UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 13 Primary Occupation: Agriculture

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Geography
Chapter Chapter 13
Chapter Name Primary Occupation: Agriculture (प्राथमिक व्यवसाय : कृषि)
Number of Questions Solved 18
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Geography Chapter 13 Primary Occupation: Agriculture (प्राथमिक व्यवसाय : कृषि)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
कृषि के वर्गीकरण के आधार बताइए तथा उनमें से किसी एक प्रकार के वर्गीकरण का वर्णन कीजिए।
या
कृषि के मुख्य प्रकारों का विवरण दीजिए। इनमें से किन्हीं दो प्रकारों की विशेषताएँ समझाइए।
या
ट्रक फार्मिंग (फलों एवं सब्जियों की कृषि) की विशेषताओं की विवेचना कीजिए। [2008]
उत्तर

कृषि का वर्गीकरण या प्रकार
Types or Classification of Agriculture

विश्व के प्रायः सभी देशों में कृषि व्यवसाय प्रचलित है, किन्तु कृषि के स्वरूप, पद्धति तथा प्रकार में बहुत भिन्नता दृष्टिगोचर होती है। वास्तव में किसी भी क्षेत्र की कृषि पर वहाँ की भौतिक तथा सांस्कृतिक दशाओं का प्रभाव पड़ता है। कृषि पर धरातलीय रचना, जलवायु, मिट्टी, भू-स्वामित्व, भूमि के आकार, कृषि विधियों आदि का प्रभाव भी पड़ता है। कुछ देशों में केवल खाद्यान्न उगाये जाते हैं। कुछ क्षेत्रों में पशुपालन की प्रधानता होती है। अन्य देशों में कृषि तथा पशुपालन दोनों ही विकसित होते हैं। वास्तव में, कृषि के वर्गीकरण के अनेक आधार हैं –

(A) जल की उपलब्धता के आधार पर Based on Availability of Water
(1) तर कृषि (Wet Cultivation) – इस प्रकार की कृषि प्रायः कांप मिट्टियों के उन प्रदेशों में की जाती है जहाँ वर्षा 200 सेमी से अधिक होती है। भारत में दक्षिणी बंगाल, मध्य और पूर्वी हिमालय प्रदेश व मालाबार तट में इस प्रकार की कृषि की जाती है। उत्तरी-पश्चिमी यूरोप के देशों फ्रांस, ग्रेट ब्रिटेन, नीदरलैण्ड आदि देशों में इस प्रकार की कृषि की जाती है। उत्तरी-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, इण्डोनेशिया, श्रीलंका व मलेशिया आदि देशों में इस प्रकार की कृषि की जाती है।

(2) आर्द्र कृषि (Humid Farming) – इसके अन्तर्गत विश्व की कृषि योग्य भूमि का सर्वाधिक भाग वह आता है जहाँ वर्षा 100 से 200 सेमी होती है तथा उपजाऊ काँप अथवा काली मिट्टी पायी जाती है। इस प्रकार की कृषि यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका व एशिया के विस्तृत भागों में की जाती है।

(3) सिंचित कृषि (Irrigation Farming) – इस प्रकार की कृषि विश्व के मानसूनी अथवा अर्द्ध- शुष्क प्रदेशों में की जाती है। जहाँ वर्षा की मात्रा और समय अनिश्चित होता है, वर्षा कम अथवा मौसम विशेष में ही वर्षा होती है, ऐसे क्षेत्रों में वर्षा की कमी की पूर्ति सिंचाई के द्वारा की जाती है। इस प्रकार की कृषि भारत, मध्य एशिया, मिस्र, इराक, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका की कैलीफोर्निया की महान घाटी, ऑस्ट्रेलिया और मैक्सिको में की जाती है। सिंचाई के द्वारा कपास, गेहूं, चावल, गन्ना आदि फसलें उत्पन्न की जाती हैं।

