UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 11 Biotechnology: Principles and Processes

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 12
Subject Biology
Chapter Chapter 11
Chapter Name Biotechnology: Principles and Processes
Number of Questions Solved 22
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 12 Biology Chapter 11 Biotechnology: Principles and Processes (जैव प्रौद्योगिकी-सिद्धान्त व प्रक्रम)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
क्या आप दस पुनर्योगज प्रोटीन के बारे में बता सकते हैं जो चिकित्सीय व्यवहार के काम में लाये जाते हैं? पता लगाइये कि वे चिकित्सीय औषधि के रूप में कहाँ प्रयोग किये जाते हैं? (इंटरनेट की सहायता लें)।
उत्तर
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प्रश्न 2.
एक सचित्र (चार्ट) (आरेखित निरूपण के साथ) बनाइए जो प्रतिबन्धन एन्जाइम को (जिस क्रियाधार डी०एन०ए० पर यह कार्य करता है उसे), उन स्थलों को जहाँ यह डी०एन०ए० को काटता है व इनसे उत्पन्न उत्पाद को दर्शाता है।
उत्तर
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प्रश्न 3.
कक्षा ग्यारहवीं में जो आप पढ़ चुके हैं, उसके आधार पर क्या आप बता सकते हैं कि आण्विक आकार के आधार पर एन्जाइम बड़े हैं या डी०एन०ए०। आप इसके बारे में कैसे पता लगाएँगे?
या
एन्जाइम (विकर) पर टिप्पणी लिखिए। (2018)
उत्तर
एन्जाइम्स (enzymes) प्रोटीन्स होते हैं। प्रोटीन्स अणु अत्यधिक जटिल संरचना वाले वृहदाणु होते हैं। इनका निर्माण ऐमीनो अम्लों से होता है। प्रकृति में लगभग 300 प्रकार के ऐमीनो अम्ल पाए जाते हैं, किन्तु इनमें से केवल 20 ऐमीनो अम्ल ही जन्तु एवं पादप कोशिकाओं में पाए जाते हैं। ऐमीनो अम्ल श्रृंखलाबद्ध होकर परस्पर पेप्टाइड बन्ध द्वारा जुड़े रहते हैं। प्रत्येक प्रोटीन अणु की पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला में ऐमीनो अम्लों का क्रम विशिष्ट प्रकार का होता है। प्रोटीन्स का आण्विक भार बहुत अधिक होता है। विभिन्न ऐमीनो अम्ल से बनने वाली प्रोटीन्स विभिन्न प्रकार की होती हैं। हमारे शरीर में लगभग 50,000 प्रकार की प्रोटीन्स पायी जाती हैं।

डी०एन०ए० के जैविक-वृहदाणु (biological macromolecules) जटिल संरचना वाले होते हैं। ये प्रोटीन्स (एन्जाइम) से भी बड़े जैविक गुरुअणु होते हैं। इनका अणुभार 106 से 109 डाल्टन तक होता है। डी०एन०ए० अणु पॉलिन्यूक्लिओटाइड श्रृंखला से बना होता है। डी०एन०ए० से कम अणुभार वाले m-RNA, t-RNA तथा r-RNA का निर्माण होता है। आर०एन०ए० प्रोटीन संश्लेषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आर०एन०ए० संश्लेषण हेतु डी०एन०ए० अणु विभिन्न स्थान पर द्विगुणित होकर छोटी-छोटी अनुपूरक श्रृंखलाएँ अर्थात् राइबोन्यूक्लिओटाइड अम्ल का एक छोटा अणु बनाती हैं। इन्हें प्रवेशक (primers) कहते हैं। आर०एन०ए०:प्रवेशकों के संश्लेषण का उत्प्रेरण आर०एन०ए० पॉलिमरेज (RNA polymerase) एन्जाइम करत है। आर०एन०ए० अणु प्रोटीन संश्लेषण के काम आते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि डी०एन०ए० अणु प्रोटीन्स (एन्जाइम्स) से भी बड़े अणु होते हैं।

प्रश्न 4.
मानव की एक कोशिका में DNA की मोलर सान्द्रता क्या होगी? अपने अध्यापक से परामर्श लीजिये।
उत्तर
मानव में DNA 3 M प्रति कोशिका होती है अर्थात् मानव की एक कोशिका में DNA की मोलर सांद्रता 3 होगी।

प्रश्न 5.
क्या सुकेंद्रकी कोशिकाओं में प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज मिलते हैं? अपना उत्तर सही सिद्ध कीजिये।
उत्तर
हाँ, सुकेंद्रकी कोशिकाओं में प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज मिलते हैं।
प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज DNA अनुक्रम की लम्बाई के निरीक्षण के बाद कार्य करता है। जब यह अपना विशिष्ट पहचान अनुक्रम पा जाता है तब DNA से जुड़ता है तथा द्विकुंडलिनी की दोनों लड़ियों को शर्करा-फॉस्फेट आधार स्तंभों में विशिष्ट केन्द्रों पर काटता है। प्रत्येक प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज DNA में विशिष्ट पैसिंड्रोमिक न्यूक्लियोटाइड अनुक्रमों को पहचानता है।

