UP Board Solutions for Class 12 Psychology Chapter 10 Environmental Psychology

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Psychology
Chapter Chapter 10
Chapter Name Environmental Psychology
(पर्यावणीय मनोविज्ञान)
Number of Questions Solved 62
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Psychology Chapter 10 Environmental Psychology (पर्यावणीय मनोविज्ञान)

दीर्घ उतरीय प्रश्न

प्रश्न 1
पर्यावरणीय मनोविज्ञान से आप क्या समझते हैं। इसकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
या
पर्यावरणीय मनोविज्ञान की विशेषताएँ लिखिए।(2015)
उत्तर

भूमिका
(Introduction) 

पर्यावरणीय मनोविज्ञान (Evironmental Psychology) मनोविज्ञान की नवीनतम शांखा है। इसका विकास बीसवीं सदी के सातवें दशक उत्तरार्द्ध और आठवें दशक के पूर्वार्द्ध में हुआ। इसकी पृष्ठभूमि में विश्व के जागरूक वैज्ञानिकों एवं सामाजिक चिन्तकों की पर्यावरण-प्रदूषण से उत्पन्न मानव अस्तित्व के संकट के प्रति बढ़ती हुई जागरूकता भी। इस संकट से उबरने के उपायों की खोज ने पर्यावरणीय मनोविज्ञान के विकास को गति प्रदान की है। पर्यावरणीय संकट एक वस्तुस्थिति है। जिसने इस पृथ्वी पर जीवन समर्थक शक्तियों का तीव्र ह्रास कर दिया है, जिससे मानव-जीवन का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। इसलिए पर्यावरणीय मनोविज्ञान का महत्त्व स्वयं सिद्ध हो गया है।

पर्यावरणीय मनोविज्ञान : अर्थ एवं परिभाषा
(Environmental Psychology: Meaning and Definition)

‘पर्यावरणीय मनोविज्ञान का शाब्दिक अर्थ यदि हम देखें तो यह दो शब्दों से मिलकर बना है-‘पर्यावरण एवं ‘मनोविज्ञान’। पर्यावरण से अर्थ उस सब-कुछ से है जो मनुष्य को चारों ओर से घेरे हुए है और मनुष्य के तन-मन एवं व्यवहार को प्रभावित करता है। पर्यावरण’ की शब्दोत्पत्ति ही परि’ (चारों ओर से) + ‘आवरण’ (घेरे हुए होना) है। इस दृष्टि से ‘पर्यावरण’ एक व्यापक शब्द है। मनुष्य के कुल पर्यावरण में प्राकृतिक (Natural) तथा सामाजिक-सांस्कृतिक (Socio-cultural) दोनों ही भाग सम्मिलित हैं। प्राकृतिक पर्यावरण जल, वायु, तापमान, भूमि की बनावट तथा भूगर्भीय संरचना एवं प्रक्रियाएँ और सम्पदाएँ अर्थात् वे सभी प्राकृतिक बल सम्मिलित हैं जो अभी तक मनुष्य के संकल्प और नियन्त्रण से बाहर हैं। जो कुछ मानव द्वारा निर्मित, संचालित और नियन्त्रित है, वह उसका सामाजिक तथा सांस्कृतिक पर्यावरण है। ”

मनुष्य स्वयं प्रकृति का एक अंश है। वह जल, वायु, आकाश, अग्नि तथा पृथ्वी; अर्थात् पंचतत्त्वों का एक पुतला है; अतः इसका प्राकृतिक पर्यावरण से प्रभावित होना स्वाभाविक है, किन्तु वह प्रकृति के हाथ में नि:सहाय और निष्क्रिय खिलौना नहीं है। उसने अपने जागरूक प्रयासों से प्राकृतिक बाधाओं पर विजय पाने और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से अपने लिए सुख-सुविधा के साधनों के विकास का प्रयास किया है। मानव-सभ्यता की कहानी का अधिकांश तथ्य मनुष्य की प्रकृति पर विजय है, लेकिन इस सभ्यता के विकास ने विपरीत परिणाम भी दिये हैं। भौतिक सुख की चाह ने प्राकृतिक सन्तुलन में व्यवधान पहुँचाया है और पर्यावरण को प्रदूषित कर दिया है। वास्तव में, मानव अपने कुल पर्यावरण की उपज है। वह उसका भाग भी है। यदि उसके व्यवहार ने पर्यावरण सन्तुलन को बिगाड़ा है। तो उसका व्यवहार ही पर्यावरण सन्तुलन को पुनस्र्थापित करने में सक्षम हो सकता है।

मनोविज्ञान मनुष्य की अन्तश्चेतना का व्यवस्थित अध्ययन है। यह मनुष्य के मानसिक जगत् की प्रक्रियाओं का व्यवस्थित अध्ययन है। मनुष्य का अस्तित्व वस्तुतः भावात्मक प्रवाह है। यह प्रवाह त्रिआयामी है—ज्ञानात्मक (Cognitive), भावात्मक (Affective) एवं क्रियात्मक (Conative or Psychomotor activity)। पर्यावरण के किसी भी अंश के प्रति वह अपनी प्रतिक्रिया इन तीनों ही रूपों में अभिव्यक्त करता है। इसी भाँति, उसके प्राकृतिक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण का प्रत्येक संघटक उसके ज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक व्यवहार को प्रभावित करता है।

अँधेरे में आँखों की पुतली फैल जाती है तो प्रकाश में सिकुड़ जाती है, शाकाहारी समाज में पला व्यक्ति मांस की दुकान के पास से गुजरने-मात्र से वितृष्णा अनुभव करता है, उसे मितली आने लगती है, जबकि मांसाहारी परिवेश में पले व्यक्ति के मुँह में मांसाहारी भोजन को देखकर लार आ सकती है। | स्पष्ट है कि प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक दोनों ही पर्यावरण मनुष्य के मानसिक व्यवहार को प्रभावित करते हैं। मनोविज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जो मनुष्य के मानसिक व्यवहार के रहस्य के पर्दो को उठाने का प्रयास करती है। | इस भाँति पर्यावरणीय मनोविज्ञान को हम मनुष्य के मानसिक व्यवहार तथा पर्यावरण के बीच अन्तर्सम्बन्ध के अध्ययन के रूप में परिभाषित कर सकते हैं।

विभिन्न विद्वानों ने पर्यावरणीय मनोविज्ञाम् की परिभाषा निम्नलिखित रूप से की है ।

(1) प्रोशैन्सकी, लिट्रेलसन तथा रिवलिन के अनुसार, “पर्यावरणीय मनोविज्ञान वह है जो पर्यावरणीय मनोवैज्ञानिक करते हैं।’यह परिभाषा सरल तो है, किन्तु पर्यावरणीय मनोविज्ञान की विषय-वस्तु को स्पष्ट नहीं करती और इसका एक अस्पष्ट अर्थ दान करती है।

(2) हेमस्ट्रा तथा मैकफारलिंग का कथन है, “पर्यावरणीय मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की वह शाखा है जो मानव-व्यवहार तथा भौतिक वातावरण के परस्पर सम्बन्धों का अध्ययन करती है।”

इन विद्वानों के दृष्टिकोण के अनुसार पर्यावरणीय मनोविज्ञान का अर्थ सीमित हो जाता है, क्योंकि ये मनुष्य के पर्यावरण के केवल प्राकृतिक पक्ष तथा मानव-व्यवहार के पारस्परिक सम्बन्ध तक ही पर्यावरणीय मनोविज्ञान के कार्यक्षेत्र को सीमित कर देते हैं।

(3) फिशर के अनुसार, “पर्यावरणीय मनोविज्ञान व्यवहार तथा प्राकृतिक एवं निर्मित पर्यावरण के बीच अन्तर्सम्बन्ध का अध्ययन करता है। इस परिभाषा से स्पष्ट होता है कि मानवीय व्यवहार तथा प्राकृतिक एवं मानव निर्मित पर्यावरण के पारस्परिक प्रभावित होने के व्यवस्थित अध्ययन को पर्यावरणीय मनोविज्ञान कहा जाता है।

(4) कैटर तथा क्रेक पर्यावरणीय मनोविज्ञान की सही परिभाषा करते हुए लिखते हैं, पर्यावरणीय मनोविज्ञान विज्ञान का वह क्षेत्र है जो मानवीय अनुभवों और क्रियाओं तथा सामाजिक एवं भौतिकी पर्यावरण के प्रासंगिक पक्षों में होने वाले व्यवहारों तथा अन्तक्रियाओं का संयोजने और विश्लेषण करता है। स्पष्ट है कि इन विद्वानों के अनुसार मनुष्य के कुल पर्यावरण एवं मानवीय व्यवहार के बीच अन्तर्सम्बन्धों का आनुभविक अध्ययन ही पर्यावरणीय मनोविज्ञान है।

पर्यावरणीय मनोविज्ञान की विशेषताएँ
(Salient Features of Environmental Psychology)

वास्तव में, किसी भी विषय का अनूठापन उसके दृष्टिकोण में निहित होता है। यही उसे अन्य विषयों से अलग करता है। पर्यावरणीय मनोविज्ञान का दृष्टिकोण अथवा उसकी रुचि मानव-व्यवहार और उसके कुल पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों को जानने में है। यही चयनशील रुचि उसे अन्य विज्ञानों से पृथक् करती है और उसकी निजी विशेषताओं को जन्म देती है। पर्यावरणीय मनोविज्ञान की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं|

(1) मनुष्य का पर्यावरणीय व्यवहार इकाई रूप है- पर्यावरणीय मनोविज्ञान, मनुष्य के पर्यावरणीय व्यवहार को एक इकाई के रूप में मानकर अध्ययन करता है। उदाहरण के लिए यह किसी नगरवासी के पर्यावरणीय व्यवहार में केवल उद्दीपक और अनुक्रिया को ही स्पष्ट नहीं करेगा, बल्कि उस व्यक्ति के सौन्दर्यबोध की अनुभूति को भी इस स्पष्टीकरण में सम्मिलित करेगा। वह जानने का प्रयास करेगा कि उस व्यक्ति ने उस विशिष्ट उद्दीपक को पर्यावरणीय दृष्टि से क्या अर्थ प्रदान किया है? उसके पिछले अनुभव क्या रहे हैं? उस स्थिति के पर्यावरण में उसने किन विशेषताओं  पर विशेष रूप से ध्यान दिया है-आदि।

(2) व्यवस्था उपागम- मनोविज्ञान की इस शाखा की मान्यता है कि कोई पर्यावरणीय व्यवहार एक समग्र सैटिंग (Setting) या मंच के रूप में होता है। मान लीजिए हम किसी सहभोज में आमन्त्रित हैं। वहाँ पण्डाल में भोजन की मेजें सजी हैं और काफी भीड़-भाड़े है। वहाँ की सजावट, रोशनी की व्यवस्था सभी कुछ हमें प्रभावित करेगा। हम पाएँगे कि भीड़-भाड़ के बावजूद भी व्यक्ति अपनी प्लेट में रुचि के अनुकूल खाने की सामग्री लेकर अलग-अलग छोटे-छोटे समूहों में बँट जाते हैं।

वे भोजन करते समय भी परस्पर परिचय, अभिवादन, संवाद और अन्तक्रिया करते हैं। उसे पूरी सैटिंग से उनका व्यवहार प्रभावित होता है। सहभोज में एक व्यक्ति का व्यवहार इस पूरी पर्यावरणीय सैटिंग से पृथक् करके नहीं समझा जा सकता। इसे ही तकनीकी भाषा में व्यवस्था उपागम’ (System Approach) कहा गया है, जिसमें व्यवहार-स्थल की प्रत्येक इकाई को ध्यान में रखकर किसी एक इकाई के व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।

(3) अन्तःअनुशासित दृष्टिकण- स्वभावतः ही , पर्यावरणीय मनोविज्ञान अन्री:अनुशासित (Inter-disciplinary) होता है। इसमें संवेदना, प्रत्यक्षीकरण, प्रेरक, उद्दीपक व अनुक्रिया सदृश मनोविज्ञान के संप्रत्ययों का प्रयोग होता है। इतना ही नहीं वरन् इसमें समाजशास्त्र के सामाजिक सम्बन्ध, सामाजिक क्रिया, अन्तक्रिया, भीड़-व्यंत्रहार जैसे—सम्प्रत्ययों का भी प्रयोग होता है। मानवशास्त्र के सांस्कृतिक सम्प्रत्ययों; जैसे—प्रथा व रूढ़ि आदि का भी इसमें सहयोग लिया जाता है। कारण स्पष्ट है कि मानव का पर्यावरणीय व्यवहार अपने समग्र पर्यावरण से प्रभावित होता है, न कि केवल उसके प्राकृतिक पक्ष से। उदाहरण के तौर पर बुजुर्ग और सम्मानित व्यक्तियों की उपस्थिति में किसी भी व्यक्ति का व्यवहार वैसा नहीं होता है जैसा कि वह अपने हम उम्र साथियों के बीच होने पर करता है। इसी भाँति भीड़ में सामूहिक उत्तेजना और निजी उत्तरदायित्व की भावना की अनुपस्थिति व्यक्ति के व्यवहार को असामान्य बना देती है। वह ऐसा व्यवहार कर बैठता है जैसा अकेला होने पर वह शायद कभी न करता। अतः पर्यावरणीय व्यवहार का अध्ययन अन्त:अनुशासनिक दृष्टिकोण के प्रयोग को अनिवार्य बना देता है।