(4) शुष्क कृषि (Dry Farming) – विश्व के उन प्रदेशों में जहाँ वर्षा 50 सेमी से भी कम होती है। तथा सिंचाई के लिए पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध नहीं होता, वहाँ शुष्क कृषि की जाती है। इस प्रकार की कृषि के अन्तर्गत भूमि की गहरी जुताई कर दी जाती है जिससे वर्षा का जल जो भी गिरे उसमें समा जाए और इसी जल के आधार पर कृषि की फसल उत्पन्न की जाती है। इस प्रकार की कृषि में मोटा अनाज, राई, चारी तथा गेहूं उत्पन्न किये जाते हैं। इस प्रकार की कृषि के मुख्य क्षेत्र संयुक्त राज्य अमेरिका, ग्रेट बेसिन, कोलम्बिया की घाटी, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, पश्चिमी एशिया और भारत के पश्चिमी राज्य हैं।

(B) भूमि की उपलब्धता के आधार पर Based on Availability of Land
(1) गहन अथवा सघन कृषि (Intensive Cultivation) – जिन देशों में जनसंख्या घनी होती है, किन्तु कृषि के लिए भूमि कम उपलब्ध होती है अथवा भूमि का अभाव होता है, वहाँ इस प्रकार की कृषि की जाती है। एक ही भूमि पर कई फसलें उत्पन्न की जाती हैं। उत्तम बीजों व खाद आदि का अधिकतम उपयोग कर अधिक मात्रा में उपज प्राप्त की जाती है। इस प्रकार की कृषि चीन, भारत, इराक, ईरान, ब्रिटेन, नीदरलैण्ड, बेल्जियम देशों में की जाती है।

(2) विस्तृत कृषि (Extensive Farming) – इस तकनीक के अन्तर्गत नयी दुनिया एवं ऑस्ट्रेलिया में विशाल खेतों पर पूर्णतः यन्त्रीकृत खेती की जाती है। यहाँ के खेत हजारों हेक्टेयर में फैले होते हैं।

(C) श्रमिकों की उपलब्धता, पूँजी-व्यवस्था तथा भूमि के प्रकार के आधार पर Based on Availability of Labour, Capital and Types of Land
(1) प्राचीन भरण-पोषण वाली कृषि अथवा जीवन निर्वाहक कृषि – यह कृषि उष्णाई कटिबन्धीय प्रदेशों में की जाती है। अमेजन नदी की घाटी, सहारा के दक्षिण, मध्य, पश्चिमी एवं पूर्वी अफ्रीकी देशों, दक्षिण-पूर्वी एशिया के भारत, चीन आदि देशों में इस प्रकार की कृषि की जाती है। इस कृषि के निम्नलिखित दो रूप पाये जाते हैं –
(अ) स्थानान्तरण कृषि (Shifting Agriculture) या झूमिंग कृषि (Jhuming Agriculture)।
(ब) स्थायी कृषि (Permanent Agriculture)।

( अ ) स्थानान्तरण कृषि – इस कृषि के अन्तर्गत कृषक अपने आवास एवं कृषि-क्षेत्र परिवर्तित करते रहते हैं। इसके बहुत से नाम प्रचलित हैं; जैसे- भारत में झूम कृषि; मलेशिया एवं इण्डोनेशिया में लदाँग; श्रीलंका में चेना; जायरे में मिल्पा आदि। इस कृषि की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं –

  1. सर्वप्रथम वनों के किसी भाग को काटकर या जलाकर साफ कर लिया जाता है तथा इस पर कृषि की जाती है। परन्तु जब इस मिट्टी की उर्वरा शक्ति समाप्त हो जाती है, तो दो-तीन वर्ष बाद इस भूमि को परती छोड़कर नये स्थान पर वनों को साफ कर कृषि की जाती है तथा कुछ वर्षों बाद इस क्षेत्र को भी छोड़ दिया जाता है तथा नये स्थान पर कृषि की जाने लगती है।
  2. इस प्रकार की कृषि में मोटे अनाज; जैसे- मक्का, ज्वार-बाजरा, जिमीकन्द एवं रतालू उत्पन्न किये जाते हैं।
  3. इसके अन्तर्गत कृषि खाद्यान्न का उत्पादन कम किया जाता है।
  4. इस कृषि पद्धति में यन्त्रों एवं उपकरणों की आवश्यकता नहीं पड़ती, केवल परम्परागत छोटे-छोटे उपकरण ही काम में लाये जाते हैं।

