UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 3 Man and His Environment

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Geography
Chapter Chapter 3
Chapter Name Man and His Environment (मानव एवं उसका पर्यावरण)
Number of Questions Solved 19
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 3 Man and His Environment (मानव एवं उसका पर्यावरण)

विस्तृत उतरीय प्रश्न

प्रश्न 1
पर्यावरण से क्या अभिप्राय है? पर्यावरण के तत्त्वों पर प्रकाश डालिए। [2007]
या
प्राकृतिक पर्यावरण के तत्त्वों का वर्णन कीजिए। [2007]
या
भौतिक पर्यावरण के चार क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए। [2009] पर्यावरण के दो प्रमुख संघटकों का उल्लेख कीजिए। (2010, 13, 14, 15, 16)
या
पर्यावरण के प्रमुख तत्त्वों की विवेचना कीजिए तथा मानव के क्रियाकलापों पर उनके प्रभावों की व्याख्या कीजिए। (2014)
उत्तर

पर्यावरण का अर्थ Meaning of Environment

पर्यावरण भूगोल का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। पर्यावरण’ भूतल पर चारों ओर का वह आवरण है जो मानव को प्रत्येक ओर से घेरे हुए है और उसके जीवन तथा क्रियाकलापों पर प्रभाव डालता है तथा संचालित करता है। इस दशा में मानव से सम्बन्धित समस्त बाह्य तथ्य, वस्तुएँ, स्थितियाँ तथा दशाएँ शामिल होती हैं, जिनकी क्रिया-प्रतिक्रियाएँ मानव के जीवन-विकास को प्रभावित करती हैं। प्राकृतिक पर्यावरण द्वारा मानव के सभी । क्रियाकलाप निर्धारित होते हैं। ये प्राकृतिक परिस्थितियाँ–धरातलीय बनावट, जलवायु, वनस्पति, मिट्टी, खनिज-सम्पदा तथा जैविक तत्त्व-किसी-न-किसी प्रकार मानव को प्रभावित करते हैं; अर्थात् मानव इस प्राकृतिक पर्यावरण की देन है। पर्यावरण के सम्बन्ध में सभी भूगोलवेत्ता एकमत नहीं हैं। अत: पर्यावरण को समझने के लिए निम्नांकित विद्वानों द्वारा दी गयी परिभाषाओं का अध्ययन एवं विश्लेषण करना आवश्यक होगा –

जर्मन वैज्ञानिक फिटिंग ने पर्यावरण को परिभाषित करते हुए कहा है कि, “जीव के परिस्थिति कारकों का योग पर्यावरण है; अर्थात् जीवन की परिस्थिति के समस्त तथ्य मिलकर पर्यावरण कहलाते हैं।”
ए० जी० तांसले के अनुसार, “प्रभावकारी दशाओं का वह सम्पूर्ण योग जिसमें जीव निवास करते हैं, पर्यावरण कहलाता है।”
एम० जे० हर्सकोविट्ज के अनुसार, “पर्यावरण उन समस्त बाह्य दशाओं और प्रभावों का योग है। जो प्राणी के जीवन एवं विकास पर प्रभाव डालते हैं।”
प्रो० डेविस के अनुसार, “मानव के सम्बन्ध में भौगोलिक पर्यावरण से अभिप्राय भूमि अथवा मानव के चारों ओर फैले उन भौतिक स्वरूपों से है, जिनमें वह निवास करता है, जिनका उसकी आदतों और क्रियाओं पर प्रभाव पड़ता है।”

पर्यावरण के प्रकार एवं तत्त्व
Elements and Types of Environment

पर्यावरण को निम्नलिखित दो मुख्य भागों में बाँटा जा सकता है –
1. भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण (Physicalor Natural Environment) – इसके अन्तर्गत वे समस्त भौतिक शक्तियाँ, तत्त्व एवं क्रियाएँ सम्मिलित की जा सकती हैं जिनको प्रत्यक्ष प्रभाव मानव के क्रियाकलापों पर पड़ता है। भौतिक शक्तियों में पृथ्वी की गतियाँ, सूर्यातप, गुरुत्वाकर्षण बल, भूकम्प एवं ज्वालामुखी क्रिया, भू-पटल की गतियाँ तथा प्राकृतिक तथ्यों से सम्बन्धित सभी दृश्य सम्मिलित किये जाते हैं। इन शक्तियों द्वारा भू-तल पर अनेक क्रियाओं का जन्म होता है, जिनसे पर्यावरण के तत्त्वों का जन्म होता है। इन शक्तियों अथवा क्रियाओं और तत्त्वों का सम्मिलित प्रभाव मानव के क्रियाकलापों पर पड़ता है।

भौतिक क्रियाओं में भूमि का अपक्षय, अपरदन, निक्षेपण, ताप विकिरण, संचालन, संवाहन, वायु एवं जल की गतियाँ, जीवधारियों की उत्पत्ति तथा उनका विकास एवं विनाश आदि क्रियाएँ सम्मिलित हैं। इन प्रक्रियाओं से प्राकृतिक वातावरण अपनी अनेक क्रियाओं का क्रियान्वयन करता है, जिनका प्रत्यक्ष । प्रभाव मानव के क्रियाकलापों पर पड़ता है।
भौतिक पर्यावरण के तत्त्व – इनकी उत्पत्ति एवं विकास धरातल पर विभिन्न शक्तियों और प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप होता है। भौतिक पर्यावरण के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं –

  1. भौगोलिक स्थिति
  2. महासागर और तट
  3. नदियाँ और झीलें
  4. मिट्टियाँ, खनिज पदार्थ
  5. उच्चावच
  6. भूमिगत जल
  7. देशों का आकार एवं विस्तार
  8. जलवायु (तापमान, वर्षा, आर्द्रता आदि)
  9. प्राकृतिक वनस्पति तथा
  10. जैविक तत्त्व।

