UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 9 Nationalism and Internationalism

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Civics
Chapter Chapter 9
Chapter Name Nationalism and Internationalism
(राष्ट्रीयता तथा अन्तर्राष्ट्रीयता)
Number of Questions Solved 47
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Civics Chapter 9 Nationalism and Internationalism (राष्ट्रीयता तथा अन्तर्राष्ट्रीयता)

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)

प्रश्न 1.
राष्ट्रीयता की परिभाषा दीजिए तथा इसके विभिन्न पोषक तत्वों की विवेचना कीजिए।
या
‘राष्ट्रीयता क्या है? इसके निर्माणक तत्त्व बताइए। [2011]
या
राष्ट्रवाद से आप क्या समझते हैं? [2013, 15]
उत्तर
‘राष्ट्रीयता’ शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘Nationality’ शब्द का हिन्दी रूपान्तर है, जिसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘Natio’ शब्द से हुई है। इस शब्द से जन्म और जाति का बोध होता है। राष्ट्रीयता एक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक भावना है। यह लोगों को एक सूत्र में बाँधने का कार्य करती है। विभिन्न विद्वानों ने राष्ट्रीयता की परिभाषाएँ दी हैं, जिनमें कुछ इस प्रकार हैं-

  1. एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार, ‘‘राष्ट्रीयता एक ऐसी मनोदशा को कहते हैं जिसमें व्यक्ति अपने राष्ट्र के प्रति उच्चतम भक्ति को अनुभव करता है।”
  2. मैकियावली के अनुसार, राष्ट्रीयता उस सक्रिय भावना को कहते हैं जो लोगों में एक साथ रहने से उत्पन्न होती है।”
  3. डॉ० बेनी प्रसाद के अनुसार, “राष्ट्रीयता की निश्चित परिभाषा देना कठिन है, परन्तु यह स्पष्ट है कि ऐतिहासिक गतिविधि में यह पृथक् अस्तित्व की उस चेतना का प्रतीक है जो सामान्य आदतों, परम्पराओं, रीति-रिवाजों, स्मृतियों, आकांक्षाओं, अवर्णनीय सांस्कृतिक सम्प्रदायों तथा हितों पर आधारित है।”
  4. हॉलैण्ड के अनुसार, “राष्ट्रीयता एक ऐसी आध्यात्मिक भावना है जो लोगों को राजनीतिक रूप में एकता के बन्धन में रहने के लिए प्रेरित करती है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर राष्ट्रीयता का अर्थ साधारण शब्दों में इस प्रकार बताया जा सकता है कि “राष्ट्रीयता उन लोगों का समूह है जो समान भाषा, समान जाति या वंश, समान साहित्य, समान इतिहास, समान रीति-रिवाजों, समान विचारधारा और समान राजनीतिक आकांक्षा आदि के आधार पर अपने को एक समझते हों और इसी प्रकार अपने को एक समझने वाले दूसरे लोगों को अलग मानते हों।”

राष्ट्रीयता के मुख्य निर्माणक तत्त्व
लोगों में राष्ट्रीयता के लिए आवश्यक एकता की भावना उत्पन्न करने में कई तत्त्व सहायक सिद्ध होते हैं। राष्ट्रीयता के मुख्य सहायक तत्त्व निम्नवत् हैं-

  1. मातृभूमि – प्रत्येक मनुष्य को अपनी मातृभूमि से लगाव होना स्वाभाविक है। इस लगाव के कारण ही वे आपस में एक भावना से बँधे रहते हैं।
  2. जातीय एकता – जिमर्न तथा ब्राइस जातीय एकता को राष्ट्रवाद के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान मानते हैं। एक ही जाति के लोगों में रीति-रिवाजों, धर्म तथा रहन-सहन की एकरूपता होती है, जिससे राष्ट्रीय भावना विकसित होती है।
  3. समान संस्कृति – एक देश में निवास करने वाले व्यक्तियों के मध्य समान परम्पराएँ, रीति-रिवाज, साहित्य एवं रहन-सहन की विधि एक-दूसरे को जोड़ने के लिए सीमेण्ट की तरह है।
  4. भाषायी एकता – भाषा की एकता भी राष्ट्रीयता के प्रारम्भिक विकास में सहयोगी होती है। भाषा से लोगों में पारस्परिक निकटता उत्पन्न होती है। समान आदर्श तथा समान संस्कृति को बढ़ावा मिलता है तथा राष्ट्रीय एकता में वृद्धि होती है, क्योंकि ये दोनों ही राष्ट्रीयता के आधार हैं।
  5. धार्मिक एकता – एक ही धर्म के लोगों में राष्ट्रीयता की भावना शीघ्रता से उत्पन्न हो जाती है; अतः धर्म लोगों को एकता के सूत्र में पिरोकर राष्ट्रीयता के विकास में सहायक बनाता है।
  6. भौगोलिक एकता – भौगोलिक एकता से भी राष्ट्रीयता का विकास होता है। रुथनास्वामी ने ठीक ही कहा है कि “राजनीति हमें बाँटती है, धर्म हमारे बीच दीवारें खड़ी कर देते हैं, संस्कृति हमें एक-दूसरे से पृथक् करती है, किन्तु देश और धरती का प्रेम हमें एक सूत्र में बाँधता है। भौगोलिक एकता के विकास के अभाव में राष्ट्रीयता का विकास असम्भव है।”
  7. एक शासन – लम्बे समय तक एक ही शासन के अधीन रहने से भी राष्ट्रीयता की भावना का जन्म तथा विकास होता है।
  8. समान इतिहास – समान इतिहास भी राष्ट्रीयता के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। जिन लोगों का समान इतिहास होता है, उनमें एकता की भावना का होना स्वाभाविक है।
  9. समान हित – राष्ट्रीयता के विकास के लिए समान हित भी महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। यदि लोगों के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा धार्मिक हित समान हों तो उनमें एकता की उत्पत्ति होना स्वाभाविक ही है।
  10. संघर्ष के समय राष्ट्रीय एकता – एक राष्ट्र में व्यक्ति परस्पर अधिक संगठित रहते हैं। वे साधारण मनमुटाव को भुलाकर आने वाली विपत्तियों का सामना करते हैं। भारत-पाक युद्ध के समय भारतीय राष्ट्रीय एकता इसका प्रमाण है।
  11. राज़नीतिक आकांक्षाएँ – राष्ट्रीयता के विकास में राजनीतिक आकांक्षाएँ महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं। जब लोगों के समूह में विदेशी राज्य को समाप्त करने की भावना आती है तो राष्ट्रीयता की भावना उत्पन्न होती है।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीयता की परिभाषा दीजिए। ‘राष्ट्रीयता के विकास में बाधक तत्त्वों पर प्रकाश डालिए।
या
‘राष्ट्रीयता के विकास में बाधक तत्त्वों तथा उनको दूर करने के उपायों का वर्णन कीजिए।
या
राष्ट्रीयता के विकास में बाधक किन्हीं दो तत्त्वों का उल्लेख कीजिए। [2016]
उत्तर
(संकेत–राष्ट्रीयता की परिभाषा हेतु विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 1 का उत्तर देखें।
राष्ट्रीय भावना (राष्ट्रीयता) के विकास में बाधक तत्त्व राष्ट्रीयता के विकास में बाधक तत्त्व निम्नवत् हैं-

1. अज्ञान और अशिक्षा – शिक्षा राज्य में रहने वाले मनुष्यों को मानसिक रूप से एक-दूसरे के समीप लाकर उनमें एक सामान्य दृष्टिकोण को जन्म देती है जिसका परिणाम राष्ट्रीयता होता है। इसके नितान्त विपरीत अज्ञान और अशिक्षा मानव मस्तिष्कों के मेल में बाधक सिद्ध होते हैं और इनके द्वारा राष्ट्रीयता के विकास में बाधा ही डाली जाती है।

2. आवागमन के अच्छे साधनों का अभाव – यदि आवागमन के अच्छे साधन न हों तो एक ही राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्ति एक-दूसरे से सम्पर्क स्थापित नहीं कर पाते। इसके परिणामस्वरूप उनमें वह एकता की भावना उत्पन्न नहीं हो पाती, जो राष्ट्रीयता का प्राण है।

3. साम्प्रदायिकता की भावना – जब व्यक्तियों के द्वारा अपने सम्प्रदाय विशेष को बहुत अधिक महत्त्व दिया जाता है तो उसे साम्प्रदायिकता की भावना कहते हैं। साम्प्रदायिकता की यह भावना स्वाभाविक रूप से राष्ट्रीयता के विकास में बहुत अधिक बाधक होती है, क्योंकि साम्प्रदायिकता के बहाव में व्यक्ति राष्ट्रीय हितों को भूलकर सम्प्रदाय विशेष के हितों को ही सब कुछ समझ बैठते हैं।

4. जातिवाद एवं भाषावाद – जातिवाद तथा भाषावाद भी राष्ट्रीयता के मार्ग में बाधक तत्त्व हैं। जातिवाद की भावना के कारण व्यक्ति केवल अपनी जाति के लोगों से ही स्नेह रखते हैं तथा अन्य जाति के लोगों से घृणा करते हैं। इससे राष्ट्रीय चेतना का विकास नहीं हो पाता। इसी प्रकार जब व्यक्ति अपनी भाषा को ही सब कुछ समझकर अन्य भाषाओं के प्रति द्वेष का रुख अपना लेते हैं, तो इससे भाषायी उपद्रवों को बढ़ावा मिलता है और राष्ट्रीयता को आघात पहुँचता है।

5. प्रान्तीयता की भावना – प्रान्तीयता की भावना भी राष्ट्रीयता के विकास में बहुत बाधक होती है। इस भावना के कारण विभिन्न प्रान्तों में रहने वाले लोग अपने आपको राष्ट्र का नागरिक न समझकर एक प्रान्त का ही निवासी समझते हैं। इस भावना के कारण देश में क्षेत्रीय उपद्रव उठ खड़े होते हैं और देश अनेक टुकड़ों में बँट जाता है।

