UP Board Solutions for Class 12 Civics राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Civics
Chapter 22 a
Chapter Name राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत
Number of Questions Solved 15
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Civics राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत

विस्तृत उत्तीय प्रश्न (6अंक)

प्रश्न 1
राष्ट्रमण्डल क्या है? वर्तमान विश्व में इसके महत्व का मूल्यांकन कीजिए। [2013]
या
राष्ट्रमण्डल क्या है? इसके उद्देश्य क्या है? इसका सदस्य कौन हो सकता है? [2010, 14]
या
राष्ट्रमण्डल के गठन तथा कार्यों की विवेचना कीजिए। [2010]
या
राष्ट्रमण्डल क्या है? इसकी स्थापना कब हुई थी? इसमें कितने सदस्य हैं? इसका मुख्यालय कहाँ है? [2012]
या
राष्ट्रमण्डल क्या है? इसके उद्देश्य क्या हैं? राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत के कार्यों की चर्चा कीजिए। [2013]
उत्तर :
राष्ट्रमण्डल उन देशों का संगठन है जो कभी अंग्रेजों के अधीन थे और जिन्होंने स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद ब्रिटेन के साथ लगभग बराबर के सम्बन्ध स्थापित कर लिये। वस्तुतः ‘ब्रिटिश साम्राज्य’, ‘ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल’ तथा ‘राष्ट्रमण्डल’ एक ही संस्था के नाम हैं, जो परिस्थितियों और आवश्यकता के अनुसार परिवर्तित होते रहे हैं। 1887 ई० में महारानी विक्टोरिया की हीरक जयन्ती के अवसर पर साम्राज्य के प्रतिनिधियों की औपचारिक बैठक से इसका प्रारम्भ हुआ था। 1907 ई० के सम्मेलन में इसका नाम ‘इम्पीरियल कॉन्फ्रेंस’ निश्चित किया गया और 1931 ई० के वेस्टमिन्स्टर विधान में इसका नाम बदलकर ‘ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल’ कर दिया गया। 1947 ई० में भारत की स्वतन्त्रता के बाद जब भारत के द्वारा गणतन्त्र के साथ-साथ राष्ट्रमण्डल की सदस्यता प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की गयी तो अप्रैल, 1949 ई० के सम्मेलन में इसका नाम बदलकर ‘राष्ट्रमण्डल’ (Commonwealth of Nations) रखा गया और गणतन्त्रों के लिए सम्राट् के प्रति भक्ति की शर्त हटा दी गयी। इसका मुख्यालय मार्लबेरो हाउस लंदन (ग्रेट ब्रिटेन) में है। इसमें वर्तमान सदस्य देशों की संख्या 53 है।

राष्ट्रमण्डल कोई निश्चित उत्तरदायित्व वाला कठोर वैधानिक या सैनिक संगठन नहीं है, वरन् मैत्री, विश्वास, स्वातन्त्र्य-इच्छा और शान्ति की भावना पर आधारित मानवीय संगठन है जिसका कोई संविधान, सन्धि, समझौता, लिखित नियम या कानून नहीं हैं और जो केवल सदस्यों की पारस्परिक सद्भावना पर टिका हुआ है। राष्ट्रमण्डल के सभी राष्ट्र स्वतन्त्र और समान हैं और इसमें ब्रिटिश सम्राट् के प्रति किसी प्रकार की वफादारी होना जरूरी नहीं है। राष्ट्रमण्डल के राज्यों की पहचान यह है कि इनके राजदूत एक-दूसरे के देश में उच्चायुक्त’ (High Commissioner) कहे जाते हैं।

राष्ट्रमण्डल के सदस्य राष्ट्र अपनी इच्छानुसार राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय नीति को मानते हैं और व्यवहार में भी अन्तर्राष्ट्रीय मसलों पर उनमें विचार-भेद की स्थिति देखी जाती है।

राष्ट्रमण्डल के उद्देश्य

यद्यपि राष्ट्रमण्डल का कोई सामान्य बन्धन, लक्ष्य या ध्येय नहीं है तथापि इसमें सदस्य कुछ बातों पर प्रायः सहमत हैं जिन्हें राष्ट्रमण्डल के उद्देश्य कहा जाता है।