उपर्युक्त सभी तत्वों द्वारा प्राकृतिक पर्यावरण का निर्माण होता है। इन सभी का सम्मिलित एवं व्यापक प्रभाव मानव-जीवन पर अवश्य ही पड़ता है। ये सभी तत्त्व मानव के लिए महत्त्वपूर्ण नि:शुल्क प्राकृतिक उपहार हैं। प्रो० हरबर्टसन के अनुसार, “भौतिक शक्तियों को मानव पर इतना अधिक प्रभाव पड़ता है कि वे मानव-जीवन एवं उसके क्रियाकलापों में स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं।”

2. सांस्कृतिक या मानव-निर्मित पर्यावरण (Cultural or Man-made Environment) – प्राकृतिक पर्यावरण को मनुष्य ज्ञान-विज्ञान एवं तकनीकी विकास द्वारा परिवर्तित कर उन्हें अपने अनुरूप ढालने का प्रयास करता है; क्योकि वह (मानव) एक सजीव तथा क्रियाशील इकाई है। भूमि को जोतकर कृषि करना, उसमें नहरें, रेलपथ एवं सड़कें बनाना, वनों को साफ करना, पर्वतों को काटकर सुरंगें बनाना, नवीन बस्तियाँ बसाना, विभिन्न इमारतों का निर्माण करना, भू-गर्भ से खनिज पदार्थों का शोषण करना, उद्योग-धन्धे स्थापित करना आदि मानवीय क्रियाओं के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। इस प्रकार मानव एक केन्द्रीय कारक है। मानव-निर्मित इस प्रकार के पर्यावरण को सांस्कृतिक या प्राविधिक पर्यावरण के नाम से पुकारा जाता है।

मानव-निर्मित वातावरण में भी विभिन्न शक्तियाँ, तत्त्व एवं प्रक्रियाएँ क्रियाशील रहती हैं। सांस्कृतिक वातावरण की शक्तियों में क्षेत्र-विशेष के जनसमूह के विभिन्न पहलुओं; जैसे-जनसंख्या, वितरण, लिंग, स्वास्थ्य, शिक्षा, तकनीकी आदि को सम्मिलित किया जाता है। सांस्कृतिक प्रक्रियाओं के अन्तर्गत पोषण, समूहीकरण, पुन: उत्पादन, प्रभुत्व स्थापन, प्रवास, पृथक्करण, अनुकूलन, समाचौर्जन, विशेषकरण तथा अनुक्रमण आदि सम्मिलित किये जाते हैं।
साँस्कृतिक वातावरण के तत्त्व – सांस्कृतिक वातावरण के तत्त्व मानव एवं उसके समूह दोनों की प्रभावित करते हैं। ये तत्त्व निम्नलिखित हैं –

  1. प्राथमिक या अनिवार्य आवश्यकताएँ – भोजन, वस्त्र एवं आवास।
  2. आर्थिक व्यवसाय के प्रतिरूप – प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक व्यवसाय; जैसे-खाद्यान्न संग्रहण, आखेट करना, मछली पकड़ना, निर्माण उद्योग, परिवहन, वाणिज्य एवं व्यापार विभिन्न सेवाएँ आदि।
  3. तकनीकी प्रतिरूप – यन्त्र, उपकरण, यातायात एवं संचार के साधन।
  4. सामाजिक आवश्यकताएँ – शिक्षा, भाषा, धर्म, दर्शन, कला एवं साहित्य।
  5. सामाजिक संगठन – समुदाय, प्रबन्ध, सहकारिता, घर-परिवार, सामाजिक प्रथाएँ, लोक-रीतियाँ आदि।
  6. राजनीतिक संगठन – राज्य, सरकार, सम्पत्ति, कानून, शक्तियाँ, जनमत एवं अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध आदि।

प्राकृतिक पर्यावरण का मानव के क्रियाकलापों से सम्बन्ध
Relation between Natural Environment and Human Activities

प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक दोनों ही वातावरणों का सामूहिक प्रभाव मानव के क्रियाकलापों पर पड़ता है। इसके अन्तर्गत समय तत्त्व भी महत्त्वपूर्ण है। मानव भूगोल में दोनों ही प्रकार के वातावरण का विशेष महत्त्व है। वातावरण के सभी प्राकृतिक तत्त्व, सांस्कृतिक तत्त्वों से जुड़े हुए हैं। कुमारी सेम्पुल के शब्दों में, “मानव पृथ्वी के धरातल की उपज है। सभी जड़ एवं चेतन पदार्थों में भौगोलिक वातावरण का प्रभाव अन्तिम है।” प्रो० वायने सांस्कृतिक पर्यावरण को मानव-क्रियाओं और भौतिक पर्यावरण के पारस्परिक सम्बन्धों की अभिव्यक्ति मानते हैं। उनके अनुसार, “मानवीय क्रियाएँ जो विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सम्पन्न की जाती हैं, भौतिक वातावरण से सामंजस्य स्थापित करती हैं। इनके फलस्वरूप भौतिक पर्यावरण परिवर्तित होता है और सांस्कृतिक पर्यावरण का विकास होता है। मनुष्य स्वयं भी इस पर्यावरण का अभिन्न अंग बन जाता है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि मानव भूगोल के अध्ययन के लिए पर्यावरण के दोनों अंगों अर्थात् प्राकृतिकसांस्कृतिक पर्यावरण का प्रारम्भिक ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है।
[ मानव के क्रियाकलापों पर प्रभाव – इसके लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 2 का उत्तर देखें।