6. देशभक्ति का अभाव – जब एक देश के व्यक्ति अपने देश के प्रति भक्ति नहीं रखते, उन्हें अपने देश की सभ्यता और संस्कृति से लगाव नहीं होता तो राष्ट्रीय चेतना का उदय नहीं हो पाता और राष्ट्रीय भावना का विकास रुक जाता है।
राष्ट्रीयता के विकास के लिए आवश्यक है कि जातिवाद, भाषावाद, प्रान्तीयता और साम्प्रदायिकता की भावनाओं का त्याग कर स्वस्थ, उदार और विवेकपूर्ण देशभक्ति का मार्ग अपनाया जाये।

राष्ट्रवाद के मार्ग की बाधाओं को दूर करने के उपाय
राष्ट्रवाद के मार्ग की बाधाओं को दूर करने के लिए प्रमुख रूप से निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं-

1. संकुचित भावनाओं का त्याग और देश-प्रेम की प्रबल भावना – जाति, भाषा, धर्म, सम्प्रदाय और क्षेत्र विशेष के प्रति प्रेम में कोई बुराई नहीं है, यदि व्यक्ति इनकी तुलना में देश के प्रति प्रेम अर्थात् राष्ट्रवाद की भावना को अधिक प्रबल रूप में अपनाएँ। व्यक्ति के मन और मस्तिष्क में राष्ट्रवाद की भावना इतनी प्रबल होनी चाहिए कि वह जाति, भाषा, धर्म, सम्प्रदाय और प्रदेश के प्रति प्रेम को राष्ट्रीय भावना के विकास में बाधक न बनने दें।

2. देश के विभिन्न भागों में साहित्यिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक सम्पर्क – देश की एक राष्ट्रभाषा होनी चाहिए, जिसके माध्यम से राष्ट्रवाद की भावनाओं का विकास हो। व्यक्तियों द्वारा न केवल राष्ट्रभाषा वरन् अपने से भिन्न प्रदेश की भाषा, साहित्य और संस्कृति का ज्ञान प्राप्त किया जाना चाहिए। व्यक्तियों में अपने से भिन्न भाषा और संस्कृति रखने वाले व्यक्तियों के मनोभावों को समझने की प्रवृत्ति होनी चाहिए, जिससे राष्ट्रवाद के मार्ग की मनोवैज्ञानिक बाधा दूर हो सके और राष्ट्रवाद की भावना पल्लवित हो सके।

3. शिक्षा का प्रचार-प्रसार और सही शिक्षा व्यवस्था – शिक्षित व्यक्तियों से उदार दृष्टि अपनाने की आशा की जा सकती है। अत: शिक्षा का बहुत तेजी से प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। शिक्षा व्यवस्था में मानवीय दृष्टिकोण को उदार बनाने का प्रयत्न किया जाना चाहिए और व्यक्तियों को नैतिक मूल्यों की शिक्षा दी जानी चाहिए। शिक्षा के द्वारा नागरिकों में व्यक्तिगत और संकुचित स्वार्थों को नियन्त्रित करने और देशहित को सर्वोपरि समझने की प्रवृत्ति विकसित की जानी चाहिए।

4. आवागमन के अच्छे साधन – आवागमन के बहुत अच्छे और सुविधाजनक साधन विकसित किये जाने चाहिए, जिससे एक ही देश में विभिन्न क्षेत्रों के निवासी एक-दूसरे के अधिकाधिक सम्पर्क में आएँ और राष्ट्रवाद को अपना सकें।

5. सभी क्षेत्रों का सन्तुलित आर्थिक विकास – राष्ट्रीय सरकार द्वारा अपने देश के सभी क्षेत्रों का सन्तुलित और अधिकाधिक सम्भव सीमा तक आर्थिक विकास करने की नीति अपनायी जानी चाहिए, जिससे आर्थिक कारणों से किन्हीं क्षेत्रों में तीव्र असन्तोष न उत्पन्न हो सके।

6. दलीय राजनीति पर अंकुश – आज के लोकतान्त्रिक राज्यों में यह निर्बलता देखी गयी है। कि राजनीतिक दल शासन पर अधिकार करना या बनाये रखना अपना एकमात्र उद्देश्य बना लेते हैं और वे ‘दलीय राजनीति का खेल खेलते हुए राष्ट्रीय हितों को हानि पहुँचाते हैं। अतः शासक दल और विपक्षी दल सभी के द्वारा दलीय राजनीति पर अंकुश रखा जाना चाहिए और सत्ता प्राप्ति की तुलना में राष्ट्रवाद को सर्वोपरि महत्त्व दिया जाना चाहिए।

7. न्यायपूर्ण और सुदृढ़ शासन – शासन ऐसा होना चाहिए जो उपद्रवी तत्त्वों और संकुचित प्रवृत्तियों को नियन्त्रित करने में समर्थ हो, लेकिन जिसके द्वारा अपनी शक्तियों को न्यायपूर्ण और संयमित रूप में ही प्रयोग किया जाये।

राष्ट्रवाद के विकास में शिक्षक, समाचार-पत्रों के सम्पादक, धार्मिक और सामाजिक जीवन का नेतृत्व करने वाले वर्ग, राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं और नेता तथा देश के सर्वोच्च नेतृत्व-सभी की महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ हैं। ये वर्ग अपनी भूमिकाएँ भली प्रकार सम्पादित करें, तभी राष्ट्रवाद की भावना का विकास और राष्ट्रवाद के भाव को उदार, लेकिन पूर्ण अंशों में बनाये रखने का कार्य सम्भव हो सकेगी।

प्रश्न 3.
राष्ट्रवाद से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए। [2008, 10, 11, 14]
या
राष्ट्रवाद (राष्ट्रीयता) के गुण-दोषों की विवेचना कीजिए। [2014]
या
क्या राष्ट्रीयता विकास में बाधक है? [2014]
या
क्या उग्र राष्ट्रवाद विश्व-शान्ति के मार्ग की बाधा है? व्याख्या कीजिए। [2010]
या
‘राष्ट्रीयता एक अभिशाप है।’ स्पष्ट कीजिए। [2010]
उत्तर
(संकेत-राष्ट्रवाद हेतु विस्तृत उत्तरीय प्रश्न 1 का उत्तरे देखें]
राष्ट्रीयता के गुण
किसी भी राष्ट्र के विकास में राष्ट्रीयता एक वरदान का कार्य करती है। इस भावना के फलस्वरूप अनेक नये राष्ट्रों का निर्माण हुआ है। राष्ट्रीयता को यदि इसके सही अर्थों में अपनाया जाये तो यह अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग और विश्व शान्ति की स्थापना में सहायक सिद्ध हो सकती है। राष्ट्रीयता के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-

  1. राजनीतिक एकता की शिक्षक – राष्ट्रीयता की भावना के कारण भी लोग मिलकर रहना सीखते हैं।
  2. देश-प्रेम का आधार – राष्ट्रीयता और देशभक्ति पर्यायवाची शब्द हैं। राष्ट्रीयता व्यक्तियों को अपने देश के प्रति प्रेम करना सिखाती है। जब व्यक्ति अपने देश से प्रेम करने लगते हैं तो वे देश की उन्नति करने का प्रयत्न भी करते हैं।
  3. राष्ट्र की स्वतन्त्रता के लिए प्रेरक – राष्ट्रीयता की भावना से लोग आपसी भेदभाव को भूलकर देश को आजाद कराने के लिए संघर्ष और आन्दोलन करते हैं।
  4. संस्कृति के विकास में सहायक – राष्ट्रीयता की भावना भाषा, साहित्य, विज्ञान, कला तथा संस्कृति के विकास में बहुत सहायता प्रदान करती है।
  5. आर्थिक विकास में योगदान – राष्ट्रीयता ने राष्ट्र के विकास में बहुत योगदान दिया है। देश के विकास के लिए नागरिक, व्यापारी अच्छी वस्तुओं का उत्पादन करते हैं, जिससे उद्योग धन्धे और व्यापारों की उन्नति होती है और देश का आर्थिक विकास होता है।
  6. चरित्र-निर्माण में सहायक – राष्ट्रीयता व्यक्तियों के चरित्र-निर्माण में सहायक होती है। राष्ट्रीयता मनुष्य को अपने स्वार्थों से ऊपर उठकर राष्ट्र के लिए त्याग करना सिखाती है। राष्ट्रीयता व्यक्तियों में अनुशासन, कर्तव्यपरायणता, सहयोग, सहानुभूति, सहायता इत्यादि नागरिक गुणों की शिक्षा देती है।
  7. उदारवाद का परिचायक – राष्ट्रवाद का आत्म-निर्णय के अधिकार से सम्बद्ध होना ही स्वतन्त्रता के विचार का परिचायक है। व्यक्ति व राज्य में प्रजातन्त्रीय विचार संचारित होते हैं। जो साम्राज्यवादी विचारों का विरोध करते हैं।
  8. विभिन्नताओं की रक्षा – राष्ट्रवाद संकीर्णताओं को लाँघकर मानव को एक बनाता है। विभिन्न जाति, धर्म, वर्ग व वर्ण के लोगों को एकता के सूत्र में बाँधता है।
  9. विश्व-शान्ति की संस्थापक – राष्ट्रीयता अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग और विश्व-शान्ति की स्थापना में सहायक होती है। यह विश्व-बन्धुत्व की भावना में वृद्धि करती है।

