UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi रस

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name रस
Number of Questions Solved 55
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi रस

रस का अर्थ रस का शाब्दिक अर्थ आनन्द है। संस्कृत में वर्णन आया है-‘रस्यते आस्वाद्यते इति रसः’ अर्थात् जिसका आस्वादन किया जाए, वह रस है, किन्| साहित्यशास्त्र में काव्यानन्द अथवा काव्यास्वाद के लिए रस शब्द प्रयुक्त होता है।

परिभाषा
काव्य को पढ़ने, सुनने अथवा नाटक देखने से सहृदय पाठक, श्रोता अथवा दर्शक को प्राप्त होने वाला विशेष आनन्द रस कहलाता है। कहानी, उपन्यास, कचिता, नाटक, फिल्म आदि को पढ़ने, सुनने अथवा देखने के क्रम में उसके पात्रों के साथ स्थापित होने वाली आत्मीयता के कारण काव्यानुभूति एवं काव्यानन्द व्यक्तिगत संकीर्णता से मुक्त होता है। काव्य का रस सामान्य जीवन में प्राप्त होने वाले आनन्द से इसी अर्थ में भिन्न भी है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने व्यक्तिगत संकीर्णता से मुक्त अनुभव को ‘हृदय की मुक्तावस्था’ कहा है।

रस के अवयव
भरतमुनि ने ‘नाट्यशास्त्र’ में लिखा है-‘विभावानुभाव व्यभिचारिसंयोगाद्वस निष्पत्तिः अर्थात् विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। इनमें स्थायी भाव स्वतः ही अन्तर्निहित है, क्योंकि स्थायी भावं ही विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारी (संचारी) भाव के संयोग से रस दशा को प्राप्त होता है। इस प्रकार रस के चार अवयव अथवा अंग हैं।

1. स्थायी भाव
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इसे परिभाषित करते हुए लिखा है-‘प्रधान (स्थायी) भाव वहीं कहा जा सकता है, जो रस की अवस्था तक पहुँचे।’
स्थायी भाव ग्यारह माने गए हैं-रति (स्त्री-पुरुष का प्रेम), हास (सी), शोक (दुःख), क्रोध, उत्साह, भय, जुगुप्सा (घृणा), विस्मय (आश्चर्य), निर्वेद (वैराग्य या शान्ति) तथा वात्सल्य (छोटों के प्रति प्रेम), भगवद् विषयक रति (अनुराग)।

2. विभाव
विभाव से अभिप्राय उन वस्तुओं एवं विषयों के वर्णन से है, जिनके प्रति सहृदय के मन में किसी प्रकार का भाव या संवेदना होती है अर्थात् भाव के जो कारण होते हैं, उन्हें विभाव कहते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि विभाव स्थायी भाव के उद्बोधक (जन्म देने वाले) कारण होते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं आलम्बन एवं उद्दीपन

  1. आलम्वन विभाव जिन व्यक्तियों या पात्रों के आलम्बन (सहारे) से स्थायी भाव उत्पन्न होते हैं, वे आलम्बन विभाव कहलाते हैं; जैसे-नायक-नायिका । आलम्बन के भी दो प्रकार हैं,
    • आप्रय जिस व्यक्ति के मन में रति आदि विभिन्न भाव उत्पन्न होते हैं, उन्हें आश्रय कहते हैं।
    •  विषय जिस वस्तु या व्यक्ति के लिए आश्रय के मन में भाव उत्पन्न होते हैं, उन्हें विषय कहते हैं। उदाहरण के लिए; यदि राम के मन में सीता के प्रति रति का भाव जाग्रत होता है, तो राम आश्रय होंगे और सीता विषय।।
  2. उद्दीपन विभाव आश्रय के मन में भाव को उद्दीप्त करने वाले विषय की बाहरी चेष्टाओं और बाह्य वातावरण को उद्दीपन विभाव कहते हैं; जैसे—दुष्यन्त शिकार खेलते हुए कण्व के आश्रम में पहुँच जाते हैं। वहाँ वे शकुन्तला को देखते हैं।

शकुन्तला को देखकर दुष्यन्त के मन में आकर्षण या रति भाव उत्पन्न होता है। उस समय शकुन्तला की शारीरिक चेष्टाएँ दुष्यन्त के मन में रति भाव को और अधिक तीव्र करती हैं। इस प्रकार, विषय (नायिका शकुन्तला) की शारीरिक चेष्टाएँ तथा अनुकूल वातावरण को उद्दीपन विभाव कहा जाएगा।

3. अनुभाव
आन्तरिक मनोभावों को बाहर प्रकट करने वाली शारीरिक चेष्टा अनुभाव कहलाती है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि अनुभाव आश्रय के शारीरिक विकार हैं। अनुभाव चार प्रकार के होते हैं सात्विक, कायिक, वाचिक एवं आहार्य।

  • सात्विक जो अनुभाव मन में आए भाव के कारण स्वतः प्रकट हो जाते हैं, वे सात्विक हैं; जैसे-पसीना आना, रोएँ खड़े होना, कँपकँपी लगना, मुँह फीका , पड़ना आदि। सामान्यतः आठ प्रकार के सात्विक अनुभाव माने जाते हैं—स्वेद, रोमांच, स्वरभंग, कम्प, विवर्णता, स्तम्भ, अनु और प्रलाप।
  •  कायिक शरीर में होने वाले अनुभाव कायिक हैं; जैसे-किसी को पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाना, चितवन से अपने प्रेमी को झकना आदि।
  • वाचिक किसी प्रसंग विशेष के वशीभूत होकर नायक अथवा नायिका (प्रेम-पात्र) द्वारा वाणी के माध्यम से अभिव्यक्ति, वाचिक अनुभाव है।
  • आहार्य नायक-नायिका या अन्य पात्रों के द्वारा वेश-भूषा के माध्यम से भाव-प्रदर्शित करना आहार्य कहलाता है।