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 3 Man and His Environment

प्रश्न 2
उदाहरण देकर मानव की आर्थिक क्रियाओं पर प्राकृतिक पर्यावरण के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
या
उदाहरण देते हुए मानवीय क्रियाकलापों पर भौतिक वातावरण के प्रभाव को समझाइए।
या
मैदानों को सभ्यता का पालना” क्यों कहा जाता है ?
उत्तर
मानव भूगोल में उन प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक तथ्यों का अध्ययन किया जाता है जिनका प्रत्यक्ष सम्बन्ध मानव और उसके जीवन के क्रियाकलापों से होता है। ये तथ्य पर्यावरण से सम्बन्धित होते हैं। पर्यावरण के दो भेद हैं-

  1. प्राकृतिक पर्यावरण एवं
  2. सांस्कृतिक पर्यावरण।

प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरण के तत्त्व एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं तथा उनका सम्मिलित प्रभाव मानवीय जीवन एवं उसके कार्यों पर पड़ता है। यह भौगोलिक पर्यावरण ही होता है जो मानव के क्रियाकलापों एवं उसकी आदतों को निर्धारित करता है। इस सम्बन्ध में रैटजेल ने कहा है कि पर्यावरण एवं मानव के पारस्परिक सम्बन्धों में पर्यावरण अधिक शक्तिशाली है, यहाँ तक कि संसार के विभिन्न प्रदेशों में मनुष्यों के रहन-सहन, आर्थिक, औद्योगिक, सामाजिक एवं संस्कृति को वातावरण की ही देन माना गया है। कुमारी सेम्पुल ने इनके साथ-साथ मानने के विचारों, भावनाओं एवं धार्मिक विश्वासों पर भी प्राकृतिक़ पर्यावरण का प्रभाव बताया है। कार्ल रिट्र का मत था कि पृथ्वी और उसके निवासियों में परस्पर गहनतम सम्बन्ध होता है तथा एक के बिना दूसरे का वर्णन नहीं हो सकता। इस प्रकार-इस विचारधारा के समर्थकों को वातावरण निश्चयवाद‘ के प्रतिपादक के रूप में जाना जाता है। इस आधार पर प्राकृतिक पर्यावरण का प्रभाव मानव पर अनेक रूपों में पड़ता है, जिसे निम्नलिखित रूपों में समझा जा सकता है –

1. भौगोलिक स्थिति एवं मानव – पृथ्वीतल पर भिन्न-भिन्न क्षेत्रों और स्थानों की स्थिति की विभिन्नता देखी जाती है तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के पर्यावरण का प्रभाव मानव-जीवन पर भी भिन्न-भिन्न होता है। भौगोलिक स्थिति का प्रभाव उस प्रदेश के निवासियों के रूप, रंग, आकृति, भोजन, वस्त्र, आवास, रहन-सहन और रीति-रिवाजों पर स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। यही कारण है कि द्वीपीय स्थिति मानव-निवास के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है, क्योंकि यहाँ पर सम जलवायु एवं बन्दरगाहों द्वारा व्यापार की सुविधाएँ रहती हैं। इन्हीं कारणों से जापान एवं ब्रिटेन ने अपनी द्वीपीय स्थिति का लाभ उठाया है तथा उनके निवासी प्रगति के चरम बिन्दु पर पहुँचे हैं। महाद्वीपीय स्थिति किसी प्रदेश के आर्थिक विकास में बाधक होती है। यही कारण है कि मंगोलिया एवं अफगानिस्तान सदृश देश आर्थिक प्रगति में अभी भी बहुत पीछे हैं। व्यापारिक मार्गों एवं उन्नत संसाधन-प्रदेशों के निकट स्थित देश भी विकास की गति में आगे रहते हैं। सिंगापुर एवं कोरिया इसके महत्त्वपूर्ण उदाहरण हैं। इस प्रकार उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि भौगोलिक स्थिति का मानव पर्यावरण पर अत्यन्त गहरा प्रभाव पड़ता है। तथा यह उसके आर्थिक विकास में सहायक होती है।

2. जलवायु एवं मानव – प्राकृतिक पर्यावरण का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व जलवायु है। मानवीय जीवन को प्रभावित करने और दिशा निर्धारित करने में जलवायु सबसे शक्तिशाली कारक है। मानव के लिए भोजन, वस्त्र, मकानों की आकृति तथा कृषि-फसलों को जलवायु ही निर्धारित करती है। पृथ्वीतल पर मानव का निवास जलवायु द्वारा निश्चित होता है। मानसूनी, उपोष्ण कटिबन्धीय तथा सम-शीतोष्ण जलवायु प्रदेशों में विश्व की 98% जनसंख्या निवास करती है। इसके विपरीत शीत-प्रधान टुण्ड्रा, उष्ण मरुस्थलों तथा आर्कटिक एवं हिमाच्छादित प्रदेशों के अस्थायी निवासों में विरल जनसंख्या निवास करती है। जलवायु द्वारा मानव-जीवन के निम्नलिखित पक्ष प्रभावित होते हैं –

  1. मानव का स्वास्थ्य एवं किसी प्रदेश में रह सकने की क्षमता तथा मानवीय भौतिक शक्ति
  2. मानव की खाद्य पूर्ति और पेयजल की उपलब्धि
  3. वस्त्र एवं उनके प्रकार
  4. मकान व उनके निर्माण की सामग्री तथा उनकी आकृति
  5. मानवीय क्रियाकलाप अर्थात् व्यवसाय तथा
  6. मानवीय संस्कृति।

जलवायु द्वारा ही मानव के व्यवसाय एवं कृषि-फसलें निर्धारित होती हैं। उदाहरण के लिए, भारतवर्ष में 100 सेमी से अधिक वर्षा वाले भागों में चावल एवं गन्ने का उत्पादन किया जाता है, जब कि 50 से 100 सेमी वर्षा वाले भागों में मिश्रित खाद्यान्न फसलें निर्धारित हुई हैं। अनुकूल जलवायु के कारण ही भूमध्यसागरीय प्रदेशों में गेहूं व फलों आदि की कृषि की जाती है। कठोर एवं विषम जलवायु के कारण विषुवतेरेखीय प्रदेशों में प्राकृतिक संसाधनों का बाहुल्य है, परन्तु औद्योगिक पिछड़ापन पाया जाता है।