राष्ट्रीयता के दोष-राष्ट्रीयता एक अभिशाप
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि राष्ट्रीयता मानव समुदाय के लिए एक वरदान है, किन्तु जब यह भावना बहुत संकुचित अथवा उग्र रूप धारण कर लेती है तो यह विध्वंसक हो जाती है तथा एक अभिशाप बन जाती है। पं० जवाहरलाल नेहरू ने लिखा है कि राष्ट्रीयता एक ऐसा विचित्र तत्त्व है जो एक देश के इतिहास में जीवन, विकास, शक्ति और एकता का संचार करता है, वह संकुचित भी बनाता है; क्योंकि इसके कारण एक व्यक्ति अपने देश के बारे में विश्व के अन्य देशों से पृथक् रूप से सोचता है।” राष्ट्रीयता के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं-

1. विश्व-शान्ति के लिए घातक – उग्र-राष्ट्रीयता मानवता और विश्व-शान्ति के लिए घातक है। उग्र-राष्ट्रीयता की भावना के कारण ही एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र से घृणा करता है।

2. अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में बाधक – उग्र-राष्ट्रीयता के कारण विभिन्न राष्ट्रों के बीच अच्छे तथा मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाते हैं। राष्ट्रों के आपसी सम्बन्धों में कटुता पैदा हो जाती है। अत: उग्र-राष्ट्रीयता अन्तर्राष्ट्रीयता के मार्ग में बाधक है।

3. साम्राज्यवाद की जनक – उग्र-राष्ट्रीयता साम्राज्यवाद की जड़ है। उग्र-राष्ट्रीयता की भावना से ही विश्व में साम्राज्यवाद का उदय हुआ।

4. विकास कार्यों में बाधक – उग्र-राष्ट्रीयता के कारण राष्ट्र का विकास भी रुक जाता है। उग्र राष्ट्रीयता के कारण राष्ट्रों के पारस्परिक सम्बन्ध बिगड़ जाते हैं जिसके कारण उन्हें अपनी रक्षा के लिए बड़ी-बड़ी सेनाओं को रखना पड़ता है तथा रक्षा और सेना पर बहुत व्यय करना पड़ता है। फलस्वरूप राष्ट्र के विकास की योजनाओं पर अपेक्षित व्यय नहीं हो पाता।

5. युद्धों को बढ़ावा – उग्र-राष्ट्रीयता ही युद्ध को जन्म देती है। संकीर्ण राष्ट्रीयता सैन्यवाद की ओर प्रवृत्त करती है जिसका अन्तिम परिणाम युद्ध होता है। युद्धों में अपार धन और जन की हानि होती है। प्रथम और द्वितीय विश्व युद्धों का एक प्रमुख कारण उग्र-राष्ट्रीयता की भावना ही थी। हेज ने लिखा है, “वर्तमान शताब्दी के अधिकांश युद्धों को कारण राष्ट्रवाद है। इसने विगत सौ वर्षों में जितना रक्तपात कराया है, उतना मध्ययुग के कई सौ वर्षों में धर्म या किसी अन्य तत्त्व ने नहीं कराया।”

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प्रश्न 4.
अन्तर्राष्ट्रीयता से आप क्या समझते हैं? इसके विकास और सफलताओं पर प्रकाश डालिए। [2010]
या
‘अन्तर्राष्ट्रीयता का क्या तात्पर्य है? अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना विकसित करना क्यों आवश्यक है? दो कारण लिखिए तथा उदाहरण देकर समझाइए।
या
अन्तर्राष्ट्रीयता से आप क्या समझते हैं? इसके विकास के मार्ग की प्रमुख बाधाओं का उल्लेख कीजिए। [2010, 12, 14, 16]
या
अन्तर्राष्ट्रीयता से आप क्या समझते हैं? इसके मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाओं का उल्लेख कीजिए। [2016]
या
अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में बाधक तत्त्वों का वर्णन कीजिए। [2010]
या
अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाओं की चर्चा कीजिए। [2016]
उत्तर
अन्तर्राष्ट्रीयता
अन्तर्राष्ट्रीयता विश्व-बन्धुत्व या ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना का राजनीतिक रूप है। इस भावना का आधार मनुष्य-मात्र की समानता या भ्रातृभाव है। इस सम्बन्ध में प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. गोल्डस्मिथ के अनुसार, “अन्तर्राष्ट्रीयता एक भावना है जिसके अनुसार व्यक्ति केवल अपने राज्य का ही सदस्य नहीं, वरन् समस्त विश्व का नागरिक है।”
  2. जॉन वाटसन के अनुसार, “अन्तर्राष्ट्रवाद विचारों व कार्यों की वह पद्धति है, जिसका उद्देश्य विश्व के राज्यों में शान्तिपूर्ण सहयोग का विकास करना है।”
  3. लॉयड गैरीसन के शब्दों में, “हमारा देश समस्त विश्व है, हमारे देशवासी सम्पूर्ण मानव-जाति के हैं। हम अपनी जन्मभूमि को उसी तरह प्रेम करते हैं, जिस प्रकार हम अन्य देशों को प्रेम करते हैं।”

संक्षिप्त रूप में कहा जा सकता है कि अन्तर्राष्ट्रीयता ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के सिद्धान्तों पर आधारित वह मनोभावना है जिसके वशीभूत होकर कोई व्यक्ति स्वयं को देश का नागरिक होने के साथ-साथ समस्त विश्व का नागरिक समझने लगती है और एक राष्ट्र अन्य राष्ट्रों के साथ परस्पर सहयोग एवं मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करके विश्व-शान्ति की स्थापना करने का प्रयत्न करता है।

अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में सहायक तत्त्व
अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में अनेक तत्त्वों ने अपना योगदान दिया है, जिनमें से कुछ प्रमुख तत्त्वों का वर्णन निम्नलिखित है-

  1. विश्व-बन्धुत्व – विश्व-बन्धुत्व की धारणा अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में एक प्रमुख सहायक तत्त्व है। सभी मनुष्य भाई-भाई हैं। सबको एक ही ईश्वर ने जन्म दिया है। इन आध्यात्मिक सिद्धान्तों ने अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में बहुत योग दिया है।
  2. औद्योगिक क्रान्ति तथा आर्थिक अन्योन्याश्रितता – 19वीं शताब्दी में हुई औद्योगिक क्रान्ति ने विश्व की अर्थव्यवस्था में मूलभूत परिवर्तन कर दिये। वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि हुई, अतिरिक्त उत्पादन की खपत के लिए बाजारों की खोज की गयी तथा राज्यों में आत्मनिर्भरता बढ़ी। इस आर्थिक आदान-प्रदान ने राष्ट्रों को परस्पर निकट लाने में सहायता प्रदान की तथा अन्तर्राष्ट्रीयता को प्रोत्साहन मिला।
  3. वैज्ञानिक आविष्कार – आज के वैज्ञानिक युग में विभिन्न आविष्कारों ने राष्ट्रों के बीच सम्पर्क स्थापित करने में सहायता दी है। टेलीफोन, टेलीग्राम, रेल, वायुयान, मोटर, रेडियो, टेलीविजन आदि के द्वारा विविध राष्ट्रों के बीच आवागमन तथा सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में आदान-प्रदान होने लगे हैं। सम्पूर्ण विश्व आज एक इकाई के रूप में प्रतीत होता है। इससे अन्तर्राष्ट्रीयता को विशेष प्रोत्साहन मिला है।
  4. समाचार-पत्र तथा साहित्य – समाचार-पत्रों तथा साहित्य ने भी अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना के विकास में पर्याप्त योगदान दिया है। समाचार-पत्र एवं साहित्य का अध्ययन करने से उन्हें एक-दूसरे के जीवन, संस्कृति आदि के विषय में व्यापक जानकारी प्राप्त होती है तथा उनमें अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण विकसित होता है।
  5. विशुद्ध राष्ट्रीयता – विशुद्ध (उदार) राष्ट्रीयता अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में सहायक होती है। उग्र-राष्ट्रीयता एक संकुचित धारणा है, जब कि विशुद्ध राष्ट्रीयता मानवतावादी दृष्टिकोण की पोषक है।
  6. अन्तर्राष्ट्रीय कानून – विभिन्न राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों व व्यवहार के नियमन हेतु अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों का निर्माण किया गया है। सभी देश इन कानूनों का आदर करते हैं और विवाद की स्थिति में अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की शरण ली जाती है। इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय कानून भी अन्तर्राष्ट्रीयता में सहायक हुए हैं।
  7. अन्तर्राष्ट्रीय खेल – अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में खेलों ने भी पर्याप्त योगदान दिया है। आज अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ओलम्पिक खेल, एशियाई खेल तथा अन्य प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं। ये प्रतियोगिताएँ भी अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में सहायक सिद्ध होती हैं।
  8. अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन और संगठन – आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों से विविध देशों के बीच मैत्री एवं सहयोगपूर्ण सम्बन्ध स्थापित होने लगे हैं। इन अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों व संगठनों से ऐसा वातावरण उत्पन्न होता है, जो अन्तर्राष्ट्रीयता के लिए। अत्यन्त उपयोगी होता है।

अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में बाधक तत्त्व
अन्तर्राष्ट्रीयता के मार्ग में मुख्यतया निम्नलिखित तत्त्व बाधक सिद्ध होते हैं-

