UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 8 गीत

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 8
Chapter Name गीत
Number of Questions Solved 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 8 गीत

गीत – जीवन/साहित्यिक परिचय

(2018, 17, 16, 14, 13, 11)

प्रश्न-पत्र में संकलित पाठों में से चार कवियों के जीवन परिचय, कृतियाँ तथा भाषा-शैली से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं। जिनमें से एक का उत्तर देना होता है। इस प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

जीवन परिचय एवं साहित्यिक उपलब्धियाँ
महादेवी वर्मा का जन्म फर्रुखाबाद (उत्तर प्रदेश) के एक प्रतिष्ठित शिक्षित कायस्थ परिवार में वर्ष 1907 में हुआ था। इनकी माता हेमरानी हिन्दी व संस्कृत की ज्ञाता तथा साधारण कवयित्री थीं। नाना व माता के गुणों का प्रभाव ही महादेवी जी पर पड़ा। नौ वर्ष की छोटी आयु में ही विवाह हो जाने के बावजूद इन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा। महादेवी वर्मा का दाम्पत्य जीवन सफल नहीं रहा। विवाह के बाद उन्होंने अपनी परीक्षाएँ सफलतापूर्वक उत्तीर्ण की। उन्होंने घर पर ही चित्रकला एवं संगीत की शिक्षा अर्जित की। इनकी उच्च शिक्षा प्रयाग में हुई। कुछ समय तक इन्होंने ‘चाँद” पत्रिका का सम्पादन भी किया।

इन्होंने शिक्षा समाप्ति के बाद वर्ष 1933 से प्रयाग महिला विद्यापीठ के प्रधानाचार्या पद को सुशोभित किया। इनकी काव्यात्मक प्रतिभा के लिए इन्हें हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा ‘सैकसरिया’ एवं ‘मंगला प्रसाद’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वर्ष 1983 में ‘भारत-भारती’ तथा ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ (‘यामा’ नामक कृति पर) द्वारा सम्मानित किया गया।

भारत सरकार द्वारा ‘पद्मभूषण’ सम्मान से सम्मानित इस महान् लेखिका का स्वर्गवास 11 सितम्बर, 1987 को हो गया।

साहित्यिक गतिविधियाँ
छायावाद की प्रमुख प्रतिनिधि महादेवी वर्मा का नारी के प्रति विशेष दृष्टिकोण एवं भावुकता होने के कारण उनके काव्य में रहस्यवाद, वेदना भाव, आलौकिक प्रेम आदि की अभिव्यक्ति हुई है। महादेवी वर्मा की ‘चाँद’ पत्रिका में रचनाओं के प्रकाशन के पश्चात् उन्हें विशेष प्रसिद्धि प्राप्त हुई।।

कृतियाँ
इनका प्रथम प्रकाशित काव्य संग्रह ‘नीहार’ है। ‘रश्मि’ संग्रह में आत्मा-परमात्मा के मधुर सम्बन्धों पर आधारित गीत संकलित हैं। ‘नीरजा’ में प्रकृति प्रधान गीत संकलित हैं। ‘सान्ध्यगीत’ के गीतों में परमात्मा से मिलन का आनन्दमय चित्रण हैं। ‘दीपशिखा’ में रहस्यभावना प्रधान गीतों को संकलित किया गया है। इसके अतिरिक्त ‘अतीत के चलचित्र’, ‘स्मृति की रेखाएँ, ‘श्रृंखला की कड़ियाँ’ आदि इनकी गद्य रचनाएँ हैं। ‘यामा’ में इनके विशिष्ट गीतों का संग्रह प्रकाशित हुआ है।