उष्ण कटिबन्धीय एवं उपोष्ण कटिबन्धीय जलवायु प्रदेशों में सूती वस्त्र पहने जाते हैं, परन्तु शीत-प्रधान देशों में वर्ष-भर ऊनी या समूर के वस्त्र पहने जाते हैं। अधिक वर्षा वाले भागों में मकानों की छतें ढलवाँ बनाई जाती हैं, जिससे वर्षा का जल नीचे को बह जाए। हिम प्रदेशों में मकानों की छतें चौरस बनाई जाती हैं। टुण्ड्रा प्रदेशों के निवासी अपने मकानों के दरवाजे बहुत छोटे बनाते हैं जिससे उनमें बर्फीली वायु प्रवेश न कर सके। इसीलिए हंटिंगटन ने जलवायु को ही मानव संस्कृति का कारक और द्योतक बताया है।

3. स्थलाकृतियाँ एवं मानव – धरातल पर स्थलाकृतियाँ, पहाड़ी, पठारी, मरुस्थलीय तथा मैदानी प्रतिरूपों में मिलती हैं। मानव-आवास के लिए सर्वोत्तम क्षेत्र मैदान हैं। यहाँ पर जीविका चलाने के लिए कृषि, सिंचाई, पशुपालन, निर्माण उद्योग, परिवहन, संचार आदि सभी सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। अतः जनसंख्या तथा मानव-आवासों के लिए मैदान सबसे अधिक उपयुक्त होते हैं।

मैदानों की अपेक्षा पठारी भूमि पर कृषि एवं आवासों की सुविधाएँ कम होती हैं। पठारी व पहाड़ी क्षेत्रों में ऊँची-नीची भूमि से मानवीय जीवन में बाधा पड़ती है तथा आर्थिक विकास की गति भी धीमी रहती है। परिवहन साधनों के अभाव के कारण वृहत् उद्योगों का अभाव होता है। मानव जीवन-निर्वाह कृषि, पशुचारण एवं फलों की कृषि पर निर्भर करता है। पर्वतों का मानव को सबसे बड़ा लाभ हिम क्षेत्रों द्वारा नदियों को प्राप्त होने वाली जल की मात्रा है। संत्त वाहिनी नदियों के ऊपर जल-विद्युत शक्ति का उत्पादन किया जाता है। इसी कारण जापान, स्विट्जरलैण्ड, नॉर्वे, स्वीडन आदि देशों में उद्योग-धन्धों का पर्याप्त विकास हुआ है। मैदानों में मानवीय आवास तथा आर्थिक विकास के निम्नलिखित कारण हैं –

  1. कृषि के लिए समतल एवं उपजाऊ भूमि
  2. सिंचाई के लिए नहरें तथा कुओं आदि की सुविधा
  3. कृर्षि-कार्यो के लिए उपजाऊ भूमि की प्राप्ति
  4. परिवहन के लिए सड़क एवं रेलमार्गों के निर्माण की सुविधा तथा
  5. उद्योग, वाणिज्य एवं व्यापार की बड़े पैमाने पर प्राप्त सुविधाएँ।

उपर्युक्त कारणों से ही विश्व की 97 प्रतिशत जनसंख्या मैदानों में निवास करती है। चीन, भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, पश्चिमी यूरोपीय देश, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि देशों में अधिकांश जनसंख्या मैदानों में निवास करती है तथा ये मैदान’जनसंख्या का पालना’ (Cradle of Mankind) कहे जाते हैं। विश्व की प्राचीन सभ्यताओं का विकास भी इन्हीं मैदानों में हुआ है।

4. मिट्टियाँ और मानव – विश्व के सभी प्राणियों का भोजन प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से मिट्टी पर निर्भर करता है। शाकाहारी मानव को भोजन कृषि उत्पादन से प्राप्त होता है, जबकि मांसाहारी लोगों को भोजन पशुओं से प्राप्त होता है। इस प्रकार मानव के साथ-साथ पशुओं के भोज्य पदार्थों में भी मिट्टी को होथ रहता है। कांप एवं लावा मिट्टियों की उत्पादकता के कारण इनमें अधिक मानव आवास मिलते हैं; जैसे-सतलुज-गंगा का मैदान, यांगटिसीक्यांग का मैदान, डेन्यूब, राइन, डॉन, वोल्गा नदियों की घाटियों तथा मिसीसिपी के बेसिन में।
पर्वतीय मिट्टियों की अपेक्षा मैदानों की मिट्टियाँ अधिक उपजाऊ होती हैं, क्योंकि मैदानी मिट्टियाँ अधिक बारीक होती हैं तथा उनकी परतें भी अधिक गहरी होती हैं एवं उनमें पोषक तत्त्व भी अधिक होते हैं। इसके विपरीत पर्वतीय मिट्टियों में अपरदन के कारण पोषक तत्त्व बह जाते हैं तथा उत्पादकता की कमी के कारण कम मानव निवास करते हैं।

