UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 5 Education in Independent India

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Pedagogy
Chapter Chapter 5
Chapter Name Education in Independent India (स्वतन्त्र भारत में शिक्षा)
Number of Questions Solved 50
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter  5 Education in Independent India (स्वतन्त्र भारत में शिक्षा)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
स्वतन्त्रता के बाद भारत में शिक्षा के विकास का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर
स्वतन्त्रता के बाद शिक्षा का विकास
15 अगस्त, 1947 ई० को भारत में एक दीर्घकालीन संघर्ष के बाद स्वतन्त्रता का सूर्योदय हुआ। स्वतन्त्रता के बाद देश में शिक्षा का प्रसार एक महत्त्वपूर्ण समस्या थी। अतः जनसाधारण तथा सरकार दोनों का ध्यान शिक्षा के प्रसार की ओर जाना स्वाभाविक था। शिक्षा की समस्या का निराकरण करने से अनेक अन्य समस्याओं का समाधान हो सकता था। अत: देश में शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर सुधार और विकास के अनेक प्रयत्न आरम्भ हुए, जो आज भी जारी हैं।

1. बेसिक शिक्षा-महात्मा गाँधी द्वारा प्रतिपादित बेसिक शिक्षा या ‘वर्धा शिक्षा योजना को सरकार ने राष्ट्रीय प्राथमिक शिक्षा बनाकर सम्पूर्ण देश में लागू कर दिया। देश में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य और नि:शुल्व कर दिया गया है। इस शिक्षा को स्थानीय सुविधा के अनुसार हस्तंकला पर आधारित करने का प्रयास किया गया।

2. विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग-स्वतन्त्र भारत में उच्च शिक्षा को सुसंगठित और, नियोजित करने के लिए सर्वप्रथम डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग की नियुक्ति की गई। नवम्बर, 1948 ई० में गठित विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग में डॉ० जाकिर हुसैन, डॉ० लक्ष्मण स्वामी मुदालियर, डॉ० मेघनाथ शाह, डॉ० ताराचन्द, डॉ० बहल, डॉ० आर्थर मार्गन, डॉ० जोन टिगर्ट तथा डॉ० जेम्स डफ आदि विख्यात शिक्षाशास्त्री सदस्य बनाए गए।

इस आयोग ने विश्वविद्यालय सम्बन्धी विभिन्न समस्याओं पर व्यापक रूप से विचार किया और बड़े ही महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए। इसने विश्वविद्यालय शिक्षा के उद्देश्य का निर्धारण किया। इसने बताया कि शिक्षण स्तर को किस प्रकार ऊँचा उठाया जा सकता है तथा शिक्षकों की दशा सुधारने का उपाय क्या है?
आदि। इसके साथ-ही-साथ इस आयोग ने माध्यमिक शिक्षा, धार्मिक शिक्षा, ग्रामीण शिक्षा व स्त्री शिक्षा के सम्बंध में भी अपने सुझाव दिए हैं।

3. माध्यमिक शिक्षा आयोग-देश में लोकतन्त्र को मजबूत बनाने और शोषणविहीन समाज की स्थापना के लिए माध्यमिक शिक्षा को एक नवीन दिशा देना आवश्यक एवं अनिवार्य समझा गया। इसी । उद्देश्य की पूर्ति के लिए 23 दिसम्बर, 1952 ई० को ‘माध्यमिक शिक्षा आयोग की नियुक्ति की गई। इस शिक्षा आयोग के अध्यक्ष डॉ० लक्ष्मण स्वामी मुदालियर थे। इसी कारण इसे ‘मुदालियर आयोग भी कहा जाता है। | इस आयोग ने वर्तमान माध्यमिक शिक्षा के दोषों पर दृष्टिपात करते हुए भाषाओं की शिक्षा, शिक्षा में अंग्रेजी का स्थान, प्राच्य भाषाओं को स्थान, पाठ्यक्रम के निर्माण के सिद्धान्त, धार्मिक तथा नैतिक शिक्षा, चरित्र-निर्माण, अनुशासन, शारीरिक शिक्षा, परीक्षा तथा मूल्यांकन, अध्यापकों की प्रगति एवं प्रशिक्षण आदि विषयों पर व्यापक रूप से विचार करके अनेक विस्तृत सुझाव दिए। सरकार इन्हीं सुझावों के आधार पर माध्यमिक शिक्षा को एक नया रूप देने का प्रयास कर रही है।

4. शिक्षा आयोग-भारत में शिक्षा की स्थिति का पूर्ण सर्वेक्षण करने और वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार उसकी रूपरेखा बनाने के सम्बन्ध में सिफारिशें देने के लिए 1964 ई० में डॉ० दौलतसिंह कोठारी की अध्यक्षता में एक आयोग की नियुक्ति की गई। इस आयोग को ‘कोठारी कमीशन के नाम से भी जाना जाता है। इस आयोग ने 1966 ई० में भारतीय शिक्षा के हर पहलू का विस्तृत अध्ययन कर एक व्यापक रिपोर्ट तैयार की।
इस आयोग ने शिक्षा और राष्ट्रीय लक्ष्य, विद्यालय शिक्षा की संरचना, पूर्व प्राथमिक शिक्षा, प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा, उच्च शिक्षा तथा कृषि शिक्षा के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। आयोग ने शिक्षक की स्थिति, अध्यापक शिक्षा, शैक्षिक अवसरों की समानता, विद्यालय प्रशासन और निरीक्षण, शिक्षण विधियाँ, मार्ग प्रदर्शन एवं मूल्यांकन, त्रिभाषा फॉर्मूला, हिन्दी का स्थान, विभिन्न भारतीय भाषाओं का स्थान, आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास, अंग्रेजी का स्थान आदि विषयों पर विचार करके अनेक सिफारिशें दी हैं। इस आयोग की बहुत-सी सिफारिशों को सरकार ने स्वीकार करके कार्यान्वित भी कर दिया है।

