UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 21 Rural Economy

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 21
Chapter Name Rural Economy (ग्रामीण अर्थव्यवस्था)
Number of Questions Solved 74
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 21 Rural Economy (ग्रामीण अर्थव्यवस्था)

विस्तृत उतरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
ग्राम्य विकास में पंचवर्षीय योजनाओं की विभिन्न उपलब्धियों को समझाइए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता के पश्चात् देश को तीव्र गति से आर्थिक विकास करने के लिए नियोजन का मार्ग अपनाया गया। भारत एक ग्राम-प्रधान देश है। यदि हम भारत का आर्थिक विकास करना चाहते हैं तो ग्राम्य विकास के बिना आर्थिक विकास की कल्पना करना निरर्थक होगा; अतः भारत के आर्थिक विकास के लिए 1950 ई० में योजना आयोग की स्थापना की गयी। देश की प्रथम पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 1951 ई० से प्रारम्भ की गयी तथा अब तक 11 पंचवर्षीय योजनाएँ अपना कार्यकाल पूरा कर चुकी हैं। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में ग्राम्य विकास की ओर सर्वाधिक ध्यान केन्द्रित किया गया है, जिसका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

1. प्रथम पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1951 ई० से 31 मार्च, 1956 ई० तक) – प्रथम पंचवर्षीय योजना की रूपरेखा में कहा गया था कि नियोजन का केन्द्रीय उद्देश्ये जनता के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाना है और उसके लिए एक अधिक सुख-सुविधापूर्ण जीवन प्रदान करना है। प्रथम पंचवर्षीय योजना मुख्य रूप से कृषिप्रधान योजना थी। इस योजना में सम्पूर्ण योजना की लगभग तीन-चौथाई धनराशि कृषि, सिंचाई, शक्ति तथा यातायात पर व्यय की गयी।

2. द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1956 ई० से 31 मार्च, 1961 ई० तक) – द्वितीय पंचवर्षीय योजना में भी कृषि को महत्त्व प्रदान किया गया था, परन्तु औद्योगिक विकास को अधिक प्राथमिकता दी गयी थी। ग्राम्य विकास की ओर द्वितीय योजना में भी पूर्ण ध्यान दिया गया था।

3. तीसरी पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1961 ई० से 31 मार्च, 1966 ई० तक) – तीसरी योजना में ग्राम्य विकास हेतु कृषि विकास को पर्याप्त महत्त्व दिया गया था। योजना आयोग ने कृषि को प्राथमिकता देते हुए लिखा था–“तृतीय योजना की विकास युक्तेि में कृषि को ही अनिवार्यतः सर्वाधिक प्राथमिकता मिलनी चाहिए। पहली दोनों योजनाओं का अनुभव यह प्रदर्शित करता है कि कृषि-क्षेत्र की विकास-दर भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को प्रतिबन्धात्मक कारण है, इसलिए कृषि-उत्पादन को बढ़ाने के यथा-सम्भव अधिक प्रयास करने होंगे।”

4. तीन वार्षिक योजनाएँ (1966-67, 1967-68, 1968-69) – तृतीय पंचवर्षीय योजना 31 मार्च, 1966 ई० को समाप्त हो गयी थी। चतुर्थ योजनों को 1 अप्रैल, 1966 ई० से प्रारम्भ होना चाहिए था, किन्तु तृतीय योजना की असफलता के परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन लगभग स्थिर हो गया था; अतः चौथी योजना को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया गया तथा उसके स्थान पर तीन वार्षिक योजनाएं लागू की गयीं। कुछ अर्थशास्त्रियों ने तो 1966 ई० से 1969 ई० तक की अवधि को ‘योजना अवकाश’ का नाम दिया। चौथी पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 1969 ई० से ही आरम्भ हो सकी।

5. चौथी पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1969 ई० से 31 मार्च, 1974 ई० तक) – तीन वर्ष के योजना अवकाश के बाद देश में कृषि क्षेत्र में हरित क्रान्ति की सफलता के वातावरण में चौथी योजना प्रारम्भ हुई। इस योजना के दो मुख्य उद्देश्य थे – स्थिरता के साथ विकास तथा देश को आत्मनिर्भर बनाना। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए इस योजना में ग्राम्य विकास हेतु निम्नलिखित कदम उठाये गये

  • आर्थिक विकास लगभग 5.5% वार्षिक दर से करना,
  •  कृषि के उत्पादन में वृद्धि करना,
  •  सामाजिक सेवामा को बढ़ाना तथा
  •  पिछड़े क्षेत्रों के विकास पर विशेष बल देना।

इस प्रकार चौथी पंचवर्षीय योजना में ग्राम्य विकास की ओर विशेष महत्त्व दिया गया। चतुर्थ पंचवर्षीय योजना के छ रूप से ग्राम्य विकास हेतु बनाये गये कार्यक्रम थे

  • लघु कृषक विकास एजेन्सी (S.ED.A.),
  • सीमान्त किसान एवं कृषि-श्रमिक एजेन्सी (M.FA.L.A.),
  • सूखा प्रवृत क्षेत्र कार्यक्रम (D.PA.P),
  • ग्रामीण रोजगार के लिए पुरजोर स्कीम (Crash Scheme for Rural Employment) आदि।

6. पाँचवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1974 से 31 मार्च, 1978 ई० तक) – पाँचवीं पंचवर्षीय योजना का कार्यकाल चार वर्ष ही रहा, क्योंकि इस योजना को एक वर्ष पहले ही 1978 ई० में स्थगित कर दिया गया था। इस योजना में ऐसी व्यवस्था की गयी थी कि व्यय की जाने वाली राशि से सभी क्षेत्रों का विशेषत: पिछड़े वर्गों व क्षेत्रों का अधिकतम सन्तुलित विकास हो सके; अत: इस योजना में कृषि, सिंचाई, शक्ति एवं सम्बन्धित क्षेत्रों पर और पिछड़े वर्गों व पिछड़े क्षेत्रों की उन्नति करने पर अधिक बल दिया गया था।

पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में न्यूनतम आवश्यकताओं को राष्ट्रीय कार्यक्रम; जिसमें प्राथमिक शिक्षा, पीने का पानी, ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा, पौष्टिक भोजन, भूमिहीन श्रमिकों को मकानों के लिए जमीन, ग्रामीण सड़कें, ग्रामों का विद्युतीकरण एवं गन्दी बस्तियों की उन्नति एवं सफाई पर अधिक बल दिया गया।
पाँचवीं योजना में, काम के बदले अनाज कार्यक्रम व न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम चलाये गये। ये समस्त योजनाएँ ग्रामीण क्षेत्रों के अति निर्धन लोगों के लिए थीं। इन परियोजनाओं के द्वारा दो प्रकार से सहायता दी जाती थी-एक तो वित्तीय तथा दूसरे, सरकारी लोक कार्य परियोजनाओं से अति निर्धन किसानों व मजदूरों के लिए प्रत्यक्ष रोजगार की व्यवस्था। जनता पार्टी के शासनकाल में समाज के सर्वाधिक निर्धन व्यक्तियों को उत्पादक रोजगार अवसर उपलब्ध कराकर उन्हें निर्धनता के कुचक्र से बाहर निकालने के लिए ‘अन्त्योदय कार्यक्रम’ वर्ष 1977-78 में प्रारम्भ किया गया।

7. छठी पंचवर्षीय योजना ( 1 अप्रैल, 1980 ई० से 31 मार्च, 1985 ई० तक) – जनता पार्टी की सरकार द्वारा 1 अप्रैल, 1978 ई० से ही छठी पंचवर्षीय योजना एक अनवरत योजना के रूप में लागू की गयी थी। लेकिन कांग्रेस सरकार द्वारा इस योजना को दो वर्ष बाद ही 1980 ई० में समाप्त घोषित कर दिया गया और 1 अप्रैल, 1980 ई० से छठी संशोधित पंचवर्षीय योजना लागू की गयी। छठी योजना में ग्रामीण क्षेत्रों में समन्वित विकास का कार्यक्रम चलाया गया। रोजगार के अवसर बढ़ाकर बेरोजगारी दूर करने के लिए श्रमप्रधान क्षेत्रों; जैसे–कृषि, लघु और ग्रामीण उद्योगों तथा इनसे जुड़े हुए कार्यक्रमों को बढ़ाया गया। रोजगार के अवसर बढ़ने से गरीबों की आय बढ़ी और जीवन-स्तर में सुधारे हुआ।

छठी योजना के दौरान 1980 ई० में सरकार ने ग्रामीण श्रम-शक्ति कार्यक्रम, पुरजोर योजना तथा काम के बदले अनाज योजना के स्थान पर राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया। इस कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य लाभकारी रोजगार के अवसरों में वृद्धि, स्थायी सामुदायिक सम्पत्तियों का निर्माण तथा ग्रामीण निर्धनों के आहार स्तर में वृद्धि करना था। ग्रामीण युवा वर्ग की बेरोजगारी को दूर करने के लिए अगस्त, 1979 ई० में ‘ट्राइसेम’ योजना प्रारम्भ की गयी। 1983 ई० में ‘ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया। S.ED.A., M.E.A.L.A आदि योजनाओं के दोहरेपन को दूर करने के लिए 1978-79 ई० में एकीकृत ग्राम्य विकास कार्यक्रम (I.R.D.P) प्रारम्भ किया गया तथा 2 अक्टूबर, 1980 ई० से उसे पूरे देश में लागू कर दिया गया।

8. सातवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1985 ई० से 31 मार्च, 1990 ई० तक) – ग्रामीण विकास हेतु सातवीं पंचवर्षीय योजना में अनेक कार्यक्रम चलाये गये। ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए सातवीं योजना में अप्रैल, 1989 ई० से एक व्यापक योजना ‘जवाहर रोजगार योजना प्रारम्भ की गयी थी। पूर्व में चल रहे दो प्रमुख ग्रामीण रोजगार कार्यक्रमों-राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम’ तथा ‘ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम का विलय अप्रैल, 1989 ई० में जवाहर रोजगार योजना में ही कर दिया गया।

9. आठवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1992 ई०से 31 मार्च, 1997 तक) – तत्कालीन प्रधानमन्त्री एवं योजना आयोग के अध्यक्ष पी०वी० नरसिंह राव के अनुसार, आठवीं योजना के मूलभूत उद्देश्य निम्नलिखित थे

  •  सभी गाँवों एवं समस्त जनसंख्या हेतु पेयजल तथा टीकाकरण सहित प्राथमिक चिकित्सा सुविधाओं का प्रावधान करना तथा मैला ढोने की प्रथा को पूर्णतः समाप्त करना।
  • खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता एवं निर्यात योग्य बचत प्राप्त करने हेतु कृषि का विकास एवं विस्तार करना।
  • प्रारम्भिक शिक्षा को सर्वव्यापक बनाना तथा 15 से 35 वर्ष की आयु के मध्य के लोगों में निरक्षरता को पूर्णतः समाप्त करना।
  • शताब्दी के अन्त तक लगभग पूर्ण रोजगार के स्तर को प्राप्त करने की दृष्टि से पर्याप्त रोजगार का सृजन करना।
  •  2 अक्टूबर, 1993 ई० से सरकार ने रोजगार आश्वासन योजना लागू की।

10. नौवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1997 ई० से 31 मार्च, 2002 ई० तक) – नौवीं पंचवर्षीय योजना में निम्नलिखित उद्देश्य स्वीकार किये गये

  1.  पर्याप्त उत्पादक रोजगार पैदा करना तथा निर्धनता उन्मूलन की दृष्टि से कृषि एवं ग्रामीण विकास को प्राथमिकता देना।
  2.  सभी के लिए, विशेष रूप से समाज के कमजोर वर्गों के लिए, भोजन एवं पोषण की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  3. स्वच्छ पेयजल, प्राथमिक स्वास्थ्य देख-रेख सुविधा, सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा एवं आवास जैसी मूलभूत न्यूनतम सेवाएँ प्रदान करना तथा समयबद्ध तरीके से आपूर्ति सुनिश्चित करना।
  4. गाँवों में रहने वाले गरीबों के लिए स्वरोजगार की ‘स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना’ 1 अप्रैल, 1999 ई० से प्रारम्भ की गयी। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में भारी संख्या में कुटीर उद्योगों की स्थापना करना था। इस योजना में सहायता प्राप्त व्यक्ति स्वरोजगारी कहलाएँगे, लाभार्थी नहीं। इस योजना का उद्देश्य सहायता प्राप्त प्रत्येक परिवार को 3 वर्ष की अवधि में गरीबी रेखा से ऊपर उठाना था। कम-से-कम 50% अनु० जाति/जनजाति, 40% महिलाओं तथा 30% विकलांगों को योजना को लक्ष्य बनाया गया। आगामी 5 वर्षों में प्रत्येक विकास-खण्ड में रहने वाले ग्रामीण गरीबों में से 30% को इस योजना के अन्तर्गत लाने का प्रस्ताव है।

नौवीं पंचवर्षीय योजना में ग्राम्य विकास हेतु विभिन्न मदों पर निम्नलिखित व्यय किये गये
1. कृषि और सम्बद्ध कार्यकलाप                                          ₹ 42,462.00 करोड़
2. ग्रामीण विकास                                                               ₹74,686.00 करोड़
3. सिंचाई और बाढ़ नियन्त्रण                                               ₹55,420.00 करोड़
4. शिक्षा, चिकित्सा व जन-स्वास्थ्य परिवार – कल्याण            ₹1,83,273.00 करोड़
आवास व अन्य सामाजिक सेवाएँ।

11. दसवीं पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 2002 से 31 मार्च, 2007 तक) – 10वीं पंचवर्षीय योजना के दृष्टिकोण पत्र में विकास हेतु जो लक्ष्य निर्धारित किये गये थे, उनमें निर्धनता अनुपात को 2007 ई० तक 20 प्रतिशत तथा 2012 ई० तक 10 प्रतिशत तक लाना, 2007 तक सभी के लिए प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराना, 2001-2011 के दशक में जनसंख्या वृद्धि को 16.2 प्रतिशत तक

सीमित रखना, साक्षरता-दर को 2007 ई० तक 72 प्रतिशत तथा 2012 ई० तक 80 प्रतिशत करना, वनाच्छादित क्षेत्र को 2007 ई० तक 25 प्रतिशत तथा 2012 ई० तक 33 प्रतिशत करना, 2012 ई० तक सभी गाँवों में स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था कराना तथा सभी प्रमुख प्रदूषित नदियों की 2007 ई० तक व अन्य अधिसूचित प्रखण्डों की 2012 ई० तक सफाई कराना आदि सम्मिलित थे।

12. बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017) – भारत की 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के निर्माण की दिशा का मार्ग अक्टूबर, 2011 में उस समय प्रशस्त हो गया जब इस योजना के दृष्टि पत्र (दृष्टिकोण पत्र/दिशा पत्र/Approach Paper ) को राष्ट्रीय विकास परिषद् (NDC) ने स्वीकृति प्रदान कर दी। 1 अप्रैल, 2012 से प्रारम्भ हो चुकी इस पंचवर्षीय योजना के दृष्टि पत्र को योजना आयोग की 20 अगस्त, 2011 की बैठक में स्वीकार कर लिया था तथा केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् ने इसका अनुमोदन 15 सितम्बर, 2011 की अपनी बैठक में किया था। प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय विकास परिषद् की नई दिल्ली में 22 अक्टूबर, 2011 को सम्पन्न हुई इस 56वीं बैठक में दिशा पत्र को कुछेक शर्तों के साथ स्वीकार किया गया। राज्यों द्वारा सुझाए गए कुछ संशोधनों का समायोजन योजना दस्तावेज तैयार करते समय योजना आयोग द्वारा किया जायेगा।

12वीं पंचवर्षीय योजना में वार्षिक विकास दर का लक्ष्य 9 प्रतिशत है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में राज्यों के सहयोग की अपेक्षा प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने की है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कृषि, उद्योग व सेवाओं के क्षेत्र में क्रमश: 4.0 प्रतिशत, 9.6 प्रतिशत व 10.0 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि प्राप्त करने के लक्ष्य तय किये गये हैं। इनके लिए निवेश दर सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की 38.7 प्रतिशत प्राप्त करनी होगी।

