UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 19 शिशु मृत्यु की समस्या

UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 19 शिशु मृत्यु की समस्या  the students can refer to these answers to prepare for the examinations. The solutions provided in the Free PDF download of UP Board Solutions for Class 12 are beneficial in enhancing conceptual knowledge.

Board UP Board
Class Class 12
Subject Home Science
Chapter Chapter 19
Chapter Name  शिशु मृत्यु की समस्या
Number of Questions Solved 16
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 19 शिशु मृत्यु की समस्या

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
शिशु मृत्यु का आशय है। (2014)
(a) जन्म लेते ही मृत्यु हो जाना
(b) स्कूल जाने से पूर्व मृत्यु हो जाना।
(c) जन्म से शैशवावस्था तक की अवधि में होने वाली मृत्यु
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(c) जन्म से शैशवावस्था तक की अवधि में होने वाली मृत्यु

प्रश्न 2.
शिशु मृत्यु-दर की गणना की जाती है।
(a) जन्म लेने वाले प्रति 100 शिशुओं के आधार पर
(b) जन्म लेने वाले प्रति हजार शिशुओं के आधार पर
(c) विभिन्न रोगों के संक्रमण के आधार पर
(d) जन्म एवं मृत्यु संख्या के अन्तर के आधार पर
उत्तर:
(b) जन्म लेने वाले प्रति हजार शिशुओं के आधार पर

प्रश्न 3.
शिशु मृत्यु-दर सबसे अधिक है।
(a) भारत में
(b) जापान में
(c) इंग्लैण्ड में
(b) अमेरिका में
उत्तर:
(a) भारत में

प्रश्न 4.
बाल मृत्यु को कारण है। (2006,17)
(a) स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी एवं सुविधाओं का अभाव
(b) यौन शिक्षा का अभाव
(c) बाल विवाह
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 5.
बाल मृत्यु को कम किया जा सकता है। (2010)
(a) शिक्षा एवं ज्ञान के प्रसार के द्वारा
(b) उपयुक्त प्रसव एवं स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना करके
(c) संक्रामक रोगों की रोकथाम करके
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 6.
उचित समय पर टीकाकरण (2009)
(a) बालक में रोग क्षमता को कम करता है।
(b) बाल मृत्यु की दर कम होती है।
(c) बच्चे की जान को खतरा रहता है।
(b) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(b) बाल मृत्यु की दर कम होती है।

प्रश्न 7.
परिवार नियोजन द्वारा किस समस्या का समाधान हो सकता है? (2017)
(a) जनसंख्या नियन्त्रण
(b) देश के विकास की वृद्धि
(c) माँ तथा शिशु की मृत्यु में कमी
(b) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 8.
गर्भावस्था में महिला को मिलना चाहिए। (2007, 16)
(a) केवल फल
(b) केवल दूध
(C) सन्तुलित आहार
(b) जो भी उपलब्ध हो
उत्तर:
(c) सन्तुलित आहार

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक, 25 शब्द)

प्रश्न 1.
शिशु मृत्यु से क्या आशय है?
उत्तर:
जन्म लेते ही अथवा जन्म लेने से एक वर्ष की आयु तक होने वाली मृत्यु को ‘शिशु मृत्यु’ कहते हैं।

प्रश्न 2.
बाल मृत्यु के प्रमुख कारण क्या हैं? (2006, 13)
उत्तर:
शिक्षा का अभाव, निर्धनता, गर्भावस्था में असावधानी, अव्यवस्थित प्रसूतिका गृह, बाल विवाह, चिकित्सा सुविधाओं की कमी आदि शिशु मृत्यु के प्रमुख कारण हैं।

प्रश्न 3.
शिशु मृत्यु-दर को रोकने के दो उपाय बताएँ। (2005, 10, 11)
उत्तर:
शिक्षा का प्रसार एवं लोगों में जागरूकता फैलाकर तथा प्रसव एवं स्वास्थ्य केन्द्रों की स्थापना करके बाल मृत्यु-दर को रोका जा सकता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक, 50 शब्द)

