UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 17 Source of Income and Items of Expenditure of Local Governing Body

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Economics
Chapter Chapter 17
Chapter Name Source of Income and Items of Expenditure of Local Governing Body (स्थानीय निकाय की आय के स्रोत व व्यय की मदें)
Number of Questions Solved 18
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 17 Source of Income and Items of Expenditure of Local Governing Body (स्थानीय निकाय की आय के स्रोत व व्यय की मदें)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1
स्थानीय निकाय की आय के स्रोतों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। [2010, 11]
उत्तर:
आधुनिक युग में स्थानीय निकायों का विशेष महत्त्व है। साधारण रूप से स्थानीय प्रकृति के कार्यों को स्थानीय संस्थाओं को सौंप देने से राज्य सरकारें अपने दायित्वों से मुक्त हो जाती हैं। स्थानीय आवश्यकताओं के कार्य स्थानीय संस्थाओं द्वारा अधिक कुशलतापूर्वक सम्पन्न किये जा सकते हैं। स्थानीय संस्थाओं के सीमित कार्यक्षेत्र होने पर भी उनके दायित्व अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। स्थानीय संस्थाओं की आय के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं
(अ) कर स्रोत,
(ब) गैर-कर स्रोत।
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 17 Source of Income and Items of Expenditure of Local Governing Body 1

(अ) कर-स्रोत – स्थानीय संस्थाओं को कर से पर्याप्त आय प्राप्त होती है, जो कि कुल आय का 70% भाग तक होती है। करों में निम्नलिखित दो प्रकार के कर आते हैं

  1. स्थानीय संस्थाओं द्वारा लगाये गये कर।
  2.  राज्य सरकारों द्वारा लगाये व वसूल किये गये करों में स्थानीय संस्थाओं का भाग।

(ब) गैर-कर स्रोत – गैर-कर स्रोतों में निम्नलिखित को सम्मिलित किया जा सकता है

  •  सहायता अनुदान,
  • ऋण तथा उपादान तथा
  •  अन्य साधन।

स्थानीय निकायों में नगर निगम, नगरपालिकाएँ, छावनी बोर्ड, अनुसूचित क्षेत्र समिति, नगर क्षेत्र समिति, जिला परिषद् और ग्राम पंचायतों को शामिल किया जाता है।

स्थानीय संस्थाओं की आय के साधन:

  •  कर स्रोत आय तथा
  • गैर-कर स्रोत आय।

कर-स्रोत आय
1. प्रत्यक्ष कर – प्रत्यक्ष कर में निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है

  • सम्पत्ति कर – सम्पत्ति कर प्रायः वे कर होते हैं जो कि अचल सम्पत्ति के क्रय-विक्रय पेड़ लगाये जाते हैं। यह स्थानीय संस्थाओं की आय का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। सम्पत्ति कर चार प्रकार के होते हैं-सुधार कर, भूमि पर उपकर, भवन पर कर एवं सम्पत्ति के हस्तान्तरण पर कर।
  • हैसियत कर – यह कर व्यक्ति की आर्थिक अवस्था, सामाजिक स्थिति एवं परिवार के सदस्यों की संख्या को ध्यान में रखकर लगाया जाता है।
  •  गाड़ियों पर कर – यह कर स्थानीय संस्थाओं द्वारा रिक्शा, ठेले आदि पर लगाया जाता है।
  •  बाजार कर – यह कर बाजारों में माल बेचने वाले व्यक्तियों पर नगरपालिकाओं द्वारा लगाये जाते हैं।
  •  पशु कर – यह कर जानवरों; जैसे – गाय, बैल, भैंस, कुत्ते आदि पालतू पशुओं पर लगाये जाते हैं।
  • मार्ग शुल्क – यह कर उन पुलों से गुजरने वाले व्यक्तियों एवं माल पर लगाया जाता है। जिनकी लागत के ₹5 लाख से अधिक होती है।