(4) समस्या समाधान हेतु रचनात्मक उपाय– पर्यावरणीय मनोविज्ञान का व्यावहारिक पक्ष उतना ही महत्त्व रखता है जितना कि सैद्धान्तिक पक्ष; क्योंकि पर्यावरणीय मनोविज्ञान का मूल उद्देश्य पर्यावरणीय व्यवहार से उत्पन्न समस्याओं का निदान अथवा समाधान होता है। उससे आशा की जाती है कि वह पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के लिए रचनात्मक उपाय सुझाएगा।

(5) सामाजिक- मनोवैज्ञानिक तत्त्वों का प्रभाव पर्यावरणीय मनोविज्ञान और समाज मनोविज्ञान के बीच न सिर्फ समानता है अपितु घनिष्ठ सम्बन्ध भी है। मनुष्य का पर्यावरणीय व्यवहार उसके सामाजिक-मनोवैज्ञानिक तत्त्वों से अत्यधिक प्रभावित होता है और उन्हीं के वशीभूत होकर व्यक्ति एक ही पर्यावरणीय उद्दीपक के प्रति विभिन्न अनुक्रियाएँ करता है। उदाहरणार्थ-सूअर पालने वाले व्यक्तियों के लिए गन्दगी का पर्यावरण सहयोगी हो सकता है, किन्तु अन्य व्यक्तियों के लिए वह स्थिति असहनीय हो सकती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि पर्यावरणीय मनोविज्ञान और समाज मनोविज्ञान के बीच परस्पर आदान-प्रदान का सम्बन्ध है।

(6) पर्यावरणीय मनोविज्ञान एक संश्लेषणात्मक विज्ञान है- पद्धतिशास्त्र की दृष्टि से पर्यावरणीय मनोविज्ञान’को एक संश्लेषणात्मक विज्ञान (Synthetic Science) कहा जा सकता है। इसकी पद्धतिशास्त्रीय के उपागम संकलक (Electic) होता है। वह किसी एक कारक को निर्णायक की भूमिका प्रदान नहीं कर सकता, वह वह तो अनेक विज्ञानों के निष्कर्षों का लाभ उठाता है। इसी प्रकार वह विभिन्न अनुसन्धान पद्धतियों का प्रयोग करता है। उसका दृष्टिकोण है कि विभिन्न स्रोतों से विचार और जानकारी आने दो, उनका संचालन करो और फिर व्यवस्थित रूप से पर्यावरणीय संश्लेषण प्रस्तुत करो।

प्रश्न 2
पर्यावरणीय मनोविज्ञान के स्वरूप तथा उसकी प्रकृति का विवेचन कीजिए।
उत्तर
ज्ञान की प्रत्येक शाखा के सम्बन्ध में यह एक जिज्ञासा सदा से ही उभरी है कि उसका यथार्थ स्वरूप या प्रकृति क्या है? उसे विज्ञान की श्रेणी में रखा जाये अथवा कला की श्रेणी में? वैज्ञानिक निष्कर्ष जबकि कला में व्यवहार या निषपत्ति का पक्ष प्रबल होता है। दूसरे शब्दों में, विज्ञान में सैद्धान्तिक पक्ष और कला में व्यावहारिक पक्ष शक्तिशाली होता है। अब हम बारी-बारी से पर्यावरणीय मनोविज्ञान के वैज्ञानिक एवं कलात्मक स्वरूपों का अध्ययन करेंगे।

पर्यावरणीय मनोविज्ञान का स्वरूप 

पर्यावरणीय मनोविज्ञान के स्वरूप की विवेचना हमें दो प्रश्नों पर विचार करने के लिए प्रेरित करती है—एक, क्या यह विज्ञान की आदर्श कसौटी पर एक विज्ञान कहा जा सकता है? और दूसरे, यदि यह विज्ञान है तो उसे किस प्रकार का विज्ञान कहा जाये अर्थात् विज्ञान के रूप में उसकी पृथक पहचान बनाने वाली विशेषताएँ कौन-सी हैं? दोनों प्रश्नों का संक्षिप्त विवेचन अग्रलिखित रूप में किया जा रहा है

(I) पर्यावरणीय मनोविज्ञान एक विज्ञान है।
यह तो सर्वविदित है कि विज्ञान अन्तर्वस्तु या विषय-वस्तु में नहीं होता, वह तो किसी भी विषय-वस्तु के अध्ययन करने के तरीकों में निहित होता है। यही कारण है कि भूगर्भशास्त्र, खगोलशास्त्र, मनोविज्ञान, जीवविश्न, भौतिक विज्ञान आदि अलग-अलग विषयों का अध्ययन करते हुए भी विज्ञान कहलाते हैं; क्योंकि उनके अध्ययन की पद्धति समान है और उनके अध्ययनों से प्राप्त निष्कर्षों की गुणात्मकता भी समान हैं वैज्ञानिक पद्धति तथ्यों के अवलोकन, वर्गीकरण, विश्लेषण, निर्वजन और सामान्यीकरण पर आधारित है। यह तथ्यात्मक अध्ययन है, व्यवस्थित अध्ययन है।

अत: विज्ञान के निष्कर्ष सामान्य, निश्चित, कार्य-कारण सम्बन्ध को स्पष्ट करने वाले तथा भविष्यकथन करने वाले होते हैं। विज्ञान किसी भी प्रघटना के सम्बन्ध में तीन प्रश्नों का उत्तर खोजना है-क्या है? कैसे है? और क्यों है? इन प्रश्नों के उत्तर के रूप में उपलब्ध ज्ञान को व्यवहार में लागू करके कैसे मानव-व्यवहार, व्यक्तित्व और समाज को बेहतर बनाया जा सकता है-यह विज्ञान का व्यावहारिक पक्ष है। इसी कारण इसे व्यावहारिक विज्ञान (Applied Science) कहते हैं। भौतिकशास्त्र विशुद्ध विज्ञान है तो इलेक्ट्रिक इन्जीनियरिंग या इलेक्ट्रॉनिक्स उसका व्यावहारिक विज्ञान है।

उपर्युक्त पृष्ठभूमि में पर्यावरणीय मनोविज्ञान को यदि परखा जाये तो निश्चित ही उसे हम विज्ञान की श्रेणी में रखेंगे। इस कथन के समर्थन में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं

(1) अन्तर्सम्बन्धों का यथार्थवादी अध्ययन- पर्यावरणीय मनोविज्ञान; पर्यावरण और मनुष्य के व्यवहार के बीच अन्तर्सम्बन्धों का यथार्थवादी अध्ययन है। यह इस अन्तर्सम्बन्ध कि ‘क्या है?’-को तथ्यात्मक विवेचन है। यह तथ्यों के अवलोकन, वर्गीकरण, विश्लेषण और सामान्यीकरण पर आधारित है।

(2) कार्य-कारेण की व्याख्या- यह विज्ञान पर्यावरण और मनुष्य के व्यवहार के बीच अन्तक्रिया की कार्य-कारण व्याख्या प्रस्तुत करता है। उदाहरणार्थ-यह व्यक्ति-व्यक्ति के बीच दूरी (Personal space) जैसे सूक्ष्म पर्यावरणीय प्रघटना का भी अध्ययन करता है। चारों ओर भीड़ से घिरे नेता या अभिनेता की व्यवहार बिल्कुल अलग होता है। हम अपने बड़ों या सम्मानित व्यक्तियों से कुछ दूरी से बात करते हैं; जबकि बच्चा हमारे समीपतम आ सकता है और वह हमें अच्छा लगेगा, बुरा महसूस नहीं होगा। इस प्रकार से एक ही मेज पर खाने वाले दो व्यक्तियों के बीच अचेतन रूप से मेज के ‘स्पेस’ (Space) का बँटवारा हो जाता है। कोई भी उन अचेतन सीमाओं का अतिक्रमण नहीं करता क्योकि वह अशिष्टता या आक्रामकता ही मानी जाएगी।

(3) एक सामाजिक विज्ञान- पर्यावरणीय मनोविज्ञान ऐसे निष्कर्षों पर पहुँचने का प्रयास करता है जिन पर स्थान या समय की सीमा लागू नहीं होती अर्थात् वे सामान्य रूप से हर जगह घटित होते हैं। इतना अवश्य ही कहा जा सकता है कि वे उतने सामान्य ठोस और भविष्यवाणी योग्य नहीं होते जितने कि प्राकृतिक विज्ञानों के निष्कर्ष। कारण स्पष्ट है-उनके अध्ययन-विषय चेतन, संकल्पशील और प्रतिक्रियाशील मनुष्य हैं, वे कोई निर्जीव प्राकृतिक घटनाएँ नहीं हैं। अत: पर्यावरणीय मनोविज्ञान एक सामाजिक विज्ञान है, प्राकृतिक विज्ञान नहीं।

(4) प्रयोगशालीय पद्धति का प्रयोग- पर्यावरणीय मनोविज्ञान नियन्त्रित अवस्था में प्रयोगशालीय पद्धति का भी प्रयोग करता है। उदाहरणार्थ-सघनता (Density) तथा व्यवहार के परस्पर सम्बन्धों को जानने के लिए अनुसन्धानकर्ताओं ने प्रयोगशालाओं में अनेक अध्ययन किये हैं। और पाया है कि उच्च सघनता का; व्यवहार तथा संवेगों पर निषेधात्मक प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार तापमान और मनुष्य की कार्यक्षमता के बीच सम्बन्ध का भी प्रयोगशाला में अध्ययन किया गया है। कई शताब्दियों पूर्व अरस्तू ने कहा था कि ठण्डी जलवायु में रहने वाले लोग ज्यादा परिश्रमी, कर्मठ और जोखिम उठाने वाले होते हैं। इसी भाँति, यह भी पाया गया है कि दुर्गन्धमय वायु प्रदूषण न सिर्फ अन्य लोगों के प्रति आकर्षण को कम कर देता है वरन् छायांकन तथा चित्रकारी के प्रति अनुकूलन अभिवृत्ति को भी कम कर देता है।

(5) आदर्शात्मक पक्ष– पर्यावरणीय मनोविज्ञान का आदर्शात्मक पक्ष (Normative Aspect) भी है। इसके अध्ययनों से उन कसौटियों के निर्धारण में सहायता मिलती है जो मनुष्य के स्वास्थ्य, व्यवहार और समायोजन के लिए आदर्श पर्यावरण का निर्धारण करने में सक्षम हैं। जैसे—चिकित्सा विज्ञान स्वस्थ मर्नुष्य के आदर्श तापमान का निर्धारण 98.4°F के रूप में करता हैं। इस आदर्श से कम या ज्यादा तापमान होना अस्वस्थता का सूचक है। इसी प्रकार वह मनुष्य के व्यवहार की दृष्टि से पर्यावरणीय दशाओं में आदर्श स्वरूप का निर्धारण करने की चेष्टा करता है।

(6) व्यावहारिक विज्ञान- पर्यावरणीय मनोविज्ञान एक व्यावहारिक विज्ञान (Applied science) भी है। इसका मूल उद्देश्य उन उपायों, साधनों एवं पद्धतियों का सुझाना है जिनके द्वारा पर्यावरण संरक्षण तथा पर्यावरण प्रदूषण की समस्या का समाधान किया जा सके। इसका प्रमुख लक्ष्य मनुष्य को विशुद्ध बनाकर उसके वैयक्तिक और सामाजिक जीवन का क्रमागत उन्नयन है।

(7) बहु- आयामी एवं अन्तः अनुशासनिक मनोविज्ञान-जैसा कि ऊपर वर्णन किया गया है; एक बात पुनः ध्यान दिलाने योग्य है कि पर्यावरणीय मनोविज्ञान बहुआयामी और अन्त:अनुशासनिक मनोविज्ञान है। यह मनुष्य के प्राकृतिक, वैयक्तिक तथा सामाजिक पहलुओं का पर्यावरणीय दृष्टिकोण से अध्ययन करता है।