5. प्राकृतिक वनस्पति एवं मानव – प्राकृतिक वनस्पति जलवायु की देन होती है। प्रत्येक प्रकार की वनस्पति का मानव-जीवन पर अपना अलग-अलग प्रभाव होता है। वनों में निवास करने वाले लोगों को लकड़ी पर्याप्त मात्रा में मिल जाती है; अत: उनके मकानों में लकड़ी का प्रयोग अधिक होता है। पेड़-पौधों द्वारा वायु-प्रदूषण कम होता है तथा मानव को पर्याप्त प्राणदायिनी ऑक्सीजन प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त इनसे बाढ़, जलवृष्टि, अपरदन तथा मरुस्थलों के प्रसार जैसी समस्याओं पर नियन्त्रण पाया जा सकता है एवं वे आर्थिक विकास में सहायक होते हैं। वन नमीयुक्त पवनों के मार्ग में बाधा उपस्थित कर वर्षा कराने में सहायक होते हैं। ये कृषि-कार्यों में भी सहायक हैं एवं पशुओं को चार उपलब्ध कराते हैं। इनसे उद्योग-धन्धों को कच्चा माल प्राप्त होता है। विषुवत्रेखीय प्रदेशों में वन ही आजीविका के महत्त्वपूर्ण साधन हैं। घास के मैदानों में पशुपालन का कार्य अधिक किया जाता है। इसीलिए प्रेयरी, स्टेप्स, पम्पाज आदि घास के मैदानों में कृषि के बड़े-बड़े फार्म हैं। इस प्रकार प्राकृतिक वनस्पति किसी-न-किसी रूप में मानव को प्रभावित करती है।

6. जन्तु-जगत् एवं मानव-मानव पशु – जगत् की सहायता से अपने पर्यावरण के साथ समायोजन में लगा रहता है। वास्तव में मानव और जन्तु एक-दूसरे को सहायता एवं सहयोग देकर, दूसरे का सहयोग प्राप्त कर सह-जीवन द्वारा अपने सहअस्तित्व की स्थापना करते हैं। पशुओं से मानव को दूध, मांस, खाल, ऊन, समूर, सवारी तथा सुरक्षा प्राप्त होती है। खिरगीज लोगों की अर्थव्यवस्था का आधार पशु ही हैं। डेनमार्क में दुधारू पशु पाले जाने के कारण यह विश्व का महत्त्वपूर्ण दुग्ध उत्पादक, देश बन गया है। ऑस्ट्रेलिया में उत्तम नस्ल की भेड़े पाले जाने के कारण वह विश्व का मुख्य ऊन उत्पादक देश बन गया है। पश्चिमी यूरोपीय तट व मध्य-पूर्वी प्रशान्त सागरीय तटे मछली के अक्षय भण्डार होने के कारण जनसंख्या को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। मरुस्थलों में ऊँट परिवहन का एकमात्र साधन है तथा ‘रेगिस्तान का जहाज‘ कहलाता है, परन्तु यहाँ पर कम जनसंख्या निवास करती : है। पर्वतीय एवं उच्च पठारी क्षेत्रों में याक नामक पशु बोझा एवं सवारी ढोने के काम आता है। एस्किमो प्रजाति अपने आर्थिक विकास के लिए पूर्णत: पशुओं पर आधारित है।

बहुत-से पशु एवं छोटे जीव मानव के लिए हानिकारक भी होते हैं। वन्य पशुओं में शेर, चीता, भालू आदि हिंसक होते हैं, जबकि रेंगकर चलने वाले जीवों में सर्प आदि प्राणघातक होते हैं। उड़ने वाले जन्तुओं में टिड्डी सबसे अधिक हानिकारक है। इस प्रकार जीव-जन्तु प्रकृति के सन्तुलन को बनाये रखने में सहायक होते हैं।

7. शैल एवं खनिज पदार्थ तथा मानव – मानव सभ्यता का विकास खनिजों द्वारा हुआ है। पाषाण युग से लेकर अणु युग तक मानव ने विकास की अनेक सीढ़ियाँ पार की हैं। कुछ खनिज पदार्थ शक्ति के स्रोत होते हैं; जैसे- कोयला एवं पेट्रोलियम। इनसे कारखाने चलाये जाते हैं। यूरेनियम, थोरियम आदि खनिज़ों से परमाणु शक्ति गृहों का संचालन किया जाता है।

वर्तमान काल में खनिज पदार्थ किसी राष्ट्र की शक्ति का पर्याय माने जाते हैं। जिस देश के पास जितने अधिक कोयला, पेट्रोल, यूरेनियम, लोहा, ताँबा, जस्ता, ऐलुमिनियम आदि खनिजों के भण्डार होते हैं, वह देश उतना ही अधिक शक्तिशाली एवं विकसित माना जाता है। ब्रिटेन ने उन्नीसवीं शताब्दी में लोहे एवं कोयले के बल पर ही औद्योगिक क्रान्ति का श्रीगणेश किया था। खनिज पदार्थों की समाप्ति पर आर्थिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। कुछ खनिज पदार्थ मानव समुदाय के लिए घातक होते हैं। इनमें अणु एवं परमाणु खनिजों का प्रमुख स्थान है। द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका द्वारा किये गये अणु बम प्रहार से जापान के हिरोशिमा एवं नागासाकी नगरों का विनाश हो गया था तथा बहुत-से लोग। काल-कवलित हो गये थे। इस प्रकार के अणु एवं परमाणु युद्ध विश्व शान्ति के लिए एक स्थायी खतरा बन गये हैं, परन्तु फिर भी खनिज उत्पादक क्षेत्र विषम परिस्थितियों को रखते हुए भी जनसंख्या के संकेन्द्रण बने हुए हैं।

8. महासागर एवं मानव – पृथ्वीतल के भाग पर जलमण्डल (सागर एवं महासागर) का विस्तार है। महासागर और उसका तट मानव-जीवन के लिए बड़े महत्त्वपूर्ण हैं। इनके प्रभाव निम्नलिखित हैं-

  1. जलवायु में परिवर्तन एवं उसका समकारी प्रभाव
  2. मानव के भोज्य पदार्थों की उपलब्धि
  3. खनिज संसाधनों की प्राप्ति
  4. औद्योगिक प्रोत्साहन
  5. यात्रा एवं व्यापारिक मार्गों की सुविधा
  6. शक्ति संसाधनों की प्राप्ति
  7. सभ्यता का विकास तथा
  8. स्वास्थ्य-मनोरंजन के केन्द्र।