5. पंचवर्षीय योजनाएँ और शिक्षा-भारत सरकार ने सभी पंचवर्षीय योजनाओं में शिक्षा की ओर विशेष ध्यान देकर इसकी प्रगति को आगे बढ़ाया है। नियोजित एवं क्रमबद्ध रूप से विकास होने के कारण देश में शिक्षा का प्रसार निरन्तर प्रगति पर है। विगत वर्षों में सरकार ने नवीन शिक्षा नीति लागू की है। इस नीति के अन्तर्गत देश में प्रचलित शिक्षा के गुणात्मक सुधार पर विशेष बल दिया जा रहा है। नवोदय विद्यालय व खुले विश्वविद्यालय आदि की स्थापना नई शिक्षा-नीति के प्रतीक हैं। वर्तमान परिस्थितियों के अनुकूल शिक्षा के उद्देश्यों में परिवर्तन किया जा रहा है। पाठ्यक्रमों को वैज्ञानिक रूप दिया जा रहा है। परीक्षाओं में आमूल-चूल परिवर्तन किया गया है। शोध और अनुसन्धान को विशेष प्रोत्साहन दिया जा रहा है। उच्च शिक्षा, स्त्री-शिक्षा, कृषि अनुसन्धान, वैज्ञानिक शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, अध्यापकों को प्रशिक्षण आदि के क्षेत्र में नूतन प्रयोग किए जा रहे हैं। शैक्षिक प्रशासन को भी पुनर्गठित और गतिशील किया जा रहा है।

प्रश्न 2
वर्तमान भारतीय शिक्षा की नवीन प्रवृत्तियों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उतर
भारतीय शिक्षा की नवीन प्रवृत्तियाँ
भारत में स्वाधीनता के उपरान्त शिक्षा के क्षेत्र में विशेष ध्यान दिया जा रहा है। भारतीय शिक्षा का पुनर्गठन तथा नवीनीकरण करने के लिए अनेक समितियों तथा आयोगों की नियुक्ति की गई और इनकी अनेक सिफारिशों को क्रियान्वित किया गया। इन सबके परिणामस्वरूप शिक्षा के क्षेत्र में अनेक नवीन प्रवृत्तियों का उदय हुआ है। इनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है।

1. राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली-देश में विगत वर्षों से राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली को विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है। भारत सरकार द्वारा 1964 ई० के प्रस्ताव के अनुसार, “आयोग राष्ट्रीय शिक्षा-प्रणाली एवं प्रत्येक स्तर व क्षेत्र में शिक्षा प्रगति के सामान्य सिद्धान्त तथा नीति के बारे में सरकार को परामर्श देगा।”

2. अखिल भारतीय शैक्षिक सेवा-सम्पूर्ण देश में शिक्षा के क्षेत्र में एकरूपता लाने से ही शिक्षा की वास्तविक प्रगति सम्भव है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए सरकार द्वारा अखिल भारतीय शैक्षिक सेवा को आरम्भ करने का निश्चय किया गया है। अधिकांश राज्य सरकारें भी इस प्रकार की शैक्षिक सेवा के पक्ष में है।

3. लोकतन्त्र एवं समाजवाद के लिए शिक्षा-शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन तथा समाज सेवा का महत्त्वपूर्ण माध्यम बनाने के लिए इसे लोकतान्त्रिक तथा समाजवादी आदर्शों की दिशा में उन्मुख करना है। इसलिए वर्तमान समय में भारत में लोकतन्त्र और समाजवाद की ओर अग्रसर होने वाली शिक्षा की आवश्यकता है।

4. विज्ञान की शिक्षा पर बल-आज का युग विज्ञान का युग है, क्योंकि विज्ञान के क्षेत्र में निरन्तर प्रगति होती जा रही है। प्रत्येक विकासशील देश के लिए वैज्ञानिकों तथा प्राविधिक व्यक्तियों की
आवश्यकता होती है। विज्ञान की शिक्षा का प्रसार करके वैज्ञानिक रूप से देश की प्रगति सम्भव है। आवश्यकता को पूरा करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग तथा शिक्षा मन्त्रालय ने विज्ञान की शिक्षा/प्रचार की अनेक योजनाएँ तैयार की हैं, जिनके अनुसार विज्ञान व प्रौद्योगिकी शिक्षा का काफी विकास हो रहा है।

5. भारतीय मूल्यों की रक्षा-कोई भी शिक्षा प्रणाली तब तक सफल नहीं हो सकती, जब तक कि यह देश के आध्यात्मिक मूल्यों एवं सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित करने में समर्थ न हों। वर्तमान समय में इस बात पर बल दिया जाता है कि देश के नवयुवकों को ऐसी शिक्षा देनी चाहिए जिससे वह अपने सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों से अवगल हो सकें और भारतीय मूल्यों की रक्षा हो सके।

6. भावात्मक एवं राष्ट्रीय एकीकरण के लिए पाठ्यक्रम का । नवीनीकरण- देश की समृद्धि, सुरक्षा एवं प्रगति के लिए | प्रवृत्तियाँ भावात्मक एवं राष्ट्रीय एकीकरण का होना भी अत्यन्त आवश्यक है। शिक्षा द्वारा ही इस आवश्यकता की पूर्ति सम्भव है। अतः पाठ्यक्रम में ऐसे विषयों को सम्मिलित किया जा रहा है, जो भावात्मक एवं राष्ट्रीय एकीकरण में योग दे सकें।

7. सैनिक शिक्षा पर बल-वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय घटना-चक्र और पड़ोसी देशों की नीतियों को ध्यान में रखते हुए देश की विज्ञान की शिक्षा पर बल शिक्षा-प्रणाली को सुरक्षा की दिशा में विकसित करने की नितान्त
भारतीय मूल्यों की रक्षा आवश्यकता है। इसीलिए शिक्षा संस्थाओं में बालकों के शारीरिक भावात्मक एवं राष्ट्रीय एकीकरण स्वास्थ्य को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए पाठ्यक्रम का के लिए पाठ्यक्रम में सैनिक शिक्षा पर विशेष बल दिया जा रहा है। नवीनीकरण एन० सी०सी० का कार्यक्रम इसका ज्वलन्त उदाहरण है। सैनिक शिक्षा पर बल 8. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग-राधाकृष्णन आयोग

8. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग -राधाकृष्ण आयेग(1948-49) की सिफारिश के परिणामस्वरूप विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (U.G.C.) की स्थापना की गई है। यह शिक्षा विशेषज्ञों की एक स्थायी संस्था है, जिसे प्रशासकीय और वित्तीय शक्तियाँ प्राप्त हैं। इस संस्था के माध्यम से केन्द्र सरकार उच्च शिक्षा का प्रशासन संचालित करती है और उच्च शिक्षा हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करती है।

9. पाठ्य-पुस्तकों का मानकीकरण-सरकार इस ओर भी प्रयास कर रही है कि विद्यार्थियों को सस्ती और उच्च स्तर की पाठ्य-पुस्तकें प्राप्त हो सकें, जिससे शिक्षा का अधिकतम प्रसार एवं प्रगति हो सके। पाठ्यक्रम के लिए अच्छी पुस्तकें तैयार करवाने का कार्य माध्यमिक शिक्षा परिषद् को सौंप दिया गया है।

