UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 10 Environmental Education

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Pedagogy
Chapter Chapter 10
Chapter Name Environmental Education (पर्यावरण शिक्षा)
Number of Questions Solved 22
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Pedagogy Chapter 10 Environmental Education (पर्यावरण शिक्षा)

विस्तृत उतरीय प्रश्न

प्रश्न 1
पर्यावरण-शिक्षा से आप क्या समझते हैं। परिभाषा निर्धारित कीजिए तथा इसका स्वरूप स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
पर्यावरण-शिक्षा का अर्थ
पर्यावरण-शिक्षा एक ऐसी शिक्षा है जो पर्यावरण के माध्यम से, पर्यावरण के सम्बन्ध में, पर्यावरण के हेतु होती है। वास्तव में पर्यावरण जड़ एवं चेतन दोनों को शिक्षा देने वाला है। पर्यावरण व्यक्ति के उन कार्यों को प्रोत्साहित करता है जो उनके अनुकूल होते हैं। पर्यावरण एक महान् शिक्षक है क्योंकि शिक्षा का कार्य छात्रों को उस वातावरण के अनुकूल बनाना है जिससे कि वे जीवित रह सकें तथा अपनी मूल-प्रवृत्तियों को सन्तुष्ट करने हेतु अधिक-से-अधिक सम्भव अवसर प्राप्त कर सकें। शिक्षा व्यक्ति को पर्यावरण से अनुकूलन करना ही नहीं सिखाती वरन् पर्यावरण को अपने अनुकूल बनाने हेतु उसे प्रशिक्षित भी करती हैं।

पर्यावरण-शिक्षा की परिभाषा
पर्यावरण-शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए अनेक विद्वानों ने उसे परिभाषित किया है। यहाँ हम कुछ परिभाषाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं

1. संयुक्त राज्य अमेरिका का पर्यावरण-शिक्षा अधिनियम, 1970 ई०
“पर्यावरण-शिक्षा का अर्थ है-वह शैक्षिक प्रक्रिया जो मानव के प्राकृतिक एवं मानव निर्मित वातावरण से सम्बन्धित है। इसमें जनसंख्या प्रदूषण, संसाधनों का विनियोजन एवं नि:शोषण, संरक्षण, यातायात, प्रौद्योगिकी एवं सम्पूर्ण मानवीय पर्यावरण के शहरी एवं ग्रामीण नियोजन का सम्बन्ध भी निहित है।”

2.एनसाइक्लोपीडिया ऑफ रिसर्च
“पर्यावरण-शिक्षा को परिभाषित करना सरल कार्य नहीं है, क्योंकि पर्यावरण-शिक्षा का अधिगम क्षेत्र ही अभी तक सुनिश्चित नहीं हो पाया है। परन्तु यह सर्वसम्मत अवश्य है कि पर्यावरण-शिक्षा की विषय-वस्तु अन्तर्विषयक (Interdisciplinary) प्रकृति की है। इसमें जीव-विज्ञान, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र एवं अन्य लोकोपकारी विषयों की विषय-सामग्री सम्मिलित है। इस विचार से सभी सहमत हैं कि पर्यावरणीय शिक्षा की सम्प्रत्यात्मक विधि सर्वश्रेष्ठ है।”

3. फिनिश नेशनल कमीशन
पर्यावरणशिक्षा पर्यावरण संरक्षण के लक्ष्यों को लागू करने का एक तरीका है। यह विज्ञान की एक अलग शाखा अथवा कोई अलग अध्ययन विषय नहीं है। इसको जीवन-पर्यन्त एकीकृत शिक्षा के सिद्धान्त के रूप में लागू किया जाना चाहिए।”

4. चैपमैन टेलर
“पर्यावरण-शिक्षा का अभिप्राय अच्छी नागरिकता विकसित करने के लिए सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को पर्यावरण मूल्यों तथा समस्याओं पर केन्द्रित करना है जिससे कि अच्छी नागरिकता का विकास हो सके एवं अधिगमकर्ता पर्यावरण के सम्बन्ध में भिज्ञ, प्रेरित एवं उत्तरदायी हो सके।

पर्यावरण-शिक्षा का स्वरूप / प्रकृति

पर्यावरण-शिक्षा को विभिन्न रूपों में स्पष्ट किया जा सकता है, यथा

1. पर्यावरण-शिक्षा का पर्यावरण माध्यम है
मनुष्य का पर्यावरण अकृतिक, सांस्कृतिक (मानव निर्मित. सुन्दर एवं शिक्षाप्रद है। जब बच्चे चिड़ियों अथवा तितलियों को देखकर आकर्षित होते हैं तो उनके विषय में अवगत कराना वातावरण के माध्यम से शिक्षा प्रदान करना है। वास्तव में इस प्रकार की शिक्षा कक्षा-कक्ष की चहारदीवारी में प्रदान की गयी शिक्षा की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण होती है। फलस्वरूप, पर्यावरण के माध्यम से व्यक्ति को शिक्षण अधिगम पर्याप्त मात्रा में कराया जाना चाहिए।

