UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 3 पवन-दूतिका

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Board UP Board
Textbook SCERT, UP
Class Class 12
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 3
Chapter Name पवन-दूतिका
Number of Questions Solved 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Sahityik Hindi पद्य Chapter 3 पवन-दूतिका

Pawan Dutika Class 12 Hindi पवन-दूतिका – जीवन/साहित्यिक परिचय

(2018, 17, 16, 14, 13, 12, 11, 10)

प्रश्न-पत्र में संकलित पाठों में से चार कवियों के जीवन परिचय, कृतियाँ तथा भाषा-शैली से सम्बन्धित प्रश्न पूछे जाते हैं। जिनमें से एक का उत्तर: देना होता हैं। इस प्रश्न के लिए 4 अंक निर्धारित हैं।

Pawan Dutika जीवन परिचय एवं साहित्यिक उपलब्धियाँ
तिवेदी युग के प्रतिनिधि कवि और लेखक अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का जन्म 1866 ई. में उत्तर: प्रदेश के आजमगढ़ ज़िले में निजामाबाद नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम पण्डित भोलासिंह उपाध्याय तथा माता का नाम रुक्मिणी देवी था। स्वाध्याय से इन्होंने हिन्दी, संस्कृत, फारसी और अंग्रेजी भाषा का अ ज्ञान प्राप्त कर लिया। इन्होंने लगभग 20 वर्ष तक कानूनगो के पद पर कार्य किया। इनके जीवन का ध्येय अध्यापन ही रहा। इसलिए उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में अवैतनिक रूप से अध्यापन कार्य किया। इनकी रचना “प्रियप्रवास’ पर इन्हें हिन्दी के सर्वोत्तम पुरस्कार ‘मंगला प्रसाद पारितोषिक’ से सम्मानित किया गया। वर्ष 1947 में इनका देहावसान हो गया।

Pavan Dutika Class 12 साहित्यिक गतिविधियाँ
प्रारम्भ में ‘हरिऔध’ जी ब्रज भाषा में काव्य रचना किया करते थे, परन्तु बाद में महावीरप्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से उन्होंने खड़ी बोली हिन्दी में काव्य रचना की। हरिऔध जी के काव्य में लोकमंगल का स्वर मिलता है।

Pawan Dutika Class 12 Vyaakhya In Hindi कृतियाँ
हरिऔध जी की 15 से अधिक लिखी रचनाओं में तीन रचनाएँ विशेष रूप से उल्लेखनीय है प्रियप्रवास’, ‘पारिजात’ तथा ‘वैदेही वनवास’। ‘मियप्रयास’ खड़ी बोली। में लिखा गया पहला महाकाव्य है, जो 17 सर्गों में विभाजित है। इसमें राधा-कृष्ण को सामान्य नायक-नायिका के स्तर से उठाकर विश्व-सेवी एवं विश्व प्रेमी के रूप में चित्रित । किया गया है। प्रबन्ध कायों के अतिरिक्त इनकी मुक्तक कविताओं के अनेक संग्रह-‘चोखे चौपदे’, ‘चुभते चौपदे’, ‘प-प्रसून’, ‘ग्राम-गीत’, ‘कल्पलता आदि उल्लेखनीय हैं।

नाट्य कृतियाँ ‘प्रद्युम्न विजय’, ‘रुक्मिणी परिणय’।
उपन्यास ‘प्रेमकान्ता’, ‘ठेत हिन्दी का ठाठ’ तथा ‘अधखिली फूल’