भारत में यह कृषि असम, नागालैण्ड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश के जनजातीय क्षेत्र, पश्चिमी घाट तथा राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी भाग में की जाती है। अधिकांशत: यह कृषि आदिवासियों द्वारा की जाती है।

(ब) स्थायी कृषि – इस प्रकार की कृषि प्रमुख रूप से उष्णाई प्रदेशों की निम्न भूमियों में, अर्द्ध उष्ण और शीतोष्ण कटिबन्धीय पठारों पर तथा उष्ण कटिबन्धीय पहाड़ी भागों में की जाती है। इसकी अनेक विशेषताएँ भी स्थानान्तरण कृषि के समान ही होती हैं, परन्तु इसमें कृषि का स्थान नहीं बदलता है। स्थानान्तरण कृषि पद्धति से ही इसका विकास हुआ है। जिन क्षेत्रों में कृषि के लिए अनुकूल भौगोलिक परिस्थितियाँ पायी जाती हैं, वहाँ स्थानान्तरण कृषि स्थायी कृषि में परिवर्तित हो गयी है।

(2) बागाती कृषि – बहुत-से देशों में कृषि उत्पादन बागानों के रूप में किया जाता है। इनमें बड़ी-बड़ी कृषि उपजे बागानों में उत्पन्न की जाती हैं। उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों की यह महत्त्वपूर्ण कृषि पद्धति है। इसके अग्रलिखित तीन प्रमुख क्षेत्र हैं –

  1. दक्षिण अमेरिका
  2. अफ्रीका तथा
  3. दक्षिणी एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया।

बागाती कृषि में निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं –

  1. यह कृषि फार्मों अथवा बागानों में की जाती है। अधिकांश बागानों पर विदेशी कम्पनियों का आधिपत्य रहा है।
  2. इसके अन्तर्गत विशिष्ट उपजों का ही उत्पादन किया जाता है; जैसे- केला, रबड़, कहवा, चाय, कोको आदि।
  3. इन कृषि के उत्पादों का उपयोग समशीतोष्ण कटिबन्धीय देशों के निवासियों द्वारा किया जाता है।
  4. बागानों में ही कार्यालय, माल तैयार करने, सुखाने तथा श्रमिकों के निवास आदि होते हैं।
  5. यहाँ पर अधिकांश तकनीकी एवं वैज्ञानिक पद्धतियाँ समशीतोष्ण देशों से आयात की गयी हैं।
  6. प्रारम्भ में यूरोपवासियों द्वारा प्रायः सभी महाद्वीपों में इस कृषि को आरम्भ किया गया था। मलेशिया में रबड़ के बागान अंग्रेजों ने, ब्राजील में कॉफी के बागान पुर्तगालियों ने तथा मध्य अमेरिकी देशों में केले की कृषि स्पेनवासियों ने आरम्भ की थी।
  7. इनके उत्पादों का उपभोग समशीतोष्ण कटिबन्धीय देशों द्वारा किया जाता है। इसलिए इनके अधिकांश उत्पाद निर्यात कर दिये जाते हैं। इसी कारण इनके बागान तटीय क्षेत्रों अथवा पत्तनों के पृष्ठ प्रदेश में स्थापित किये जाते हैं।

(3) गहन भरण-पोषण कृषि – यह कृषि उन देशों में विकसित हुई है जहाँ उपजाऊ भूमि की कमी तथा जनाधिक्य पाया जाता है। अधिकांशत: मानसूनी देशों में यह कृषि की जाती है। इस प्रकार की कृषि की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं –

  1. इस कृषि में खाद्यान्नों का महत्त्व अधिक होता है।
  2. इस प्रकार की कृषि पद्धति में कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी किया जाता है, परन्तु पशुपालन का स्थान गौण होता है।
  3. इस प्रकार की कृषि में मानवीय एवं पशु श्रम का महत्त्व अधिक होता है, जबकि पूँजी एवं मशीनों का महत्त्व कम होता है।
  4. इस प्रकार की कृषि में फसल-चक्र की गहनता रहती है।
  5. ऐसी कृषि पद्धति में जोतों का आकार छोटा होता है जिस कारण यन्त्रों एवं उपकरणों का प्रयोग करना कठिन होता है।
  6. कृषकों की दशा दयनीय होती है तथा उत्पादों को स्थानीय केन्द्रों में विक्रय कर दिया जाता है। गहन भरण-पोषण कृषि को दो भागों में बाँटा जा सकता है –
    1. चावल-प्रधान कृषि तथा
    2. गेहूँ-प्रधान कृषि।

(4) भूमध्यसागरीय कृषि – इस प्रकार की कृषि का विस्तार भूमध्यसागरीय जलवायु प्रदेशों में हुआ है। यहाँ पर शीतकाल में वर्षा होती है तथा ग्रीष्मकाल शुष्क रहता है। यह इस जलवायु की सबसे बड़ी विशेषता है। इसी कारण यहाँ निम्नलिखित दो प्रकार की फसलें उत्पन्न होती हैं

  1. शीतकाल की फसलें – शीतकाल में वर्षा के कारण यहाँ गेहूँ, आलू, प्याज, टमाटर तथा सेम की फसलें उत्पन्न की जाती हैं।
  2. ग्रीष्मकाल की फसलें – ग्रीष्मकाल में यह प्रदेश शुष्क रहता है। इसी कारण यहाँ ऐसी फसलें उत्पन्न की जाती हैं, जिन्हें वर्षा की कम आवश्यकता होती है। अंगूर, जैतून, अंजीर, चीकू, सेब, नाशपाती तथा सब्जियाँ ग्रीष्मकाल की प्रमुख फसलें हैं। दक्षिणी स्पेन, फ्रांस, इटली, ग्रीक, पश्चिमी तुर्की, संयुक्त राज्य अमेरिका में कैलीफोर्निया राज्य आदि इस कृषि के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं।

(5) व्यापारिक अन्नोत्पादक कृषि – व्यापार के उद्देश्य से कम जनसंख्या वाले देशों में यह कृषि की जाती है। रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, अर्जेण्टाइना, ऑस्ट्रेलिया आदि देश इसी कृषि के अन्तर्गत सम्मिलित किये जा सकते हैं। गेहूँ, जौ, जई, राई, कपास, चुकन्दर आदि यहाँ की मुख्य फसलें हैं। इस कृषि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. इस कृषि में मशीनी उपकरणों का महत्त्व अधिक है।
  2. यहाँ पर कृषि जोतें बड़े आकार की होती हैं।
  3. ऐसी कृषि में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग अधिक किया जाता है।
  4. गेहूँ इस कृषि की प्रमुख उपज है।
  5. यहाँ एक ही फसल में विशेषीकरण पाया जाता है।
  6. यहाँ प्रति हेक्टेयर उत्पादन अधिक होता है।
  7. इस कृषि-क्षेत्र में एकाकी बस्तियाँ पायी जाती हैं, जिन्हें ‘फार्म स्टड’ कहा जाता है।
  8. इस प्रकार की कृषि मशीनों द्वारा की जा रही है।

(6) मिश्रित कृषि या व्यापारिक कृषि – मिश्रित कृषि के अन्तर्गत कृषि कार्यों के साथ-साथ पशुपालन व्यवसाय भी किया जाता है। यहाँ पर कुछ फसलों का उत्पादन मानव के लिए तथा कुछ का उत्पादन पशुओं के लिए किया जाता है। इन प्रदेशों में चौपाये-भेड़, बकरियाँ, गायें आदि भी पाले जाते हैं। अधिक जनसंख्या वाले प्रदेशों में यह कृषि की जाती है।