2. पर्यावरण-शिक्षा पर्यावरण से सम्बन्धित है
मनुष्य प्रतिदिन अपने अस्तित्व की रक्षा और समृद्धि के हेतु पर्यावरण के सम्पर्क में कार्य करता है। किसी भी स्थिति में वह इससे बच नहीं सकता। परिवार में जन्म लेकर बच्चा परिवार के बाद पड़ोस, समुदाय आदि के सम्पर्क में आता है और उसके क्रिया-कलापों में भाग लेता है, इस तरह वह वातावरण के सम्बन्ध में सीखता है। व्यक्ति को समुदाय में सामाजिक संस्थाओं के विषय में जानकारी मिलती है और इस जानकारी के अभाव में वह अपना जीवन सफलतापूर्वक नहीं व्यतीत कर सकता। यही स्थिति प्राकृतिक पर्यावरण की भी है। उसे अपने प्राकृतिक पर्यावरण से ही यह जानकारी प्राप्त होती है। वह खाद्य सामग्री कहाँ और किस तरह प्राप्त करता है, यह सामग्री किस प्रकार की भूमि से उत्पन्न होनी चाहिए आदि बातें वह स्वयं
ही सीखता है। पर्यावरण के सम्बन्ध में यह जानकारी पर्यावरणीय शिक्षा है।

3. पर्यावरण, शिक्षा का पर्यावरण है
वर्तमान युग में पर्यावरण के क्षेत्र में क्रान्ति हुई है। जनसंख्या विस्फोट के कारण पर्यावरण में परिवर्तन हुआ है। इस विस्फोट के फलस्वरूप प्रौद्योगिकी का विकास हुआ और औद्योगीकरण के फलस्वरूप वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण, परिवहन-प्रदूषण, ध्वनि-प्रदूषण, सामाजिक-प्रदूषण आदि समस्याएँ उत्पन्न हुईं। इनके फलस्वरूप मानव-जीवन अत्यन्त कष्टप्रद हो गया। फलस्वरूप यह आवश्यक हो गया कि उन उपायों की खोज की जाए जिससे पर्यावरण का संरक्षण हो सके। इस तरह पर्यावरण के सुधार तथा संरक्षण से सम्बन्धित जानकारी पर्यावरणीय शिक्षा है। वास्तव में पर्यावरण-शिक्षा, शिक्षा की विषय-वस्तु और शैली दोनों ही है। शैली के रूप में यह पर्यावरण को शिक्षण अधिगम सामग्री के रूप में प्रयुक्त करती है। विषय-वस्तु के रूप में यह पर्यावरण के निर्णायक तत्त्वों के सम्बन्ध में शिक्षण है। पर्यावरण के हेतु शिक्षा के रूप में यह पर्यावरण का नियन्त्रण, पारिस्थितिकी (Ecology) सन्तुलन के स्थापन और पर्यावरणीय प्रदूषण के नियन्त्रण से सम्बन्धित है।

प्रश्न 2
पर्यावरण-शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए। [2007, 09, 14]
उत्तर
पर्यावरण-शिक्षा के उद्देश्य 1975 ई० में बेलग्रेड में पर्यावरण-शिक्षा पर अन्तर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में एक घोषणा-पत्र प्रकाशित किया गया जिसे बेलग्रेड घोषणा-पत्र (Belgrade Charter) के नाम से पुकारा जाता है। इस घोषणा-पत्र में पर्यावरण-शिक्षा के लक्ष्य एवं प्राप्ति-उद्देश्यों का निर्धारण किया गया है। यहाँ उन्हें संक्षेप में प्रस्तुत किया जा रहा है

  1. लक्ष्य: पर्यावरण-शिक्षा का प्रमुख लक्ष्य है—विश्व जनसंख्या को पर्यावरण एवं उससे सम्बन्धित समस्याओं के सम्बन्ध में जागरूक बनाना।
  2. प्राप्ति उद्देश्य: उक्त घोषणा-पत्र में पर्यावरण-शिक्षा के निम्नलिखित प्राप्ति उद्देश्य निर्धारित किये गये
    • जागरूकता: समग्र वातावरण और उसकी समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता एवं जागरूकता विकसित करने में सहायता करना पर्यावरण-शिक्षा का प्रमुख प्राप्ति उद्देश्य है।
    • ज्ञान: लोगों को सम्पूर्ण वातावरण और उससे सम्बन्धित समस्याओं के विषय में जानकारी प्राप्त करने में सहायता प्रदान करना इसका दूसरा प्राप्ति उद्देश्य है।
    • अभिवृत्ति: लोगों में सामाजिक मूल्यों, वातावरण के प्रति घनिष्ठ प्रेम की भावना और उसके संरक्षण तथा सुधार हेतु प्रेरणा विकसित करने में सहायता प्रदान करनी पर्यावरण-शिक्षा का एक अन्य प्राप्ति उद्देश्य है।
    • कौशल: पर्यावरण समस्याओं के समाधान हेतु लोगों में कौशलों का विकास करना भी इसका प्राप्ति उद्देश्य है। ‘
    • मूल्यांकन योग्यता: लोगों के पर्यावरण तत्त्वों एवं शैक्षिक कार्यक्रमों को पारिस्थितिकी (Ecology), राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सौन्दर्यात्मक एवं शैक्षिक कारकों के सन्दर्भ में मूल्यांकन करने की योग्यता के विकास में सहायता प्रश्न करना भी इसका एक प्राप्ति उद्देश्य है।