काव्यगत विशेषताएँ
भाव पक्ष

  1. अलौकिक प्रेम का चित्रण महादेवी वर्मा के सम्पूर्ण काव्य में अलौकिक ब्रह्म के प्रति प्रेम का चित्रण हुआ है। वहीं प्रेम आगे चलकर इनकी साधना बन गया। इस अलौकिक ब्रह्म के विषय में कभी इनके मन में मिलने की प्रबल भावना जाग्रत हुई है, तो कभी रहस्यमयी प्रबल जिज्ञासा प्रकट हुई है।
  2. रहस्यात्मकता आत्मा के परमात्मा से मिलन के लिए बेचैनी इनके काव्य में प्रकट हुई है। आत्मा से परमात्मा के मिलन के सभी सोपानों का वर्णन , महादेवी वर्मा के काव्य में मिलता है। मनुष्य का प्रकृति से तादात्म्य, प्रकृति पर चेतनता का आरोप, प्रकृति में रहस्यों की अनुभूति, असीम सत्ता और उसके प्रति समर्पण तथा सार्वभौमिक करुणा आदि विशेषताएँ इनके रहस्यवाद से जुड़ी हैं। इन्होंने प्रकृति पर मानवीय भावनाओं का आरोपण करके उससे आत्मीयता स्थापित की।
  3. वेदना भाव महादेवी वर्मा के काव्य में मौजूद वेदना में साधना, संकल्प एवं लोक कल्याण की भावना निहित है। वेदना इन्हें अत्यन्त प्रिय है। इनकी इच्छा है कि इनके जीवन में सदैव अतृप्ति बनी रहे। इन्होंने कहा भी है-“मैं नीर भरी दुःख की बदली।” इन्हें ‘आधुनिक मीरा’ की संज्ञा भी दी गई है।
  4. प्रकृति का मानवीकरण महादेवीं के काव्य में प्रकृति आलम्बन, उद्दीपन, उपदेशक, पूर्वपीठिका आदि रूपों में प्रस्तुत हुई है। इन्होंने प्रकृति में विराट की छाया देखी है। छायावादी कवियों के समान ही इन्होंने प्रकृति का मानवीकरण किया है। सुन्दर रूपकों द्वारा प्रकृति के सुन्दर चित्र खींचने में महादेवी जी की समानता कोई नहीं कर सकता। 5. रस महादेवी जी के काव्यों में श्रृंगार के दोनों पक्षों वियोग और संयोग के साथ करुण एवं शान्त रसों का सुन्दर परिपाक हुआ है।

कला पक्ष

  1. भाषा महादेवी जी की भाषा संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली हैं। इनकी भाषा का स्निग्ध एवं प्रांजल प्रवाह अन्यत्र देखने को नहीं मिलते हैं। कोमलकान्त पदावली ने भाषा को अपूर्व सरसता प्रदान की है।
  2. शैली इनकी शैली मुक्तक गीतिकाव्य की प्रवाहमयी सुव्यवस्थित शैली है। ये शब्दों को पंक्तियों में पिरोकर कुछ ऐसे ढंग से प्रस्तुत करती हैं कि उनकी मौक्तिक आभा एवं संगीतात्मक पूँज सहज ही पाठकों को आकर्षित कर लेती है।
  3. सूक्ष्म प्रतीक एवं उपमान महादेव जी के काव्य में मौजूद प्रतीकों, रूपकों एवं उपमानों की गहराई तक पहुँचने के लिए आस्तिकता, आध्यात्मिकता एवं अद्वैत दर्शन की एक डुबकी अपेक्षित होगी, अन्यथा हमें इनकी अभिव्यंजना के बाह्य रूप को तो देख पाएँगे, किन्तु इनकी सूक्ष्म आकर्षण शक्ति तक पहुँच पाना कठिन होगा।
  4. लाक्षणिकता लााणिकता की दृष्टि से महादेवी जी का काव्य बहुत प्रभावशाली हैं। इन्होंने अपने गीतों के सुन्दर चित्र अंकित किए हैं। कुशल चित्रकार की भाँति इन्होंने थोड़े शब्दों से ही सुन्दर चित्र प्रस्तुत किए हैं।
  5. छन्द एवं अलंकार महादेवी जी ने मात्रिक छन्दों में अपनी कुछ कविताएँ लिखी हैं, परन्तु सामान्यतया विविध गीत-छन्दों का प्रयोग किया है, जो इनकी मौलिक देन है। इन्होंने अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। इनके यहाँ उपमा, रूपक, श्लेष, मानवीकरण, सांगरूपक, रूपकातिशयोक्ति, ध्वन्यर्थ-व्यंजना, विरोधाभास, विशेषण विपर्यय आदि अलंकारों का सहज रूप में प्रयोग हुआ है।