2. अप्रत्यक्ष कर – अप्रत्यक्ष कर में निम्नलिखित करों को सम्मिलित किया जाता है

  •  चुंगी कर – चुंगी कर ऐसा कर है जो किसी विशेष स्थानीय क्षेत्र में उपभोग करने अथवा वहाँ पर बिक्री के लिए आने वाली वस्तुओं पर लगाया जाता है। यह कर वस्तु की मात्रा या मूल्य के आधार पर लगाया जा सकता है।
  •  सीमा कर – जब कोई सामान नगरपालिका की सीमा में प्रवेश करे या सीमा से बाहर जाए या सीमा से गुजरे तो उस पर लगने वाले कर को सीमा कर कहते हैं। रेलों से यात्रा करने वाले यात्रियों के रेल-भाड़े में सीमा कर सम्मिलित होता है, जो रेल-भाड़े के साथ वसूल करके नगर निकायों को दे दिया जाता है।
  •  सुधार कर – विकास प्रन्यासों द्वारा सम्पत्ति के मूल्य बढ़ाने पर लगने वाले कर को सुधार कर कहते हैं। इन संस्थाओं द्वारा ऐसे कार्य किये जाते हैं, जिससे सम्पत्ति के मूल्य बढ़ जाते हैं और इस बढ़े हुए मूल्य को कर के रूप में प्राप्त करते हैं।
  •  अन्य कर – स्थानीय सरकारों द्वारा लगाये जाने वाले अन्य करों में थियेटर कर, विज्ञापन कर आदि हैं।

गैर-कर स्रोत आय
गैर-कर स्रोत में निम्नलिखित प्रकार की आय को सम्मिलित करते हैं
UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 17 Source of Income and Items of Expenditure of Local Governing Body 2

(a) अनुदान – सभी राज्यों में राज्य सरकारों द्वारा स्थानीय निकायों को अनुदान दिये जाते हैं। सामान्यतः अनुदान शिक्षा, चिकित्सालय तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं और सड़क, जलापूर्ति इत्यादि की सहायता के लिए प्रदान किये जाते हैं।
(b) ऋण तथा उपदान – नगर पालिकाओं एवं अन्य स्थानीय संस्थाओं को जलापूर्ति, नालियों की व्यवस्था, गन्दी बस्तियों की सफाई आदि कार्यों के लिए ऋण एवं उपादान प्राप्त करने होते हैं।
(c) अन्य साधन – स्थानीय संस्थाओं को प्राप्त होने वाली आय के अन्य साधनों में निम्नलिखित को सम्मिलित करते हैं

  1.  विनियोग से आय,
  2. चिकित्सालयों से प्राप्त आय,
  3.  भूमि का लगान एवं मकानों के किराये की आय,
  4. भूमि एवं भूमि की उपज से आय,
  5. शिक्षण संस्थाओं से आय,
  6.  बाजारों से प्राप्त आर्य आदि।

प्रश्न 2
जिला परिषदों (जिला पंचायतों) की आय के स्रोतों और व्यय की प्रधान मदों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
या
जिला परिषद् की आय के प्रमुख स्रोतों को समझाइए। [2007]
उत्तर:
जिला परिषदों (जिला पंचायतों) की आय के प्रमुख स्रोत

1. हैसियत एवं सम्पत्ति – कर-जिला पंचायत अपने क्षेत्र में व्यक्तियों की हैसियत एवं सम्पत्ति पर अथवा उद्योगों व व्यापार पर कर लगाती है। इससे जिला परिषद् को आय प्राप्त होती है। इस कर की प्रकृति प्रगतिशील होती है, अर्थात् अमीर व्यक्तियों पर यह कर ऊँची दर से लगाया जाता है।

2. भूमि पर उपकर – यह जिला पंचायत की आय का प्रमुख स्रोत है। इस मद से सम्पूर्ण आय का लगभग 70% भाग प्राप्त होता है। इस कर को लगान के साथ राज्य सरकारें वसूल करती हैं और वह इसे जिला परिषद् में वितरित कर देती हैं। उत्तर प्रदेश में यह कर राज्य सरकार लगान के साथ ही वसूल करती है तथा जिला पंचायतों को प्रतिकारी अनुदान (Compensatory grant) प्रदान करती है।

