UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 9 Rent: Definition and Theory

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 9
Chapter Name Rent: Definition and Theory (लगान : परिभाषा एवं सिद्धान्त)
Number of Questions Solved 50
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 9 Rent: Definition and Theory (लगान : परिभाषा एवं सिद्धान्त)

विस्तृत उतरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
आभास लगान की व्याख्या कीजिए। [2007]
या
आभास लगान की संकल्पना को समझाइए। [2015]
उत्तर:
आभास लगान – आभास लगान का विचार सर्वप्रथम प्रो० मार्शल ने प्रस्तुत किया। प्रो० मार्शल के अनुसार, “कुछ ऐसे साधन हो सकते हैं जिनकी पूर्ति अल्पकाल में निश्चित होती है और जिनके कारण उन्हें लगान के प्रकार का भुगतान प्राप्त होता है। मनुष्य के द्वारा निर्मित मशीनों तथा अन्य , यन्त्रों की पूर्ति अल्पकाल में तो निश्चित होती है किन्तु दीर्घकाल में उसमें परिवर्तन किये जा सकते हैं, क्योंकि उनकी पूर्ति भूमि की भाँति दीर्घकाल में निश्चित नहीं होती, इसलिए इनकी आय को लगान नहीं कहा जा सकता; परन्तु इनकी पूर्ति अल्पकाल में निश्चित होती है. इसलिए अल्पकाल में इनकी आय लगान की भाँति होती है, जिसे आभास लगान कहा जाता है।” आभास लगान, जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है, यह आय वास्तव में लगान न होकर लगान की प्रकार आभासित होती है। मनुष्य द्वारा निर्मित पूँजीगत वस्तुओं की पूर्ति अल्पकाल में निश्चित होती है, इस कारण उन्हें लगान मिलता है।

जिस प्रकार भूमि की पूर्ति सीमित होती है, उसी प्रकार अन्य साधनों की पूर्ति भी अल्पकाल में सीमित हो सकती है। भूमि में सीमितता का गुण स्थायी रूप से विद्यमान है, इसी कारण इसकी आय को लगान कहा जाता है। भूमि तथा अल्पकाल में सीमित साधनों में सीमितता का गुण समान होने के कारण अन्य साधन जो अस्थायी रूप से सीमित हैं, उनकी आय को आभास लगान कहते हैं। इस प्रकार अल्पकाल में मनुष्य द्वारा निर्मित पूँजीगत वस्तुओं, अधिक योग्यता वाले श्रमिकों और साहसियों की आय में भी आभास लगान सम्मिलित होता है।

प्रो० मार्शल के अनुसार, “उत्पत्ति के उपकरणों (मशीन अर्थात् पूँजीगत वस्तुओं) से प्राप्त होने वाली शुद्ध आय को उनका आभास लगान इसलिए कहा जा सकता है, क्योंकि बहुत अधिक अल्पकाल में उन उपकरणों की पूर्ति अस्थायी रूप से स्थिर होती है और उसे माँग के अनुसार घटाना-बढ़ाना सम्भव नहीं होता। कुछ समय तक वे उन वस्तुओं के मूल्य के साथ, जिनके पैदा करने में उन्हें प्रयोग किया जाता है, वही सम्बन्ध रखते हैं जो भूमि अथवा सीमित पूर्ति वाले किसी अन्य प्राकृतिक उपहार का होता है और जिनकी आय शुद्ध लगान होती है।” इस प्रकार प्रो० मार्शल ने पूँजीगत वस्तुओं, जिनकी पूर्ति अल्पकाल में बेलोचदार तथा दीर्घकाल में लोचदार होती है, की अल्पकालीन आयों के लिए आभास लगान शब्द का प्रयोग किया है।

मार्शल के अनुसार, “मशीन (अर्थात् पूँजीगत वस्तुओं) की अल्पकालीन आय में से उसको चलाने की अल्पकालीन लागत को घटाने से जो बचत प्राप्त होती है, उसे आभास लगान कहते हैं। आभास लगान यह बताता है कि मशीन की अल्पकालीन आय उसके चलाने की अल्पकालीन लागत से कितनी अधिक है। इस प्रकार आभास लगान अल्पकालीन लागत के ऊपर एक प्रकार की अल्पकालीन बचत है।’

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि आभास लगान केवल अल्पकाल में प्राप्त होता है। यह एक अस्थायी आधिक्य है जो पूँजीगत वस्तुओं पर केवल अल्पकाल में प्राप्त होता है और दीर्घकाल में उसकी पूर्ति बढ़ जाने के कारण समाप्त हो जाता है।

प्रो० स्टोनियर व हेग के शब्दों में – “मशीनों की पूर्ति अल्पकाल में निश्चित होती है, भले ही उससे प्राप्त आय अधिक हो अथवा कम, फिर भी वे एक प्रकार का लगान अर्जित करती हैं। हाँ, दीर्घकाल में यह आभास लगान समाप्त हो जाता है, क्योकि यह पूर्ण लगान न होकर समाप्त हो जाने वाला अर्द्ध-लगान ही होता है।”

मार्शल के अनुसार, “आभास लगान पूँजीगत साधनों की अल्पकालीन लागत के ऊपर अल्पकालीन बचत है, जिसको अल्पकालीन आय में से अल्पकालीन लागत को घटाकर प्राप्त किया जाता है।”

सिल्वरमैन के अनुसार, “आभास लगान तकनीकी रूप में उत्पत्ति के उन साधनों को किया गया अतिरिक्त भुगतान है जिनकी पूर्ति अल्पकाल में स्थिर तथा दीर्घकाल में परिवर्तनशील होती है।” संक्षेप में, आभास लगान कुल आगम तथा कुल परिवर्तनशील लागत को अन्तर है। सूत्र रूप में, आभास लगान = कुल आगम – परिवर्तनशील लागते
QR = TR – TVC

प्रश्न 2
रिकार्डों के लगान सिद्धान्त की व्याख्या विस्तृत एवं सघन खेती के अन्तर्गत कीजिए। [2009]
या
रिकार्डों के लगान सिद्धान्त का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। [2007,09,10,12,14]
या
लगान को परिभाषित कीजिए। विस्तृत खेती के अन्तर्गत लगान के निर्धारण को समझाइए। [2007, 09]
या
लगान भूमि की उपज का वह भाग है जो भूमि के स्वामी को भूमि की मौलिक व अविनाशी शक्तियों के प्रयोग के लिए दिया जाता है।” व्याख्या कीजिए। [2010]
या
रिकार्डों के लगान सिद्धान्त का वर्णन कीजिए। [2012, 13, 14, 15, 16]
या
विस्तृत खेती के अन्तर्गत रिकार्डों के लगान सिद्धान्त को समझाइए। [2013]
या
रिकार्डों के लगान सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या केवल विस्तृत खेती के अन्तर्गत कीजिए। [2015]
या
रिकार्डों के लगान सिद्धान्त की उपयुक्त चित्र की सहायता से व्याख्या कीजिए। [2016]
या
गहन खेती के अन्तर्गत रिकार्डों के लगान सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए। [2016]
उत्तर:
रिकार्डों का लगान सिद्धान्त – लगान के विचार को सर्वप्रथम रिकाडों ने एक निश्चित सिद्धान्त के रूप में प्रस्तुत किया था। इसलिए इसे ‘रिका का लगान सिद्धान्त के नाम से सम्बोधित किया जाता है। रिकार्डों के अनुसार, केवल भूमि ही लगाने प्राप्त कर सकती है, क्योंकि भूमि में कुछ ऐसी विशेषताएँ विद्यमान हैं जो अन्य साधनों में नहीं होती; जैसे-भूमि प्रकृति का नि:शुल्क उपहार है, भूमि सीमित होती है आदि। इस कारण रिकाडों ने इस सिद्धान्त की व्याख्या भूमि के आधार पर की है।