  1. उग्र-राष्ट्रीयता – अन्तर्राष्ट्रीयता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा संकुचित या उग्र-राष्ट्रीयता की है।
  2. राज्यों की सम्प्रभुता – अन्तर्राष्ट्रीयता के मार्ग में दूसरी बड़ी बाधा राष्ट्रीय राज्यों की सम्प्रभुता है। सम्प्रभुता के आधार पर प्रत्येक राष्ट्र अपने क्षेत्र में अपने को सर्वोच्च समझता है। ऐसी परिस्थितियों में अन्तर्राष्ट्रीयता की स्थापना करना सर्वथा असम्भव है।
  3. सैन्यवाद – आज विश्व में विभिन्न शक्तिगुट (Power Blocks) बने हुए हैं; जैसे- NATO, SEATO आदि। इनके कारण विश्व में शीत युद्ध की स्थिति बनी हुई है। यह सैन्यवाद भी अन्तर्राष्ट्रीयता के मार्ग में बाधक सिद्ध होता है।
  4. पूँजीवाद व साम्राज्यवाद – अन्तर्राष्ट्रीयता के मार्ग में एक बाधा पूँजीवाद तथा साम्राज्यवाद है। पूँजीवादी देश निर्बल, अविकसित, अर्द्ध-विकसित देशों पर आधिपत्य स्थापित करता है। इस प्रकार पूँजीवाद साम्राज्यवाद का रूप धारण कर लेता है। साम्राज्यवादी नीतियाँ अन्तर्राष्ट्रीयता का तीव्र विरोध करती हैं।
  5. राजनीतिक मतभेद – आज विभिन्न देशों की राजनीतिक गतिविधियाँ इस प्रकार की हो गयी हैं कि उनमें परस्पर संघर्ष व टकराव की स्थिति बनी रहती है। यह संघर्ष व टकराव अन्तर्राष्ट्रीयता के मार्ग में बाधक सिद्ध होता है।
  6. राष्ट्रों की महत्त्वाकांक्षा – राष्ट्रों की बढ़ती महत्त्वाकांक्षाएँ व स्वार्थी प्रवृत्तियाँ भी अन्तर्राष्ट्रीयता के मार्ग में बाधक सिद्ध होती हैं।

प्रश्नं 5.
“स्वस्थ राष्ट्रीयता अन्तर्राष्ट्रीयता की आधारशिला है।” इस कथन के आधार पर राष्ट्रीयता तथा अन्तर्राष्ट्रीयता के सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए। [2009, 11, 13, 14]
या
क्या राष्ट्रवाद विश्व-शान्ति के लिए हानिकारक है?
या
क्या राष्ट्रवाद और अन्तर्राष्ट्रवाद परस्पर विरोधी हैं?
या
राष्ट्रवाद तथा अन्तर्राष्ट्रीयवाद में सम्बन्ध बताइए। [2014]
उत्तर
राष्ट्रवाद और अन्तर्राष्ट्रवाद का पारस्परिक सम्बन्ध वर्तमान समय की एक महत्त्वपूर्ण समस्या है। इन दोनों के पारस्परिक सम्बन्ध के विषय पर दो परस्पर विरोधी धारणाएँ प्रचलित हैं। प्रथम, और मात्र सतही अध्ययन पर आधारित धारणा के अन्तर्गत राष्ट्रवाद और अन्तर्राष्ट्रवाद को परस्पर विरोधी कहा जाता है। इस श्रेणी के विचारकों का कथन है कि राष्ट्रवाद का तात्पर्य व्यक्ति का अपने प्रदेश के प्रति अनन्यतापूर्ण प्रेम है, जबकि अन्तर्राष्ट्रवाद का आशय यह है कि व्यक्ति अपने आपको सम्पूर्ण मानवीय जगत् का एक सदस्य समझकर सम्पूर्ण मानवीय जगत् के प्रति आस्था रखे।

लेकिन उपर्युक्त विचारधारा मिथ्या धारणाओं पर आधारित है। वास्तव में राष्ट्रवाद तथा अन्तर्राष्ट्रवाद परस्पर विरोधी नहीं हैं। राष्ट्रवाद का अन्तर्राष्ट्रवाद से विरोध केवल उसी स्थिति में होता है, जब राष्ट्रवाद को बहुत अधिक संकुचित और उग्र रूप में ग्रहण किया जाता है। विशुद्ध उदार राष्ट्रवाद जो कि राष्ट्रवाद का वास्तविक और उचित रूप है अपने उपासकों को देशभक्ति का सन्देश तो देता है, लेकिन यह देशभक्ति दूसरे राष्ट्रों के प्रति घृणा, द्वेष या बैर की भावना से प्रेरित न होकर ‘जीओ और जीने दो’ (Live and let live) की विचारधारा पर आधारित होती है। ‘जीओ और जीने दो’ की भावना पर आधारित विशुद्ध राष्ट्रवाद के इस भाव को व्यक्त करते हुए विलियम लॉयड गैरीसन लिखते हैं, “हमारा देश संसार है, हमारे देशवासी सारी मानवता हैं। हम अपने राष्ट्र (देश) को उसी प्रकार प्यार करते हैं जैसे हम अन्य देशों को प्यार करते हैं।’

इसी प्रकार अन्तर्राष्ट्रवाद का तात्पर्य यह नहीं है कि व्यक्ति अपने राष्ट्र के प्रति निष्ठा न रखें। अन्तर्राष्ट्रवाद राज्यों के विलय या अन्त की माँग नहीं करता, वरन् वह तो केवल यह चाहता है कि राष्ट्रीय हितों को मानवता के व्यापक हितों के साथ इस प्रकार से समन्वित किया जाये कि सभी राष्ट्र समानता और परस्परिक सहयोग के आधार पर शान्तिपूर्ण, सुखी और समृद्धि का जीवन व्यतीत राष्ट्रीयता तथा अन्तर्राष्ट्रीयता 143 कर सकें। हेज के शब्दों में, “आदर्श अन्तर्राष्ट्रीय विश्व का तात्पर्य सर्वोत्कृष्ट स्थिति वाले राष्ट्रों के एक विश्व से ही है।” अत: स्वस्थ राष्ट्रीयता के आधार पर ही अन्तर्राष्ट्रीयता का सफल संगठन हो सकता है। एक सफल अन्तर्राष्ट्रीय संगठन राष्ट्रीयता की स्वस्थ धारणा पर ही निर्भर करता है।

इस प्रकार राष्ट्रवाद और अन्तर्राष्ट्रवाद परस्पर विरोधी नहीं, वरन् राष्ट्रवाद अन्तर्राष्ट्रवाद की भूमिका या उसका प्रथम चरण है। जोसेफ (Joseph) के शब्दों में कहा जा सकता है कि राष्ट्रीयता व्यक्ति को मानवता से मिलाने वाली आवश्यक कड़ी है।” महात्मा गाँधी भी इसी प्रकार का विचार व्यक्त करते हुए लिखते हैं कि “मेरे विचार से बिना राष्ट्रवादी हुए अन्तर्राष्ट्रवादी होना असम्भव है। अन्तर्राष्ट्रवाद तभी सम्भव हो सकता है, जब कि राष्ट्रवाद एक यथार्थ बन जाये।”
लेकिन इस सम्बन्ध में यह स्मरणीय है कि राष्ट्रवाद/अन्तर्राष्ट्रवाद के प्रथम चरण के रूप में उसी समय कार्य कर सकता है, जब कि राष्ट्रवाद को उग्र और संकुचित रूप में न अपनाकर उदार और विशुद्ध रूप में, देशभक्ति और सम्पूर्ण मानवता के हितों के एकाकार के रूप में अपनाया जाये। उग्र राष्ट्रवाद, जिसे बीसवीं सदी में हिटलर और मुसोलिनी द्वारा अपनाया गया, कुद्ध का कारण और अन्तर्राष्ट्रीयता का नितान्त विरोधी होता है। अतः एक पंक्ति में कहा जा सकता है कि ‘उदार या विशुद्ध राष्ट्रवाद अन्तर्राष्ट्रवाद का प्रथम चरण, लेकिन उग्र-राष्ट्रवाद अन्तर्राष्ट्रीयता का नितान्त विरोधी है।”

आज आवश्यकता इस बात की है कि सत्य और न्याय पर आधारित राष्ट्रवाद और देशभक्ति के विशुद्ध भाव को ग्रहण किया जाये। बीसवीं सदी के प्रबुद्ध मनीषी लॉस्की लिखते हैं, “यूरोप का मानसिक जीवन सीजर और नेपोलियन का नहीं, ईसा का है, पूर्व की सभ्यता पर चंगेजखाँ और अकबर की अपेक्षा बुद्ध का प्रभाव कहीं गहरा और व्यापक है। अगर हमें जीना है तो इस सत्य को सीखना-समझना पड़ेगा। घृणा को प्रेम से जीता जाता है, असद् को सद् से, अधर्मता का परिणाम भी उसी जैसा होता है।”

आज के विश्व का प्रश्न राष्ट्रवाद या अन्तर्राष्ट्रवाद नहीं है। आवश्यकता इस बात की है कि देशप्रेम और स्वस्थ राष्ट्रवाद की भावना को उच्चतम स्तर तक विकसित किया जाये और उसके आधार पर अन्तर्राष्ट्रीयता, विश्व-शान्ति और विश्व-बन्धुत्व की भावना का विकास हो।

प्रश्न 6.
संयुक्त राष्ट्र के गठन के उद्देश्य क्या थे? इसके अंगों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (2012)
उत्तर
संयुक्त राष्ट्र संघ
युद्ध को रोकने और समस्त विश्व में शान्ति बनाये रखने के उद्देश्य से 1919 में एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन ‘राष्ट्र संघ’ (League of Nations) की स्थापना की गयी थी। 1939 में दूसरा विश्वयुद्ध प्रारम्भ हो जाने पर राष्ट्र की असफलता स्पष्ट हो गयी। ऐसी स्थिति में विविध अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में नवीन अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना पर विचार किया गया और ‘सेनफ्रांसिस्को सम्मेलन’ के आधार पर 24 अक्टूबर, 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई। उसी समय से संयुक्त राष्ट्र संघ अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सहयोग की दिशा में कार्य कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य
संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा-पत्र के अनुसार इस संगठन के मुख्य उद्देश्य निम्न प्रकार हैं-

