये जाते हैं।
  7.  सामान्यत: अपराध में अपराधी को दण्ड मिलता है, किन्तु श्वेतवसन अपराध में अपराधी अपनी आर्थिक स्थिति एवं जटिल कानूनी प्रक्रिया के कारण दण्ड से बच जाता है।
  8. श्वेतवसन अपराध व्यक्ति अपने व्यवसाय के दौरान करता है, जब कि अपराध व्यवसाय से बाहर भी।
  9. अपराध के प्रति जनता की सामूहिक प्रतिक्रिया पायी जाती है, जब कि श्वेतवसन अपराध के प्रति नहीं।

प्रश्न 8
श्वेतवसन अपराध और सामाजिक विघटन के सम्बन्ध की विवेचना कीजिए.
उत्तर:
सदरलैण्ड श्वेतवसन अपराध एवं सामाजिक विघटन के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध बताते हैं। उनकी मान्यता है कि श्वेतवसन अपराध के कारण आर्थिक हानि की तुलना में समाज को सामाजिक हानि अधिक होती है और सामाजिक विघटन को बढ़ावा मिलता है। श्वेतवसन अपराध से उत्पन्न प्रमुख सामाजिक दुष्परिणाम निम्न प्रकार हैं, जो सामाजिक विघटन के लिए उत्तरदायी हैं

  1.  समाज में अनैतिकता, विश्वासहीनता एवं भ्रष्टाचार में वृद्धि होती है।
  2.  समाज में नियमहीनता बढ़ती है और प्रत्येक व्यक्ति नियमों एवं आदर्शों की मनमाने ढंग से व्याख्या करता है और अपने पक्ष की पुष्टि के लिए उल्टे-सीधे तर्क भी प्रस्तुत करता है।
  3.  श्वेतवसन अपराध के कारण मानसिक असन्तोष, निराशा एवं तनाव पैदा होते हैं। लोगों में कर्तव्यहीनता एवं दाविहीनता की भावना में वृद्धि होती है।
  4.  श्वेतवसन अपराध समाज में असन्तोष को बढ़ावा देने के साथ-साथ लोगों में अनुशासनहीनता को बढ़ाता है। उनमें कानून एवं न्याय के प्रति कम विश्वास रह जाता है। इससे कानूनी अव्यवस्था फैलती है।
  5. श्वेतवसन अपराध के कारण सामाजिक असुरक्षा पनपती है। जब समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति तथा संरक्षक कहे जाने वाले लोग अपराधी कार्यों में लिप्त होते हैं तो अन्य लोगों में असुरक्षा की भावना पैदा होती है।
  6. श्वेतवसन अपराध के कारण अर्थव्यवस्था विघटित हो जाती है। बेईमान एवं अपराधी लोग सुखी एवं समृद्ध जीवन व्यतीत करते हैं, जब कि ईमानदार व्यक्तियों के लिए भरण-पोषण भी कठिन होता है।
  7.  श्वेतवसन अपराध के कारण नयी पीढ़ी में अपराध की ओर झुकाव बढ़ता है। समाज व्यवस्था, सुरक्षा, प्रगति एवं विकास खतरे में पड़ जाते हैं। श्वेतवसन अपराध सामाजिक संस्थाओं के मूलभूत मूल्यों पर आक्रमण है। उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि श्वेतवसन अपराध सामाजिक विघटन के लिए उत्तरदायी है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
भौतिकवादी मनोवृत्ति श्वेतवसन अपराध का एक प्रभावी कारण है। कैसे ?
उत्तर:
वर्तमान समय में लोगों में भौतिकवादी मनोवृत्ति बढ़ी है। प्रत्येक व्यक्ति येन-केनप्रकारेण धन कमाकर अधिकाधिक सुख-सुविधाएँ प्राप्त करना चाहती है। आज व्यक्ति का मूल्यांकन भी इसी आधार पर किया जाता है कि उसके पास कितनी सम्पत्ति है? प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का लक्ष्य शारीरिक एवं इन्द्रिय सुख-सुविधाएँ प्राप्त करना ही रह गया है, जिन्हें जुटाने के लिए समाज-विरोधी विधियों तक का भी सहारा लिया जाता है।

प्रश्न 2
वर्तमान समय में श्वेतवसन अपराध ने संगठित रूप धारण कर लिया है। समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
वर्तमान समय में अपराध से सम्बन्धित अनेक संगठन पाये जाते हैं, जिनमें कई राजनेता, व्यापारी, उच्चाधिकारी एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति हँसे होते हैं। एक अकेला व्यक्ति जब इनके जाल में फंस जाता है तो वह निरुपाय होता है और इनके विरुद्ध कुछ भी नहीं कर सकता। जब सभी उच्च अधिकारी घूस लेते हों, तो ईमानदार व्यक्ति उनमें टिक नहीं सकता। जब भी बेईमान व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही की जाती है, तो श्वेतवसन अपराधी लोग संगठित होकर उसका विरोध करते हैं। इस प्रकार के कार्यों से श्वेतवसन अपराधियों को और अधिक अपराध करने का प्रोत्साहन मिलता है।

