UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 6 Human Races

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Geography
Chapter Chapter 6
Chapter Name Human Races (मानव प्रजातियाँ)
Number of Questions Solved 20
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 6 Human Races (मानव प्रजातियाँ)

विस्तृ त उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
प्रजाति का क्या अर्थ है? विश्व की मानव-जातियों का वर्गीकरण बताइए। (2016)
या
विश्व की प्रमुख प्रजातियों पर टिप्पणी लिखिए।
या
टेलर द्वारा किये गये प्रजाति वर्गीकरण की विवेचना कीजिए।
या
मानव-प्रजातियों पर टिप्पणी लिखिए।
या
मानव-प्रजातियों की विशेषताओं और उनके विश्व-वितरण का वर्णन कीजिए। (2007)
या
‘मानव-प्रजाति’ से आप क्या समझते हैं? विश्व में मानव-प्रजातियों के वर्गीकरण के किन्हीं दो आधारों का उल्लेख कीजिए। (2008, 14, 16)
या
पृथ्वी के धरातल पर मानव प्रजातियों के वितरण का वर्णन कीजिए। (2015)
उत्तर

प्रजाति का अर्थ
Meaning of Race

प्रजाति एक जैविक विचार है जिसका अभिप्राय उस मानव वर्ग से है जो वंशानुक्रम द्वारा शारीरिक लक्षणों में समानता रखता हो। यह एक नस्ल है या जन्मजात सम्बन्धों का मानव-वर्ग है। मानव-जाति के कई वर्ग होते हैं जिनकी भिन्नता का आधार शारीरिक बनावट के विभिन्न लक्षण होते हैं। मानव-जाति एक प्राकृतिक नस्ल है। किसी भी मानव-जाति के शारीरिक लक्षण वंशानुक्रम द्वारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे भविष्य में जारी रहते हैं। इस प्रकार शारीरिक लक्षणों के आधार पर विशिष्ट मानव-समूह को प्रजाति कहा जाता है। विभिन्न विद्वानों ने प्रजाति को परिभाषित करने का प्रयास किया है। उनके विचार निम्नलिखित हैं –

“मानव-प्रजाति नस्ल (Breed) को प्रकट करती है, न कि सभ्यता (Culture) को।” – ग्रिफिथ टेलर
“मानव-जाति का वर्गीकरण मानव-शरीर की आकृति और शारीरिक लक्षणों के आधार पर होता है।” – विडाल-डि-लों ब्लॉश
मानव-जाति एक जैविक नस्ल है जिसके प्राकृतिक लक्षणों का योग दूसरी जाति के प्राकृतिक लक्षणों के योग से भिन्न हो। ये प्राकृतिक लक्षण पीढ़ी-दर-पीढ़ी तक वैसे ही चलते रहते हैं।’ –हैडन
“प्रजाति एक प्रमाणित प्राणिशास्त्रीय संकल्पना है। यह एक समूह है जो वंशानुक्रमण, वंश या प्रजातीय गुण अथवा उपसमूह द्वारा जुड़ा है। यह सामाजिक-सांस्कृतिक संकल्पना नहीं है।”- क्रोबर
“एक प्रजाति मनुष्यों को उपविभाग है जिसमें कुछ भौतिक लक्षणों की पैतृक देन रहती है।” – गोल्डन वीजर

इस प्रकार प्रजाति का अर्थ मानव-वर्ग से है। जिस वर्ग के सभी मानवों की शारीरिक रचना के बाह्य लक्षण; जैसे शरीर का कद, त्वचा का रंग, सिर की लम्बाई-चौड़ाई, बालों की आकृति, आँखों की आकृति तथा रंग, होंठों की बनावट, नाक को चपटापन या नुकीलापने आदि; एकजैसे हों तथा उनका रक्त भी एक ही वर्ग का हो, प्रजाति कहलाती है। समान प्रकार के शारीरिक लक्षणों और रक्त-गुणों वाले मानव-वर्ग की आने वाली सन्तानों में भी वैसे ही शारीरिक लक्षण और रक्त-गुण भी बहुत-सी पीढ़ियों तक चलते रहते हैं। जो विशेषताएँ शरीर के जिन अंगों द्वारा आगे चलती हैं उनको ‘जीन्स’ (Genes) कहते हैं। इन्हीं जीन्स के कारण मानव के शरीर और मस्तिष्क निर्मित होते हैं।

प्रजाति के विकास के कारण
Causes of the Development of Race

मानव-प्रजातियों की शारीरिक रचना में बाह्य गुणों में अन्तर उपस्थित करने वाले कितने ही कारण हैं, जिनमें निम्नलिखित मुख्य हैं –

  1. जलवायविक परिवर्तन (Climatic Changes)
  2. ग्रन्थि-रसों का परिवर्तन (Harmones Changes)
  3. छाँट एवं जैविक परिवर्तन (Selection and Biological Changes)
  4. प्रवास द्वारा जातियों का मिश्रण (Racial Mixture by Migration)

प्रजाति वर्गीकरण के आधार तत्व
Basic Elements of Racial Classification

मानव-प्रजातियों का वर्गीकरण उनके शारीरिक लक्षणों के आधार पर निश्चित किया जाता है। निम्नलिखित आधार तत्त्व मुख्य हैं –