प्रश्न 1.
शिशु मृत्यु-दर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी देश में एक वर्ष में जन्म लेने वाले प्रति हजार बच्चों में से जितने बच्चे जन्म लेने के समय या अपने जन्म के एक वर्ष के अन्दर मर जाते हैं, उसे शिशु मृत्यु दर’ कहते हैं। उदाहरण माना कि किसी देश में एक वर्ष के अन्दर एक लाख बच्चों ने जन्म लिया और 500 बच्चे जन्म लेने के तुरन्त बाद या 1 वर्ष की आयु पूर्ण होने से पूर्व ही मर गए, तो उस देश की शिशु मृत्यु-दर की गणना इस प्रकार करेंगे
\frac { 500 } { 100000 } \times 1000 = 5
अर्थात् शिशु मृत्यु दर = 5/हजार है

प्रश्न 2.
बाल मृत्यु-दर पर निर्धनता को प्रभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बाल मृत्यु-दर पर निर्धनता का प्रभाव तीन स्तरों पर देख सकते हैं।
प्रसव से पूर्व (गर्भावस्था के दौरान) गर्भावस्था में निर्धनता के कारण गर्भवती महिलाएँ सन्तुलित एवं पौष्टिक आहार नहीं ले पाती हैं, जिससे शिशु की मृत्यु होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

प्रसव के दौरान धन की कमी के कारण अनेक महिलाएँ प्रसव कराने के लिए। चिकित्सक के पास न जाकर घर पर ही दाइयों की सहायता से बच्चे को जन्म दे देती हैं, अत: प्रसव की समुचित व्यवस्था उपलब्ध न होने के कारण शिशु की मृत्यु की सम्भावना अधिक होती है।

प्रसव के बाद धन की कमी के कारण नवजात शिशु को सन्तुलित व पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता है। अतः वे विभिन्न प्रकार की बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। निर्धनता के कारण इन बच्चों का समुचित उपचार भी नहीं हो पाता है, जो शिशु मृत्यु का एक प्रमुख कारण है।

प्रश्न 3.
शिशु के जीवन में माता-पिता के स्वास्थ्य का महत्त्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक स्वस्थ शिशु को, एक स्वस्थ माता ही जन्म दे सकती है। आनुवंशिकी के कारण माता-पिता में व्याप्त रोगों का शिशु में भी हस्तान्तरण हो जाता है। गर्भावस्था में शिशु माता के रक्त से ही पोषक तत्त्वों को प्राप्त करता है। यदि माता पहले से ही कमजोर एवं अस्वस्थ है, तो वह कदापि एक स्वस्थ बच्चे को जन्म नहीं दे सकती है। जन्म के बाद भी माँ को संक्रमित दूध पीकर शिशु अस्वस्थ हो जाता है। अत: यह स्पष्ट है कि रोग-प्रतिरोधक क्षमता के अभाव के कारण रोगी माता-पिता की सन्तान भी रोगग्रस्त होगी। इस तरह से शिशु के माता-पिता के स्वास्थ्य का शिशु के जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (5 अंक, 100 शब्द)

प्रश्न 1.
बाल मृत्यु की समस्या का वर्णन करें एवं इसके मुख्य कारणों को स्पष्ट (2004, 06)
उत्तर:
किसी देश में एक वर्ष के भीतर जन्म लेने वाले प्रति हजार शिशुओं में मृत शिशुओं की गणना ‘शिशु मृत्यु-दर’ कहलाती है। शिशु मृत्यु-दर की गणना में 0 से 1 वर्ष की आयु तक के बच्चों को सम्मिलित किया जाता है। बाल मृत्यु दर की गणना पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मौत के मामलों के आधार पर की जाती है। अर्थात् बाल मृत्यु-दर नवजात शिशुओं के साथ-साथ पाँच वर्ष तक की आयु के बच्चों की मौत को इंगित करती है। आज का बोलके कल को नागरिक होता है और यदि नागरिक न रहे, तो राष्ट्र कैसा, इसलिए बाल मृत्यु को किसी भी देश की प्रगति का शुभ संकेत नहीं माना जाता है। आज भारत में बाल मृत्यु दर बहुत अधिक है।