काव्यगत विशेषताएँ
भाव पक्ष

  1. वयं विषय की विविधता हरिऔध जी की प्रमुख विशेषता है। इनके काव्य में प्राचीन कथानकों में नवीन उदभावनाओं के दर्शन होते हैं। इनकी रचनाओं में इनके आराध्य भगवान मात्र न होकर जननायक एवं जनसेवक हैं। उन्होंने कृष्ण-राधा, राम सीता से सम्बन्धित विषयों के साथ-साथ आधुनिक समस्याओं को लेकर उन पर नवीन ढंग से अपने विचार प्रस्तुत किए हैं।
  2. वियोग और वात्सल्य वर्णन हरिऔध जी के काव्य में वियोग एवं वात्सल्य को वर्णन मिलता है। उन्होंने प्रियप्रवास में कृष्ण के मथुरा गमन तथा उसके बाद ब्रज की दशा का अत्यंत मार्मिक वर्णन किया है। हरिऔध जी ने कृष्ण के वियोग में दु:खी सम्पूर्ण ब्रजवासियों का तथा पुत्र वियोग में व्यभित यशोदा का करुण चित्र भी प्रस्तुत किया है।
  3. लोक-सेवा की भावना हरिऔध जी ने कृष्ण को ईश्वर के रूप में न देखकर | आदर्श मानव एवं लोक सेवक के रूप में अपने काव्य में चित्रित किया है।
  4. प्रकृति-चित्रण हरिऔध जी की प्रकृति चित्रण सराहनीय है। उन्हें काव्य में जहाँ भी अवसर मिला, उन्होंने प्रकृति को चित्रण किया है, साथ ही उसे विविध रूपों में भी अपनाया है। हरिऔध जी का प्रकृति चित्रण सजीव एवं परिस्थितियों के अनुकूल है। प्रकृति सम्बन्धित प्राणियों के सुख में सुखी एवं दुःख में दुखी दिखाई देती है। कृष्ण के वियोग में ब्रज के वृक्ष भी रोते हैं
    फूलों-पत्तों सकल पर हैं वादि-बूंदें लखातीं,
    रोते हैं या विपट सब यो आँसुओं को दिखा के

कला पक्ष

  1. भाषा काव्य के धोत्र में भाव, भाषा, शैली, छन्द एवं अलंकारों की दृष्टि से हरिऔध जी की काव्य साधना महान् है। इनकी रचनाओं में कोमलकान्त पदावलीयुक्त ब्रजभाषा (“सकलश’) के साथ संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग (“प्रियप्रवास’, ‘वैदेही वनवास’) द्रष्टव्य है। इन्होंने मुहावरेदार बोलचाल की खड़ी बोली (चोखे चौपदे’, ‘चुभते चौपदे’) का प्रयोग किया। इसलिए आचार्य शुक्ल ने इन्हें ‘द्विकलात्मक कला’ में सिद्धहस्त कहा है। एक ओर सरल एवं प्रांजल हिन्दी का प्रयोग, तो दूसरी और संस्कृतनिष्ठ शब्दावली के साथ-साथ सामासिक एवं आलंकारिक शब्दावली का प्रयोग भी है।
  2. शैली इन्होंने प्रबन्ध एवं मुक्तक दोनों शैलियों का सफल प्रयोग अपने काव्य में किया। इसके अतिरिक्त इनके काव्यों में इतिवृत्तात्मक, मुहावरेदार, संस्कृत-काव्यनिष्ठ, चमत्कारपूर्ण एवं सरल हिन्दी शैलियों का अभिव्यंजना शिल्प की दृष्टि से सफल प्रयोग मिलता है।
  3. छन्द सवैया, कवित्त, छप्पय, दोहा आदि इनके प्रिय छन्द हैं और इन्द्रवज्रा, शार्दूलविक्रीडित, शिखरिणी, मालिनी, वसन्ततिलका, द्रुतविलम्वित आदि संस्कृत वर्णवृत्तों का प्रयोग भी इन्होंने किया।
  4. अलंकार इन्होंने शब्दालंकार एवं अर्थालंकार दोनों का भरपूर एवं स्वाभाविक प्रयोग किया है। इनके काव्यों में उपमा के अतिरिक्त रूपक, उत्प्रेक्षा, अपहृति, व्यतिरेक, सन्देह, स्मरण, प्रतीप, दृष्टान्त, निदर्शना, अर्थान्तरन्यास आदि अलंकारों का भावोत्कर्षक प्रयोग मिलता है।

हिन्दी साहित्य में स्थान
हरिऔध जी अपने जीवनकाल में ‘कवि सम्राट’, ‘साहित्य वाचस्पति’ आदि उपाधियों से सम्मानित हुए। हरिऔध जी अनेक साहित्यिक सभाओं एवं हिन्दी साहित्य सम्मेलनों के सभापति भी रहे। इनकी साहित्यिक सेवाओं का ऐतिहासिक महत्त्व है। निःसन्देह ये हिन्दी साहित्य की एक महान् विभूति हैं।

पद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-पत्र में पद्य भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से किसी एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर: देने होंगे।

पवन दूतिका कविता का अर्थ Class 12 प्रश्न 1.
बैठी खिन्ना यक दिवस वे गेह में थीं अकेली।
आके आँसू दृग-युगल में थे धरा को भिगोते।।
आई धीरे इस सदन में पुष्प-सद्गन्ध को ले।
प्रात:वाली सुपवन इसी काल वातयनों से।।।
सन्तापों को विपुल बढ़ता देख के दु:खिता हो।
धीरे बोली स-दुख उससे श्रीमती राधिका यों।।
प्यारी प्रातः पवन इतना क्यों मुझे है सताती।
क्या तू भी है कलुषित हुई काल की क्रूरता से।।

उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने राधा की किस स्थिति का वर्णन किया है?
उत्तर:
प्ररतुत पद्यांश में कवि ने विरहावस्था के कारण दुःखी नायिका का वर्णन किया है। जिसके नयनों से अश्रुओं की धारा बह रही है तथा मन को हर्षित एवं आनन्दित करने वाली प्रातःकालीन पवन भी नायिका को दुःखी करती हैं। नायिका की इसी स्थिति का वर्णन कवि ने किया है।

(ii) नायिका ने पवन को क्रूर क्यों कहा?
उत्तर:
नायिका का मन खिन्न एवं उदास था। उसके नयन अश्रुओं से भरे हुए थे। नायिका की इस दैन्य दशा में प्रातःकालीन पवन जब सभी में उमंग एवं उत्साह । का संचार कर रही थी, तब वह नायिका के लिए हृदय विदारक बनकर उसके दुःख को बढ़ा रही थी, इसलिए नायिका ने उसे क्रूर कहा।

(iii) नायिका ने पवन से क्या कहा?
उत्तर:
नायिका ने पवन से कहा कि वह इतनी क्रूर, निर्दयी व उसकी पीड़ा को बढ़ाने वाली क्यों बनी हुई है? क्या वह भी उसी के समान किसी पीड़ा से व्यथित है?

(iv) प्रस्तुत पद्यांश की रस योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में वियोग श्रृंगार रस है। इस पद्यांश में कवि ने नायिका की विरहावस्था का वर्णन किया है।

(v) ‘सदगन्ध’ व ‘क्लर’ शब्दों के विपरीतार्थी शब्द लिखिए।
उत्तर:

शब्द विपरीतार्थी शब्द
सद्गन्ध दुर्गन्ध
क्रूर दयालु

पवन दूतिका का हिंदी अनुवाद प्रश्न 2.
लज्जाशीला पथिक महिला जो कहीं दृष्टि आए।
होने देना विकृत-वसना तो न तू सुन्दरी को।।
जो थोड़ी भी श्रमित वह हो, गोद ले श्रान्ति खोना।
होठों की औ कमल-मुख की म्लानताएँ मिटाना।।
कोई क्लान्ता कृषक-ललना खेत में जो दिखावे।
धीरे-धीरे परस उसकी क्लान्तियों को मिटाना।।
जाता कोई जलद यदि हो व्योम में तो उसे ला।
छाया द्वारा सुखित करना तप्त भूतांगना को।।

उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने नायिका के द्वारा पवन को कही गई बातों के माध्यम से परोपकार की भावना को महत्त्व दिया है। नायिका द्वारा स्वयं की पीड़ा से पहले दूसरों की पीड़ा एवं कष्टों को दूर करने का सन्देश दिया गया है।

(ii) नायिका पवन से लज्जाशील महिला के प्रति कैसा आचरण अपनाने के लिए कहती हैं?
उत्तर:
नायिका पवन से लज्जाशील महिला के प्रति स्नेह एवं प्रेम का आचरण अपनाने के लिए कहते हुए कहती हैं कि यदि उसे मार्ग में कोई लज्जाशील महिला मिले तो वह उसके वस्त्रों को न उड़ाए। यदि वह उसे थोड़ी थकी हुई लगे तो उसे अपनी गोद में लेकर उसकी थकान और मुख की मलिनता को हर लेना।

(iii) नायिका पवन से किस प्रकार कृषक महिला की सहायता करने के लिए कहती है?
उत्तर:
नायिका पवन से कहती है कि यदि उसे मथुरा जाते समय तुम्हें कोई कृषक महिला खेतों में काम करते हुए दिखाई दे, तो उसके पास जाकर अपने स्पर्श से उसकी थकान को मिटा देना। साथ ही आकाश में छाए बादलों को अपने वेग से उड़ाकर उनकी छाया के द्वारा उसे शीतलता प्रदान करना और उसकी सहायता करना।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश के शिल्प सौन्दर्य का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली का प्रयोग किया है। कवि ने प्रबन्ध शैली में नायिका की वियोगावस्था का वर्णन किया हैं। कवि ने रूपक, पुनरुक्तिप्रकाश व मानवीकरण अलंकारों का प्रयोग करके पद्यांश के भाव-सौन्दर्य में वृद्धि कर दी है।