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा बनाये रखना और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए शान्ति विरोधी तत्त्वों का निराकरण व आक्रामक कृत्यों को दूर करना।
  2. राष्ट्रों में मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना व विश्वशान्ति को सुदृढ़ बनाने के अन्य उपाय करना।
  3. आर्थिक, सामाजिक और अन्य सभी अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना।
  4. उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए विभिन्न राष्ट्रों के प्रयत्नों तथा कार्यों में मेल स्थापित करना और इस दृष्टि से एक केन्द्र के रूप में कार्य करना।

सदस्यता (Membership) प्रारम्भ में ही संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले 51 राज्य इसके प्रारम्भिक सदस्य हैं। घोषणा-पत्र के अनुसार उन राज्यों को भी सदस्यता प्रदान की जा सकती है, जिन्हें सुरक्षा परिषद् के 5 स्थायी सदस्यों सहित सुरक्षा परिषद् के बहुमत और साधारण सभा के 2/3 बहुमत का समर्थन प्राप्त हो। किसी देश की शान्तिप्रियता, विधान के नियमों को स्वीकार करने तथा संघ के उत्तरदायित्व को पूरा करने की समर्थता भी संघ की सदस्यता के लिए अनिवार्य है। घोषणा-पत्र के सिद्धान्त का उल्लंघन किये जाने पर सम्बन्धित राज्य को संघ से निकाला जा सकता है।

संघ की सदस्य संख्या में निरन्तर वृद्धि होती रही है और वर्तमान समय में इस संगठन की सदस्य संख्या 193 हो गई है। महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि स्विट्जरलैण्डे तटस्थता की विदेशी नीति का पालन करता है तथा विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के आपसी विवादों से स्वयं को पूर्णतया अलग रखने की इच्छा के कारण उसने 2001 ई० तक संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता प्राप्त नहीं की। यदि कोई सदस्य देश संयुक्त राष्ट्र के नियमों-आदेशों की लगातार अवहेलना करता है, तो सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर महासभा उसकी सदस्यता समाप्त कर सकती है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्य अंग और उनके कार्य
संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्य 6 अंग हैं-

  1. साधारण सभा (महासभा) (General Assembly),
  2. सुरक्षा परिषद् (Security Council),
  3. आर्थिक व सामाजिक परिषद् (Economic and Social Council),
  4. प्रन्यास परिषद् (Trusteeship Council),
  5. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice),
  6. सचिवालय (Secretariat)

इनमें से प्रत्येक के संगठन और कार्यों का संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार है-

1. महासभा – संयुक्त राष्ट्र की एक महासभा होती है। सभी सदस्य-राष्ट्रों को महासभा की सदस्यता दी जाती है। प्रत्येक सदस्य राष्ट्र को इसमें अपने पाँच प्रतिनिधि भेजने का अधिकार है, किन्तु किसी भी निर्णायक मतदान के अवसर पर उन पाँचों का केवल एक ही मत माना जाता है। इस सभा का अधिवेशन वर्ष में एक बार सितम्बर माह में होता है। आवश्यकता पड़ने पर एक से अधिक बार भी अधिवेशन हो सकता है। महासभा प्रत्येक अन्तर्राष्ट्रीय विषय पर विचार कर सकती है। साधारण विषयों में बहुमत से निर्णय लिया जाता है, किन्तु विशेष विषयों के निर्णय के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता पड़ती है। सभा के कार्यों की देख-रेख के लिए एक अध्यक्ष होता है। इसकी नियुक्ति स्वयं महासभा ही करती है। यह सभा सुरक्षा परिषद् के 10 अस्थायी तथा आर्थिक व सामाजिक परिषद् के 54 सदस्यों का निर्वाचन करती है। संयुक्त राष्ट्र के बजट को स्वीकृति प्रदान करने का अधिकार महासभा को ही दिया गया है।

2. सुरक्षा परिषद् – सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है। सुरक्षा परिषद् में कुल 15 सदस्य होते हैं, जिनमें 5 स्थायी और 10 अस्थायी सदस्य होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस तथा साम्यवादी चीन इसके 5 स्थायी सदस्य हैं। 10 अस्थायी सदस्यों का चुनावों महासभा द्वारा दो वर्षों के लिए होता है। इस परिषद् का मुख्य कार्य विश्वशान्ति को प्रत्येक प्रकार से सुरक्षित रखना है। किसी भी वाद-विवाद का अन्तिम निर्णय पाँच स्थायी सदस्यों की सहमति एवं चार अस्थायी सदस्यों की सहमति के आधार पर लिया जाता है। यदि स्थायी सदस्यों में से किसी एक सदस्य की किसी विषय पर अस्वीकृति हो जाती है, तो वह निर्णय रद्द हो जाता है। स्थायी सदस्यों के इस अधिकार को ‘निषेधाधिकार’ (Veto Power) कहते हैं।

इस परिषद् को विश्व में शान्ति स्थापना करने के लिए असीम अधिकार प्राप्त हैं। इस परिषद् ने अपने इन अधिकारों का अनेक अवसरों पर सदुपयोग भी किया है। इसे आवश्यकतानुसार अपनी सैन्य शक्ति के प्रयोग करने का भी अधिकार प्राप्त है।
सुरक्षा परिषद् के प्रमुख कार्य – सुरक्षा परिषद् के प्रमुख कार्य निम्नवत् हैं-

  • अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा स्थापित करना।
  • अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष और विवाद के कारणों की जाँच करना और उसके निराकरण के शान्तिपूर्ण समाधान के उपाय खोजना।
  • युद्धविराम लागू करने के लिए आर्थिक सहायता को रोकना और सैन्य शक्ति का प्रयोग करना।
  • महासभा को नए सदस्यों के सम्बन्ध में सुझाव देना।
  • अपनी वार्षिक तथा अन्य रिपोर्ट महासभा को भेजना।

3. आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् – परिषद् के इस अंग की स्थापना का उद्देश्य आर्थिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़े हुए राष्ट्रों को आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति के लिए सहायता देना है। इसके 54 सदस्यों का कार्य अन्तर्राष्ट्रीय अर्थ, समाज, स्वास्थ्य तथा शिक्षा एवं संस्कृति आदि से सम्बन्धित समस्याओं का अध्ययन कर इनके समाधान हेतु योजना बनाना होता है।

4. प्रन्यास परिषद् – इस परिषद् का मुख्य लक्ष्य विश्व में पराधीन एवं पिछड़े हुए देशों की सुरक्षा व देखभाल करना है। इस परिषद् के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-

  • सुरक्षित प्रदेश के सभी महत्त्वपूर्ण विषयों पर विचार करना।
  • संरक्षित क्षेत्रों की जनता के आवेदन-पत्रों पर विचार करना।
  • संरक्षित क्षेत्रों के स्थलों का घटनास्थल पर जाकर स्वयं निरीक्षण करना।

माइक्रोनेशिया तथा पलाऊ राज्यों के सार्वभौमिक राष्ट्र बन जाने के बाद ट्रस्टीशिप काउंसिल के अन्तर्गत अब कोई राज्य नहीं है। यद्यपि अब भी माइक्रोनेशिया की सुरक्षा का भार संयुक्त राज्य अमेरिका पर ही है। 5. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय – यह संयुक्त राष्ट्र को न्यायालय है। इसमें 15 न्यायाधीश हैं, जिनका चुनाव सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर महासभा द्वारा होता है। इस न्यायालय का कार्य अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों के अनुसार सदस्य राष्ट्रों के कानूनी विवादों को निपटाना है। यह अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग (नीदरलैण्ड) में स्थित है।

6. सचिवालय – यह संयुक्त राष्ट्र का प्रधान कार्यालय है। इसका प्रमुख सेक्रेटरी जनरल होता है। इसे महासचिव भी कहते हैं। इसके अधीन लगभग 10 हजार छोटे-बड़े अधिकारियों का एक वर्ग है। इसकी नियुक्ति सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर महासभा करती है। महासचिव का कार्य संयुक्त राष्ट्र के कार्यों की रिपोर्ट तैयार कर प्रतिवर्ष महासभा के सम्मुख प्रस्तुत करना होता है। इसके अतिरिक्त शान्ति एवं सुरक्षा के भंग होने की आशंका से सम्बन्धित आशय की सूचना महासचिव सुरक्षा परिषद् को देता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
राष्ट्रीयता के विकास में दो उत्तरदायी तत्त्वों का उल्लेख कीजिए।
या
राष्ट्रवाद के दो कारण लिखिए। [2009]
या
राष्ट्रीयता के किन्हीं दो तत्त्वों का वर्णन कीजिए। [2009, 11, 12]
उत्तर
राष्ट्रीयता के विकास में दो उत्तरदायी तत्त्व निम्नवत् हैं-

1. भाषायी एकता – भाषा की एकता भी राष्ट्रीयता का एक निर्माणक तत्त्व है और राष्ट्रीयता के निर्माण में जातीय एकता की अपेक्षा भाषा की एकता का महत्त्व अधिक है। इस सम्बन्ध में बर्नार्ड जोजफ ने तो यहाँ तक कहा है, “भाषा राष्ट्रीयता का सबसे शक्तिशाली तत्त्व है।” सामान्य भाषा ऐतिहासिक परम्पराओं को जीवित रखने में सहायक होती है और एक ऐसे राष्ट्रीय मनोविज्ञान को जन्म देती है जिसमें सामान्य नैतिकता का विकास सम्भव होता है, लेकिन सामान्य भाषा के बिना भी राष्ट्रीयता का विकास हो सकता है और एक भाषायी क्षेत्र भी पृथक्-पृथक् राष्ट्र हो सकते हैं। उदाहरणार्थ, स्विट्जरलैण्ड और भारत में एक से अधिक भाषाएँ बोली जाने पर भी ये एक राष्ट्र हैं और अमेरिका तथा कनाडा में एक ही भाषा बोले जाने पर भी ये पृथक्-पृथक् राष्ट्र हैं।