1. प्रजाति वर्गीकरण की सीमा (Extent of Racial Classification) – मानव-प्रजातियों को वर्गीकरण केवल उनके बाह्य शारीरिक लक्षणों के आधार पर किया जाना चाहिए, क्योंकि प्राकृतिक पर्यावरण परिवर्तन से ग्रन्थि-रस आदि के कारण जो परिवर्तन मानव-शरीर में होते हैं, वे केवल बाह्य लक्षणों में ही होते हैं। सभी प्रजातियों में बौद्धिक विकास, चरित्र विकास-सद्गुण या दुर्गुण, वीरता, कर्तव्यपरायणता, सत्य का पालन, देश-प्रेम आदि लक्षण एक जैसे होते हैं।

2. शारीरिक लक्षण (Physical Traits) – शरीर के बाह्य लक्षणों को अधिकाधिक प्रजातियों के वर्गीकरण का आधार बनाना चाहिए। शारीरिक लक्षणों में निम्नलिखित बाह्य लक्षण महत्त्वपूर्ण हैं –

  1. सिर की आकृति या कपाल सूचकांक (Cephalic Index)।
  2. बालों की बनावट (Texture of Hairs)।
  3. नासिका देशना (Nosel Index)।
  4. त्वचा का रंग (Skin Colour)।

मानव-प्रजातियों का वर्गीकरण करते समय किसी वर्ग के व्यक्तियों की एक बड़ी संख्या के औसत गुणों को ही आधार मानना चाहिए, क्योंकि अलग-अलग व्यक्ति एक-दूसरे से बहुत भिन्न हो सकते हैं, परन्तु उनके औसत में बहुत कम अन्तर होता है।

3. विशेष लक्षण (Special Traits) – मानव-प्रजातियों में कुछ विशेष शारीरिक लक्षण भी होते हैं, जो केवल विशेष जातियों में ही पाये जाते हैं; जैसे–मंगोलॉयड जाति के लोगों के नेत्र तिरछे होते हैं। इसके अतिरिक्त मंगोल जाति में गालों की हड्डियाँ उभरी हुईं, नाक चपटी तथा मस्तक सपाट होता है। त्वचा का रंग, सिर, नाक, केशों की आकृति और शरीर का कद ऐसे स्थायी लक्षण हैं जो एक बार अलग होने के बाद स्थिर हो गये हैं। ये लक्षण एक युग से दूसरे युग तक चलते रहते हैं तथा जातियों के मिश्रित होने पर भी थोड़ी-अधिक मात्रा में शुद्धता से जारी रहते हैं।

प्रजाति वर्गीकरण को इतिहास
History of Racial Classification

अनेक मानवशास्त्रियों ने प्रजाति वर्गीकरण के प्रयास किये हैं। आरम्भ में त्वचा के वर्ण तथा महाद्वीपों के आधार पर वर्गीकरण प्रस्तुत किये गये। उदाहरणार्थ- वर्नियर ने 1684 ई० में मानव-प्रजाति का प्रथम वर्गीकरण महाद्वीपीयता व त्वचा के वर्ण के आधार पर प्रस्तुत किया। तत्पश्चात् लिनेकस (1758) ने विशुद्ध महाद्वीपीय आधार पर प्रजाति वर्गीकरण करते हुए विश्व में चार प्रजातियाँ बताय-यूरोपीय, अमेरिकी, एशियाई व अफ्रीकी। ब्लूमैनबैच (1806) ने त्वचा के वर्ण व कपाल की आकृति के आधार पर पाँच प्रजातियाँ, बतायीं-काकेशियन, मंगोलियन, इथोपियन, अमेरिकन व मलायन। कूवियर (1817) का वर्गीकरण बाइबल के वितरण पर आधारित है। प्रिकार्ड (1840), हुक्सले (1870), हेकल (1879), टोपीनार्ड (1878), डेनिकर (1889), रिपले (1900), बियासुती (1912), डिक्सन (1923), हैडन (1924), इक्सटेड (1934), क्रोबर (1935) आदि विद्वानों ने विभिन्न वर्गीकरण प्रस्तुत किये। इनमें प्रायः सभी अपूर्ण व दोषपूर्ण माने जाते हैं।

टेलर का वर्गीकरण Taylor’s Classification
ग्रिफिथ टेलर ने 1919 ई० में सिर-घातांक, केश-रचना, कद, नासिका-रचना आदि तत्त्वों के । आधार पर प्रजाति वर्गीकरण’ प्रस्तुत किया। उन्होंने जलवायु परिवर्तनों के सन्दर्भ में प्रजातियों के विकास को ‘प्रवास कटिबन्ध सिद्धान्त’ (Migration Zone Theory) के द्वारा स्पष्ट किया। उनके मतानुसार, मध्य एशिया समस्त मानव जाति का उद्गम स्थल है। यहीं से सभी प्रजातियाँ क्रमशः विकसित हुईं। बाद में विकसित होने वाली प्रजाति ने पहले विकसित प्रजाति को बाहरी भागों की ओर खदेड़ दिया। इसी नियमानुसार सबसे बाद में विकसित प्रजातियाँ अब महाद्वीपों के आन्तरिक भागों में उपस्थित हैं तथा प्राचीनतम प्रजातियाँ महाद्वीपों के किनारों पर स्थित हैं।
टेलर के अनुसार, एशिया एक केन्द्रीय महाद्वीप है। यूरेफ्रिका, ऑस्ट्रेलिया व अमेरिका इसके प्रायद्वीप हैं। इसमें क्रमश: निम्नलिखित सात प्रजातियाँ विकसित पायी जाती हैं –

  1. नेग्रीटो (बहुत पतला सिर)
  2. नीग्रो (बहुत लम्बे सिर)
  3. ऑस्ट्रेलॉयड (लम्बा सिर)
  4. मेडिटरेनियन (मॅझला लम्बा सिर)
  5. नॉर्डिक (मॅझला सिर)
  6. अल्पाइन (चौड़ा सिर) तथा
  7. मंगोलियन (बहुत चौड़ा सिर)।