4. संचारी अथवा व्यभिचारी भाव
स्थायी भाव के साथ आते-जाते रहने वाले अन्य भावों को अर्थात् मन के चंचल विकारों को संचारी भाव कहते हैं। संचारी भावों को व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है। यह भी आश्रय के मन में उत्पन्न होता है। एक ही संचारी भाव कई रसों के साथ हो सकता है। वह पानी के बुलबुले की तरह उठता और शान्त होता रहता है।
उदाहरण के लिए; शकुन्तला के प्रति रति भाव के कारण उसे देखकर दुष्यन्त के मन में मोह, हर्ष, आवेग आदि जो भाव उत्पन्न होंगे, उन्हें संचारी भाव कहेंगे।

संचारी भावों की संख्या तैंतीस बताई गई है। इनमें से मुख्य संचारी भाव हैं-शंका, निद्रा, मद, आलस्य, दीनता, चिन्ता, मह, स्मृति, धैर्य, लज्जा, चपलता, आवेग, हर्ष, गर्व, विषाद, उत्सुकता, उग्रता, त्रास आदि।

स्थायी भाव तथा संचारी भावों में पारस्परिक सम्बन्ध
रस, स्थायी भाव तथा संचारी भावों के परस्पर सम्बन्ध को इस प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है।

रस स्थायी भाव संचारी भाव
श्रृंगार रति स्मृति, चिन्ता, हर्ष, मोह इत्यादि
हास्य हास हर्ष, निद्रा, आलस्य, चपलता इत्यादि
करुण शोक ग्लानि, शंका, चिन्ता, दीनता इत्यादि
रौद्र क्रोध उग्रता, शंका, स्मृति इत्यादि
वीर उत्साह आवेग, हर्ष, गर्व इत्यादि
भयानक भय त्रास, ग्लानि, शंका, चिन्ता इत्यादि
बीभत्स जुगुप्सा दीनता, निर्वेद, ग्लानि इत्यादि
अद्भुत  विस्मय हर्ष, स्मृति, आवेग, शंका इत्यादि
शान्त  निर्वेद (वैराग्य) हर्ष, स्मृति, धृति इत्यादि
वात्सल्य वत्सल चिन्ता, शंका, हर्ष, स्मृति इत्यादि
भक्ति भगवद् विषयक रति निर्वेद, हर्ष, वितर्क, मति इत्यादि

रस के भेद
रस के मुख्यतः दस (10) भेद होते हैं। हम रस के सभी भेदों को इस प्रकार स्मरण रख सकते हैं-

श्रृंगार हास्य करुण-वीर-रौद्र भयानक
“वीभत्साद्भुत शान्ताश्च वात्सल्यश्च रसा दश।’

1. शृंगार रस (2018, 17, 16, 15, 14, 13, 12)
श्रृंगार रस का स्थायी भाव रति (प्रेम) है। रति का सामान्य अर्थ हैं—प्रीति, किसी मनोनुकूल प्रिय व्यक्ति की और मन का झुकाव या लगाव। जब नायक-नायिका के मन में एक-दूसरे के प्रति प्रीति उत्पन्न होकर विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के योग से स्थायी भाव रति जाग्रत हो तो ‘श्रृंगार रस’ कहलाता है। इसके अन्तर्गत पति-पत्नी अथवा नायक-नायिका का वर्णन होता है। इसमें पर-पुरुष या पर-नारी के प्रेम-वर्णन का निषेध होता है। शृंगार रस के अवयव इस प्रकार हैं-

स्थायी:      भाव रति
आलम्बन विभाव:  नायक अथवा नायिका
उद्दीपन विभाव:  आलम्बन का सौन्दर्य, प्रकृति, चाँदनी, वसन्त ऋतु, वाटिका, संगीत इत्यादि
अनुभाव:  स्पर्श, आलिंगन, अवलोकन, कटाक्ष, मुस्कान, अश्रु इत्यादि।
संचारी भाव:  निर्वेद, हर्ष, लज्जा, जड़ता, चपलता, आशा, स्मृति, आवेग, उन्माद, रुदन इत्यादि

श्रृंगार रस के दो भेद हैं
(i) संयोग श्रृंगार मिलन या संयोग की अवस्था में जब नायकनायिका के प्रेम का वर्णन किया जाए तो वहाँ संयोग श्रृंगार होता है। (2015, 13)
उदाहरण

“दूलह श्रीरघुनाथ बने दुलही सिय सुन्दरी मन्दिर माहीं।
गावति गीत सबै मिलि सुन्दरि बेद जुवा जुरि बिप्र पढ़ाहीं।।
राम को रूप निहारति जानकि कंकन के नग की परछाहीं।
याते सबै सुधि भूलि गई कर टेकि रही, पल टारत नाहीं।।”

तुलसीदास

स्पष्टीकरण (2014)
उक्त पद में स्थायी भाव रति है। विषय राम और आश्रय सीता हैं। उद्दीपन है-राम का नग में पड़ने वाला प्रतिबिम्ब, अनुभाव है- नग में राम के प्रतिबिम्ब का अवलोकन करना, हाथ टेकना तथा संचारी भाव हैं- हर्ष एवं जड़ता। इस प्रकार यहाँ ‘संयोग शृंगार’ है।

(ii) वियोग या विप्रलम्भ श्रृंगार वियोग अथवा एक-दूसरे से दूर रहने की स्थिति में जब नायक-नायिका के प्रेम का वर्णन किया जाता है, तब उसे वियोग श्रृंगार कहते हैं।
उदाहरण