ये इस प्रकार हैं –

  1. प्रजातन्त्र का आदर्श और मौलिक मानवीय अधिकारों की प्राप्ति।
  2. प्रजातन्त्रीय राजनीति में अधिकारिक पारस्परिक सहयोग।
  3. आर्थिक कल्याण अथवा सामान्य हित के लिए अग्रसर होना।

राष्ट्रमण्डल के कार्य (महत्त्व)

राष्ट्रमण्डल के प्रमुख कार्य (महत्त्व) निम्नलिखित हैं –

  1. राष्ट्रमण्डल ने अनेक विषयों पर अपने सदस्य देशों के मध्य मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। छोटे सदस्य राष्ट्रों; जैसे–माल्टा, फिजी, कैमरून, न्यूगिनी, युगाण्डा, कीनिया आदि की अर्थव्यवस्था सुधार में सहयोग प्रदान करके उनके विकास को गति प्रदान करने में सहायता प्रदान की है।
  2. राष्ट्रमण्डल ने विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों तथा खेलों के आयोजनों से देशों के बीच आपसी सहयोग विकसित करने तथा उनकी प्रतिभाओं को आगे लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत ने अपनी विदेश नीति के मूल्यों एवं सिद्धान्तों के आधार पर राष्ट्रमण्डल के पारस्परिक सहयोग, शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व, नि:शस्त्रीकरण तथा आर्थिक सहयोग के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए समय-समय पर उल्लेखनीय सहायता प्रदान की है।
  3. अक्टूबर, 2011 में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने ऑस्ट्रेलिया में आयोजित सदस्य देशों की बैठक में खाद्य सुरक्षा, वित्त, जलवायु परिवर्तन तथा व्यापार क्षेत्र की कई नई वैश्विक चुनौतियों से निपटने का आग्रह किया।
  4. राष्ट्रमण्डल में इक्कीसवीं सदी में चोगम को ही एक अन्तर्राष्ट्रीय नेटवर्क बनाने की अपील की गई।

राष्ट्रमण्डल की आलोचना (मूल्यांकन)

भारत में जनता का एक बड़ा वर्ग सदैव ही राष्ट्रमण्डल की सदस्यता का विरोधी रहा है तथा राष्ट्रमण्डल की सदस्यता त्यागने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन जुटाया जा रहा है। यह वर्ग निम्नलिखित आधारों पर राष्ट्रमण्डल की सदस्यता का विरोध करता है –

  1. राष्ट्रमण्डल की सदस्यता अंग्रेजों के प्रति भारतीयों की गुलामी का द्योतक है, इसलिए दासता का प्रतीक है।
  2. राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से भारत के आर्थिक हितों पर विपरीत प्रभाव पड़ने की आशंका है। क्योंकि ब्रिटेन ने ‘यूरोपीय साझा बाजार’ की पूर्ण सदस्यता स्वीकार कर ली है।
  3. भारत-पाक सम्बन्धों में ब्रिटेन का भारत-विरोधी दृष्टिकोण रहा है।
  4. ब्रिटेन की राष्ट्रमण्डल के आधारभूत सिद्धान्तों (प्रजातन्त्र तथा मानवीय अधिकारों) में एकनिष्ठ तथा सच्ची निष्ठा नहीं है।

राष्ट्रमण्डल, राष्ट्रों का एक ढीला-ढाला संगठन है। विश्व राजनीति में इस संगठन की स्थिति अधिक सन्तोषजनक नहीं है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में ब्रिटेन की स्थिति कमजोर हो जाने के कारण यह अब इस पर अपना पूर्ण नियन्त्रण स्थापित करने में सक्षम नहीं है। अतः इस संगठन में ब्रिटेन की नीतियों के विरुद्ध भी विरोध के स्वर सुनाई देने लगे हैं। इस संगठन के सदस्य राष्ट्रों में भी पारस्परिक सहयोग की भावना का अभाव देखा जा रहा है।

[संकेत – राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत की भूमिका (कार्य) हेतु लघु उत्तरीय प्रश्न 2 (150 शब्द) का अध्ययन करें।

लघू उत्तीय प्रश्न (शब्द सीमा : 150 शब्द) (4 अंक)

प्रश्न 1.
राष्ट्रमण्डल का अर्थ व उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
राष्ट्रमण्डल