यह एक प्रमाणित तथ्य है कि प्राचीनतम विकसित प्रजाति महाद्वीप की परिधि पर तथा नवीनतम विकसित प्रजाति महाद्वीप के केन्द्रीय स्थान पर पायी जाती है। इस वर्गीकरण की विशेषता यह है कि इसमें कपाल घातांक क्रमश: आरोही (चढ़ते हुए) क्रम में उपस्थित मिलता है। टेलर ने यह भी स्पष्ट किया है। कि प्रजातियों के क्रमिक विकास के साथ ही सिर की आकृति के अतिरिक्त केश की रचना में भी परिवर्तन होता गया। बालों की आकृति छल्लेदार से लहरदार, बाद में सीधी व सपाट होती गयी। चेहरे की आकृति में भी सुधार हुआ–यह उत्तल से अवतल होती गयी तथा नाक भी क्रमशः चौड़ी से पतली व सुन्दर होती गयी। त्वचा को वर्ण क्रमशः काले से भूरा, श्वेत व अन्त में पीला होता गया।

1. नेग्रीटो (Negrito) – यह अत्यन्त नाटे कद की, चॉकलेटी से काले रंग वाली प्रजाति है। इनके बाल छल्लेदार (Pepper corn) होते हैं। इनका जबड़ा अत्यधिक बाहर की ओर निकला हुआ (Prognathous) तथा चेहरा भी आगे की ओर निकला हुआ (Convex) होता है। वर्तमान समय में विशुद्ध नेग्रीटो लुप्त हो चुके हैं। अनुमानतः आरम्भ में उनके सिर की आकृति बहुत लम्बी रही होगी, जिसका घातांक 68 से 70 रहा होगा। वर्तमान में कुछ ही हजार नेग्रीटो जीवित हैं। उनमें अन्य प्रजातियों के रक्त का पर्याप्त मिश्रण हो गया है। इस प्रजाति के लोग श्रीलंका, मलेशिया, फिलीपीन्स, इण्डोनेशिया, लूजोन और न्यूगिनी के पर्वतीय वन प्रदेशों में पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त अफ्रीका के कांगो बेसिन, कैमरून व फ्रांसीसी विषुवत्रेखीय भागों तथा अण्डमान द्वीप समूहों में भी यह प्रजाति मिश्रित रूप में पायी जाती है। तस्मानिया व जावा द्वीपों में भी एक शताब्दी पहले ये रहते थे।

2. नीग्रो (Negro) – यह लम्बे सिर वाली प्रजाति है जिसका कपाले घातांक 70-72 होता है। इनके बाल ऊनी (Woolly) घंघराले होते हैं। बालों की ऊर्ध्वकाट 50 होती है। त्वचा का वर्ण काजल के समान काला होता है। नाक चौड़ी व चपटी होती है। इनका जबड़ा बाहर की ओर निकला हुआ तथा होंठ मोटे होते हैं। यह प्रजाति पुरानी दुनिया के दो दूरस्थ छोरों पर निवास करती है। अफ्रीका में सूडान व पश्चिमी अफ्रीका तंट तथा न्यूगिनी के पापुआ प्रदेश इनके प्रमुख निवास स्थान हैं। मानवशास्त्रियों के विचार में प्रागैतिहासिक काल में यह प्रजाति दक्षिणी यूरोप व दक्षिणी एशिया में भी निवास करती थी। ग्रिमाल्डी नामकं प्राचीन मानव नीग्रोइड ही था।

3. ऑस्ट्रेलॉयड (Australoid) – इस प्रजाति का सिर लम्बा, बाल ऊन के समान एवं धुंघराले होते हैं। इनकी त्वचा का रंग चमकदार काले से लेकर चॉकलेटी तक होता है। इनके जबड़े कुछ आगे की ओर निकले होते हैं तथा नाक मध्यम चौड़ाई की होती है। ये लोग पूरे ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप में निवास करते थे, जबकि यह महाद्वीप ब्रिटिश उपनिवेश नहीं था। भारत के मध्य और दक्षिणी भागों में ऑस्ट्रेलॉयड जाति का निवास अधिक है। प्रागैतिहासिक काल में ये लोग उत्तरी अमेरिका, पूर्वी एशिया और दक्षिणी यूरोप में भी बसे हुए थे। न्यू-मैक्सिको में भी इनके प्रमाण मिलते हैं।

4. मेडिटरेनियन (Mediterranean) – ये लम्बे सिर वाले होते हैं। इनकी नाक अण्डाकार, बाल धुंघराले तथा जबड़े आगे को निकले होते हैं। इनके चेहरे की बनावट हड्डीदार होती है। इनमें आइबीरियन, सैमाइट्स को भी सम्मिलित किया जाता है। मेडिटरेनियन प्रजाति छ: बसे हुए महाद्वीपों के बाह्य सिरों पर पायी जाती है। इस प्रजाति में ऐसे लोग शामिल हैं जैसे यूरोप में पुर्तगाली, अफ्रीका में मिस्री, ऑस्ट्रेलिया में माइक्रोनेशियन, उत्तरी अमेरिका में इरोक्वाइस और दक्षिणी अमेरिका में तूपी।