सागरों एवं महासागरों में प्रवाहित गर्म एवं ठण्डे जल की धाराएँ किसी स्थान अथवा प्रदेश की जलवायु में परिवर्तन ला देती हैं। महासागरे मत्स्य उत्पादन के अक्षय भण्डार हैं; जैसे- ग्रान्ड बैंक्स (Grand Banks) एवं डॉगर बैंक्स। इनमें नमक, पोटाश, मैग्नीशियम, मोती, मूंगा, सीप आदि बहुमूल्य खनिज पदार्थ प्राप्त होते हैं। स्वेज एवं पनामा नहर मार्गों ने विश्व को एक-दूसरे के समीप ला दिया है। महासागरीय ज्वार-भाटे से जल-विद्युत शक्ति का उत्पादन भी किया जाता है। बहुत-से समुद्र तटवर्ती नगर एवं पत्तन पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित हुए हैं। इस प्रकार महासागर मानव के लिए बहुत उपयोगी हैं एवं उनकी भावी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के महत्त्वपूर्ण स्रोत बन सकने की सामर्थ्य रखते हैं।

इस प्रकार स्पष्ट है कि प्राकृतिक पर्यावरण मानवीय क्रियाकलापों को बहुत अधिक प्रभावित करता है तथा पर्यावरण में उसकी केन्द्रीय भूमिका है, क्योंकि प्राकृतिक पर्यावरण के तत्त्वों का मानव वर्ग द्वारा ही उपभोग किया जाता है अथवा उपयोगिता प्राप्त की जाती है।

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प्रश्न 3
“मानव ने प्राकृतिक भू-दृश्य में परिवर्तन कर सांस्कृतिक भू-दृश्य का निर्माण किया है।” तर्क एवं उदाहरणों सहित अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।
या
“मानव एवं प्राकृतिक पर्यावरण एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं।” उपयुक्त उदाहरणों की सहायता से इस कथन की पुष्टि कीजिए।
या
मानव और पर्यावरण के सम्बन्ध की विवेचना कीजिए। [2011, 14, 15, 16]
उत्तर
भौगोलिक पर्यावरण के दो महत्त्वपूर्ण अंग हैं- प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक। दोनों ही प्रकार के वातावरणों का प्रभाव मानवीय जीवन एवं उनके क्रियाकलापों पर पड़ता है, परन्तु मानव अपने बुद्धि-बल के प्रयास से इन दोनों ही पर्यावरणों में कुछ परिवर्तन करता है, जिससे वह अपनी सत्ता बनाये रख सके एवं उन्नति के मार्ग पर बढ़ता रहे। प्राकृतिक पर्यावरण मानव को अनेक रूपों में प्रभावित करता है तथा आर्थिक एवं सामाजिक क्रियाओं का समन्वय करता है।
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सांस्कृतिक पर्यावरण मानव द्वारा निर्मित भू-दृश्य होता है। इसके द्वारा मानव अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति विभिन्न प्रकार के पर्यावरण में रहता हुआ पूरी करता है। प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरण के तत्त्व मानव के भोजन, वस्त्र, आवास, व्यवसाय एवं सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यों पर व्यापक रूप से अपना प्रभाव डालते हैं। इसी प्रभाव के कारण वह अपने रहन-सहन का अनुकूलन करती है। इन क्रियाओं को ‘पर्यावरण समायोजन’ कहते हैं। इसे निम्नलिखित रूपों में प्रस्तुत किया जा सकता है –
अनुकूलन से तात्पर्य मानव को स्वयं पर्यावरण के अनुकूल बनाने का प्रयास है। इसे स्वयं द्वारा किया हुआ परिवर्तन भी कह सकते हैं। अनुकूलन में मानव दो प्रकार की क्रियाएँ करता है-

  1. आन्तरिक एवं
  2. बाह्य। आन्तरिक अनुकूलन भी दो प्रकार का होता है –
    1. ऐच्छिक एवं
    2. अनैच्छिक या प्राकृतिक रूपान्तरण भी दो प्रकार का होता है –
      • प्राकृतिक पर्यावरण का रूपान्तरण एवं
      • सांस्कृतिक पर्यावरण का रूपान्तरण।

यदि यूरोप के किसी देश; जैसे नार्वे, स्वीडन या ब्रिटेन का कोई मानव समुदाय भारत में आकर दक्षिण तमिलनाडु राज्य में निवास करने लगता है तो तमिलनाडु राज्य की जलवायु उसे अपने देश की जलवायु की अपेक्षा बहुत गर्म लगती है तथा ग्रीष्म काल में सूर्यातप भी अधिक असहनीय हो जाता है। इसीलिए गर्मी से बचने के लिए वह यूरोपियन समुदाय कुछ कृत्रिम साधनों; जैसे वातानुकूलित कमरों एवं रेफ्रीजरेटर तथा कूलर का प्रयोग करता है। धूप से बचाव के लिए ऊनी कपड़ों के स्थान पर सूती कपड़े, छाते आदि का प्रयोग करने लगता है; अर्थात् अपने को प्राकृतिक पर्यावरण के अनुसार ढाल लेता है तथा तदनुसार अपना अनुकूलन कर लेता है।