भारत में बाल मृत्यु की ऊँची दर के कारण
भारत में उच्च बाल मृत्यु दर के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं।

  • शिक्षा का अभाव
  • निर्धनता
  • गर्भावस्था में असावधानी
  • बाल-विवाह
  • अनुचित प्रसूति-गृह
  • रोगी माता-पिता
  • परिवार नियोजन का पालन न करना
  • मातृ-शिशु कल्याणकारी संस्थाओं की कमी
  • चिकित्सा एवं नि:संक्रमण सम्बन्धी सुविधा की कमी

1. शिक्षा का अभाव बाल मृत्यु-दर के अधिक होने के कारणों में अशिक्षा एक महत्त्वपूर्ण कारक है। शिक्षा के अभाव में महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों की जानकारी नहीं होती है। शिक्षा के अभाव में महिलाओं को शिशु सुरक्षा, प्रसव पूर्व एवं प्रसव के बाद की जाने वाली परिचर्या की जानकारी नहीं हो पाती है, जो बाल मृत्यु-दर को बढ़ावा देती है। शिक्षा के अभाव में महिलाएँ सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही सुविधाओं का भी लाभ नहीं उठा पा रही हैं।

2. निर्धनता बाल मत्य-दर पर निर्धनता का प्रभाव तीनों स्तर पर देखा जा सकता है, जन्म के पूर्व, जन्म के दौरान एवं जन्म के बाद।

निर्धनता के कारण गर्भावस्था के दौरान,महिलाएँ स्वयं को सन्तुलित एवं पौष्टिक आहार नहीं दे पाती हैं, जिससे माता और शिशु दोनों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। वहीं चिकित्सा सम्बन्धी विभिन्न सुविधाएँ होते हुए भी निर्धन जनता उसका लाभ नहीं उठा पाती है। ऐसी स्थिति में गरीब लोग घर पर ही दाइयों से प्रसव करा लेते हैं। इस मजबूरी के कारण अनेक बार जन्म के समय ही शिशु की मृत्यु हो जाती है। जन्म के बाद भी शिशु को निर्धनता के कारण पौष्टिक और सन्तुलित आहार नहीं मिल पाता है। इस स्थिति में इन नवजात शिशुओं को स्वास्थ्य खराब हो जाता है, लेकिन धन के अभाव के कारण बच्चों का समुचित उपचार नहीं हो पाता है।

3. गर्भावस्था में असावधानी गर्भावस्था के दौरान यदि माता अपने स्वास्थ्य, पोषण एवं अन्य आवश्यक देखभाल का ध्यान रखती है, तो जन्म लेने वाला बच्चा भी स्वस्थ होता है। इसके विपरीत यदि माता अपने स्वास्थ्य एवं पोषण का ध्यान नहीं रखती है, तो नवजात शिशु भी दुर्बल तथा अस्वस्थ हो जाता है। प्रायः इन दशाओं में जन्म लेने वाले बच्चे रोगों से संक्रमित हो जाते हैं, जो शिशु-मृत्यु का कारण बनते हैं।

4. बाल-विवाह आज भी अशिक्षा और अज्ञानता के कारण भारत में बहुत सारी लड़कियों की शादी 14-15 वर्ष की आयु में कर दी जाती है। इस आयु में लड़कियों का शारीरिक विकास पूर्णरूप से नहीं होता है तथा रज-वीर्य अपरिपक्व अवस्था में होता है। ऐसी स्थिति में इन लड़कियों से जन्म लेने वाला बच्चा दुर्बल एवं अपरिपक्व होता है, जो शिशु मृत्यु का कारण होता है।.