5. नॉर्डिक (Nordic) – नॉर्डिक मॅझले सिर, लहरदार बाल, चपटा चेहरा, नाक लम्बी तथा आगे से चोंच के समान मुड़ी हुई, त्वचा का रंग गुलाबीपन लिये हल्का भूरा तथा त्वचा में रक्त वर्ण की चमक होती है। उत्तरी यूरोप के लोगों की त्वचा श्वेत एवं गुलाबी-श्वेत होती है।
मानव इतिहास के प्रारम्भ में नॉर्डिक प्रजाति यूरोप, एशिया तथा उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका में रहती थी। यह प्रजाति न्यूजीलैण्ड तथा ऑस्ट्रेलिया के महासागरीय भागों में पोलिनेशियन क्षेत्र में भी निवास करती थी। अफ्रीका महाद्वीप को छोड़कर पूरे विश्व में यह प्रजाति पायी जाती है।

6. अल्पाइन (Alpine) – अल्पाइन प्रजाति का सिर चौड़ा, चेहरा एवं जबड़ा एक सीध में, नाक पतली तथा बाल सीधे होते हैं। त्वचा का रंग भूरे से श्वेत तक होता है। इसमें स्विस, स्लीव, आरमेनियन एवं अफगान लोग शामिल हैं। आरम्भ में इनका निवास यूरेशिया, उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका में था।

मंगोलियन (Mongolian) – इनका सिर गोल होता है। बाल सीधे एवं चपटे होते हैं। इनका जबड़ा भीतर की ओर धंसा हुआ तथा चेहरा अवतल होता है। इनकी नाक पतली, त्वचा का रंग पीले से खुबानी तक होता है। आरम्भ में इस प्रजाति के निवास क्षेत्र एशिया के मध्यवर्ती भाग थे। बाद में यह पश्चिम में तुर्किस्तान तथा पूर्व में महाद्वीपीय तट तक फैलती चली गयी तथा अल्पाइन, नॉर्डिक एवं मेडिटरेनियन प्रजातियाँ इसमें मिश्रित हो गयीं। चीन तथा उसके पड़ोसी देशों में इस प्रजाति का अधिक विकास हुआ।

प्रश्न 2
बुशमैन तथा बद्दू लोगों के निवास-क्षेत्र, अर्थव्यवस्था एवं समाज का विवरण प्रस्तुत कीजिए। या बुशमैन की जीवन-पद्धति एवं अर्थतन्त्र पर निवास-क्षेत्र के प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर

बुशमैन Bushman

निवास-क्षेत्र – बुशमैन दक्षिणी अफ्रीका के कालाहारी मरुस्थल में निवास करते हैं। यह प्रदेश एक उच्च पठारी प्रदेश है, जिसकी औसत ऊँचाई 1,500 मीटर है। इसके पूर्व में उच्च पर्वत-श्रेणियाँ स्थित हैं। इस प्रदेशका क्षेत्रफल लगभग 2 लाख वर्ग किमी है। कालाहारी मरुस्थल की उत्पत्ति बेचुआनालैण्ड से हुई है। कुछ शताब्दियों पूर्व बुशमैन एक विस्तृत क्षेत्रफल में निवास करते थे। बसूतोलैण्ड, नैटाल, दक्षिणी रोडेशिया, टैंगानिका तथा पूर्वी अफ्रीका की उच्च भूमि पर यह प्रजाति विस्तृत है। बाद में नीग्रो कृषक जातियाँ इनके क्षेत्रों पर अधिकार करती गयीं तथा यह आखेटक प्रजाति स्थानान्तरित होकर सिकुड़ते-सिकुड़ते केवल कालाहारी मरुस्थल में ही बस गयी। बटू नीग्रो, हाटेण्टाट तथा दक्षिणी अफ्रीका में जाकर बसने वाली यूरोप की गोरी जातियों के आक्रमण से बुर्शमैन लोगों की संख्या दिन-प्रतिदिन कम होती चली गयी। वर्तमान समय में यहाँ लगभग 10,000 बुशमैन निवास करते हैं, जो विभिन्न उपजातियों में विभाजित हैं।

दक्षिणी अफ्रीका के कालाहारी मरुस्थल के निवासी बुशमैन लोगों का निवास प्रदेश 18° दक्षिणी अक्षांश से 24° दक्षिणी अक्षांश तक विस्तृत है। बुशमैन कालाहारी मरुस्थल में भ्रमण करने वाली एक खानाबदोश प्रजाति है। हॉलैण्डवासियों ने 17वीं शताब्दी में इन लोगों को बुशमैन नाम से सम्बोधित किया था। ओकोवांगो नदी के क्षेत्रों, नगामी झील के दलदली क्षेत्रों, लिम्पोपो नदी तथा नोसोब नदी के क्षेत्रों में बुशमैन विरल रूप से विस्तृत हैं। इनका जीवन-निर्वाह पूर्ण रूप से आखेट पर निर्भर था। हॉलैण्ड के आक्रमणकारियों ने इनको निश्चित भू-भागों में बसने के लिए बाध्य किया।

अर्थव्यवस्था – 1. भोजन – बुशमैन लोगों की अर्थव्यवस्था आखेट पर निर्भर करती है। ये लोग चतुर शिकारी होते हैं। इनका मुख्य व्यवसाय पशु-पक्षियों को आखेट करना, मछली पकड़ना, जंगली कन्दमूल एवं फल एकत्र करना तथा शहद इकट्ठा करना है। इस प्रकार बिना आखेट इन लोगों का जीवित रहना बड़ा ही कठिन होता है। ये लोग शिकार करने वाले पशुओं को पहले घायल कर लेते हैं और . उनका पीछा कर उन्हें घेरकर मार डालते हैं। कुछ बुशमैन अपने द्वारा घायल किये गये जेबरा या जिराफ आदि जन्तुओं के पीछे 40-50 किमी तक पीछा करते चले जाते हैं। मरुस्थलीय क्षेत्रों में वनस्पति में प्राप्त होने वाली भोजन सामग्री कम होती है, इसी कारण ये लोग जन्तुओं पर निर्भर रहते हैं।