बचत की दर जीडीपी के 36.2 प्रतिशत प्राप्त करने का लक्ष्य दृष्टि पत्र में निर्धारित किया गया है। समाप्त हुई 11वीं पंचवर्षीय योजना में निवेश की दर 36.4 प्रतिशत तथा बचत की दर 34.0 प्रतिशत रहने का अनुमान था। 11वीं पंचवर्षीय योजना में वार्षिक विकास दर 8.2 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। 11वीं पंचवर्षीय योजना में थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index) में औसत वार्षिक वृद्धि लगभग 6.0 प्रतिशत अनुमानित था, जो 12वीं पंचवर्षीय योजना में 4.5-5.0 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य है। योजनावधि में केन्द्र सरकार का औसत वार्षिक राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.25 प्रतिशत तक सीमित रखने का लक्ष्य इस योजना के दृष्टि पत्र में निर्धारित किया गया है।

12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) :
दृष्टि पत्र में निर्धारित महत्त्वपूर्ण वार्षिक लक्ष्य एक दृष्टि में
सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि                                            9.0 प्रतिशत
कृषि क्षेत्र में वृद्धि                                                            4.0 प्रतिशत
उद्योग क्षेत्र में वृद्धि                                                         9.6 प्रतिशत
सेवा क्षेत्र में वृद्धि                                                          10.0 प्रतिशत
निवेश दर                                                                    38.7 प्रतिशत  (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में)
बचत दर                                                                      36.2 प्रतिशत (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में)
औसत वार्षिक राजकोषीय घाटा                                    3.25 प्रतिशत (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में)
थोक मूल्य सूचकांक में औसत वार्षिक वृद्धि                   4.5-5.0 प्रतिशत

प्रश्न 2
भारतीय ग्रामीण जलापूर्ति पर एक टिप्पणी लिखिए। जलापूर्ति पर सरकार क्या कदम उठा रही है, उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
व्यक्ति के जीवन के लिए सुरक्षित पेयजल एक अनिवार्य आवश्यकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल आपूर्ति की जिम्मेदारी राज्यों की है और इस प्रयोजन के लिए पहली पंचवर्षीय योजना से ही राज्यों के बजट में निधियों का प्रावधान किया जाता रहा है। पेयजल आपूर्ति की गति में तेजी लाने, राज्यों तथा संघ शासित प्रदेशों को मदद पहुँचाने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1972-73 में त्वरित ग्रामीण जल-आपूर्ति योजना शुरू की थी। कार्य-निष्पादन में सुधार करने, चालू कार्यक्रमों की लागत में मितव्ययिता लाने तथा स्वच्छ पेयजल की पर्याप्त आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए ग्रामीण जल-आपूर्ति क्षेत्र में वैज्ञानिक तथा तकनीकी जानकारी पहुँचाने के उद्देश्य से पूरे कार्यक्रम को एक मिशन का रूप दिया गया। पेयजल तथा इससे सम्बन्धित जल व्यवस्था पर प्रौद्योगिकी मिशन 1986 ई० में शुरू किया गया। इसे राष्ट्रीय पेयजल मिशन भी कहा गया और यह भारत सरकार द्वारा चलाये जा रहे पाँच सामाजिक मिशन में से एक था। राष्ट्रीय पेयजल मिशन का नाम बदलकर 1991 ई० में इसे राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन कर दिया गया।

यह महसूस किया गया था कि स्वच्छ पेयजल आपूर्ति के लक्ष्यों को तब तक प्राप्त नहीं किया जा सकता, जब तक जल की स्वच्छता सम्बन्धी पहलुओं तथा स्वच्छता से जुड़े मुद्दों पर एक साथ ध्यान न दिया जाए। ग्रामीण लोगों के जीवन-स्तर को सुधारने के समग्र लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए 1986 ई० में केन्द्र प्रायोजित ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम शुरू किया गया था।

ऐसी परिकल्पना की गयी कि त्वरित ग्रामीण जल-आपूर्ति कार्यक्रम तथा केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रमों को साथ-साथ चलाए जाने पर पानी से पैदा होने वाली बीमारियों तथा अस्वच्छता की स्थितियों के कारण रोग, रुग्णता तथा गिरते स्वास्थ्य के कुचक्र को तोड़ने में मदद मिलेगी।

त्वरित ग्रामीण जल-आपूर्ति कार्यक्रम का उद्देश्य राज्य-क्षेत्र के न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के अधीनं राज्य सरकारों/संघ शासित प्रदेशों के प्रयासों में सहायता देकर ग्रामीण लोगों को स्वच्छ तथा पर्याप्त पेयजल सुविधाएँ प्रदान करना है। ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजले प्रदान करते समय सामान्यतया होने वाली विभिन्न समस्याओं को ध्यान में रखते हुए सभी राज्यों/संघ शासित प्रदेशों के लिए 56 मिनी-मिशनों (प्रायोगिक परियोजनाओं) की पहचान की गयी थी। इन प्रायोगिक परियोजनाओं से उन मॉडलों, जो दुबारा काम में लाए जा सकते थे तथा चालू कार्यक्रमों में सम्मिलित करने योग्य थे, को विकसित करने में सहायता मिली।

ग्रामीण जल-आपूर्ति कार्यक्रम – प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। भारत सरकार ने ग्रामीण लोगों के वास्तविक रहन-सहन में सुधार लाने के लिए उनकी बुनियादी आवश्यकताएँ पूरी करने को उच्च प्राथमिकता प्रदान की है। इस लक्ष्य को ध्यान में रखकर प्रधानमन्त्री द्वारा वर्ष 2000-01 में प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना शुरू की गयी। प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना में विशेष प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को चुनिन्दा बुनियादी न्यूनतम सेवाओं के लिए अतिरिक्त केन्द्रीय सहायता देने की परिकल्पना है। प्रारम्भ में इसमें पाँच घटक थे, किन्तु वर्ष 2001-02 में इसमें एक नया घटक और जोड़ दिया गया।

इस प्रकार प्राथमिक शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य, ग्रामीण आश्रय, ग्रामीण पेयजल, पोषाहार तथा ग्रामीण विद्युतीकरण प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना के छः घटक हैं। प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना निधियों को 10% ग्रामीण जल-आपूर्ति के लिए निर्धारित किया गया है। राज्य उनके विशेषाधिकार के अन्तर्गत रखी गयी प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना-निधियों के 30% में से अपनी प्राथमिकता के अनुसार और अधिक निधियाँ आवंटित करते हैं।

प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना (ग्रामीण पेयजल) के अन्तर्गत कुल निधियों का कम-से-कम 25% जल-संरक्षण, जल-संग्रहण, जलपुनर्भरण तथा पेयजल स्रोतों के स्थायित्व सम्बन्धी परियोजनाओं और योजनाओं के लिए प्रयोग किया जाता है। सूखा प्रवण क्षेत्र कार्यक्रमों और मरुभूमि विकास कार्यक्रमों के अन्तर्गत आने वाले क्षेत्रों पर जोर दिया जाता है। निधियों का शेष 75% राज्यों द्वारा जल-गुणवत्ता की समस्याओं का निदान करने तथा कवर न की गयी और अंशत: कवर की गयी आबादियों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।

प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना की कुल निधियों का लगभग 35% ग्रामीण पेयजल हेतु इस प्रावधान के साथ निर्धारित किया गया है कि राज्य अपने पास प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना के अन्तर्गत उपलब्ध गैर-आवंटित निधियों के शेष 25% में से अपनी प्राथमिकता के अनुसार और ज्यादा निधियाँ आवंटित कर सकते हैं।
ग्रामीण पेयजल आपूर्ति में प्राप्त उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं

  1.  सरकार के राष्ट्रीय एजेण्डा में 2004 ई० तक सभी आबादियों में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गयी है तथा इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक वृहत् कार्य-योजना तैयार की गयी है, जिसका कार्यान्वयन शुरू किया जा चुका है।
  2. त्वरित ग्रामीण जल-आपूर्ति कार्यक्रम के अन्तर्गत बजट प्रावधान को बढ़ाकर चालू वर्ष में 2,010 करोड़ रुपये कर दिया गया है।
  3.  देश में कुल ग्रामों में से 90% ग्रामों को पेयजल सुविधाएँ पूर्ण रूप से मुहैया करवा दी गयी हैं। तथा शेष 10% ग्रामों को पेयजल सुविधाएँ आंशिक रूप से उपलब्ध करवाई गयी हैं।
  4. ग्राम-स्तर पर सतत मानव विकास पर और अधिक बल देने के लिए वर्ष 2000-01 में प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना शुरू की गयी थी, जिसके अन्तर्गत अन्य पाँच घटकों के साथ-साथ ग्रामीण पेयजल को प्राथमिकता दी जाती है। वर्ष 2001-02 में निर्धारित आवंटन राशि की तुलना में अधिक राशि जारी की गयी।
  5.  जल-गुणवत्ता की समस्याओं के बारे में एक दो-चरणीय राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण शुरू किया गया है।
  6.  ग्रामीण पेयजल क्षेत्र में माँग आधारित और सहभागिता-नीति के आधार पर एक नयी पहल शुरू की गयी है। 26 राज्यों के 63 जिलों में क्षेत्र सुधार प्रायोगिक परियोजनाएँ मंजूर की गयी हैं तथा उसके लिए राज्यों को राशि का आंशिक आवंटन भी किया जा चुका है।

प्रश्न 3
ग्रामीण स्वच्छता पर एक निबन्ध लिखिए। इसके लिए सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्वच्छता के अन्तर्गत मल-मूत्र को हटाने, वर्षा-जल और प्रवाहित द्रव्य के निकास तथा कूड़ा-करकट के निस्तारण के प्रबन्ध आते हैं। उचित एवं पर्याप्त स्वच्छता स्वास्थ्य, उत्पादकता एवं जीवन की गुणवत्ता में सुधार की अनिवार्य शर्ते हैं। देश में स्वच्छता की स्थिति विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में दयनीय है।

केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम ग्रामीण लोगों के रहन-सहन को सुधारने तथा महिलाओं को गोपनीयता तथा अस्मिता प्रदान करने के उद्देश्य से वर्ष 1986 में शुरू किया गया। स्वच्छता की धारणा में ठोस व तरल कूड़ा-करकट, जिसमें मानव मल-मूत्र भी सम्मिलित है, का सुरक्षित तरीके से समापन और व्यक्तिगत, घरेलू तथा वातावरण की स्वच्छता सम्मिलित है। केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम के अन्तर्गत आवंटित केन्द्रीय निधियों से राज्यों को क्षेत्र की न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम के अन्तर्गत उपलब्ध कराये गये संसाधनों की अनुपूर्ति की जाती है।

इस कार्यक्रम के उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1.  ग्रामीण जनता, विशेषकर गरीबी की रेखा से नीचे बसर करने वाले परिवारों को स्वच्छता सुविधाएँ उपलब्ध कराने में तेजी लाना, जिससे ग्रामीण जलापूर्ति के प्रयासों में सहायता मिले।
  2.  स्वैच्छिक संगठनों तथा पंचायती राज संस्थाओं की सहायता से और स्वास्थ्य शिक्षा के माध्यम से सफाई के प्रति जागरूकता पैदा करना।
  3.  सभी विद्यमान शुष्क शौचालयों को कम लागत वाले स्वच्छ शौचालयों में बदलकर सिर पर मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करना।
  4. अन्य उद्देश्यों के लिए कम लागत वाली और उपयुक्त प्रौद्योगिकियों को प्रोत्साहन देना।

कार्यक्रम के घटक

  1. गरीबी की रेखा से नीचे जीवन व्यतीत करने वाले परिवारों के लिए, जहाँ आवश्यक हो, 80 प्रतिशत सब्सिडी सहित अलग-अलग शौचालयों का निर्माण करना।
  2.  अन्य परिवारों को सैनिटरी मार्ट सहित बाजारों से सुविधाएँ प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहन देना।
  3. सैनिटरी मार्ट की स्थापना में मदद करना।
  4.  चयनित क्षेत्रों में जोरदार जागरूकता अभियान शुरू करना।
  5.  विशेष रूप से महिलाओं के लिए स्वच्छ शौचालय परिसरों की स्थापना करना।
  6. शौचालयों के स्थानीय रूप से उपयुक्त तथा स्वीकार्य मॉडलों को प्रोत्साहन देना।
  7. तरल व ठोस कूड़ा-करकट के निपटान के लिए सोखता-गड़ों का निर्माण करके गाँव की पूर्ण स्वच्छता को बढ़ावा देना।

सरकार द्वारा उठाये जा रहे कदम – केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम को वर्ष 1999 में नये सिरे से तैयार किया गया, जिसका उद्देश्य ग्रामीण गरीब लोगों को पर्याप्त स्वच्छता सुविधाएँ उपलब्ध कराना, स्वास्थ्य शिक्षा के सम्बन्ध में जागरूकता बढ़ाना, मौजूद सभी शुष्क शौचघरों को कम लागत के सुलभ शौचालयों में परिवर्तित कर सिर पर मैला ढोने की समस्या का उन्मूलन करना है। इसके अन्तर्गत देश में विभिन्न चरणों में समग्र तौर पर स्वच्छता अभियानों को कार्यान्वयन किया जा रहा है। प्रथम चरण के अन्तर्गत राज्यों द्वारा 58 पायलट जिलों में कार्यान्वयन हेतु पहचान की गयी और इसे सम्पूर्ण देश में 150 जिलों तक बढ़ाया गया है।
ग्रामीण स्कूल स्वच्छता कार्यक्रम को एक मुख्य अवयव के रूप में और ग्रामीण लोगों की प्रारम्भिक स्तर पर इसे व्यापक स्वीकृति के तौर पर आरम्भ किया गया है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य नौवीं योजना के अन्त तक सभी ग्रामीण स्कूलों में शौचघरों का निर्माण कराना है।

नौवीं योजना के प्रारम्भ में स्वच्छता सुविधाओं के साथ ग्रामीण जनसंख्या का कवरेज नौवीं योजना के प्रारम्भ में लगभग 17 प्रतिशत था। इसमें इस योजना के प्रथम कुछ वर्षों के दौरान लगभग तीन प्रतिशत अथवा इसके आसपास वृद्धि हुई।

गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले व्यक्तियों विशेष रूप से अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति तथा मुक्त बन्धुआ श्रमिकों के लिए व्यक्तिगत सुलभ शौचालयों का निर्माण किया जाता है।

वर्ष 2007-08 के बजट में ₹1,060 करोड़ की ग्रामीण स्वच्छता के लिए व्यवस्था की गयी है, जो 75 प्रतिशत आवंटनों सहित राज्यों द्वारा निर्णय किये जाने वाले चयनित जिलों में सम्पूर्ण सफाई अभियान के लिए है।

प्रश्न 4
भारत में स्वास्थ्य से सम्बद्ध समस्याओं के क्या कारण हैं? सरकार ने इस समस्या को हल करने के लिए क्या कदम उठाये हैं?
या
भारत में स्वास्थ्य समस्या पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। [2011]
उत्तर:
भारत में स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या गम्भीर है। देश में मुख्य बीमारियाँ; जैसे – मलेरिया, कालाजार, क्षय रोग, कुष्ठ रोग, कैन्सर, अन्धता, एड्स आदि लगातार बढ़ती जा रही हैं। भारत में स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या के निम्नलिखित कारण हैं

1. कुपोषण – देश की लगभग 46 प्रतिशत जनसंख्या की मासिक आय इतनी कम है कि वे अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करने में भी असमर्थ हैं। परिणामस्वरूप उनका जीवन-स्तर अत्यन्त निम्न है। ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता स्तर के नीचे रहने वाली जनसंख्या की मासिक आय केवल ₹62 और शहरी क्षेत्रों में ₹71 है। स्पष्ट है कि इस आय द्वारा कोई व्यक्ति अपनी न्यूनतम आवश्यकता, दो समय का भोजन, तन ढकने को सामान्य वस्त्र और रहने को सामान्य आवास भी पूरा नहीं कर सकता। इस प्रकार देश की जनसंख्या का इतना बड़ा भाग अत्यन्त दीन-हीन स्थिति में जीवन व्यतीत कर रहा है। पौष्टिक आहार तो उनके लिए कल्पना समान है। जो माताएँ शिशुओं को जन्म दे रही हैं, उन शिशुओं को न तो दूध प्राप्त हो रहा है और न ही माताओं को पौष्टिक आहार मिल रहा है। इसके अभाव में शिशु व माता मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं या अन्य बीमारियों से प्रभावित हो रहे हैं।