2. जातीय एकता – लम्बे समय तक जातीय एकता राष्ट्रीयता का सबसे मुख्य आधार रहा है। ऐसा माना जाता है कि राष्ट्रीयता एक विशेष प्रकार की आत्मिक चेतना के भाव का नाम है। जिसमें समान जातीयता का तत्त्व शायद सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण होता है, किन्तु अब राष्ट्रीयता के निर्माणक तत्त्व के रूप में जातीयता का महत्त्व कम होता जा रहा है और प्रो० हेज के शब्दों |में कहा जा सकता है, “यदि कहीं रक्त की पवित्रता मिल सकती है तो वह केवल असभ्य जातियों में ही सम्भव है।’ स्विट्जरलैण्ड, भारत, कनाडा, ब्रिटेन और अमेरिका इस बात के उदाहरण हैं कि जातीय एकता राष्ट्रीयता के निर्माण हेतु आवश्यक नहीं है।

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प्रश्न 2.
राष्ट्रीय भावना के विकास में बाधक तत्त्वों का संक्षिप्त परिचय दीजिए। [2007, 08, 14]
उत्तर
राष्ट्रीयता के विकास में बाधक बनने वाली अनेक बातें हैं। राष्ट्रीयता के विकास के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाएँ निम्नलिखित हैं-

1. अज्ञान एवं अशिक्षा – अज्ञान तथा अशिक्षा व्यक्तियों को मानसिक रूप से पृथक् करते हैं, उनमें कलुषित भावनाएँ भरते हैं और इस प्रकार राष्ट्रीयता के विकास में बाधक सिद्ध होते है।

2. साम्प्रदायिकता की भावना – साम्प्रदायिकता राष्ट्रीयता के मार्ग की प्रमुख बाधा है। इससे राष्ट्रीयता खण्डित होती है। साम्प्रदायिकता का अर्थ है-“सम्प्रदाय का हौआ खड़ा करके व्यक्तियों की भावनाओं को भड़काना और राष्ट्रीयता’ की जगह ‘साम्प्रदायिक उन्माद फैलाना।” कट्टरपन्थी शक्तियाँ राष्ट्र को एकता और प्रगति के पथ पर आगे बढ़ने से रोकती

3. यातायात के श्रेष्ठ साधनों का अभाव – आवागमन के अच्छे साधनों के अभाव में विभिन्न राज्यों के अन्तर्गत दूरस्थ स्थानों के निवासियों में संवादहीनता की स्थिति के कारण एकता की वह भावना जन्म नहीं ले पाती जो राष्ट्रीयता की आत्मा होती है।

4. प्रान्तीयता की भावना – इस भावना के कारण विभिन्न प्रान्तों में रेहने वाले व्यक्ति स्वयं को राष्ट्र का नागरिक न समझकर प्रान्त विशेष का ही निवासी मानते हैं। इसी भावना के कारण क्षेत्रीय स्तर पर संघर्ष होता रहता है, जिससे राष्ट्रीयता की भावना को क्षति पहुँचती है।

5. भाषावाद – जिन देशों में अनेक भाषा में बोलने वाले व्यक्ति निवास करते हैं वहाँ पर प्रायः व्यक्ति अपनी भाषा को ही सब-कुछ समझकर अन्य भाषाओं के प्रति द्वेष-भाव अपना लेते हैं। इससे भाषायी उपद्रवों को प्रोत्साहन मिलता है, जिसका राष्ट्रीयता पर घातक प्रभाव पड़ता है।

6. जातिवाद – जातिवाद भी राष्ट्रीयता के मार्ग में बाधक है। जातिवाद की भावना दूसरी जाति के प्रति घृणा का भाव जाग्रत करती है। जाति-व्यवस्था के अन्तर्गत सम्पूर्ण समाज छोटे-छोटे भागों में बँटा होता है। प्रत्येक जाति राष्ट्रीय हितों के स्थान पर जातीय हितों को प्राथमिकता देती है। इसी कारण राष्ट्रीयता की भावना का विकास नहीं हो पाता है।

प्रश्न 3.
अन्तर्राष्ट्रीयता की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। [2007, 08]
या
अन्तर्राष्ट्रीयता के पक्ष में दो तर्क दीजिए। [2011, 14, 15]
या
लघु उत्तर दीजिए- अन्तर्राष्ट्रीयता के गुण।
उत्तर
अन्तर्राष्ट्रीयता की विशेषताएँ या गुण निम्नलिखित हैं-

  1. जिस प्रकार राष्ट्रीयता देश-प्रेम की भावना है, उसी प्रकार अन्तर्राष्ट्रीयता विश्व-प्रेम की भावना है। अन्तर्राष्ट्रीयता विश्वबन्धुत्व की आध्यात्मिक भावना का रूपान्तर है।
  2. अन्तर्राष्ट्रीयता एक भावना है जिसके अनुसार व्यक्ति केवल अपने राज्य का ही सदस्य नहीं, वरन् विश्व का नागरिक है।
  3. अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना से मनुष्यों के अन्दर मित्रता और सहानुभूति की भावना जाग्रत होती है।
  4. इससे विश्व के सभी व्यक्तियों की उन्नति होती है तथा सम्पूर्ण विश्व एक राष्ट्र के रूप में संगठित हो जाता है।
  5. इस भावना के विकास के कारण जो धन हथियारों और सेना पर देश अपने रक्षार्थ व्यय करते हैं, वह बच जाएगा और संसार की भलाई में लगाया जा सकता है।
  6. राष्ट्रीयता से उत्पन्न हुए जो गन्दे छल और तुच्छ द्वेष के भाव बने थे, वे अन्तर्राष्ट्रीयता के कारण नष्ट हो जाएँगे।
  7. समस्त देशों के अन्दर उच्च और निम्न का जो भाव एक-दूसरे के प्रति बनता है, वह नष्ट हो जाएगा।
  8. अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना का पूरा विस्तार हो जाने के पश्चात् संसार में पूर्ण शान्ति स्थापित हो जाएगी तथा युद्ध का भय सदा के लिए जाता रहेगा।

प्रश्न 4.
अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में सहायक किन्हीं चार तत्त्वों का वर्णन कीजिए। [2015]
उत्तर
अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में सहायक चार तत्त्व निम्नवत् हैं-

1. वैज्ञानिक आविष्कार – आधुनिक युग विज्ञान का युग है और इस युग में वैज्ञानिक खोजों और आविष्कारों के कारण विश्व के सभी देश एक-दूसरे के बहुत निकट आ गये हैं। रेल, मोटर, जहाज, वायुयान, तार, टेलीफोन, रेडियो आदि ने विभिन्न राज्यों के बीच की दूरी को समाप्त कर सम्पूर्ण विश्व को एक इकाई बना दिया है। वैज्ञानिक आविष्कारों के कारण विश्व के जिस नवीन रूप का उदय हुआ है, उससे अन्तर्राष्ट्रीयता को विशेष प्रोत्साहन मिला है।

2. समाचार-पत्र, रेडियो व साहित्य – अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में समाचार-पत्र, रेडियो व | अन्तर्राष्ट्रीय साहित्य ने भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। एक देश के समाचार-पत्र दूसरे देश में भी जाते हैं और मडरियागा (Madariaga) के शब्दों में, “विचारों और समाचारों की दृष्टि से आज के विश्व ने एक संयुक्त इकाई का रूप धारण कर लिया है। अनेक अन्तर्राष्ट्रीय संघ व संगठन जैसे यूनेस्को’ ऐसे साहित्य का प्रचुर मात्रा में प्रकाशन कर रहे हैं, जिससे विभिन्न देशों के निवासी एक-दूसरे के जीवन, संस्कृति और समस्याओं से भलीभाँति परिचित हो सकें। इस प्रकार समाचार-पत्र व साहित्य अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण विकसित करने में बड़े सहायक सिद्ध हुए हैं।

3. राष्ट्रीयता – यद्यपि यह कथन विरोधाभासपूर्ण प्रतीत होता है कि राष्ट्रीयता ने अन्तर्राष्ट्रीयता को जन्म दिया, किन्तु बहुत कुछ सीमा तक यह एक सत्य है। इतिहास की यह शिक्षा है कि विकासक्रम के अन्तर्गत विचारधाराएँ प्रतिक्रियाओं के रूप में जन्म लेती हैं। जब 19वीं सदी के राष्ट्रीय राज्य अपनी चरम सीमा पर पहुँच गये तो उनके कुछ दुर्गुण स्पष्ट हुए और उन्होंने विश्वयुद्ध जैसी जटिल समस्याएँ भी उत्पन्न कर दीं। अतः मानवता के सुख और शान्ति के लिए इस संकीर्ण राष्ट्रीयता का अन्त कर अन्तर्राष्ट्रीयता की स्थापना की दिशा में विचार किया गया। इस प्रकार राष्ट्रीयता की प्रतिक्रिया के रूप में अन्तर्राष्ट्रीयता के सिद्धान्त तथा व्यवहार का जन्म हुआ।

4. अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन और संगठन – राष्ट्रों में पारस्परिक स्नेह और सद्भावना का विकास करने में राष्ट्र संघ, संयुक्त राष्ट्र संघ और इसी प्रकार के अन्य संगठनों का योग भी कम नहीं है। अब तो जीवन के प्रायः सभी क्षेत्रों में अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का निर्माण हो रहा है। और इसकी संख्या बढ़ती जा रही है। राजनीतिक क्षेत्र के अतिरिक्त आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी अब ऐसे संगठनों की कमी नहीं है, जिनका रूप अन्तर्राष्ट्रीय है और जो अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना के विकास में यथेष्ट योग दे रहे हैं। ये सम्मेलन और संगठन ऐसे वातावरण की सृष्टि करते हैं, जिसका होना अन्तर्राष्ट्रीयता के लिए नितान्त आवश्यक है।