प्रश्न 3
पद का दुरुपयोग श्वेतवसन अपराध का एक कारण है। समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
कई राजकीय एवं गैर-राजकीय अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग करते हैं। वे पैसा लेकर सरकार के गुप्त भेदों को बता देते हैं या रिश्वत देने वाले के पक्ष में निर्णय कर देते हैं। चुनाव के समय भ्रष्ट तरीके अपनाना, इच्छानुसार लोगों को कोटा या परमिट वितरित करना, झूठे प्रमाण-पत्र देना, किसी पद पर नियुक्ति करवाना आदि श्वेतवसन अपराध के ही उदाहरण हैं।

प्रश्न 4
श्वेतवसन अपराध को रोकने के कोई चार उपाय बताइए।
उत्तर:
अब तक श्वेतवसने अपराधों की रोकथाम के लिए कानूनी एवं अन्य प्रकार के प्रयत्न नहीं हुए हैं। इन अपराधों से उत्पन्न दोषों की गम्भीरता को देखते हुए इनके निराकरण के लिए। निम्नलिखित उपाय अपनाये जाने चाहिए

  1. राष्ट्रीय स्तर पर इस प्रकार के अपराधों की छानबीन के लिए जाँच आयोग की स्थापना की। जानी चाहिए।
  2. संरकार द्वारा भ्रष्टाचार निरोध समिति की स्थापना की जाए।
  3.  इस प्रकार की समितियों से सम्बन्धित कर्मचारियों एवं अधिकारियों को जनता अपना सहयोग एवं समर्थन दे और वे श्वेतवसन अपराधियों के काले कारनामे सरकार के समक्ष लाएँ।
  4. सरकार द्वारा शक्तिशाली गुप्तचर विभाग की स्थापना की जाए।

निश्चित उत्तीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
सदरलैण्ड ने श्वेतवसन अपराध की क्या परिभाषा दी है ?
उत्तर:
सदरलैण्ड के अनुसार, “श्वेतवसन अपराध उच्च सामाजिक-आर्थिक वर्ग के व्यक्ति द्वारा अपने पेशे या धंन्धे के क्रिया-कलापों के दौरान अपराधिक कानून का उल्लंघन है।”

प्रश्न 2
श्वेतवसन अपराध की अवधारणा किसने दी ? [2011, 12, 13]
या
श्वेतवसन अपराध की अवधारणा किस समाजशास्त्री से सम्बन्धित है ? [2007]
या
श्वेतवसन अपराध के प्रणेता कौन हैं? [2013]
उत्तर:
श्वेतवसन अपराध की अवधारणा सदरलैण्ड ने दी।

प्रश्न 3
“श्वेतवसन अपराध आधुनिक संस्कृति की उपज है।” सत्य/असत्य [2013]
उत्तर:
सत्य।

प्रश्न 4
सदरलैण्ड द्वारा व्यक्त अपराध को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
श्वेतवसन अपराध।

प्रश्न 5
श्वेतवसन अपराध किस प्रकार के व्यक्तियों द्वारा किये जाते हैं ?
उत्तर:
इस प्रकार के अपराध मुख्यतः चिकित्सकों, कानूनवेत्ताओं, शिक्षा-अधिकारियों, व्यापारियों, संसद सदस्यों, राजनेताओं एवं उद्योगपतियों द्वारा किये जाते हैं।

प्रश्न 6
श्वेतवसन अपराधों का पता लगाना क्यों कठिन है ?
उत्तर:
श्वेतवसन अपराध परोक्ष रूप से बुद्धिमानीपूर्वक किये जाते हैं। अत: इनका पता लगाना कठिन होता है।

प्रश्न 7
क्राइम एण्ड बिज़नेस कृति किसकी है?
उत्तर:
‘क्राइम एण्ड बिज़नेसं’ कृति सदरलैण्ड की है।

प्रश्न 8
श्वेतवसन अपराध के दो उदाहरण दीजिए। (2013)
उत्तर:
वकीलों द्वारा झूठी गवाही दिलवाना तथा पैसों के लालच हेतु डॉक्टरों द्वारा ऑपरेशन करना, श्वेतवसन अपराध के उदाहरण हैं।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
‘श्वेलवसन अपराध की अवधारणा किसने दी है? [2014, 15, 16]
(क) सदरलैण्ड ने
(ख) सोरोकिन ने
(ग) टैफ्ट ने
(घ) सेथना ने

प्रश्न 2
श्वेतवसन अपराध का कारण है
(क) जातिवाद
(ख) संयुक्त परिवार का विघटन
(ग) भौतिकवादी मनोवृत्ति
(घ) निरक्षरता

प्रश्न 3
हाइट कॉलर क्रिमिनैलिटी’ शोध लेख किसने प्रकाशित किया ? [2015]
या
सफेदपोश अपराध की अवधारणा किसने दी है?
(क) टैफ्ट ने
(ख) मार्शल क्लीनार्ड ने
(ग) सदरलैण्ड ने
(घ) फ्रेंक हारटुंग ने

प्रश्न 4
सदरलैण्ड किस पुस्तक के लेखक हैं ?
(क) प्रिंसिपल्स ऑफ सोशियोलॉजी
(ख) फॉकवेज
(ग) पर्सनल डिसऑर्गेनाइजेशन
(घ) कल्चरल सोशियोलॉजी

उत्तर:
1. (क) सदरलैण्ड ने,
2. (ग) भौतिकवादी मनोवृत्ति,
3. (ग) सदरलैण्ड ने,
4. (क) प्रिंसिपल्स ऑफ सोशियोलॉजी।

 

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