2. पर्यावरण प्रदूषण – पर्यावरणीय प्रदूषण मानव-जाति, समस्त जीव-जन्तुओं एवं वनस्पति के जीवन के लिए भयावह है। प्रदूषण से जान लेवा बीमारियाँ; जैसे–फेफड़े की और साँस की बीमारियाँ, ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों के कैन्सर, हैजा, पीलिया आदि बढ़ती जा रही हैं जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव मानव के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।

3. बढ़ती हुई गन्दगी – ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में गन्दगी बढ़ती जा रही है। निर्धनता व अज्ञानता के कारण भारत में अधिकांश व्यक्ति स्वच्छता की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं देते। वे अनेक प्रकार की ऐसी बीमारियों के शिकार हो जाते हैं, जिससे उनका स्वास्थ्य खराब हो जाता है।

4. स्वास्थ्य सुधारों की समस्या – ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सालयों का अभाव है। यदि कोई चिकित्सालय है भी तो वहाँ पर दवाइयों तथा उपकरणों का अभाव है। योग्य एवं अनुभवी डॉक्टर गाँवों में रहना पसन्द नहीं करते। चिकित्सालयों एवं डॉक्टरों के अभाव में स्वास्थ्य बिगड़ जाता है।

5. ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता की ओर ध्यान देना – गाँव के व्यक्ति स्वच्छता की ओर विशेष ध्यान नहीं देते हैं। गाँव के पास कूड़ा-करकट इकट्ठा करना, मल-मूत्र त्याग करना, गन्दे तालाबों से पशुओं को पानी पिलाना व नहलाना, खुले हुए बिना छत के कुओं का होना आदि बातें स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं।

6. स्वास्थ्य के नियमों के प्रति अज्ञानता – अधिकांश ग्रामीण जन आज भी अशिक्षित हैं। उन्हें सन्तुलित आहार, दिनचर्या, योग आदि के विषय में पूर्ण जानकारी नहीं होती है। वे कार्य में इतने अधिक व्यस्त रहते हैं कि स्वास्थ्य की ओर ध्यान ही नहीं दे पाते।

7. अशिक्षा एवं अन्धविश्वास – भारत के ग्रामीण क्षेत्रों की अधिकांश जनता अशिक्षित है; अतः रोगी को अच्छे डॉक्टरों से उपचार न कराकर भूत-प्रेत आदि में विश्वास करके बीमारी को भाग्य के सहारे छोड़ देते हैं, जिसके कारण रोगी गम्भीर रोग से पीड़ित हो जाते हैं तथा दिन-प्रतिदिन उनका स्वास्थ्य बिगड़ता जाता है।

8. निर्धनता – भारत जैसे विकासशील देश में गरीबी का दुश्चक्र चलता रहता है जिससे व्यक्ति निर्धनता की स्थिति में ही बना रहता है। निर्धनता के कारण पर्याप्त भोजन का अभाव रहता है जिससे लोग कुपोषण के शिकार होते हैं और उनका स्वास्थ्य खराब रहता है।

सरकार द्वारा उठाये गये कदम
स्वतन्त्रता के पश्चात् से देश में चिकित्सा, स्वच्छता तथा शिक्षा-सम्बन्धी सुविधाओं के विकास पर विशेष ध्यान दिया गया है। यही कारण है कि देश में जहाँ एक ओर मृत्यु-दर में तेजी से कमी आयी है, वहीं स्त्री तथा पुरुष दोनों की जीवन-प्रत्याशा बढ़ती जा रही है। सरकार ने विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में स्वास्थ्य के प्रति विशेष ध्यान दिया है। स्वतन्त्रता के बाद स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार का श्रेय निम्नलिखित घटकों को जाता है

  1. संक्रामक बीमारियों के नियन्त्रण कार्यक्रम।
  2. ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल के लिए उचित संरचना (अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, आदि) निर्माण।
  3.  स्वास्थ्य सुविधाओं एवं स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या में वृद्धि।
  4. चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसन्धान का विकास।
  5. परिवार-कल्याण कार्यक्रम का विस्तार एवं जन्म-दर में कमी।

केन्द्रीय आयोजन पंरिव्यय का लगभग 54 प्रतिशत मलेरिया, तपेदिक, कुष्ठ रोग, एड्स, दृष्टिहीनता आदि के नियन्त्रण हेतु केन्द्रीय प्रायोजित रोग-नियन्त्रण कार्यक्रमों हेतु रखा गया है। रोग-नियन्त्रण कार्यक्रमों के लिए विभिन्न द्विपक्षीय और बहुपक्षीय एजेन्सियों से भारी विदेशी सहायता भी जुटाई गयी है।

गत चार वर्षों के दौरान, केन्द्र और राज्य सरकारों ने प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों का सुदृढ़ीकरण, चल स्वास्थ्य क्लिनिकों का उपयोग, ओषधियों तथा उपभोज्य की आपूर्ति के सम्भारतन्त्र में सुधार और प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों को गैर-सरकारी संगठनों को सौंपने जैसे महत्त्वपूर्ण प्रयास किये हैं। सात राज्यों ने विश्व बैंक की सहायता से प्रथम रेफरल यूनिटों, जिला अस्पतालों की स्थापना हेतु परियोजनाएँ प्रारम्भ की हैं और उनके साथ गरीबी रेखा से ऊपर के लोगों के लिए प्रयोक्ता प्रभारों का चार्ज करने विषयक एक अवयव की शुरुआत की है। तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों में भी दक्ष जनशक्ति, उपस्कर तथा उपभोज्य के सामान्य अभाव के साथ जटिल नैदानिक तथा रोगोपचार तौर-तरीकों की तेजी से माँग बढ़ रही है।

नवीं योजना में क्षमता निर्माण सम्बन्धी निधि-व्यवस्था, गरीबी रेखा से ऊपर के लोगों के सम्बन्ध में प्रयोक्ता प्रभारों की उगाही और देखभाल की बढ़ती लागत को पूरा करने हेतु वैकल्पिक तौर-तरीकों का पता लगाने जैसे उपायों को भी रेखांकित किया गया है।

प्रश्न 5
स्वतन्त्रता के पश्चात से भारतीय शिक्षा की प्रगति पर एक निबन्ध लिखिए। या भारत में शिक्षा की प्रगति पर एक लेख लिखिए। [2014]
उत्तर:
शिक्षा राष्ट्र के समग्र विकास एवं उसकी समृद्धि का एक सशक्त माध्यम है। प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में शिक्षा का प्रकाश प्रत्येक नागरिक को प्राप्त होना आवश्यक है। अत: सर्वसुलभ शिक्षा हमारी संवैधानिक प्रतिबद्धता है, परन्तु स्वतन्त्रता-प्राप्ति के 58 वर्षों के पश्चात् भी हम भारत में शत-प्रतिशत साक्षरता के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाये हैं। वर्ष 1991 की जनगणना के अनुसार, देश में साक्षरता की दर 52.21 प्रतिशत थी। वर्ष 2011 के आँकड़ों के अनुसार देश में साक्षरता की दर 74.04 प्रतिशत है। पुरुषों व महिलाओं में साक्षरता की अलग-अलग दरें क्रमशः 82.14 प्रतिशत व 65.46 प्रतिशत रही है। साक्षरता के मामले में राज्यों में अग्रणी स्थान केरल का है और सबसे कम साक्षरता बिहार राज्य में है।

भारत एक ग्राम-प्रधान देश है। यदि भारत के ग्रामों का आर्थिक विकास होता है तो सम्पूर्ण भारत का आर्थिक विकास होता है। परन्तु दुर्भाग्य की बात है कि शिक्षा की दृष्टि से भारतीय ग्रामीण क्षेत्र आज भी पिछड़ी हुई स्थिति में हैं। शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता का प्रतिशत बहुत कम है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी निर्धनता, अन्ध-विश्वास आदि व्याप्त है, जिसका प्रमुख कारण निरक्षरता ही

भारत में इस समय शिक्षा पर किया जाने वाला कुल व्यय सकल घरेलू उत्पाद का 3.8 प्रतिशत (1998 के आधार वर्ष) है। शिक्षा पर योजनागत व्यय में पहली पंचवर्षीय योजना से आगे तीव्र वृद्धि भी हुई है। नौवीं पंचवर्षीय योजना में इस क्षेत्र को उच्च प्राथमिकता दी गयी है। इस क्षेत्र को उपलब्ध निधियों में तीन गुना वृद्धि इसका सूचक है। शिक्षा के लिए कुल योजनागत आवंटन में बुनियादी शिक्षा को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है।

राष्ट्रीय शिक्षा-नीति, 1986 और वर्ष 1992 में यथा समीक्षित इसके कार्यक्रम में सभी क्षेत्रों में शिक्षा के सुधार और विस्तार, शिक्षा प्राप्त करने में वैषम्य की समाप्ति, सभी स्तरों पर शिक्षा के स्तर तथा उसकी प्रासंगिकता में सुधार किये जाने के साथ तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा पर जोर देने की बात कही गयी है। शिक्षा नीति का उद्देश्य सभी के लिए शिक्षा प्राप्त करना रहा है, जिसमें प्राथमिक क्षेत्र स्वतन्त्र हो और 6-14 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों को कक्षा पाँच तक नि:शुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा, निरक्षरता का पूर्ण उन्मूलन, व्यवसायीकरण, विशेष जरूरतों वाले बच्चों पर ध्यान देना, महिलाओं, कमजोर वर्गों और अल्पसंख्यकों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देना है।

वर्ष 1950-51 से वर्ष 2010-11 की अवधि के दौरान प्राथमिक स्कूलों की संख्या में तीन गुनी और उच्च प्राथमिक विद्यालयों की संख्या में 15 गुनी वृद्धि हुई है। इस समय राज्य और केन्द्रीय विधान के द्वारा स्थापित 326 विश्वविद्यालय, 131 सम-विश्वविद्यालय और 113 निजी विश्वविद्यालय हैं। उच्च शिक्षा क्षेत्र में मान्यता रहित संस्थानों के अतिरिक्त 1,520 महिला महाविद्यालयों सहित लगभग 11,831 महाविद्यालय हैं।

छठे अखिल भारतीय शिक्षा सर्वेक्षण 1993 ई० के अनुसार, ग्रामीण बस्तियों की 83 प्रतिशत और ग्रामीण जनसंख्या के 94 प्रतिशत हिस्से को 1 किमी की परिधि में प्राथमिक स्कूलों की सुविधा उपलब्ध है। ग्रामीण बस्तियों के 76% और ग्रामीण जनसंख्या के 85 प्रतिशत हिस्से को 3 किमी की परिधि में उच्च प्राथमिक स्कूलों की सुविधा उपलब्ध है। 1993 ई० के पश्चात् से प्राथमिक और उच्च प्राथमिक शिक्षा की उपलब्धता में पर्याप्त सुधार हुआ है।

देश में सकल नामांकन अनुपात महत्त्वपूर्ण रूप से सुधरकर प्राथमिक स्तर के लिए 42.6 प्रतिशत (1950-51) से बढ़कर 94.90 प्रतिशत (1999-2000) और उच्च प्राथमिक स्तर के लिए 12.7 प्रतिशत (1950-51) से बढ़कर 58.79 प्रतिशत (1999-2000) हो गया है। ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में पुरुष व महिला दोनों की साक्षरता में प्रशंसनीय सुधार हुआ है।

प्रश्न 6
राष्ट्रीय शिक्षा-नीति, 1986 ई० पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:
मानवीय सम्भावनाओं के विकास में शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बदलते समय की चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रत्येक देश अपनी शिक्षा-व्यवस्था विकसित करता है। भारत के सन्दर्भ में विकासोन्मुख शिक्षा-व्यवस्था हमारे अतीत के अनुभवों व वर्तमान की आवश्यकताओं पर आधारित होकर हमारी जनता के साथ-साथ मानवता के लिए एक अच्छे भविष्य का निर्माण कर सकेगी।

राष्ट्रीय शिक्षा-नीति का निर्माण व क्रियान्वयन इसी सन्दर्भ में देखा व समझा जाना चाहिए। संसद ने 1986 ई० के अपने बजट अधिवेशन में राष्ट्रीय शिक्षा-नीति को स्वीकार किया था। इसमें शिक्षा के क्षेत्र में सामान्य निर्देशों व विशेष महत्त्व के क्षेत्रों की ओर संकेत किया गया है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 ई० इस मूलभूत सिद्धान्त पर आधारित है-“शिक्षा वर्तमान और भविष्य में विशिष्ट पूँजी निवेश है। इसका अर्थ है कि शिक्षा सभी के लिए है। शिक्षा समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और प्रजातन्त्र जो हमारे संविधान के आदर्श हैं, के उद्देश्यों को आगे बढ़ा सकती है और अर्थव्यवस्था के विशेष क्षेत्रों में प्रशिक्षित जनशक्ति प्रदान कर सकती है।

1. शिक्षा के बारे में राष्ट्रीय दृष्टिकोण – शिक्षा-नीति शिक्षा के प्रति एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करती है। यह इस बात की ओर संकेत करती है कि राष्ट्रीय शिक्षा-व्यवस्था के विकास के लिए निरन्तर प्रयत्नों की आवश्यकता है। राष्ट्रीय शिक्षा-व्यवस्था का अर्थ एक समान व संकीर्ण व्यवस्था नहीं है। यह एक व्यापक ढाँचे के अन्तर्गत लचीला रुख अपनाने की अनुमति देती है। राष्ट्रीय शिक्षा के सिद्धान्त का अर्थ है

  • सभी के लिए शिक्षा, सफलता व उच्च स्तर प्राप्ति के अवसर,
  • शिक्षा का समान ढाँचा,
  • एक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा तथा
  •  हर चरण में एक निश्चित अध्ययन का स्तर।

2. समानता के लिए शिक्षा – राष्ट्रीय शिक्षा-नीति असमान अवसरों को दूर करने तथा उन सभी लोगों को शिक्षा के समान अवसर देने पर जोर देती है, जिन्हें अभी यह अवसर नहीं मिल पाया है

(i) लड़कियों के लिए – राष्ट्रीय शिक्षा नीति सभी के अधिकारों में वृद्धि करने के लिए सकारात्मक भूमिका निभाएगी। शिक्षा द्वारा स्त्रियों के सम्मान के स्तर में वृद्धि की जाएगी, स्त्रियों के अध्ययन को प्रोत्साहन दिया जाएगा तथा उनके विकास के लिए सक्रिय कार्यक्रम अपनाये जाएँगे। स्त्रियों में अशिक्षा को दूर करने, शिक्षा के अवसर में आने वाली बाधाओं को दूर करने व उन्हें
आरम्भिक शिक्षा में बनाये रखने के लिए सर्वाधिक प्राथमिकता दी जाएगी। इसके लिए विशेष साधन प्रदान किये जाएँगे तथा उसके बारे में निरन्तर सूचना प्राप्त की जाएगी।

(ii) अनुसूचित जातियों के लिए  – राष्ट्रीय शिक्षा नीति में अनुसूचित जातियों सहित समाज में पिछड़े वर्ग के सभी लोगों के लिए शिक्षा के समुचित क्षेत्र में प्रोत्साहन की सिफारिश की गयी है।

(iii) अनुसूचित जनजातियों के लिए – जनजाति क्षेत्र में स्कूल खोलने को प्राथमिकता दी जाएगी। आरम्भिक वर्षों के लिए विशेष पढ़ाई की व्यवस्था की जाएगी जिससे उन्हें क्षेत्रीय भाषा में शिक्षा देने का प्रबन्ध हो सके। अनुसूचित जातियों की भाँति यहाँ भी अध्यापक शिक्षित जनजाति के युवकों में से चुने जाएँगे।