रिकार्डों के अनुसार, “लगाने भूमि की उपज का वह भाग है जो भूमि के स्वामी को भूमि की मौलिक तथा अविनाशी शक्तियों के प्रयोग के लिए दिया जाता है।”
रिकार्डों के अनुसार, सभी भूमियाँ एकसमान नहीं होतीं और उनमें उपजाऊ शक्ति तथा स्थिति में अन्तर पाया जाता है। कुछ भूमियाँ अधिक उपजाऊ तथा अच्छी स्थिति वाली होती हैं तथा कुछ अपेक्षाकृत घटिया होती हैं। जो भूमि स्थिति एवं उर्वरता दोनों ही दृष्टिकोण से सबसे घटिया भूमि हो तथा जिससे उत्पादन व्यय के बराबर ही उपज मिलती हो, अधिक नहीं; उस भूमि को रिकाडों ने सीमान्त भूमि कहा है। सीमान्त भूमि से अच्छी भूमि को रिकाडों ने अधिसीमान्त भूमि बताया है। अतः रिकार्डों के अनुसार, “लगान अधिसीमान्त (Supermarginal) और सीमान्त भूमि (Marginal Land) से उत्पन्न होने वाली उपज का अन्तर होता है। चूंकि सीमान्त भूमि से केवल उत्पादन व्यय के बराबर उपज मिलती है और कुछ अतिरेक (Surplus) नहीं मिलता। इसलिए रिकार्डों के अनुसार, ऐसी भूमि पर कुछ अधिशेष (लगान) भी नहीं होता अर्थात् सीमान्त भूमि लगानरहित भूमि (No Rent Land) होती है।

सिद्धान्त की व्याख्या
विस्तृत खेती के अन्तर्गत लगान–रिकाडों ने भू-प्रधान खेती (Extensive Cultivation) के आधार पर इस सिद्धान्त को समझाने के लिए एक नये देश का उदाहरण लिया जिसमें थोड़े-से लोग बसे हों। आरम्भ में ऐसे देश की जनसंख्या कम होती है तथा भूमि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है। अत: सर्वप्रथम सर्वोत्तम कोटि की भूमि पर खेती की जाती है। जनसंख्या कम होने के कारण अनाज की समस्त आवश्यकताएँ केवल प्रथम श्रेणी की भूमि पर खेती करने से ही पूरी हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में कोई लगान पैदा नहीं होता है, क्योंकि भूमि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। भूमि के लिए किसी प्रकार की कोई प्रतियोगिता नहीं है, किन्तु यदि जनसंख्या में वृद्धि हो जाती है तो अनाज की बढ़ती हुई माँग को पूरा करने के लिए दूसरी श्रेणी की भूमि पर खेती करना आवश्यक हो जाता है और पहली श्रेणी की।

भूमि लगान देने लगती है, क्योंकि श्रम व पूँजी की समान मात्रा लगाने पर दूसरी श्रेणी की भूमि पर पहली श्रेणी की भूमि की अपेक्षा कम उत्पत्ति होगी। दूसरी श्रेणी की भूमि सीमान्त भूमि कहलाएगी। यह । लगानरहित भूमि होगी तथा पहली श्रेणी की भूमि अधिसीमान्त भूमि कहलाएगी। इसी प्रकार जब तीसरी श्रेणी की भूमि भी कृषि के अन्तर्गत आ जाती है तो दूसरी श्रेणी की भूमि लगान देने लगती है तथा प्रथम श्रेणी की भूमि पर लगान बढ़ जाता है। इस प्रकार किसी समय पर सबसे घटिया भूमि, जिस पर खेती की जाती है, को रिकाडों ने सीमान्त भूमि कहा है। यह भूमि लगानरहित भूमि (No Rent Land) होती है। इससे प्राप्त उपज केवल उत्पादन लागत के बराबर होती है, किसी प्रकार का अतिरेक नहीं देती है।

उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण – रिका के लगान सिद्धान्त को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। मान लीजिए, किसी स्थान पर A, B, C, D, E श्रेणी की समान क्षेत्रफल की भूमियों पर समान लागत लगाकर खेती की जाती है। A श्रेणी की भूमि पर 100 क्विटल, B श्रेणी की भूमि पर 80 किंवटल, c श्रेणी की भूमि पर 50 क्विटल, D श्रेणी की भूमि पर 30 क्विटल तथा E श्रेणी की भूमि पर 20 क्विटल अनाज उत्पन्न किया जाता है। यदि प्रत्येक प्रकार की भूमि पर अनाज उत्पन्न करने की लागत ३ 3300 हो और अनाज का मूल्य ₹165 प्रति क्विटल हो तो E श्रेणी की भूमि । सीमान्त भूमि होगी, क्योंकि उस पर उत्पन्न होने वाली उपज या लगान 20 क्विटल को बेचकर केवल उत्पादन लागत अर्थात् ₹3,300 ही प्राप्त किये जा सकते हैं। अत: E श्रेणी की भूमि लगानरहित भूमि होगी तथा A, B, C, D श्रेणी की भूमि पर तालिका के अनुसार लगान हो

संलग्न चित्र में Ox-अक्ष पर भूमि की विभिन्न श्रेणियाँ तथा OY-अक्ष पर उत्पादन की मात्रा किंवटल में दिखाई गयी है। विभिन्न श्रेणियों की भूमि पर उनकी उपज के आधार पर आयत बनाये गये हैं। E सीमान्त भूमि है; अतः उस पर कुछ अधिशेष नहीं है। शेष चारों प्रकार की भूमि पर जितना अधिशेष है उसे प्रत्येक आयत में रेखांकित किया गया है। आयत A, B, C को देखने से पता चलता है। कि रेखांकित भाग भी कई उप-विभागों में बँटा हुआ है। यह इस ओर संकेत करता है कि जब भी घटिया श्रेणी की भूमि का उपयोग किया जाता है तभी अतिरिक्त अधिशेष (लगान) में परिवर्तन हो जाता है।