(v) ‘जलद’ व ‘व्योम’ शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर:

शब्द विपरीतार्थी शब्द
जलद बादल मेघ
व्योम आकाश, गगन

पवन-दूतिका का हिंदी अनुवाद Pdf प्रश्न 3.
साँचे ढाला सकल वपु है दिव्य सौन्दर्यशाली।
सत्पुष्पों-सी सुरभि उसकी प्राण-सम्पोषिका है।
दोनों कन्धे वृषभ-वर-से हैं बड़े ही सजीले।।
लम्बी बांहें कलभ-कर-सी शक्ति की पेटिका हैं।
राजाओं-सा शिर पर लसा दिव्य आपीड़ होगा।
शोभा होगी उभय श्रुति में स्वर्ण के कुण्डलों की।
नाना रत्नाकलित भुज में मंजु केयूर होंगे।
मोतीमाला लसित उनका कम्बु-सा कण्ठ होगा।

उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) प्रस्तुत पद्यांश में नायिका ने किसे प्राण पोषिका के समान बताया हैं?
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में नायिका अर्थात् राधा, पवन को श्रीकृष्ण के विषय में बताते हुए कहती है कि उनका सुडौल शरीर साँचे में ढला हुआ प्रतीत होता है। उनके तन से आने वाली सुगन्ध प्राणों को पोषित करने वाली है अर्थात् वह मन को आह्लादित करने वाली है।

(ii) नायिका ने श्रीकृष्ण की क्या-क्या विशेषताएँ बताई हैं?
उत्तर:
नायिका श्रीकृष्ण की विशेषताएँ बताते हुए कहती है कि उनका शरीर सुडौल है, उनके कन्धे वृषभ के समान बलिष्ठ हैं, उनकी भुजाएँ हाथी की सुंड के समान बलशाली हैं, उनके मस्तिष्क पर राजाओं के समान अपूर्व सौन्दर्य से युक्त मुकुट विराजमान है। उनकी गर्दन सुन्दर एवं सुडौल है।

(iii) प्रस्तुत पद्यांश का केन्द्रीय भाव संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने नायिका की विरहावस्था एवं श्रीकृष्ण के प्रति उनके प्रेम को उद्घाटित किया है। नायिका कृष्ण से दूर ब्रज प्रदेश में हैं, किन्तु उसके मन मस्तिष्क में उनकी छवि विद्यमान है। वह कृष्ण रूप, बेल आदि से अत्यधिक आकर्षित है।

(iv) प्रस्तुत पद्यांश की भाषा-शैली संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली का प्रयोग किया है। कवि ने प्रबन्धात्मक शैली में नायिका की विरह व्यथा को प्रस्तुत किया है। भाषा में तुकान्तता एवं लयात्मकता का गुण विद्यमान है। अभिधा शब्दशक्ति व प्रसाद गुण के प्रयोग से काव्य की भाषा अधिक प्रभावशाली हो गई है।

(v) ‘स्वर्ण’ व ‘सुरभि शब्दों के दो-दो पर्यायवाची लिखिए।
उत्तर:

शब्द विपरीतार्थी शब्द
स्वर्ण कनक, कुन्दन
सुरभि सुगंध, खुशबू

Pawan Dutika Class 12 प्रश्न 4.
जो प्यारे मंजु उपवन या वाटिका में खड़े हों।
छिद्रों में जा क्वणित करना वेणु-सा कीचकों को।
यों होवेगी सुरति उनको सर्व गोपाँगना की।
जो हैं वंशी श्रवण-रुचि से दीर्घ उत्कण्ठ होती।
ला के फूले कमलदल को श्याम के सामने ही।
थोड़ा-थोड़ा विपुल जल में व्यग्र हो-हो डुबाना।
यों देना ऐ भगिनी जतला एक अम्भोजनेत्रा।।
आँखों को ही विरह-विधुरा वारि में बोरती है।

उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) राधा श्रीकृष्ण को अपना सन्देश देने के लिए पवन से क्या कहती है?
उत्तर:
राधा पवन को उसकी विरहावस्था से श्रीकृष्ण को अवगत कराने के लिए बाँसों एवं कमल के खिले हुए फूल को माध्यम बनाने के लिए कहती है।