(iv) अन्य पिछड़े वर्ग व क्षेत्र के लिए –
शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हुए वर्गों को खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, समुचित प्रोत्साहन दिया जाएगा।

(v)अल्पसंख्यकों के लिए – 
कुछ अल्पसंख्यक समूह शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े हुए हैं, वे शिक्षा से वंचित हैं। इन समूहों के लिए शिक्षा की व्यवस्था पर अधिक ध्यान दिया जाएगा।

(vi) विकलांगों के लिए – 
जिला मुख्यालयों पर विकलांग छात्रों के लिए विकलांगों को व्यावसायिक शिक्षा देने के भी पर्याप्त प्रबन्ध होंगे। राष्ट्रीय शिक्षा-नीति के अन्तर्गत अपंग लोगों की विशेष कठिनाइयों को दूर करने के लिए प्राथमिक कक्षा के अध्यापकों के प्रशिक्षण पर जोर दिया गया है।

(vii) शिक्षा का समान ढाँचा –
शिक्षा आयोग (1964-66) ने 10+2+3 के रूप में सारे देश के लिए समान ढाँचे की सिफारिश की है। 1968 के बाद देश के अधिकांश राज्यों ने इस ढाँचे को स्वीकार किया है और बाकी राज्य इसे अपनाने की प्रक्रिया में जुटे हैं।

इस उपलब्धि की प्रशंसा करते हुए राष्ट्रीय शिक्षा-नीति, 1986 ने सिफारिश की है कि प्रथम दसवर्षीय शिक्षा में 5 वर्ष प्राथमिक, 3 वर्ष उच्च प्राथमिक व 2 वर्ष माध्यमिक शिक्षा को दिये जाएँ। 5 वर्ष प्राथमिक व 3 वर्ष उच्च प्राथमिक, इस प्रकार कुल मिलाकर 8 वर्ष की आरम्भिक शिक्षा होगी।

3. राष्ट्रीय पाठ्यक्रम ढाँचा – राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने एक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा बनायी है, जिसमें कुछ समान तत्त्व होंगे। साथ ही कुछ ऐसे तत्त्व भी होंगे जहाँ लचीली नीति अपनायी जाएगी। आरम्भिक व माध्यमिक स्तर पर पाठ्यक्रम की आधारभूत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • विकास के राष्ट्रीय लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मानव संसाधनों का विकास।
  • सभी बच्चों के लिए प्राथमिक, उच्च प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर तक व्यापक सामान्य शिक्षा का प्रावधान।
  • प्राइमरी, उच्च प्राइमरी तथा माध्यमिक स्तर पर पढ़ाई की समान रूपरेखा।
  • पाठ्यक्रम में भारत का स्वतन्त्रता आन्दोलन, संवैधानिक दायित्व, राष्ट्रीय अस्मिता को मजबूत बनाना, भारत की समान संस्कृति परम्परा, समता, प्रजातन्त्र, धर्मनिरपेक्षता, स्त्री-पुरुष समानता, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक विभेद का निराकरण तथा वैज्ञानिक स्वभाव का निर्माण ये प्रमुख तत्त्व हैं। जो समान रूप से सभी स्कूलों में पढ़ाए जाएँगे।

प्रश्न 7
शिक्षा के सामाजिक आधारभूत ढाँचे को सुदृढ़ करने के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा चलायी गयी योजनाओं में से किन्हीं तीन का वर्णन कीजिए।
या
सर्व शिक्षा अभियान पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए। [2011]
उत्तर:
शिक्षा की दृष्टि से साधनहीन लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने और शिक्षा हेतु सामाजिक आधारभूत ढाँचे को मजबूत बनाने के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा अनेक योजनाएँ प्रारम्भ की गयी हैं, जो निम्नलिखित हैं

  1. ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड (ओ०बी०)
  2. जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम (डी०पी०ई०पी०)
  3. अनौपचारिक शिक्षा (एन०एफ०ई०)
  4. शिक्षा गारण्टी योजना और वैकल्पिक तथा नवीन शिक्षा (ई०जी०एस०एण्डए०ई०आई०)
  5. महिला समाख्या, शिक्षक शिक्षा (टी०ई०)
  6. दोपहर के भोजन की योजना-लोक जुम्बिश, शिक्षाकर्मी परियोजना (जी०एस०के०पी०)
  7. वर्ष 2001-02 में राज्यों के साथ मिलकर ‘सर्व शिक्षा अभियान

उपर्युक्त योजनाओं में से तीन का वर्णन निम्नलिखित है

1. ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड – ‘प्रारम्भिक शिक्षा सबको दी जाए’ यह हमारी शिक्षा-नीति का एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है। हमारे संविधान में 14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए नि:शुल्क शिक्षा का प्रावधान है। राष्ट्रीय शिक्षा-नीति, 1986 ई० और प्रोग्राम ऑफ ऐक्शन’ के अन्तर्गत प्राथमिक शिक्षा को सभी दृष्टियों से सुधारने के लिए कई सुझाव दिये गये हैं, इनमें से एक है – ‘ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड’। यह एक प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति है। इसका लक्ष्य है-प्राथमिक स्कूलों को दी जाने वाली भौतिक सुविधाओं में आवश्यक सुधार। ‘ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड में अभी तक के सभी प्राइमरी स्कूलों को दी जाने वाली कम-से-कम सुविधाओं का स्तर निश्चित किया गया है।

  • प्रत्येक प्राथमिक स्कूल को कम – से – कम दो बड़े कमरे दिये जाएँ जो हर मौसम में काम आ सकें। उनके साथ एक बड़ा बरांडा और दो टॉयलेट होने चाहिए–एक लड़कों के लिए और दूसरा लड़कियों के लिए।
  • प्रत्येक प्राथमिक स्कूल में कम – से – कम दो शिक्षक होने चाहिए। अगर सम्भव हो सके तो एक महिला शिक्षिका भी होनी चाहिए।
  • प्रत्येक प्राथमिक स्कूल को आवश्यक अध्ययन-अध्यापन सामग्री दी जाए; जैसे – ग्लोब, नक्शे, शिक्षण-चार्ट, कार्यानुभव क्रियाकलापों के टूल्स, विज्ञान किट, गणित किट, पाठ्य-पुस्तकें, पाठ्यरूम, पत्रिकाएँ आदि।

2. अनौपचारिक शिक्षा – ऐसे बच्चे जो बीच में स्कूल छोड़ गये हैं या जो ऐसे स्थान पर रहते हैं, जहाँ स्कूल नहीं हैं या जो काम में लगे हैं और वे लड़कियाँ जो दिन के स्कूल में पूरे समय नहीं आ सकतीं, इन सबके लिए एक विशाल और व्यवस्थित अनौपचारिक शिक्षा का कार्यक्रम चलाया गया है।

अनौपचारिक शिक्षा केन्द्रों में सीखने की प्रक्रिया को सुधारने के लिए आधुनिक टेक्नोलॉजी के उपकरणों की सहायता ली जाएगी। इन केन्द्रों में अनुदेशक के तौर पर काम करने के लिए स्थानीय समुदाय के प्रतिभावान् और निष्ठावान् युवकों और युवतियों को चुना जाएगा और उनके प्रशिक्षण की विशेष व्यवस्था की जाएगी। अनौपचारिक धारा में शिक्षा प्राप्त करने वाले बच्चे योग्यतानुसार औपचारिक धारा के विद्यालयों में प्रवेश पा सकेंगे। इस बात पर पूरा ध्यान दिया जाएगा कि अनौपचारिक शिक्षा का स्तर औपचारिक शिक्षा के समतुल्य हो। अनौपचारिक शिक्षा केन्द्रों को चलाने का अधिकतर कार्य स्वयंसेवी संस्थाएँ और पंचायती राज की संस्थाएँ करेंगी। इस कार्य के लिए इन संस्थाओं को पर्याप्त धन, समय पर दिया जाएगा। इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र का उत्तरदायित्व सरकार पर होगा।

3. सर्व शिक्षा अभियान – वर्ष 2001-02 में राज्यों के साथ मिलकर, सर्व शिक्षा अभियान, प्रारम्भ करके एक समयबद्ध समेकित दृष्टिकोण अपनाकर सभी को प्राथमिक शिक्षा देने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए महत्त्वपूर्ण उपाय किये गये। ‘सर्व शिक्षा अभियान’ की योजना को विकेन्द्रीकृत किया। जाएगा और सामुदायिक स्वामित्व और अनुवीक्षण को उच्चतम प्राथमिकता दी जाएगी। यह कार्यक्रम आगे चलकर विदेशी सहायता प्राप्त कार्यक्रमों सहित सभी मौजूदा कार्यक्रमों को अपनी संरचना में सम्मिलित कर लेगा, जिसमें कार्यक्रम कार्यान्वयन की इकाई जिला होगी।
यह मिशन के रूप में प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण हेतु एक केन्द्र प्रायोजित स्कीम है। इस नये ढाँचे के अन्तर्गत केन्द्रीय और केन्द्र द्वारा प्रायोजित श्रेणी में राज्यों की भागीदारी एवं परामर्श से प्राथमिक शिक्षा के सभी विद्यमान कार्यक्रमों को समाविष्ट किया जाना है। सर्व शिक्षा अभियान के लक्ष्य निम्नलिखित हैं

  • वर्ष 2003 तक 6 – 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चे स्कूलों/शिक्षा गारण्टी केन्द्रों/ब्रिज पाठ्यक्रमों में हों।
  • वर्ष 2007 तक 6 – 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चे पाँच वर्ष की प्राथमिक शिक्षा पूरी करें।
  • वर्ष 2010 तक 6 – 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चे स्कूली शिक्षा के आठ वर्ष पूरे करें।
  • जीवन के लिए शिक्षा पर जोर देते हुए सन्तोषजनक स्तर की बुनियादी शिक्षा पर ध्यान देना।
  • प्राथमिक स्तर पर वर्ष 2007 तक और बुनियादी शिक्षा के स्तर पर वर्ष 2010 तक सभी लिंग – सम्बन्धी और सामाजिक वर्गीकरण के अन्तरों को समाप्त करना।
  • वर्ष 2010 तक सार्वजनिक तौर पर स्कूली शिक्षा लेना।

प्रश्न 8
सामाजिक वानिकी किसे कहते हैं? सामाजिक वानिकी की आवश्यकता एवं महत्त्व को बताइए।
उत्तर:
सामाजिक वानिकी का अर्थ
वनों को समाजोन्मुख बनाकर सम्वर्द्धन तथा संरक्षण की नीति को सामाजिक वानिकी नीति कहा गया है।” वनों के समीप के ग्रामीण वनों से अनियन्त्रित चारा एवं लकड़ी काटते हैं। ठेकेदार आदि लाभ के लोभ में वनों की अनियमित एवं अनियन्त्रित कटाई कर देते हैं जिसके कारण दिन-प्रतिदिन वनों का ह्रास हो रहा है। वनों के विनाश को देखकर वन-विभाग द्वारा वनों के रक्षण की नीति अपनायी गयी। ग्रामीणों को चारा तथा लकड़ी काटने पर वन विभाग द्वारा रोक लगा दी गयी। इस प्रकार वन-विभाग द्वारा वनों की सुरक्षा होने लगी। वन विभाग की कंड़ी सुरक्षा के कारण लोगों को असुविधा होने लगी जिसके कारण सामान्य जन का वनों से लगाव कम हो गया। ऐसी स्थिति में वन नीति पर पुनर्विचार किया गया तथा यह अनुभव किया गया कि वनों का विकास तभी सम्भव है जब वनों तथा सामान्य लोगों के मध्य पारस्परिक निर्भरता तथा उत्तरदायित्व का विकास किया जाए, वनों को समाजोन्मुख बनाकर ही वनों का विकास एवं संरक्षण किया जा सकता है।

सामाजिक वानिकी कार्यक्रम के अन्तर्गत समाज के लोग स्वयं वृक्षों को लगाते हैं, वनों को सुरक्षा प्रदान करते हैं तथा वनों के विकास में सहयोग देते हैं। यह योजना जन सहयोग पर आधारित है। लक्ष्य यह कि कोई भी भूमि जहाँ पेड़ लग सकते हैं पेड़ों से खाली न रहे। ग्राम समाजों, विकास खण्डों, जिला पंचायतों, स्कूलों, कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों के माध्यम से वृहद् स्तर पर वृक्षारोपण का कार्यक्रम क्रियान्वित किया जाए। वनों की सुरक्षा के लिए अलग चरागाह होने चाहिए।

सामाजिक वानिकी की आवश्यकता एवं महत्त्व
सन्तुलित पर्यावरण की संरचना पर मानव-जीवन का सुख निर्भर है और वन सन्तुलित पर्यावरण का प्रमुख घटक है। यह तभी सम्भव है जब हम अपनी प्राकृतिक निधियों को नष्ट न होने दें, बल्कि उन्हें संजोकर रखें। पर्यावरण में सन्तुलन होगा तो वर्षा होगी, स्वच्छ जल मिलेगा तथा वन बने रहेंगे, परिणामस्वरूप वनों की रक्षा से पर्यावरण सन्तुलित होगा, जिससे सम्पूर्ण प्राणि-जगत् को कल्याण होगा। वातावरण और पारिस्थितिकी में सन्तुलन स्थापित होगा।

वृक्ष जन्म से लेकर मृत्यु तक हमारे साथी हैं। मनुष्य प्राचीन काल से अद्यतन दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुएँ वनों से ही प्राप्त करता आ रहा है; यथा-भवन निर्माण हेतु इमारती लकड़ी, बाँस, घास, फर्नीचर की लकड़ी, ओषधियाँ, खाने के लिए विभिन्न प्रकार के फल-फूल आदि।

सुखमय भविष्य एवं स्वच्छ पर्यावरण के लिए वृक्षों को लगाना, वनों का संरक्षण एवं सम्वर्द्धन करना अति आवश्यक है। वृक्षों के द्वारा ही पर्यावरण के प्रदूषण पर नियन्त्रण किया जा सकता है। वृक्षारोपण से रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं। कुछ वृक्ष ओषधियाँ प्रदान करते हैं। उपर्युक्त बातों से सामाजिक वानिकी की उपयोगिता सिद्ध होती है। इसी से विश्व-कल्याण एवं मानव-कल्याण सम्भव है।

पालतू पशुओं एवं वन्य-जन्तुओं के लिए घास-पत्ती, फल-फूल तथा आवासीय सुविधा वृक्षों से ही प्राप्त होती है। मांसाहारी पशु-शाकाहारी जन्तुओं पर आश्रित रहते हैं। शाकाहारी जन्तु वनस्पतियों पर आश्रित रहते हैं। इस प्रकार सभी जीवधारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वनस्पतियों पर आश्रित रहते हैं।

अनेक उद्योगों के लिए कच्चा माल वृक्षों से ही प्राप्त होता है; जैसे – दियासलाई, कागज, प्लाइवुड, पैकिंग केस, लाख, कत्था, तारपीन, बिरोजा, खेलकूद का सामान तथा विभिन्न प्रकार के काष्ठोपकरण हेतु उपयोगी काष्ठ।

वृक्ष प्राण-वायु (ऑक्सीजन) प्रदान करते हैं। श्वसन में प्रत्येक जीवधारी अशुद्ध वायु (कार्बन डाइ-ऑक्साइड) छोड़ते हैं और शुद्ध वायु (ऑक्सीजन) ग्रहण करते हैं। वृक्ष अशुद्ध वायु (कार्बन डाइ-ऑक्साइड को अपने भोजन बनाने में ग्रहण करते हैं और शुद्ध वायु (ऑक्सीजन) छोड़ते हैं। यह शुद्ध वायु हमें सभी प्राणियों की प्राण वायु है। इस प्रकार वृक्ष वायुमण्डल में विभिन्न गैसों को सन्तुलन बनाये रखते हैं।

वृक्षों से जलवायु का नियन्त्रण एवं भूमि संरक्षण होता है। वर्षा को सन्तुलित करना, गर्मी-सर्दी को अनुकूल रखना तथा हवा व पानी के वेग को नियन्त्रित रखकर मिट्टी के कटाव को रोकना, वृक्षों और वनों का ही काम है।