गहन खेती के अन्तर्गत लगान – यद्यपि रिकार्डो ने लगान सिद्धान्त की व्याख्या भू-प्रधान खेती (Extensive Cultivation) के आधार पर की है, परन्तु रिकाडों के अनुसार, लगान विस्तृत और गहन दोनों ही प्रकार की खेती से प्राप्त होता है। जब भूमि की मात्रा (क्षेत्रफल) को स्थिर रखकर, श्रम व पूँजी की इकाइयों में वृद्धि करके कृषि उत्पादन को बढ़ाया जाता है, उसे श्रम प्रधान या गहन खेती कहते हैं।” रिकार्डों का विचार है कि गहन खेती से भी लगान प्राप्त होता है, क्योंकि गहन खेती या श्रम-प्रधान खेती में उत्पत्ति ह्रास नियम क्रियाशील रहता है। इस कारण श्रम व पूँजी की प्रत्येक अगली इकाई के लगाने से भूमि से जो उपज प्राप्त होती है वह क्रमशः घटती जाती है।

इस प्रकार अन्त में एक ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है जब श्रम व पूँजी की एक और अतिरिक्त इकाई लगाने पर, जो उसे भूमि पर कुल उपज में जो वृद्धि होती है वह उस इकाई की उत्पादन लागत के बराबर होती है। श्रम व पूँजी की इस अतिरिक्त इकाई को सीमान्त इकाई कहते हैं। सीमान्त इकाई से प्राप्त उत्पादन, सीमान्त इकाई के उत्पादन लागत के बराबर होता है, इसलिए उससे कोई अतिरेक अथवा लगान प्राप्त नहीं होता। अधिसीमान्त इकाइयों की उपज सीमान्त इकाई की उपज़ से अधिक होती है। इसलिए उस पर अतिरेक अथवा आर्थिक लगान होता है। इस प्रकार गहन खेती में लगान श्रम और पूँजी की अधिसीमान्त इकाई और सीमान्त इकाई की उपज के अन्तर के बराबर होता है।

उदाहरण – माना कोई उत्पादक अपनी भूमि पर श्रम व पूँजी की चार इकाइयाँ लगाता है, जिससे उसे क्रमशः 40, 30, 20 लगानरहित व 10 क्विटल गेहूँ की उपज प्राप्त होती है। इस प्रकार चौथी इकाई सीमान्त इकाई है। सीमान्त इकाई की अपेक्षा पहली, दूसरी और तीसरी इकाइयों से क्रमशः 40 – 10 = 30, 30 – 10 = 20 तथा 20 – 10 = 10 क्विटल अधिक उपज प्राप्त होती है। यही इन इकाइयों का आर्थिक लगान है।

चित्र में Ox-अक्ष पर श्रम व पूँजी की इकाइयाँ तथा श्रम व पूँजी की इकाइयाँ OY-अक्ष पर उपज क्विटलों में प्रदर्शित की गयी है। चित्र में रेखांकित आयत भाग लगान की ओर इंगित करता है। चौथी इकाई सीमान्त इकाई है; अत: यह लगानरहित है।

सिद्धान्त की आलोचनाएँ
आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने रिकाडों के लगान (अधिशेष) सिद्धान्त की कटु आलोचनाएँ की हैं। प्रमुख आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं

1. भूमि में मौलिक एवं अविनाशी शक्तियाँ नहीं होतीं – रिकोड़ों के अनुसार, लगान भूमि की मौलिक एवं अविनाशी शक्तियों के प्रयोग के लिए दिया जाने वाला प्रतिफल है। आलोचकों का मत है। कि भूमि में मौलिक एवं अविनाशी शक्तियाँ नहीं होती। भूमि की उपजाऊ शक्ति प्राकृतिक होती है। उसमें सिंचाई, खाद व अन्य प्रकार के भूमि सुधारों से भूमि की उपजाऊ शक्ति में वृद्धि की जा सकती है; अत: भूमि की उपजाऊ शक्ति मौलिक नहीं है। भूमि की शक्ति को अविनाशी भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि भूमि के निरन्तर प्रयोग से उसकी उपजाऊ शक्ति का ह्रास होता है। इस प्रकार रिका का मते उचित प्रतीत नहीं होता।

2. खेती करने का क्रम ऐतिहासिक दृष्टि से ठीक नहीं – रिकार्डों के अनुसार, सबसे पहले खेती अधिक उपजाऊ तथा अच्छी स्थिति वाली भूमि पर की जाती है तथा उसके बाद घटिया भूमि पर, परन्तु कैरे और रोशर आदि अर्थशास्त्रियों के अनुसार खेती का यह क्रम ठीक नहीं है। लोग सबसे पहले उन भूमियों पर खेती करते हैं जो सबसे अधिक सुविधापूर्ण होती हैं चाहे वह कम उपजाऊ ही क्यों न हों।।

3. अपूर्ण एवं अस्पष्ट सिद्धान्त – यह सिद्धान्त लगान उत्पन्न होने के कारणों पर उचित प्रकाश नहीं डालता। यह सिद्धान्त केवल यह बताता है कि श्रेष्ठ भूमि का लगान निम्न श्रेणी की भूमि की तुलना में अधिक क्यों होता है। यह इस बात को स्पष्ट नहीं करता कि लगान क्यों उत्पन्न होता है और न ही लगान को उत्पन्न करने वाले कारणों का विश्लेषण करता है।

4. यह सिद्धान्त काल्पनिक है – यह सिद्धान्त अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित है। वास्तविक जीवन में पूर्ण प्रतियोगिता नहीं पायी जाती है। अत: यह सिद्धान्त व्यावहारिक दृष्टि से उचित प्रतीत नहीं होता। इसलिए कहा जा सकता है कि यह सिद्धान्त काल्पनिक है।

5. कोई भी भूमि लगानरहित नहीं होती – रिकाडों की यह मान्यता कि सीमान्त भूमि लगानरहित भूमि होती है, उचित नहीं है। विकसित देशों में ऐसी कोई भूमि नहीं होती जिस पर लगाने न दिया जाता हो। अतः सीमान्त भूमि तथा लगानरहित भूमि की मान्यता केवल कल्पना मात्र है।

6. लगान केवल भूमि को प्राप्त होता है – रिकाडों की यह धारणा गलत है कि लगान केवल भूमि को ही प्राप्त होता है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार, लगान अवसर लागत पर अतिरेक है जो उत्पत्ति के किसी भी साधन को प्राप्त हो सकता है।

7. लगान कीमत को प्रभावित करता है – रिकाडों का यह विचार कि लगान कीमत को प्रभावित नहीं करता, ठीक नहीं है। केवल कुछ दशाओं में अधिशेष कीमत में सम्मिलित रहता है और कीमत का निर्धारण भी करता है। व्यक्तिगत किसान की दृष्टि से लागत एक लगान होती है, इसलिए वह अनाज की कीमत को प्रभावित करता है।