पर्यावरण-शिक्षा के उद्देश्यों को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है-

1. संज्ञानात्मक (Cognitive), 2. भावात्मक (Affective) और 3. क्रियात्मक (Psychomotor)। संज्ञानात्मक क्षेत्र के अन्तर्गत वे प्राप्ति-उद्देश्य आते हैं जो ज्ञान के पुनः स्मरण अथवा पहचान (Recognition) से सम्बन्धित होते हैं। इसके अन्तर्गत बौद्धिक कुशलताएँ और योग्यताएँ भी आती हैं। संज्ञानात्मक क्षेत्र के अन्तर्गत स्मरण करना, समस्या समाधान, अवधारणा निर्माण, सीमित क्षेत्र में सृजनात्मक चिन्तन नामक व्यवहार आते हैं। भावात्मक क्षेत्र के अन्तर्गत वे प्राप्ति उद्देश्य आते हैं जो रुचियों, अभिवृत्तियों और मूल्यों में आये परिवर्तनों का उल्लेख करते हैं। क्रियात्मक अथवा मन:प्रेरित क्रियात्मक पक्ष के अन्तर्गत सम्बन्धित पर्यावरण-शिक्षा के प्राप्ति उद्देश्य निम्नवत् हैं-

  1. अपने क्षेत्र के पर्यावरण को ज्ञान प्राप्त करने में सहायता प्रदान करना।
  2. दूरस्थ क्षेत्र के पर्यावरण का ज्ञान प्राप्त करने में सहायता प्रदान करना।
  3. जैविक (Biotic) और अजैविक (Abiotic) पर्यावरण को समझने में सहायता प्रदान करना।
  4. जीवन के विभिन्न स्तरों पर पोषण-विषयक (Trophic) अन्योन्याश्रितता को समझने में सहायता प्रदान करना।
  5. भावी-विश्व में अनियन्त्रित जनसंख्या वृद्धि में तथा संसाधन के अनियन्त्रित विदोहन के प्रभावों को समझने में सहायबा प्रदान करना।
  6. जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्तियों की जाँच करने एवं देश के सामाजिक, आर्थिक विकास हेतु उनकी व्याख्या करना।
  7. भौतिक एवं मानवीय संसाधनों के विदोहन का मूल्यांकन करके उसके उपचारात्मक उपायों हेतु सुझाव देना।।
  8. सामाजिक तनावों के कारणों की खोज में सहायता प्रदान करना और उन्हें दूर करने हेतु उपयुक्त उपाय सुझाना।

पर्यावरण-शिक्षा के भावात्मक पक्ष के प्राप्ति उद्देश्य निम्नवत् हैं-

  1.  समीपस्थ एवं दूरस्थ पर्यावरण की वानस्पतिक स्पीशीज एवं जीव-जन्तुओं में रुचि रखने हेतु सहायता प्रदान करना।
  2. समाज और उसके व्यक्तियों को समस्याओं में रुचि रखने हेतु तत्पर बनाना।
  3. विभिन्न जातियों, प्रजातियों, धर्म एवं संस्कृतियों के प्रति सहिष्णुता उत्पन्न करना।
  4. समानता, स्वतन्त्रता, सत्य एवं न्याय को महत्त्व प्रदान करना।
  5. सभी देशों की राष्ट्रीय सीमाओं के प्रति आदर व्यक्त करने की भावना उत्पन्न करना।
  6. प्रकृति की देनों की भूरि-भूरि प्रशंसा करना।
  7. पर्यावरण की स्वच्छता एवं शुद्धता को महत्त्व प्रदान करना।

क्रियात्मक पक्ष से सम्बन्धित पर्यावरणीय शिक्षा के प्राप्ति-उद्देश्य निम्नवत् हैं-

  1. उन कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेना जिनके फलस्वरूप वायु, जल और ध्वनि-प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
  2. पास-पड़ोस की सफाई के कार्यक्रम में भाग लेना।
  3. नगरीय एवं ग्रामीण नियोजन में भाग लेना।
  4. खाद्य पदार्थों में की जाने वाली मिलावट को दूर करने वाले कार्यक्रमों के अन्तर्गत भाग लेना।

प्रश्न 3
पर्यावरण-शिक्षा की शिक्षण विधियों एवं साधनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
पर्यावरण-शिक्षा की शिक्षण-विधियाँ एवं साधन पर्यावरण-शिक्षा हेतु प्रयुक्त की जाने वाली शिक्षण विधियाँ एवं साधन विभिन्न प्रकार के हैं। यहाँ । पर्यावरण-शिक्षा की शिक्षण-विधियों और साधनों पर संक्षेप में प्रकाश डाला जा रहा है।