प्रश्न 9
“वन हमारी राष्ट्रीय निधि हैं।” स्पष्ट कीजिए।
या
भारतीय अर्थव्यवस्था में वनों के महत्त्व की विवेचना कीजिए। [2010]
या
वनों से होने वाले प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लाभ लिखिए। [2011, 16]
उत्तर:
वन राष्ट्रीय निधि हैं या वनों का महत्त्व
किसी देश के आर्थिक विकास व समृद्धि में वनों का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। वनों से राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है, व्यक्तियों को रोजगार मिलता है, उद्योगों का विकास होता है, बाढ़ पर नियन्त्रण होता है तथा मिट्टी के कटाव को रोकने के साथ-साथ जलवायु को नियन्त्रित करके वन नागरिकों के शारीरिक व मानसिक विकास में अपना योगदान देते हैं। इसी कारण वनों को राष्ट्र की निधि’ माना जाता है। वनों से प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से लाभ प्राप्त होते हैं।

प्रत्यक्ष लाभ
वनों से प्राप्त होने वाले प्रत्यक्ष लाभ निम्नलिखित हैं

  1. वन बहुमूल्य एवं उपयोगी लकड़ी के एकमात्र स्रोत हैं। वनों से प्राप्त होने वाली आय का 75% भाग लकड़ियों के रूप में ही प्राप्त होता है। इन लकड़ियों का उपयोग फर्नीचर बनाने तथा ईंधन के लिए किया जाता है।
  2. पशुओं का प्रिय चारों वनों में उगने वाली घास तथा पेड़ों की हरी-भरी पत्तियाँ हैं; अतः वन पशुओं को चराने के लिए उत्तम एवं विस्तृत चरागाह की सुविधा भी प्रदान करते हैं।
  3. वनों में अनेक प्रकार के पशु-पक्षी निवास करते है; अतः शिकारियों के लिए वन प्रमुख आखेट-स्थल होते हैं। इन वन्य पशुओं से मांस, खाल, हड्डी, सींग एवं हाथीदाँत जैसी उपयोगी वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। सरकार ने पशुओं के शिकार पर अब रोक लगा दी है।
  4. वृक्षों की पत्तियाँ भूमि पर गिरकर सड़-गल जाती हैं, जो भूमि को प्राकृतिक खाद प्रदान करती हैं। इस प्रकार वनों से भूमि की उर्वरा-शक्ति में पर्याप्त वृद्धि हो जाती है।
  5. वनों से प्राप्त अनेक वस्तुओं का निर्यात विदेशों को किया जाता है, जिससे सरकार को करोड़ों रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। लाख, प्लाइवुड, खेल का सामान तथा चन्दन की लकड़ी एवं विशिष्ट जीवों की खालों का विदेशों को निर्यात किया जाता है। इन वस्तुओं के निर्यात से प्रतिवर्ष भारत सरकार को लगभग ₹ 50 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
  6. वनों से प्राप्त कच्चे माल पर अनेक उद्योग-धन्धे निर्भर हैं। वन हमें गोंद, रबर, लाख, बाँस, कत्था, तारपीन का तेल तथा चन्दन जैसे उपयोगी पदार्थ प्रदान करते हैं। इन पदार्थों का उपयोग अनेक उपयोगी तथा महत्त्वपूर्ण वस्तुओं के निर्माण में किया जाता है।
  7. वृक्ष फल-फूलों के विशाल भण्डार हैं; अत: वनों से हमें अनेक प्रकार के फल-फूल प्राप्त होते हैं। इनका उपयोग विभिन्न प्रकार से किया जाता है।
  8. वनों से हमें अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियाँ तथा ओषधियाँ प्राप्त होती हैं। हरड़-बहेड़ा, आँवला इसी प्रकार की बहु-उपयोगी ओषधियाँ हैं। वनों से हमें अमृत-तुल्य शहद भी प्राप्त होता है।
  9. वन राष्ट्रीय आय का एक प्रमुख स्रोत हैं। वनों से प्राप्त प्राकृतिक सम्पत्ति देश के लिए आय का एक मुख्य स्रोत है।

अप्रत्यक्ष लाभ
वनों से प्राप्त होने वाले अप्रत्यक्ष लाभ निम्नलिखित हैं

  1. वन वायुमण्डल में नमी उत्पन्न कर देते हैं। यह नमी वर्षा करने में सहायक होती है।
  2. वन मरुस्थल के प्रसार को भी रोकते हैं। वृक्ष वायु के कटाव-कार्य एवं गति में बाधक बनते हैं। बालू का प्रसार वृक्षों के होते हुए नहीं हो पाता।।
  3. वृक्षों की जड़े जल-शोषण का कार्य करती हैं। वर्षा होते ही वृक्षों की जड़े पानी को चूसकर नीचे पहुँचा देती हैं जिससे भूमिगत जल का स्तर ऊँचा हो जाता है, जिसका उपयोग हम करते हैं।
  4. वन देश की प्राकृतिक सुन्दरता में वृद्धि करते हैं। वनाच्छादित हरी-भरी भूमि नयनों को बड़ी सुहावनी प्रतीत होती है। भारतीय चिन्तन और दर्शन वनों की ही देन हैं। वन सैर-सपाटे और मनोरंजन के केन्द्र होते हैं।
  5. वन जल के वेग को नियन्त्रित करके बाढ़ों की रोकथाम करते हैं। जिन क्षेत्रों में वन हैं वहाँ बाढ़ों का प्रकोप बहुत कम होता है।
  6. वन मिट्टी के कटाव को रोकते हैं, क्योंकि वृक्षों के कारण पवन एवं जल अपना कटाव-कार्य नहीं कर पाते; क्योंकि वृक्षों की जड़े भूमि को जकड़ लेती हैं तथा अपरदन के कारकों की गति पर नियन्त्रण करती हैं।
  7. वन वायुमण्डल प्रदूषण को रोकते हैं। वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड को ऑक्सीजन में बदलकर वायुमण्डल की गैसों का सन्तुलन ठीक रखते हैं, तापमान को सन्तुलित बनाये रखते हैं तथा वायुमण्डल की शुष्कता को कम करते हैं।
  8. वन कृषि के क्षेत्र में अनेक प्रकार से सहायता करते हैं। ये कृषि के लिए उपजाऊ क्षेत्र, खाद, कृषि-यन्त्र बनाने के लिए काष्ठ, पशुओं के लिए चारा तथा भूमि-संरक्षण जैसी सुविधाएँ प्रदान करते हैं।
    वनों के उपर्युक्त महत्त्व को देखते हुए वनों को राष्ट्रीय निधि अथवा हरा सोना भी कहते हैं।

पं० जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, “उगता हुआ वृक्ष प्रगतिशील राष्ट्र का प्रतीक है।” वन राष्ट्र की अमूल्य निधि हैं। वन मनुष्य को उसकी प्राथमिक आवश्यकता की पूर्ति कराते हैं। वन राष्ट्र की समृद्धि की नींव तथा राष्ट्रीय आय के प्रमुख स्रोत हैं। वनों से ढकी हरी-भरी भूमि तथा पर्वतीय ढाल रमणीक और सुरम्य प्रतीत होते हैं। प्रकृति द्वारा मानव को प्रदत्त निःशुल्क उपहारों में से वन सबसे महत्त्वपूर्ण हैं।

प्रश्न 10
वनों के संरक्षण हेतु कुछ सुझाव प्रस्तुत कीजिए।
या
वन संरक्षण के लिए कोई दो सुझाव दीजिए। [2016]
उत्तर:
भारत में वनों को संरक्षण देने एवं उन्हें विकसित करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं

1. वन-क्षेत्रों का विकास – वन व्यवसाय की उन्नति के लिए अधिक आवश्यक कार्य वन-क्षेत्र का विस्तार करना है। राष्ट्रीय वन-नीति के अनुसार देश के एक-तिहाई भाग तक वन विस्तार की परियोजना अपनायी जानी चाहिए। किन्तु इस दशा में सफलता नहीं मिली है। वृक्षारोपण कार्य को गति दी जानी चाहिए जिससे इस उद्देश्य की पूर्ति हो सके।

2. वनों का उचित दोहन – पिछले तीन दशकों में 43 लाख हेक्टेयर भूमि से वनों का सफाया किया जा चुका है। वनों के अनुचित दोहन को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिए

  • सरकार को वनों के संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए।
  • वनों पर सरकारी नियन्त्रण कठोर होना चाहिए।
  • वन अधिकारियों को भली प्रकार प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
  • वनों के अन्धाधुन्ध कटने पर पूर्णत: रोक लगा देनी चाहिए एवं उस पर सख्ती से अमल करना चाहिए।

3. वन-क्षेत्रों में परिवहन की सुविधाएँ जुटाना – भारतीय वन ऊँचे एवं दुर्गम क्षेत्रों में हैं, परन्तु यातायात की सुविधा न होने के कारण उनका दोहन सम्भव नहीं है। वन-क्षेत्रों तक सस्ते और द्रुत साधनों की व्यवस्था की जानी चाहिए।

4. उद्योगों का विकास-वन – उद्योगों को प्रोत्साहित करने के लिए वनों से प्राप्त पदार्थों के उपयोग की समुचित व्यवस्था तथा उन वस्तुओं से सम्बन्धित उद्योगों का विकास किया जाना चाहिए। वन्य-पदार्थों का निर्यात विदेशों को किया जाए तथा पूँजीपतियों को इस उद्योग में अधिक-से-अधिक पूँजी लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।

5. वनों को काटने पर रोक – गाँवों एवं वन-क्षेत्रों के निकटवर्ती भागों में लकड़ी को ईंधन के रूप में जलाकर नष्ट कर दिया जाता है। लकड़ी के इस अनुचित उपयोग को रोका जाना चाहिए, जिससे इसका उपयोग अधिक महत्त्वपूर्ण कार्यों में किया जा सके।

6. वन-सम्बन्धी शिक्षा तथा अनुसन्धान को प्रोत्साहन – वन व्यवसाय की उन्नति के लिए वन सम्बन्धी शिक्षा का प्रसार किया जाना चाहिए। व्यक्तियों को प्रशिक्षित करने के लिए वन विद्यालय खोले जाने चाहिए। वन सम्बन्धी शिक्षा देकर ही वनों को समाज के बीच लगाया या समृद्ध किया जा सकता है। सामाजिक वानिकी’ इसकी एक उदाहरण है।

7. वन महोत्सव – वनों को विनाश से बचाने के लिए भारत में 1952 ई० से वन महोत्सव कार्यक्रम का प्रारम्भ किया गया। इसके जन्मदाता भूतपूर्व केन्द्रीय कृषि मन्त्री श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी थे। उनके शब्दों में, “वृक्षों का अर्थ है जल, जल का अर्थ है रोटी और रोटी ही जीवन है। सरकार द्वारा अपनी वन-नीति के आधार पर जुलाई, 1952 ई० से लगातार वन महोत्सव मनाना प्रारम्भ किया गया। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत खेतों की मेंड़ों, नदियों एवं नहरों के किनारे, सड़क एवं रेलमार्गों के किनारे एवं सार्वजनिक स्थानों पर वृक्ष लगाए जाते हैं। आशा की जाती है कि इस कार्यक्रम से भारत के 33.33% क्षेत्रफल पर वनों का विस्तार होगा।

8. नवीन 20-सूत्री कार्यक्रम – नवीन 20-सूत्री कार्यक्रम के अन्तर्गत वृक्षारोपण एवं पेड़-पौधों की रक्षा का विशेष प्रावधान है। 1980-85 ई० में छठी पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत एक अरब रुपये के खर्चे से केन्द्रीय सरकार द्वारा एक नयी योजना का शुभारम्भ किया गया था ‘ग्रामीण ईंधन वृक्षारोपण सहित सामाजिक वृक्षारोपण।’ इस योजना में 100 जिलों में पेड़ लगाये गये तथा निम्नलिखित कार्यक्रमों को प्रधानता दी गयी

  • गाँव के आस-पास बेकार पड़ी भूमि पर वृक्षों को लगाना।
  •  किसानों को खेतों की मेड़ पर पेड़ लगाने के लिए मुफ्त में पेड़ देना आदि।

इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सुनियोजित नीति को अपनाये जाने के साथ-साथ जन-सहयोग भी आवश्यक है।

प्रश्न 11
ग्राम्य विकास हेतु भारत सरकार द्वारा किये गये विभिन्न प्रयासों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
ग्राम्य विकास हेतु भारत सरकार द्वारा किये गये प्रयास
भारत की 75 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में निवास करती है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् गाँवों का सर्वांगीण विकास करने के उद्देश्य से अनेकों कार्यक्रम एवं योजनाएँ संचालित की गयीं जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

1. सामुदायिक विकास योजना – गाँवों के सर्वांगीण विकास के उद्देश्य से देश में 1952 ई० से सामुदायिक विकास योजना आरम्भ की गयी। सामुदायिक विकास आत्म-सहायता का कार्यक्रम है। अर्थात् ग्रामीण जनता स्वयं ही योजनाएँ बनाये और उन्हें कार्यान्वित करे तथा सरकार की ओर से केवल तकनीकी मार्गदर्शन एवं वित्तीय सहायता ही मिले। अन्य शब्दों में, “सामुदायिक विकास का अर्थ ग्रामीण जनता के सर्वांगीण विकास से है।” सामुदायिक विकास में कृषि, पशुपालन, सिंचाई, सहकारिता, स्वास्थ्य, शिक्षा, ग्राम पंचायत तथा ग्रामीण जीवन के सभी पक्ष सम्मिलित होते हैं।

सामुदायिक विकास योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  • जनता के परम्परावादी दृष्टिकोण को धीरे-धीरे बदलकर उन्हें स्वस्थ व वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान करना।
  • जनता में सहकारिता की भावना जागृत करना।
  • कृषि-उत्पादन में वृद्धि करना तथा किसानों को वैज्ञानिक विधि से खेती करने, बागवानी करने, पशुपालन वे मछली-पालन के तरीकों का ज्ञान कराना।
  • ग्रामीण कुटीर एवं लघु उद्योगों का विस्तार एवं विकास करके रोजगार सुविधाओं में वृद्धि करना।
  • गाँवों को अपनी आधारभूत आवश्यकताओं भोजन, वस्त्र और आवास के मामलों में आत्मनिर्भर बनाना।
  • गाँवों में सड़कों, पाठशालाओं, स्वास्थ्य केन्द्रों आदि का निर्माण कराना तथा इस प्रकार ग्राम्य विकास करना।
  • ग्रामीण अशिक्षा को दूर करने का प्रयास करना।
  • गाँवों में स्वच्छता लाना, शुद्ध पीने के पानी की व्यवस्था करना तथा बीमारियों से बचने के विषय में जानकारी देना।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में कच्ची तथा पक्की सड़कों का निर्माण कराना, पशु परिवहन का नवीनीकरण करना तथा मोटर परिवहन का विकास करना।
  • विभिन्न उपायों द्वारा ग्रामीण परिवारों की आय में वृद्धि करना।
    उपर्युक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने की दृष्टि से सम्पूर्ण देश को 5,011 सामुदायिक विकास-खण्डों में बाँटा गया है। वर्तमान समय में एक खण्ड में 100 गाँव हैं जिनकी जनसंख्या 1 लाख तथा क्षेत्रफल 620 वर्ग किमी है।

इस योजना का ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर अच्छा प्रभाव पड़ा है, जिसका संक्षिप्त विवरण अग्रलिखित है

  1. सामुदायिक विकास योजना कृषि विकास के उद्देश्य में पर्याप्त रूप से सफल रही है। उत्तम बीजों, उर्वरकों, कृषि-यन्त्रों, सिंचाई सुविधाओं आदि के कारण कृषि-उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
  2. इस योजना के फलस्वरूप गाँवों में कच्ची तथा पक्की सड़कों का निर्माण हुआ है।
  3. विकास-खण्डों ने अपने क्षेत्र की हजारों हेक्टेयर बंजर भूमियों को कृषि योग्य बनाया है। भूमि कटाव को रोकने के लिए नयी मेड़े भी बनायी गयी हैं।
  4. विकास-खण्डों ने पशुओं की नस्लों में सुधार करने के लिए हजारों कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र खोले हैं।
  5. सामुदायिक विकासखण्डों ने गाँवों में पक्की नालियाँ, पक्की गलियाँ, शौचालय, कुओं आदि का निर्माण कराया है।
  6. ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा-प्रचार एवं प्रसार हेतु प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र तथा सिलाई केन्द्र खोले गये हैं।
  7. ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर तथा लघु उद्योग खोलने के लिए किसानों को वित्तीय सहायता दी जाती है तथा ग्रामीण कारीगरों को करोड़ों रुपये के ऋण दिये जाते हैं।
  8. गाँवों में आय की असमानताओं को दूर करने के लिए तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि करने के लिए सम्पूर्ण ग्राम विकास कार्यक्रम’ को आरम्भ किया गया है।

उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट होता है कि सामुदायिक विकास कार्यक्रम से ग्रामीण जनता की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।

2. जवाहर ग्राम समृद्धि योजना – जवाहर ग्राम समृद्धि योजना पहले की जवाहर रोजगार योजना का पुनर्गठित, सुव्यवस्थित और व्यापक स्वरूप है। यह योजना अप्रैल, 1999 ई० को प्रारम्भ की गयी।

उद्देश्य – जवाहर ग्राम समृद्धि योजना का उद्देश्य गाँव में रहने वाले गरीबों को जीवनस्तर सुधारना और उन्हें लाभप्रद रोजगार के अवसर प्रदान कराना है। जवाहर ग्राम समृद्धि योजना दिल्ली और चण्डीगढ़ को छोड़कर समग्र देश में सभी ग्राम पंचायतों में लागू की गयी है। योजना में खर्च की जाने वाली राशि 75: 25 के अनुपात में केन्द्र व राज्य सरकार वहन करेगी। केन्द्रशासित प्रदेशों के मामले में सम्पूर्ण व्यय केन्द्र वहन करेगा। योजना को पूर्णत: ग्राम पंचायत स्तर पर ही लागू किया गया है।

योजना के अन्तर्गत मजदूरी राज्य सरकार निर्धारित करेगी तथा ग्राम पंचायतों को जनसंख्या के आधार पर धनराशि का आवंटन बिना किसी सीमा के किया जाएगा। योजना की 22.5 प्रतिशत धनराशि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की अलग लाभार्थी योजनाओं के लिए निर्धारित की गयी है।

3. कुटीर ज्योति कार्यक्रम – भारत में गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले ग्रामीण परिवारों के जीवन-स्तर में सुधार करने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1988-89 में ‘कुटीर ज्योति कार्यक्रम प्रारम्भ किया। इसके अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता की रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों को एक बत्ती विद्युत कनेक्शन उपलब्ध कराने के लिए ₹400 की सरकारी सहायता उपलब्ध कराई जाती है।

4. अन्नपूर्णा योजना – यह योजना निर्धन एवं असहाय वरिष्ठ नागरिकों को नि:शुल्क खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए, केन्द्र सरकार के ग्रामीण विकास मन्त्रालय द्वारा मार्च, 1999 ई० में प्रारम्भ की गयी, जो निर्धनता रेखा से नीचे के 14 लाख नागरिकों के लिए लक्षित थी। अन्नपूर्णा योजना के अन्तर्गत पात्र नागरिकों को प्रति माह 10 किग्रा अनाज नि:शुल्क उपलब्ध कराने का प्रावधान है।

5. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना (A.S.G.S.Y.) – स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना को 1 अप्रैल, 1999 ई० से प्रारम्भ किया गया था। इस योजना का उद्देश्य लघु उद्यमों को बढ़ावा देना तथा ग्रामीण निर्धनों को अपने स्व-सहायता समूहों (एस०एस०जी०) में संगठित करने में सहायता प्रदान करना है। यह योजना ग्रामीण निर्धनों को अपने स्व-सहायता समूहों के संगठन और उनकी क्षमता निर्माण, प्रशिक्षण, सामूहिक गतिविधियों का नियोजन, ढाँचागत विकास, बैंक ऋण और विपणन सम्बन्धी सहायता आदि जैसे स्वरोजगार के सभी पक्षों को कवच प्रदान करती है। इस योजना को केन्द्र और राज्यों के बीच 75 : 25 के लागत बँटवारे के अनुपात के आधार पर केन्द्रीय प्रायोजित योजना के रूप में कार्यान्वित किया जा रहा है।

स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना में इससे पहले के स्वरोजगार से सम्बद्ध कार्यक्रमों तथा समन्वित ग्राम विकास कार्यक्रम (IRDP), स्वरोजगार के लिए ग्रामीण युवाओं का प्रशिक्षण कार्यक्रम (TRYSEM), ग्रामीण क्षेत्र में महिला एवं बाल विकास कार्यक्रम (DwCRA), ग्रामीण दस्तकारों को उन्नत औजारों के किट की आपूर्ति का कार्यक्रम (SITRA), गंगा कल्याण योजना तथा दस लाख कुआँ योजना को भी समेकित कर दिया गया है। अब ये कार्यक्रम अलग से नहीं चल रहे हैं।

6. रोजगार आश्वासन योजना (EAS) – रोजगार आश्वासन योजना 2 अक्टूबर, 1993 ई० से ग्रामीण क्षेत्रों के 257 जिलों के 1,770 विकास-खण्डों में प्रारम्भ की गयी थी। बाद में यह योजना वर्ष 1997-98 तक देश के सभी 5,448 ग्रामीण पंचायत समितियों में विस्तारित कर दी गयी। इस योजना को एकल-मजदूरी रोजगार कार्यक्रम बनाने के लिए वर्ष 1999-2000 में इसकी पुनः संरचना की गयी और 75: 25 के लागत : अनुपात के आधार पर इसे केन्द्रीय प्रायोजित योजना के रूप में कार्यान्वित किया गया।

इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक परिवार से अधिकतम दो युवाओं को 100 दिन तक का लाभप्रद रोजगार उपलब्ध कराना है। योजना का दूसरा गौण उद्देश्य पर्याप्त रोजगार तथा विकास के लिए आर्थिक अधोरचना तथा सामुदायिक परिसम्पत्तियों का सृजन करना है। रोजगार आश्वासन एक माँग चालित कार्यक्रम है; अत: इसके अन्तर्गत भौतिक लक्ष्य निर्धारित नहीं किये गये हैं।

7. सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (SGRY) – ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा के लिए प्रस्तावित नयी सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना का शुभारम्भ प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 25 सितम्बर, 2001 ई० को किया। ग्रामीण विकास मन्त्रालय द्वारा संचालित की जाने वाली इस योजना के लिए के ₹10 हजार करोड़ वित्तीय वर्ष 2001-02 के लिए मन्त्रिमण्डल द्वारा स्वीकृत किये गये। ₹10 हजार करोड़ की इस राशि में से है ₹5,000 करोड़ का भुगतान भारतीय खाद्य निगम को उसके द्वारा उपलब्ध कराये जाने वाले अनाज के मूल्य के रूप में किया जाएगा, जबकि शेष ₹ 5,000 करोड़ की अदायगी लाभान्वित होने वाले श्रमिकों को मजदूरी के रूप में दी जाएगी।

पंचायती संस्थाओं के माध्यम से लागू की जाने वाली इस योजना के द्वारा प्रतिवर्ष 100 करोड़ मानव दिवस रोजगार सृजित होने की सम्भावना है। योजना को दो चरणों में लागू किया जाएगा। पहले चरण में इसमें जिला व ब्लॉक पंचायत को सम्मिलित किया जाएगा। योजना के अन्तर्गत आवंटित 50 प्रतिशत राशि इस चरण में व्यय होगी, जिसमें जिला परिषद् को 20 प्रतिशत व पंचायत समितियों को 30 प्रतिशत हिस्सा मिलेगा। दूसरे चरण में ग्राम पंचायतों को सम्मिलित किया जाएगा। योजना के अन्तर्गत 50 प्रतिशत राशि इस चरण में व्यय होगी। इस योजना के अन्तर्गत कार्य करने वाले बेरोजगारों को प्रतिदिन 5 किलो खाद्यान्न दिया जाएगा तथा शेष भुगतान मुद्रा में किया जाएगा। योजना के जरिये ग्रामीण क्षेत्रों में सूखे से निपटने के उपाय व भूसंरक्षण के साथ पारम्परिक जल स्रोतों के निर्माण, सड़क, विद्यालय सहित अन्य भवनों के निर्माण कार्य भी किये जाएँगे।

8. प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना (PMGY) – ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के जीवन-स्तर में सुधार लाने के समग्र उद्देश्य से स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, पेयजल, आवास तथा ग्रामीण सड़कों जैसे पाँच महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में ग्रामीण स्तर पर विकास करने पर ध्यान देने के लिए यह योजना वर्ष 2000-01 में प्रारम्भ की गयी।

9. ग्रामीण आवास के लिए कार्य-योजना – 1991 ई० की जनगणना के अनुसार, लगभग 3.1 मिलियन परिवार बेघर हैं और अन्य 10.31 मिलियन परिवार कच्चे घरों में रहते हैं। इस समस्या की व्यापकता को देखते हुए वर्ष 1998 में राष्ट्रीय गृह आवासन नीति की घोषणा की गयी थी, जिसका उद्देश्य ‘सबके लिए आवास उपलब्ध कराना है और जो निर्धन एवं साधनहीन लोगों को लाभ देने पर जोर देते हुए प्रति वर्ष 20 लाख अतिरिक्त आवास यूनिटों (13 लाख ग्रामीण क्षेत्रों में और 7 लाख शहरी क्षेत्रों में) के निर्माण को सुसाध्य बनाती है। सरकार दसवीं योजनावधि के अन्त तक सभी के लिए आश्रय-स्थल सुनिश्चित करने के लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्ध है। इन उद्देश्यों को पूरा करने के लिए ग्रामीण आवास हेतु एक व्यापक कार्य-योजना बनायी गयी है, जिनमें मुख्य रूप से अग्रलिखित योजनाएँ भी सम्मिलित हैं

  • इन्दिरा आवास योजना (IAY) – इन्दिरा गांधी आवास योजना का उद्देश्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और मुक्त किये गये बँधुआ मजदूरों की श्रेणियों से सम्बन्धित गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों को सहायता प्रदान करना है।
  • प्रधानमन्त्री ग्रामोदय ग्रामीण आवास योजना – ग्राम स्तर पर स्थायी मानव-विकास का उद्देश्य पूरा करने के लिए प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना वर्ष 2000-01 के मध्य प्रारम्भ की गयी व्यापक प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना का एक भाग है। वर्ष 2001-02 के दौरान प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना के घटक ग्रामीण आश्रय-स्थल’ को कार्यान्वित करने के लिए 280 करोड़ उपलब्ध कराये गये हैं।
  • आवास हेतु हुडको को सहायता –  ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों और कम आय के वर्गों की आवश्यकता को पूरी करने और ग्रामीण क्षेत्रों में आवास वित्त पहुँचाने की स्थिति में सुधार करने के लिए, नौवीं पंचवर्षीय योजना की अवधि में हुडको को दी जाने वाली इक्विटी सहायता ₹ 5 करोड़ से बढ़ाकर ₹ 355 करोड़ कर दी गयी है।

उम्मीद की जा सकती है कि यदि इन योजनाओं को ईमानदारी और सत्यनिष्ठा से संचालित किया गया तो ग्रामीण विकास में हमें अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन एवं सुधार देखने को मिलेंगे।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
सामाजिक वानिकी में निहित उद्देश्यों को संक्षेप में लिखिए। [2008, 10, 16]
या
सामाजिक वानिकी के कोई दो उद्देश्य लिखिए। [2012]
उत्तर:
सामाजिक वानिकी के उद्देश्यों में प्रमुख निम्नलिखित हैं

  1. वनों के क्षेत्रफल में वृद्धि करना जिससे ईंधन, फल, चारा आदि की पूर्ति करके स्थानीय लोगों को लाभ पहुँचाया जा सके।
  2. भूमि के कटाव को रोकना।
  3. भूमि की नमी का संरक्षण करना।
  4. पर्यावरण को स्वच्छ एवं सन्तुलित रखना।
  5. भूमि की उर्वरा-शक्ति में वृद्धि करना।
  6. किसानों के लिए अतिरिक्त आय के स्रोतों का सृजन करना।
  7. ग्रामीणों को अतिरिक्त रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना।
  8. अनुपयोगी भूमि का समुचित उपयोग करना।
  9. वायु के प्रवाह से कृषि-भूमि का बचाव करना।

उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सामाजिक वानिकी के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों की बेकार पड़ी भूमि, बंजर भूमि, ऊसर भूमि, सड़कों के किनारे खाली पड़ी भूमि आदि पर वृक्षारोपण किया जाता है। इसके अलावा एक ही भूमि पर फसलों के साथ वृक्षों को उगाने की प्रक्रिया भी सामाजिक वानिकी की परिधि में आती है।

प्रश्न 2
सामाजिक वानिकी का ग्रामीण विकास में क्या महत्त्व है?
उत्तर:
सामाजिक वानिकी ग्रामीण अंचलों के बेरोजगार व्यक्तियों को रोजगार एवं अतिरिक्त आय के साधन उपलब्ध कराने में सहायक है; क्योंकि

  1. सीमान्त एवं लघु कृषक अपने खेतों के चारों ओर तथा खाली पड़ी बंजर भूमि पर बहुउद्देशीय वृक्ष (जैसे-यूकेलिप्ट्स आदि) उगाकर उनसे चारा, जलाने की लकड़ी आदि प्राप्त कर सकते हैं।
  2. इस पद्धति द्वारा पेड़ों से सम्पूर्ण फसल प्रणाली के सूक्ष्म वातावरण में सुधार होता है।
  3. लगाये गये पेड़ों के रख-रखाव में छोटे किसान अतिरिक्त रोजगार प्राप्त कर सकते हैं।
  4. इस पद्धति से किसान अपनी भूमि से दोहरा लाभ प्राप्त करने में सफल होता है, क्योंकि पेड़ों के साथ ही खाद्यान्न फसलों का भी उत्पादन सम्भव हो पाता है, जिससे किसानों की आय में वृद्धि होती है।
  5. भूमि-सुधार और पर्यावरण सन्तुलन करने में सहायता मिलती है।
  6. इस प्रक्रिया में विकसित किये गये पेड़ों से कुटीर उद्योग-धन्धे आरम्भ किये जा सकते हैं। सामाजिक वानिकी द्वारा ऐसे अनेक वन-उत्पादों की पूर्ति की जा सकती है जिनसे लघु एवं कुटीर उद्योग-धन्धे विकसित किये जा सकें।
  7. सामाजिक वानिकी द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों की परती एवं बेकार पड़ी भूमि का व्यावसायिक उपयोग किया जाना सम्भव होता है।
  8. सामाजिक वानिकी द्वारा मृदा में नमी का संरक्षण बनाये रखना सम्भव हो पाता है, जिससे बाढ़ और सूखे का प्रकोप कम हो जाता है।

उपर्युक्त लाभ ग्रामीण अंचलों में सामाजिक वानिकी की उपादेयता को प्रदर्शित करते हैं। यही कारण है कि विगत वर्षों में सामाजिक वानिकी कार्यक्रम भारत में लोकप्रिय हो रहा है और ग्रामीण अंचलों में इसे अपनाने के लिए जागरूकता पैदा हो रही है।

प्रश्न 3
प्राथमिकता शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में सरकार द्वारा चलायी जा रही निम्नलिखित योजनाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
(1) अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम,
(2) राष्ट्रीय पोषणिक सहायता कार्यक्रम,
(3) महिला समानता के लिए शिक्षा,
(4) माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा।
उत्तर:
(1) अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम
शिक्षा सम्बन्धी राष्ट्रीय नीति और कार्रवाई कार्यक्रम, 1986 ई० के अनुसार देश में एक सक्षम संस्थागत आधारभूत ढाँचा खड़ा करने हेतु शैक्षणिक और तकनीकी संसाधन आधार अभिमुखीकरण, प्रशिक्षण और ज्ञान के सतत उन्नयन, देश में प्राथमिक विद्यालय शिक्षक की सामर्थ्य और शैक्षणिक कौशल बढ़ाने के लिए 1987 ई० में अध्यापक शिक्षा की पुनर्संरचना और पुनर्गठन के लिए केन्द्र द्वारा प्रायोजित योजना शुरू की गयी थी। इस स्कीम के निम्नलिखित पाँच घटक थे