3. मार्ग शुल्क – जिला पंचायत अपने क्षेत्र में नदियों के पुल, घाट, सड़क आदि पर कर लेती है। जो व्यक्ति अपने पशु अथवा वाहन इन पुलों, सड़कों या घाट से लाते व ले जाते हैं, उन्हें यह मार्ग शुल्क देना पड़ता है।

4. काँजी हाउस से आय – आवारा घूमने वाले पशुओं को कॉजी हाउस में बन्द कर दिया जाता है। जब उनके मालिक उन्हें छुड़ाने आते हैं तो उनसे जुर्माना प्राप्त किया जाता है। इस मद से भी जिला पंचायत को आय प्राप्त होती है।

5. मेलों, प्रदर्शनियों व बाजारों से आय – जिला पंचायतों के क्षेत्र में जिन प्रमुख मेलों व प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाता है, उसका प्रबन्ध जिला पंचायत को करना पड़ता है। इनके आयोजन से जो आय प्राप्त होती है वह जिला पंचायत की आय है; उदाहरण के लिए-मुजफ्फरनगर में शुक्रताल, गढ़मुक्तेश्वर में गंगास्नान मेला आदि। इनसे प्राप्त होने वाली आय जिला पंचायतों को प्राप्त होती है।

6. किराया व शुल्क – जिला पंचायत के भूमि, मकानों, दुकानों, डाक-बंगलों आदि के किराये से आय प्राप्त होती है। स्कूलों में अस्पतालों से कुछ शुल्क भी आय के रूप में मिलता है।

7. राज्य सरकारों से प्राप्त अनुदान – राज्य सरकार जिला पंचायतों को अनुदान के रूप में आर्थिक सहायता प्रदान करती है। राज्य सरकारें यह अनुदान उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा आदि के विकास के लिए देती हैं। जिला पंचायतों की आय की यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मद है।

8. अनुज्ञा-पत्र शुल्क – जिला परिषद् कसाइयों से, गोश्त की दुकानों से, वनस्पति घी की दुकानों से, आटे की चक्की के रूप में आय प्राप्त करती है।

9. कृषि उपकरणों की बिक्री से आय – जिला पंचायत खाद, बीज, कृषि यन्त्र आदि की बिक्री की भी व्यवस्था करती है। इनकी बिक्री से भी लाभ के रूप में कुछ आय प्राप्त होती है।

जिला पंचायतों की व्यय की प्रमुख मदें
जिला पंचायत की व्यय की मदें निम्नलिखित हैं

1. शिक्षा पर व्यय – जिला पंचायत सबसे अधिक व्यय शिक्षा पर करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का प्रचार व प्रसार का उत्तरदायित्व जिला पंचायतों पर है। इसके लिए जिला पंचायत गाँवों में प्राइमरी स्कूल तथा जूनियर हाईस्कूल खोलती है। गाँवों में वाचनालय एवं पुस्तकालयों की भी व्यवस्था करती है।

2. सामान्य प्रशासन एवं करों की प्राप्ति पर व्यय – जिला पंचायत को अपने कार्यालय में कर्मचारियों के वेतन तथा करों की वसूली पर भी व्यय करना पड़ता है।

3. सार्वजनिक स्वास्थ्य – जिला पंचायतें ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पताल एवं जच्चा-बच्चा गृहों की व्यवस्था करती हैं। ये गाँवों में हैजा, चेचक, प्लेग आदि संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए टीके लगवाने की व्यवस्था करती हैं।

4. सार्वजनिक निर्माण कार्य – जिला पंचायत अपने क्षेत्र में सड़कें बनवाना, वृक्ष लगवाना, पुलों को निर्माण एवं मरम्मत की व्यवस्था करती है। इन कार्यों पर जिला पंचायत को पर्याप्त व्यय करना पड़ता है।

5. मेले तथा प्रदर्शनी पर व्यय – जिला पंचायत को जिले में लगने वाले मेलों तथा प्रदर्शनियों की व्यवस्था पर भी व्यय करना पड़ता है।