(8) संकलक एवं संश्लेषणात्मक विज्ञान– अन्त में, यह भी उल्लेखनीय है कि पर्यावरणीय मनोविज्ञान संकलक (Electic) तथा संश्लेषणात्मक (Synthetic) विज्ञान है जो अनेक विज्ञान के विशिष्ट क्षेत्रों से तथ्य लेकर मनुष्य और उसके पर्यावरण के सम्बन्ध में व्यवस्थित ज्ञान प्रस्तुत करता है।
 इस तरह से पर्यावरण मनोविज्ञान सामान्य, कार्य-कारण का सम्बन्ध स्थापित करने वाला, सामाजिक, प्रयोगशालीय, आदर्शात्मक, व्यावहारिक, अन्तर्विज्ञानी, बहुआयामी तथा संश्लेषणात्मक विज्ञान है।

(II) पर्यावरणीय मनोविज्ञान एक कला है।

किसी भी विज्ञान का स्वरूप निर्धारण करते समय कभी-कभी यह प्रश्न भी उठाया जाता है कि वह विज्ञान है या कला अथवा दोनों ही है? पर्यावरणीय मनोविज्ञान के सम्बन्ध में इस प्रश्न का उत्तर देने से पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि कला क्या है? कला के अर्थ को लेकर विद्वानों के बीच मतभेद है। मोटे तौर पर कला के अर्थ के सम्बन्ध में तीन प्रकार के मत पाये जाते हैं

(1) कला सृजनात्मक क्रिया के रूप में- कला में कल्पना का तत्त्व होता है जिसके द्वारा चित्रकार, संगीतकार, मूर्तिकार, नर्तक अथवा स्थापत्य कलाविद् अपने-अपने क्षेत्रों में सौन्दर्यमयी निष्पत्ति करते हैं।

(2) कला मनुष्य और समाज की स्थिति का यथार्थवादी प्रतीकात्मक प्रस्तुतीकरण है- कुछ विद्वानों के अनुसार, कला समाज का दर्पण है। कलाकार जो कुछ भी मनुष्य या समाज के व्यवहार में देखता है और उससे स्पन्दित या उद्वेलित होता है, उसी को अपनी लेखनी, तूलिका, छेनी-हथौड़े या रेखांकन द्वारा विभिन्न माध्यमों से अभिव्यक्त करता है। यही कारण है कि उसकी अभिव्यक्ति सिर्फ सौन्दर्यमूलक ही नहीं होती बल्कि वह वितृष्णा, वीभत्सता या कुरूप घटनाओं का भी चित्रण करता है। इस दृष्टि से कला वैयक्तिक और सामाजिक यथार्थ की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है।

(3) कला आनन्दमूलक क्रिया के रूप में- आदर्शवादी विद्वान कला को उस क्रिया के रूप में परिभाषित करते हैं जो मनुष्य के हृदय में आनन्द की तरंगें उत्पन्न करती है। कला वह जो आनन्द लाये। आनन्द आत्मा का लक्षण है। इस दृष्टि से कला आध्यात्मिक साधन है। भारत में परम्परागत कला, चाहे वह किसी भी रूप में रही हो, ईश्वर की लीलाओं की अभिव्यक्ति है या ईश्वर के प्रति कलाकार के समर्पण को ही अभिप्रकाशित करती है। कला मनुष्य को आत्म-साक्षात्कार करने में सहायता देती है। कलाकार कला के माध्यम से ‘स्व’ (Self) की उपलब्धि करता है।

वास्तव में, कला की उपर्युक्त परिभाषाओं से कला के कुछ सामान्य तत्त्व प्रकट होते हैं जिनके आधार पर यह तय किया जा सकता है कि कोई मानवीय व्यवहार या क्रिया कला है या नहीं। कला के ये सामान्य तत्त्व अग्रलिखित हैं|

(1) कला वस्तुत: कला है, विचार नहीं। यह निष्पादन में निहित है। कला के शास्त्रीय स्वरूप का समीक्षक, आलोचक या विद्वान् वैज्ञानिक तो हो सकता है किन्तु यदि वह स्व का निष्पादन नहीं कर सकता तो वह कलाकार नहीं कहा जा सकता।

(2) कला भी व्यवस्थित क्रिया है। एक वैज्ञानिक जब अपने निष्कर्षों को शब्दों व रेखाचित्रों के माध्यम से प्रस्तुत करता है। तब उसकी निजी शैली और अभिव्यक्ति की क्षमता अलग ही प्रकट होती है, तब वह वैज्ञानिक साहित्य या साहित्यकार बन जाता है। अव्यवस्थित क्रिया कभी कला नहीं हो सकती। प्रत्येक कला का अपना वैज्ञानिक पक्ष भी है।

(3) प्रत्येक कला में कल्पना और सृजन के तत्त्व होते हैं। वे प्रतीकों के माध्यम से अभिव्यक्त होती है। यहाँ भी यदि हम ध्यानपूर्वक देखें तो विज्ञान में भी कल्पना और सृजन के तत्त्व मौजूद होते है।। विज्ञान का प्रारम्भ ही कल्पना से है; अतः पूर्वानुमान को परिकल्पना (Hypothesis) कहा जाता है। जेम्स वाट का यह अनुमान कि भाप में शक्ति है; प्रमाणित होने पर ऊर्जा के महान् स्रोत का सृजन हो गया।

इस प्रकार, यह कहा जा सकता है कि विज्ञान और कला के बीच रेखा बड़ी धुंधली-सी है। वह केवल अध्ययन-विश्लेषण के लिए बनायी गयी है। विज्ञान में सैद्धान्तिक या वैचारिक पक्ष प्रबल है, जबकि कला में क्रियात्मक, व्यावहारिक या निष्पादन सम्बन्धी पक्ष प्रबल है। वस्तुत: प्रत्येक कला का वैज्ञानिक पक्ष होता है और प्रत्येक विज्ञान का कलात्मक पहलु।

उपर्युक्त कसौटी के आधार पर निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि पर्यावरणीय मनोविज्ञान एक विज्ञान है,कला नहीं, किन्तु इसका कलात्मक अथवा व्यावहारिक पक्ष भी अत्यन्त प्रबल है। इसका मुख्य उद्देश्य मनुष्य के पर्यावरण का संवर्द्धन एवं संशोधन करना है ताकि मनुष्य का सौन्दर्य-बोध बढ़े।और उसका जीवन आनन्दमय हो सके। इस दृष्टि से पर्यावरण मनोविज्ञान एक विज्ञान भी है और एक कला भी।

प्रश्न 3
पर्यावरषा-प्रदूषण से क्या आशय है? पर्यावरण-प्रदूषण के मुख्य रूप कौन-कौन-से हैं?
पर्यावरण-प्रदूषण के प्रमुख सामान्य कारणों का उल्लेख कीजिए।
या
पर्यावरणीय प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? (2010)

पर्यावरण-प्रदूषण का अर्थ 

पर्यावरण- प्रदूषण का सामान्य अर्थ है-हमारे पर्यावरण का दूषित हो जाना। पर्यावरण का निर्माण प्रकृति ने किया है। प्रकृति-प्रदत्त पर्यावरण में जब किन्हीं तत्त्वों का अनुपात इस रूप में बदलने लगता है कि जिसका जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना होती है, तब कहा जाता है कि पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। उदाहरण के लिए-यदि पर्यावरण के मुख्य भाग वायु में ऑक्सीजन के स्थान पर अन्य विषैली गैसों का अनुपात बढ़ जाये तो कहा जाएगा कि वायु-प्रदूषण हो गया है। पर्यावरण के किसी भी भाग के दूषित हो जाने को पर्यावरण-प्रदूषण कहा जाएगा।

पर्यावरण-प्रदूषण के मुख्य रूप

पर्यावरण प्रदूषण के मुख्य रूप या भाग निम्नलिखित हैं

  1. वायु-प्रदूषण
  2. जल-प्रदूषण
  3. मृदा-प्रदूषण तथा
  4. ध्वनि-प्रदूषण।।
    (नोट-पर्यावरण-प्रदूषण के प्रकारों का विस्तृत विवरण लघु उत्तरीय प्रश्नों के अन्तर्गत वर्णित हैं।)

पर्यावरण- प्रदूषण के प्रमुख सामान्य कारण पर्यावरण-प्रदूषण अपने आप में एक बहुपक्षीय तथा व्यापक समस्या है तथा इस समस्या की निरन्तर वृद्धि हो रही है। पर्यावरण को दूषित करने वाले कारण अनेक हैं। भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रदूषण के लिए भिन्न-भिन्न कारण जिम्मेदार हैं, परन्तु यदि पर्यावरण-प्रदूषण के मुख्य तथा सामान्य कारणों का उल्लेख करना हो तो अग्रलिखित कारण ही उल्लेखनीय हैं|

(1) जल-मल का दोषपूर्ण विसर्जन- पर्यावरण-प्रदूषण का सबसे प्रबल कारण आवासीय क्षेत्रों में जल-मल का दोषपूर्ण विसर्जन है। खुले शौचालयों से उत्पन्न होने वाली दुर्गन्ध वायु-प्रदूषण में सर्वाधिक योगदान देती है। वाहित मल से जल के विभिन्न स्रोत प्रदूषित होते हैं। घरों में इस्तेमाल होने वाला जल भी विभिन्न घरेलू क्रियाकलापों से अत्यधिक प्रदूषित हो जाता है तथा नाले-नालियों के माध्यम से होता हुआ जल के मुख्य स्रोतों में मिल जाती है तथा उन्हें प्रदूषित कर देता है।

(2) घरों से विसर्जित अवशिष्ट पदार्थ- सभी घरों में अनेक ऐसे पदार्थ इस्तेमाल होते हैं जो पर्यावरण-प्रदूषण में वृद्धि करने वाले होते हैं। उदाहरण के लिए घरों में इस्तेमाल होने वाले फिनायल, मच्छर मारने वाले घोल, डिटर्जेन्ट, शैम्पू, साबुन तथा अनेक कीटनाशक ओषधियाँ घरों से विसर्जित होकर जल, वायु तथा मिट्टी को निरन्तर प्रदूषित करते हैं।

(3) निरन्तर बढ़ने वाला औद्योगीकरण- पर्यावरण प्रदूषण का एक सामान्य तथा मुख्य कारण है—निरन्तर बढ़ने वाला औद्योगीकरण। औद्योगिक संस्थानों से जहाँ एक ओर वायु-प्रदूषण होता है, वहीं दूसरी ओर उनमें इस्तेमाल होने वाली रासायनिक सामग्री के अवशेष आदि वायु, जल तथा मिट्टी को निरन्तर प्रदूषित करते हैं। औद्योगिक संस्थानों में चलने वाली मशीनों, सायरनों तथा अन्य कारकों से ध्वनि-प्रदूषण में भी वृद्धि होती है।

(4) दहन तथा उसमें उत्पन्न होने वाला धुआँ– आज सभी क्षेत्रों में दहन की दर में वृद्धि हुई है। घर के रसोईघर से लेकर भिन्न-भिन्न प्रकार के वाहनों तथा औद्योगिक संस्थानों में सभी कार्य दहन द्वारा ही सम्पन्न होते हैं। विभिन्न प्रकार के ईंधनों के दहन से अनेक विषैली गैसे, धुआँ तथा कार्बन के सूक्ष्म कण पर्यावरण में निरन्तर व्याप्त होते रहते हैं। ये सभी कारक वायु प्रदूषण को अत्यधिक बढ़ाते हैं। |

(5) कीटनाशक दवाओं के प्रयोग में वृद्धि– विभिन्न कारणों से आज कृषि एवं उद्यान-क्षेत्र में कीटनाशक दवाओं का प्रयोग निरन्तर बढ़ रहा है। इन कीटनाशक दवाओं द्वारा पर्यावरण-प्रदूषण में भी निरन्तर वृद्धि हो रही है। इससे वायु, जल तथा मिट्टी तीनों ही प्रदूषित हो रहे हैं।

(6) जल-स्रोतों में कूड़ा-करकट तथा मृत शरीर बहाना- नगरीय एवं ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के कूड़े के विसर्जन की समस्या निरन्तर बढ़ रही है। इस स्थिति में कूड़े-करकट तथा प्राणियों के मृत शरीरों को जल-स्रोतों में बहा दिया जाता है। इस प्रचलन के कारण जल-प्रदूषण में निरन्तर वृद्धि हो रही है। इस प्रकार से प्रदूषित होने वाला जल क्रमशः वायु तथा मिट्टी को भी प्रदूषित करता है।

(7) वनों की अधिक कटाई- पर्यावरण प्रदूषण का एक मुख्य कारण वनों की अन्धाधुन्ध कटाई भी है। वृक्ष वायु को शुद्ध करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। जब वृक्ष कम होने लगते हैं तो वायु-प्रदूषण की देर में भी वृद्धि होती है।