10. अध्यापकों का प्रशिक्षण-किसी भी शिक्षा-प्रणाली की सफलता के लिए अध्यापकों का प्रशिक्षित होना आवश्यक है, जिससे कि वे कार्यक्रम का संचालन सुचारु रूप से कर सकें। इस उद्देश्य की पूर्ति-के लिए सरकार ने अनेक प्रशिक्षण संस्थाओं की स्थापना की है, जहाँ पर प्रशिक्षण प्रणाली से सम्बन्धित शोध कार्य भी किए जाते हैं।

11. नवीन विश्वविद्यालयों की स्थापना-पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान देशभर में अनेक नए विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई है। इनकी स्थापना का मुख्य लक्ष्य विभिन्न क्षेत्रों में उच्च शिक्षा की सुविधाओं को सुलभ कराना है। उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल, रुहेलखण्ड, बुन्देलखण्ड, अवध आदि नए विश्वविद्यालयों की स्थापना अभी हाल के वर्षों में ही की गई है।

12. राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान-भारत में ऐसे कई राष्ट्रीय संस्थान हैं, जिन्हें राष्ट्रीय नेताओं द्वारा कुछ विशेष लक्ष्यों को प्राप्त करने की दृष्टि से स्थापित किया गया था। इनमें काशी विद्यापीठ, वनस्थली, विश्व भारती, राष्ट्रीय खुला विद्यालय (NOS) व इन्दिरा गाँधी विश्वविद्यालय विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

प्रश्न 3
‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986′ की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 की प्रमुख विशेषताएँ ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986’ की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. राष्ट्रीय शिक्षा नीति के उद्देश्य-समता एवं सामाजिक न्याय के उद्देश्यों को प्राप्त करना, ग्रामीण क्षेत्रों के प्रतिभावान छात्रों को उच्चकोटि की शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना, सम्पूर्ण देश में एक सामान्य माध्यम द्वारा शिक्षा की सुविधाएँ प्राप्त कराना एवं राष्ट्रीय एकता का विकास करना राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रमुख उद्देश्य हैं।

2. प्रौढ़ शिक्षा में सुधार-राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अन्तर्गत मानव संसाधन विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु प्रौढ़ शिक्षा के विस्तार एवं उसके स्तर में अपेक्षित सुधार की आवश्यकता को भी स्वीकार किया गया है, इसके अन्तर्गत अनौपचारिक शिक्षा के स्तर में प्रौढ़ शिक्षा में सुधार सुधार पर बल दिया गया है।

3. प्राथमिक स्तर की शिक्षा, सार्वभौमीकरण- सरकार द्वारा प्राथमिक स्तर पर देश के समस्त छात्रों को अनिवार्य एवं नि:शुल्क शिक्षा देने का निश्चय किया गया है। इसके अन्तर्गत पड़ोसशाला योजना को भी प्राथमिक स्तर पर महत्त्व दिया गया है।

4. माध्यमिक शिक्षा सम्बन्धी नीति-इस नीति के अन्तर्गत शिक्षा का माध्यम माध्यमिक स्तर पर शिक्षा के व्यावसायीकरण पर बल दिया गया है।

5. उच्च शिक्षा-उच्च शिक्षा की अवधि तीन वर्ष निश्चित की गई है एवं इस स्तर पर पाठ्यक्रम को अन्तर-विषयक पद्धति पर आधारित करने का लक्ष्य रखा गया है।

6. पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षा-राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अन्तर्गत शिक्षा के समस्त स्तरों पर पिछड़े वर्गों के बालकों की नि:शुल्क शिक्षा एवं छात्रवृत्ति प्रदान करने का संकल्प लिया गया है, इसके अतिरिक्त जनजातीय क्षेत्रों में शिक्षण सुविधाओं के विस्तार की आवश्यकता को महत्त्व दिया गया है।

7. शिक्षा का माध्यम-राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अन्तर्गत भाषा के त्रिस्तरीय समीकरण को स्वीकृति दी गई है। प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम मातृभाषा को स्वीकार किया गया है। प्राय: सभी स्तरों पर राष्ट्रभाषा हिन्दी के अध्ययन को भी महत्त्व दिया जाएगा।

8. खुला (मुक्त) विश्वविद्यालय-इस विश्वविद्यालय द्वारा। देश का कोई भी नागरिक किसी भी आयु में, किसी भी स्तर पर पत्राचार के माध्यम से शिक्षा ग्रहण कर सर्कता है।
9. साधन-साधनों की प्राप्ति हेतु फीस, अनुदान, दान, उद्योग-कर इत्यादि माध्यमों से धन एकत्र किया जाएगा।

10. तकनीकी शिक्षा का विकास-देश की आर्थिक उन्नति को अधिकाधिक सम्भव बनाने हेतु तकनीकी शिक्षा के प्रसार की महत्ता पर भी विशेष बल दिया गया है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के क्रम में अनेक नई तकनीकी संस्थाओं की स्थापना की जाएगी।

11. शिक्षकों की स्थिति में सुधार-राष्ट्रीय नीति में शिक्षकों की स्थिति में सुधार के विषय पर भी विचार किया गया है, इसके अन्तर्गत शिक्षकों को अपनी व्यावसायिक कुशलता के विकास एवं शोध-कार्य हेतु अधिक अवसर सुलभ हो सकेंगे। अध्यापकों के वेतनमान में वृद्धि का भी निश्चय किया गया है।

12. मूल्यांकन प्रणाली-शिक्षा नीति में सततु एवं व्यापक मूल्यांकन प्रणाली की महत्ता को स्वीकार किया गया है, इसके अन्तर्गत आन्तरिक मूल्यांकन शिक्षण पद्धति का अनिवार्य अंग होगा, जिसमें अध्यापक्र की भूमिका को विशेष महत्त्व प्राप्त होगा।

13. ग्रामीण विश्वविद्यालय-नवीन शिक्षा नीति के अन्तर्गत गाँधी जी के विचारों को साकार करते हुए ग्रामीण विश्वविद्यालयों की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है, इसके साथ ही पुराने विश्वविद्यालयों के पुनर्गठनपर भी बल दिया गया।

14. शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया का अभिनवन-राष्ट्रीय शिक्षा नीति बालकेन्द्रित शिक्षा व्यवस्था के विचार को प्रस्तुत करती है। यह इस नीति की सर्वप्रमुख विशेषता है।
बालकेन्द्रित शिक्षा का अभिप्राय एक ऐसी शिक्षा प्रणाली से है, जिसमें शिक्षा का अन्तिम लक्ष्य विद्यार्थी के चहुंमुखी विकास को सुनिश्चित करना है। इसमें शिक्षण की विधि, बालक के शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखकर सुनिश्चित की जाएगी।