  • सभी जिलों में जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना करना।
  • अध्यापक शिक्षा महाविद्यालयों का सुदृढ़ीकरण और उनमें से कुछ का शिक्षा के उच्च अध्ययन संस्थानों के रूप में विकास करना।
  • राज्यों के शैक्षणिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषदों का सुदृढीकरण।
  • विद्यालय अध्यापकों के लिए विशेष अभिमुखी कार्यक्रम और अध्यापक प्रशिक्षण से दूरस्थ शिक्षा पद्धति शुरू करना।
  • विश्वविद्यालयों में शिक्षा संकायों की स्थापना और सुदृढ़ीकरण।

(2) राष्ट्रीय पोषणिक सहायता कार्यक्रम
देश में पहली बार प्राथमिक शिक्षा के लिए पोषणिक सहायता का एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम 15 अगस्त, 1995 ई० को आरम्भ किया गया था। इसका उद्देश्य प्राथमिकता शिक्षा के सार्वभौमीकरण को बढ़ावा देना और प्राथमिक कक्षाओं में छात्रों के पोषण में अभिवृद्धि करना था। कार्यक्रम का अन्तिम लक्ष्य पौष्टिक पके हुए वे सन्तुलित भोजन की व्यवस्था करना था, जिसमें 100 ग्राम गेहूँ या चावल के बराबर कैलोरी हो। इसका वितरण पंचायतों और नगरपालिकाओं के माध्यम से किया जाना है जिनको इस प्रयोजन हेतु संस्थागत प्रबन्ध विकसित करना है।

(3) महिला समानता के लिए शिक्षा
भारत सरकार द्वारा स्वतन्त्रता-प्राप्ति के समय से ही विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में लिंग सम्बन्धी असमानताओं को दूर करने के प्रयास किये जा रहे हैं। 1986 ई० की राष्ट्रीय शिक्षा नीति तथा 1992 ई० की संशोधित नयी शिक्षा-नीति स्वीकार करने के बाद से इन प्रयासों को विशेष बल मिला है। नयी शिक्षा नीति में महिलाओं के हित संरक्षण का संकल्प व्यक्त किया गया है कि विकास की प्रक्रिया में लड़कियों व महिलाओं की भागीदारी के लिए उनकी शिक्षा सबसे महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है। सरकारी और गैर-सरकारी प्रयत्नों के परिणामस्वरूप स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् महिलाओं की साक्षरता दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 1951 ई० में महिला साक्षरता मात्र 7.3 प्रतिशत थी, जबकि 2011 ई० में यह बढ़कर 65.46 प्रतिशत हो गयी।

(4) माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा
वर्ष 1950-51 से 2010-11 ई० तक माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में निम्नलिखित उल्लेखनीय प्रगति हुई

  • माध्यमिक स्तर के शिक्षा संस्थान 7,416 से बढ़कर 2.15 लाख हो गये।
  • माध्यमिक स्तर पर लड़कियों की संख्या 13.3 प्रतिशत से बढ़कर 72.10 प्रतिशत पर पहुँच गयी।
  • लड़कियों के दाखिले 2 लाख से बढ़कर 1 करोड़ हो गये।

उच्च शिक्षा की दृष्टि से भी देश प्रगति की ओर अग्रसर है। वर्तमान में देश में 376 विश्वविद्यालय, 131 सम-विश्वविद्यालय और 113 निजी विश्वविद्यालय हैं, जो उच्च शिक्षा उपलब्ध करा रहे हैं। देश में कॉलेजों की कुल संख्या 16,615 है। देश के सभी विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या 1 करोड़ से ऊपर है, जबकि अध्यापकों की संख्या 4.16 लाख है।

प्रश्न 4
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा-व्यवस्था पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
स्वास्थ्य विकास में उच्चतम प्राथमिकता ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त स्वास्थ्य सेवा (देखभाल) व्यवस्था के निर्माण को दी गयी है। यह मद न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रमों तथा नये बीस सूत्री कार्यक्रम में सम्मिलित की गयी है। जून, 1999 ई० तक ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था जिसमें स्वास्थ्य सेवा को परिवार नियोजन के साथ संयोजित किया गया है, के अन्तर्गत देश में उपकेन्द्र, प्राथमिक केन्द्र तथा सहायक स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र थे। सन् 2000 तक 5,000 जनसंख्या के लिए (पहाड़ी तथा आदिवासी क्षेत्रों में 3,000 के लिए) एक उपकेन्द्र तथा 30,000 जनसंख्या (पहाड़ी तथा आदिवासी क्षेत्रों में 20,000) के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया था, जिसे वर्ष 1990-91 में ही प्राप्त कर लिया गया।

प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र – प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा का केन्द्र बिन्दु है। यह योजना पहली पंचवर्षीय योजना में आरम्भ की गयी थी। उस समय से इनकी संख्या में वृद्धि हो गयी है। वर्ष 1977-78 से वर्तमान ग्रामीण डिस्पेन्सरियों का दर्जा बढ़ाकर उन्हें एक नये वर्ग सहायक स्वास्थ्य केन्द्रों में बदल दिया गया। उनके कार्यों में अब लोक स्वास्थ्य कार्य भी जोड़ दिया गया है।

उपकेन्द्र – उपकेन्द्र परिवार कल्याण कार्यक्रम के लिए अति आवश्यक है, क्योंकि इन उपकेन्द्रों से ग्रामीण लोगों को सेवाएँ और सप्लाई (सामग्री) प्रदान की जाती है। पिछले समय में सहायक नर्स-दाइयों की सीमित प्रशिक्षण क्षमता तथा वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण उपकेन्द्रों की स्थापना में बाधा पड़ी है। हाल के वर्षों में इनमें पुन: तेज प्रगति हुई है और जिन उपकेन्द्रों के पास अपने भवन नहीं थे, उन्हें अपने भवन देने का लक्ष्य रखा गया है।

सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र – 1,00,000 व्यक्तियों के लिए एक गुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र स्थापित करने की योजना है, जिसमें कम-से-कम 30 बिस्तर उपलब्ध हों तथा साथ ही स्त्री रोग चिकित्सा, शारीरिक रोग चिकित्सा, शल्य चिकित्सा और ओषधि सहित विशिष्ट सुविधाएँ उपलब्ध हों।

प्रश्न 5
संक्रामक रोगों पर नियन्त्रण के सन्दर्भ में किये गये सरकारी प्रयास पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
चेचक, मलेरिया, हैजा, प्लेग, फाइलेरिया, क्षय रोग (टी०बी०), कुष्ठ रोग आदि संक्रामक रोगों के नियन्त्रण को नियोजन काल में उच्च प्राथमिकता दी गयी।

चेचक का उन्मूलन कर दिया गया और देश को अप्रैल, 1977 ई० से इस रोग से मुक्त घोषित कर दिया गया है।
राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम 1958 ई० में आरम्भ किया गया। वर्ष 1976 ई० में जहाँ 65 लाख व्यक्ति मलेरिया से पीड़िते हुए, वहीं चलाये गये कार्यक्रमों के कारण वर्ष 2010 में केवल 12 लाख व्यक्ति ही इस रोग से पीड़ित हुए।

देश की जनसंख्या का लगभग पाँचवाँ भाग फाइलेरिया से प्रभावित क्षेत्रों में रहता है। उत्तर प्रदेश, गुजरात एवं आन्ध्र प्रदेश के कुछ चुने हुए जिलों में प्रयोग के तौर पर 1978 में फाइलेरिया नियन्त्रण

की एक व्यूहरचना लागू की गयी थी। मार्च, 1989 ई० में राष्ट्रीय फाइलेरिया नियन्त्रण कार्यक्रम लागू । किया गया, जिससे इस संक्रामक रोग को नियन्त्रित करने में पर्याप्त सफलता मिली है।
भारत में क्षय रोग (टी०बी०) एक मुख्य स्वास्थ्य समस्या है। पूरे विश्व के क्षय रोगियों का एक-तिहाई भाग भारत में है। वर्तमान में क्षय रोग पूर्णत: उपचार योग्य है। देश के राष्ट्रीय क्षय रोग नियन्त्रण कार्यक्रम को विश्व बैंक की सहायता से चलाया जा रहा है।

कुष्ठ रोग यद्यपि देश के सभी भागों में पाया जाता था, किन्तु तमिलनाडु, ओडिशा, आन्ध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, नागालैण्ड, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मणिपुर तथा बिहार में इस रोग का विस्तार बहुत अधिक था। वर्तमान में कुष्ठ रोग पर नियन्त्रण पा लिया गया है तथा अब 13 राज्यों में प्रति 10,000 जनसंख्या पर केवल एक कुष्ठ रोगी है। राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम भी देश में विश्व बैंक की सहायता से चलाया जा रहा हैं।

देश में एड्स सर्वाधिक गम्भीर जनस्वास्थ्य समस्या के रूप में सामने आया है। वर्ष 1998 से राष्ट्रीय स्तर पर एक निगरानी कार्यक्रम को हाथ में लिया गया है जो एच०आई०वी० के जीवाणुओं से ग्रस्त कुल रोगियों की संख्या का अनुमान लगाता है। एड्स के सर्वाधिक मामले कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर तथा नागालैण्ड राज्यों में पाये गये हैं। राष्ट्रीय एड्स नियन्त्रण कार्यक्रम भी देश में विश्व बैंक की सहायता से चलाया जा रहा है।

प्रश्न 6
भारत में ग्रामीण विकास की किन्हीं तीन योजनाओं को स्पष्ट कीजिए। [2011]
उत्तर:
स्वतन्त्रता के पश्चात् देश को तीव्र गति से आर्थिक विकास करने के लिए नियोजन का मार्ग अपनाया गया। भारत एक ग्राम-प्रधान देश है। यदि हम भारत का आर्थिक विकास करना चाहते हैं तो ग्राम्य विकास के बिना आर्थिक विकास की कल्पना करना निरर्थक होगा; अतः भारत के आर्थिक विकास के लिए 1950 ई० में योजना आयोग की स्थापना की गयी। देश की प्रथम पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 1951 ई० से प्रारम्भ की गयी तथा अब तक 11 पंचवर्षीय योजनाएँ अपना कार्यकाल पूरा कर चुकी हैं। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में ग्राम्य विकास की ओर सर्वाधिक ध्यान केन्द्रित किया गया है, जिसका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है

1. प्रथम पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1951 ई० से 31 मार्च, 1956 ई० तक) – प्रथम पंचवर्षीय योजना की रूपरेखा में कहा गया था कि नियोजन का केन्द्रीय उद्देश्ये जनता के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाना है और उसके लिए एक अधिक सुख-सुविधापूर्ण जीवन प्रदान करना है। प्रथम पंचवर्षीय योजना मुख्य रूप से कृषिप्रधान योजना थी। इस योजना में सम्पूर्ण योजना की लगभग तीन-चौथाई धनराशि कृषि, सिंचाई, शक्ति तथा यातायात पर व्यय की गयी।

2. द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1956 ई० से 31 मार्च, 1961 ई० तक) – द्वितीय पंचवर्षीय योजना में भी कृषि को महत्त्व प्रदान किया गया था, परन्तु औद्योगिक विकास को अधिक प्राथमिकता दी गयी थी। ग्राम्य विकास की ओर द्वितीय योजना में भी पूर्ण ध्यान दिया गया था।

3. तीसरी पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1961 ई० से 31 मार्च, 1966 ई० तक) – तीसरी योजना में ग्राम्य विकास हेतु कृषि विकास को पर्याप्त महत्त्व दिया गया था। योजना आयोग ने कृषि को प्राथमिकता देते हुए लिखा था – “तृतीय योजना की विकास युक्तेि में कृषि को ही अनिवार्यतः सर्वाधिक प्राथमिकता मिलनी चाहिए। पहली दोनों योजनाओं का अनुभव यह प्रदर्शित करता है कि कृषि-क्षेत्र की विकास-दर भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को प्रतिबन्धात्मक कारण है, इसलिए कृषि-उत्पादन को बढ़ाने के यथा-सम्भव अधिक प्रयास करने होंगे।”

प्रश्न 7:
रोजगार आश्वासन योजना के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
रोजगार आश्वासन योजना (EAS) – रोजगार आश्वासन योजना 2 अक्टूबर, 1993 ई० से ग्रामीण क्षेत्रों के 257 जिलों के 1,770 विकास-खण्डों में प्रारम्भ की गयी थी। बाद में यह योजना वर्ष 1997-98 तक देश के सभी 5,448 ग्रामीण पंचायत समितियों में विस्तारित कर दी गयी। इस योजना को एकल-मजदूरी रोजगार कार्यक्रम बनाने के लिए वर्ष 1999-2000 में इसकी पुन: संरचना की गयी और 75:25 के लागत बँटवारे के अनुपात के आधार पर इसे केन्द्रीय प्रायोजित योजना के रूप में कार्यान्वित किया गया।

इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक परिवार से अधिकतम दो युवाओं को 100 दिन तक का लाभप्रद रोजगार उपलब्ध कराना है। योजना का दूसरा गौण उद्देश्य पर्याप्त रोजगार तथा विकास के लिए आर्थिक अधोरचना तथा सामुदायिक परिसम्पत्तियों का सृजन करना है। रोजगार आश्वासन एक माँग चालित कार्यक्रम है; अतः इसके अन्तर्गत भौतिक लक्ष्य निर्धारित नहीं किये गये हैं।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
संगम योजना पर अति संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
15 अगस्त, 1996 ई० को सरकार ने विकलांगों के कल्याण के लिए जिन समाज-कल्याण योजनाओं की घोषणा की, उनमें संगम योजना एक प्रमुख योजना है। इस योजना के अन्तर्गत विकलांगों को एक समूह के रूप में संगठित करके प्रत्येक समूह को आर्थिक क्रियाओं के संचालन हेतु ₹ 15,000 की आर्थिक सहायता देने का प्रावधान किया गया है। विकलांगों के प्रत्येक समूह को ‘संगम’ नाम दिया गया।

प्रश्न 2
अन्त्योदय अन्न-योजना के उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
इस योजना का उद्देश्य निर्धनों को अन्न सुरक्षा उपलब्ध कराना है। यह योजना 25 दिसम्बर, 2000 ई० को लागू की गयी। इस योजना के अन्तर्गत देश के एक करोड़ निर्धनतम परिवारों को प्रति माह 25 किलोग्राम अनाज विशेष रियायती मूल्य पर उपलब्ध कराया जाएगा।

प्रश्न 3
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी ने ग्रामीण क्षेत्रों में क्या योगदान दिये हैं?
उत्तर:
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी ने ग्रामीण क्षेत्रों में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण योगदान दिये हैं

  1. उन्नत बीज, ट्रैक्टर आदि उपकरण, रासायनिक उपकरण, कीटनाशक दवाएँ आदि सभी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की देन हैं।
  2. गोबर गैस प्लाण्ट से महिलाओं को धुएँ से मुक्ति मिली है।
  3. ग्रामीण औद्योगीकरण को बढ़ावा मिला है।
  4. परिवहन, संचार-सुविधाओं का विकास हुआ है।
  5. ग्रामीण विकास में सहायता मिली है।

प्रश्न 4
ग्रामीण विकास के मार्ग में क्या-क्या बाधाएँ हैं?
उत्तर:
ग्रामीण विकास के मार्ग में आने वाली बाधाओं का विवरण निम्नलिखित है

  1. सरकार द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रमों में कमियाँ,
  2. ग्रामीण जनता को शहरों की ओर पलायन,
  3. निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा उपेक्षा,
  4. अशिक्षा,
  5. जाति-प्रथा,
  6. मध्यस्थों व जन-सेवकों द्वारा योजना के अन्तर्गत प्रदत्त धन का दुरुपयोग।

प्रश्न 5
ग्रामीण विकास हेतु कुछ सुझाव प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
ग्रामीण विकास के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझाव उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं

  1. शिक्षित ग्रामीणों का गाँवों में ही निवास,
  2. निर्वाचित जनप्रतिनिधियों से जवाबदेही सुनिश्चित की जाए,
  3. जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण,
  4. योजनाओं के स्वरूप का निर्धारण ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं के आधार पर,
  5. ग्रामीण क्षेत्रों में प्रौढ़-शिक्षा, बाल-शिक्षा कार्यक्रमों का विस्तार तथा
  6. ग्रामीण विकास में बाधक कर्मचारियों को दण्डित किया जाए।

प्रश्न 6
कुटीर ज्योति कार्यक्रम अब और किस उद्देश्य से प्रारम्भ किया गया? [2013]
उत्तर:
हरिजन और आदिवासी परिवारों सहित गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले ग्रामीण परिवारों के जीवन-स्तर में सुधार के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1988-1989 में ‘कुटीर ज्योति कार्यक्रम प्रारम्भ किया। इसके अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों को एक बत्ती विद्युत कनेक्शन उपलब्ध कराने के लिए ₹400 की सरकारी सहायता उपलब्ध कराई जाती है।

प्रश्न 7
प्रधानमन्त्री रोजगार योजना का उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
शिक्षित बेरोजगार युवाओं के लिए 2 अक्टूबर, 1993 ई० से प्रारम्भ की गयी प्रधानमन्त्री रोजगार योजना के अन्तर्गत 8वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान उद्योग सेवा तथा कारोबार में सात लाख लघुतर इकाइयाँ स्थापित करके लगभग 10 लाख से भी अधिक व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था। 9वीं पंचवर्षीय योजना (1997-2002) में कतिपय संशोधनों के साथ इस योजना को जारी रखा गया। .