(ii) श्रीकृष्ण को गोपियों का स्मरण कराने के लिए राधा पवन से क्या कहती हैं?
उत्तर:
श्रीकृष्ण को गोपियों का स्मरण कराने के लिए राधा पवन से कहती है कि अगर तुम्हें कृष्ण उपवन में दिखाई दें, तो तुम बॉस में प्रवेश करके उसे बाँसुरी की तरह बजाना, जिससे श्रीकृष्ण को उनकी बाँसुरी की मधुर आवाज सुनने के लिए लालायित गोपियों की याद आ जाए।

(iii) राधा स्वयं विरहावस्था से श्रीकृष्ण को अवगत कराने के लिए पवन को क्या उपाय सुझाती है।
उत्तर:
राधा श्रीकृष्ण को स्वयं की विरहायस्था एवं पीड़ा से अवगत कराने हेतु पवन से कहती है कि श्रीकृष्ण के समक्ष उपस्थित कमल के पत्तों को पानी में डुबोना, ताकि उस दृश्य को देखकर श्रीकृष्ण कमल से नयनों वाली राधा की वियोगावस्था को पहचान लें।

(iv) पद्यांश की रस योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
पशि में श्रीकृष्ण के मथुरा से द्वारका आ जाने के कारण ब्रज की गोपियों व राधा की विरहावस्था का वर्णन किया गया है। अतः पद्यांश में पियो गार रस की प्रधानता विद्यमान है।

(v) ‘कमलदल’ का समास-विग्रह करते हुए समास का भेद बताइए।
उत्तर:
‘कमलदल’ का समास विग्रह ‘कमल का दल’ होगा। यह तत्पुरुष समास का उदाहरण हैं।

Class 12 Hindi Pawan Dutika प्रश्न 5.
यों प्यारे को विदित करके सर्व मेरी व्यथाएँ।
धीरे-धीरे वहन कर के पाँव की धूलि लाना।
थोड़ी-सी भी चरण-रज जो ला न देगी हमें तू।
हा ! कैसे तो व्यथित चित को बोध में दे सकेंगी।
पूरी होवें न यदि तुझसे अन्य बातें हमारी।
तो तू मेरी विनय इतनी मान ले औ चली जा।
छ के प्यारे कमल-पग को प्यार के साथ आ जा।
जी जाऊँगी हृदयतल में मैं तुझी को लगाके।।

उपर्युक्त पद्यांश पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर: दीजिए।

(i) पद्यांश का केन्द्रीय भाव लिखिए।
उत्तर:
पशि में नायक के प्रति नायिका के असीम प्रेम की अभिव्यक्ति हुई है। नायिका पवन से श्रीकृष्ण को अपनी व्यथा बताने और ऐसा न कर पाने की स्थिति में उनके चरणों की धूल लाने अथवा उनके चरणों को स्पर्श करके आने के लिए कहती हैं।

(ii) नायिका श्रीकृष्ण की चरण रज लाने के लिए क्यों कहती है?
उत्तर:
नायिका पवन से श्रीकष्ण को अपनी व्यथा सुनाने और ऐसा न कर पाने पर उनके चरणों की धूल लाने के लिए कहती हैं, ताकि वह उसे पाकर ही अपने दुःखी मन को समझा ले।

(iii) जी जाऊँगी हृदयतल में मैं तुझी को लगा।” पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से राधा पवन से कहती है कि यदि वह श्रीकृष्ण की चरण रज को न ला पाए और केवल उनके चरणों का स्पर्श करके भी आ जाए तो वह भी इसके लिए काफी हैं, क्योंकि वह पवन को ही हृदय से लगाकर अपने मियत की पूर्ण अनुभूति प्राप्| कर लेगी और स्वयं में नव जीवन का संचार कर लेगी।

(iv) पद्यांश की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
पशि में कवि ने पुनरुक्तिप्रकाश, अनुप्रास, रूपक व मानवीकरण अलंकारों का प्रयोग किया है। पद्यांश में धीरे-धीरे वहन कर के’ में पुनरुक्तिप्रकाश, ‘जी जाऊँगी हृदयतल’ में अनुप्रास अलंकार, ‘प्यारे कमल-पग को’ में रूपक अलंकार तथा सम्पूर्ण काव्य रचना में मानवीकरण अलंकार है।

(v) ‘कमल-पग’ का समास-विग्रह करके समास का भेद भी बताइए।
उत्तर:
‘कमल पग’ का समास-विग्रह ‘कमल के समान पग’ है, जोकि कर्मधारय समास का उदाहरण है।

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