एक यूरोपियन परिवार ने दक्षिणी भारत में आने के बाद अपने आपको पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए तमिल भाषा के कुछ शब्द सीखे हैं। नमस्कार की विधि तथा खान-पान की नयी प्रणालियाँ सीखने के साथ-साथ कुछ भोज्य-पदार्थों में अपनी रुचि जाग्रत की है। यह कार्य उनका ऐच्छिक अथवा आन्तरिक अनुकूलन है, परन्तु उस यूरोपियन परिवार के कई पीढ़ियों तक निवास करते-करते उसकी सन्तान की त्वचा में श्याम वर्ण के कण बनने लगेंगे तथा सूर्यातप को सहन करने में भी समर्थ होने लगेंगे। इस प्रकार यह क्रिया उन लोगों का अनैच्छिक आन्तरिक अनुकूलन या प्राकृतिक अनुकूलन कहलाएगी। उन्होंने तमिल समाज में अपना मेल-जोल बैठाने के लिए भारतीय वेशभूषा के कुछ अंश भी अपना लिये हैं, यह उनका बाह्य अनुकूलन है। जलवायु की विषमता से बचने के लिए उन्होंने वातानुकूलित मकान, कूलर, रेफ्रीजरेटर एवं छातों का प्रयोग किया है। यह कार्य प्राकृतिक पर्यावरण को रूपान्तरण कहलाएगा।

इस प्रकार मानव ने अपने ज्ञान, विज्ञान, तकनीकी तथा नवीन प्रविधियों द्वारा पर्यावरण में परिवर्तन के प्रयास किये हैं तथा उसे अपने अनुकूल ढाला है; अत: मानव द्वारा प्राकृतिक पर्यावरण को अपने अनुकूल ढालने की प्रक्रिया समायोज़न कहलाती है। मानव अब निराशावादी नहीं है, वह अपनी परिस्थितियों का दास मात्र भी नहीं है। जॉर्ज टैथम ने भी कहा है कि पर्यावरण.मानव को निःसन्देह प्रभावित करता है, परन्तु प्रतिक्रिया-स्वरूप वह भी अपने पर्यावरण को प्रभावित करता है। मानव द्वारा चन्द्रतल पर पदार्पण, बड़ी-बड़ी नदियों पर बाँध बनाकर जल-प्रवाह को व्यवस्थित करना, साइबेरिया के उत्तर में स्थित टुण्ड्रा प्रदेशों में समूर फार्मों की स्थापना तथा आर्कटिक प्रदेशों में काँच के घरों का निर्माण कर सब्जियों का उत्पादन करना आदि सभी कार्य प्राकृतिक पर्यावरण को अपने अनुकूल बनाने का ही प्रयास है।

इस प्रकार प्राकृतिक पर्यावरण की सीमा में किसी प्रदेश का मानव-वर्ग अपनी आवश्यकताओं, क्षमताओं और छाँट के अनुसार, पर्यावरण के साथ समायोजन कर, उन प्रदेशों का क्षेत्र संगठन करता है। मानव प्राकृतिक पर्यावरण का प्रयोग कर सांस्कृतिक पर्यावरण का निर्माण करता है। सांस्कृतिक पर्यावरण के तत्त्व भी प्रभावशाली होते हैं; उनका प्रभाव प्राकृतिक तत्त्वों पर तो होता ही है। इसके साथ-साथ वे एक-दूसरे को भी प्रभावित करते हैं। अत: पर्यावरण एवं मानवीय क्रियाएँ एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं तथा संगठित एवं मिश्रित रूप में ही उनको अध्ययन किया जाना चाहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
मानव प्राकृतिक पर्यावरण पर विजय प्राप्त कर चुका है।” आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
उत्तर
वैज्ञानिक एवं तकनीकी ज्ञान तथा प्रविधियों द्वारा मानव ने प्राकृतिक पर्यावरण पर विजय प्राप्त करने का प्रयास किया है। उसने ऊँचे-ऊँचे पर्वतों को पार कर लिया है, नदियों के प्रवाह मार्ग को अपनी इच्छानुसार मोड़ लिया है। वह अन्तरिक्ष में गया है तथा अनेक नवीन नक्षत्रों की खोज की है। जो अभी उससे अछूते हैं, उन्हें खोजने का प्रयास अभी जारी है। भौगोलिक पर्यावरण मानवे पर अपना व्यापक प्रभाव डालता है। उसे जहाँ पर भी परिवर्तन की सम्भावनाएँ दिखलाई पड़ती हैं, वह अपनी आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर लेता है, परन्तु पर्यावरण का प्रत्यक्ष प्रभाव मानव के क्रियाकलापों पर पड़ता है। अतः मानव सबसे उत्तम भौगोलिक कारक है, वह उसका उपयोग अपने ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर करता है। इस सम्बन्ध में बोमैन ने भी कहा है कि “वातावरण के भौगोलिक तत्त्व मानव का सम्पर्क पाकर परिवर्तनशील हो जाते हैं।’

यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है कि मानव ने प्राकृतिक पर्यावरण पर पूर्ण रूप से विजय प्राप्त नहीं की है। उस पर पूर्ण रूप से विजय प्राप्त करना सम्भव नहीं है। उदाहरण के लिए, ध्रुवीय शीत प्रदेशों में चावल का उत्पादन तथा विषुवत्रेखीय प्रदेशों में रेण्डियर का पालना आज भी असम्भव है, परन्तु उन्होंने अनुकूलन द्वारा कुछ प्रायोगिक प्रयास किये हैं। उसे अनुकूलता के लिए कुछ समय प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है तथा परिस्थितियाँ अनुकूल होते ही वह इन तत्त्वों को अपने पक्ष में कर लेगा। कुमारी सेम्पुल ने कहा है, “मानव प्रकृति पर विजय उसकी आज्ञा मानकर ही प्राप्त कर सकता है। मानव अपनी बुद्धि एवं शक्ति का प्रयोग करता है, क्योंकि पर्यावरण उसे उन्नति का अवसर प्रदान करता है। अत: मानव तथा पर्यावरण का सम्बन्ध बहुत ही घनिष्ठ है।”

प्रश्न 2
पर्यावरण से क्या तात्पर्य है? [2014]
उत्तर
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 के अन्तर्गत ‘पर्यावरण का अर्थ’ शीर्षक देखें।