कभी अंग्रेजी शासन के अधीन रहे देशों, जिन्होंने स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ब्रिटेन के साथ लगभग समानता के सम्बन्ध स्थापित कर लिए हैं, ने मिलकर राष्ट्रमण्डल की स्थापना की। राष्ट्रमण्डल कोई निश्चित उत्तरदायित्वों वाला कठोर वैधानिक या सैनिक संगठन नहीं है। 1887 ई० में महारानी विक्टोरिया की हीरक जयन्ती के अवसर पर साम्राज्य के प्रतिनिधियों की औपचारिक बैठक में इसका प्रारम्भ हुआ। वर्ष 1949 में इस संगठन का नाम ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल से बदलकर राष्ट्रमण्डल कर दिया गया और गणतन्त्रों के लिए ब्रिटिश सम्राट के प्रति भक्ति की शर्त हटा दी गई। वर्ष 1949 में ही भारत इसका सदस्य देश बना। राष्ट्रमण्डल के राज्यों की पहचान यह है कि इनके राजदूत एक-दूसरे के देश में उच्चायुक्त कहलाते हैं। राष्ट्रमण्डल का मुख्यालय मार्लबोरो हाउस लन्दन (ग्रेट ब्रिटेन) में है। वर्तमान में राष्ट्रमण्डल की सदस्य संख्या 53 है।

राष्ट्रमण्डल के उद्देश्य

इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. प्रजातन्त्र का आदर्श और मौलिक मानवीय अधिकारों की प्राप्ति।
  2. प्रजातन्त्रीय राजनीति में पारस्परिक सहयोग।
  3. आर्थिक कल्याण अथवा सामान्य हित के लिए अग्रसर होना तथा अन्तर्राष्ट्रीय, आर्थिक, सामाजिक तथा मानव-कल्याण सम्बन्धी समस्याओं का निराकरण करना।
  4. सांस्कृतिक गतिविधियों का आदान-प्रदान करना तथा खेल-कूद आदि की प्रतियोगिताओं का आयोजन करना।
  5. सदस्य राष्ट्रों में मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध तथा अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग में वृद्धि करना।

प्रश्न 2.
राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत की भूमिका स्पष्ट कीजिए। [2014]
उत्तर :
राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत

स्वतन्त्रता आन्दोलन की कालावधि में कांग्रेस राष्ट्रमण्डल की सदस्यता को त्यागने की वकालत करती थी, परन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद इसे सम्बन्ध में व्यावहारिक दृष्टिकोण से विचार किया गया तथा यह निश्चित किया गया कि भारत को राष्ट्रमण्डल का सदस्य रहना चाहिए क्योंकि इससे राजनीतिक तथा आर्थिक दोनों ही लाभ हैं। निम्नलिखित तथ्यों से इस बात की पुष्टि होती है कि भारत ने सदैव ही स्वतन्त्र विदेश नीति का संचालन किया है। जब सन् 1956 ई० में ब्रिटेन और मिस्र के बीच स्वेज नहर को लेकर संघर्ष आरम्भ हुआ, तब राष्ट्रमण्डल के सदस्य होते हुए भी भारत ने मिस्र का पक्ष लिया और ब्रिटेन की साम्राज्यवादी नीति का घोर विरोध करते हुए अपनी स्वतन्त्र विदेश नीति का प्रमाण दिया। इसी प्रकार मार्च 1962 ई० में आयोजित राष्ट्रमण्डलीय सम्मेलन में भारत ने दक्षिण अफ्रीका की रंग-भेद नीति की तीव्र आलोचना की। ब्रिटेन के यूरोपीय साझा बाजार में सम्मिलित होने के प्रश्न पर भी भारत ने अपने स्वतन्त्र विचार व्यक्त किए।