(7) फलों एवं सब्जियों की कृषि – प्रायः बड़े नगरीय केन्द्रों में फलों एवं सब्जियों की अत्यधिक माँग रहती है; अत: नगरीय केन्द्रों के समीपवर्ती कृषि प्रदेशों में फल एवं सब्जियों का उत्पादन भारी मात्रा में किया जाता है। बाजार केन्द्र की समीपता एवं परिवहन संसाधनों की सुविधाओं के आधार पर इस कृषि का विकास हुआ है। संयुक्त राज्य की कैलीफोर्निया घाटी एवं फ्लोरिडा, अन्धमहासागर के तटीय क्षेत्र तथा पश्चिमी यूरोप के औद्योगिक देशों में यह कृषि की जाती है। इस कृषि में तीव्रगामी परिवहन साधनों की अधिक आवश्यकता होती है।

(8) शुष्क कृषि – विश्व के उन प्रदेशों में जहाँ वर्षा की मात्रा 50 सेमी से कम रहती है तथा सिंचाई के साधन उपलब्ध नहीं हैं, वहाँ शुष्क कृषि की जाती है। इन प्रदेशों में कृषि-योग्य भूमि की गहरी जुताई की जाती है, जिससे वर्षा का जल उसमें अधिक समा सके। इसके अन्तर्गत मोटे अनाज, राई, चारे की फसलें तथा गेहूं आदि का उत्पादन किया जाता है। इस कृषि के प्रमुख क्षेत्र संयुक्त राज्य अमेरिका का ग्रेट बेसिन, दक्षिणी अमेरिका में कोलम्बिया नदी की घाटी, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, पश्चिमी एशिया तथा भारत के पश्चिमी राज्य हैं।

(9) सहकारी कृषि – सहकारी कृषि उन क्षेत्रों में पनपी जहाँ साम्यवादी विचारधारा का प्रभाव पड़ा। इसमें छोटे-छोटे भू-स्वामियों को सामूहिक खेती करने हेतु प्रेरित किया गया। सभी कृषक अपने-अपने खेत मिलाकर एक बड़ा कृषि फार्म बना लेते हैं तथा सभी भू-स्वामी पूर्ण लगन एवं क्षमता से कार्य करते हैं तथा उत्पादन को अपनी भूमि के अनुसार बाँट लेते हैं। रूस में सहकारी कृषि का विकास 1928 ई० के बाद किया गया था। भारतवर्ष में भी सहकारी कृषि को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इस कृषि के निम्नलिखित दो लाभ होते हैं –

  1. छोटे-छोटे खेतों के परस्पर मिल जाने से बड़े खेतों पर मशीनी उपकरणों का प्रयोग आसानी से किया जा सकता है।
  2. पारस्परिक सहयोग के कारण श्रम समस्या का निदान हो जाता है। रूस, चीन एवं क्यूबा में इसी पद्धति से कृषि की जा रही है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
निर्वाहक कृषि की विशेषताएँ बताइए।
या
निर्वाहक कृषि की विशेषताएँ तथा विश्व में इसका वितरण स्पष्ट कीजिए। [2016]
उत्तर
गहन निर्वाहक कृषि यह विकासशील कृषि का प्रतिरूप है। इसमें पुरातन साधनों के साथ ही नवीन कृषि साधनों का भी उपयोग आरम्भ हो जाता है। इस प्रकार की कृषि विशेषत: मानसून एशिया के सघन आबाद देशों (चीन, जापान, कोरिया, भारत, बांग्लादेश, बर्मा (म्यांमार)], पाकिस्तान, वियतनाम, थाईलैण्ड, फिलीपीन्स तथा जावा में प्रचलित है। इस कृषि की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  1. खेत छोटे आकार के होते हैं।
  2. मानवे श्रम तथा साधारण उपकरणों का प्रयोग होता है।
  3. खेत जोतने व अन्य कृषि कार्यों में बैल व भैंसे को अधिक प्रयोग होता है।
  4. मिट्टी को उर्वर बनाए रखने के लिए पशुओं के गोबर तथा मानव मल-मूत्र की खाद, खली व हरी खाद तथा कुछ रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है।
  5. फसलों के हेर-फेर द्वारा भूमि की उर्वरता कायम रखी जाती है।
  6. सिंचाई के साधनों का भी प्रयोग होता है।
  7. द्विफसली (double cropping) तथा अन्तर्फसली (intercropping) विधियों द्वारा भूमि से। अधिकाधिक फसलों का लाभ प्राप्त होता है।
  8. पहाड़ों पर भी सोपान बनाकर खेती होती है।
  9. अन्न व साग-सब्जियों पर उत्पादन अधिक होता है, क्योंकि सघन जनसंख्या का पोषण आवश्यक है। व्यापारिक फसलें (जूट, कपास, तिलहन, पेय फसलें आदि) केवल स्थानीय उपभोग के लिए उगायी जाती हैं।
  10. पशुपालन भी निर्वाहक स्तर पर कृषि के सहयोग के लिए किया जाता है। चीन में सूअर व मुर्गी अधिक पाले जाते हैं।
  11. सघन कृषि में भूमि से अधिकतम उपजे (yield) प्राप्त की जाती हैं।