(8) रेडियोधर्मी पदार्थ- रेडियोधर्मी पदार्थों द्वारा भी पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि हो रही है। विभिन्न आणविक परीक्षणों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले रेडियोधर्मी पदार्थों ने पर्यावरण-प्रदूषण में बहुत अधिक वृद्धि की है। इस कारण से होने वाला पर्यावरण प्रदूषण अति गम्भीर होता है तथा इसका प्रतिकूल प्रभाव मनुष्यों, अन्य प्राणियों तथा सम्पूर्ण वनस्पति-जगत पर भी पड़ता है।

प्रश्न 4
पर्यावरण-प्रदूषण की रोकथाम कैसे करेंगे?
उत्तर

पर्यावरणीय प्रदूषण की रोकथाम

प्रदूषण की समस्या पर विचार करने से यह स्पष्ट हो गया है कि यह एक गम्भीर समस्या है तथा इसके विकराल रूप धारण करने से मानव-मात्र तो क्या, पूरी सृष्टि के अस्तित्व को खतरा हो सकता है। इस स्थिति में बढ़ते हुए पर्यावरणीय-प्रदूषण को नियन्त्रित करना नितान्त आवश्यक है। यह सत्य है।

कि प्रदूषण का मुख्यतम स्रोत औद्योगिक संस्थान हैं, परन्तु औद्योगीकरण के क्षेत्र में हम इतना आगे बढ़ चुके हैं कि उससे पीछे कदम रखना अब सम्भव नहीं। अतः पर्यावरण के प्रदूषण को रोकने के लिए हम औद्योगिक प्रगति को नहीं रोक सकते, बल्कि कुछ अन्य उपाय करके ही प्रदूषण को नियन्त्रित करना होगा। विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों को कम करने के कुछ मुख्य उपायों का संक्षिप्त परिचय अग्रवर्णित है

(1) वायु-प्रदूषण पर नियन्त्रणवायु- प्रदूषण के मुख्य स्रोत औद्योगिक संस्थान, सड़कों पर चलने वाले वाहन तथा गन्दगी हैं। अतः वायु-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए इन्हीं स्रोतों पर ध्यान केन्द्रित करना होगा। वायु प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए अंति आवश्यक है कि औद्योगिक संस्थानों की चिमनियों से निकलने वाले धुएँ कों नियन्त्रित किया जाए। इसके लिए दो उपाय अवश्य किये जाने चाहिए। प्रथम यह कि चिमनियाँ बहुत ऊंची होनी चाहिए ताकि उनसे निकलने वाली दूषित गैसें काफी ऊँचाई पर वायुमण्डल में मिलें और पृथ्वी पर इनका अधिक प्रभाव न पड़े। दूसरा उपाय यह किया जाना चाहिए कि औद्योगिक संस्थानों की चिमनियों में बहुत उत्तम प्रकार के छन्ने लगाये जाने चाहिए।

इन छन्नों द्वारा व्यर्थ गैसों में से सभी प्रकार के कण छनकर भीतर ही रह जाएँगे, केवल गर्म हवा एवं कुछ गैसे ही वायुमण्डल में निष्कासित हो पाएँगी, इससे प्रदूषण नियन्त्रित होगा। इसके अतिरिक्त औद्योगिक संस्थानों के अन्दर श्रमिकों को स्थानीय प्रदूषण से बचाने के लिए सभी सम्भव उपाय किये जाने चाहिए। इसके लिए संवातन की सुव्यवस्था होनी चाहिए तथा ऑक्सीजन की कृत्रिम व्यवस्था भी अवश्य होनी चाहिए। औद्योगिक संस्थानों के विकेन्द्रीकरण से भी वायु-प्रदूषण को नियन्त्रित किया जा सकता है। औद्योगिक संस्थानों के अतिरिक्त वायु-प्रदूषण के मुख्य स्रोत वाहन हैं; इसके लिए भी कुछ कारगर उपाय करने होंगे। सर्वप्रथम यह अनिवार्य है कि सड़क पर चलने वाला प्रत्येक वाहन बिल्कुल ठीक होना चाहिए।

उसका कार्बोरेटर तथा धुआँ निकालने वाला भाग बिल्कुल ठीक होना चाहिए; इस स्थिति में कम धुआँ तथा कार्बन मोनोऑक्साइड निकलते हैं। इसके अतिरिक्त जहाँ तक सम्भव हो सके सड़कों पर यातायात नहीं रुकना चाहिए, क्योंकि चलते हुए वाहन की अपेक्षा स्टार्ट स्थिति में रुके हुए वाहन पर्यावरण का अधिक प्रदूषण करते हैं। वाहनों के धुआँ निकालने वाले पाइप के मुंह पर भी फिल्टर लगाये जाने चाहिए। पेट्रोल एवं डीजल में मिलावट को रोककर भी प्रदूषण को कम किया जा सकता है। रेलगाङ्गियों का विद्युतीकरण करके भी काफी हद तक वायु प्रदूषण को नियन्त्रित किया जा सकता है।

(2) जल-प्रदूषण पर नियन्त्रण– वायु प्रदूषण के ही समान जल-प्रदूषणों के भी मुख्य स्रोत औद्योगिक संस्थान ही हैं। जल-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए भी औद्योगिक संस्थानों की गतिविधियों को नियन्त्रित करना होगा। औद्योगिक संस्थानों में ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि कम-से-कम व्यर्थ पदार्थ बाहर निकालें तथा निकलने वाले व्यर्थ पदार्थों एवं जल को उपचारित करके ही निकाला जाए। इसके अतिरिक्त नगरीय कूड़े-करकट को भी जैसे-तैसे नष्ट कर देना चाहिए तथा जल-स्रोतों में मिलने से रोकना चाहिए। जहाँ तक घरेलू जल-मल का प्रश्न है, इसकी भी कोई वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए। इससे गैस एवं खाद बनाने की अलग से व्यवस्था की जानी चाहिए।

(3) ध्वनि-प्रदूषण पर नियन्त्रण- ध्वनि-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए भी विशेष उपाय किये जाने चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो वाहनों के हॉर्न अनावश्यक रूप से न बजाये जाएँ। कल-कारखानों में जहाँ-जहाँ सम्भव हो मशीनों में साइलेन्सर लगाये जाएँ। सार्वजनिक रूप से लाउडस्पीकरों आदि के इस्तेमाल को नियन्त्रित किया जाना चाहिए। घरों में भी रेडियो, टी० वी० आदि की ध्वनि को नियन्त्रित रखा जाना चाहिए। औद्योगिक संस्थानों में छुट्टी आदि के लिए बजने वाले उच्च ध्वनि के सायरन न लगाए जाएँ। इन उपायों एवं सावधानियों को अपनाकर काफी हद तक ध्वनि प्रदूषण से बचा जा सकता है।

प्रश्न 5
‘भू-भागिता से आप क्या समझते हैं। भू-भागिता के प्रमुख प्रकारों के बारे में समझाइए। (2017, 18)
उत्तर
पर्यावरणीय मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से पर्यावरण का एक रूप अन्तर्वैयक्तिक पर्यावरण 
भी है। पर्यावरण के इस रूप का सम्बन्ध जनसंख्या से है। जब हम अन्तर्वैयक्तिक पर्यावरण की बात करते हैं तब इसके मुख्य कारकों का विश्लेषण करते हैं। ये कारक हैं—वैयक्तिक स्थान, भू-भागिता, जनसंख्या घनत्व तथा भीड़। अन्तर्वैयक्तिक पर्यावरण के एक महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में भू-भागिता का व्यवस्थित अध्ययन आल्टमैन ने किया है। भू-भागिता : का सम्बन्ध सम्बन्धित भू-भांग के स्वामित्व या अधिकार से है। भू-भाग अपने आप में अदृश्य नहीं होता बल्कि इसकी कुछ स्पष्ट रूप से निर्धारित सीमाएँ होती हैं। हम स्वाभाविक रूप से ही अपने आस-पास के क्षेत्र तथा अधिकार वाले भाग को अपना समझते हैं। हम सभी अपने घर को अपना भू-भाग मानते हैं।

घर के अतिरिक्त कुछ व्यक्तियों के लिए बाग-बगीचे तथा खेत-खलियान भी निजी भू-भाग के रूप में हाते हैं। भू-भागिता एक ऐसा कारक है कि कोई भी व्यक्ति अपनी भू-भागिता में अर्थात् अपने क्षेत्र में किसी अन्य व्यक्ति के बलपूर्वक प्रवेश या अतिक्रमण को कदापि सहन नहीं करता। भू-भागिता के साथ निजीत्व का भाव जुड़ा हुआ है। व्यक्ति अपनी भू-भागिता को अपने नियन्त्रण में ही रखता है। व्यक्ति के लिए घर के अतिरिक्त कुछ अन्य भू-भागिता भी महत्त्वपूर्ण है, भले ही उनके स्वरूप एवं नियन्त्रण में कुछ अन्ता है। आलमैन ने भू-भागिता के तीन वर्ग या प्रकार निर्धारित किए हैं जिन्हें उसने क्रमशः प्राथमिक भू-भाग, गौण भू-भाग तथा सार्वजनिक भू-भाग के रूप में वर्णित किया है। इन तीनों प्रकार के भू-भागों को सामान्य परिचय निम्नवर्णित है

(1) प्राथमिक भू-भाग- व्यक्ति के लिए सबसे अधिक आवश्यक एवं उपयोगी भू-भाग को आल्टमैन ने प्राथमिक भू-भाग के रूप में वर्णित किया है। प्राथमिक भू-भाग उस भू-भाग को कहा जाता है, जिसका उपयोग कोई व्यक्ति या समूह पूर्ण स्वतन्त्र रूप से करता है। घर इस वर्ग के भू-भाग को सबसे मुख्य उदाहरण है। घर के अतिरिक्त यदि व्यक्ति के अधिकार में कोई दुकान, कार्यशाला या बगीचा आदि है, तो उसे भी प्राथमिक भू-भाग की ही श्रेणी में रखा जायेगा। प्राथमिक भू-भाग के किसी अन्य व्यक्ति को प्रवेश का अधिकार नहीं होता तथा सामान्य रूप से इसे सहन भी नहीं किया जाता। किसी व्यक्ति के प्राथमिक भू-भाग में यदि कोई अन्य व्यक्ति बलपूर्वक प्रवेश करता है तो व्यक्ति उसका विरोध करता है। उसे क्रोध भी आता है तथा यह दुःख की बात होती है।

(2) गौण भू-भाग- गौण भू-भाग उस भू-भाग को कहा गया है, जिसका स्वामित्व स्पष्ट रूप से निश्चित नहीं होता। इस वर्ग के भू-भाग को कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि अनेक व्यक्ति उपयोग में लाते हैं। विद्यालय का कक्ष इसका एक स्पष्ट उदाहरण है। कक्षा के अनेक छात्र होते हैं और वे किसी भी सीट पर बैठ सकते हैं तथा कमरे का उपयोग सम्मिलित रूप से करते हैं। व्यक्ति के जीवन में गौण भू-भाग का महत्त्व प्राथमिक भू-भाग की तुलना में कम होता है।

(3) सार्वजनिक भू-भाग- जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है-भू-भाग का यह रूप किसी एक व्यक्ति का स्वामित्व नहीं होता। सार्वजनिक भू-भाग पर जन-साधारण का समान अधिकार होता है। इसे भू-भाग पर निजी स्वामित्व का प्रश्न ही नहीं उठता। सार्वजनिक भू-भाग के मुख्य उदाहरण हैं-पार्क, रेलवे प्लेटफॉर्म, हर प्रकार के प्रतीक्षालय तथा वाचनालय आदि। इन भू-भागों में किसी व्यक्ति का कोई स्थान आरक्षित नहीं होता। उदाहरण के लिए, पार्क में किसी भी बेंच पर कोई भी व्यक्ति बैठ सकता है। सार्वजनिक भू-भाग में किसी स्थान पर कोई व्यक्ति अपनी दावेदारी नहीं कर सकता। कानून भी इसके लिए अनुमति नहीं देता।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
पर्यावरणीय मनोविज्ञान का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
अध्ययन की सरलता की दृष्टि से पर्यावरणीय मनोविज्ञान को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है|
(1) प्रत्यक्षवादी पर्यावरणीय मनोविज्ञान (Positive Environmental Psychology)- यह पर्यावरणीय मनोविज्ञान की वह शाखा है जो मनुष्य के प्राकृतिक एवं सामाजिक पर्यावरण तथा व्यक्ति के व्यवहार के मध्य अन्तर्सम्बन्ध और अन्तक्रिया का कार्य-कारण सम्बन्धी अध्ययन करती है। इस अध्ययन के आधार पर कुछ सामान्य निष्कर्षों और नियमों की स्थापना की जाती है। सामान्य नियमों की स्थापना से पूर्व निष्कर्षों की विश्वसनीयता और प्रामाणिकता की जाँच की जाती है।