प्रत्येक परिवार अपने लिए भोजन एकत्रित करने का कार्य करता है। स्त्रियाँ एवं बच्चे जंगलों से कन्दमूल-फल, कीड़े-मकोड़े एकत्र करते हैं तथा छोटे जन्तुओं का आखेट करते हैं। इन छोटे जन्तुओं में मेंढक, कछुए, गिरगिट, छिपकली आदि प्रमुख हैं। पुरुष बड़े जन्तुओं का शिकार करते हैं। ये लोग जंगली जानवरों की बोली की नकल करने में बड़े दक्ष होते हैं। जन्तुओं को फन्दों में फंसाकर भी मारा जाता है। विषैले तीरों द्वारा भी शिकार किया जाता है। आखेट किये गये जंगली जानवरों को आपस में बाँट लिया जाता है।

बुशमैन सर्वभक्षी होते हैं। ये लोग मांस बड़ी मात्रा में खाते हैं। एक व्यक्ति एक बार में आधी भेड़ तक खा जाता है। इनका भोजन एवं उसके खाने का ढंग बड़ा ही गन्दा होता है। ये लोग भविष्य के लिए भोजन का संचय नहीं करते हैं। कभी-कभी शिकार न मिलने की स्थिति में भूखों भी रहना पड़ता है। शुष्क ऋतु में वन्य जन्तु अन्यत्र चरागाहों को चले जाते हैं; अत: भोजन की कमी हो जाती है।

2. वस्त्र – बुशमैन बहुत कम वस्त्रों का उपयोग करते हैं जो खाल से बने होते हैं। पुरुष एक तिकोना खाल को टुकड़ा (लँगोट) बाँधते हैं। स्त्रियाँ खाल के दो टुकड़े पहनती हैं, जो आगे-पीछे कमर से घुटनों तक लटके रहते हैं। इनके सिर नंगे रहते हैं। ये खाल या छाल से बने जूते पहनते हैं। ठण्ड से बचने के लिए स्त्री-पुरुष खाल से बना कम्बल ओढ़ते हैं। ये लोग शरीर पर चर्बी एवं मिट्टी का लेप लगाते हैं जो धूप एवं विषैले कीटों के काटने से इनके शरीर की रक्षा करता है। बीजों को डोरी में बाँधकर स्त्रियाँ आभूषण बनाकर पहनती हैं। शुतुरमुर्ग के अण्डों के छिलकों से भी आभूषण बनाये जाते हैं।

3. आवास – आखेटक एवं घुमक्कड़ होने के कारण बुशमैन स्थायी मकान बनाकर नहीं रह सकते। मौसम के प्रकोप से बचने के लिए ये लोग गुफाएँ, कन्दराएँ एवं झोंपड़ियाँ बनाकर रहते हैं। झोंपड़ियाँ लकड़ी एवं खरपतवार से बनाई जाती हैं। इन झोंपड़ियों को घेरे के रूप में बनाया जाता है तथा बीच में आग जला दी जाती है जिससे गर्मी बनी रहे एवं जंगली जानवर भी दूरी पर रहें। बुशमैन के, छोटे-छोटे ग्रामों में 8-10 झोंपड़ियाँ बनी होती हैं जिनमें वे रात्रि में विश्राम करते हैं एवं दिन के समय धूप से अपने शरीर की रक्षा करते हैं।

4. अस्त्र-शस्त्र – बुशमैन के अस्त्र-शस्त्रों में तीर-कमान, फेंककर वार करने वाली लाठियाँ, चाकू, बर्छियाँ एवं भूमि खोदने की लकड़ी की कुदालें मुख्य हैं। कुछ बुशमैन लोहे का उपयोग भी करने । लगे हैं जिससे तीर एवं कुल्हाड़े का निर्माण किया जाता है।

सामाजिक व्यवस्था – बुशमैन आदिमकालीन अवस्था में निवास करते हैं, जिनकी सामाजिक, व्यवस्था बड़ी ही साधारण है। एक वर्ग में 20 व्यक्तियों से भी कम होते हैं। प्रत्येक परिवार अपना डेरा अलग लगाता है। ये लोग भूत-प्रेतों में विश्वास करते हैं। आखेट में सफलता प्राप्त करने के लिए जादू-टोने का सहारा लेते हैं।
ये लोग कंठिन परिश्रमी, उत्साही, तीव्र दृष्टि वाले तथा स्मृतिवान होते हैं। देवी-देवताओं तथा भूतप्रेतों में विश्वास करने वाले होते हैं। ईश्वर, स्वर्ग-नरक के विचारों से अनभिज्ञ हैं। कुछ स्थानों पर इनमें पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव भी दिखलाई पड़ता है। इन लोगों की जनसंख्या दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है। अत: सभ्य समाज को इस आदिम जनजाति की सुरक्षा करनी चाहिए।

बट्दू Baddus

निवास-क्षेत्र – अरब प्रायद्वीप बद्दू जनजाति के लोगों का निवास-क्षेत्र है। ये लोग खानाबदोशी होते हैं जो अरब के उत्तरी भाग में बसे हैं। यहाँ हमद एवं नेफद के मरुस्थल हैं। इन मरुस्थलों के निवासी खानाबदोश हैं, जो ऊँटों एवं भेड़-बकरियों के झुण्ड पालते हैं। हमद का क्षेत्र पथरीला मरुस्थल है। हमद एवं नेफद के उत्तरी भाग में स्टेप्स प्रकार की छोटी घास उगती है जो ग्रीष्म ऋतु में सूख जाती है। इस प्रदेश के निवासी ऊँट पालने का व्यवसाय करते हैं, जिन्हें बदू अथवा रूवाला नाम से जाना जाता है।