8. कृषि पर सदैव ही उत्पत्ति ह्रास नियम लागू नहीं होता – लगान का यह सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि कृषि में केवल उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होता है, जबकि वास्तविकता यह है कि कृषि में उत्पत्ति वृद्धि नियम तथा उत्पत्ति समता नियम भी लागू हो सकते हैं।

9. लगान कीमत में सम्मिलित होता है – रिकाड तथा प्राचीन अर्थशास्त्रियों के अनुसार अधिशेष (लगान) खेती की उपज की कीमत में सम्मिलित नहीं रहता अर्थात् खेती की उपज की कीमत के निर्धारण में लगान का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि लगान और कीमत एक-दूसरे से भिन्न या असम्बन्धित नहीं हैं। यद्यपि अधिशेष ( लगान) कीमत का निर्धारण नहीं करता, परन्तु स्वयं अधिशेष का निर्धारण भूमि की कीमत द्वारा होता है।

प्रश्न 3
लगान के आधुनिक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए। यह रिकार्डों के लगान सिद्धान्त से किस प्रकार श्रेष्ठ है ?
उत्तर:
लगान का आधुनिक सिद्धान्त – लगान का आधुनिक सिद्धान्त माँग और पूर्ति के सामान्य सिद्धान्त का ही एक संशोधित रूप है। इस सिद्धान्त के अनुसार लगान दुर्लभता के कारण प्राप्त होता है। लगान केवल भूमि की ही विशेषता नहीं, बल्कि वह अन्य उत्पत्ति के साधनों को भी मिल सकता है; क्योंकि आधुनिक अर्थशास्त्रियों का मत है कि उत्पत्ति के अन्य साधन भी भूमि की भाँति सीमितता अथवा भूमि तत्त्व को प्राप्त कर सकते हैं। आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार लगान का भी एक सामान्य सिद्धान्त होना चाहिए; अत: इन अर्थशास्त्रियों ने माँग और पूर्ति के सिद्धान्त को लगान के निर्धारण के सम्बन्ध में लागू करने का प्रयत्न किया है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने लगान के दुर्लभता सिद्धान्त’ को विकसित किया है। इस सिद्धान्त के अनुसार, भूमि की दुर्लभता के कारण लगान उत्पन्न होता है। यदि भूमि असीमित होती तो कीमत या लगान देने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

लगान के आधुनिक सिद्धान्त का आधार – लगान के आधुनिक सिद्धान्त का आधार साधनों की विशिष्टता का होना है। वॉन वीजर (Von wieser) ने विशिष्टता के आधार पर उत्पत्ति के साधनों को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा है

पूर्णतया विशिष्ट साधन – पूर्णतया विशिष्ट साधन वे साधन होते हैं जिनका उपयोग केवल एक विशिष्ट कार्य में ही किया जा सकता है। इस प्रकार के साधनों को किसी अन्य उपयोग में नहीं लाया जा सकता, इसलिए इनकी अवसर लागत शून्य होती है।
पूर्णतया अविशिष्ट साधन – पूर्णतया अविशिष्ट साधन वे साधन होते हैं जिन्हें किसी भी उपयोग में लाया जा सकता है अर्थात् जिनमें गतिशीलता पायी जाती है।
परन्तु कोई भी साधन न तो पूर्णतया विशिष्ट होता है और न पूर्णतया अविशिष्ट। प्रायः साधन आंशिक रूप से विशिष्ट और आंशिक रूप से अविशिष्ट होते हैं।

आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार, लगान साधनों की विशिष्टता का परिणाम है। ‘विशिष्टता एवं ‘भूमि तत्त्व’ एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं, अर्थात् विशिष्टता शब्द के लिए भूमि तत्त्व’ शब्द का भी प्रयोग किया जा सकता है।

श्रीमती जॉन रॉबिन्सन के अनुसार, “लगान के विचार का सार वह बचत है जो कि एक साधन की इकाई को उस न्यूनतम आय के ऊपर प्राप्त होती है जो कि साधन को अपने कार्य करते रहने के लिए आवश्यक है।”

प्रो० बोल्डिग के शब्दों में, “आर्थिक बचत अथवा आर्थिक लागत उत्पत्ति के किसी साधन की एक इकाई का वह भुगतान है जो कि कुल पूर्ति मूल्य के ऊपर आधिक्य है अर्थात् साधन को वर्तमान व्यवसाय में बनाये रखने के लिए आवश्यक न्यूनतम धनराशि के ऊपर आधिक्य है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि लगान एक बचत है जो किसी साधन को उसके न्यूनतम पूर्ति मूल्य अर्थात् अवसर लागत के ऊपर प्राप्त होती है। अर्थात्
लगान = वास्तविक आय – अवसर लागत

स्पष्ट है कि लगाने प्रत्येक साधन को विशिष्टता के गुण के कारण प्राप्त होता है।
लगान के आधुनिक सिद्धान्त की प्रमुख विशेषताएँ

 इस सिद्धान्त के अनुसार उत्पत्ति का प्रत्येक साधन लगान प्राप्त कर सकता है।
 साधने की वास्तविक आय में से अवसर लागत को घटाकर लगान ज्ञात किया जा सकता है।
 लगान की उत्पत्ति का कारण साधन की विशिष्टता या सीमितता का होना है।
 लगान का सिद्धान्त माँग और पूर्ति का ही सिद्धान्त है।
रिकार्डों के सिद्धान्त से आधुनिक सिद्धान्त की भिन्नता – आधुनिक लगान सिद्धान्त व रिकार्डों के लगान सिद्धान्त में निम्नलिखित भिन्नताएँ पायी जाती हैं

(1) प्राचीन अर्थशास्त्री यह समझते थे कि लगान केवल भूमि के सम्बन्ध में ही प्राप्त होता है। रिकाडों ने भी केवल लगान की व्याख्या भूमि के सन्दर्भ में ही की, परन्तु आधुनिक लगान सिद्धान्त के अनुसार उत्पत्ति के अन्य साधनों को भी लगान प्राप्त हो सकता है। उदाहरण के लिए—‘योग्यता के लगान का विचार’ यह बताता है कि मनुष्य की प्राकृतिक योग्यता एक प्रकार की भूमि ही है। इससे यह स्पष्ट होता है कि केवल भूमिपति ही अतिरिक्त आय प्राप्त नहीं करता, बल्कि उत्पत्ति के अन्य साधनों को भी इसी प्रकार की आय प्राप्त हो सकती है।

(2) रिकार्डों का लगाने सिद्धान्त एक संकुचित धारणा है, जबकि आधुनिक लगान सिद्धान्त का दृष्टिकोण व्यापक है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों की यह धारणा है कि लगान उत्पादन के सभी साधनों को प्राप्त हो सकता है, अपेक्षाकृत व्यापक धारणा है।