6. पंचायतों की आर्थिक सहायता – जिला पंचायत, ग्राम पंचायतों तथा क्षेत्रीय समितियों के कार्यों का निरीक्षण करती है तथा अनुदान के रूप में ग्राम पंचायतों को आर्थिक सहायता भी देती है।

7. ऋण पर ब्याज – जिला पंचायत कभी- कभी जिले के आर्थिक विकास के लिए ऋण भी ले लेती है। इन ऋणों पर उसे ब्याज देना पड़ता है।

8. अन्य मदें – जिला पंचायतें दीन-दु:खियों तथा अपाहिजों की सहायता करती हैं, जन्म-मृत्यु का विवरण रखती हैं, कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करती हैं तथा पशुओं आदि की बीमारी से रोकथाम की व्यवस्था करती हैं। इन सब कार्यों के लिए जिला पंचायते पर्याप्त धन व्यय करती हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)

प्रश्न 1
अपने राज्य की नगर महापालिकाओं की आय के स्रोतों की व्याख्या कीजिए।
या
नगर महापालिकाओं की आय की प्रमुख मदें (मुख्य स्रोत) लिखिए।
उत्तर:
नगर महापालिकाओं की आय के प्रमुख स्रोत (प्रमुख मदें)
नगर महापालिकाओं की आय के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं

1. सम्पत्ति-कर – यह नगर महापालिकाओं की आय का एक प्रमुख स्रोत है। यह कर नगर महापालिकाओं की सीमा में स्थित भूमि, मकान तथा सम्पत्तियों के स्वामियो पर लगाया जाता है। यह दो प्रकार का होता हैं

  • गृह कर – भवन कर नगर महापालिका की आय का एक प्रमुख स्रोत है। यह कर नगर महापालिकाओं की सीमा में स्थित भूमि, मकान तथा सम्पत्तियों से वसूल किया जाता है।
  •  विकास कर – नगर महापालिकाओं द्वारा जब किसी क्षेत्र में विकास; जैसे–सड़कों का निर्माण, पुलों का निर्माण आदि किया जाता है तो नगर महापालिका कर वसूल करती है। इसे विकास कर कहते हैं।

2. जल-कर – नगर महापालिकाएँ अपने नागरिकों के लिए स्वच्छ पीने के पानी की व्यवस्था करती हैं। इसके बदले में वे जल-कर प्राप्त करती हैं।

3. चुंगी कर – चुंगी कर के द्वारा नगर महापालिकाओं को पर्याप्त आय होती है। चुंगी उन वस्तुओं पर लगायी जाती है जिनका नगर महापालिकाओं के क्षेत्र में आयात होता है अर्थात् जो वस्तुएँ नगर की सीमा से बाहर के क्षेत्रों से नगर की सीमा में आती हैं। उत्तर प्रदेश में अब यह कर बन्द कर दिया गया है।

4. सीमा कर – यह कर उन वस्तुओं पर लगाया जाता है जो रेल द्वारा नगर महापालिका के क्षेत्र में आती हैं।।

5. मार्ग कर – यह कर नगर महापालिकाओं की सीमा में पड़ने वाले पुलों, सड़कों, नदियों पर से गुजरने वाले व्यक्तियों, पशुओं तथा वाहनों पर उनके भार अथवा संख्या के आधार पर लगाया जाता है।

6. यात्री कर – यह कर तीर्थस्थानों की नगर महापालिकाओं या नगर पालिकाओं द्वारा लगाया जाता है। नगर महापालिकाएँ बाहर से आने वाले यात्रियों की सुविधा के लिए अतिरिक्त व्यय स्वास्थ्य, सफाई व जलापूर्ति पर करती हैं। इस कारण वे यह कर वसूल करती हैं। अब इस कर को केन्द्रीय सरकार ने अपने हाथ में ले लिया है।

7. तहबाजारी – यह कर अस्थायी दुकानदारों से वसूल किया जाता है। जो दुकानदार सड़क की पटरियों पर रखकर सामान बेचते हैं; जैसे-खोमचे वाले, फेरी वाले, हॉकर्स आदि; इनसे यह कर प्रतिदिन वसूल किया जाता है।