जब 1962 ई० में चीन ने भारत पर आक्रमण किया तो पाकिस्तान को छोड़कर अन्य सदस्यों ने भारत का ही समर्थन किया और भारत की विभिन्न प्रकार से सहायता की। ब्रिटेन ने भी चीन की साम्राज्यवादी नीति का विरोध किया और अस्त्र-शस्त्र तथा अन्य प्रकार से हमारी सहायता की। यद्यपि ब्रिटेन की नीतियों के अन्तर्गत समय-समय पर भारत का विरोध हुआ है, जिसके कारण हमारे देश में राष्ट्रमण्डल की सदस्यता त्यागने के लिए प्रतिक्रिया भी हुई है, किन्तु इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि राष्ट्रमण्डल की सदस्यता भारत के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुई है। और उसे सदस्य राष्ट्रों से अनेक क्षेत्रों में सहयोग प्राप्त होता रहा है। अतः भारत के राष्ट्रमण्डल से पृथक् होने की बात सर्वथा अनुचित है। इस समय भारत के ब्रिटेन के साथ सम्बन्ध काफी मधुर हैं। भारत के द्वारा जो परमाणु-परीक्षण किए गए हैं उनके सम्बन्ध में ब्रिटेन ने भारत पर अमेरिका की भाँति कोई आर्थिक प्रतिबन्ध आरोपित नहीं किए हैं।

वर्ष 1983 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रमण्डल शिखर सम्मेलन की 7वीं बैठक का आयोजन नई दिल्ली में किया गया। 13-15 नवम्बर, 1999 ई० तक डरबन (दक्षिण अफ्रीका) में राष्ट्रमण्डल देशों के शासनाध्यक्षों के चार दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। तत्कालीन प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में प्रतिनिधिमण्डल ने इसमें भाग लिया। इस सम्मेलन में अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान के सैनिक शासन की कटु आलोचना की। भारत ने पाकिस्तान की राष्ट्रमण्डल देशों की सदस्यता से निलम्बन की माँग की तथा बैठक के पहले ही दिन राष्ट्रमण्डल के छह सदस्य देशों ने इस संगठन से पाकिस्तान के निलम्बन की माँग की पुष्टि कर दी।

5-7 दिसम्बर, 2003 ई० तक अबुजा (नाइजीरिया) सम्मेलन में तत्कालीन प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् प्रस्ताव 1373 पर अमल सुनिश्चित करने के लिए बहुपक्षीय सहयेाग पर बल दिया।

वाजपेयी के निवर्तमान प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह ने माल्टा (2005), यूगांडा (2007) तथा त्रिनिडाड एवं टोबैगो (2009) में आयोजित राष्ट्रमण्डलों के शिखर सम्मेलनों में भाग लिया। उपराष्ट्रपति मो० हामिद अंसारी ने वर्ष 2011 में पर्थ (ऑस्ट्रेलिया) में आयोजित शिखर सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 27-29 नवम्बर, 2015 के मध्य 24वें राष्ट्रमण्डल शिखर सम्मेलन का आयोजन भूमध्य सागरीय देश माल्टा में किया गया। विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने इसमें भारत का प्रतिनिधित्व किया। इस सम्मेलन का विषय था-‘वैश्विक मूल्यों को जोड़ना।। माल्टा सम्मेलन में भारत ने राष्ट्रमण्डल के गरीब देशों को स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग शुरू करने और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने में मदद हेतु 25 लाख डॉलर उपलब्ध करवाने की घोषणा की। भारत ने इसके लिए राष्ट्रमण्डल जलवायु संकट हल’ बनाने का प्रस्ताव भी दिया। इससे पहले 23-26 नवम्बर, 2015 के मध्ये राष्ट्रमण्डल पीपुल्स फोरम का आयोजन किया गया। इसमें भारत की जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता वंदना शिवा ने सम्बोधित किया।

भारत राष्ट्रमण्डल के बजट में चौथा सबसे अधिक योगदान करने वाला देश है परंतु राष्ट्रमण्डल की महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों में उल्लेखनीय भूमिका निभायी है, जैसे कि 1965 में इसके सचिवालय की स्थापना, 1971 की सिंगापुर घोषणा, 1991 की हरारे घोषणा तथा 1995 में मंत्री स्तरीय कार्य समूह की स्थापना। तथापि, भारत का सबसे उल्लेखनीय योगदान रंगभेद के विरुद्ध संघर्ष के लिए अफ्रीका के सदस्य देशों के साथ एकता स्थापित करना है।

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प्रश्न 3.
राष्ट्रमण्डल की सदस्यता के भारतीय विरोध के चार कारण बताइए।
उत्तर :
भारत के अनेक विद्वानों तथा बुद्धिजीवियों द्वारा राष्ट्रमण्डल की सदस्यता का विरोध किया जा रहा है। इसके पीछे विचारकों ने निम्नलिखित मत दिये हैं –