प्रश्न 2
व्यापारिक अन्नोत्पादक कृषि के प्रमुख क्षेत्र एवं विशेषताएँ बताइए।
उत्तर
व्यापारिक अन्नोत्पादक कृषि मुख्यत: विकसित देशों में की जाती है। रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, अर्जेण्टीना, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में इस प्रकार की कृषि की प्रधानता है। व्यापारिक अन्नोत्पादक कृषि की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. यह कृषि बड़े-बड़े कृषि फार्मों पर नवीन वैज्ञानिक मशीनी उपकरणों द्वारा की जाती है।
  2. ऐसी कृषि में रासायनिक उर्वरकों का अधिक प्रयोग किया जाता है।
  3. ऐसी कृषि में फसलों का विशेषीकरण पाया जाता है, गेहूँ इस कृषि की प्रमुख फसल है।
  4. इस कृषि में प्रति हेक्टेयर उत्पादन अधिक होता है।
  5. ऐसे कृषि क्षेत्र में एकाकी बस्तियाँ पायी जाती हैं, जिन्हें ‘फार्मस्टड’ कहा जाता है।

प्रश्न 3
ट्रक फार्मिंग (फलों एवं सब्जियों की कृषि) की विशेषताओं की विवेचना कीजिए। [2008]
उत्तर
फल एवं सब्जियों की व्यापारिक कृषि ट्रक फार्मिंग के नाम से जानी जाती है। इस प्रकार की कृषि की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. इस प्रकार की बागवानी में एक विशेष सब्जी की फसल अपेक्षाकृत अधिक दूर स्थित बाजार के लिए पैदा की जाती है।
  2. ट्रक (Truck) शब्द का अर्थ मोटर ट्रक से नहीं बल्कि यह फ्रेंच भाषा के शब्द ‘Troquer’ से लिया ग़या है जिसका अर्थ होता है माल का हेर-फेर करना।
  3. बागवानी द्वारा उगाई गयी सब्जी प्रायः दलालों के द्वारा बेची जाती है।
  4. इस कृषि के लिए भूमि एवं मजदूर सस्ते होते हैं और यन्त्रीकरण द्वारा खेती की जाती है।
  5. इस कृषि की लागत कम आती है परन्तु दलालों एवं यातायात व्यय अधिक होने के कारण खर्च बढ़ जाता है; फलतः शुद्ध आय कम हो जाती है।

प्रश्न 4
बागाती कृषि का वर्णन कीजिए। [2016]
उत्तर
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 में (c) के अन्तर्गत शीर्षक (2) देखें।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1
बागाती कृषि के चार उत्पादों के नाम लिखिए। (2014, 15)
उत्तर

  1. नारियल
  2. चाय
  3. रबड़
  4. कहवा

प्रश्न 2
झुम कृषि भारत के किस भाग में प्रचलित है? [2009]
उत्तर
झूम कृषि भारत में असम, नागालैण्ड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिमी घाट तथा राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम में प्रचलित है।