प्रश्न 5.
संयुक्त राष्ट्र की साधारण सभा (महासभा) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर
यह संयुक्त राष्ट्र संघ का सबसे प्रमुख अंग है। संघ के सभी सदस्य साधारण महासभा के सदस्य होते हैं। यह सभा प्रतिवर्ष अपने अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव करती है। प्रत्येक राज्य साधारण महासभा में अपने 5 प्रतिनिधि भेज सकता है, परन्तु उनका केवल एक मत होता है। साधारण महासभा का वर्ष में केवल एक अधिवेशन सितम्बर माह के तीसरे गुरुवार को प्रारम्भ होता है। आवश्यकता अनुभव होने पर महामन्त्री विशेष अधिवेशन भी बुला सकता है। सभी महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का निर्णय 2/3 बहुमत से और अन्य प्रश्नों का निर्णय साधारण बहुमत से किया जाता है। साधारण महासभा यद्यपि मुख्य रूप से चार प्रकार के कार्य करती है-विचार-विमर्श सम्बन्धी, निर्वाचन सम्बन्धी, आर्थिक और संवैधानिक। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य विचार-विमर्श सम्बन्धी है। यह अपनी महत्त्वपूर्ण सिफारिशें सुरक्षा परिषद् को भेजती है। साधारण महासभा सुरक्षा परिषद् के 10 अस्थायी सदस्यों, आर्थिक व सामाजिक परिषद् के 54 सदस्यों व अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों को चुनती है। यह महासचिव के चुनाव में भाग लेती है, संघ के बजट पर विचार करती है व स्वीकार करती है। अपने 2/3 बहुमत से घोषणा-पत्र में संशोधन कर सकती है। शान्ति के लिए एकता प्रस्ताव से साधारण महासभा के महत्त्व और शक्तियों में आशातीत वृद्धि हुई है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
भाषा की एकता कैसे राष्ट्रीयता का निर्माण करने में सहायक है ?
उत्तर
राष्ट्रीयता के निर्माण में भाषा की एकता का केन्द्रीय महत्त्व है। किसी जन-समूह में पायी जाने वाली सामान्य भाषा एक सामान्य साहित्य, संस्कृति तथा गौरव को जन्म देती है। रैम्जे म्योर के अनुसार, “राष्ट्र के निर्माण में भाषा जाति की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण होती है।” मैक्स हिल्डबर्ट बोहम का कथन है कि “आधुनिक राष्ट्रीयता का सम्भवतः सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व भाषा है। सामान्य भाषा ऐतिहासिक परम्पराओं को जीवित रखने में सहायक सिद्ध होती है। किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि बिना सामान्य भाषा के राष्ट्रीयता हो ही नहीं सकती। स्विट्जरलैण्ड में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं फिर भी वह एक राष्ट्र है। अमेरिका और कनाडा के निवासी एक ही भाषा बोलते हैं, परन्तु अलग-अलग राष्ट्र हैं। भारत में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं फिर भी भारत एक राष्ट्र के रूप में है। अनुभवी विद्वानों का विचार है कि शिक्षा के प्रसार से धीरे-धीरे सामान्य भाषा की उपयोगिता शिथिल होती जाएगी।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीयता के मार्ग की बाधाओं को दूर करने के उपायों की विवेचना कीजिए। [2007, 12]
उत्तर
राष्ट्रीयता के मार्ग में आने वाली बाधाओं को निम्नांकित उपायों से दूर किया जा सकता है।

  1. संकुचित भावनाओं का त्याग और देश-प्रेम या देशभक्ति की प्रबल भावना का विकास किया जाना चाहिए।
  2. देश के विभिन्न भागों में भावनात्मक, साहित्यिक तथा सांस्कृतिक सम्पर्क बढ़ाने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए।
  3. शिक्षा का व्यापक स्तर पर प्रचार तथा प्रसार किया जाना चाहिए तथा शिक्षा व्यवस्था का समुचित प्रबन्ध होना चाहिए।
  4. देशभर में परिवहन तथा संचार के साधनों का पर्याप्त विकास किया जाना चाहिए।
  5. देश के सभी क्षेत्रों का सन्तुलित आर्थिक विकास किया जाना चाहिए।
  6. संकीर्ण हितों तथा स्वार्थपूर्ण मनोवृत्तियों पर आधारित राजनीति को नियन्त्रित किया जाना चाहिए
  7. देश में सुदृढ़ तथा न्यायपूर्ण शासन व्यवस्था की जानी चाहिए।

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प्रश्न 3.
राष्ट्रवाद के दो लाभ बताइए। [2012]
उत्तर
राष्ट्रवाद के दो लाभ निम्नवत् हैं-

  1. देश-प्रेम का आधार – राष्ट्रीयता और देशभक्ति पर्यायवाची शब्द हैं। राष्ट्रीयता व्यक्तियों को अपने देश के प्रति प्रेम करना सिखाती है। जब व्यक्ति अपने देश से प्रेम करने लगते हैं तो वे देश की उन्नति करने का प्रयत्न भी करते हैं।
  2. चरित्र-निर्माण में सहायक – राष्ट्रीयता व्यक्तियों के चरित्र-निर्माण में सहायक होती है। राष्ट्रीयता मनुष्य को अपने स्वार्थों से ऊपर उठकर राष्ट्र के लिए त्याग करना सिखाती है। राष्ट्रीयता व्यक्तियों में अनुशासन, कर्तव्यपरायणता, सहयोग, सहानुभूति, सहायता इत्यादि नागरिक गुणों की शिक्षा देती है।

प्रश्न 4.
राष्ट्र तथा राष्ट्रीयता में कोई दो अन्तर बताइए। [2007]
उत्तर
राष्ट्र तथा राष्ट्रीयता में दो मूलभूत अन्तर निम्नवत् हैं-

  1. राष्ट्रीयता एक पवित्र भावना है, जो क्षेत्र, भाषा, धर्म, जाति, सम्प्रदाय, संस्कृति और सभ्यता की भिन्नता होते हुए भी लोगों को एकता के सूत्र में बाँधकर राष्ट्र को सुदृढ़ तथा संगठित करती है। यह एक नैतिक तथा मनोवैज्ञानिक अवधारणा है। इसके विपरीत, जब राष्ट्रीयता राजनीतिक एकता तथा स्वतन्त्रता प्राप्त कर लेती है तो वह राष्ट्र कहलाने लगती है। उदाहरणस्वरूप सन् 1947 से पूर्व भारतीय मुस्लिम एक राष्ट्रीयता के प्रतीक थे। परन्तु जब पाकिस्तान नामक एक अलग राज्य की स्थापना हुई तो वे पाकिस्तान में एक राष्ट्र कहलाने लगे।
  2. राष्ट्रीयता एक अमूर्त भावना है, जबकि राष्ट्र का रूप मूर्त होता है।

प्रश्न 5.
‘राष्ट्रवाद; सैन्यवाद एवं युद्ध को जन्म देता है।’ इस कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर
जब किसी देश की राष्ट्रीयता की भावना अपने उग्र रूप में चरम शिखर पर पहुँच जाती है तो यह दूसरे देशों के लिए एक बड़ा खतरा बन जाती है। राष्ट्रीयता के कारण अपने राष्ट्र को सर्वश्रेष्ठ समझने की प्रवृत्ति पनपती है। इससे दूसरे राष्ट्रों के प्रति घृणा और अपनी राष्ट्रीय पद्धति उन पर थोपने की भावना पैदा होती है; अतः युद्धों का जन्म होता है और युद्ध के लिए सेना की आवश्यकता पड़ती है, जिससे सैन्यवाद को प्रोत्साहन मिलता है। फ्रांस और जर्मनी के नागरिक सैकड़ों वर्षों तक इसी भावना के कारण एक-दूसरे को शत्रु समझते रहे। प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध का मूल कारण राष्ट्रवाद ही था। हेज ने लिखा है, “वर्तमान शताब्दी के अधिकांश युद्धों का कारण राष्ट्रवाद है। इसने विगत सौ वर्षों में जितना रक्तपात कराया है, उतना मध्ययुग के कई सौ वर्षों में धर्म या किसी अन्य तत्त्व ने नहीं कराया।”

प्रश्न 6.
अन्तर्राष्ट्रीयता की दो बाधाओं का उल्लेख कीजिए। [2007]
उत्तर
अन्तर्राष्ट्रीयता की दो बाधाएँ निम्नवत् हैं-

1. आतंकवाद – अभी हाल ही के वर्षों में अन्तर्राष्ट्रीयता के मार्ग में एक नई और बड़ी बाधा ने जन्म लिया है, यह बाधा है—आतंकवाद और राज्य प्रायोजित आतंकवाद। जब एक राज्य या धार्मिक कट्टरता पर आधारित कोई संगठन किसी अन्य राज्य या राज्यों के प्रसंग में आतंकवादी गतिविधियों को अपनाता और प्रोत्साहित करता है तो राज्यों के आपसी सम्बन्धों में गहरे विरोध की स्थिति जन्म ले लेती है तथा वातावरण अन्तर्राष्ट्रीयता के मार्ग में एक बड़ा बाधक तत्त्व बन जाता है।

2. साम्राज्यवाद – अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में दूसरी बड़ी बाधा शक्तिशाली राज्यों की साम्राज्यवादी भावना है जिसका एक रूप उपनिवेशवाद कहा जा सकता है। साम्राज्यवाद राजनीतिक और आर्थिक शोषण का एक ऐसा यन्त्र है जो पिछड़े हुए देश को विकसित नहीं होने देता। डॉ० डी०एन० प्रिट (Dr. D.N. Pritt) का विचार है, “विश्वे संघ सम्बन्धी कोई भी प्रस्ताव उस समय तक सफलता के द्वार तक नहीं पहुंच सकता है, जब तक कि संसार में पूँजीवाद और साम्राज्यवाद उपस्थित है।”