“मैं निज़ अलिन्द में खड़ी थी सखि एक रात
रिमझिम बंद पड़ती थीं घटा छाई थी।
गमक रही थी केतकी की गन्ध चारों ओर
झिल्ली झनकार यही मेरे मन भाई थी।
करने लगी मैं अनुकरण स्वनूपुरों से
चंचला थी चमकी घनाली घहराई थी।
चौक देखा मैंने चुप कोने में खड़े थे प्रिय,
माई मुखलज्जा उसी छाती में छिपाई थी।

मैथिलीशरण गुप्त (‘यशोधरा से)

स्पष्टीकरण
इस पद में स्थायी भाव रति हैं। आलम्बन है- उर्मिला। उद्दीपन है- घटा, बूंदें, फूल की गन्ध और झिल्लियों की झनकार। अनुभाव हैं- छाती में मुख को छिपाना और संचारी भाव हैं- हर्ष, लज्जा एवं स्मृति। अतः यहाँ ‘वियोग’ अथवा ‘विप्रलम्भ’ श्रृंगार हैं।

2. हास्य रस (2018, 17, 15, 14, 12)
जब किसी (वस्तु अथवा व्यक्ति) की वेशभूषा, वाणी, चेष्टा, आकार इत्यादि में आई विकृति को देखकर सहज हँसी आ जाए तब वहाँ हास्य रस होता है।
हास्य रस के अवयव इस प्रकार हैं।

स्थायी भाव हास
आलम्बन – विकृत वस्तु अथवा व्यक्ति
उद्दीपन – आलम्बन की अनोखी आकृति, चेष्टाएँ, बातचीत इत्यादि
अनुभाव – आश्रय की मुस्कान, आँखों का मिचमिचाना तथा अट्टहास करना।
संचारी भाव – हर्ष, निद्रा, आलस्य, चपलता, उत्सुकता, भ्रम, कम्पन इत्यादि
उदाहरण

“बिन्ध्य के बासी उदासी तपो व्रतधारि महा बिनु नारि दुखारे।
गौतमतीय तरी तुलसी सो कथा सुनि भे मुनिवृन्द सुखारे।।
है हैं सिला सब चन्द्रमुखी परसे पद मंजुल कंज तिहारे।
कीन्हीं भली रघुनायक जू! करुणा करि कानन को पगु धारे।।”

तुलसीदास

स्पष्टीकरण
उक्त पद्यांश में विन्ध्य क्षेत्र में पहुँचे श्रीराम के चरण स्पर्श से पत्थर को सुन्दर नारी में परिवर्तित होते जान वहाँ विद्यमान नारियों से दूर रहने वाले तपस्वीगण के प्रसन्न होने का वर्णन है। इस पद्यांश में स्थायी भाव हास है। आलम्बन है- राम और उद्दीपन है- गौतम ऋषि की पत्नी का उद्धारा अनुभव – मुनियों की कथा आदि सुनाना और संचारी भाव हैं- हर्ष, चंचलता एवं उत्सुकता। अतः यहाँ ‘हास्य रस’ है।

3. करुण रस (2018, 17, 16, 14, 13, 12)
जब प्रिय या मनचाही वस्तु के नष्ट होने या उसका कोई अनिष्ट होने पर हृदय शोक से भर जाए, तब ‘करुण रस’ जाग्रत होता है। इसमें विभाव, अनुभाव व संचारी भावों के मेल से शोक नामक स्थायी भाव का जन्म होता है। इसके अवयव इस प्रकार हैं-

स्थायी – भाव शोक
आलम्बन – विनष्ट वस्तु अथवा व्यक्ति
उद्दीपन – आलम्बन का दाहकर्म, इष्ट की विशेषताओं का उल्लेख, उसके चित्र एवं उससे सम्बद्ध वस्तुओं का वर्णन
अनुभाव – रुदन, प्रलाप, कम्प, मूच्र्छा, नि:श्वास, छाती पीटना, भूमि पर गिरना, दैवनिन्दा इत्यादि।
संचारी भाव – निर्वेद, व्याधि, चिन्ता, स्मृति, मोह, अपस्मार, ग्लानि, विषाद, दैन्य, उन्माद, श्रम इत्यादि
उदाहरण

“जो भूरि भाग्य भरी विदित थी अनुपमेय सुहागिनी,
हे हृदय बल्लभ! हैं वहीं अब मैं यहाँ हत मागिनी।
जो साथिनी होकर तुम्हारी थी अतीव सनाथिनी, ।
है अब उसी मुझसी जगत् में और कोई अनाथिनी।।”

मैथिलीशरण गुप्त

स्पष्टीकरण
यहाँ स्थायी भाव शोक है। आलम्बन के अन्तर्गत विषय है—अभिमन्यु का शव तथा आश्रय हैं-उत्तरा। उत्तरा के द्वारा अभिमन्यु की वीरता की स्मृति उद्दीपन हैं और अनुभाव है-उसका चित्कार करना। संचारी भाव हैं-स्मृति, चिन्ता, दैन्य इत्यादि। अतः यहाँ ‘करुण रस’ है।

4. वीर रस (2018, 17, 16, 15, 14, 13)
युद्ध करने के लिए अथवा नीति, धर्म आदि की दुर्दशा को मिटाने जैसे कठिन कार्यों | के लिए मन में उत्पन्न होने वाले उत्साह से वीर रस की उत्पत्ति होती हैं।
वीर रस के अवयव निम्नलिखित हैं-

स्थायी भाव – उत्साह
आलम्बन – शत्रु
उद्दीपन – शत्रु की शक्ति, अहंकार, रणवाद्य, यश की चाह, याचक का आर्तनाद इत्यादि
अनुभाव – प्रहार करना, गर्वपूर्ण उक्ति, रोमांच, कम्प, धर्मानुकूल आचरण करना इत्यादि।
संचारी भावे – हर्ष, उत्सुकता, गर्व, चपलता, आवेग, उग्रता, मति, धृति, स्मृति, असूया इत्यादि।
उदाहरण