15. शिक्षा की व्यवस्था शिक्षा को पुनर्गठित करने हेतु आमूल-चूल परिवर्तन किया जाएगा। इसके अन्तर्गत दीर्घकालीन योजना, विकेन्द्रीकरण, शिक्षण संस्थाओं की स्वायत्तता और नारी शिक्षा पर विशेष बल दिया जाएगा। भारतीय शिक्षा सेवा का गठन राष्ट्रीय स्तर पर किया जाएगा तथा राज्य स्तर पर शिक्षा सलाहकार परिषदों का गठन होगा। जिला स्तर पर जिला बोर्ड सेकण्डरी शिक्षा तक शिक्षा का गठन करेंगे।

16. नवीनीकरण अनुसन्धान और विकास-अनुसन्धान एवं विकास पर विशेष बल दिया जाएगा। शिक्षा के समस्त स्तरों पर कुशलता एवं प्रभावशीलता के विकास हेतु प्रयास करने होंगे, पाठ्यक्रमों का निर्माण देशकाल और परिस्थितियों के अनुसार करना होगा। इस दृष्टि से विभिन्न स्वायत्त संस्थाओं का निर्माण किया जाएगा।

17. देश की भावी शिक्षा का स्वरूप-देश की भावी शिक्षा के स्वरूप को निर्धारित करने पर विचार किया गया। साथ ही, 21वीं शताब्दी प्रारम्भ होने पर जीवन की विभिन्न भूमिका के निर्वाह करने में भारतीय शिक्षा के विश्व में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त कर लेने की सम्भावना व्यक्त की गई।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
‘राधाकृष्णन आयोग द्वारा शिक्षा के माध्यम सम्बन्धी दी गई सिफारिशों का उल्लेख
कीजिए।
उत्तर
शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा के माध्यम का विशेष महत्त्व होता है। ‘राधाकृष्णन् आयोग ने तत्कालीन भारतीय परिस्थितियों का विस्तृत अध्ययन करने के उपरान्त शिक्षा के माध्यम के विषय में निम्नलिखित सिफारिशें प्रस्तुत की थीं सर्वप्रथम सुझाव दिया गया कि उच्च शिक्षा के लिए प्रादेशिक भाषाओं को माध्यम बनाना चाहिए। इसके साथ-ही-साथ संघीय भाषा अर्थात् हिन्दी को शिक्षा के माध्यम के रूप में स्वीकार करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए। इसके साथ-ही-साथ यह भी निर्देश दिया गया कि हिन्दी भाषा के लेखन के लिए केवल देवनागरी लिपि को ही अपनाना चाहिए। यह भी निर्देश दिया गया कि संघीय भाषा के साथ-ही-साथ प्रादेशिक भाषाओं के समुचित विकास के लिए यथासम्भव प्रयास किए जाने चाहिए। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि भले ही आयोग ने शिक्षा के माध्यम के रूप में हिन्दी एवं प्रादेशिक भाषाओं को अपनाने का सुझाव दिया परन्तु आयोग ने हाईस्कूल से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक अंग्रेजी भाषा के अध्ययन को भी आवश्यक माना था। वास्तव में नवीन ज्ञान को अर्जित करने के लिए अंग्रेजी भाषा के ज्ञान को अनिवार्य माना गया था।

प्रश्न 2
आचार्य नरेन्द्र देव समिति का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर
उत्तर प्रदेश सरकार ने सन् 1952 ई० में प्रदेश में शैक्षिक प्रगति के मूल्यांकन तथा सुधार के लिए उपयोगी सुझाव प्रस्तुत करने के लिए अलग से एक विशेष समिति का गठन किया। इस समिति को ‘माध्यमिक शिक्षा पुनर्गठन समिति के नाम से गठित किया गया था तथा आचार्य नरेन्द्र देव को इस समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। अध्यक्ष के नाम के आधार पर इस समिति को आचार्य नरेन्द्र • देव समिति के नाम से भी जाना जाता है।

आचार्य नरेन्द्र देव समिति को गठित करने का मुख्य उद्देश्य यह ज्ञात करना था कि उत्तर प्रदेश में उच्चतर माध्यमिक शिक्षा की स्थिति क्या है तथा उसकी सफलता की क्या स्थिति है। प्रदेश के उन छात्रों को क्या सफलता प्राप्त हुई है, जिन छात्रों ने व्यावहारिक तथा व्यावसायिक विषयों की शिक्षा प्राप्त की है। समिति को यह भी ज्ञात करना था कि सामान्य-शिक्षा तथा प्राविधिक शिक्षा में समन्वय स्थापित करने के लिए क्या उपाय किये जाएँ। समिति को यह भी ज्ञात करना था कि प्रदेश में साहित्यिक, वैज्ञानिक, व्यावसायिक, रचनात्मक तथा कलात्मक वर्गों की शिक्षा की

वास्तविक स्थिति क्या है तथा इन वर्गों की शिक्षा की क्या उपयोगिता है। इस व्यवस्था से छात्रों को अपनी अभिरुचि तथा अभिवृत्ति के अनुसार विषयों के चुनाव में क्या सुविधा प्रदान की है। इन मुख्य विषयों के साथ-ही-साथ समिति के अध्ययन-क्षेत्र में विद्यालयों में प्रवेश, पाठ्यक्रम, पाठ्य-पुस्तकों के चुनाव, शिक्षण संस्थाओं में अवकाश के निर्धारण तथा प्रदेश में स्थापित की गयी व्यक्तिगत संस्थाओं के दोषों के निवारण के उपायों आदि को सम्मिलित किया गया था। इस प्रकार स्पष्ट है कि आचार्य नरेन्द्र देव समिति का अध्ययन-क्षेत्र पर्याप्त विस्तृत था। आचार्य नरेन्द्र देव समिति ने उत्तर-प्रदेश की शैक्षिक स्थिति का विस्तृत अध्ययन किया तथा रिपोर्ट प्रस्तुत की। प्रदेश की सरकार ने राष्ट्रीय शैक्षिक-नीतियों के परिप्रेक्ष्य में कुछ सुधारों एवं परिवर्तनों को लागू करने के प्रयास किये।