(3) रिकाडों के लगान सिद्धान्त के अनुसार भूमि प्रकृति का उपहार है, इसकी पूर्ति सीमित है। भूमि की सीमितता के गुण अन्य साधनों में नहीं पाये जाते, इसलिए उन्हें लगान प्राप्त नहीं होता है। आधुनिक लगान सिद्धान्त के अनुसार अल्पकाल में सभी साधनों की पूर्ति सीमित होती है तथा लगान सिद्धान्त भी माँग और पूर्ति का सामान्य सिद्धान्त ही है। इसके लिए किसी पृथक् सिद्धान्त की आवश्यकता नहीं थी।

रिकार्डों का लगान सिद्धान्त लगान उत्पन्न होने के कारणों पर उचित प्रकाश नहीं डालता। यह केवल यह बताता है कि श्रेष्ठ भूमि का लगान निम्नकोटि की भूमि की तुलना में अधिक क्यों होता है ? यह इस बात को स्पष्ट नहीं करता कि लगान क्यों उत्पन्न होता है। इसके विपरीत आधुनिक लगाने सिद्धान्त यह बताता है कि लगाने की उत्पत्ति किसी साधन की विशिष्टता या सीमितता के कारण होती है;
अत: यह तर्क उचित व न्यायसंगत है।
उपर्युक्त कारणों से रिकार्डों के लगान सिद्धान्त की अपेक्षा, लगान के आधुनिक सिद्धान्त को श्रेष्ठ माना जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
“अनाज का मूल्य इसलिए ऊँचा नहीं होता है, क्योंकि लगान दिया जाता है, बल्कि लगान इसलिए दिया जाता है, क्योंकि अनाज महँगा है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
या
लगान तथा कीमत के सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लगान तथा कीमतों में सम्बन्ध
लगान कीमत का निर्धारण नहीं करता, परन्तु स्वयं अधिशेष का निर्धारण भूमि की कीमत द्वारा होता है। इस विचार को रिकार्डो ने इन शब्दों में व्यक्त किया है-“अनाज इसलिए महँगा नहीं है, क्योंकि अधिशेष दिया जाता है; बल्कि अधिशेष इसलिए दिया जाता है, क्योंकि अनाज महँगा है।”
रिकार्डों के इस कथन की व्याख्या दो भागों में बाँटकर की जा सकती है

1. लगान मूल्य को प्रभावित नहीं करता या अधिशेष कीमत का निर्धारण नहीं करता – अधिशेष न तो कीमत में सम्मिलित होता है और न उसका निर्धारण ही करता है। रिकाडों के लगाने सिद्धान्त से यह तथ्य पूर्णतया स्पष्ट हो जाता है। रिकार्डों के अनुसार, अनाज की कीमत सीमान्त भूमि पर होने वाले उत्पादन व्यय द्वारा निश्चित होती है। चूंकि रिकार्डों के अधिशेष सिद्धान्त के अनुसार सीमान्त भूमि लगानहीन भूमि होती है। अतः अधिशेष (लगान) न तो सीमान्त भूमि की उत्पादन लागत का अंश ही होता है और न कीमत का निर्धारण ही करता है। इस प्रकार अनाज के मूल्य में जो सीमान्त भूमि के उत्पादन व्यय द्वारा निश्चित होता है, लगान सम्मिलित नहीं होता है। अत: यदि लगान कम कर दिया जाए अथवा भूमि को लगाने-मुक्त कर दिया जाए तो भी अनाज के मूल्य पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

2. मूल्य लगान को प्रभावित करता है या लगान का निर्धारण कीमत द्वारा होता है – अधिशेष कीमत का निर्धारण नहीं करता, परन्तु स्वयं अधिशेष का निर्धारण खेती की उपज की कीमत के अनुसार होता है। कृषि पदार्थों का मूल्य बढ़ जाने पर खेती की सीमा या क्षेत्र विस्तृत हो जाता है अर्थात् घटिया भूमि पर भी खेती की जाने लगती है। जैसे-जैसे घटिया भूमि का उपयोग खेती में किया जाता है वैसे-वैसे अच्छी भूमि का लगान बढ़ता जाता है। मूल्य बढ़ जाने से सीमान्त भूमि अधिसीमान्त हो जाती है, जिसके कारण लगानहीन भूमि पर भी लगान उत्पन्न हो जाता है। इसके अतिरिक्त जो भूमि पहले से ही अधिसीमान्त थी उस पर अधिशेष (लगान) की मात्रा बढ़ जाती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि कृषि वस्तुओं के मूल्यों में होने वाली वृद्धि भूमि के लगान को बढ़ाती है। इनका मूल्य गिरने पर लगान भी कम हो जाता है। इसलिए रिकार्डो का यह कथन सत्य है कि “अनाज का मूल्य इसलिए ऊँचा नहीं है कि लगान दिया जाता है, वरन् लगान इसलिए दिया जाता है, क्योंकि अनाज की कीमत ऊँची है।”

प्रश्न 2
रिकार्डों के लगान सिद्धान्त तथा आधुनिक लगान सिद्धान्त में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रिकार्डों के लगान सिद्धान्त तथा आधुनिक लगान सिद्धान्त में अन्तर

प्रश्न 3
क्या लगान केवल भूमि को ही प्राप्त होता है ?
उत्तर:
रिकार्डों के अनुसार, केवल भूमि ही लगान प्राप्त कर सकती है, क्योंकि भूमि में कुछ ऐसी विशेषताएँ पायी जाती हैं जो अन्य साधनों में नहीं होतीं; जैसे-भूमि प्रकृति का नि:शुल्क उपहार है। अर्थात् समाज के लिए भूमि की उत्पादन लागत शून्य होती है। भूमि सीमित होती है और समाज की दृष्टि से उसकी कुल मात्रा को घटाया या बढ़ाया नहीं जा सकता। सीमितता केवल भूमि की ही विशेषता है जो उसे उत्पत्ति के अन्य साधनों से अलग कर देती है।

आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार लगान अवसर लागत (Opportunity cost) पर अतिरेक है जो उत्पत्ति के किसी भी साधन को प्राप्त हो सकता है। जिस साधन की पूर्ति बेलोचदार हो जाती है। वही साधन लगान प्राप्त करने लगता है।
लगान के आधुनिक सिद्धान्त के अनुसार किसी साधन को लगान उसकी दुर्लभता के कारण प्राप्त होता है। लगान केवल भूमि की विशेषता नहीं है, बल्कि वह अन्य उत्पत्ति के साधनों को मिल सकता है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार, अन्य साधन भूमि की भाँति सीमितता (Limitedness) अथवा भूमि तत्त्व (Land element) को प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए लगान उन्हें भी प्राप्त हो सकता है।