चढ़त तुरंग, चतुरंग साजि सिवराज,
चढ़त प्रताप दिन-दिन अति जंग में।
भूषण चढ़त मरहअन के चित्त चाव,
खग्ग खुली चढ़त है अरिन के अंग में।
भौंसला के हाथ गढ़ कोट हैं चढ़त,
अरि जोट है चढ़त एक मेरू गिरिसुंग में।
तुरकान गम व्योमयान है चढ़त बिनु ।
मन है चढ़त बदरंग अवरंग में।।”

भूषण

स्पष्टीकरण
उक्त पद्यांश में स्थायी भाव है- उत्साह। औरंगजेब और तुरक आलम्बन विभाव हैं, जबकि शत्रु का भाग जाना, मर जाना उद्दीपन विभाव हैं। घोड़ों का चढ़ना, सेना सजाना, तलवार चलाना आदि अनुभाव हैं। उग्रता, क्रोध, चाव, हर्ष, उत्साह इत्यादि। संचारी भाव हैं। अतः यहाँ ‘वीर रस’ का निष्पादन हुआ है।

5. रौद्र रस (2018, 17, 15, 14, 13, 19)
विरोधी पक्ष की ओर से व्यक्ति, समाज, धर्म अथवा राष्ट्र की निन्दा या अपमान करने पर मन में उत्पन्न होने वाले क्रोध से रौद्र रस की उत्पत्ति होती है। इसके अवयव । निम्नलिखित हैं-

स्थायी भाव – क्रोध
आलम्बन – विरोधी, अनुचित बात कहने वाला व्यक्ति
उद्दीपन – विरोधियों के कार्य एवं वचन
अनुभाव – शस्त्र चलाना, भौंहें चढ़ाना, दाँत पीसना, मुख लाल करना, गर्जन, आत्म-प्रशंसा, कम्प, प्रस्वेद इत्यादि।
संचारी भाव – उग्रता, अमर्ष, आवेग, उद्वेग, मद, मोह, असूया, स्मृति इत्यादि
उदाहरण

“उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा।।
मानो हवा के वेग से सौता हुआ सागर जगा।”

स्पष्टीकरण
इस काव्यांश में स्थायी भाव है- क्रोध एवं अभिमन्यु को मारने वाला जयद्रथ आलम्बन हैं। अकेले बालक अभिमन्यु को चक्रव्यूह में फंसाकर सात महारथियों द्वारा आक्रमण करना उद्दीपन है। शरीर काँपना, क्रोध करना, मुख लाल होना अनुभाव है तथा उग्रता, चपलता आदि संचारी भाव हैं। अतः यह ‘रौद्र रस’ को उदाहरण है।

6. शान्त रस (2018, 17, 16, 14, 13, 12)
तत्त्व-ज्ञान, संसार की क्षणभंगुरता तथा सांसारिक विषय-भोगों की असारता से उत्पन्न होने वाले वैराग्य से शान्त रस की उत्पत्ति होती है।
इसके अवयव निम्नलिखित हैं-

स्थायी भाव – निर्वेद
आलम्बन – तत्त्व ज्ञान का चिन्तन एवं सांसारिक क्षणभंगुरता
उद्दीपन – शास्त्रार्थ, तीर्थ यात्रा, सत्संग इत्यादि
अनुभाव – पूरे शरीर में रोमांच, अश्रु, स्वतन्त्र होना इत्यादि।
संचारी भाय – मति, धृति, हर्ष, स्मृति, निर्वेद, विबोध इत्यादि।।

उदाहरण

“मन मस्त हुआ फिर क्यों डोले?
हीरा पायो गाँठ गठियायो, बार-बार वाको क्यों खोले?”

स्पष्टीकरण

इस पद में स्थायी भाव निर्वेद है, ईश्वर विषय है तथा कवि आश्रय है। ईश्वर भक्ति व सुलभ वातावरण उद्दीपन हैं तथा ईश्वर की भक्ति में लीन होना, धन्यवाद करना, गाना आदि अनुभाव हैं। प्रसन्नता, विस्मय आदि प्रकट करना संचारी भाव हैं। अतः यहाँ ‘शान्त रस’ उपस्थित है।

7. अद्भुत रस (2018, 16, 13, 11)
किसी असाधारण, अलौकिक या आश्चर्यजनक वस्तु, दृश्य या घटना देखने, सुनने से मन का चकित होकर, ‘विरमय’ स्थायी भाव का प्रादुर्भाव होना ‘अद्भुत रस’ की । उत्पत्ति करता है। मायः जासूसी, तिलिस्मी, ईश्वर वर्णन आदि से सम्बन्धित साहित्य में अद्भुत रस पाया जाता है।
इसके अवयव निम्नलिखित हैं

स्थायी भावे – विस्मय
आलम्बन – विस्मय उत्पन्न करने वाली वस्तु या व्यक्ति
उद्दीपन – अलौकिक वस्तुओं के दर्शन, श्रवण, कीर्तन इत्यादि
अनुभाव – रोमांच, गद्गद् होना, दाँतों तले अँगुली दबाना, आँखें फाड़कर देखना, काँपना, आँसू आना इत्यादि
संचारी भाव – हर्ष, उत्सुकता, मोह, धृति, भ्रान्ति, आवेग इत्यादि

उदाहरण

“अखिल भुवन चर-अचर सब, हरि मुख में लखि मातु
चकित भई गद्गद् वचन, विकसित दृग पुलकातु।”