8. वाहन कर या लाइसेंस से आय – नगर महापालिकाएँ मोटरों, ऊँटगाड़ियों, बैलगाड़ियो. घोड़े-ताँगों, ठेलों, रिक्शा आदि पर कर लगाती हैं तथा उन्हें लाइसेंस प्रदान करती हैं।

9. राज्य सरकार से अनुदान – राज्य सरकार नगर महापालिकाओं को उनके व्यय की पूर्ति हेतु अनुदान देती है।

प्रश्न 2
नगर महापालिकाओं की व्यय की मदों को लिखिए। [2010]
उत्तर:
नगर महापालिकाओं के व्यय की मदें।

1. प्रशासन और कर-संग्रह पर व्यय – नगर महापालिकाओं को अपने प्रशासन हेतु कार्यालय व्यवस्था करनी होती है। अत: कार्यालयों के कर्मचारियों के वेतन तथा सामग्री पर व्यय करना पड़ता है। करों को वसूल करने में भी आय का पर्याप्त भाग व्यय होता है।

2. सार्वजनिक सुरक्षा पर व्यय – नगर महापालिकाएँ सार्वजनिक सुरक्षा की दृष्टि से आग बुझाने के लिए दमकलें रखती हैं, सड़कों के चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस के उड़े होने के लिए चबूतरे बनवाती हैं तथा सार्वजनिक स्थानों पर बिजली व रोशनी का प्रबन्ध करती हैं। इन मदों पर भी प्रतिवर्ष काफी व्यय होता है।

3. सार्वजनिक स्वास्थ्य व चिकित्सा – नगर महापालिकाएँ नि:शुल्क चिकित्सा व्यवस्था प्रदान करती हैं। चेचक, हैजा, प्लेग आदि रोगों की रोकथाम के लिए टीके लगवाती हैं, नगर की सफाई की व्यवस्था करती हैं तथा बाजार में बिकने वाली अशुद्ध वस्तुओं पर रोक लगाती हैं। इन सब कार्यों को पूरा करने के लिए नगर महापालिकाओं का पर्याप्त धन व्यय होता है।

4. शिक्षा पर व्यय – नगर महापालिकाएँ अपने क्षेत्र में प्राइमरी शिक्षा की व्यवस्था करती हैं। कुछ नगर महापालिकाएँ जू० हा० स्कूल, हाईस्कूल व इण्टरमीडिएट कॉलेज भी चलाती हैं। इस मद पर भी नगर महापालिकाएँ धन व्यय करती हैं।

5. सार्वजनिक निर्माण कार्य – नगर महापालिकाओं को उद्योगों व पार्को की व्यवस्था करनी पड़ती है। खेल के मैदान एवं व्यायामशालाओं आदि का निर्माण भी करना पड़ता है तथा अपने क्षेत्र में टूटी-फूटी सड़कों का निर्माण एवं मरम्मत भी करानी पड़ती है। इन सभी कार्यों को सम्पादित करने में प्रतिवर्ष पर्याप्त धन व्यय करना पड़ता है।

6. पेयजल की व्यवस्था पर व्यय – नगर महापालिकाओं का एक प्रमुख कर्तव्य अपने क्षेत्र के नागरिकों को पीने के लिए शुद्ध जल की व्यवस्था करना है। इस कार्य के लिए नगर महापालिकाएँ नलकूपों का निर्माण कराकर टंकियों के माध्यम से पेयजल की व्यवस्था करती हैं। सार्वजनिक स्थानों पर नल भी लगवाती हैं। इस मद पर भी धन व्यय करना पड़ता है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)

प्रश्न 1
स्थानीय संस्थाओं की व्यय की मदों का उल्लेख कीजिए। [2012]
उत्तर:
स्थानीय संस्थाओं की व्यय की मदें निम्नलिखित हैं