हिन्दी साहित्य में स्थान
महादेवी वर्मा छायावादी युग की एक महान् कवयित्री समझी जाती हैं। इनके भावपक्ष और कलापक्ष दोनों ही अद्वितीय हैं। सरस कल्पना, भावुकता एवं वेदनापूर्ण भावों को अभिव्यक्त करने की दृष्टि से इन्हें अपूर्व सफलता प्राप्त हुई है। कल्पना के अलौकिक हिण्डोले पर बैठकर इन्होंने जिस काव्य का सृजन किया, वह हिन्दी साहित्याकाशं में ध्रुवतारे की भाँति चमकता रहेगा।

पद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-पत्र में पद्य भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर देने होंगे।

गीत-1

प्रश्न 1.
चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना!
जाग तुझको दूर जाना!
अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कम्प हो ले,
या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;
आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया,
जाग या विद्युत-शिखाओं में निठुर तूफान बोले!
पर तुझे है नाश-पथ पर चिह्न अपने छोड़ आना!
जाग तुझको दूर जाना!
बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बन्धन सजीले?
पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रँगीले?
विश्व का क्रन्दन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,
क्या डुबा देंगे तुझे यह फूल के दल ओस-गीले?
तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना
जाग तुझको दूर जाना!

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) पद्यांश की कवयित्री व शीर्षक का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर:
पद्यांश की कवयित्री छायावादी रचनाकार महादेवी वर्मा हैं तथा काव्यांश का शीर्षक ‘गीत’ हैं।

(ii) कवयित्री आँखों से क्या प्रश्न करती हैं?
उत्तर:
कवयित्री आँखों से प्रश्न करती हैं कि है! निरन्तर जागरूक रहने वाली आँखें आज नींद से भरी अर्थात् आलस्ययुक्त क्यों हों? तुम्हारा वैश आज इतना अव्यवस्थित क्यों है? आज अलसार्ने का समय नहीं है, इसलिए आलस्य एवं प्रमाद को छोड़कर अब तुम जाग जाओ, क्योंकि तुम्हें बहुत दूर जाना है।

(iii) कवयित्री साधना पथ पर चलते हुए कौन-कौन सी कठिनाइयों के आने की बात कहती हैं?
उत्तर:
कवयित्री कहती है कि साधना-पथ पर चलते हुए दृढ़ हिमालय कम्पित हो जाए, आकाश से प्रलयकारी वर्षा होने लगे, घोर अन्धकार प्रकाश को निगल जाए या चाहे चमकती और कड़कती हुई बिजली से तूफार आने लगे, लेकिन तुम अपने पथ से विचलित मत होना और आगे बढ़ते रहना।

(iv) “बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बन्धन सजीले” पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवयित्री अपने प्रिय से प्रश्न करती है कि क्या मोम के समान शीघ्र नष्ट हो जाने वाले अरिथर, अस्थायी, परन्तु सुन्दर एवं अपनी ओर आकर्षित करने वाले ये सांसारिक बन्धन तुम्हें तुम्हारे पथ से विश्वलित कर देंगे?

(v) कवयित्री अपने प्रिय को प्रेरित करते हुए क्या कहती है?
उत्तर:
कयित्री अपने प्रिय को साधन-पथ पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित करने के लिए कहती है कि तुम्हारे मार्ग में अनेक कठिनाइयाँ आएँगी, विभिन्न सांसारिक आकर्षण तुम्हें अपनी ओर आकर्षित करेंगे, तुम्हें भावनात्मक रूप से कमजोर करेंगे, लेकिन इनसे विचलित न होना और आगे बढ़ते रहना।

प्रश्न 2.
कह न ठण्डी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,
आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी;
हार भी तेरी बनेगी मानिनी जय की पताका,
राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी!
है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना!
जाग तुझको दूर जाना!