काव्य कल्पद्रुम

स्पष्टीकरण
यशोदा श्रीकृष्ण के मुख में समस्त ब्रह्माण्ड को देखकर विस्मित हो जाती हैं। उनके मुख से प्रसन्नता के शब्द निकल पड़ते हैं और उनकी आँखें फैल जाती हैं। इस प्रकार यहाँ स्थायी भाव विस्मय है, आलम्बन है- कृष्ण का मुख एवं आश्रय हैयौदा। उद्दीपन है- श्रीकृष्ण के मुख के अन्दर का दृश्य। अनुभाव हैं- गद्गद् वचन एवं आँखों का फैलना तथा संचारी भाव हैं- विस्मय, आश्चर्य हर्ष आदि। अतः यहाँ ‘अद्भुत रस’ है।

8. भयानक रस (2017, 16, 15, 14, 13, 12)
किसी बात को सुनने, किसी वस्तु, व्यक्ति को देखने अथवा उसकी कल्पना करने से मन में भय छा जाए, तो उस वर्णन में भयानक रस विद्यमान रहता है। | इसके अवयव निम्नलिखित हैं।

स्थायी भाय – भय
आलम्बन – भयंकर वस्तु अथवा हिंसक पशुओं के दर्शन आदि।
उद्दीपन – भयावह स्वर, भयंकर चेष्टाएँ आदि
अनुभाव – मूळ, रुदन, पलायन, पसीना छूटना, कम्पन, मुँह सूखना, चिन्ता करना इत्यादि
संचारी भाय – चिन्ता, त्रास, सम्मोह, सम्भ्रम, दैन्य इत्यादि

उदाहरण

“एक ओर अजगरहिं लखि एक ओर मृगराय।
विकल बटोही बीच ही पयो मूरछा खाय।।”

स्पष्टीकरण
इस काव्यांश में स्थायी भाव भय है, राहगीर आश्रय है तथा भयानक जंगल आलंम्बन हैं। वन्य जीवों; जैसे अजगर, मृगराज सिंह का राहगीर की ओर बढ़ना उद्दीपन विभाव हैं। डरना, मूछित होना अनुभाव हैं तथा जड़ता, त्रास, चिन्ता आदि संचारी भाव हैं। अतः यह भयानक रस’ का उदाहरण है।

9. वीभत्स रस (2017, 16, 14, 13, 12)
जुगुप्साजनक या पृणा उत्पन्न करने वाली वस्तुओं अथवा परिस्थितियों को देख-सुनकर मन में उत्पन्न होने वाले भाव वीभत्स रस को उत्पन्न करते हैं। काव्य में इस रस का प्रयोग परिस्थिति के अनुरोध से हुआ है। इसके अवयव निम्नलिखित है।

स्थायी भाव – जुगुप्सा
आलम्बन – रक्त, अस्थि, दुर्गन्धयुक्त मांस इत्यादि।
उद्दीपन – शव का सड़ना, उसमें कीड़े लगना, पशुओं द्वारा उन्हें नचना, खाना इत्यादि।
अनुभाव – घृणा करना, मुँह बनाना, थूकना, नाक को टेढ़ा करना इत्यादि।
संचारी भाव – ग्लानि, मोह, शंका, व्याधि, चिन्ता, जड़ता, वैव, आवेग इत्यादि

उदाहरण

“सिर पर बैठ्यो काग आँख दोउ खात निकारत।
खींचत जीभहिं स्यार अतिहि आनन्द कर धारत।।
गीध जाँघ कहँ खोदि-खोदि कै मास उचारत।
स्वान आँगुरिन काटि-काटि के खाते विचारत।।
बहु चील नोच लै जात तुच मोद भयो सबको हियो।।
मनु ब्रह्मभोज जजिमान कोउ आज भिखारिन कह दियो।।”

स्पष्टीकरण
यहाँ श्मशान में सेवारत् राजा हरिश्चन्द्र की चर्णन किया गया है, जिन्हें पशु-पक्षियों द्वारा शव को नोच-नोचकर खाते देख मन में जुगुप्सा (घृणा) पैदा होती है। यहाँ रथायी भाव जुगुप्सा है। श्मशान का दृश्य आलम्बन है व पाठक आश्रय हैं। कौए द्वारा आँख निकालना, सियार द्वारा जीभ खींचना उद्दीपन हैं। राजा हरिश्चन्द्र द्वारा इनका वर्णन अनुभाव है तथा संचारी भाव हैं-मोह, स्मृति आदि। अतः यहाँ ‘वीभत्स रस’ है।

10. वात्सल्य रस (2014, 13)
वात्सल्य रस का सम्बन्ध छोटे बालक-बालिकाओं के प्रति प्रेम एवं ममता से है। छोटे बालक-बालिकाओं की मधुर चेष्टा, उनकी बोली के प्रति माता-पिता तथा पड़ोसियों की स्नेह, प्यार आदि वात्सल्य रस की उत्पत्ति करते हैं। इसके अवयव निम्नलिखित हैं।

स्थायी भाव – स्नेह (वात्सल्यता)
आलम्बन – सन्तान, शिष्य आदि
उद्दीपन – बाल-ढ, बालक की चेष्टाएँ, तुतलाना, उसका रूप एवं उसकी वस्तुएँ
अनुभाव – बच्चों को गोद लेना, थपथपाना, आलिंगन करना, सिर पर हाथ फेरना इत्यादि
संचारी भाव – हर्ष, आवेग, गर्व, मोह, शंका, चिन्ता इत्यादि

उदाहरण

“सोहित कर नवनीत लिए
घुटुन चलत रेनु तन मण्डित
मुख दधि लेप किए।”

स्पष्टीकरण
यहाँ स्थायी भाव स्नेह (वात्सल्यता) है, बालक कृष्ण आलम्बन विभाव है तथा माता-पिता आश्रय हैं। बालकृष्ण का घुटनों तक धूल से भरा शरीर होना, मुंह पर ही का लेप आदि होना उद्दीपन विभाव हैं। हँसना, प्रसन्न होना इत्यादि अनुभाव हैं। विस्मित होना, मुग्ध होना इत्यादि संचारी भाव हैं। इस प्रकार यह ‘वात्सल्य रस’ का उदाहरण हैं।