प्रश्न 6.
अच्छी हवा व मिश्रण विशेषता के अतिरिक्त कौन-सी अन्य कंपन फ्लास्क सुविधाएँ हैं?
उत्तर
कंपन फ्लास्क द्वितीयक चुनाव के समय किण्वन के लिये परम्परागत विधि है। इसलिये दंड विलोडक हौज बायोरिएक्टर द्वारा उत्पादों को अधिक आयतन तक संवर्धित किया जा सकता है। यह मात्रा 100 लीटर से 1000 लीटर तक हो सकती है। वांछित उत्पादन पाने के लिये जीव-प्रतिकारक अनुकूलतम परिस्थितियाँ, जैसे- तापमान, pH, क्रियाधार, विटामिन, लवण, ऑक्सीजन आदि उपलब्ध कराता है। इस बायोरिएक्टर में अच्छी हवा व मिश्रण की विशेषता के अतिरिक्त यह कम खर्चीला है तथा इसमें ऑक्सीजन स्थानान्तरण की दर बहुत अधिक होती है।

प्रश्न 7.
शिक्षक से परामर्श कर पाँच पैलिंड्रोमिक अनुप्रयास करें तथा क्षारक-युग्म नियमों का पालन करते हुये पैलिंड्रोमिक अनुक्रम बनाने के उदाहरण का पता लगाइये।
उत्तर
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प्रश्न 8.
अर्द्धसूत्री विभाजन को ध्यान में रखते हुए क्या बता सकते हैं कि पुनर्योगज डी०एन०ए० किस अवस्था में बनते हैं?
उत्तर
अर्द्धसूत्री विभाजन में गुणसूत्रों की संख्या घटकर आधी रह जाती है। प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन में प्रत्येक जोड़ी के समजात गुणसूत्रों के मध्य एक या अनेक खण्डों की अदला-बदली अर्थात् पारगमन (crossing over) होता है।

प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन की प्रथम पूर्वावस्था (Ist prophase) की उपअवस्था जाइगोटीन (zygotene) में समजात गुणसूत्र जोड़े बनाते हैं। इस प्रक्रिया को सूत्रयुग्मन (synapsis) कहते हैं। पैकिटीन (pachytene) उपअवस्था में सूत्रयुग्मक सम्मिश्र (synaptonemal complex) में एक या अधिक स्थानों पर गोल सूक्ष्म घुण्डियाँ दिखाई देने लगती हैं, इन्हें पुनर्संयोजन घुण्डियाँ (recombination nodules) कहते हैं।

समजात गुणसूत्रों के परस्पर जुड़े क्रोमैटिड्स (chromatids) के मध्य एक या अधिक खण्डों की पारस्परिक अदला-बदली को पारगमन कहते हैं। इससे समजात पुनसँयोजित डी०एन०ए० (recombinant DNA) बन जाता है। पुनर्संयोजन घुण्डियाँ उन स्थानों पर बनती हैं जहाँ पर पारगमन हेतु क्रोमैटिड्स के टुकड़े टूटकर पुनः जुड़ते हैं।

प्रश्न 9.
क्या आप बता सकते हैं कि प्रतिवेदक (रिपोर्टर) एंजाइम को वरणयोग्य चिह्न की उपस्थिति में बाहरी DNA को परपोषी कोशिकाओं में स्थानान्तरण के लिये मॉनीटर करने के लिये किस प्रकार उपयोग में लाया जा सकता है?
उत्तर
प्रतिकृतियन की उत्पत्ति वह अनुक्रम है जहाँ से प्रप्तिकृतियन की शुरूआत होती है और जब किसी DNA का कोई खंड इस अनुक्रम से जुड़ जाता है तब परपोषी कोशिकाओं के अन्दर प्रतिकृति कर सकता है। यह अनुक्रम जोड़े गये DNA के प्रतिरूपों की संख्या के नियन्त्रण के लिये भी उत्तरदायी है। ‘ori’ के साथ संवाहक को वरणयोग्य चिह्न की आवश्यकता भी होती है, जो अरूपांतरणों की पहचान एवं उन्हें समाप्त करने में सहायक हो और रूपांतरणों की चयनात्मक वृद्धि को होने दे। रूपांतरण एक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत DNA के एक खंड को परपोषी जीवाणु में प्रवेश कराते हैं।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित का संक्षिप्त वर्णन कीजिये –