(अ) शिक्षण-विधियाँ
पर्यावरण-शिक्षा की निम्नलिखित शिक्षण विधियाँ हैं-
1. कक्षा वाद: विवाद-इसके अन्तर्गत किसी प्रकरण अथवा समस्या के विषय में कक्षा में विचार-विमर्श किया जाता है। इस विचार-विमर्श के फलस्वरूप पर्यावरण के विभिन्न पक्षों को स्पष्ट किया जाता है।
2. छोटी सामूहिक प्रयोगशालाएँ: छोटी सामूहिक प्रयोगशालाएँ पर्यावरण-शिक्षा के व्यापक अध्ययन हेतु विशेष उपयोगी हैं। इसके अन्तर्गत कक्षा को छोटे-छोटे समूह में बाँट दिया जाता है तथा प्रत्येक समूह की एक परियोजना निर्धारित कर ली जाती है। यह समूह इस परियोजना पर कार्य करता है। उदाहरण के लिए यदि किसी समूह को स्थानीय तालाब की परियोजना निर्धारित करनी है तो वह समूह इससे सम्बन्धित निम्नलिखित विषयों पर अध्ययन करेगा

  1. तालाब पर कौन-से व्यक्ति निर्भर करते हैं?
  2. सामाजिक जीवन पर तालाब का क्या प्रभाव पड़ता है?
  3. तालाब का क्षेत्र विस्तार कितना है?
  4. तालाब के आस-पास कौन लोग निवास करते हैं?
  5. तालाब और उसके आस-पास कौन-से पौधे हैं?
  6. तालाब के पानी में किस तरह की अशुद्धता है?
  7. तालाब की स्थिति को किस तरह उत्तम बनाया जा सकती है?

3. क्षेत्रीय पर्यटन: क्षेत्रीय पर्यटन पर्यावरण-शिक्षा की एक प्रभावी शिक्षण-विधि है। किसी स्थान विशेष के पर्यावरण के अध्ययन हेतु क्षेत्रीय पर्यटन का आयोजन किया जाता है। इसके फलस्वरूप छात्र प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करने हेतु समर्थ होते हैं। क्षेत्रीय पर्यटन का आयोजन सामुदायिक संस्थानों, पोस्ट ऑफिस, फैक्ट्री, स्थानीय बाजार के अध्ययन हेतु किया जा सकता है।

4. बाह्य अध्ययन: बाह्य अध्ययन हेतु नियोजन एवं समन्वय की आवश्यकता होती है। बाह्य अध्ययनों हेतु उसके उद्देश्यों का निर्धारण, कार्यक्रम का निर्धारण, तैयारी, क्षेत्रीय कार्य आदि को पहले से निश्चित कर लिया जाता है। इनमें हम छात्रों को गुफा, नदी आदि के पर्यावरण के अध्ययन हेतु बाहर ले जा सकते हैं।

5. प्रदर्शन का प्रयोग: पर्यावरण-शिक्षा में प्रदर्शन का प्रयोग अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है जिसके द्वारा उसके विभिन्न प्रकरणों का अध्ययन रोचक ढंग से किया जा सकता है। किसी भी प्रकरण से सम्बन्धित प्रदर्शनियों का आयोजन सम्भव है। इसके आयोजन हेतु छात्रों के सक्रिय सहयोग की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए-पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाले लोगों से सम्बन्धित प्रदर्शनी का आयोजन किया जा सकता है।

6. अनुकरण एवं खेल: पर्यावरणीय-शिक्षा में अनुकरण एवं खेलों का प्रयोग स्वतन्त्र निर्णयन एवं अभिवृत्तियों के निर्माण में विशेष भूमिका निभाता है।

(ब) साधन
पर्यावरण-शिक्षा के अन्तर्गत निम्नलिखित साधनों का प्रयोग किया जाता है-

  1. स्थानीय साधन–स्थानीय साधनों के अन्तर्गत छात्रों के निवास स्थान का पर्यावरण, जल को .. प्रदूषित करने वाले स्रोत, वायु को प्रदूषित करने वाले स्रोत आदि आते हैं।
  2. राष्ट्रीय संगठन-इसके अन्तर्गत पर्यावरण-शिक्षा की बुलेटिन, आपको वातावरण नामक मैगजीन, टेलीफोन डायरेक्टरी आदि आते हैं।
  3. मुद्रित सामग्री-इसके अन्तर्गत वार्षिक प्रतिवेदन, पुस्तकें, पोस्टर, चार्ट्स, सरकारी प्रकाशन, पीरियोडिकल्स (Periodicals) सरकारी नीति आदि आते हैं।
  4. श्रव्य-दृश्य सामग्री-इसके अन्तर्गत फिल्म, फिल्म खण्ड, सेल टी०वी०; कॉमर्शियल टी०वी० एजुकेशनल टी०वी०, ऑडियो टेप, कॉमर्शियल स्लाइड और व्यक्तिगत स्लाइड आदि आते हैं।
  5. अन्य सामग्री–अन्य सामग्रियों के अन्तर्गत विद्यालय का खेल का मैदान, विद्यालय उद्यान आदि आते हैं।

प्रश्न 4
पर्यावरण-शिक्षा की मुख्य समस्याएँ क्या हैं? इन समस्याओं के समाधान के उपाय भी बताइए। [2009, 10]
या
भारत में पर्यावरण-शिक्षा की क्या समस्याएँ हैं? [2014]
उत्तर
पर्यावरण-शिक्षा की समस्याएँ

