UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 3 आत्मज्ञ एवं सर्वज्ञ

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 3
Chapter Name आत्मज्ञ एवं सर्वज्ञ
Number of Questions Solved 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi संस्कृत Chapter 3 आत्मज्ञ एवं सर्वज्ञ

आत्मज्ञ एवं सर्वज्ञ गद्यांशों का सन्दर्भ-सहित हिन्दी अनुवाद

गद्यांश 1
याज्ञवल्क्यो मैत्रेयीमुवाच मैत्रेयि! उद्यास्यन् अहम् अस्मात् स्थानादस्मि। ततस्तेऽनया कात्यायन्या विच्छेदं करवाणि इति। मैत्रेयी उवाच-यदीयं सर्वा पृथ्वी वित्तेन पूर्णा स्यात् तत् किं तेनाहममृता स्यामिति। याज्ञवल्क्य उवाच-नेति।। यथैवोपकरणवतां जीवनं तथैव ते जीवनं स्यात्। अमृतत्वस्य तु नाशास्ति वित्तेन इति। सा मैत्रेयी उवाच-येनाहं नामृता स्याम् किमहं तेन कुर्याम्? यदेव भगवान् केवलममृतत्वसाधन जानाति, तदेव में ब्रूहि। याज्ञवल्क्य उवाच-प्रिया नः सती त्वं प्रियं भाषसे। एहि, उपविश, व्याख्यास्यामि ते अमृतत्वसाधनम्। (2010)
सन्दर्भ प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘आत्मज्ञ एव सर्वज्ञः नामक पाठ से उधृत हैं।
अनुवाद याज्ञवल्क्य ने मैत्रेयी से कहा, “मैत्रेयी! मैं इस स्थान (गृहस्थाश्रम) से ऊपर (पारिव्राज्य आश्रम) जाने वाला हूँ। अतः तुम्हारी सम्पत्ति का मैं (अपनी) दूसरी पत्नी कात्यायनी से बँटवारा कर दें।” मैत्रेयी ने कहा, ” यदि सारी पृथ्वी धन से परिपूर्ण हो जाए तो भी क्या मैं उससे अमर हो। जाऊँगी?” याज्ञवल्क्य बोले–नहीं।

तुम्हारा भी जीवन वैसा ही हो जाएगा जैसा साधन-सम्पन्नों का जीवन  होता है। सम्पत्ति से अमरता की आशा नहीं है। मैत्रेयी बोली, ”मैं जिससे अमर | न हो सकेंगी (भला) उसका क्या करूंगी? भगवन्! आप जो अमरता का साधन जानते हैं केवल वही मुझे बताएँ।” याज्ञवल्क्य ने कहा, “तुम मेरी प्रिया हो और प्रिय बोल रही हो। आओ, बैठो, मैं तुमसे अमृत तत्च के साधन की व्याख्या करूंगा।”

गद्यांश 2
याज्ञवल्क्य उवाचन वा अरे मैत्रेयि! पत्युः कामाय पतिः प्रियो भवति। आत्मनस्तु वै कामाय पतिः प्रियो भवति। न वा अरे, जायायाः कामाय जाया प्रिया भवति, आत्मनस्तु वै कामाय जाया प्रिया भवति। न वा अरे, पुत्रस्य वित्तस्य च कामाय पुत्रो वित्तं वा प्रियं भवति, आत्मनस्तु वै कामाय पुत्रो वित्तं वा प्रियं भवति। न वा अरे, सर्वस्य कामाय सर्व प्रियं भवति, आत्मनस्तु वै कामाय सर्व प्रियं भवति। तस्माद् आत्मा वा अरे मैत्रेयि! द्रष्टव्यः दर्शनार्थं श्रोतव्यः, मन्तव्यः निदिध्यासितव्यश्च। आत्मनः खलु दर्शनन इदं सर्वं विदितं भवति। (2017, 16, 12)
सन्दर्भ पूर्ववत्।।
अनुवाद याज्ञवल्क्य बोले, “अरी मैत्रेयी! (पत्नी को) पति, पति की कामना (इच्छापूर्ति) के लिए प्रिय नहीं होता। पति तो अपनी ही कामना के लिए प्रिय होता है। अरी! न ही (पति को) पत्नी, पत्नी की कामना के लिए प्रिय होती है, (वरन्) अपनी कामना के लिए ही पनी प्रिय होती है। अरी! पुत्र एवं धन की कामना के लिए पुत्र एवं धन, प्रिय नहीं होते, (वरन्) अपनी ही कामना के लिए पुत्र एवं धन प्रिय होते हैं। सबकी कामना के लिए। सब प्रिय नहीं होते, सब अपनी ही कामना के लिए प्रिय होते हैं।” “इसलिए हे मैत्रेयी! आत्मा ही देखने योग्य है। दर्शनार्थ, सुनने योग्य है, मनन करने योग्य तथा ध्यान करने योग्य है। आत्मदर्शन से अवश्य ही यह सब ज्ञात हो जाता है।”

आत्मज्ञ एवं सर्वज्ञ का अर्थ प्रश्न – उत्तर

प्रश्न-पत्र में संस्कृत दिग्दर्शिका के पाठों (गद्य व पद्य) में से चार अति लघु उत्तरीय प्रश्न दिए जाएँगे, जिनमें से किन्हीं दो के उत्तर संस्कृत में लिखने होंगे, प्रत्येक प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

Class 12 Hindi Sanskrit Chapter 3 प्रश्न 1.
मैत्रेयी याज्ञवल्क्यं किम् अपृच्छतु (2010)
उत्तर:
मैत्रेयी याज्ञवल्क्यं केवलम् अमृत्वसाधनम् अपृच्छत्।।

Atmagya Ev Sarvagya प्रश्न 2.
कस्य खलु दर्शनेन इदं सर्वं विदितं भवति (2017)
उत्तर:
आत्मनः खलु दर्शनेन इदं सर्वं विदितं भवति।

Sanskrit Digdarshika Class 12 Chapter 3 प्रश्न 3.
कः सर्वज्ञः भवति? (2018, 16, 14, 11, 10)
उत्तर:
आत्मनः दर्शनेन नर; सर्वज्ञः भवति।

Atmagya Sarvagya प्रश्न 4.
कस्य कामाय सर्व प्रियं भवति? (2017)
उत्तर:
आत्मनः कामाय सर्व प्रियं भवति।

Class 12 Sanskrit Chapter 3 प्रश्न 5.
वित्तेन कस्य आशा न अस्ति? (2018)
उत्तर:
वित्तेन अमृनत्वस्य आशा न अस्ति।

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