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) मनुष्य को अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
कवयित्री कहती है कि मनुष्य के समक्ष अकर्मण्यता एवं आलस्य जैसे अवगुण शत्रु बनकर खड़े हो जाते हैं। वस्तुतः मनुष्य को जीवन में आने वाले दुखों एवं कठिन परिस्थितियों आदि को भूलकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में निरन्तर आगे बढ़ते रहना चाहिए।

(ii) लक्ष्य या परमात्मा को प्राप्त करने का साधन क्या बनता है?
उत्तर:
कवयित्री का मानना है कि जब तक हृदय में किसी लक्ष्य को पाने की इच्छा नहीं होती, तब तक मनुष्य की आँखों से टपकतै आँसुओं का कोई मूल्य नहीं होता। लक्ष्य को प्राप्त करने की तड़प ही मनुष्य को प्रेरित करती हैं और परमात्मा को पाने का साधन या माध्यम बनती हैं।

(iii) कवयित्री ने पतंगे का उदाहरण क्यों दिया है?
उत्तर:
पतंगा अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अथक प्रयास करता है और उसे प्राप्त करने के क्रम में समाप्त हो जाता है। कवयित्री पतंगे के इसी गुण से मनुष्य को अवगत कराने के लिए उसका उदाहरण देती हैं, ताकि मनुष्य भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अथक प्रयास करें।

(iv) कवयित्री “अंगार-शय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाने के माध्यम से क्या कहना चाहती हैं?
उत्तर:
“अंगार-शय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाने” के माध्यम से कवयित्री यह कहना चाहती हैं कि साधक तुझे अपनी तपस्या से संसार रूपी इस अंगार-शय्या अर्थात् कष्टों से भरे इस संसार में फूलों की कोमल कलियों जैसी आनन्दमय परिस्थितियों का निर्माण करना है।

(v) प्रस्तुत पद्यांश की भाषा-शैली पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत काव्यांश की भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है, जो भावों को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः सक्षम है। भाषा सहज, सरल, प्रवाहमयी एवं प्रभावमयी है। इस पद्यांश में लयात्मकता एवं तुकान्तता का गुण विद्यमान है, जिसके कारण इसकी शैली गेयात्मक हो गई है।

गीत-2

प्रश्न 3.
पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला!
घेर ले छाया अमा बन, आज कज्जल-अश्रुओं में
रिमझिमा ले वह घिरा घन; और होंगे नयन सूखे,
तिल बुझे औ पलक रूखे, आर्दै चितवन में यहाँ शत
विद्युतों में दीप खेला! अन्य होंगे चरण हारे,
और हैं जो लौटते, दे शूल की संकल्प सारे;
दु:खव्रती निर्माण उन्मद यह अमरता नापते पद,
बाँध देंगे अंक-संसृति से तिमिर में स्वर्ण बेला!

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश के शीर्षक एवं उसके रचनाकार का नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश गीत-2 कविता से लिया गया है, जो दीपशिखा काव्य संग्रह में संकलित है। इसकी रचनाकार ‘महादेवी वर्मा हैं।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश में लेखिका किस पथ पर आगे बढ़ने का आह्वान करती
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में लेखिका साधना के अपरिचित पथ पर बिना घबराहट एवं डगमगाहट के आगे बढ़ने का आह्वान करती है।

(iii) महादेवी के जीवन रूपी दीप का स्वभाव कैंसी नहीं है?
उत्तर:
महादेवी वर्मा के जीवन रूपी दीप का स्वभाव कष्टों एवं कठिनाइयों से घबराकर साधनों पथ से पीछे हट जाना नहीं है, क्योंकि उनके जीवन रूपी दीप ने सैकड़ों विद्युत रूपी कठिनाइयों को झेलते हुए आगे बढ़ना सीखा है।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश में लेखिका का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
निराश व हताश न होने का संकल्प करके आत्मा परमात्मा के मिलन के पथ पर निरन्तर आगे बढ़ना ही लेखिका का उद्देश्य है।

(v) अंक संसृति’ एवं ‘तिमिर’ शब्दों का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
अंक संसृति = संसार की गोद
तिमिर = अन्धकार

प्रश्न 4.
दूसरी होगी कहानी, शून्य में जिसके मिटे स्वर,
धूलि में खोई निशानी, आज जिस पर प्रलय विस्मित,
मैं लगाती चल रही नित,
मोतियों की हाट औ चिनगारियों का एक मेला!