(2) निदानात्मक पर्यावरणीय मनोविज्ञान (Diagnostic Environmental Psychology)– यह पर्यावरणीय मनोविज्ञान की वह शाखा है जो पर्यावरण प्रदूषण के लक्षणों, कारणों और परिणामों का अध्ययन करती है। इसमें ज़ल, वायु, तापमान, ध्वनि एवं मृदा के प्रदूषण का समग्रवादी अध्ययन किया जाता है। प्रदूषण के लक्षणों और कारणों की खोज की जाती है। इससे उत्पन्न परिणामों को चिह्नित किया जाता है। समाधान की दिशाओं का निरूपण भी होता है।

(3) व्यावहारिक पर्यावरणीये, मनोविज्ञान (Applied Environmental Psychology)यह पर्यावरणीय मनोविज्ञान की वह शेखा है जो उन उपायों और साधनों की खोज करती है जिनके द्वारा पर्यावरण का संवर्द्धन और संरक्षण किया जाता है। यह उपर्युक्त दोनों शाखाओं के निष्कर्षों को व्यवहार में लाने योग्य बनाकर मनुष्य के पर्यावरण को सन्तुलित बनाना चाहती है। इसका उद्देश्य मानव और समाज के जीवन को कल्याणमय बनाना है।इस प्रकार पर्यावरणीय मनोविज्ञान का दृष्टिकोण समग्रवादी है। वह पर्यावरण और मानव व्यवहार के बीच अन्तक्रिया का प्रत्यक्षवादी, निदानात्मक और व्यावहारिक विज्ञान है।

प्रश्न 2
वर्तमान सन्दर्भ में मानव-व्यवहार एवं पर्यावरण के मध्य सम्बन्ध बताइए। (2012)
उत्तर
मनुष्य को प्रत्येक व्यवहार अनिवार्य रूप से पर्यावरण में ही होता है। मानव-व्यवहार तथा पर्यावरण में घनिष्ठ सम्बन्ध है। यह सम्बन्ध पारम्परिक है। मानव-व्यवहार से पर्यावरण पर अनेक प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं। मनुष्यों के व्यवहार एवं क्रियाकलापों ने पर्यावरण के सन्तुलन को बिगाड़ा है। तथा प्रदूषित किया है। इस प्रकार से सन्तुलित एवं प्रदूषित पर्यावरण अब मनुष्य के व्यवहार एवं जीवन को गम्भीर रूप से प्रभावित कर रहा है। वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण एवं ध्वनि-प्रदूषण तो प्रत्यक्ष रूप से मनुष्यों के व्यवहार एवं जीवन पर गम्भीर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि मानव-व्यवहार तथा पर्यावरण में अन्योन्याश्रितता का सम्बन्ध है।

प्रश्न 3
जल प्रदूषण से क्या आशय है?
उत्तर

जेल-प्रदूषण

“जल ही जीवन है।” यह पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं के लिए अति आवश्यक है। जल का मुख्य स्रोत जमीन के अन्दर नीचे की तरफ एकत्रित जल है, इसके अतिरिक्त यह नदियों, नहरों, झीलों, समुद्रों आदि से भी अप्त होता है। प्रकृति में मुख्यतया जल, वर्षा से प्राप्त होता है जो ऊपर लिखे स्रोतों में बहकर आता है। जल बहकर आता है तो अपने साथ बहुत-सारे दूषित पदार्थ भी बहा लाता है, जिनसे जल प्रदूषित हो जाता है।

जल-प्रदूषण के मुख्य कारकों में वाहित मल (Sewage), घरेलू अपमार्जक (Detergents), धूल, गन्दगी, उद्योग-धन्धों से निकले रसायन एवं उनके व्यर्थ पदार्थ, अम्ल, क्षार, तैलीय पदार्थ, लेड (Lead), मरकरी, क्लोरीनेटेड हाइड्रोकार्बन्स, अकार्बनिक पदार्थ, फिनोलिक यौगिकी, भारी धातु, सायनाइड आदि होते हैं। इनमें से कुछ चीजें बहुत अधिक विषैली होती हैं। इसी प्रकार डी० डी० टी०, कीटाणुनाशक रसायन (Pesticides), अपतृणनाशी रसायन (Weedcides) भी जल प्रदूषित करते हैं, जिनका उपयोग हम विभिन्न प्रकार के कीड़े-मकोड़ों आदि को नष्ट करने में करते हैं। यह सब हानिकारक पदार्थ, खाद्य-श्रृंखला के द्वारा मनुष्यों के शरीर में एकत्रित होते रहते हैं और विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं; जैसे-स्नायु रोग, कैन्सर, टाइफॉइड, पेचिश आदि।।

प्रश्न 4
मृदा-प्रदूषण से क्या आशय है?
उत्तर
मृदा-प्रदूषण– मिट्टी, पेड़-पौधों के लिए बहुत आवश्यक है, और पेड़-पौधे, जीव-जन्तुओं के लिए बहुत आवश्यक हैं, अत; हम कह सकते हैं कि मिट्टी सभी जीवों के लिए आवश्य है। मिट्टी में बहुत-सारे अनावश्यक पदार्थ, कूड़ा-कचरा, मल-मूत्र, अपमार्जक, धूल, गर्द, रेत, औद्योगिक रसायन, अम्ल, क्षार, तैलीय पदार्थ, कीटाणुनाशक एवं अपतृणनाशी रसायन, रासायनिक उर्वरक, डी० डी० टी० आदि विभिन्न कार्यों में उपयोगिता के कारण मृदा में एकत्रित होते रहते हैं और मृदा का प्राकृतिक सन्तुलन बिगाड़ते रहते हैं तथा पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं पर हानिकारक प्रभाव डालते हैं। इनमें से कुछ पदार्थ जीवों के लिए विषैले होते हैं। ये हानिकारक पदार्थ खाद्य श्रृंखला द्वारा जीव-जन्तुओं और मनुष्य के शरीर में हानिकारक प्रभाव डालते हैं एवं मृदा प्रदूषण करते हैं।

प्रश्न 5
वायु-प्रदूषण से क्या आशय है? ।
या
वायु-प्रदूषण क्या होता है? उदाहरण द्वारा समझाइए। । (2013)
उत्तर
वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की गैसें एक निश्चित अनुपात में पायी जाती हैं एवं वातावरण में सन्तुलन बनाये रखती हैं। इसमें मुख्य रूप से नोइट्रोजन, ऑक्सीजन, ऑर्गन, कार्बन डाइऑक्साइड, नियॉन, हीलियम, हाइड्रोजन, ओजोन आदि गैसें प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त इसमें जलवाष्प, छोटे-छोटे ठोस कण, जीवाणु आदि भी होते हैं। जीव श्वसन में ऑक्सीजन लेते हैं और वातावरण में कार्बन डाई-ऑक्साइड बाहर निकालते हैं लेकिन पेड़-पौधे प्रकाश-संश्लेषण में वातावरण से कार्बन डाइ-ऑक्साइड लेते हैं और ऑक्सीजन बाहर निकालते हैं। इससे वातावरण में ऑक्सीजन और कार्बन डाइ-ऑक्साइड का सन्तुलन बना रहता है। जब वातावरण में किसी भी बाह्य कारक के कारण (गैसों, ठोस, कणों या वाष्पकणों के कारण) या उपस्थित गैसों के अनुपात में घटत या बढ़त के कारण असन्तुलन उत्पन्न होता है तो इसे वायु प्रदूषण कहते हैं।

प्रश्न 6
वायु-प्रदूषण का मानव-जीवन एवं व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ता है?
या
वायु-प्रदूषण हमें किस प्रकार से हानि पहुँचाता है?
या
वायु-प्रदूषण के दुष्परिणामों की व्याख्या कीजिए। (2018)
उत्तर
‘वायु-प्रदूषण’ शब्द मस्तिष्क में आते ही प्रायः दुर्गन्धमय और विभिन्न गैसों से युक्त तथा धुएँ से आच्छादित वायुमण्डल का दृश्य उपस्थित हो जाता है। वस्तुतः अनेक रासायनिक पदार्थ और गैस वायु-प्रदूषण को अत्यन्त खतरनाक बना रहे हैं। उद्योगों से नि:सृत व्यर्थ पदार्थ गैसों के सन्तुलन को बिगाड़ रहे हैं। उदाहरणार्थ-कपड़ा, शराब, दवाई, कागज, सीमेण्ट, चमड़ा, रँगाई, तेलशोधक कारखाने, रासायनिक उर्वरक के कारखाने आदि ऐसे उद्योग-धन्धे हैं जो वायु-प्रदूषण को बढ़ा रहे हैं।

स्वचालित वाहन भी 60% वायु-प्रदूषण के लिए उत्तरदायी हैं। इनके धुएँ में गैसे, कार्बन-कण, हाइड्रोकार्बन, ऑक्साइड आदि पदार्थ होते हैं। पेड़-पौधों की कीट-पतंगों से रक्षा और बीमारियों की रोकथाम के लिए डी० डी० टी० आदि का छिड़काव भी वायु को प्रदूषित कर देता है। स्प्रे-पेण्टिग और धातु उद्योग भी इसे प्रभावित करते हैं। वायु-प्रदूषण के मानव-व्यवहार पर प्रभावों को निम्नलिखित रूप से स्पष्ट किया जा सकता है

(1) शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव वायु- प्रदूषण से आँख और नाक से पानी बहने लगता है। इसके कारण दमा-श्वास और फेफड़ों का कैन्सर जैसे रोग हो जाते हैं। स्वचालित वाहनों से निकले धुएँ और धूल से श्वसन सम्बन्धी रोग उत्पन्न हो जाते हैं जिनमें खाँसी और गले की खराश मुख्य हैं। कैडमियम, मरकरी, डी० डी० टी० पदार्थ भी खाद्य श्रृंखला या अन्य विधियों द्वारा मानव के शरीर में पहुँचकर हृदय रोग, कैंसर, स्नायु रोग, रक्तचाप, तन्त्रिका-तन्त्र के भयंकर रोग पैदा कर देते हैं।

(2) मनोरोगों में वृद्धि- शारीरिक रोगों के अतिरिक्त वायु-प्रदूषण मानसिक व्याधियों में वृद्धि का भी एक प्रमुख कारण है। कार्बन मोनो-ऑक्साइड, जो वायु-प्रदूषण के लिए सर्वाधिक उत्तरदायी कारक है, इससे सिरदर्द, मिर्गी, थकान तथा स्मृति ह्रास पैदा होते हैं। राटन तथा फ्रे ने अपने अध्ययनों में पाया कि वायु-प्रदूषण की अधिकता में मनोरोगियों की संख्या में वृद्धि हो रही है।

(3) कार्य-निष्पादन क्षमता में ह्रास- वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययनों से सिद्ध किया है कि जैसे-जैसे वायु में कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है, वैसे-ही-वैसे कार्य निष्पादन की क्षमता में ह्रास होता है। चूहों पर किये गये प्रयोगों के निष्कर्ष इस बात की पुष्टि करते हैं। ग्लीनर तथा अन्य वैज्ञानिकों ने यह बताया है कि वायु-प्रदूषण, वाहन चालक की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। और इससे दुर्घटनाएँ बढ़ने की प्रवृत्ति दिखाई देती है।

(4) सौन्दर्यबोधक संवेगों में हास- राटन, याशिकावा तथा अन्य ने अपने अध्ययनों से सिद्ध किया है कि दुर्गन्धमय वायु-प्रदूषण छायांकन तथा चित्रकारी आदि से सम्बन्धित अभिवृत्ति को कम कर देता है। केवल इतना ही नहीं अपितु इससे अन्य लोगों के प्रति आकर्षण भी कम हो जाता है और मनुष्य की सौन्दर्यबोधक संवेदनशीलता में ह्रास आता है।

(5) बाह्य वातावरण में आयोजित सामाजिक कार्य- कलापों में कमी–प्रदूषित वायु के कारण खुले में आयोजित होने वाले सामाजिक कार्यक्रमों को कम करना पड़ता है, क्योंकि उनके कारण अधिक लोग एक ही स्थान पर वायु प्रदूषण के शिकार हो जाते हैं।

प्रश्न 7
ध्वनि-प्रदूषण से क्या आशय है? ।
या
ध्वनि-प्रदूषण के लिए उत्तरदायी कारणों का विश्लेषण कीजिए। (2016)
उत्तर
वातावरण में विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न अप्रिय एवं अनचाही आवाज, जिसका हमारे ऊपर बुरा या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, शोर या ध्वनि कहलाता है। यह अगर अप्रिय, असहनीय और कर्कश होता है तो वातावरण को प्रदूषित करता है और शोर या ध्वनि-प्रदूषण कहलाता है। ध्वनि-प्रदूषण मुख्यतया बड़े शहरों या औद्योगिक दृष्टि से विकसित क्षेत्र, रेलवे स्टेशन, बस स्टॉप, हवाई अड्डों, भीड़-भाड़ वाले स्थानों, सभास्थलों, सिनेमाघरों, फैक्ट्री या कल-कारखानों के आस-पास ज्यादा होता है। इसके अलावा रेडियो, ट्रांजिस्टर, टी० वी०, लाउडस्पीकर, सायरन, स्वचालित वाहन (बस, ट्रक, हवाई जहाज आदि) भी ध्वनि प्रदूषण करते हैं।