11. भक्ति रस
भगवद्-अनुरक्ति तथा अनुराग के वर्णन से भक्ति रस की उत्पत्ति होती है। प्राचीन आचार्य इसे भगवद्-विषयक् रति मानकर श्रृंगार रस के अन्तर्गत रखते थे। इसके अवयव निम्नलिखित हैं।

स्थायी भाव – भगवद्-विषयक रति
आलम्बन राम-सीता, कृष्ण-राधा इत्यादि।
उद्दीपन – परमेश्वर के कार्यकलाप, सत्संग आदि।
अनुभाव – भगवद्-भजन, कीर्तन, ईश्वर-मग्न होकर हँसना-रोना, नाचना इत्यादि।
संचारी भाव – निर्वेद, हर्ष, वितर्क, मति इत्यादि

उदाहरण

“अँसुबन जल सचि-सचि, प्रेम-चेलि बोई।
‘मीरा’ की लगन लागी, होनी हो सो होई।।”

मीरा

स्पष्टीकरण
यहाँ स्थायी भाव श्रीकृष्ण के प्रति मीरा का अनुराग है। आलम्बन हैं- श्रीकृष्ण एवं सत्संग उद्दीपन है। आँसुओं से प्रेमरूपी बेलि का बोना और उसे सींचना अनुभाव है। तथा हर्ष, शंका आदि संधारी भाव हैं। अतः यहाँ ‘भक्ति रस’ है।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
श्रृंगार रस का स्थायी भाव है। (2011, 10)
(क) निर्वेद
(ख) रति
(ग) वात्सल्यता
(घ) उत्साह
उत्तर:
(ख) रति प्रश्न

प्रश्न 2.
“साजि चतुरंग सैन अंग में उमंग धारि,
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत हैं।”
इन पंक्तियों में निहित रस को नाम निम्नांकित विकल्पों में से चुनकर लिखिए
(क) रौद्र
(ख) अद्भुत
(ग) वीर
(घ) श्रृंगार
उत्तर:
(ग) वीर

प्रश्न 3.
स्थायी भावों को उद्दीप्त अथवा तीव्र करने वाला कारण कहलाता है। (2010)
(क) आलम्बन विभाव
(ख) अनुभाव
(ग) संचारी भाव
(घ) उद्दीपन विभाव
उत्तर:
(घ) उद्दीपन विभाव

प्रश्न 4.
करुण रस का स्थायी भाव है।
(क) क्रोध
(ख) निर्वेद
(ग) शोक
(घ) भय
उत्तर:
(ग) शोक

प्रश्न 5.
वीर रस का स्थायी भाव है। (2010)
(क) वात्सल्य
(ख) उत्साह
(ग) शोक
(घ) आश्चर्य
उत्तर:
(ख) उत्साह

प्रश्न 6.
आचार्यों ने संचारी भावों की संख्या निश्चित की है (2011)
(क) 32
(ख) 33
(ग) 34
(घ) 36
उत्तर:
(ख) 33

प्रश्न 7.
रौद्र रस का स्थायी भाव है (2009, 08, 07, 06, 04)
(क) निर्वेद
(ख) क्रोध
(ग) रतिः
(घ) हास
उत्तर:
(ख) क्रोध

प्रश्न 8.
शान्त रस का स्थायी भाव है। (2011)
(क) निर्वेद
(ख) शोक
(ग) भय
(घ) उत्साह
उत्तर:
(क) निर्वेद

प्रश्न 9.
“जहाँ सुमति तहँ सम्पत्ति नाना।
जहाँ कुमति त बिपति निदाना।।”
उपरोक्त पद में कौन-सा रस है? (2010)
(क) करुण
(ख) भयानक
(ग) श्रृंगार
(घ) शान्त
उत्तर:
(घ) शान्त

प्रश्न 10.
भयानक रस का स्थायी भाव निम्नलिखित विकल्पों को देखकर लिखिए (2014, 11)
(क) क्रोध
(ख) शोक
(ग) उत्साह
(घ) भय
उत्तर:
(घ) भय

प्रश्न 11.
“अर्द्ध रात गइ कपि नहिं आयउ। राम उठाइ अनुज उर लायउ।।।
सकह न दुखित देखि मोहिं काऊ। बन्धु सदा तव मृदुल सुभाऊ।।।
जौं जनतेॐ बन बन्धु बिछोहू। पिता बचन मनतेउँ नहिं ओहू।।”
उपरोक्त पंक्तियों में कौन-सा रस है? (2011)
(क) अद्भुत
(ख) करुण
(ग) वीर
(घ) शान्त
उत्तर:
(ख) करुण

प्रश्न 12.
अदभुत रस का स्थायी भाव है। (2011, 10)
(क) हास
(ख) शोक
(ग) उत्साह
(घ) आश्चर्य
उत्तर:
(घ) आश्चर्य

प्रश्न 13.
वीभत्स रस का स्थायी भाव है। (2011)
(क) भय
(ख) निर्वेद
(ग) शोक
(घ) जुगुप्सा
उत्तर:
(घ) जुगुप्सा

प्रश्न 14.
“ऐसी मूढता या मन की।
परिहरि रामभगति सुर सरिता आस करत ओस कन की।”
इस पद में रस है। (2010)
(क) करुण
(ख) श्रृंगार
(ग) वीर
(घ) शान्त
उत्तर:
(घ) शान्त

प्रश्न 15.
हास्य रस का स्थायी भाव है। (2011, 10)
(क) हास
(ख) उत्साह
(ग) आश्चर्य
(घ) भय
उत्तर:
(क) होस

प्रश्न 16.
“फहरी ध्वजा, फड़की भुजा, बलिदान की ज्वाला उठी।।
निज मातृभूमि के मान में, चढ़ मुण्ड की माला उठी।।”
उपरोक्त पद में रस है। (2011)
(क) करुण
(ख) वीर
(ग) वीभत्स
(घ) भयानक
उत्तर:
(ख) वीर