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) लेखिका के अनुसार दुसरी कहानी क्या हैं?
उत्तर:
लेखिका के अनुसार जिसमें अपने लक्ष्य को प्राप्त किए बिना ही जिस साधक के स्वर क्षीण हो जाते हैं तथा जिनके पद-चिह्नों को समय मिटा देता है, वह कोई दूसरी कहानी होगी।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश में किस भाव की अभिव्यक्ति हुई है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में साधक द्वारा अपना सर्वस्व न्यौछावर करके ईश्वर को प्राप्त करने के भाव की अभिव्यक्ति हुई है।

(iii) प्रस्तुत पद्यांश में लेखिका ने क्या दृढ़ संकल्प लिया है?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में लेखिका ने आध्यात्मिक शक्ति द्वारा मार्ग की विभिन्न बाधाओं को पार करके ईश्वर रूपी प्रिय को प्राप्त करने का दृढ़ संकल्प लिया है।

(iv) लेखिका परमात्मा रूपी प्रियतम की प्राप्ति के लिए किसका बाजार लगा रही है ?
उत्तर:
लेखिका परमात्मा रूपी प्रियतम की प्राप्ति के लिए मोतियों रूपी आंसुओं का बाजार लगा रही है, जिसमें वह इन आँसुओं की चमक से अन्य साधकों में भी ईश्वर प्राप्ति की चिंगारियाँ जगाने में सफल रही है।

(v) ‘शून्य एवं आज’ शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर:
विस्मित = स्मृति
आज = कला

गीत-3

प्रश्न 5.
पथ को न मलिन करता आना
पद-चिह्न न दे जाता जाना,
मेरे आगम की जग में
सुख की सिरहन हो अन्त खिली!
विस्तृत नभ का कोई कोना,
मेरा न कभी अपना होना,
परिचय इतना इतिहास यही
उमड़ी कल थी मिट आज चली!
मैं नीर भरी दुःख की बदली!

उपरोक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(i) कवयित्री अपने जीवन की तुलना किससे व क्यों करती हैं?
उत्तर:
कवयित्री आकाश में छाए बादलों से तुलना करते हुए कहती हैं कि जिस प्रकार आकाश में बादलों के छाने से वह मलिन नहीं होता और न ही बरसने के पश्चात् उसका कोई पद चिह्न शेष रहता है, उसी प्रकार कवयित्री का जीवन भी निष्कलंक हैं। वह जैसे आई थी वैसे ही लौट रही

(ii) कवयित्री का स्मरण लोगों में खुशियाँ क्यों बिखेर देता है?
उत्तर:
कवयित्री अपने व्यक्तित्व की तुलना आकाश में छाने वाले बादलों से करते हुए स्वयं को निष्कलंक मानती हैं। अपने इसी गुण के कारण जब भी उसका स्मरण लोगों के मस्तिष्क में होता है, तो वह उसमें खुशी की सिहरन पैदा कर देता है।

(iii) विस्तृत नभ का कोई कोना, मेरी न कभी अपना होना” पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति से कवयित्री का आशय यह है कि जिस प्रकार इस विशाल आकाश में बादल घूमता रहता है, वहाँ पर उसे कोई स्थायित्व प्राप्त नहीं होता, उसी प्रकार स्वयं कवयित्री का जीवन भी है, जिसे इस विशाल जगत् में स्थायित्व प्राप्त नहीं हुआ।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत काव्यांश में कवयित्री ने बादल से ही जीवन की साम्यता प्रस्तुत करके उसी क्षण भंगुरता को प्रकट करने का प्रयास किया है, साथ ही वह यह सन्देश देना चाहती हैं कि मनुष्य जीवन निष्कलंक होना चाहिए, ताकि उसका स्मरण होने पर लोगों के चेहरे पर मुस्कान आ जाए।

(v) प्रस्तुत पद्यांश में अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
कवयित्री ने सम्पूर्ण पद्यांश में बादल को मनुष्य के रूप में प्रकट करके उसका मानवीकरण कर दिया है, जिस कारण सम्पूर्ण पद्यांश में मानवीकरण अलंकार है। इसके अतिरिक्त पद-चिह्न न दे जाता जाना, में ‘ज’ वर्ण की आवृत्ति, ‘सुख की सिहरन हो’ में ‘स’ वर्ण की आवृत्ति, व ‘परिचय इतना इतिहास यही’ में ‘इ’ वर्ण की आवृत्ति के कारण पद्यांश में अनुप्रास अलंकार भी विद्यमान है।

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