ध्वनि-प्रदूषण से सुनने की क्षमता में कमी आती है, अर्थात् बहरापन होता है, मोटापा बढ़ता है, गुस्सा ज्यादा आता है, सहनशक्ति कम होती है, तन्त्रिका-तन्त्र सम्बन्धी सभी रोग होते हैं, नींद न आना, अल्सर, सिरदर्द, हृदय रोग, रक्तचाप सम्बन्धी रोग, घबराहट आदि होती है।

ध्वनि-प्रदूषण से हमारी एकाग्रता प्रभावित होती है। इसीलिए अस्पतालों, नर्सिंग होम, स्कूल एवं कॉलेजों के पास यह चेतावनी लिखी होती है कि “यहाँ हॉर्न का प्रयोग वर्जित है”, “ध्वनि मुक्त क्षेत्र (Silence Zone) आदि।

प्रश्न 8
ध्वनि प्रदूषण का मानव-जीवन एवं व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ता है? (2014)
उत्तर
शोध कार्यों से पता चलता है कि ध्वनि प्रदूषण का मानव-व्यवहार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस प्रभात का अध्ययन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है–

(1) स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव- अत्यधिक शोर का व्यक्ति के स्नायुमण्डल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे उसकी श्रवण-शक्ति कमजोर होती है, बहरापन बढ़ता है।

(2) आक्रामकता और चिड़चिड़ेपन में वृद्धि- ब्लम तथा एजरीन नामक वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययनों से प्रदर्शित किया है कि अति तीव्र शोर से मनुष्य शारीरिक रूप से उद्वेलित और उत्तेजित हो जाता है, परिणामस्वरूप उसमें आक्रामकता और चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है।

(3) अनुक्रियात्मकता का ह्रास- कुछ विद्वानों का कहना है कि मनुष्य में अपने उद्दीपकों के साथ अनुकूलन की स्वाभाविक क्षमता होती है। इसे अभ्यस्त होना (Habituation) कहा जाता है, किन्तु ग्लास तथा अन्य ने अपने प्रयोगों में पाया कि अनुकूलन की प्रक्रिया में मनुष्य की मानसिक ऊर्जा व्यय होती है। शनैः-शनैः वह पर्यावरणीय अपेक्षाओं और कुण्ठाओं के प्रति सकारात्मक अनुक्रिया करने में अक्षम हो जाते हैं।

(4) परार्धमूलक क्रियाओं में अरुचि- मैथ्यूज तथा कैनन ने अपने अध्ययन से यह भी प्रदर्शित किया कि शान्त वातावरण में व्यक्ति दूसरों की सहायता करने के प्रति अधिक सक्रिय थे, जब कि शोरगुल के वातावरण में उन्होंने दूसरों की सहायता या सेवा-कार्य में कोई रुचि प्रदर्शित नहीं की।

(5) गर्भ-स्थिति पर कुप्रभाव-ध्वनि- प्रदूषण का गर्भस्थ शिशु पर बुरा प्रभाव पड़ता है और प्रसव पीड़ादायक हो जाता है। |

(6) मानसिक प्रक्रियाओं पर प्रतिकूल प्रभाव- ध्वनि-प्रदूषण का मनुष्य की मानसिक प्रक्रियाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, क्योंकि इसमें रक्तचाप (Blood pressure) बढ़ जाता है तथा अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ अधिक सक्रिय हो जाती हैं। स्पष्टतः इनका मानसिक प्रक्रियाओं पर बुरा असर पड़ेगा ही, पाचक रसों का स्राव भी कम होगा जिससे अल्सर व दमा जैसे रोगों की सम्भावना बढ़ेगी। इतना ही नहीं, इससे मनुष्य की एकाग्रता भी भंग हो जाती है जिससे अध्ययन और मनन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 9
ताप-प्रदूषण का व्यक्ति के जीवन एवं व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ता है? (2014)
या
मानव-व्यवहार पर ताप-प्रदूषण के प्रभावों की व्याख्या कीजिए। 
(2017)
उत्तर
कारखानों और स्वचालित वाहनों से निकलती गैसें व धुआँ, आणविक विस्फोटों, ओजोन के विक्षेपण तथा वनों की कमी और जुनसंख्या विस्फोट ने तापमान में निरन्तर वृद्धि की है। गर्मी का प्रकोप बढ़ रहा है। इसी को ताप-प्रदूषण कहा जाता है। यदि यह प्रदूषण बढ़ता गया तो पृथ्वी ग्रह मनुष्य के रहने योग्य नहीं बचेगा मानव-व्यवहार पर ताप-प्रदूषण के निम्नलिखित प्रभाव दृष्टिगोचर होते है

(1) बौद्धिक प्रखरता पर प्रभाव- तापमान वृद्धि बौद्धिक प्रखरता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। ताप प्रदूषण में आदमी सुस्त, थका हुआ और निष्क्रिय महसूस करने लगता है, जबकि कम तापमान व्यक्ति की कुशलता में वृद्धि करता है। |

(2) गर्म-जलवायु और आक्रामक-व्यवहार– गोरान्सन तथा किंग ने अपने अनुसन्धान में पाया कि अधिकांशतः व्यावहारिक विकार गर्मी के महीनों में ज्यादा देखने को मिलते हैं। फ्रांस के सामाजिक चिन्तक दुर्णीम ने कुछ देशों के अपराधों के आँकड़ों का अध्ययन करके यह पाया कि गर्मियों में मानव शरीर के प्रति अपराध ज्यादा होते हैं; जैसे—मारपीट, हत्या, बलात्कार आदि; जबकि जाड़ों में सम्पत्ति के प्रति अपराध; जैसे-चोरी, डकैती आदि अधिक होते हैं। ग्रिफिट तथा वीच ने कमरों के तापमान में वृद्धि करके देखा कि अधिक गर्मी में रहने वाले व्यक्ति ठण्डे कमरों में रहने वाले व्यक्तियों से अधिक आक्रामक थे।

(3) चन्द्रमा की चक्रीय क्रिया का मानव- व्यवहार पर प्रभाव-यह सर्वविदित है कि समुद्र में ज्वार-भाटा चन्द्रमा, की चक्रीय क्रिया अर्थात् क्रमागत घटने-बढ़ने से आते हैं। मानव-शरीर में भी जल-विद्यमान है। वह भी चन्द्रमा के चक्रीय प्रभाव से वंचित नहीं हैं। प्राचीनकाल से ही यौन-वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन से सिद्ध किया है कि चन्द्रमा की घटती-बढ़ती कलाओं का मनुष्य; विशेषकर महिलाओं की यौन-इच्छाओं, यौन-उत्तेजनाओं तथा यौन-व्यवहार पर प्रभाव पड़ता है।

(4) तापमान एवं शारीरिक स्वास्थ्य- बढ़ता हुआ तापमान मनुष्य के शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इससे अधिक चर्म रोग उत्पन्न हो जाते हैं। बहुत ठण्ड में अत्यधिक शीतप्रधान क्षेत्रों में भी मनुष्य की त्वचा विदीर्ण एवं मस्सों वाली हो जाती है।

(5) तापमान वृद्धि के सामाजिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव– तापमान वृद्धि के कुछ अप्रत्यक्ष कुप्रभाव जानने में आये हैं। इससे फसलों और पौधों को नुकसान होता है, भूमि में जल-स्तर नीचे चला जाता है, पेयजल का संकट उत्पन्न हो जाता है और समूचा सामाजिक जीवन ही अस्त-व्यस्त हो जाता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न1
पर्यावरण के सन्दर्भ में वैयक्तिक स्थान (Personal Space) के अर्थ को स्पष्ट कीजिए। (2014)
या
अन्त:वैयक्तिक वातावरण से आप क्या समझते हैं? (2018)
उत्तर
मनोवैज्ञानिक अध्ययनों में पर्यावरण तथा मानवीय व्यवहार का व्यवस्थित अध्ययन किया जाता हैं। पर्यावरण से आशय प्रायः प्राकृतिक पर्यावरण ही माना जाता है, परन्तु यथार्थ में अन्तर्वैयक्तिक पर्यावरण का प्रत्यय भी महत्त्वपूर्ण है। अन्तर्वैयक्तिक पर्यावरण में सर्वाधिक महत्त्व वैयक्तिक स्थान (Personal space) का है।

व्यक्ति के आस-पास के अदृश्य सीमा वाले उस स्थान को वैयक्तिक स्थान कहा जाता है जो सम्बन्धित व्यक्ति के ‘स्व’ के भाग के रूप में स्वीकार किया जाता है। मानव-स्वभाव के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति अपने ‘स्व’ के भाग या क्षेत्र में किसी अन्य वैयक्तिक के प्रवेश को अतिक्रमण मानता है तथा इसका विरोध करता है।

एक उल्लेखनीय मनोवैज्ञानिक हल ने। व्यक्तिक स्थान की चार सीमाएँ या भाग निर्धारित किये हैं। ये भाग या सीमाएँ हैं-अन्तरंग दूरी, वैयक्तिक दूरी, सामाजिक दूरी तथा सार्वजनिक दूरी। वैयक्तिक स्थान को यह मान्यता जहाँ एक ओर . व्यक्तियों के मध्य महत्त्व पूर्ण भूमिका निभाती है वहीं विभिन्न समूहों में भी इस अवधारणाा का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।

प्रश्न 2
पर्यावरण-प्रदूषण का जम-स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर
पर्यावरण- प्रदूषण का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव जन-स्वास्थ्य पर पड़ता है। जैसे-जैसे पर्यावरण का अधिक प्रदूषण होने लगता है, वैसे-वैसे प्रदूषण जनित रोगों की दर एवं गम्भीरता में वृद्धि होने लगती है। पर्यावरण के भिन्न-भिन्न पक्षों में होने वाले प्रदूषण से भिन्न-भिन्न प्रकार के रोग बढ़ते हैं। हम जानते हैं कि वायु-प्रदूषणेंके परिणामस्वरूप श्वसन-तन्त्र से सम्बन्धित रोग अधिक प्रबल होते हैं। जल-प्रदूषण के परिणामस्वरूपाचन-तन्त्र से सम्बन्धित रोग अधिक फैलते हैं। ध्वनि-प्रदूषण भी तन्त्रिका-तन्त्र, हृदय एवं रक्तचाप सम्झन्धी विकारों को जन्म देता है। इसके साथ-ही-साथ मानसिक स्वास्थ्य एवं व्यवहारगत सामान्यता को भी ध्वनि-प्रदूषण विकृत कर देता है। अन्य प्रकार के प्रदूषण भी जन-सामान्य को विभिन्न सामान्य एवं गम्भीर रोगों का शिकार बनाते हैं। संक्षेप में कहा जा सकता है कि पर्यावरण प्रदूषण अनिवार्य रूप से जन-स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। प्रदूषित पर्यावरण में रहने वाले व्यक्तियों की औसत आयु भी घटती है तथा स्वास्थ्य का सामान्य स्तर भी निम्न रहता है।

प्रश्न 3
पर्यावरण-प्रदूषण का व्यक्ति की कार्यक्षमता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर
व्यक्ति एवं समाज की प्रगति में सम्बन्धित व्यक्तियों की कार्यक्षमता का विशेष महत्त्व होता है। यदि व्यक्ति की कार्य-क्षमता सामान्य या सामान्य से अधिक हो तो वह व्यक्ति निश्चित रूप से प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होता है तथा समृद्ध बन सकता है। जहाँ तक पर्यावरण-प्रदूषण का प्रश्न है, इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति की कार्यक्षमता अनिवार्य रूप से आती है। हम जानते हैं कि पर्यावरण-प्रदूषण के परिणामस्वरूप जन-स्वास्थ्य का स्तर निम्न होता है। निम्न स्वास्थ्य स्तर वाला व्यक्ति ने तो अपने कार्य को कुशलतापूर्वक ही कर सकता है और न ही उसकी उत्पादन-क्षमता ही सामान्य रह पाती है। ये दोनों ही स्थितियाँ व्यक्ति एवं समाज के लिए हानिकारक सिद्ध होती हैं। वास्तव में प्रदूषित वातावरण में भले ही व्यक्ति अस्वस्थ न भी हो तो भी उसकी चुस्ती एवं स्फूर्ति तो घट ही जाती है। यही कारक व्यक्ति की कार्यक्षमता को घटाने के लिए पर्याप्त सिद्ध होता है।