प्रो० मार्शल ने योग्यता के लगान का विश्लेषण करके लगान के विचार को विस्तृत कर दिया है। प्राचीन अर्थशास्त्री यह समझते थे कि लगान केवल भूमि के सम्बन्ध में ही उत्पन्न होता है, किन्तु मार्शल के अनुसार, लगान कई प्रकार के हो सकते हैं और भूमि का लगान उसका एक विशेष उदाहरण है। इस प्रकार, प्रो० मार्शल ने योग्यता के लगान का विचार देकर लगान के आधुनिक सिद्धान्त की नींव डाली। योग्यता का लगान का विचार हमें यह बताता है कि मनुष्य में भी भूमि (Land) का कुछ अंश पाया जाता है। मनुष्य की प्राकृतिक योग्यता एक प्रकार से भूमि ही है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि केवल भूमिपति ही अतिरेक आय प्राप्त नहीं करता, बल्कि उत्पत्ति के अन्य साधनों को भी इस प्रकार की आय प्राप्त हो सकती है। अत: लगान केवल भूमि को ही प्राप्त नहीं होता है, बल्कि उत्पादन के अन्य उपादानों श्रमिकों, पूंजीपतियों तथा उद्यमियों आदि को भी प्राप्त होता है।

प्रश्न 4
रिकार्डों के लगान सिद्धान्त व आभास लगान की तुलना कीजिए।
उत्तर:
रिकार्डों के लगान सिद्धान्त तथा आभास लगान में तुलना

समानताएँ (Similarities)

दोनों के उत्पन्न होने के कारण समान हैं। लगान कृषि उपज की माँग बढ़ने के कारण उत्पन्न होता है और आभास लगान मानव द्वारा निर्मित पूँजीगत वस्तुओं की माँगे बढ़ने के कारण उत्पन्न होता है।
लगान भूमि की पूर्ति निश्चित होने के कारण उत्पन्न होता है। इसी प्रकार आभास लगान अल्पकाल में पूँजीगत वस्तुओं की पूर्ति निश्चित होने के कारण उत्पन्न होता है।
लगान कीमत को प्रभावित नहीं करता, अपितु कीमत द्वारा प्रभावित होता है। इसी प्रकार आभास लगान भी कीमत को प्रभावित नहीं करता, अपितु कीमत द्वारा प्रभावित होता है।
असमानताएँ (Dissimilarities)

रिकार्डों के अनुसार, “लगान प्राकृतिक उपहारों (भूमि) पर प्राप्त होता है, जबकि आभास लगान मनुष्य द्वारा निर्मित वस्तुओं पर प्राप्त होता है।”
आभास लगान केवल अल्पकाल में प्राप्त होता है, जबकि रिकार्डों के अनुसार लगान अल्पकाल व दीर्घकाल दोनों में प्राप्त होता है।
रिकाडों के अनुसार, लगान एक स्थायी आधिक्य हैं, जबकि आभास लगन एक अस्थायी आधिक्य है।
प्रश्न 5
आर्थिक लगान तथा ठेका लगान में क्या अन्तर है ?
उत्तर:

प्रश्न 6
जनसंख्या की वृद्धि का लगान पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
जनसंख्या में वृद्धि होने पर लगान में वृद्धि हो जाती है। जनसंख्या की वृद्धि से खाद्य-पदार्थों की माँग बढ़ती है। इस माँग की पूर्ति हेतु खाद्य-पदार्थों का उत्पादन बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। उत्पादन बढ़ाने के लिए या तो भू-प्रधान खेती की जाएगी या श्रम-प्रधान खेती। इन दोनों प्रकार की खेती में लगान बढ़ेगा।

भू-प्रधान खेती में लगान पर प्रभाव –  मान लीजिए खाद्य-पदार्थों की माँग की पूर्ति हेतु विस्तृत खेती का प्रयोग किया जाता है। तब हम कम अच्छी अर्थात् ‘घटिया’ प्रकार की भूमि पर भी खेती करना आरम्भ कर देंगे। इससे खेती की सीमा (क्षेत्रफल) में वृद्धि होगी, जिससे सीमान्त भूमि अब अधिसीमान्त भूमि हो जाएगी तथा सीमान्त भूमि और अधिसीमान्त भूमि की उपज का अन्तर बढ़ जाएगा, परिणामस्वरूप अधिशेष (लगान) में वृद्धि होगी।

श्रम-प्रधान खेती में लगान पर प्रभाव – यदि उपज बढ़ाने के लिए श्रम-प्रधान खेती की जाती है अर्थात् उसी भूमि पर श्रम तथा पूँजी की मात्रा बढ़ाकर उत्पादन बढ़ाने का प्रयास किया जाता है तब भी अधिशेष में वृद्धि होगी, क्योंकि श्रम और पूँजी से सीमान्त इकाई तथा अधिसीमान्त इकाई की उपज का अन्तर अधिक हो जाएगा। इस प्रकार लगान में वृद्धि होगी।

भूमि का अधिशेष या लगान इस कारण भी बढ़ जाता है, क्योंकि जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ रहने के लिए आवास, पार्क, क्रीड़ास्थल, कारखाने, विद्यालय, चिकित्सालय आदि के लिए भी भूमि की आवश्यकता पड़ती है। अतः अतिरिक्त भूमि की माँग बढ़ जाती है या उपयोग में आने लगती है, परिणामस्वरूप लगान में वृद्धि हो जाती है।

प्रश्न 7
परिवहन के साधनों के विकास का लगान पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर:
परिवहन के साधनों के विकास का लगाने पर प्रभाव–यदि यातायात के साधनों की उन्नति हो जाती है तो यातायात के साधन उत्तम, सस्ते एवं सुविधापूर्वक उपलब्ध होने लगते हैं। ऐसी स्थिति में लगान पर दोनों प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं। लगान की मात्रा में वृद्धि भी हो जाती है तथा कमी भी।
यातायात के उत्तम और सस्ते साधन उपलब्ध होने से दूर-दूर से कृषि उत्पादन को बाजार व मण्डियों में भेजकर फसल की उचित कीमत प्राप्त की जा सकती है, जिसका परिणाम यह होता है कि घटिया श्रेणी की भूमि पर भी कृषि कार्य प्रारम्भ हो जाता है, जिसके कारण सीमान्त भूमि अधिसीमान्त हो जाती है तथा लगान उत्पन्न हो जाता है।

परिवहन के साधन विकसित हो जाने से सुदूर स्थानों से जनसंख्या आकर बसने लगती है, जिसके कारण भूमि व अनाज की माँग बढ़ती है और लगाने में भी वृद्धि हो जाती है। यातायात के साधनों में विकास हो जाने से कभी-कभी लगाने की मात्रा पर विपरीत प्रभाव भी पड़ता है, क्योंकि यदि अनाज का विदेशों से कम मूल्य पर आयात कर लिया जाता है तब वहाँ पर घटिया भूमि अर्थात् सीमान्त भूमि पर खेती होनी बन्द हो जाएगी, जिससे लगान की मात्रा कम हो जाएगी।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
लगान और लाभ में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
लगान और लाभ में अन्तर