प्रश्न 17.
“यह वर माँगउ कृपा निकेता, बसहु हृदय श्री अनुज समेता।”
उक्त पद में प्रयुक्त रस का नाम है। (2010)
(क) श्रृंगार
(ख) अद्भुत
(ग) भक्ति
(घ) शान्त
उत्तर:
(ग) भक्ति

प्रश्न 18.
“देखि रूप लोचन ललचाने। हरसे जनु निज निधि पहचाने।।
लोचन मग रामहिं, उर लानी। दीन्हें पलक कपाट सयानी।।”
उपरोक्त काव्य-पक्तियों में रस है। (2008)
(क) वीर
(ख) श्रृंगार
(ग) हास्य
(घ) करुण
उत्तर:
(ख) शृंगार

प्रश्न 19.
“सामने टिकते नहीं वनराज, पर्वत डोलते हैं,
काँपता है कुण्डली मारे समय का व्याल,
मेरी बाँह में मारुत, गरुड़, गजराज का बल है।”
उपरोक्त पंक्तियों में कौन-सा रस हैं?
(क) हास्य रस
(ख) रौद्र रस
(ग) वीर रस
(घ) वीभत्स रस
उत्तर:
(ग) वीर रस

प्रश्न 20.
“कोऊ स्याम-स्याम कै बहकि बिललानी कोऊ
कोमल करेजौ थामि सहमि सुखानी है।”
इस पद में निहित रस का नाम लिखिए।
(क) अद्भुत
(ख) वीर
(ग) करुण
(घ) श्रृंगार
उत्तर:
(घ) श्रृंगार

प्रश्न 21.
“स्याम और सुनदर दोउ जोरी।
निरखत छवि जननी तृन तोरी।।”
उपरोक्त पद में कौन-सा रस है? (2011)
(क) शान्त रस
(ख) वात्सल्य रस
(ग) श्रृंगार रस
(घ) करुण रस
उत्तर:
(ख) वात्सल्य रस

प्रश्न 22.
“कहूँ हाड़ परौ, कहूँ जरो अधजरो मांस,
कहूँ गीध भीर, मांस नोचत अरी अहै।”
उपरोक्त पद में कौन-सा रस है?
(क) हास्य
(ख) वीभत्स
(ग) भयानक
(ध) रौद्र
उत्तर:
(ख) वीभत्स

प्रश्न 23.
“इहाँ उहाँ दुई बालक देखा, मति भ्रम मोर कि आन बिसेखा।”
उक्त पद में प्रयुक्त रस का नाम है (2011)
(क) श्रृंगार
(ख) अद्भुत
(ग) भक्ति
(घ) शान्त
उत्तर:
(ख) अद्भुत

प्रश्न 24.
“सिर पर बैठा काग, आँखि दोउ खात निकारत।।
खींचत जीभहिं स्यार, अतिहिं आनन्द उर धारत।।”
उपरोक्त अवतरण में रस है। (2011, 10)
(क) वीभत्स
(ख) रौद्र
(ग) अद्भुत
(घ) भयानक
उत्तर:
(क) वीभत्स

प्रश्न 25.
“पापी मनुज भी आज मुख से राम-राम निकालते।
देखो भयंकर भेड़िए भी, आज आँसू ढालते।।”
इन पंक्तियों में कौन-सा रस है? (2010)
(क) वीभत्स
(ख) रौद्र
(ग) अद्भुत
(घ) भयानक
उत्तर:
(ग) अद्भुत

प्रश्न 26.
वीभत्स रस का आलम्बन होता है।
(क) सेना
(ख) तपस्वी
(ग) श्मशान
(घ) विस्मय जनक वस्तु
उत्तर:
(ग) श्मशान

प्रश्न 27.
प्रिय वस्तु की अपने प्रति प्रेम भावना का स्मरण किस रस का उद्दीपन है?
(क) हास्य
(ख) श्रृंगार
(ग) अद्भुत
(घ) करुण
उत्तर:
(घ) करुण

प्रश्न 28.
‘रे नृप बालक बोतल तोहि न सँभार’ में रस है।
(क) करुण
(ख) रौद्र
(ग) वीर
(घ) हास्य
उत्तर:
(घ) हास्य

प्रश्न 29.
‘जोश’ किस रस का संचारी भाव है?
(क) अद्भुत
(ख) वात्सल्य
(ग) वीर
(घ) हास्य
उत्तर:
(ग) वीर

प्रश्न 30.
पाठक या दर्शक किस रस का आश्रय होता है?
(क) हास्य
(ख) वीर
(ग) अद्भुत
(घ) वीभत्स
उत्तर:
(घ) वीभत्स

प्रश्न 31.
‘क्या ही स्वच्छ चाँदनी है यह पंक्ति में उद्दीपन है।
(क) क्या ही
(ख) स्वच्छ
(ग) स्वच्छ चाँदनी
(घ) चाँदनी
उत्तर:
(ग) स्वच्छ चाँदनी

प्रश्न 32.
जब चित्त शान्त अवस्था में होता है, तो किस रस की उत्पत्ति होती है?
(क) वात्सल्य
(ख) शान्त
(ग) वीर
(घ) भयानक
उत्तर:
(ख) शान्त

प्रश्न 33.
‘मूर्च्छित होना’ किस रस का अनुभव है?
(क) अद्भुत
(ख) श्रृंगार
(ग) करुण
(घ) रौद्र
उत्तर:
(ग) करुण

प्रश्न 34.
स्त्री-पुरुष के बीच प्रेम कहलाता है।
(क) श्रृंगार रस
(ख) वात्सल्य रस
(ग) भक्ति रस
(घ) अद्भुत रस
उत्तर:
(क) श्रृंगार रस