  1. चूँकि ब्रिटेन ने सदियों तक हमें पराधीन रखा है तथा हमारा शोषण किया है; अतः राष्ट्रमण्डल की सदस्यता हमारी दास मनोवृत्ति की प्रतीक है। अतः हमें इसकी सदस्यता का परित्याग कर देना चाहिए।
  2. कश्मीर को लेकर भारत तथा पाकिस्तान में सदैव मतभेद रहे हैं, लेकिन राष्ट्रमण्डल के सबसे पुराने देश ब्रिटेन द्वारा सदैव आक्रमणकारी राष्ट्र पाकिस्तान का ही समर्थन किया गया है। अतः भारत के जनमानस में असन्तोष का होना स्वाभाविक है और उसका विचार है कि भारत को राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से कोई लाभ नहीं है तथा यह भारत के लिए निरर्थक है।
  3. राष्ट्रमण्डल के ढाँचे की बुनियाद प्रजातन्त्र और मानवीय अधिकारों पर टिकी है। परन्तु वास्तविकता यह है कि उसने व्यवहार में कभी भी इन आदर्शों का अनुसरण नहीं किया है। राष्ट्रमण्डल ने रंगभेद की नीति का अनुसरण करने वाली दक्षिण अफ्रीकी सरकार पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया, उल्टे उसे परोक्ष रूप से समर्थन दिया। अत: राष्ट्रमण्डल की उपयोगिता पर ही प्रश्न-चिह्न लग जाता है।
  4. ब्रिटेन द्वारा यूरोपीय साझा बाजार की सदस्यता ग्रहण करने से पूर्व राष्ट्रमण्डल की सदस्यता आर्थिक दृष्टि से भारत के लिए महत्त्वपूर्ण थी, परन्तु सदस्यता ग्रहण करने के बाद भारत के आर्थिक हित प्रभावित होने की आशंका है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (शब्द सीमा : 50 शब्द) (2 अंक)

प्रश्न 1.
राष्ट्रमण्डल के सदस्य राष्ट्रों के प्रमुख नामों को लिखिए।
उत्तर :
राष्ट्रमण्डल के सदस्य राष्ट्र वर्तमान समय में राष्ट्रमण्डल के सदस्य राष्ट्रों की संख्या 53 है। ये राज्य हैं-ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड, उत्तरी आयरलैण्ड, भारत, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, पाकिस्तान, घाना, बांग्लादेश, जाम्बिया, मलावी, कीनिया, नाइजीरिया, तंजानिया, सियरालियोन, युगाण्डा, जंजीबार, साइप्रस, माल्टा, जमैका, त्रिनिदाद तथा टोबागो, सिचेलिस स्वतन्त्र गणराज्य, फगनाओ, फिजी रोंगा, मॉरीशस, स्वाजीलैण्ड, लेसोथो, बोत्सवाना, गाम्बिया, बारबाडोस, गुयाना आदि। द० अफ्रीका सरकार की रंगभेद नीति के कारण दे० अफ्रीका को वर्ष 1961 में राष्ट्रमण्डल की सदस्यता का त्याग करना पड़ा था। 1994 के प्रारम्भिक महीनों में द० अफ्रीका में लोकतन्त्र और मानवीय समानता पर आधारित सरकार स्थापित हो गई। अतः 31 मई, 1994 को द० अफ्रीका को राष्ट्रमण्डल की सदस्यता पुनः प्रदान कर दी गई। 1997 में मोजाम्बिक और कैमरून (जो भूतकाल में पुर्तगाल और फ्रेंच उपनिवेश थे) को राष्ट्रमण्डल सदस्यता प्रदान की गई।