प्रश्न 4
पर्यावरण-प्रदूषण का आर्थिक-जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? ।
उत्तर
व्यक्,समाज तथा राष्ट्र की आर्थिक स्थिति पर भी पर्यावरण-प्रदूषण का उल्लेखनीय प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वास्तव में, यदि व्यक्ति का सामान्य स्वास्थ्य का स्तर निम्न हो तथा उसकी कार्यक्षमता भी कम हो तो वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समुचित धन कदापि अर्जित नहीं कर सकता। पर्यावरण-प्रदूषण के परिणामस्वरूप व्यक्ति की उत्पादन क्षमता घट जाती है। इसके साथ-ही-साथ भी सत्य है कि यदि व्यक्ति अथवा उसके परिवार का कोई सदस्य प्रदूषण का शिकार होकर किन्हीं साधारण या गम्भीर रोगों से ग्रस्त रहता है तो उसके उपचार पर भी पर्याप्त व्यय करना पड़ सकता है। इससे भी व्यक्ति एवं परिवार का आर्थिक बजट बिगड़ जाता है तथा व्यक्ति एवं परिवार की आर्थिक स्थिति निम्न हो जाती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि पर्यावरण-प्रदूषण के प्रभाव से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष दोनों ही रूपों में कुप्रभावित होती है। इस कारक के प्रबल तथा विस्तृत हो जाने से समाज एवं राष्ट्र की आर्थिक स्थिति भी प्रभावित होती है।

प्रश्न5
फ्र्यावरणीय-प्रदूषण के कारण मानव-व्यवहार पर पड़ने वाले कोई चार प्रभाव लिखिए।
उत्तर
पर्यावरणीय-प्रदूषण के कारण मानव-व्यवहार पर पड़ने वाले मुख्य प्रभाव निम्नलिखित हैं

  1. पर्यावरणीय प्रदूषण के कारण व्यक्ति का व्यवहार असामान्य हो जाता है।
  2. पर्यावरण प्रदूषण के कारण व्यक्ति के व्यवहार में चिड़चिड़ापन तथा आक्रामकता आ सकती है
  3. पर्यावरण-प्रदूषण के कारण व्यक्तियों में पारस्परिक आकर्षण एवं सामाजिकता का व्यवहार क्षीण पड़ सकता है।
  4. पर्यावरण-प्रदूषण के कारण व्यक्ति के व्यवहार में त्रुटियाँ अधिक होती हैं।

प्रश्न 6
ध्वनि-प्रदूषण से होने वाले किन्हीं दो दुष्प्रभावों के बारे में लिखिए। | (2014)
उत्तर
ध्वनि-प्रदूषण का प्रतिकूल प्रभाव व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य एवं व्यवहार दोनों पर पड़ता है। ध्वनि-प्रदूषण के कारण बहरापन, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप तथा पाचन-तन्त्र सम्बन्धी रोग हो 
सकते हैं। ये रोग साधारण से लेकर अति गम्भौर तक हो सकते हैं। ध्वनि-प्रदूषण के प्रभाव से व्यक्तिः के स्वभाव में चिड़चिड़ापन तथा आक्रामकता में वृद्धि हो सकती है। इसके अतिरिक्त इस स्थिति में व्यक्ति अपने पर्यावरण के साथ अनुकूलन करने में कठिनाई अनुभव करता है। उसकी कार्यक्षमता भी कुछ घट जाती है।

प्रश्न 7
ध्वनि-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के मुख्य उपायों का उल्लेख कीजिए। (2015)
उत्तर
ध्वनि-प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं

  1. कल-कारखानों तथा औद्योगिक संस्थानों को आवासीय क्षेत्रों से दूर स्थापित करना चाहिए।
  2. आवासीय क्षेत्रों में उच्च ध्वनि वाले लाउडस्पीकरों पर कड़ा प्रतिबन्ध होना चाहिए।
  3. वाहनों की ध्वनि नियन्त्रित करने के समस्त तकनीकी उपाय करने चाहिए। ऊँची ध्वनि वाले हॉर्न नहीं लगाये जाने चाहिए।
  4. औद्योगिक शोर को प्रतिबन्धित करने के लिए यथास्थान अधिक-से-अधिक साइलेंसर लगाये जाने चाहिए।
  5. जहाँ तक सम्भव हो, मकानों को अधिक-से-अधिक ध्वनि अवरोधक बनाया जाना चाहिए।

प्रश्न 8
टिप्पणी लिखिए-पर्यावरण के सन्दर्भ में ‘जनसंख्या घनत्व। (2018)
उत्तर
पर्यावरणीय मनोविज्ञान के अन्तर्गत पर्यावरण के सन्दर्भ में जनसंख्या-घनत्व (Density of Population) का भी अध्ययन किया जाता है। जनसंख्या के अधिक घनत्व से व्यक्तियों को । अन्त:क्रिया की विवशता का सामना करना पड़ता है। जनसंख्या के घनत्व का व्यक्ति के व्यवहार पर अनेक प्रकार से प्रभाव पड़ता है। जनसंख्या घनत्व का आशये किसी क्षेत्र में जनसंख्या की सघनता से है। जनसंख्या की सधनता का सम्बन्ध सामाजिक व्याधि, अपराध दर तथा सामाजिक विघटन आदि से है। कुछ अध्ययनों में देखा गया है कि जनसंख्या के उच्च सघनता का व्यक्ति के व्यवहार तथा सवेगों पर निषेधात्मक प्रभाव पड़ता है। जनसंख्या की सघनता का एक रूप भीड़ (crowd) भी है। भीड़ में व्यक्ति का सामान्य व्यवहार बदल जाता है। वास्तव में भीड़ में घनत्व अधिक होता है तथा सामान्य नियन्त्रण की कमी होती है; अतः व्यक्ति का व्यवहार बिगड़ जाता है।

प्रश्न 9
भीड़ का अर्थ स्पष्ट कीजिए। (2017)
उत्तर
जब हम अन्तर्वैयक्तिक पर्यावरण की बात करते हैं तब जनसंख्या सम्बन्धी एक मुख्य कारक के रूप में भीड़ की चर्चा होती है। भीड़ से आशय है-अत्यधिक जनसंख्या घनत्व वाला क्षेत्र। भीड़ का यह एक साधारण अर्थ है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भीड़ को स्थानीय, सामाजिक तथा वैयक्तिक कारणों से उत्पन्न एक प्रेरणात्मक अवस्था माना जाता है। पर्यावरण सम्बन्धी अन्य कारकों के ही समान भीड़ भी व्यक्ति के व्यवहार तथा जीवन को गम्भीर रूप से प्रभावित करती है।

भीड़ के प्रभाव से ऋणात्मक मनोभाव तथा प्रतिबल उत्पन्न होते हैं। इन प्रभावों के परिणामस्वरूप व्यक्ति अपने सामान्य क्रियाकलापों को सुचारु रूप से करने में कुछ कठिनाइयाँ या असुविधा महसूस करता है। भीड़ से प्रभावित व्यक्ति अर्थात् भीड़ का हिस्सा बने व्यक्ति का निजीत्व भी बाधित होने लगता है। भीड़ से व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य एवं सामान्य व्यवहार भी प्रभावित होता है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न I. निम्नलिखित वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति उचित शब्दों द्वारा कीजिए

1. पर्यावरणीय मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की……………….शाखा है।।
2. पर्यावरण के प्रति …………के परिणामस्वरूप ही पर्यावरणीय मनोविज्ञान का विकास | हुआ है।
3. पर्यावरण एवं मानव व्यवहार के मध्य सम्बन्धों एवं प्रभावों का अध्ययन ……….. मनोविज्ञान के अन्तर्गत किया
जाता है (2011)
4. पर्यावरणीय मनोविज्ञान का सम्बन्ध मनोविज्ञान के …………….पक्ष से है।
5. मनुष्य के प्राकृतिक एवं सामाजिक पर्यावरण तथा व्यक्ति व्यवहार के मध्य अन्तर्सम्बन्ध का कार्य-कारण सम्बन्धी अध्ययन करने वाली पर्यावरणीय मनोविज्ञान की शाखा को …………….. कहते हैं।
6. पर्यावरण प्रदूषण के लक्षणों, कारणों एवं परिणामों का अध्ययन करने वाली पर्यावरणीय 
मनोविज्ञान की शाखा को ……………. कहते हैं।
7. पर्यावरण के संवर्द्धन एवं संरक्षण के उपायों का अध्ययन करने वाली पर्यावरणीय मनोविज्ञान 
की शाखा को……….. कहते हैं। 8. पर्यावरणीय सूचनाएँ मनुष्य तथा ………… के बीच सन्तुलन स्थापित करने में सहायक होती हैं।
9. पर्यावरण के किसी एक या अधिक पक्षों के दूषित हो जाने को………… कहते हैं।
10. आधुनिक नगरीय-औद्योगिक समाज की मुख्य समस्या …………. है।
11. पर्यावरण प्रदूषण का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव………….पर पड़ता है।
12. कारखानों की चिमनियों से निकलने वाले धुएँ से होने वाली प्रदूषण ……………….कहलाता है।
13. वायु-प्रदूषण द्वारा मानव शरीर के अंगों में ……………….. सर्वाधिक प्रभावित होते हैं (2017)
14. श्वाससम्बन्धी बीमारी ………………प्रदूषण से होती है। 
(2009)
15. पर्यावरण में शोर या ध्वनि का बढ़ जाना……………..कहलाता है। 
(2018)
16. “ध्वनि प्रदूषण प्रश्नावली का प्रयोग” …………सम्बन्धी प्रदत्तों के संग्रह के लिए किया | जाता है।
17. गन्दे नालों का पानी नदियों में छोड़ने से……….होता है।
18. पर्यावरण में तापमान में होने वाली वृद्धि के परिणामस्वरूप व्यक्ति के व्यवहार में……………
 बढ़ती है।
19. यदि पर्यावरण में दुर्गन्ध बढ़ जाती है तो उस स्थिति में ………………. नहीं हो पाते।
20. दुर्गन्धयुक्त पर्यावरण में व्यक्तियों का पारस्परिक आकर्षण……………है।
21. मनुष्य द्वारा पर्यावरण में किया जा रहा कृत्रिम बदलाव मनुष्य के लिए …………….सिद्ध हो 
रहा है।
22. एक निश्चित भू-भाग में रहने वाले लोगों की संख्या को ……..कहते हैं। (2014)
23. भीड़ में घनत्व ……………एवं नियन्त्रण की ………………… होती है। (2012, 15)
24. आल्टमैन की भूभागिता के प्रकार के अनुसार प्रतीक्षालय एक भू भाग है। (2008)
25. व्यक्ति के चारों ओर की अदृश्य सीमा का वह भाग, जिसे वह अपना मानता है,………….कहलाता है। 
(2018)
उत्तर
1. नवीनतम
2. जागरूकता
3. पर्यावरणीय
4. व्यावहारिक
5. प्रत्यक्षवादी पर्यावरणीय मनोविज्ञान
6. निदान्त्यक पर्यावरणीय मनोविज्ञान
7. व्यावहारिक पर्यावरणीय प्रदूषण
8. पर्यावरण
9. पर्यावरण प्रदूषण
10. पर्यावरण-प्रदूषण
11. जन-स्वास्थ्य
12. वायु-प्रदूषण
13. फेफड़े
14. वायु
15. ध्वनि-प्रदूषण
16. ध्वनि-प्रदूषण
17. जल-प्रदूषण
18. आक्रामकता
19. मनोरंजक कार्यक्रम
20. घट जाता
21. हानिकारक
22. जनसंख्या का घनत्व
23. अधिक, कमी
24. सार्वजनिक
25. वैयक्तिक स्थान।

प्रश्न II. निम्नलिखित प्रश्नों का निश्चित-उत्तर एक शब्द अथवा एक वाक्य में दीजिए-

प्रश्न 1.
पर्यावरणीय मनोविज्ञान का विकास कब हुआ?
उत्तर
पर्यावरणीय मनोविज्ञान का विकास बीसवीं सदी के सातवें दशक के उत्तरार्द्ध और आठवें दशक के पूर्वार्द्ध में हुआ है।

प्रश्न 2.
‘पर्यावरणीय मनोविज्ञान की पृष्ठभूमि क्या थी?
उत्तर
‘पर्यावरणीय मनोविज्ञान के विकास की पृष्ठभूमि में विश्व के जागरूक वैज्ञानिकों एवं सामाजिक चिन्तकों की पर्यावरण प्रदूषण से उत्पन्न मानव अस्तित्व के संकट के प्रति बढ़ती हुई जागरूकता थी।