प्रश्न 7.
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं? [2007, 08, 10, 11, 14, 16]
या
संयुक्त राष्ट्र संघ के दो प्रमुख उद्देश्यों को लिखिए। [2011, 13]
उत्तर
संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा-पत्र के अनुसार इसके निम्नलिखित चार प्रमुख उद्देश्य हैं।

  1. सामूहिक व्यवस्था द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा बनाये रखना और आक्रामक प्रवृत्तियों को नियन्त्रण में रखना।
  2. राष्ट्रों के बीच मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना एवं विश्व-शान्ति को सुदृढ़ बनाने के लिए अन्य उपाय करना।
  3. आर्थिक, सामाजिक और अन्य सभी अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना।
  4. उपर्युक्त उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विभिन्न राष्ट्रों के प्रयत्नों एवं कार्यों में सामंजस्य स्थापित करना और इस दृष्टि से एक केन्द्र के रूप में कार्य करना।

प्रश्न 8.
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् के संगठन का वर्णन कीजिए।
उत्तर
यह संयुक्त राष्ट्र संघ की कार्यकारिणी है। संघ में इसका स्थान बहुत महत्त्वपूर्ण है। सुरक्षा परिषद् में 5 स्थायी सदस्य तथा 10 अस्थायी सदस्य हैं। स्थायी सदस्य हैं—संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस तथा साम्यवादी चीन। शेष 10 अस्थायी सदस्यों का चुनाव साधारण महासभा द्वारा 2 वर्ष के लिए किया जाता है। सुरक्षा परिषद् का प्रमुख कार्य विश्व-शान्ति बनाये रखना है। परिषद् में कार्य-विधि सम्बन्धी विषयों पर 15 सदस्यों में से 9 सदस्यों के मत से निर्णय हो जाते हैं, परन्तु अन्य सभी विषयों पर इन 9 मतों में 5 स्थायी सदस्यों के मत आवश्यक होते हैं। प्रत्येक स्थायी सदस्य को निषेधाधिकार (Veto) प्राप्त होता है। अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को निपटाने में सुरक्षा परिषद् ने बहुत सराहनीय कार्य किये हैं। यदि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई विवाद परस्पर बातचीत, मध्यस्थों द्वारा, अन्य प्रतिबन्ध लगाकर हल न किया जा सके तो यह आक्रामक राष्ट्र के विरुद्ध सैन्य कार्यवाही कर सकती है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की तिथि एवं वर्ष लिखिए। [2014, 16]
उत्तर
24 अक्टूबर, 1945

प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्र संघ के दो अंगों के नाम लिखिए। [2008]
या
संयुक्त राष्ट्र संघ के चार अंगों के नाम लिखिए। [2011, 14, 15]
उत्तर

  1. महासभा,
  2. सुरक्षा परिषद्,
  3. न्यास परिषद् तथा
  4. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय।

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प्रश्न 3.
सुरक्षा परिषद् में कुल कितने सदस्य हैं? [2007, 09, 11, 12, 13]
उत्तर
सुरक्षा परिषद् में कुल पन्द्रह सदस्य होते हैं।

प्रश्न 4.
सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों के नाम बताइए।
या
सुरक्षा परिषद के दो स्थायी सदस्यों के नाम बताइए। [2007, 08, 09, 10, 12]
उत्तर
सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य हैं- संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस तथा साम्यवादी चीन (एशिया से)।

प्रश्न 5.
राष्ट्रवाद के दो कारकों को लिखिए। [2009]
या
राष्ट्रवाद के दो गुण बताइए। [2012]
उत्तर

  1. राष्ट्रीयता साहित्य और संस्कृति का विकास करती है।
  2. राष्ट्रवाद विभिन्नताओं की रक्षा करता है।

प्रश्न 6.
अन्तर्राष्ट्रीयता के पक्ष में दो तर्क दीजिए। [2007, 11, 14]
उत्तर

  1. विश्व सरकार की कल्पना का साकार होना – अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना के द्वारा ही विश्व सरकार की कल्पना को मूर्त रूप दिया जा सकता है।
  2. मानव-मात्र का विकास सम्भव होना – अन्तर्राष्ट्रीयता के भावों के सहारे हम संकीर्ण राष्ट्रीय दायरे से बाहर निकलकर समस्त विश्व को अपना बना सकेंगे और तब सारा विश्व ही हमारा कुटुम्ब या परिवार-सा हो जाएगा।

प्रश्न 7.
राष्ट्रीयता (राष्ट्रवाद) के दो दोष बताइए।
उत्तर

  1. जातीय भेदभाव की भावना तथा
  2. साम्राज्यवाद।

प्रश्न 8.
राष्ट्रीयता किसे कहते हैं ?
उत्तर
प्रो० गिलक्रिस्ट के शब्दों में, “राष्ट्रीयता एक आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक भावना है।”

प्रश्न 9.
राष्ट्रीयता के किन्हीं दो तत्त्वों का वर्णन कीजिए। [2007, 09, 11]
या
राष्ट्रीयता का कोई एक मूल तत्त्व बतलाइए। [2014]
उत्तर

  1. भाषा की एकता तथा
  2. सामान्य संस्कृति तथा परम्पराएँ।

प्रश्न 10.
अन्तर्राष्ट्रीयता के दो गुण बताइए।
उत्तर

  1. विभिन्न राष्ट्रों में सहयोग की भावना उत्पन्न होती है तथा
  2. युद्ध की सम्भावना कम हो जाती है।

प्रश्न 11.
अन्तर्राष्ट्रीयता के विकास में सहायक दो तत्त्व बताइए।
उत्तर

  1. यातायात के साधनों का विकास तथा
  2. अन्तर्राष्ट्रीय खेल।

प्रश्न 12.
अन्तर्राष्ट्रीयता के मार्ग में आने वाली दो बाधाएँ क्या हैं? [2007, 12]
उत्तर

  1. साम्राज्यवाद तथा
  2. सैन्यवाद।

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प्रश्न 13.
संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य कार्यालय कहाँ है? [2007, 09, 13, 15]
उत्तर
न्यूयॉर्क (अमेरिका) में।

प्रश्न 14.
संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव का निर्वाचन कैसे होता है?
उत्तर
संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव की नियुक्ति सुरक्षा परिषद् की सिफारिश पर साधारण सभा द्वारा 5 वर्षों के लिए की जाती है।

प्रश्न 15.
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का मुख्यालय कहाँ है? [2015]
उत्तर
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का मुख्यालय हेग में है।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

1. निम्नलिखित में कौन-सा राष्ट्रीयता का तत्त्व है?
(क) शिक्षा
(ख) साम्प्रदायिकता
(ग) यातायात के साधन
(घ) भाषा की एकता

2. राष्ट्रीय भावना के विकास में बाधक तत्त्व हैं-
(क) ऐतिहासिक स्मृतियाँ
(ख) भाषा
(ग) अज्ञान एवं अशिक्षा
(घ) जातीय एकता

3. निम्नलिखित में से कौन-सा राष्ट्रीयता का निर्माणक तत्त्व नहीं है? [2007]
(क) भौगोलिक एकता
(ख) धार्मिक एकता
(ग) सामान्य आर्थिक हित
(घ) क्षेत्रीयता

4. राष्ट्रीयता का गुण है-
(क) साम्प्रदायिकता
(ख) एकता की स्थापना में योगदान
(ग) साम्राज्यवाद
(घ) सैन्यवाद

5. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का प्रधान कार्यालय है
(क) न्यूयॉर्क में
(ख) वाशिंगटन में
(ग) जेनेवा में
(घ) हेग में

6. वह भारतीय महिला जो संयुक्त राष्ट्र संघ की साधारण सभा की अध्यक्षा बनी थीं
(क) श्रीमती इन्दिरा गाँधी
(ख) अरुणा आसफ अली
(ग) सरोजिनी नायडू
(घ) श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित

7. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना हुई- [2008, 11, 14]
(क) 24 अक्टूबर, 1944 में
(ख) 15 नवम्बर, 1945 में
(ग) 24 अक्टूबर, 1946 में
(घ) 24 अक्टूबर, 1945 में

8. सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों की संख्या है-
(क) चार
(ख) पाँच
(ग) सात
(घ) आठ

9. सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य है
(क) भारत
(ख) स्पेन
(ग) जर्मनी
(घ) चीन

10. निम्नलिखित में से सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य कौन-सा देश नहीं है ? [2012]
(क) अमेरिका
(ख) ब्रिटेन
(ग) फ्रांस,
(घ) जर्मनी

11. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में कितने न्यायाधीश होते हैं?
(क) 10
(ख) 12
(ग) 15
(घ) इनमें से कोई नहीं

12. निम्नलिखित में से कौन संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य नहीं है- [2012, 14]
(क) यू० एस० ए०
(ख) चीन
(ग) जापान
(घ) फ्रांस

13. संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय कहाँ स्थित है? [2009, 15, 16]
(क) मास्को
(ख) जेनेवा
(ग) पेरिस
(घ) न्यूयॉर्क

उत्तर

  1. (घ) भाषा की एकता,
  2. (ग) अज्ञान एवं अशिक्षा,
  3. (घ) क्षेत्रीयता,
  4. (ख) एकता की स्थापना में योगदान,
  5. (घ) हेग में,
  6. (घ) श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित,
  7. (घ) 24 अक्टूबर, 1945 में,
  8. (ख) पाँच,
  9. (घ) चीन,
  10. (घ) जर्मनी,
  11. (ग) 15,
  12. (ग) जापान,
  13. (घ) न्यूयॉर्क

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