प्रश्न 2
कुल लगान किसे कहते हैं ? कुल लगान के तत्त्व बताइए।
उत्तर:
कुल लगान – कुल लगान के अन्तर्गत आर्थिक लगान के अतिरिक्त कुछ अन्य तत्त्व भी सम्मिलित होते हैं, जो इस प्रकार हैं

केवल भूमि के प्रयोग के लिए भुगतान अर्थात् आर्थिक लगान।
भूमि सुधार पर व्यय की गयी पूँजी पर ब्याज।
 भूस्वामी के द्वारा उठाई गयी जोखिम का प्रतिफल।
भूमि की देख-रेख अथवा उसके प्रबन्ध के लिए पुरस्कार।
प्रश्न 3
रिकार्डों के अनुसार भूमि को ही लगान क्यों प्राप्त होता है ?
उत्तर:
रिकाडों के अनुसार, भूमि ही लगान प्राप्त कर सकती है, क्योंकि भूमि में ही कुछ ऐसी विशेषताएँ पायी जाती हैं जो अन्य साधनों में नहीं होती। ये विशेषताएँ इस प्रकार हैं

 भूमि प्रकृति का नि:शुल्क उपहार है अर्थात् समाज के लिए भूमि की उत्पादन लागत शून्य होती है।
भूमि सीमित होती है और समाज की हानि से उसकी कुल मात्रा को घटाया-बढ़ाया नहीं जा सकता। सीमितता का यह गुण केवल भूमि की ही विशेषता है जो उसे उत्पत्ति के अन्य साधनों से अलग कर देती है। भूमि की पूर्ति बेलोचदार होने के कारण ही उस पर लगान प्राप्त होता है।
प्रश्न 4
रिकार्डों के अनुसार ‘सीमान्त भूमि’ क्यों लगानरहित भूमि होती है ?
उत्तर:
रिकाडों ने लगान को एक अन्तरीय अतिरेक (Differential surplus) माना है। उनके अनुसार सभी भूमियाँ एकसमान नहीं होतीं और उनमें उपजाऊ शक्ति तथा स्थिति का अन्तर पाया जाता है। कुछ भूमियाँ अधिक उपजाऊ तथा अच्छी स्थिति वाली होती हैं तथा कुछ उनकी तुलना में घटिया होती हैं। सीमान्त भूमि पर उपज कम होती है, ऐसी स्थिति में अच्छी भूमि (उपसीमान्त भूमि) अतिरेक देती है सीमान्त भूमि नहीं। इस कारण सीमान्त भूमि लगानरहित भूमि होती है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
ठेके का लगान क्या है? [2011]
उत्तर:
किसान द्वारा भूमिपति को भूमि के उपयोग के बदले में जो धनराशि देने का वादा किया जाता है, उसे ‘ठेके का लगान’ कहा जाता है।

प्रश्न 2
आर्थिक लगान किसे कहते हैं ?
उत्तर:
आर्थिक लगान को शुद्ध लगान भी कहते हैं। केवल भूमि के प्रयोग के बदले में दिये जाने वाले भुगतान को आर्थिक लगान कहा जाता है। रिकार्डों के अनुसार, “श्रेष्ठ भूमि की उपज और सीमान्त भूमि की उपज में जो अन्तर होता है, उसे आर्थिक लगान कहते हैं।”

प्रश्न 3
आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार लगान किसे कहते हैं ?
उत्तर:
आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार आर्थिक लगान एक साधन को उसकी अवसर लागत से प्राप्त होने वाला अतिरेक है। यह लगान केवल भूमि पर ही प्राप्त नहीं होता बल्कि उत्पत्ति के किसी भी उस साधन को आर्थिक लगान प्राप्त हो सकता है जिसकी पूर्ति बेलोचदार हो।

प्रश्न 4
रिकार्डों के अनुसार सीमान्त भूमि लगानरहित भूमि होती है, क्यों ?
उत्तर:
क्योंकि सीमान्त भूमि से केवल उत्पादन व्यय के बराबर उपज मिलती है और कुछ अतिरेक नहीं मिलता है। इसलिए रिकार्डों के अनुसार, ऐसी भूमि पर कुछ अधिशेष (लगान) भी नहीं होता अर्थात् सीमान्त भूमि लगानरहित भूमि होती है।

प्रश्न 5
‘लगान का दुर्लभता सिद्धान्त’ से क्या आशय है ?
उत्तर:
आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने माँग एवं पूर्ति के सिद्धान्त को लगान के निर्धारण के सम्बन्ध में लागू करने का प्रयत्न किया है। इस सिद्धान्त के अनुसार भूमि की दुर्लभता के कारण लगान उत्पन्न होता है क्योकि यदि भूमि असीमित होती तो भूमि की कीमत या लगान देने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

प्रश्न 6
लगान के परम्परागत सिद्धान्त के जन्मदाता कौन हैं? [2008]
उत्तर:
जे०बी० क्लार्क।

प्रश्न 7
रिका द्वारा दी गई लगान की परिभाषा लिखिए। [2013, 15]
या
लगान का अर्थ लिखिए। [2015]
उत्तर:
रिकार्डों के अनुसार, “लगान भूमि की उपज का वह भाग है जो भूमि के स्वामी को भूमि की मौलिक तथा अविनाशी शक्तियों के प्रयोग के लिए दिया जाता है।

प्रश्न 8
रिकाड़ों के लगान सिद्धान्त एवं आधुनिक लगान सिद्धान्त का एक अन्तर लिखिए।
उत्तर:
रिकार्डों के लगान सिद्धान्त के अनुसार केवल भूमि ही लगान प्राप्त कर सकती है, जबकि आधुनिक लगान सिद्धान्त के अनुसार लगान केवल भूमि को ही नहीं, बल्कि उत्पादन के अन्य साधनों को भी मिल सकता है।

प्रश्न 9
रिकार्डों के लगान सिद्धान्त की दो आलोचनाएँ लिखिए।
उत्तर:
रिकार्डों के लगान सिद्धान्त की दो आलोचनाएँ इस प्रकार हैं

 आलोचकों का मत है कि भूमि में मौलिक एवं अविनाशी शक्तियाँ नहीं होती हैं।
खेती करने का क्रम ऐतिहासिक दृष्टि से ठीक नहीं है।
प्रश्न 10
रिकार्डों के अनुसार लगान किसे प्राप्त होता है ?
या
रिकाडों के अनुसार, लगान उत्पादन के मात्र एक साधन को मिलता है। उस उत्पादन के साधन का नाम बताइए। [2007]
उत्तर:
रिकार्डों के अनुसार केवल भूमि ही लगान प्राप्त कर सकती है।

प्रश्न 11
आभास लगान से क्या तात्पर्य है ? [2006, 07, 09]
उत्तर:
प्रो० मार्शल ने पूँजीगत वस्तुओं, जिनकी पूर्ति अल्पकाल में बेलोचदार तथा दीर्घकाल में लोचदार होती है, की अल्पकालीन आयों के लिए आभास लगान शब्द का प्रयोग किया है।