प्रश्न 3
“मानव और जन्तु एक-दूसरे के पूरक है” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 2 के अन्तर्गत शीर्षक (6) देखें।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
भौतिक अथवा प्राकृतिक पर्मवरण से का तात्पर्य है?
या
भौतिक पर्यावरण को परिभाषित कीजिए। (2012, 13, 16)
उत्तर
प्राकृतिक पर्यावरण से तात्पर्य उन समस्त भौतिक शक्तियों (सूर्यातप, पृथ्वी की गतियाँ, गुरुत्वाकर्षण, ज्वालामुखी आदि), प्रक्रियाओं (भूमि अपक्षय अवसादीकरण, विकिरण, चालन, संवहन, वायु-जल की गति, जीवन-मरण विकास आदि) से है; जिनका प्रत्यक्ष प्रभाव मानव-जीवन पर पड़ता है।

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प्रश्न 2
द्वीपीय स्थिलि मानव-विकास के लिए कैसी मानी गयी है?
उत्तर
द्वीपीय स्थिति मानव-विकास के लिए सर्वोत्तम मानी गयी है, क्योंकि यहाँ पर सम जलवायु एवं बन्दरगाहों पर व्यापार की व्यापक सुविधाएँ रहती हैं। उदाहरणार्थ- जापान एवं ब्रिटेन।

प्रश्न 3
कौन-सी सिट्टियाँ अधिक उपजाऊ हैं-पर्वतीय मिट्टियाँ या मैदानी मिट्टियाँ?
उत्तर
मैदानी मिट्टियाँ अधिक उपजाऊ हैं, क्योंकि ये अधिक बारीक होती हैं तथा इनकी परतें भी अधिक गहरी होती हैं। इनमें पोषक तत्त्व भी अधिक पाये जाते हैं।

प्रश्न 4
प्राकृतिक वनस्पति किसकी देन है?
उत्तर
प्राकृतिक वनस्पति जलवायु की देन है।

प्रश्न 5
वर्तमान काल में किसी राष्ट्र की शक्ति का पर्याय किसे माना जाता है?
उत्तर
वर्तमान काल में जो देश अपनी खनिज सम्पदा का जितना अधिक दोहन कर रहा है वह शक्तिशाली होता जा रहा है। अत: किसी राष्ट्र की शक्ति का पर्याय उस राष्ट्र की खनिज सम्पदा है।

प्रश्न 6
पर्यावरण के दो प्रकार बताइए। [2009]
उत्तर
पर्यावरण के दो प्रकार निम्नवत् हैं –

  1. भौतिक या प्राकृतिक पर्यावरण तथा
  2. सांस्कृतिक या मानवनिर्मित पर्यावरण।

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1
“पर्यावरण उन समस्त बाह्य दशाओं और प्रभावों का योग है जो प्राणी के जीवन एवं विकास पर प्रभाव डालते हैं। पर्यावरण की यह परिभाषा दी है –
(क) प्रो० डेविस ने
(ख) जर्मन वैज्ञानिक फिटिंग ने
(ग) ए०जी० तांसले ने
(घ) एमजे० हर्सकोविट्ज ने
उत्तर
(घ) एम०जे० हर्सकोविट्ज ने।

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प्रश्न 2
पर्वतों का मानव को सबसे बड़ा लाभ है-
(क) प्राकृतिक वनस्पति की प्राप्ति
(ख) प्राकृतिक पर्यावरण की प्राप्ति
(ग) हिम क्षेत्रों द्वारा नदियों को प्राप्त होने वाले जल की मात्रा
(घ) (क) एवं (ख) दोनों की प्राप्ति
उत्तर
(ग) हिम क्षेत्रों द्वारा नदियों को प्राप्त होने वाले जल की मात्रा।

प्रश्न 3
वर्तमान काल में किसी राष्ट्र की शक्ति का पर्याय माना जाता है –
(क) उस राष्ट्र की सैनिक क्षमता
(ख) उस राष्ट्र का कृषि उत्पादन
(ग) उस राष्ट्र की जनसंख्या
(घ) उस राष्ट्र की खनिज सम्पदा
उत्तर
(घ) उस राष्ट्र की खनिज सम्पदा।

प्रश्न 4
निम्नांकित में कौन भौतिक पर्यावरण का तत्त्व नहीं है ?
(क) भूमि के रूप
(ख) मिट्टियाँ
(ग) खनिज पदार्थ
(घ) अधिवास
उत्तर
(घ) अधिवास।

प्रश्न 5
निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा कथन असत्य है। [2016]
(क) पर्यावरण की कार्यप्रणाली प्राकृतिक नियमों से संचालित होती है।
(ख) पर्यावरण जैविक संसाधनों का भण्डार है।
(ग) पर्यावरणीय व्यवस्था में स्वयं संवर्द्धन की क्षमता है।
(घ) पर्यावरणीय तत्त्वों में पार्थिव एकता विद्यमान है।
उत्तर
(ख) पर्यावरण जैविक संसाधनों का भण्डार है।

प्रश्न 6
पर्यावरण ज्ञान के लिए प्रयुक्त होने वाले पारिस्थितिकी शब्द का अंग्रेजी पर्याय ‘इकोलॉजी सर्वप्रथम किस जर्मन जैव वैज्ञानिक ने प्रस्तावित किया था? [2016]
(क) ओडम
(ख) अर्नस्ट हैकल
(ग) डेविस
(घ) हरबर्टसन
उत्तर
(ख) अर्नस्ट हैकल

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प्रश्न 7
“मानव पृथ्वी के धरातल की उपज है।” यह कथन निम्नलिखित में से किस विद्वान का है। [2016]
(क) डिमाजियाँ
(ख) रेटजैल
(ग) हेटनर
(घ) कुमारी सेम्पुल
उत्तर
(घ) कुमारी सेम्पुल।

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