प्रश्न 3.
‘पर्यावरणीय मनोविज्ञान से क्या आशय है?
उत्तर
मनुष्य के मानसिक व्यवहार तथा पर्यावरण के बीच पाये जाने वाले अन्तर्सम्बन्ध का व्यवस्थित अध्ययन ही पर्यावरणीय मनोविज्ञान है।

प्रश्न 4.
‘पर्यावरणीय मनोविज्ञान की एक व्यवस्थित परिभाषा लिखिए।
उत्तर
हेमस्ट्रा तथा मैफ्फारलिंग के अनुसार, “पर्यावरणीय मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की एक वह शाखा है जो मानव-व्यवहार तथा भौतिक वातावरण के पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन करती है।”

प्रश्न 5.
पर्यावरणीय मनोविज्ञान के मुख्य भागों या प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
पर्यावरणीय मनोविज्ञान के तीन भाग या प्रकार हैं

  1. प्रत्यक्षवादी पर्यावरणीय मनोविज्ञान
  2. निदानात्मक, पर्यावरणीय मनोविज्ञान तथा
  3. व्यावहारिक पर्यावरणीय मनोविज्ञान।

प्रश्न 6.
पर्यावरणीय मनोविज्ञान को किस श्रेणी में रखा जाता है?
उत्तर
पर्यावरणीय मनोविज्ञान को व्यावहारिक महत्त्व का विज्ञान माना जाता है।

प्रश्न 7.
आधुनिक युग में किस कारण से पर्यावरणीय मनोविज्ञान का महत्त्व बढ़ गया है?
उत्तर
आधुनिक युग में पर्यावरण-प्रदूषण में वृद्धि तथा पर्यावरण-सन्तुलन के बिगड़ने के कारण पर्यावरणीय मनोविज्ञान का महत्त्व बढ़ गया है।

प्रश्न 8.
पर्यावरण-प्रदूषण से क्या आशय है? ।
उत्तर
प्रकृति-प्रदत्त पर्यावरण में जब किन्हीं तत्त्वों का अनुपाते इस रूप में बदलने लगता है, जिसका जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना होती है, तब जो स्थिति उत्पन्न होती है, उसे पर्यावरण-प्रदूषण कहा जाता है।

प्रश्न 9.
पर्यावरण-प्रदूषण के मुख्य प्रकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर
पर्यावरण-प्रदूषण के मुख्य प्रकार हैं

  1. वायु प्रदूषण
  2. जल-प्रदूषण
  3. मृदा-प्रदूषण तथा
  4. ध्वनि-प्रदूषण। 

प्रश्न 10.
जल-प्रदूषण से क्या आशय है?
उत्तर
जल के मुख्य स्रोतों में दूषितं एवं विषैले तत्त्वों का समावेश होना जल-प्रदूषण कहलाता है।

प्रश्न 11.
जल-प्रदूषण के मुख्य कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
जल-प्रदूषण के मुख्य कारण हैं-घरेलू वाहित मल, वर्षा का जल, औद्योगिक संस्थानों द्वारा विसर्जित पदार्थ तथा शव विसर्जन।

प्रश्न 12.
ध्वनि-प्रदूषण से क्या आशय है।
उत्तर
पर्यावरण में अनावश्यक शोर या ध्वनि का व्याप्त होनी ही ध्वनि-प्रदूषण कहलाता है।

प्रश्न 13.
ध्वनि-प्रदूषण का स्वास्थ्य फर क्या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है?
उत्तर
ध्वनि-प्रेदूषण का व्यक्ति के स्नायुमण्डल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, श्रवण-शक्ति कमजोर हो जाती है तथा बहरापन होने की आशंका बढ़ती है।

प्रश्न 14.
ध्वनि-प्रदूषण का व्यक्ति के व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर
ध्वनि-प्रदूषण से व्यक्ति के व्यवहार में आक्रामकता बढ़ती है तथा चिड़चिड़ापन झलकने लगता है।

प्रश्न 15.
यदि पर्यावरण का तापक्रम सामान्य से अधिक हो जाता है तो व्यक्ति के व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर
पर्यावरण का तापक्रम सामान्य से अधिक होने की दशा में व्यक्ति के व्यवहार में आक्रामकता बढ़ने लगती है।

प्रश्न 16.
यदि वातावरण में दुर्गन्ध व्याप्त हो तो उसका हमारे जीवन पर क्या प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
उत्तर
दुर्गन्धयुक्त वातावरण में हम मनोरंजक कार्यक्रम आयोजित नहीं कर पाते तथा इस वातावरण में व्यक्तियों का पारस्परिक आकर्षण भी घटने लगता है।

प्रश्न 17
व्यक्ति की क्षमताओं पर वायु-प्रदूषण का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर
वायु प्रदूषण का व्यक्ति की ध्यान-केन्द्रण-क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसके हस्तकौशल में कमी आती है तथा प्रतिक्रिया-काल बढ़ जाता है।

प्रश्न 18.
किन परिस्थितियों में नामकीय प्रदूषण उत्पन्न होता है? (2018)
उत्तर
परमाणु परीक्षणों तथा आणविक ऊर्जा के इस्तेमाल से नाभिकीय प्रदूषण उत्पन्न होता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रेश्नों में दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए

प्रश्न 1.
पर्यावरणीय मनोविज्ञान विज्ञान का वह क्षेत्र है जो मानवीय अनुभवों और क्रियाओं तथा सामाजिक एवं भौतिक अनुभवों के प्रासंगिक पक्षों में होने वाले व्यवहारों तथा अन्तक्रियाओं का संयोजन और विश्लेषण करता है।”-प्रस्तुत परिभाषा प्रतिपादित है
(क) कैटर तथा क्रेक द्वारा
(ख) हेमस्ट्रा तथा मैक्फारलिंग द्वारा
(ग) मन द्वारा
(घ) विलियम जेम्स द्वारा।
उत्तर
(क) कैटर तथा क्रेक द्वारा

प्रश्न 2.
मनोविज्ञान की उस शाखा को क्या कहा जाता है जिसके अन्तर्गत मानवीय-व्यवहार तथा पर्यावरण के पारस्परिक सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है?
(क) सामान्य मनोविज्ञान
(ख) विकासात्मक मनोविज्ञान
(ग) पर्यावरणीय मनोविज्ञान
(घ) व्यावहारिक मनोविज्ञान
उत्तर
(ग) पर्यावरणीय मनोविज्ञान

प्रश्न 3.
पर्यावरणीय मनोविज्ञान के भाग हैं
(क) प्रत्यक्षवादी पर्यावरणीय मनोविज्ञान
(ख) निदानात्मक पर्यावरणीय मनोविज्ञान
(ग) व्यावहारिक पर्यावरणीय मनोविज्ञान
(घ) ये सभी
उत्तर
(घ) ये सभी

प्रश्न 4.
पर्यावरणीय मनोविज्ञान के उस भाग को क्या कहते हैं, जिसके अन्तर्गत पर्यावरण के संवर्द्धन और संरक्षण उपायों को खोजा जाता है ?
(क) निदानात्मक पर्यावरणीय मनोविज्ञान
(ख) प्रत्यक्षवादी पर्यावरणीय मनोविज्ञान
(ग) व्यावहारिक पर्यावरणीय मनोविज्ञान
(घ) इन में से कोई नहीं
उत्तर
(ग) व्यावहारिक पर्यावरणीय मनोविज्ञान

प्रश्न 5.
पर्यावरण-दिवस मनाया जाता है (2011).
(क) 5 जून को
(ख)15 जून को
(ग) 25 जून को
(घ) 30 जून को
उत्तर
(क) 5 जून को

प्रश्न 6.
आधुनिक औद्योगिक नगरीय समाज की मुख्यतम समस्या है
(क) निर्धनता
(ख) निरक्षरता
(ग) बेरोजगारी
(घ) पर्यावरण-प्रदूषण
उत्तर
(घ) पर्यावरण-प्रदूषण

प्रश्न 7.
कौन-सा कथन पर्यावरणीयं मनोविज्ञान से सम्बन्धित है?
(क) यह मनोविज्ञान की एक आँखा है।
(ख) इसके अन्तर्गत पर्यावरण तथा मानवीय व्यवहार के आपसी सम्बन्धों का अध्ययन किया 
जाता है।
(ग) इसका सम्बन्ध मनोविज्ञान के व्यावहारिक पक्ष से है।
(घ) उपर्युक्त सभी तथ्य
उत्तर
(घ) उपर्युक्त सभी तथ्य

प्रश्न 8.
पर्यावरण-प्रदूषण के प्रकार हैं|
(क) वायु-प्रदूषण
(ख) जल-प्रदूषण
(ग) ध्वनि-प्रदूषण
(घ) ये सभी
उत्तर
(घ) ये सभी

प्रश्न 9.
निम्नलिखित में से कौन प्रदूषण से सम्बन्धित नहीं है। (2016)
(क) पेड़ों की कटाई
(ख) लाउडस्पीकर का प्रयोग
(ग) जैविक खाद का प्रयोग।
(घ) औद्योगिक अपशिष्ट
उत्तर
(ग) जैविक खाद का प्रयोग।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से कौन पर्यावरण प्रदूषण से सम्बन्धित है (2013)
(क) वृक्षारोपण
(ख) जैविक खाद
(ग) धुआँरहित वाहन
(घ) औद्योगिक अपशिष्ट
उत्तर
(घ) औद्योगिक अपशिष्ट

प्रश्न 11.
पर्यावरणीय प्रदूषण के स्रोत होते हैं (2018)
(क) दो।
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) चार से अधिक
उत्तर
(ग) चार

प्रश्न 12.
वायु-प्रदूषण से सबसे पहले प्रभावित होता है
(क) फेफड़ा ।
(ख) पेट ।
(ग) सिर ।
(घ) यकृत
उत्तर
(क) फेफड़ा

प्रश्न 13.
मानवीय जीवन के किन पक्षों पर वायु-प्रदूषण का प्रभाव पड़ता है?
(क) हस्त कौशल पर ।
(ख) प्रतिक्रिया काल पर
(ग) ध्यान की एकाग्रता पर
(घ) इन सभी पक्षों पर
उत्तर
(घ) इन सभी पक्षों पर

प्रश्न 14.
मानवीय व्यवहार पर ध्वनि-प्रदूषण के प्रभाव हैं
(क) ध्यान का विचलित होना
(ख) व्यवहार में अनुक्रियात्मकता घटना
(ग) व्यवहार में चिड़चिड़ापन तथा आक्रामकता बढ़ जाना
(घ) उपर्युक्त सभी प्रभाव
उत्तर
(घ) उपर्युक्त सभी प्रभाव

प्रश्न 15.
वायु-प्रदूषण के कारण उत्पन्न हो सकता है (2014)
(क) अस्थमा
(ख) उच्च रक्त चाप
(ग) पीलिया
(घ) मधुमेह
उत्तर
(ख) उच्च रक्त चाप

प्रश्न 16.
पीलिया रोग किससे उत्पन्न होता है?
(क) जल-प्रदूषण से
(ख) वायु-प्रदूषण से |
(ग) ध्वनि-प्रदूषण से
(घ) मृदा-प्रदूषण से
उत्तर
(क) जल-प्रदूषण से

प्रश्न 17.
जनस्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है
(क) वायु प्रदूषण
(ख) जल-प्रदूषण
(ग) ध्वनि-प्रदूषण
(घ) ये सभी
उत्तर
(घ) ये सभी

प्रश्न 18.
पर्यावरण में दुर्गन्ध अधिक होने की स्थिति में
(क) व्यक्ति का अन्य व्यक्तियों के प्रति आकर्षण घटता है .
(ख) फोटोग्राफी एवं चित्रकारी के प्रति अनुकूल अभिवृत्ति घटती है।
(ग) मनोरंजक कार्यक्रमज़हीं हो पाते।
(घ) उपर्युक्त सभी परिवर्तन देखे जा सकते हैं।
उत्तर
(घ) उपर्युक्त सभी परिवर्तन देखे जा सकते हैं।

प्रश्न 19.
पर्यावरण के तापमान के सामान्य से अधिक हो जाने की स्थिति में
(क) व्यक्ति के व्यवहार में आक्रामकता की वृद्धि होती है।
(ख) व्यवहार सम्बन्धी विकारों में वृद्धि होती है।
(ग) बौद्धिक प्रखरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
(घ) उपर्युक्त सभी प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं।
उत्तर
(घ) उपर्युक्त सभी प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं।

प्रश्न 20.
आल्टमैन के अनुसार भू-भागिता के प्रमुख प्रकार हैं (2017)
(क) दो ।
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) छः
उत्तर
(ख)
तीन

प्रश्न 21.
निम्नलिखित में कौन प्राथमिक भू-भाग नहीं है?
(क) दुकान
(ख) पुस्तकालय
(ग) खेत
(घ) घर
उत्तर
(ख) पुस्तकालय

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