प्रश्न 3
स्त्री-शिक्षा के विषय में कोठारी आयोग के सुझावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
कोठारी आयोग ने स्त्री-शिक्षा को विशेष महत्त्वपूर्ण स्वीकार किया तथा इसके प्रायः सभी पक्षों के विषय में अपने विचार एवं सुझाव प्रस्तुत किए। सर्वप्रथम आयोग ने स्पष्ट किया कि प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर पर बालिका शिक्षा के अधिक-से-अधिक विस्तार के लिए सभी प्रयास किए जाने चाहिए। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आयोग ने सुझाव दिया कि बालिकाओं के लिए अलग से विद्यालय एवं छात्रावास स्थापित किए जाने चाहिए तथा बालिकाओं के लिए अलग से अतिरिक्त छात्रवृत्तियों की भी व्यवस्था होनी चाहिए। आयोग ने बालिकाओं की उच्च स्तर की शिक्षा के सम्बन्ध में भी अपने सुझाव प्रस्तुत किए। इस स्तर पर भी छात्राओं को कुछ अतिरिक्त सुविधाएँ प्रदान करने का सुझाव प्रस्तुत किया गया। आयोग ने सुझाव दिया कि जिन क्षेत्रों में पर्याप्त संख्या में छात्राएँ शिक्षा प्राप्त करने की इच्छुक हों, उन क्षेत्रों में पूर्व-स्नातक स्तर पर अलग से महिला कॉलेज स्थापित किए जाने चाहिए, परन्तु स्नातकोत्तर स्तर पर अलग से महिला विद्यालयों की आवश्यकता नहीं।

जहाँ तक शिक्षा के पाठ्यक्रम का प्रश्न है, ‘शिक्षा-आयोग ने सैद्धान्तिक रूप से यह स्वीकार किया कि बालिकाओं के लिए अलग से पाठ्यक्रम के निर्धारण की कोई आवश्यकता नहीं, परन्तु आयोग ने इस विषय में कुछ व्यावहारिक सुझाव प्रस्तुत किए हैं। आयोग ने सुझाव दिया कि कक्षा दस तक बालक-बालिकाओं के लिए पाठ्यक्रम में किसी प्रकार का अन्तर नहीं होना चाहिए। उच्चतर माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं के लिए गृहविज्ञान की शिक्षा की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। परन्तु बालिकाओं के लिए,गृहविज्ञान अनिवार्य विषय निर्धारित नहीं किया जाना चाहिए। इसी प्रकार इस स्तर पर बालिकाओं के लिए कलाओं एवं संगीत विषयों की शिक्षा की भी समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। वैसे आयोग ने यह भी सुझाव दिया कि बालिकाओं को विज्ञान तथा गणित के अध्ययन के लिए भी प्रेरित किया जाना चाहिए। यह बालिकाओं में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 4
नवोदय विद्यालय का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर
देश की बागडोर सम्भालने के बाद तत्कालीन युवा प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने शिक्षा के ढाँचे में मौलिक बदलाव लाने के लिए नयी शिक्षा नीति का प्रारूप तैयार करने के कार्य को सर्वाधिक महत्त्व दिया। शिक्षाविदों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद प्रारूप को अन्तिम रूप दिया गया और फिर संसद के द्वारा उसको स्वीकार किया गया। इसे नयी शिक्षा नीति या राष्ट्रीय शिक्षा नीति-1986 कहा गया। राजीव गांधी ने इस शिक्षा नीति के लक्ष्यों को स्पष्ट करते हुए कहा था-“जन-साधारण का बौद्धिक स्तर ऊँचा उठाना और उनमें आत्मविश्वास की भावना बढ़ाना नयी शिक्षा नीति का प्रमुख ध्येय है”:”। इसका लक्ष्य केवल शिक्षा सुविधाओं का विस्तार करना ही नहीं है, बल्कि शिक्षा के स्तर में सुधार करना भी हैं।

जब तक कमजोर और पिछड़े हुए लोगों को शिक्षा की सुविधायें नहीं मिलेंगी तब तक देश सही अर्थों में प्रगति की ओर अग्रसर नहीं हो सकेगा। अशिक्षा और अज्ञान के कारण ही आज देश गरीबी, बेरोजगारी और पिछड़ेपन की समस्याओं से जूझ रहा है। हमें सर्वश्रेष्ठ बच्चों, सबसे अधिक प्रतिभावान बच्चों और उन क्षेत्रों का पता लगाना है, जिनमें उनका सबसे अच्छा विकास हो सकता है। हमें उनमें उनके विशेष गुणों का विकास करने का अवसर प्रदान करना है। नयी नीति है शिक्षा और ज्ञान को एक-दूसरे से जोड़ना, चाहे वह शहर हो या गाँव, चाहे जनजाति क्षेत्र हो, चाहे वन क्षेत्र हो। नयी शिक्षा नीति समतावादी होनी चाहिए ।

बुद्धिमान बच्चों को, चाहे वे कमजोर वर्ग, सर्वाधिक पिछड़े तबके अथवा समाज के किसी भी वर्ग के क्यों न हों, अच्छी-से-अच्छी शिक्षा दिये जाने का प्रयास होना चाहिए। नई शिक्षा नीति के इन उद्देश्यों और लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए नवोदय विद्यालयों की संकल्पना की गयी और उनको व्यावहारिक रूप प्रदान किया गया। जैसा कि नाम से स्पष्ट होता है–‘नवोदये। विद्यालय’ का अर्थ है-वे विद्यालय, जिनका नया उदय’ (नव + उदय) हुआ हो। ये वे विद्यालय हैं। जिनकी स्थापना कमजोर, निर्बल व पिछड़े वर्ग के प्रतिभाशाली बालकों के लिए हुई है और इनका लक्ष्य उन सुप्त और अज्ञात प्रतिभाओं को खोजकर विकसित करना है, जो अभावों और गरीबी के कारण विलुप्त हो जाती हैं। ये विद्यालय उन क्षेत्रों में स्थापित किये जाते हैं, जो आर्थिक रूप से पिछड़े होने के साथ-साथ शैक्षिक रूप से भी पिछड़े हुए हैं और जहाँ अभी तक शिक्षा के सूरज की रोशनी नहीं पहुँची है।

प्रश्न 5
राष्ट्रीय शिक्षा-नीति, 1986 के संशोधित कार्यान्वयन कार्यक्रम-1992 का संक्षिप्त विवरपा प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 को एक विस्तृत शिक्षा नीति के रूप में देखा जाता है। इस शिक्षा-नीति के अन्तर्गत भारतीय शिक्षा के प्राय: सभी पक्षों के विषय में महत्त्वपूर्ण निर्णय किए गये थे। तत्कालीन निर्णयों के साथ-ही-साथ यह भी स्पष्ट रूप से निर्धारित कर दिया गया था कि निर्धारित शिक्षा-नीति की हर पाँच वर्ष में समुचित समीक्षा की जायेगी। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने सन् 1992 ई० में एक ‘पुनर्निरीक्षण समिति गठित की थी। इस समिति के अध्यक्ष थे–आन्ध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमन्त्री श्री जनार्दन रेड्डी। इस समिति ने तत्कालीन परिस्थितियों में राष्ट्रीय शिक्षा-नीति, 1986 की विस्तृत समीक्षा की तथा 7 मई, 1992 को अपनी तैयार की गई रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी। इस रिपोर्ट में समिति द्वारा कुछ नये सुझाव प्रस्तुत किए गये। एक संशोधित नीति सम्बन्धी कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। इसी कार्यक्रम को संशोधित कार्यान्वयन कार्यक्रम-1922 के रूप में स्वीकार किया गया है। इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से 23 बिन्दुओं का उल्लेख है जो कि इस प्रकार है-