अर्थव्यवस्था – बद्द् लोग ऊँट एवं भेड़-बकरी पालते हैं, जो इनका प्रमुख व्यवसाय है। वर्ष के 9-10 माह ये लोग मरुस्थल के शुष्क चरागाहों के भीतरी भागों में रहते हैं। ग्रीष्मकाल के 2-3 माह ये लोग अपने पशुओं को लेकर बाहरी क्षेत्रों में स्थायी बस्तियों के समीप आ जाते हैं, जहाँ वे अपने पालतू ऊँटों, भेड़-बकरियों एवं घोड़ों के बदले खाद्यान्न, वस्त्र एवं शस्त्र ले लेते हैं।

1. भोजन – ऊँटनी का दूध इन लोगों का प्रिय भोजन है। इसे ताजा या खट्टा बनाकर पिया जाता है, परन्तु मक्खन एवं पनीर का उपयोग नहीं करते। ऊँट के बालों से रस्से, दरे, फर्श, बोरे आदि बनाते हैं। ऊँट की खाल से थैले एवं कुप्पे बनाये जाते हैं। सवारी ढोने वाला ऊँट एक दिन में 160 किमी तथा पूर्ण बोझे से लदा ऊँट 80 किमी की यात्रा पूर्ण कर लेता है। भेड़-बकरियाँ एवं घोड़े कम संख्या में पाले जाते हैं जिनमें से कुछ पशुओं को खाद्यान्न, वस्त्र एवं शस्त्रों के बदले में बेच दिया जाता है।

2. वस्त्र – बर्दू लोग लम्बे-चौड़े पाजामे पहनते हैं तथा सिर पर साफा बाँधते हैं। ऐसे वस्त्र पहनने का प्रमुख कारण मरुस्थलीय क्षेत्रों में प्रवाहित उष्ण वायु से अपने शरीर की रक्षा करना है। स्त्रियाँ भी पाजामा एवं कुर्ता पहनती हैं तथा इसके ऊपर काले रंग का बुर्का पहना जाता है। इनके वस्त्र बहुत ही ढीले होते हैं।

3. आवास – बद्दू लोग तम्बुओं में अपने आवास बनाते हैं। इनके तम्बू बकरी के बालों से बुनी। हुई पट्टियों से बनाये जाते हैं। एक ही स्थान पर कई तम्बुओं की संरचना कर ली जाती है जिसमें एक ही कुटुम्ब (कबीला) के लोगों का निवास होता है।
सामाजिक व्यवस्था – बद्दू लोग व्यापारी प्रवृत्ति के होते हैं; अतः सभ्य समाज से इनका सम्पर्क बना रहता है। भेड़-बकरी के बालों से बने बोरों में खाद्यान्न, छुआरे एवं नमक रखा जाता है। एक कबीले के लोग दूसरे कबीले के लोगों पर आक्रमण कर लूट-पाट कर लेते हैं। मेहमाननवाजी में ये लोग बड़े दक्ष होते हैं तथा मेहमानों की रक्षा भी करते हैं। ये लोग इस्लाम धर्म के अनुयायी हैं तथा अपने पीर-पैगम्बरों को मानते हैं। सभ्य समाज के सम्पर्क में आने के कारण बद्दू लोग आधुनिक सभ्यता से अछूते नहीं हैं। ये लोग धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
एस्किमो की जीवन-पद्धति एवं अर्थतन्त्र पर निवास-क्षेत्र के प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
एस्किमो की निवास-क्षेत्र–एस्किमो जनजाति टुण्ड्रा प्रदेश (ग्रीनलैण्ड, अलास्का तथा उत्तरी कनाडा के हिंभाच्छादित क्षेत्रों) में निवास करती है। इस उच्च अक्षीय क्षेत्र में 8-10 मास तक धरातल हिमाच्छादित रहता है तथा केवल 2-4 मास में अल्पकालीन ग्रीष्म ऋतु के दौरान हिम पिघलती है। ग्रीष्म ऋतु के दौरान धरातल पर मॉस, लाइकेन, रंग-बिरंगी घासें तथा फूल उगते हैं। वर्ष के शेष भाग में कोई भी वनस्पति नहीं उगती है। शीतकाल में बर्फीली आँधियाँ चलती हैं तथा तापमान हिमांक के नीचे रहता है। निवा-क्षेत्र की इन दशाओं का प्रभाव एस्किमो लोगों की जीवन-पद्धति तथा अर्थतन्त्र पर स्पष्ट दिखाई देता है।

अर्थतन्त्र – एस्किमो मूलतः आखेटक हैं। ये लोग टुण्ड्रा प्रदेश के वन्य जीवों, विशेषतः ध्रुवीय भालू, सील मछली आदि का शिकार करते हैं। शीतकाल में ये धरातलीय जीवों का शिकार करते हैं तथा ग्रीष्म काल में हिम पिघलने पर समुद्रों से मछली पकड़ने का कार्य करते हैं। आखेट के लिए ये लोग हापूंन नामक भाले का प्रयोग करते हैं तथा मछली के शिकार के लिए नावों का प्रयोग करते हैं।