प्रश्न 12
रिकार्डो ने सीमान्त भूमि किसे कहा है ?
उत्तर:
रिकार्डों के अनुसार, जो भूमि स्थिति एवं उर्वरता दोनों ही दृष्टिकोण से सबसे घटिया हो तथा जिससे उत्पादन व्यय के बराबर ही उपज मिलती हो अधिक नहीं, उसे रिकाडों ने सीमान्त भूमि कहा है।

प्रश्न 13
रिकार्डों के अनुसार अधिसीमान्त भूमि किसे कहते हैं ?
उत्तर:
सीमान्त भूमि से कुछ अच्छी भूमि को रिकाड ने अधिसीमान्त भूमि कहा है।

प्रश्न 14
क्या सीमान्त भूमि अथवा लगानरहित भूमि एक कल्पनामात्र है ?
उत्तर:
आधुनिक अर्थशास्त्रियों के मतानुसार विकसित देशों में ऐसी कोई भूमि नहीं होती जिस पर लगान न दिया जाता हो। अतः रिकाडों की यह मान्यता कि सीमान्त भूमि लगानरहित भूमि होती है, एक कोरी कल्पना है।

प्रश्न 15
“लगान मूल्य को प्रभावित नहीं करता है।” यह किस अर्थशास्त्री का विचार है ?
उत्तर:
रिकाडों का।

प्रश्न 16
आर्थिक लगान की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
आर्थिक लगान को शुद्ध लगान भी कहते हैं। केवल भूमि के प्रयोग के बदले में दिये जाने वाले भुगतान को आर्थिक लगान कहा जाता है। रिकाडों के अनुसार श्रेष्ठ भूमि की उपज और सीमान्त भूमि की उपज में जो अन्तर होता है उसे आर्थिक लगान कहते हैं।

प्रश्न 17
अर्थशास्त्र में ‘आभास लगान’ का विचार किसने प्रस्तुत किया ? [2009, 12, 13]
या
आभास लगान की अवधारणा किसने प्रतिपादित की है ? [2015, 15]
उत्तर:
आभास लगाने का विचार सर्वप्रथम मार्शल के द्वारा प्रस्तुत किया गया।

प्रश्न 18
रिकार्डो ने भूमि की उपजाऊ शक्ति को किस प्रकार की शक्ति माना है ?
उत्तर:
रिकाडों ने भूमि की उपजाऊ शक्ति को उसकी मूल तथा अविनाशी शक्ति माना है।

प्रश्न 19
लगान के सिद्धान्त के प्रवर्तक का नाम लिखिए।
या
लगान सिद्धान्त की विधिवत व्याख्या सर्वप्रथम किसने की?
उत्तर:
रिका।

प्रश्न 20
लगान के किन्हीं दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए। [2006, 07]
उत्तर:
(1) आर्थिक लगान तथा
(2) ठेका लगान।

प्रश्न 21
लगान उत्पत्ति के किस साधन को प्राप्त होता है? [2014]
उत्तर:
भूमि को।

प्रश्न 22
लगान किसे दिया जाता है? [2014]
उत्तर:
लगान भूमि के स्वामी को दिया जाता है।

प्रश्न 23
आभासी लगान प्राप्त होता है-अल्पकाल में अथवा दीर्घकाल में? [2014, 15]
उत्तर:
अल्पकाल में।

प्रश्न 24
‘लगान निर्धारण के किन्हीं दो सिद्धान्तों के नाम लिखिए। [2016]
उत्तर:
(1) विस्तृत खेती के अन्तर्गत लगान
(2) गहन खेती के अन्तर्गत लगान।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
लगान सिद्धान्त के जन्मदाता थे [2009]
(क) एडम स्मिथ
(ख) रिकाड
(ग) प्रो० मार्शल
(घ) जे० बी० से
उत्तर:
(ख) रिका।

प्रश्न 2
आभास लगान की अवधारणा के प्रतिपादक हैं [2006, 14]
(क) रिका
(ख) माल्थस
(ग) प्रो० मार्शल
(घ) इनमें से किसी ने नहीं
उत्तर:
(ग) प्रो० मार्शल।

प्रश्न 3
रिकार्डों के अनुसार लगान प्रभावित नहीं करता
(क) माँग को
(ख) कीमत को
(ग) विनिमय को
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) कीमत को।

प्रश्न 4
लगान सिद्धान्त का यथाक्रम व्यवस्थित विकास सबसे पहले किसने किया ?
(क) मार्शल
(ख) माल्थस
(ग) रिकाड
(घ) एडम स्मिथ
उत्तर:
(ग) रिका।

प्रश्न 5
सही उत्तर चुनें
(क) लगान मूल्य को प्रभावित करता है।
(ख) मूल्य लगान को प्रभावित करता है।
(ग) मूल्य और लगाने में कोई सम्बन्ध नहीं होता है
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) मूल्य लगान को प्रभावित करता है।

प्रश्न 6
आभासी लगान प्राप्त होता है ?
(क) भूमि को
(ख) पूँजी को
(ग) श्रम को
(घ) पूँजीगत वस्तुओं को
उत्तर:
(घ) पूँजीगत वस्तुओं को।

प्रश्न 7
ठेके का लगान आर्थिक लगान से हो सकता है
(क) अधिक
(ख) कम
(ग) अधिक या कम
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) अधिक या कम।

प्रश्न 8
“ऊँचे लगान प्रकृति की उदारता के कारण उत्पन्न नहीं होते बल्कि उसकी कंजूसी के कारण उत्पन्न होते हैं।” यह कथन है
(क) प्रो० मार्शल का
(ख) रिकाडों का
(ग) माल्थस का
(घ) रॉबिन्स का।
उत्तर:
(ख) रिकाडों का

प्रश्न 9
लगान की सर्वप्रथम एक स्पष्ट व सन्तोषजनक व्याख्या दी
(क) एडम स्मिथ ने
(ख) मार्शल ने
(ग) रिकाड ने
(घ) जे० एस० मिल ने
उत्तर:
(ग) रिकाडों ने।

प्रश्न 10
विस्तृत खेती में सीमान्त भूमि के आधार पर लगाने का विचार किसका है ?
(क) प्रो० मार्शल का
(ख) रिकाडों का
(ग) कीन्स का
(घ) माल्थस का
उत्तर:
(ख) रिकाडों का।

प्रश्न 11
निम्नलिखित में से कौन-सा एक अल्पकाल से सम्बन्धित है ?
(क) आर्थिक लगान
(ख) दुर्लभता लगान
(ग) आभासी लगान
(घ) वास्तविक लगान
उत्तर:
(ग) आभासी लगान।

प्रश्न 12
आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार, ‘लगान’ प्राप्त होता है [2015]
(क) भूमि को
(ख) श्रम को
(ग) पूँजी को।
(घ) ये सभी
उत्तर:
(क) भूमि को।

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