प्रश्न 35.
सन्तान के प्रति प्रेम किस रस के अन्तर्गत आता है?
(क) श्रृंगार
(ख) वात्सल्य
(ग) शान्त
(घ) वीर
उत्तर:
(ख) वात्सल्य

प्रश्न 36.
ईश्वर के प्रति प्रेम किस रस के अन्तर्गत आता है?
(क) अद्भु त
(ख) मुक्ति
(ग) वात्सल्य
(घ) वीभत्स
उत्तर:
(ख) भक्ति

प्रश्न 37.
‘विंध्य के वासी उदासी तपोव्रत धारी महा बिनु नारि दुखारे।’ पंक्ति में आलम्बन विभाव है।
(क) विंध्याचल पर्वत
(ख) मुनि
(ग) उदासी
(घ) नारि
उत्तर:
(ख) मुनि

प्रश्न 38.
‘आनन्द’ को कहते हैं।
(क) खुशी
(ख) प्रसन्नता
(ग) दुःख
(घ) रस
उत्तर:
(घ) रस

प्रश्न 39.
‘आनन्द’ का पर्याय है।
(क) दुःख
(ख) सुख
(ग) रस
(घ) मग्न
उत्तर:
(ग) रस

प्रश्न 40.
जो भाव हमारे मन में स्थायी रूप से रहते हैं, उन्हें कहते हैं।
(क) उद्दीपन विभाव
(ख) संचारी भाव
(ग) स्थायी भाव
(घ) आलम्बन विभाव
उत्तर:
(ग) स्थायी भाव

अति लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है? उसका स्थायी भाव लिखिए।
जथा पंख बिनु खग अति दीना। (2016)
मनि बिनु फनि करिवर कर हीना।।
अस सम जिवन बन्धु बिनु तोही।
जौ जड़ दैव जियावइ मोही।।।
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में करुण रस है। इसका स्थायी भाव शोक है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है और क्यों? (2012)
“सदियों से ठण्डी बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है।
दो राह समय के रथ का घर-घरे नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।”
उत्तर:
इन पंक्तियों में वीर रस है, क्योंकि यहाँ प्रजा का शोषण करने वाली सत्ता को उखाड़ फेंकने और उसके स्थान पर स्वराज की स्थापना करने के लिए लोगों का आह्वान किया जा रहा है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है? उसका स्थायी भाव लिखिए।
“सूर्यास्त से पहले न जो मैं कल जयद्रथ वध करूँ। (2013)
तो शपथ करता हैं स्वयं मैं ही अनल में जल मलें।।”
उत्तर:
इन पंक्तियों में वीर रस है, जिसका स्थायी भाव ‘उत्साह’ (ओज) है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है? उसका स्थायी भाव लिखिए। (2014, 13)
“कहत नटत रीझत खिझत मिलत खिलते लजियात।
भरे भौन में करत है नैननु ही सों बात।।”
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में संयोग श्रृंगार रस है। इसका स्थायी भाव रति है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है? उसका स्थायी भाव लिखिए।
“राम को रूप निहारति जानकी, कंकण के नग की परछाई। (2014)
याते सबै सुधि भूलि गई, कर टेक रही पर टारत नाहीं।।”
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में संयोग शृंगार रस है, जिसका स्थायी भाव रति है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है? उसका स्थायी भाव लिखिए।
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो।
सामने पहाड़ हो कि सिंह की दहाड़ हो।
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में वीर रस है। इसकी स्थायी भाव ‘उत्साह है।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है? इसका स्थायी भाव लिखिए।
मन पछिते हैं अवसर बीते।
दुर्लभ देह पाई हरिपद भजु, करम वचन अरु होते।।
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में शान्त रस है। इसका स्थायी भाव ‘निवेद’ है।।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है? इसका स्थायी भाव लिखिए।
बैठी खिन्ना मक दिवस वे गेह में थी अकेली।।
आके आँसू दृग-युगल में थे धरा को भिगोते।।
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में वियोग शृंगार है। इसका स्थायी भाव ‘रति’ है।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है?
विन्ध्य के वासी उदासी तपो व्रत धारि महा बिनु नारि दुखारे।
गौतम तीय तरी तुलसी सो कथा सुनि भे मुनि बृन्द सुखारे।।
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में हास्य रस है।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस हैं?
कबहुँक हाँ यहि रहनि राँगो।।
श्री रघुनाथ-कृपाल-कृपा तें सन्त सुभाव गहगो।।
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में शान्त रस है।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है?
बिनु पद चलै सुनै बिनु काना।
कर बिनु कर्म करै बिधि नाना।।
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में अद्भुत रस है।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है? इसका स्थायी भाव लिखिए।
लंकी की सेना तो कपि के गर्जन-रण से काँप गयी।
हनुमान के भीषण दर्शन से विनाश ही भाँप गयी।।
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में भयानक रस है। इसका स्थायी भाव भय है।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सी रस है? इसका स्थायी भाव लिखिए।
गिद्ध जाँघ को खोदि-खोदि के मांस उपारत।
स्वान आँगुरिन काटि-काटि कै खात बिदारत।।
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में वीभत्स रस है। इसका स्थायी भाव जुगुप्सा या घृणा है।

प्रश्न 14.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है? इसका स्थायी भाव लिखिए।
स्याम गौर सुन्दर दोऊ जोरी।
निरखहिं छवि जननी तृन तोरी।।।
उत्तर:
इन पंक्तियों में वात्सल्य रस है। इसका स्थायी भाव वत्सलता है।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है? इसका स्थायी भाव लिखिए।
पुलक गीत हियँ सिय रघुबीरू।
जीह नाम जय लोचन नीरू।।
उत्तर:
उपरोक्त पंक्तियों में भक्ति रस है। इसका स्थायी भाव देवविषयक रति है।

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