जीवन-पद्धति – एस्किमो लोग मांसाहारी हैं। ये कच्चा मांस खाते हैं, क्योंकि यहाँ भोजन पकाने के साधन प्राप्त नहीं हैं। शिकार द्वारा उपलब्ध मांस या रेण्डियर पशु, जिन्हें ये पालते हैं, इनका प्रमुख आहार है। निवास क्षेत्र की कठोर जलवायवीय दशाओं के कारण ये समूर वाले पशुओं के समूह तथा खालों के वस्त्र पहनते हैं। ये अपने मकान हिमपिण्डों से बनाते हैं जिन्हें ‘इग्लू’ कहते हैं। ग्रीष्मकाल में ये तम्बुओं में रहते हैं। यातायात के साधनों के अभाव में ये बिना पहियों की स्लेज गाड़ी का प्रयोग करते हैं। जिसे रेण्डियर या कुत्ते खींचते हैं। शिकार के लिए ये लोग ‘उमियाक’ तथा ‘कायाक’ नावों का प्रयोग करते हैं।

इस प्रकार स्पष्ट है कि एस्किमो लोगों का जीवन तथा अर्थतन्त्र उनके निवास-क्षेत्र की भौगोलिक दशाओं से पूर्णत: नियन्त्रित होता है।

प्रश्न 2
हैडन के अनुसार विश्व में प्रजातियों के प्रकार बताइए।
उत्तर
1924 ई० में हैडन ने केश रचना को मुख्य आधार मानते हुए, त्वचा के वर्ण, शरीर के कद व सिर की आकृति आदि अन्य लक्षणों को भी सम्मिलित करते हुए अपनी पुस्तक ‘Races of Man’ में मानव प्रजाति का वर्गीकरण किया है। उनके अनुसार तीन मुख्य प्रजाति वर्ग निम्नलिखित हैं

1. छल्लेदार बालों वाली प्रजाति (ulotrichi or woolly haired) इस प्रजाति के बाल ऊन की भाँति छल्लेदार होते हैं जिनकी ऊर्ध्वकोट 40 से 50 होती है। इनकी त्वचा का वर्ण काला, कद नाटा व सिर लम्बा होता है। ये लक्षण नेग्रिटो व नीग्रो प्रजातियों में पाए जाते हैं। नेग्रिटो नाटे कद वाली तथा नीग्रो लम्बे कद वाली प्रजाति है। इस प्रजाति के लोग अफ्रीका में सूडान, कांगो बेसिन, युगांडा, टैंगानिका, दक्षिणी अफ्रीका, मैडागास्कर में तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया में न्यूगिनी, अण्डमान, फिलीपीन्स, मलाया व सुमात्रा में पाए जाते हैं।

2. लहरदार बालों वाली प्रजाति (cymotrichi or wavy haired) इस प्रजाति के बालों की ऊर्ध्वकाट 60-70 होती है तथा बाल लहरदार होते हैं। यह मध्यम कद, लम्बे सिर तथा श्वेत से लेकर श्याम वर्ण वाली प्रजाति है। त्वचा वर्ण के आधार पर इस प्रजाति के दो वर्ग किए जा सकते हैं।

  1. काले वर्ण की ऑस्ट्रेलॉयड प्रजाति जिसकी बालों की ऊर्ध्वकाट 60 होती है। यह लम्बे सिर वाली प्रजाति है। इनका कद मध्यम होता है। यह प्रजाति ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी भारत व ब्राजील में पायी जाती
    है। लंका के वेद्दा तथा मलेशिया व इण्डोनेशिया के निवासी भी इसी प्रजाति के लोग हैं।
  2. भूरे कत्थई व गोरे रंग की कॉकेशियन प्रजातियाँ (गहरे भूरे रंग की मेडिटरेनियन प्रजाति, भूरे रंग की अल्पाइन व गोरे रंग की नॉर्डिक प्रजाति) इस वर्ग में आती हैं। इनमें मेडिटरेनियन, नॉर्डिक व अफगान मॅझले सिर वाली तथा अल्पाइन चौड़े सिर वाली प्रजाति है। इस प्रजाति का वितरण उत्तरी-पश्चिमी यूरोप से लेकर दक्षिणी पूर्वी यूरोप, उत्तरी अफ्रीका, अरब, ईरान, आरमीनिया, अफगानिस्तान, उत्तरी भारत तक है। जापान के आइनू लोग भी इसी प्रजाति वर्ग के हैं।

3. सपाट बालों वाली प्रजाति (leotrichi or straight haired) – इस प्रजाति के बाल सीधे व सपाट होते हैं जिनकी ऊर्ध्वकाट 80 होती है। इनकी त्वचा का वर्ण पीला या कत्थई व कद मध्यम होता है। यह प्रजाति चौड़े सिर वाली है। इनमें मंगोल प्रजाति प्रधान है, जिसके अनेक उपवर्ग हैं-चीन, उत्तरी साइबेरिया, मंचूरिया, रूसी, तुर्किस्तान, मध्य एशिया, तिब्बत, सिक्यांग व मलाया में यह प्रजाति पाई जाती है।
उपर्युक्त तीन प्रमुख प्रजातियों के अतिरिक्त हैडन ने दोनों अमेरिका में पायी जाने वाली ‘अमेरिण्ड’ जाति का विशिष्ट वर्गीकरण भी प्रस्तुत किया है तथा इसके चार प्रमुख वर्ग बताए हैं –