  1.  चिकित्सा व स्वास्थ्य – इस कार्य में अस्पताल, दवा, डॉक्टर आदि का व्यय सम्मिलित होता है।
  2. परिवहन – स्थानीय संस्थाओं को परिवहन पर भी पर्याप्त व्यय करना पड़ता है। सड़कों के निर्माण पर अधिक व्यय किया जाता है।
  3.  शिक्षा – माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा की मुफ्त व्यवस्था की गयी है।
  4.  नागरिक सेवाएँ – इसमें सफाई, जन स्वास्थ्य, प्रकाश, विद्यालयों की देख-रेख व जल की व्यवस्था सम्मिलित की जाती है।
  5. कल्याण कार्य  – समाज कल्याण कार्यों को इसमें सम्मिलित किया जाता है; जैसे – मनोरंजन व्यय, कल्याण केन्द्र, विश्राम-गृह आदि।।
  6. विकास कार्य – कृषि, परिवहन, उद्योग, सिंचाई आदि के विकास पर आवश्यक धन व्यय करना होता है।

निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
राज्यों की आय के दो कर-स्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) भू-राजस्व या मालगुजारी तथा
(2) विद्युत कर।

प्रश्न 2
जिला परिषद् की आय के दो साधन बताइए।
उत्तर:
(1) हैसियत या सम्पत्ति कर तथा
(2) राज्य सरकार से अनुदान।

प्रश्न 3
इस प्रदेश की जिला परिषद् की व्यय की दो प्रमुख मदों को लिखिए।
उत्तर:
(1) शिक्षा पर व्यय तथा
(2) करों की प्राप्ति पर व्यय।

प्रश्न 4
नगर महापालिकाओं की आय के दो साधन लिखिए।
उत्तर:
(1) सम्पत्ति-कर या गृहकर तथा
(2) जल-कर।

प्रश्न 5
नगर महापालिकाओं की व्यय की दो प्रमुख मदों को लिखिए।
उत्तर:
(1) शिक्षा तथा
(2) सार्वजनिक स्वास्थ्य व चिकित्सा।

प्रश्न 6
उत्तर प्रदेश के नगर निगमों के नगरों के नाम लिखिए।
उत्तर:
(1) कानपुर,
(2) आगरा,
(3) वाराणसी,
(4) इलाहाबाद,
(5) लखनऊ,
(6) मेरठ,
(7) बरेली,
(8) गोरखपुर, झॉसी, मथुरा, सहारनपुर, गाजियाबाद, मुरादाबाद, अलीगढ़।।

प्रश्न 7
स्थानीय निकाय की आय का एक स्रोत लिखिए। [2006]
उत्तर:
गृह-कर।

प्रश्न 8
स्थानीय निकाय की व्यय की दो मदों के नाम लिखिए। [2016]
उत्तर:
(1) शिक्षा,
(2) सार्वजनिक स्वास्थ्य व चिकित्सा।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1
नगर निगम के मुख्य पदाधिकारी को कहते हैं
(क) जिलाधीश
(ख) नगर-प्रमुख
(ग) स्वास्थ्य अधिकारी
(घ) पुलिस अधीक्षक
उत्तर:
(ख) नगर-प्रमुख।

प्रश्न 2
जिला पंचायत एक संस्था है
(क) स्थायी
(ख) अस्थायी
(ग) स्थायी एवं अस्थायी दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) स्थायी।

प्रश्न 3
स्थानीय निकायों को अनुदान दिये जाते हैं
(क) राज्य सरकार द्वारा
(ख) केन्द्रीय सरकार द्वारा
(ग) केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा
(घ) इनमें से किसी के द्वारा नहीं।
उत्तर:
(क) राज्य सरकार द्वारा।

प्रश्न 4
निम्नलिखित में से कौन-सा कर स्थानीय निकायों द्वारा लगाया जाता है? [2006, 15]
(क) गृह-कर
(ख) बिक्री-कर
(ग) भू-राजस्व
(घ) आय-कर
उत्तर:
(क) गृह-कर।

प्रश्न 5
कौन-सी सरकार गृह कर लगाती है? [2013, 15]
(क) केन्द्र सरकार
(ख) राज्य सरकार
(ग) स्थानीय सरकार
(घ) येसभी
उत्तर:
(ग) स्थानीय सरकार।

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