1. पर्यावरण के प्रति अनचित दृष्टिकोण
पर्यावरण-शिक्षा की सर्वप्रमुख समस्या अशिक्षा के फलस्वरूप पर्यावरण के प्रति उचित दृष्टिकोण का न होना है। लोग यह समझ ही नहीं पाते कि उनके कार्यों से पर्यावरण कितना दूषित हो रहा है। भारत में वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई हो रही है। नदियों के जल को गन्दा किया जा रहा है और वायु-प्रदूषण तथा ध्वनि-प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। लोग इससे होने वाली हानि से अवगत ही नहीं हैं और इस स्थिति में उन्हें पर्यावरण-शिक्षा किस प्रकार दी जा सकती है? यदि किसी से कहा जाता है कि तुम ऐसा कार्य न करो, तो उसका उत्तर होता है इससे क्या हो जाता है, जब तक जीना है तब तक जिएँगे।

2. भौतिकवादी संस्कृति का अत्यधिक प्रसार
पर्यावरणीय शिक्षा की अन्य समस्या भौतिकवादी संस्कृति का अत्यधिक प्रसार है। जो लोग यह जानते हैं कि पर्यावरण की शुद्धता आवश्यक है वे भी अपने आरामतलबी, अपनी आवश्यकता और अपने भौतिक उपभोग हेतु पर्यावरण को व्यापक मात्रा में दूषित कर रहे हैं।

3. साहित्य की कमी
पर्यावरण-शिक्षा की एक अन्य प्रमुख समस्या इस शिक्षा के हेतु पर्याप्त मात्रा में साहित्य का विद्यालयों में पर्यावरण शिक्षा का उपलब्ध न होना है। सत्य तो यह है कि पर्यावरण के सम्बन्ध में अभी हमारा दृष्टिकोण अत्यन्त संकुचित है और ऐसे साहित्य को निर्माण अत्यन्त अल्प मात्रा में हुआ है जो पर्यावरण-शिक्षा से सम्बन्धित हो।

4. नगरीय सभ्यता का विकास
पर्यावरण-शिक्षा की एक अन्य समस्या नगरीय सभ्यता का अत्यधिक विस्तार है। लोगों का व्यापक मात्रा में गाँव से नगर की ओर पलायन हो रहा है और नगरों का वातावरण अत्यन्त प्रदूषित होता जा रहा है।

5. विद्यालयों में पर्यावरण
शिक्षा का अभाव-पर्यावरण-शिक्षा की एक बहुत बड़ी बाधा यह है कि अभी तक भारत के सभी विद्यालयों में पर्यावरण-शिक्षा को पाठ्यक्रम में स्थान नहीं दिया गया है। अनेक विद्यालय अभी ऐसे हैं जहाँ और सब कुछ तो पढ़ाया जाता है परन्तु पर्यावरण के सम्बन्ध में आदर्शवादी बातें ही बताई जाती हैं, यथार्थ की पृष्ठभूमि में लाकर लोगों को पर्यावरण के सम्बन्ध में शिक्षा प्रदान नहीं की जाती।

पर्यावरण-शिक्षा की समस्याओं का समाधान
यह सत्य है कि पर्यावरण-शिक्षा के मार्ग में विभिन्न समस्याएँ हैं परन्तु इन समस्याओं का निराकरण सम्भव है। इस सन्दर्भ में निम्नलिखित उपायों को अपनाकर सम्बन्धित समस्याओं का समाधान किया जा सकता है

1. उचित दृष्टिकोण का विकास
उक्त समस्या के समाधान हेतु यह अत्यन्त आवश्यक है कि लोगों को पर्यावरण को ठीक रखने हेतु प्रेरित किया जाए। इस क्षेत्र में अंशिक्षा सबसे बड़ी बाधक है।

2. प्राचीन भारतीय आदर्शों का स्थापन
इस भौतिकवादी युग में लोगों का ध्यान प्राचीन भारतीय आदर्शों की ओर उन्मुख किया जाना चाहिए। उन्हें यह बताया जाना चाहिए कि प्राचीनकाल में लोग सादा जीवन उच्च विचार रखते थे और प्रकृति के प्रति अत्यन्त संवदेनशील रहते थे। इसी कारण वे सुखमय जीवन व्यतीत करने में सफल थे। भौतिकवादी संस्कृति से जितनी दूर रहा जाएगा, उतना ही मन को सन्तोष प्राप्त होगा और पर्यावरण को जितना स्वच्छ रखा जाएगा उतना ही हमारा स्वास्थ्य ठीक रहेगा।

3. साहित्य का निर्माण
पर्यावरण-शिक्षा से सम्बन्धित पार् साहित्य का निर्माण व्यापक मात्रा में किया जाना चाहिए और उसे विभिन्न स्थानों पर मुफ्त बाँटा जाना चाहिए। इस साहित्य में प्रकृति की देनों की प्रशंसा के साथ ही हर प्रकार के प्रदूषण से मुक्त रहने के उपाय भी बतलाए जाने चाहिए।