प्रश्न 8
सामाजिक वानिकी के क्या लाभ हैं? [2007, 12]
या
सामाजिक वानिकी से प्राप्त होने वाले किन्हीं दो प्रमुख लाभों का उल्लेख कीजिए। [2013, 14, 16 ]
उत्तर:

  •  सामाजिक वानिकी द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों की परती एवं बेकार पड़ी भूमि का व्यावसायिक उपयोग किया जाना सम्भव होता है।
  •  सामाजिक वानिकी द्वारा मृदा में नमी का संरक्षण बनाए रखना सम्भव हो पाता है, जिससे बाढ़ और सूखे का प्रकोप कम हो जाता है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
सामुदायिक विकास कार्यक्रम के दो उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
(1) कृषि एवं ग्रामीण उद्योगों का विकास करना तथा
(2) ग्रामीण लोगों को आत्मनिर्भर बनाना।

प्रश्न 2
राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन का उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन का उद्देश्य सम्पूर्ण ग्रामीण जनसंख्या को आगामी कुछ वर्षों में ही पर्याप्त मात्रा में सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना है।

प्रश्न 3
ग्रामीण रोजगार की किन्हीं दो योजनाओं के नाम लिखिए। [2010]
उत्तर:
(1) रोजगार आश्वासन योजना (EAS)
(2) सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (SGRY)।

प्रश्न 4
वनों से होने वाले किन्हीं दो लाभों का उल्लेख कीजिए। [2014, 15, 16]
उत्तर:
(1) वन पर्यावरण को स्वच्छ रखते हैं तथा वर्षा के होने में सहायता करते हैं।
(2) वन मृदा-अपरदन को रोकते हैं।

प्रश्न 5
कृषि-श्रमिक सामाजिक सुरक्षा योजना क्या है?
उत्तर:
यह योजना जुलाई, 2001 ई० में 18 से 60 वर्ष की आयु-वर्ग के खेतिहर एवं मजदूरी पर काम करने वाले मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा-लाभ देने के उद्देश्य से शुरू की गयी है।

प्रश्न 6
राष्ट्रीय मानव संसाधन कार्यक्रम किस उद्देश्य के लिए प्रारम्भ किया गया था?
उत्तर:
ग्रामीण जलापूर्ति एवं स्वच्छता क्षेत्र की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दक्ष व्यक्तियों के मानव संसाधन आधार की स्थापना हेतु 1994 ई० के प्रारम्भ में राष्ट्रीय मानव संसाधन कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया था।

प्रश्न 7
भारत में विभिन्न प्रकार की बेरोजगारी के नाम बताइए।
उत्तर:
(1) छिपी बेरोजगारी या अदृश्य बेरोजगारी।
(2) अल्प बेरोजगारी।
(3) पूर्ण बेरोजगारी।
(4) मौसमी बेरोजगारी।
(5) शिक्षित बेरोजगारी।

प्रश्न 8
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना को समझाइए। [2011]
उत्तर:
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना को एक अप्रैल, 1999 ई० से प्रारम्भ किया गया था। इस योजना का उद्देश्य लघु उद्यमों को बढ़ावा देना तथा ग्रामीण निर्धनों को अपने स्व-सहायता समूहों (एस०एच०जी०) में संगठित करने में सहायता प्रदान करना है।

प्रश्न 9
प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना’ को समझाइए।
उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों के जीवन-स्तर में सुधार लाने के समग्र उद्देश्य से स्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, पेय जल, आवास तथा ग्रामीण सड़कों जैसे पाँच महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में ग्रामीण स्तर पर विकास हेतु यह योजना वर्ष 2000-01 में प्रारम्भ की गयी।

प्रश्न 10
अन्नपूर्णा योजना क्या है?
उत्तर:
निर्धन एवं असहाय वरिष्ठ नागरिकों को निःशुल्क खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए यह योजना चलाई जा रही है।

प्रश्न 11
कमान क्षेत्र विकास कार्यक्रम का उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
इस कार्यक्रम का उद्देश्य देश की चुनी हुई बड़ी और मझोली परियोजनाओं की सिंचाई क्षमता को तेजी से बेहतर उपयोग सुनिश्चित करना था।

प्रश्न 12
सर्व शिक्षा अभियान क्या है ? [2015, 16]
उत्तर:
‘सर्व शिक्षा अभियान’ प्राथमिक शिक्षा देने के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए चलाया गया। अभियान है।

प्रश्न 13
सर्व-शिक्षा अभियान के प्रमुख उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए। [2007, 11]
उत्तर:
(1) 2010 ई० तक 6-14 वर्ष की आयु के सभी बच्चे स्कूली शिक्षा के आठ वर्ष पूरी करें।
(2) जीवन के लिए शिक्षा पर जोर देते हुए सन्तोषजनक स्तर की बुनियादी शिक्षा पर ध्यान देना।

प्रश्न 14
सामुदायिक विकास कार्यक्रम (C.D.P) कब प्रारम्भ किया गया?
उत्तर:
सामुदायिक विकास कार्यक्रम 2 अक्टूबर, 1952 ई० में प्रारम्भ किया गया।

प्रश्न 15
सघन कृषि जिला कार्यक्रम (IADP) कब प्रारम्भ किया गया था?
उत्तर:
सघन कृषि जिला कार्यक्रम वर्ष 1960-61 ई० में प्रारम्भ किया गया था।

प्रश्न 16
ग्रामीण विद्युतीकरण निगम की स्थापना कब की गयी? [2013]
उत्तर:
जुलाई, 1969 ई० में ग्रामीण विद्युतीकरण निगम की स्थापना की गयी।

प्रश्न 17
राष्ट्रीय पेयजल मिशन की स्थापना कब की गयी थी?
उत्तर:
राष्ट्रीय पेयजल मिशन की स्थापना 1986 ई० में की गयी थी।

प्रश्न 18
‘राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन की स्थापना कब हुई?
उत्तर:
वर्ष 1991 में राष्ट्रीय पेयजल मिशन का नाम बदलकर ‘राजीव गांधी राष्ट्रीय पेयजल मिशन कर दिया गया।

प्रश्न 19
‘राष्ट्रीय मानव संसाधन कार्यक्रम कब प्रारम्भ किया गया?
उत्तर:
वर्ष 1994 में राष्ट्रीय मानव संसाधन कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया।

प्रश्न 20
कुटीर ज्योति कार्यक्रम कब प्रारम्भ किया गया? [2014]
उत्तर:
भारत सरकार ने 1988-89 में कुटीर ज्योति कार्यक्रम प्रारम्भ किया।

प्रश्न 21
प्रधानमन्त्री रोजगार योजना कब प्रारम्भ की गयी? [2009]
उत्तर:
प्रधानमन्त्री रोजगार योजना 2 अक्टूबर, 1993 ई० से प्रारम्भ की गयी।

प्रश्न 22
सम्पूर्ण ग्रामीण योजना कब प्रारम्भ की गयी?
उत्तर:
15 अगस्त, 2001 ई० से सम्पूर्ण ग्रामीण योजना प्रारम्भ की गयी।

प्रश्न 23
प्राथमिक शिक्षा के लिए पोषणिक सहायता कार्यक्रम कब से प्रारम्भ किया गया?
उत्तर:
प्राथमिक शिक्षा के लिए पोषणिक सहायता कार्यक्रम 15 अगस्त, 1995 ई० से प्रारम्भ किया गया।

प्रश्न 24
‘काम के बदले अनाज’ कार्यक्रम कब आरम्भ हुआ था?
उत्तर:
‘काम के बदले अनाज’ कार्यक्रम पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में 1974 में आरम्भ हुआ था।

प्रश्न 25
सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना की विशेषता लिखिए।
उत्तर:
25 सितम्बर, 2001 को केन्द्र द्वारा प्रायोजित इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अतिरिक्त एवं सुनिश्चित अवसर उपलब्ध कराने के साथ-साथ खाद्यान्न उपलब्ध कराना है।

प्रश्न 26
वनों पर आधारित किन्हीं चार उद्योगों के नाम लिखिए। [2011, 13, 16]
उत्तर:
कागज, लकड़ी, माचिस एवं रबर उद्योग।

प्रश्न 27
ग्राम विकास के किन्हीं दो घटकों का उल्लेख कीजिए। [2014]
या
भारत में ग्रामीण विकास के किन्हीं दो प्रमुख घटकों का उल्लेख कीजिए। [2015]
उत्तर:
1. प्राकृतिक संसाधन (कृषि एवं गैर-कृषि उत्पाद)।
2. मानवीय संसाधन (गुणवत्ता और भंजन)।

प्रश्न 28
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम कब शुरू किया गया ? [2014]
उत्तर:
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम 15 अगस्त, 1945 में शुरू हुआ।

प्रश्न 29
इन्दिरा आवास योजना कब प्रारम्भ की गई ? [2015]
उत्तर:
इन्दिरा आवास योजना 1985 में प्रारम्भ की गई।

प्रश्न 30
भारत में योजना आयोग के स्थान पर किस आयोग की स्थापना की गई ? [2016]
उत्तर:
‘नीति आयोग की।

प्रश्न 31
सामाजिक वानिकी से आप क्या समझते हैं? [2011, 14]
उत्तर:
वनों का समाजोन्मुख बनाकर सम्वर्द्धन तथा संरक्षण की नीति को सामाजिक वानिकी नीति कहा जाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
जवाहर ग्राम समृद्धि योजना प्रारम्भ की गयी
(क) 1960 ई० में
(ख) 1965 ई० में
(ग) 1969 ई० में
(घ) 1999 ई० में
उत्तर:
(घ) 1999 ई० में।

प्रश्न 2
स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना प्रारम्भ की गयी
(क) 1 अप्रैल, 1999 ई० में
(ख) 1 अप्रैल, 2000 ई० में
(ग) 1 अप्रैल, 2001 ई० में
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) 1 अप्रैल, 1999 ई० में।

प्रश्न 3
रोजगार आश्वासन योजना प्रारम्भ की गयी
(क) 2 अक्टूबर, 1993 ई० में
(ख) 2 अक्टूबर, 1995 ई० में
(ग) 2 अक्टूबर, 1999 ई० में
(घ) 2 अक्टूबर, 2001 ई० में
उत्तर:
(क) 2 अक्टूबर, 1993 ई० में।

प्रश्न 4
प्रधानमन्त्री ग्रामोदय योजना प्रारम्भ हुई
(क) 2000-01 ई० में
(ख) 1994-95 में
(ग) 1993-94 ई० में
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) 2000-01 ई० में।

प्रश्न 5
सर्व शिक्षा अभियान प्रारम्भ किया गया [2006, 14]
या
भारत में सर्व शिक्षा अभियान (एस०एस०ए०) किस वर्ष में शुरू किया गया था ? [2015, 16]
(क) 1986 ई० में
(ख) 2001-02 ई० में
(ग) 1 अप्रैल, 1992 ई० में
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) 2001-02 ई० में।

प्रश्न 6
ट्राइसेम योजना प्रारम्भ की गयी
(क) 15 अगस्त, 1979 ई० को
(ख) 2 अक्टूबर, 1980 ई० को
(ग) 5 सितम्बर, 1982 ई० को
(घ) 15 अगस्त, 1983 ई० को
उत्तर:
(क) 15 अगस्त, 1979 ई० को।

प्रश्न 7
‘ट्राइसेम कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य था
(क) ग्रामीण युवाओं को स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण देना
(ख) शहरी युवाओं को स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण देना
(ग) ग्रामीण एवं शहरी युवाओं को स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण देना
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(क) ग्रामीण युवाओं को स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण देना।

प्रश्न 8
ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने एवं उनमें बचत की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देने के लिए महिला समृद्धि योजना कब प्रारम्भ की गयी थी?
(क) 2 अक्टूबर, 1992 ई० को
(ख) 2 अक्टूबर, 1993 ई० को
(ग) 2 अक्टूबर, 1995 ई० को
(घ) 1 जनवरी, 1996 ई० को।
उत्तर:
(ख) 2 अक्टूबर, 1993 ई० को।

प्रश्न 9
ग्रामीण विद्युतीकरण निगम कब स्थापित किया गया ? [2013]
(क) 1969 ई० में
(ख) 1974 ई० में
(ग) 1979 ई० में
(घ) 1984 ई० में
उत्तर:
(क) 1969 ई० में।

प्रश्न 10
सामाजिक वानिकी योजना का शुभारम्भ किस सन में हुआ था?
(क) 1979 ई० में
(ख) 1969 ई० में
(ग) 1974 ई० में।
(घ) 1984 ई० में
उत्तर:
(क) 1979 ई० में।

प्रश्न 11
देश में किस संक्रामक रोग का उन्मूलन कर दिया गया है?
(क) एड्स
(ख) कुष्ठ रोग
(ग) मलेरिया
(घ) चेचक
उत्तर:
(घ) चेचक।

प्रश्न 12
प्रधानमन्त्री ग्राम सड़क योजना आरम्भ की गयी थी [2009, 11, 13]
(क) वर्ष 1999 में
(ख) वर्ष 2000 में
(ग) वर्ष 2001 में
(घ) वर्ष 2002 में
उत्तर:
(ख) वर्ष 2000 में।

प्रश्न 13
निम्नलिखित में से कौन-सी बेरोजगारी दूर करने की एक योजना है
(क) महिला समृद्धि योजना
(ख) ट्राइसेम
(ग) गंगा कार्य योजना
(घ) मिलियन कूप योजना
उत्तर:
(ख) ट्राइसेम।

प्रश्न 14
सामाजिक वानिकी का मुख्य उद्देश्य है
(क) इमारती लकड़ी की आपूर्ति
(ख) चारे की आपूर्ति
(ग) ईंधन लकड़ी की आपूर्ति
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(घ) इनमें से कोई नहीं।

प्रश्न 15
भारत सरकार ने ट्राइफेड की स्थापना कब की थी? [2013]
(क) 1964 में
(ख) 1987 में
(ग) 1990 में
(घ) 1992 में
उत्तर:
(ख) 1987 में।

प्रश्न 16
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना किस वर्ष पूरे देश में लागू हुई थी? [2015]
(क) 2005
(ख) 2006
(ग) 2007
(घ) 2008
उत्तर:
(घ) 2008.

प्रश्न 17
वन अनुसन्धान संस्थान कहाँ स्थित है? [2016]
(क) जोधपुर
(ख) देहरादून
(ग) बंगलुरु
(घ) राँची
उत्तर:
(ख) देहरादून।

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