  1. समाज में नारी समानता हेतु शिक्षा,
  2. समाज की अनुसूचित जाति/जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्गों की समुचित शिक्षा
  3. समाज के अल्पसंख्यकों की शिक्षा,
  4. विकलांग व्यक्तियों के लिए शिक्षा,
  5. 5. प्रौढ़ शिक्षा तथा अनवरत शिक्षा,
  6. पूर्व-बाल्यकाल की शिक्षा,
  7. प्रारम्भिक शिक्षा,
  8. माध्यमिक शिक्षा,
  9. नवोदय विद्यालय,
  10. व्यावसायिक शिक्षा,
  11. उच्च शिक्षा,
  12. मुक्त शिक्षा,
  13. उपाधि की रोजगार से विलगता तथा मानवशक्ति नियोजन,
  14. ग्रामीण क्षेत्रीय विश्वविद्यालय तथा प्रशासन,
  15. अनुसन्धान तथा विकास,
  16. तकनीकी तथा प्रबन्ध शिक्षा,
  17. शिक्षा को सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य,
  18. भाषाओं का विकास,
  19. जनसंचार एवं शैक्षिक तकनीकी,
  20. खेल, शारीरिक शिक्षा तथा युवा उत्थान,
  21. मूल्यांकन प्रक्रिया तथा परीक्षा सम्बन्धी सुधार,
  22. अध्यापक तथा उनका प्रशिक्षण, तथा
  23. शिक्षा का प्रबन्ध।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
‘माध्यमिक शिक्षा आयोग के सदस्यों के नाम लिखिए तथा इस आयोग की जाँच के . मुख्य विषय का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर
‘माध्यमिक शिक्षा आयोग’ को ‘मुदालियर आयोग’ के नाम से भी जाना जाता है। इसका कारण यह है कि इसके अध्यक्ष डॉ० ए०:लक्ष्मण स्वामी मुदालियर थे। इस आयोग में अध्यक्ष के अतिरिक्त आठ अन्य सदस्य थे, जिनके नाम थे—

  1. डॉ० कालुलाल श्रीमाली,
  2. श्रीमती हंसा मेहता,
  3. श्री जॉन क्रिस्टी,
  4. डॉ० केनथ रस्ट विलियम्स,
  5. श्री के० जी० सैयदैन,
  6. श्री जे० एम० तारापुर वाला,
  7. श्री एम० टी० व्यास तथा
  8. डॉ० ए० एन० बसु माध्यमिक शिक्षा आयोग’ का सम्बन्ध मुख्य रूप से माध्यमिक शिक्षा से था। आयोग की जाँच के विषय को स्वयं आयोग ने अपनी रिपोर्ट में इन शब्दों में वर्णित किया है, “भारत की तत्कालीन माध्यमिक शिक्षा के समस्त पक्षों की जाँच करना एवं उनके विषय में रिपोर्ट देना और उनके पुनर्गठन एवं सुधार के सम्बन्ध में सुझाव प्रस्तुत करना।

प्रश्न 2
नई शिक्षा-नीति-1986 के मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
देश में घोषित की गई नई शिक्षा-नीति-1986 के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. समाज एवं सामाजिक न्याय के उद्देश्यों को पूर्ण करना,
  2. ग्रामीण क्षेत्र के प्रतिभावान छात्रों को उच्च कोटि की शिक्षा के अवसर सुलभ करना,
  3. राष्ट्रीय एकता का विकास करना,
  4. शिक्षक प्रशिक्षण सम्बन्धी सुविधाओं का प्रसार करना,
  5. सम्पूर्ण देश में एक सामान्य माध्यम के द्वारा शिक्षा की सुविधाएँ । प्रदान करना,
  6. देश के पिछड़े वर्ग से सम्बद्ध छात्रों को शिक्षा के पर्याप्त अवसरों से लाभान्वित कराना तथा
  7. सामान्य आधारभूतं पाठ्यक्रमों की व्यवस्था करना आदि।

प्रश्न 3.
वर्तमान भारत में माध्यमिक शिक्षा के क्या उद्देश्य होने चाहिए?
उत्तर
वर्तमान भारत की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए ‘माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार, ‘माध्यमिक शिक्षा के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार होने चाहिए-

  1. छात्रों में प्रजातान्त्रिक गुणों एवं मूल्यों का समुचित विकास करना,
  2. छात्रों के व्यक्तित्व का समुचित विकास करना,
  3. छात्र-छात्राओं में व्यावसायिक कुशलता को समुचित विकास करना जिससे कि देश में बेरोजगारी की समस्या को नियन्त्रित किया जा सके, तथा
  4. छात्र-छात्राओं में नेतृत्व सम्बन्धी गुणों को विकसित करना।

प्रश्न 4
10 + 2 + 3 की शिक्षात्मक संरचना को स्पष्टतया समझाइए।
उत्तर
शिक्षा की राष्ट्रीय प्रणाली में एकसमान शिक्षा संरचना समाहित है। 10 +2+3 संरचना को राष्ट्र के सभी भागों में स्वीकार किया जा चुका है। प्रथम दस वर्षीय शिक्षा को प्रायः माध्यमिक शिक्षा में विभाजित किया गया है जिसके अन्तर्गत 5 वर्ष की प्राथमिक शिक्षा तथा 3 वर्ष की उच्च प्राथमिक शिक्षा आती है तथा इस शिक्षा-प्रणाली में दो वर्ष की हाईस्कूल शिक्षा होगी। अतः 10 वर्षीय शिक्षा की ऐसी आधारभूत पाठ्यचर्या तैयार होनी चाहिए जिसके द्वारा विद्यार्थियों में राष्ट्रीय मूल्यों और वैज्ञानिक दृष्टिकण का विकास हो सके। इस शिक्षा-प्रणाली में उच्चतर माध्यमिक हेतु 2 वर्ष तथा स्नातक हेतु 3 वर्ष की शिक्षा व्यवस्था की गई है।