5. अनुचित प्रसूति-गृह प्रसूति-गृह ही वह स्थान होता है, जहाँ गर्भ से बाहर आने के बाद बच्चा पहली बार साँस लेता है। अतः किसी भी जन्म लेने वाले बच्चे के लिए प्रसूति-गृह का विशेष महत्त्व है। भारत में आज भी अधिकांश क्षेत्रों में व्यवस्थित एवं उचित प्रसूति-गृह का अभाव है। ग्रामीण क्षेत्रों में प्राय: घर पर ही प्रसव कराए जाते हैं।

6. रोगी माता-पिता आज भारत में असंख्य माता-पिता रोगग्रस्त हैं। ऐसे में जब इन माता-पिता से बच्चे का जन्म होता है, तो बच्चे में भी रोग का , संक्रमण हो जाता है, इसलिए संक्रमित सन्तान का प्रायः जीवित रह पाना कठिन हो पाता है। इस स्थिति में कुछ शिशुओं की मृत्यु प्रसव के दौरान हो जाती है तथा कुछ की अल्पायु में मृत्यु हो जाती है।

7. परिवार नियोजन का पालन न करना परिवार नियोजन का पालन न करने | से अनेक परिवारों में बच्चों की संख्या अधिक हो जाती है। ऐसे परिवार में जन्म लेने वाले बच्चों का समुचित ध्यान रख पाना कठिन होता है तथा बच्चों की मृत्यु की सम्भावना अधिक रहती है।

8. मातृ-शिशु कल्याणकारी संस्थाओं की कमी हमारे देश में जनसंख्या के अनुपात में मातृ-शिशु कल्याणकारी संस्थाओं की काफी कमी है। इस कारण से गर्भवती महिलाओं एवं नवजात शिशुओं को अनेक आवश्यक ‘सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। इन सुविधाओं के अभाव में अनेक माताओं एवं नवजात शिशुओं की मृत्यु हो जाती है।

9. चिकित्सा एवं निःसंक्रमण सम्बन्धी सुविधा की कमी आज भी हमारे देश में जनसंख्या के अनुपात में चिकित्सा सुविधाओं की पर्याप्त व्यवस्था उपलब्ध नहीं है। अप्रशिक्षित नीम-हकीमों के पास अशिक्षित जनता जाने के लिए मजबूर हो जाती है। अनेक लोग तन्त्र-मन्त्र एवं झाड़-फूक के द्वारा उपचार में विश्वास करते हैं। इस तरह अव्यवस्थित चिकित्सा एवं योग्य प्रशिक्षित चिकित्सकों की कमी से हजारों बच्चे रोगग्रस्त होने पर स्वस्थ नहीं हो पाते और उनकी मृत्यु हो जाती है।

प्रश्न 2.
बाल मृत्यु-दर कम करने के मुख्य उपायों पर चर्चा करें। (2005)
अथवा
शिशु मृत्यु-दर कम करने हेतु अपने सुझाव दीजिए। (2016)
उत्तर:
बाल मृत्यु दर का अधिक होना देश की प्रगति में बाधक होता है। आज हमारे देश में जनसंख्या काफी अधिक है, जिसे नियन्त्रित करना अतिआवश्यक है। इस समस्या के समाधान के लिए जन्म दर को कम किया जाना चाहिए न कि मृत्यु-दर को बढ़ाया जाए।

बाल मृत्यु-दर कम करने के उपाय

देश के विकास के लिए बाल मृत्यु-दर को नियन्त्रित करने के लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं

  • शिक्षा का प्रसार
  • यौन शिक्षा
  • जीवन-स्तर में उन्नयन
  • स्वास्थ्य केन्द्र एवं प्रसूति-गृह की स्थापना
  • बाल कल्याण योजनाएँ
  • बाल चिकित्सालय
  • बाल-विवाह पर रोक
  • परिवार नियोजन
  • माता एवं शिशु का पोषण

1. शिक्षा का प्रसार देश के नागरिकों में रूढ़िवादिता और अज्ञानता को कम करने के लिए शिक्षा का प्रसार जरूरी है। शिक्षा का प्रसार होने से नागरिकों में नए-नए विचार आएँगे और जाग्रति उत्पन्न होगी। अतः बाल मृत्यु को रोकने के लिए स्त्रियों का शिक्षित होना अतिआवश्यक है।