4. ग्रामीण सभ्यता को प्रोत्साहन
उपर्युक्त समस्या के समाधान हेतु यह आवश्यक है कि देश में । ग्रामीण सभ्यता को प्रोत्साहन दिया जाए। ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को पर्यावरण को प्रदूषित किये बिना जीविका के साधन और सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ। ग्रामीण जनता को बताया जाए कि कैसे प्राचीन युग में हमें पर्यावरण की रक्षा करने में समर्थ हुए थे। अधिक-से-अधिक पेड़ लगाए जाएँ और वृक्षों की अन्धाधुन्ध कटाई आदि को रोका जाए।

5. पाठ्यक्रम में स्थान
पर्यावरण-शिक्षा को सभी माध्यमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रम में स्थान दिया जाना चाहिए। उचित तो यह होगा कि पर्यावरण की रक्षा नामक एक विषय ही अलग से निर्धारित कर दिया जाए और सभी को उस पाठ्यक्रम को पढ़ना एवं समझना आवश्यक हो।

अन्त में हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि मानव के अस्तित्व को भौतिक, सामाजिक एवं मानसिक रूप से उन्नत बनाने हेतु जिन तत्त्वों की आवश्यकता होती है वे सभी प्रकृति में हैं। मानव का विकास तभी हो सकता है जब प्रकृति के विभिन्न तत्त्व सन्तुलित हों। प्रकृति में सन्तुलित होने की शक्ति स्वयं में व्याप्त है किन्तु मानव भी उसे सन्तुलित रखने में योगदान देता है।

मानव ने अत्यधिक परिश्रम करके बंजर भूमि को खेती योग्य बनायो, सागर को पाटकर बस्तियाँ बनायी हैं, जल और थल के गर्भ से खनिज निकाले हैं, विज्ञान, विद्या और आधुनिक प्रौद्योगिकी के सहारे कृषि उद्योग एवं पशु-पालन की व्यवस्था में उन्नति की है, तो जिस प्रकृति ने उसे सब कुछ दिया है, उस प्रकृति की चिन्ता यह क्यों नहीं करता? उन्नत विकसित होने के साथ ही हम प्रकृति के सन्तुलन को बिगाड़ रहे हैं और यदि यह सन्तुलन बिगड़ गया तो मानव कैसे बचेगा? अतएव हमने प्रकृति के साथ जो कुछ किया है उसके हेतु पुनर्विचार की आवश्यकता है। डॉ० विद्या निवास मिश्र ने लिखा है-“प्रकृति का संरक्षण हम सबका पावन कर्तव्य है। हमें प्रकृति का उतना ही दोहन करना चाहिए जिससे उसका सन्तुलन न बिगड़े। यदि मानव अब भी नहीं चेता तो हमारा विनाश निश्चित है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
पर्यावरण-शिक्षा के पाठ्यक्रम अथवा क्षेत्र का उल्लेख कीजिए।
या
पर्यावरण शिक्षा की विषय-वस्तु क्या होनी चाहिए? [2011]
उत्तर
पर्यावरण-शिक्षा का पाठ्यक्रम निम्नवत् हो सकता है।

  1. मानव एवं पर्यावरण
  2. पारिस्थितिकी
  3. जनसंख्या एवं नगरीकरण
  4. नगरीय एवं क्षेत्रीय नियोजन
  5. सामाजिक संसाधन
  6. अर्थशास्त्र एवं पर्यावरण
  7. वृक्ष एवं जल-संसाधन
  8. वायु प्रदूषण
  9. वन्य-जीवन संसाधून
  10. सरकारी नीति एवं नागरिक
  11. बाह्य मनोरंजन एवं नागरिकों की भूमिका

आधुनिक अध्ययनों एवं खोजों से यह स्पष्ट हुआ है कि पर्यावरण-शिक्षा का अन्तर-विषयक क्षेत्र है। इसके साथ ही इसको समग्र रूप में व्यक्त किया गया है। इसके अन्तर्गत पारिस्थितिकी, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं अन्य क्षेत्रों की विशिष्ट समस्याओं को स्थान दिया गया है। पर्यावरण-शिक्षा वास्तविक जीवन के व्यावहारिक समस्याओं से सम्बन्धित है। यह भावी नागरिकों को मूल्यों के निर्माण की ओर अग्रसर करती है।

प्रश्न 2
पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता और महत्त्व को स्पष्ट कीजिए। [2007, 12, 16]
या
पर्यावरण-शिक्षा वर्तमान समय की एक महत्तम आवश्यकता है।” स्पष्ट कीजिए। [2015]
या
पर्यावरण शिक्षा की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए। [2016]
उत्तर
पर्यावरण-शिक्षा की आवश्यकता
वर्तमान आधुनिकी के इस दौर में बढ़ते औद्योगिकीकरण, नगरीकरण एवं उपभोगवाद के कारण अनेक पर्यावरणीय समस्याएँ पैदा हो गई हैं, जिनके कारण सम्पूर्ण विश्व के सामने पर्यावरणीय संकट पैदा हो गया है। पर्यावरणीय असन्तुलन के कारण आए दिन विश्व में कहीं-न-कहीं दुर्घटनाएँ घटित हो रही हैं। अत: मानव-जीवन पर आए इस संकट के समाधान के लिए पर्यावरण एवं उसकी कार्यप्रणाली के बारे में ज्ञान होना आवश्यक है, ताकि पर्यावरणीय सन्तुलन की पुन: प्राप्ति की जा सके और यह ज्ञान हमें पर्यावरण शिक्षा द्वारा ही उपलब्ध हो सकता है। अत: पर्यावरण शिक्षा आज की आवश्यकता है और इसे विद्यालयी पाठ्यक्रम में स्थान मिलना चाहिए। यह आज की माँग है।