  1. पैले अमेरिण्ड ब्राजील के पूर्वी पठार एवं लैगोस प्रदेश में निवास करने वाली यह प्रजाति इण्डो-अफगान व नैसियत जातियों के समान धुंघराले बालों वाली है।
  2. ऐस्किमो सपाट बालों वाली यह प्रजाति उत्तरी कनाडा के टुण्ड्रा व ग्रीनलैण्ड में निवास करती
  3. नार्दर्न अमेरिण्ड सपाट बाल तथा मंगोल व प्राचीन एशियाटिक प्रजातियों के समान लक्षणों वाली यह प्रजाति रॉकी तथा एण्डीज के पर्वतीय प्रदेश एवं अर्जेण्टाइना में निवास करती है।
  4. निओ-अमेरिण्ड तुर्क तथा मंगोल जाति के समान लक्षणों और सीधे व सपाट बालों वाली यह प्रजाति दक्षिणी चिली के तेहुएलची व उत्तरी-पश्चिमी तटीय प्रदेश की जाति वर्गों में पाई जाती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
विश्व की प्रमुख जनजातियों के नाम लिखिए। [2009]
या
किन्हीं दो मानव प्रजातियों के नाम लिखिए।
या
विश्व की किन्हीं चार जनजातियों का उल्लेख कीजिए। [2014]
उत्तर
विश्व की प्रमुख जनजातियाँ हैं-

  1. नेग्रीटो
  2. नीग्रो
  3. ऑस्ट्रेलॉयड
  4. मेडिटरेनियन
  5. नॉर्डिक
  6. अल्पाइन और
  7. मंगोलियन।

प्रश्न 2
मंगोलॉयड जाति के लोगों में कौन-से विशेष लक्षण पाये जाते हैं?
उत्तर
मंगोलॉयड जाति के लोगों के नेत्र तिरछे होते हैं। इनके गालों की हड्डियाँ उभरी हुईं, नाक चपटी तथा मस्तक सपाट होता है।

प्रश्न 3
भारत में ऑस्ट्रेलॉयड प्रजाति का निवास कहाँ पर है?
उत्तर
भारत के मध्य और दक्षिणी भागों में ऑस्ट्रेलॉयड प्रजाति का निवास अधिक है।

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प्रश्न 4
मंगोलियन प्रजाति का निवास एशिया में कहाँ अधिक है?
उत्तर
चीन तथा इसके पड़ोसी देशों में मंगोलियन प्रजाति का निवास अधिक है।

प्रश्न 5
बुशमैन कहाँ निवास करते हैं तथा इनकी अर्थव्यवस्था किस पर निर्भर करती है?
उत्तर
बुशमैन दक्षिणी अफ्रीका के कालाहारी मरुस्थल में निवास करते हैं। इनकी अर्थव्यवस्था आखेट पर निर्भर करती है।

प्रश्न 6
बद्दू जनजाति के लोग कहाँ निवास करते हैं तथा ये लम्बे-चौड़े पाजामे क्यों पहनते हैं?
उत्तर
अरब प्रायद्वीप बद्दू जनजाति के लोगों का निवास-क्षेत्र है। इनके लम्बे-चौडे पाजामे पहनने का प्रमुख कारण मरुस्थलीय क्षेत्रों में प्रवाहित उष्ण वायु से अपने शरीर की रक्षा करना है।

प्रश्न 7
गर्म मरुस्थल की दो जनजातियों के नामों का उल्लेख कीजिए। (2007)
उत्तर

  1. बुशमैन, तथा
  2. बद्।

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1
विश्व की किस जनजाति के लोग बर्फ के घर बनाते हैं?
(क) बर्दू
(ख) खिरगीज
(ग) एस्किमो
(घ) बुशमैन
उत्तर
(ग) एस्किमो।

प्रश्न 2
विश्व की जनजाति जो भ्रमणशील पशुचारण द्वारा जीवनयापन करती है –
(क) एस्किमो
(ख) बर्दू
(ग) बुशमैन
(घ) पिग्मी
उत्तर
(ख) बद्।

प्रश्न 3
निम्नलिखित में से किस प्रजाति से चीन के लोग सम्बन्धित हैं?
(क) नेग्रिटो
(ख) निग्रायड
(ग) मंगोलॉयड
(घ) काकेसाइड
उत्तर
(ग) मंगोलॉयड।

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प्रश्न 4
बुशमैन का निवास-क्षेत्र है – [2011, 13, 16]
(क) अमेजन बेसिन
(ख) अरब प्रायद्वीप
(ग) कालाहारी
(घ) कांगो बेसिन
उत्तर
(ग) कालाहारी।

प्रश्न 5
निम्नलिखित में से किस प्रजाति के बाल ऊन जैसे होते हैं?
(क) ऑस्ट्रेलॉयड
(ख) मंगोलॉयड
(ग) नीग्रोयड
(घ) नेग्रिटो
उत्तर
(घ) नेग्रिटो।

प्रश्न 6
हैडन ने मानव प्रजातियों का वर्गीकरण किस आधार पर किया है?
(क) नाक की बनावट
(ख) बालों की विशेषता
(ग) त्वचा का रंग
(घ) कद
उत्तर
(ख) बालों की विशेषता।

प्रश्न 7
टेलर के प्रजाति वर्गीकरण का प्रमुख आधार क्या है?
(क) त्वचा का रंग
(ख) कद
(ग) नाक की बनावट
(घ) कपाल घातांक एवं बालों की रचना
उत्तर
(घ) कपाल घातांक एवं बालों की रचना।

प्रश्न 8
निम्नलिखित में से किस प्रजाति की त्वचा का रंग पीला होता है?
(क) ऑस्ट्रेलॉयड
(ख) मंगोलॉयड
(ग) मेडिटरेनियन
(घ) काकेसॉयड
उत्तर
(ख) मंगोलॉयड।

प्रश्न 9
प्रजाति का प्रवास कटिबन्ध सिद्धान्त किसने प्रस्तुत किया था?
(क) टेलर
(ख) हैडन
(ग) हक्सले
(घ) क्रोबर
उत्तर
(क) टेलर।

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