प्रश्न 3
मिश्रित कृषि का क्या महत्त्व है? [2009]
उत्तर
मिश्रित कृषि के अन्तर्गत कृषि कार्य के अतिरिक्त कृषिक खाली समय में पशुपालन, मत्स्य पालन तथा बागवानी आदि प्राथमिक कार्य करते हैं जिससे कृषकों की आय में वृद्धि होती है और आर्थिक विकास को गति मिलती है।

प्रश्न 4
बागाती कृषि की दो विशेषताएँ बताइए। [2009, 10, 12, 13]
उत्तर
बागोती कृषि की दो प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. इसके अन्तर्गत विशिष्ट उपजों का ही उत्पादन किया जाता है; जैसे- केला, नारियल, रबड़, कहवा, चाय, कोको फल आदि।
  2. यह कृषि बागानों में की जाती है तथा इसमें उच्च तकनीक, मशीनों एवं पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 5
बागाती कृषि के तीन मुख्य क्षेत्र बताइए। उक्ट बागाती कृषि के तीन मुख्य क्षेत्र हैं –

  1. दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया,
  2. दक्षिण अमेरिका,
  3. अफ्रीका।

प्रश्न 6
बागाती कृषि से आप क्या समझते हैं? [2007, 08, 16]
या
विश्व की दो बागाती फसलों के नाम बताइए। [2011]
या
बागाती कृषि के किन्हीं चार उत्पादों के नाम बताइए। (2015)
उत्तर
बागाती कृषि एक ऐसी पद्धति है जो बड़े-बड़े फार्मों पर की जाती है। इसमें किसी एक विशिष्ट उपज का उत्पादन कारखाना स्तर पर किया जाता है; जैसे- चाय, कहवा, कोको, नारियल आदि।

प्रश्न 7
झूम-कृषि की कोई दो विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए। [2009, 12, 13, 14]
उतर

  1. झूम-कृषि स्थानान्तरणशील खेती है, जिसमें वनों को आग लगाकर साफ कर लिया जाता है तथा फसलें प्राप्त की जाती हैं। दो-तीन वर्ष खेती करने के बाद उस भूमि को परती छोड़ दिया जाता है। भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में यह कृषि प्रचलित है।
  2. इस प्रकार की कृषि में मोटे अनाज; जैसे- मक्का, ज्वार-बाजरा, जिमीकन्द एवं रतालू उत्पन्न किये जाते हैं।

प्रश्न 8
किन्हीं दो प्रमुख व्यापारिक फसलों के नाम लिखिए।
उत्तर

  1. कपास तथा
  2. चुकन्दर।

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1
सघन जनसंख्या, किन्तु कम भूमि वाले भागों में की जाने वाली कृषि है।
(क) सघन
(ख) विस्तृत
(ग) बागाती
(घ) शुष्क
उत्तर
(क) सघन।

प्रश्न 2
कहवा किस कृषि की उपज है?
(क) स्थानान्तरण
(ख) बागाती
(ग) व्यापारिक अन्न उत्पादक
(घ) मिश्रित
उत्तर
(ख) बागाती।

प्रश्न 3
विस्तृत व्यापारिक अन्न कृषि निम्नलिखित में से किस एक की विशेषता है?
(क) पश्चिमी यूरोप
(ख) वृहद् झील प्रदेश
(ग) मानसून प्रदेश
(घ) भूमध्यसागरीय प्रदेश
उत्तर
(ख) वृहद् झील प्रदेश।

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प्रश्न 4
विश्व में बागाती कृषि का सर्वाधिक विकास कहाँ हुआ है?
(क) मध्य अमेरिका में
(ख) अमेजन बेसिन में
(ग) कांगो बेसिन में
(घ) दक्षिणी-पूर्वी एशिया में
उत्तर
(घ) दक्षिणी-पूर्वी एशिया में।

प्रश्न 5
व्यापारिक पशुपालन एवं मक्का उत्पादन भली-भाँति समायोजित है।
(क) ऑस्ट्रेलिया में
(ख) पोलैण्ड में।
(ग) चीन में।
(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका में
उत्तर
(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका में

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