प्रश्न 5
नवोदय विद्यालयों की स्थापना के मुख्य उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
देश में योग्य एवं प्रतिभाशाली बालकों को समानता के आधार पर शिक्षा प्रदान करना ही नवोदय विद्यालयों का प्रमुख उद्देश्य है।
नवोदय विद्यालयों के निम्नलिखित प्रमुख उद्देश्य निर्धारित किये गये हैं-

  1. शिक्षा की व्यवस्था समानता के आधार पर करना।
  2. माध्यमिक स्तर पर शिक्षा की गुणात्मकता का विकास करना।
  3. प्रतिभाशाली बालकों को अपनी योग्यता विकसित करने के लिए अवसर सुलभ कराना।
  4. पर्यावरण के प्रति जाग्रति उत्पन्न करना।
  5. बालकों में वैज्ञानिक क्षमता का विकास करना।
  6. संवैधानिक न्याय के अनुसार बालकों को विकास के समान अवसर प्रदान करना।
  7. बालकों में साहसिक सहभागिता का विकास करना।
  8. सामाजिक न्याय और प्रगति करना।
  9. सांस्कृतिक विरासत तथा सामाजिक मूल्यों का विकास करना।

निस्चित उतरीय प्रश्न

प्रश्न 1
माध्यमिक शिक्षा आयौरा द्वारा माध्यमिक स्तर की शिक्षा में सुधार हेतु दिए गए दो सुझावों को बताइए।
उत्तर
माध्यमिक शिक्षा आयोग ने माध्यमिक स्तर की शिक्षा में सुधार के लिए

  1. शिक्षा के पाठ्यक्रम में सुधार का सुझाव दिया तथा
  2. शिक्षण के लिए सक्रिय एवं स्फूर्तिपूर्ण शिक्षण-विधियों को अपनाने का सुझाव दिया।

प्रश्न 2
भारतीय संविधान में किस आयु तक की शिक्षा को निःशुल्क और अनिवार्य घोषित किया है ?
उत्तर
भारतीय संविधान में 14 वर्ष की आयु तक की शिक्षा को नि:शुल्क और अनिवार्य घोषित किया

प्रश्न 3
बालक-बालिकाओं की किस आयु तक हमारे देश में शिक्षा को मौलिक अधिकार घोषित किया है ?
उत्तर
14 वर्ष की आयु के बालक-बालिकाओं के लिए शिक्षा को मौलिक अधिकार घोषित किया गया है।

प्रश्न 4
स्वतन्त्रता-प्राप्ति के उपरान्त भारत सरकार द्वारा सर्वप्रथम शिक्षा सम्बन्धी किस आयोग का गठन किया गया था?
उत्तर
स्वतन्त्रता-प्राप्ति के उपरान्त भारत सरकार ने सर्वप्रथम विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग’ को गठन किया था।

प्रश्न 5
विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के अध्यक्ष कौन थे तथा इस आयोग को अन्य किस नाम से भी जाना जाता है?
या
विश्वविद्यालय आयोग (1948-49) के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर
‘विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के अध्यक्ष डॉ० राधाकृष्णन् थे। उन्हीं के नाम पर इस आयोग को ‘राधाकृष्णन् आयोग’ को नाम से भी जाना जाता है।

प्रश्न 6
माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन (नियुक्ति) कब हुआ था तथा इसके अध्यक्ष कौन थे?
या
वर्ष 1952-53 में माध्यमिक शिक्षा आयोग के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर
‘माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन सन् 1952 में हुआ था तथा इसके अध्यक्ष थे-डॉ० लक्ष्मण स्वामी मुदालियर।

प्रश्न 7
माध्यमिक शिक्षा आयोग को अन्य किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर
‘माध्यमिक शिक्षा आयोग’ को ‘मुदालियर आयोग’ के नाम से भी जाना जाता है।

प्रश्न 8
सन 1964 में शिक्षा के क्षेत्र में किस आयोग का गठन किया गया था, उस आयोग के अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर
सन् 1964 में शिक्षा आयोग नामक एक कमीशन का गठन किया गया था। इस आयोग के अध्यक्ष थे प्रो० डी०एस० कोठारी।

प्रश्न 9
शिक्षा आयोग को अन्य किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर
शिक्षा आयोग’ को उसके अध्यक्ष के नाम पर ‘कोठारी आयोग’ के नाम से भी जाना जाता

प्रश्न 10
‘राधाकृष्णन आयोग की सिफारिश पर विश्वविद्यालय शिक्षा से सम्बन्धित किस महत्त्वपूर्ण संस्थान की स्थापना की गई थी?
उत्तर
‘राधाकृष्णन् आयोग की सिफारिश पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ नामक महत्त्वपूर्ण संस्थान की स्थापना की गई थी।

प्रश्न 11
शिक्षा के विकास में पंचवर्षीय योजनाओं को क्या योगदान रहा है?
उत्तर
विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत शिक्षा के प्रचार एवं प्रसार के लिए नियोजित ढंग से प्रयास किए गए हैं।

प्रश्न 12
भारत सरकार ने नयी शिक्षा नीति की घोषणा किस सन में की?
उत्तर
भारत सरकार ने ‘नयी शिक्षा नीति’ की घोषणा 1986 ई० में की है।

प्रश्न 13
प्रतिभाशाली छात्रों को उत्तम शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए प्रत्येक जिले में खोले गए। विद्यालयों को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर
इस प्रकार के विद्यालयों को नवोदय विद्यालय के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 14
इन्दिरा गाँधी खुला विश्वविद्यालय कहाँ स्थित है?
उत्तर
‘इन्दिरा गाँधी खुला विश्वविद्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

प्रश्न 15
माध्यमिक शिक्षा आयोग ने शिक्षा के उद्देश्य के रूप में उत्पादन में । वृद्धि/व्यावसायिक कुशलताओं में वृद्धि की अनुशंसा की है।
उत्तर
माध्यमिक शिक्षा आयोग ने शिक्षा के उद्देश्य के रूप में व्यावसायिक कुशलताओं में वृद्धि की अनुशंसा की है।

प्रश्न 16
राष्ट्रीय ओपन स्कूल की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर
राष्ट्रीय ओपेन स्कूल की स्थापना सन् 1989 में की गई थी।

प्रश्न 17
भारत में निरक्षरता दूर करने के लिए किस प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता है?
उत्तर
भारत में निरक्षरता दूर करने के लिए अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा तथा प्रौढ़-शिक्षा की आवश्यकता है।

प्रश्न 18
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में प्रत्येक जिले में कौन-से विद्यालय स्थापित करने की बात | कही गयी है ?
उत्तर
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में प्रत्येक जिले में नवोदय विद्यालय स्थापित करने की बात कही गयी है।

प्रश्न 19
आर०टी०ई० (R.T:E.) का विस्तारित रूप लिखिए
उत्तर
आर०टी०ई० का विस्तारित रूप है-Right to Education. (शिक्षा का अधिकार)

प्रश्न 20
शिक्षा के अधिकार अधिनियम में 6 से 14 वर्ष/7 से 14 वर्ष के बालकों की शिक्षा निःशुल्क एवं अनिवार्य की गयी है।
उत्तर
शिक्षा के अधिकार अधिनियम में 6 से 14 वर्ष के बालकों की शिक्षा निःशुल्क एवं अनिवार्य की गयी है।

प्रश्न 21
वर्तमान समय में राष्ट्रीय शैक्षिक संरचना है
(i) 10 + 2 + 3,
(ii) 8 + 4 + 3.
उत्तर
वर्तमान समय में राष्ट्रीय शैक्षिक संरचना है-
(i) 10 + 2 + 3.