प्रश्न 2.
चौदहवें राष्ट्रमण्डल शिखर सम्मेलन (डरबन 12 नवम्बर, 1999) में पाकिस्तान से सम्बन्धित कौन-सा निर्णय लिया गया था?
उत्तर :
12 नवम्बर, 1999 में राष्ट्रमण्डल का चौदहवाँ शिखर सम्मेलन दक्षिण अफ्रीका के डरबन शहर में आयोजित किया गया। यह सम्मेलन 12 नवम्बर से 15 नवम्बर, 1999 तक चला। इस सम्मेलन की समाप्ति पर जारी किये गये घोषणा-पत्र में पाकिस्तान में स्थापित सैनिक शासन को अवैध बताते हुए उसकी कटु आलोचना की गयी। सम्मेलन में लिये गये एक निर्णय के अनुसार पाकिस्तान को राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से अनिश्चित काल के लिए निलम्बित कर दिया गया। घोषणा-पत्र में यह भी माँग की गयी कि पाकिस्तान में शीघ्र-से-शीघ्र लोकतन्त्र की स्थापना की जाए। पाकिस्तान को इस आशय की चेतावनी भी दी गयी है कि यदि पाकिस्तान के सैनिक शासकों ने पाकिस्तान में लोकतन्त्र की स्थापना के लिए त्वरित प्रयास नहीं किये तो उसके विरुद्ध प्रत्येक प्रकार के प्रतिबन्ध लगाये जाएँगे। घोषणा-पत्र में सदस्य राष्ट्रों से यह भी अनुरोध किया गया कि विश्व में फैल रहे आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट होकर लड़े।

प्रश्न 3.
राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से भारत को हुए चार लाभ बताइए।
उत्तर :
राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से भारत को हुए चार लाभों को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा व्यक्त किया जा सकता है –

  1. राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से भारत को विभिन्न सदस्य राष्ट्रों से विविध प्रकार का सहयोग मिला है।
  2. राष्ट्रमण्डल की सदस्यता से भारत के विदेशी व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। आज भी भारत का 70-80% व्यापार राष्ट्रमण्डल के देशों के साथ हो रहा है।
  3. राष्ट्रमण्डल के विभिन्न सदस्य राष्ट्रों से भारत को तकनीकी और आर्थिक क्षेत्र में सहायता प्राप्त करने में सफलता मिली है।
  4. राष्ट्रमण्डल के सदस्य के रूप में भारत ने सैनिक ज्ञान प्राप्त किया है।

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
राष्ट्रमण्डल का मुख्य उद्देश्य लिखिए। [2010]
उत्तर :
राष्ट्रमण्डल का मुख्य उद्देश्य है – प्रजातन्त्र का आदर्श और मौलिक मानवीय अधिकारों की प्राप्ति करते हुए प्रजातन्त्रीय राजनीति में अधिकारिक पारस्परिक सहयोग।

प्रश्न 2
राष्ट्रमण्डल के दो सदस्य-राज्यों के नाम लिखिए। [2007, 08, 11, 14]
उत्तर :
राष्ट्रमण्डल के दो सदस्य-राज्यों के नाम हैं-भारत व कनाडा।

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प्रश्न 3.
डरबन सम्मेलन में राष्ट्रमण्डल में किस राज्य की वापसी हुई है?
उत्तर :
डरबन सम्मेलन में नाइजीरिया में लोकतन्त्र की बहाली के बाद, उसकी राष्ट्रमण्डल में वापसी हुई है।

प्रश्न 4.
डरबन में सम्पन्न हुए राष्ट्रमण्डल सम्मेलन में किस देश की सदस्यता निलम्बित की गयी थी और क्यों ?
उत्तर :
डरबन में सम्पन्न राष्ट्रमण्डल सम्मेलन में सैनिक शासन की स्थापना के कारण पाकिस्तान को सदस्यता से निलम्बित किया गया था।

प्रश्न 5.
राष्ट्रमण्डल की सदस्यता का विरोध होने के दो कारण बताइए।
उत्तर :

  1. राष्ट्रमण्डल की सदस्यता को दासता का प्रतीक माना जाता है।
  2. यह देश की आर्थिक प्रगति में बाधक माना जाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)

प्रश्न 1.
वर्तमान में राष्ट्रमण्डल के देशों की संख्या है –
(क) 50
(ख) 52
(ग) 53
(घ) 59

प्रश्न 2.
2005 ई० में राष्ट्रमण्डल देशों का सम्मेलन हुआ था –
(क) ओटावा (कनाडा) में
(ख) वैल्टा (माल्टा) में
(ग) नयी दिल्ली (भारत) में
(घ) इस्लामाबाद (पाकिस्तान) में

प्रश्न 3.
24वें राष्ट्रमण्डल शिखर सम्मेलन 2015 का आयोजन किस देश में किया गया?
(क) भारत
(ख) पाकिस्तान
(ग) कनाडा
(घ) माल्टा

उत्तर :

  1. (ग) 53
  2. (ख) वैल्टा (माल्टा) में
  3. (घ) माल्टा।

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