पर्यावरण-शिक्षा का महत्त्व
वर्तमान वैज्ञानिक युग में पर्यावरण-शिक्षा का महत्त्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है। पर्यावरण-प्रदूषण ने विश्व को विनाश के निकट ला खड़ा किया है। पर्यावरण असन्तुलन के कारण आए दिन विश्व के किसी भी कोने में दुर्घटना घटित हो रही है। अत: मानव-जीवन की सुरक्षा के लिए पर्यावरण-सम्बन्धी तथ्यों का ज्ञान प्राप्त करना अत्यन्त आवश्यक है और यह ज्ञान पर्यावरण-शिक्षा द्वारा ही उपलब्ध हो सकता है। संक्षेप में पर्यावरण-शिक्षा के महत्त्व को निम्नलिखित रूप में व्यक्त किया जा सकता है

  1. पर्यावरण-शिक्षा द्वारा सम्पूर्ण पर्यावरण का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
  2. पर्यावरण-शिक्षा पर्यावरण-संरक्षण, वन्य-जीव संरक्षण, मृदा संरक्षण आदि की विधियाँ तथा उनकी उपयोगिता बताती है।
  3. पर्यावरण-शिक्षा विद्यार्थियों को नागरिक अधिकारों, कर्तव्यों तथा दायित्व का ज्ञान कराती है।
  4. पर्यावरण-शिक्षा वायु, जल, ध्वनि, मृदा, जनसंख्या आदि प्रदूषणों के कारणों तथा उनके नियन्त्रण की विधियाँ बतलाती है।
  5. पर्यावरण-शिक्षा विद्यालय पर्यावरण को सन्तुलित रखती है तथा नैतिक पर्यावरण को स्वस्थ बनाती है। पर्यावरण-शिक्षा के महत्त्व सम्बन्धी उपर्युक्त विवरण के आधार पर कहा जा सकता है कि पर्यावरण-शिक्षा को विभागीय पाठ्यक्रम में स्थान मिलनी चाहिए। यह आज के युग की माँग है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
पर्यावरण-शिक्षा की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
पर्यावरण-शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. पर्यावरण-शिक्षा मानव के प्राकृतिक और भौतिक पर्यावरण से सम्बन्धित है।
  2. पर्यावरण-शिक्षा पर्यावरण के तत्त्वों का ज्ञान कराती है तथा पर्यावरण असन्तुलन के कारणों की जानकारी देती है।
  3. पर्यावरण-शिक्षा द्वारा हमें विभिन्न प्रकार के पर्यावरणीय प्रदूषणों-वायु-प्रदूषण, जल-प्रदूषण, ध्वनि-प्रदूषण, मृदा-प्रदूषण के स्वरूपों तथा कारणों का ज्ञान प्राप्त होता है।
  4. पर्यावरण-शिक्षा प्रदूषण नियन्त्रण के उपायों का ज्ञान कराती है।
  5. पर्यावरण-शिक्षा का सम्बन्ध जनसंख्या नियन्त्रण, परिवार नियोजन, वन संरक्षण, वनारोपण, वन्य जीव संरक्षण आदि से भी है।

प्रश्न 2
पर्यावरण शिक्षा की विषय-वस्तु क्या होनी चाहिए? [2011]
उत्तर
पर्यावरण शिक्षा के अन्तर्गत पर्यावरण के स्वरूप, पर्यावरण तथा मानव-समाज के सम्बन्ध एवं प्रभावों, पर्यावरण की होने वाली क्षति, पर्यावरण प्रदूषण के कारणों, पर्यावरण प्रदूषण के स्वरूपों तथा पर्यावरण प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपायों का अध्ययन किया जाता है। अत: पर्यावरण शिक्षा की विषय-वस्तु में निम्नलिखित को शामिल किया जाना चाहिए-

  1. मानव और पर्यावरण के बीच के सम्बन्धों का अध्ययन करना।
  2. पारिस्थितिकी सन्तुलन की व्याख्या करना।
  3. जनसंख्या वृद्धि व नगरीकरण के पर्यावरणीय दुष्प्रभावों का अध्ययन करना।
  4. प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण व अनुकूलतम उपयोग को बढ़ावा देना।
  5. विभिन्न प्रकार के पर्यावरणीय प्रदूषणों का अध्ययन करना।
  6. जैव-विविधता को संरक्षण प्रदान करना।

प्रश्न 3
पर्यावरण शिक्षा के लक्ष्य क्या हैं ? [2009, 14]
उत्तर
पर्यावरण शिक्षा इस युग की प्रबल माँग है। इस उपयोगी शिक्षा का प्रमुख लक्ष्य समस्त नागरिकों को पर्यावरण तथा पर्यावरण सम्बन्धी विभिन्न समस्याओं के प्रति जागरूक करना है। यह जागरूकता ही पर्यावरण की सुरक्षा में सहायक होगी। पर्यावरण शिक्षा का व्यावहारिक लक्ष्य पर्यावरण प्रदूषण को नियन्त्रित करना हैं इसके अतिरिक्त पर्यावरण में प्राकृतिक सन्तुलन को बनाये रखने के प्रयास करना भी पर्यावरण शिक्षा का लक्ष्य है।