प्रश्न 22
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य

  1. स्वतन्त्रता-प्राप्ति के उपरान्त भारत सरकार द्वारा गठित प्रथम शिक्षा सम्बन्धी आयोग ‘कोठारी आयोग’ था
  2. विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग के अध्यक्ष डॉ० राधाकृष्णन् थे।
  3. ‘माध्यमिक शिक्षा आयोग’ को ‘कोठारी आयोग’ के नाम से भी जाना जाता है।
  4. मुदालियर आयोग ने त्रिभाषा सूत्र की सिफारिश की थी।
  5. पंचवर्षीय योजनाओं में शिक्षा के प्रसार एवं प्रचार का कोई कार्य नहीं किया गया है।

उत्तर

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. सत्य
  5. असत्य।

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिए गए विकल्पों में सेसही विकल्प का चुनाव कीजिएप्रश्न
प्रश्न 1
विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग की नियुक्ति कब हुई?
(क) 20 अक्टूबर, 1947 ई०
(ख) 4 नवम्बर, 1948 ई०
(ग) 26 जनवरी, 1949 ई०
(घ) 26 जनवरी, 1950 ई०
उत्तर
(क) 20 अक्टूबर, 1947 ई

प्रश्न 2
‘मुदालियर कमीशन सम्बन्धित है
(क) प्राथमिक शिक्षा से
(ख) माध्यमिक शिक्षा से
(ग) उच्च शिक्षा से
(घ) व्यावसायिक शिक्षा से
उत्तर
(क) प्राथमिक शिक्षा से

प्रश्न 3
‘माध्यमिक शिक्षा पुनर्गठन समिति का गठन किसकी अध्यक्षता में हुआ?
(क) आचार्य नरेन्द्र देव
(ख) डॉ० डी०एस० कोठारी
(ग) डॉ० जाकिर हुसैन
(घ) हुमायूँ कबीर
उत्तर
(क) आचार्य नरेन्द्र देव

प्रश्न 4
शिक्षा आयोग 1964-66 को कहा जाता है
(क) कोठारी कमीशन
(ख) मुदालियर कमीशन
(ग) डॉ० राधाकृष्णन् कमीशन
(घ) हण्टर कमीशन
उत्तर
(क) कोठारी कमीशन

प्रश्न 5
कोठारी कमीशन की नियुक्ति (गठन) कब हुई?
(क) 1960 ई० में
(ख) 1962 ई० में
(ग) 1963 ई० में
(घ) 1964 ई० में
उत्तर
(घ) 1964 ई० में

प्रश्न 6
शिक्षा आयोग (1964-66) के अध्यक्ष थे
(क) डॉ० राधाकृष्णन्
(ख) डॉ० लक्ष्मण स्वामी मुदालियर
(ग) प्रो० दौलत सिंह कोठारी
(घ) डॉ० ताराचन्द
उत्तर
(ग) प्रो० दौलत सिंह कोठारी

प्रश्न 7
नवोदय विद्यालय खोलने की घोषणा किस शिक्षा नीति में की गई थी?
(क) राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968
(ख) राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1979
(ग) राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986
(घ) संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1992
उत्तर
(ग) राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986

प्रश्न 8
गति-निर्धारक स्कूलों की स्थापना की संस्तुति की गई ।
(क) शिक्षा नीति, 1968 में
(ख) शिक्षा नीति, 1979 में
(ग) शिक्षा नीति, 1986 में
(घ) राममूर्ति समिति रिपोर्ट, 1990 में
उत्तर
(ग) शिक्षा नीति, 1986 में

प्रश्न 9
किस आयोग ने ग्रामीण विश्वविद्यालय की स्थापना की सिफारिश की थी?
(क) कोठारी आयोग
(ख) मुदालियर आयोग
(ग) राधाकृष्णन् आयोग
(घ) सैडलर आयोग
उत्तर
(ग) राधाकृष्णन् आयोग

प्रश्न 10
बहुउद्देशीय विद्यालयों की स्थापना का प्रस्ताव किस आयोग ने रखा ?
(क) राधाकृष्णन् आयोग
(ख) कोठारी आयोग
(ग) मुदालियर आयोग
(घ) हण्टर आयोग
उत्तर
(ग) मुदालियर आयोग

प्रश्न 11
किस वर्ष शिक्षा को समवर्ती सूची में सम्मिलित किया गया ?
(क) 1950 ई० में
(ख) 1952 ई० में
(ग) 1976 ई० में
(घ) 1986 ई० में
उत्तर
(ग) 1976 ई० में

प्रश्न 12
भारत में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की स्थापना हुई
(क) 1948 में
(ख) 1953 में
(ग) 1986 में।
(घ) 1986 में
उत्तर
(घ) 1986 में

प्रश्न 13
शिक्षा का अधिकार विधेयक पारित किया गया
(क) 1911 ई० में
(ख) 1937 ई० में
(ग) 2009 ई० में
(घ) 1966 ई० में
उत्तर
(ग) 2009 ई० में

प्रश्न 14
s.S.A. प्रारम्भ हुआ-
(क) सन् 2000 में
(ख) सन् 2001 में
(ग) सन् 2004 में ।
(घ) सन् 2005 में
उत्तर
(क) सन् 2000 में

प्रश्न 15
भारतीय संविधान की धारा 45 में शिक्षा सम्बन्धी किस तथ्य का उल्लेख है?
(क) 14 वर्ष की आयु तक अनिवार्य एवं नि:शुल्क शिक्षा
(ख) 25. वर्ष की आयु तक अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा
(ग) बालिका शिक्षा की अनिवार्यता
(घ) प्रौढ़ शिक्षा का लाभ
उत्तर
(क) 14 वर्ष की आयु तक अनिवार्य एवं नि:शुल्क शिक्षा

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