2. यौन शिक्षा भारत में यौन शिक्षा का अभाव है। प्रत्येक बच्चे को यौनसम्बन्धी प्रत्येक बात की लाभ-हानि की शिक्षा दी जानी चाहिए, ताकि वे पति-पत्नी के रूप में विवकेपूर्ण जीवन व्यतीत कर सकें। ऐसे माँ-बाप अपने बच्चों के पालन-पोषण के प्रति जागरूक होते हैं, इससे बाल मृत्यु दर में गिरावट आती है। भारत सरकार ने इस दिशा में एक कदम आगे बढ़ाते हुए स्कूल के पाठ्यक्रमों में यौन शिक्षा को भी जोड़ दिया है।

3. जीवन-स्तर में उन्नयन जीवन-स्तर के सुधार में निर्धनता बड़ी बाधक है। सभी के पास रोजगार होगा, तो निर्धनता दूर होगी। फलस्वरूप गर्भवती महिलाओं को पौष्टिक एवं सन्तुलित आहार के साथ-साथ उपयुक्त वातावरण भी प्राप्त होगा, इससे बाल मृत्यु दर में कमी आएगी।

4. स्वास्थ्य केन्द्र एवं प्रसूति-गृह की स्थापना देश के शहरों में जहाँ अस्पतालों की अधिकता है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में स्तरीय स्वास्थ्य केन्द्रों का काफी अभाव है। इस समस्या के समाधान के लिए सरकार नए स्वास्थ्य केन्द्र एवं प्रसूति-गृह की व्यवस्था कर रही है, साथ ही योग्य डॉक्टर, नर्से आदि की नियुक्ति भी कर रही है। इन सभी सुविधाओं के साथ-साथ सरकार गरीबों को नि:शुल्क दवाइयाँ तथा उचित समय पर नि:शुल्क टीकाकरण की भी सुविधाएँ प्रदान कर रही है।

5. बाल कल्याण योजनाएँ शिशु देश का भविष्य होते हैं, इसलिए सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार की बाल-कल्याण योजनाएँ चलाई जा रही हैं, लेकिन हमारे देश की ग्रामीण जनता इन सरकारी कार्यक्रमों से अनभिज्ञ रहती है। अत: कुछ नि:स्वार्थ नागरिकों को आगे आकर इन योजनाओं के बारे में लोगों को बताना चाहिए, ताकि इसका अधिक-से-अधिक लाभ लेकर शिशु मृत्यु-दर को कम किया जा सके।

6. बाल चिकित्सालय देश के प्रत्येक क्षेत्र में एक बाल चिकित्सालय की व्यवस्था होनी चाहिए, जिसमें जन्म के बाद बच्चों की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का समाधान अतिशीघ्र किया जा सके, जिससे बाल मृत्यु-दर में कमी आ सके।

7. बाल विवाह पर रोक बाल विवाह में 14.15 वर्ष की उम्र में बच्चों का विवाह कर दिया जाता है, ऐसी स्थिति में स्वस्थ बच्चा पैदा होने की सम्भावना न के बराबर होती है। अत: सरकार ने शादी की उम्र लड़कों के लिए 21 वर्ष तथा लड़कियों के लिए 18 वर्ष निश्चित कर दी है, इससे शिशु मृत्यु-दर में काफी कमी आई है।

8. परिवार नियोजन परिवार नियोजन ने शिशु मृत्यु-दर में कमी लाने में काफी सहायता की है। ‘छोटा परिवार सुखी परिवार’ एवं ‘बच्चे दो या तीन ही अच्छे का नारा भी लोगों की मानसिकता बदलने में कारगर सिद्ध हुआ। अतः परिवार नियोजन के बारे में लोगों को और जागरूक होने की तथा समाज में व्याप्त कुप्रथाओं को समाप्त करने की आवश्यकता है।

9. माता एवं शिशु का पोषण बाल मृत्यु-दर को कम करने के लिए गर्भावस्था एवं प्रसव के बाद भी शिशु एवं माता को पौष्टिक एवं सन्तुलित भोजन मिलना आवश्यक है। इसके लिए सरकार विभिन्न योजनाएँ चलाती है; जैसे-‘जननी सुरक्षा योजना’ इत्यादि।

We hope the UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 19 शिशु मृत्यु की समस्या help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 12 Home Science Chapter 19 शिशु मृत्यु की समस्या, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

error: Content is protected !!
Scroll to Top