प्रश्न 4
पर्यावरण-शिक्षा की सफलता के मार्ग में उत्पन्न होने वाली मुख्य समस्याएँ कौन-कौन-सी हैं? [2014]
उत्तर

  1. पर्यावरण के प्रति अनुचित दृष्टिकोण
  2. भौतिकवादी संस्कृति का अत्यधिक प्रसार
  3. उपयोगी साहित्य की कमी
  4. नगरीय सभ्यता का विकास तथा
  5. विद्यालयों में पर्यावरण-शिक्षा-व्यवस्था की कमी।

प्रश्न 5
‘पर्यावरण-शिक्षा की एक स्पष्ट परिभाषा लिखिए।
उत्तर
पर्यावरण-शिक्षा का अभिप्राय अच्छी नागरिकता विकसित करने के लिए सम्पूर्ण पाठ्यक्रम को पर्यावरण मूल्यों तथा समस्याओं पर केन्द्रित करना है जिससे कि अच्छी नागरिकता का विकास हो सके एवं अधिगमकर्ता पर्यावरण के सम्बन्ध में भिज्ञ, प्रेरित एवं उत्तरदायी हो सके।”

निश्चित उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
‘पर्यावरण-शिक्षा से क्या आशय है ?
उत्तर
पर्यावरण के माध्यम से पर्यावरण के विषय में तथा पर्यावरण के लिए दी जाने वाली व्यवस्थित जानकारी को पर्यावरण-शिक्षा कहते हैं।

प्रश्न 2
राष्ट्रीय आधारभूत पाठ्यचर्या के अनुसार पर्यावरण-शिक्षा किस स्तर से प्रारम्भ होती है ? [2007]
उत्तर
राष्ट्रीय आधारभूत पाठ्यचर्या के अनुसार पर्यावरण-शिक्षा प्राथमिक शिक्षा स्तर से ही प्रारम्भ होती है।

प्रश्न 3
पर्यावरण-शिक्षा मुख्य रूप से पर्यावरण के किस रूप या प्रकार से सम्बन्धित है?
उत्तर
पर्यावरण-शिक्षा मुख्य रूप से प्राकृतिक अथवा भौगोलिक पर्यावरण से सम्बन्धित है।

प्रश्न 4
वर्तमान समय में पर्यावरण-शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य क्या है?  [2007]
उत्तर
वर्तमान समय में पर्यावरण-शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य पर्यावरण-प्रदूषण को नियन्त्रित करनी

प्रश्न 5
पर्यावरण-शिक्षा को सफल बनाने के लिए मुख्य रूप से क्या उपाय किया जाना चाहिए?
उत्तर
पर्यावरण-शिक्षा को सफल बनाने के लिए पर्यावरण के प्रति उचित दृष्टिकोण का विकास करना अति आवश्यक है।

प्रश्न 6
पर्यावरण शिक्षा के माध्यम से किस समस्या को दूर किया जा सकता है ? [2010]
उत्तर
पर्यावरण शिक्षा के माध्यम से पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को दूर किया जा सकता है।

प्रश्न 7
निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य
(i) पर्यावरण-शिक्षा का सम्बन्ध मुख्य रूप से सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण से होता है।
(ii) वर्तमान औद्योगिक सभ्यता के विकास के साथ-साथ पर्यावरण-शिक्षा की आवश्यकता बढ़ गयी है।
उत्तर
(i) असत्य
(ii) सत्य।

बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में दिये गये विकल्पों में से सही विकल्प का चुनाव कीजिए

प्रश्न 1
पर्यावरण-शिक्षा का मूल उद्देश्य है [2007, 10, 12, 15]
(क) औद्योगिकीकरण की प्रक्रिया को धीमा करना
(ख) शुद्ध पेय जल की व्यवस्था करना
(ग) खाद्य-पदार्थों के उत्पादन में वृद्धि करना
(घ) प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट होने से बचाना
उत्तर
(घ) प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट होने से बचाना

प्रश्न 2
निम्नलिखित में से सभी पर्यावरण-शिक्षा के उद्देश्य हैं, सिवाय
(क) परिवार नियोजन
(ख) जागरूकता
(ग) वृक्षारोपण
(घ) प्राकृतिक स्रोतों का बचाव
उत्तर
(क) परिवार नियोजन

प्रश्न 3
पर्यावरण-शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम में जोड़ा गया
(क) 1965 ई० में
(ख) 1970 ई० में
(ग). 1975 ई० में
(घ) 1978 ई० में
उत्तर
(ख) 1970 ई० में

प्रश्न 4
‘अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण-शिक्षा कार्यक्रम कब से प्रारम्भ हुआ?
(क) 1970 ई० में
(ख) 1972 ई० में
(ग) 1975 ई० में
(घ) 1980 ई० में
उत्तर
(ग) 1975 ई० में

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