  1. प्रतिकृतियन का उद्भव
  2. बायोरिएक्टर (2017)
  3. अनुप्रवाह संसाधन

उत्तर
1. प्रतिकृतियन का उद्भव – यह वह अनुक्रम है जहाँ से प्रतिकृतियन की शुरूआत होती है। जब बाहरी DNA का कोई खंड इस अनुक्रम से जुड़ जाता है तब प्रतिकृति कर सकता है। एक प्रोकैरियोटिक DNA में सामान्यतया एक प्रतिकृतियन स्थल होता है जबकि यूकैरियोटिक DNA में एक से अधिक प्रतिकृतियन स्थल होते हैं।

2. बायोरिएक्टर – बायोरिएक्टर एक बर्तन के समान है, जिसमें सूक्ष्मजीवों, पौधों, जन्तुओं एवं मानव कोशिकाओं का उपयोग करते हुये कच्चे माल को जैव रूप से विशिष्ट उत्पादों व्यष्टि एंजाइम आदि में परिवर्तित किया जाता है। वांछित उत्पाद पाने के लिये जीव-प्रतिकारक अनुकूलतम परिस्थितियाँ, जैसे-तापमान, pH, क्रियाधार, विटामिन, लवण, ऑक्सीजन आदि उपलब्ध कराता है।

सामान्यतया सर्वाधिक उपयोग में लाया जाने वाला बायोरिएक्टर विडोलन (स्टिरिंग) प्रकार का है। विडोलित हौज रिएक्टर सामान्यतया बेलनाकार होते हैं या इसमें घुमावदार आधार होता है। जिससे रिएक्टर के अंदर की सामग्री को मिश्रण में सहायता मिलती है। विडोलक प्रतिकारक के अंदर की सामग्री को मिश्रित करने के साथ-साथ प्रतिकारक में सभी जगह ऑक्सीजन की उपलब्धता भी कराते हैं। प्रत्येक जीव-प्रतिकारक रिएक्टर में एक प्रक्षोभक यन्त्र होता है। इसके अतिरिक्त उसमें ऑक्सीजन-प्रदाय यंत्र, झाग- नियन्त्रण यन्त्र, तापक्रम नियन्त्रण यन्त्र, pH होता है। प्रतिक्रिया नियन्त्रण तंत्र तथा प्रतिचयन द्वारा होता है जिससे समय-समय पर संवर्धित उत्पाद की थोड़ी मात्रा निकाली जा सकती है।

3. अनुप्रवाह संसाधन – जैव प्रौद्योगिकी द्वारा तैयार उत्पाद को बाजार में भेजने से पूर्व उसे कई प्रक्रमों से गुजारा जाता है। इन प्रक्रमों में पृथक्करण एवं शोधन सम्मिलित है और इसे सामूहिक रूप से अनुप्रवाह संसाधन कहते हैं। उत्पाद को उचित परिरक्षक के साथ संरूपित किया जाता है। औषधि के मामले में ऐसे संरूपण को चिकित्सीय परीक्षण से गुजारते हैं। प्रत्येक उत्पाद के लिये सुनिश्चित गुणवत्ता नियन्त्रण परीक्षण की भी आवश्यकता होती है। अनुप्रवाह संसाधन एवं गुणवत्ता नियन्त्रक परीक्षण अलग-अलग उत्पाद के लिये भिन्न-भिन्न होता है।

प्रश्न 11.
संक्षेप में बताइये –
(क) PCR
(ख) प्रतिबंधन एंजाइम और DNA
(ग) काइटिनेज
उत्तर
(क) PCR (Polymerase Chain Reaction) – PCR का अर्थ पॉलीमरेज चेन रिऐक्शन (पॉलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया) है। इस विधि द्वारा कम समय में जीन की कई प्रतिकृतियों का संश्लेषण किया जाता है। इस कार्य के लिये एक विशेष उपकरण थर्मल साइक्लर का उपयोग किया जाता है।
PCR चक्र में मुख्य रूप से तीन चरण होते हैं –

  1. निष्क्रियकरण,
  2. तापानुशीलन तथा
  3. विस्तार।

निष्क्रियकरण में DNA को 92°C पर 1 मिनट तक थर्मल साइक्लर में गर्म किया जाता है जिससे उसके दोनों स्टैंड अलग हो जाते हैं। तापानुशीलन में अभिक्रिया मिश्रण के तापक्रम को घटाया जाता है। यह सामान्यतया 48°C रहता है। इसे इस तापक्रम पर भी 1 मिनट के लिये रखा जाता है। इसके बाद विस्तार किया जाता है जो 27°C पर 1 मिनट के लिये होता है। इस चक्र को 34 – 37 बार दुहराया जाता है। इस प्रक्रम द्वारा DNA खंड को एक अरब गुणा तक प्रवर्धित किया जा सकता है।

पॉलिमरेज श्रृंखला अभिक्रया में DNA खंड के अतिरिक्त उपक्रमकों, एंजाइम टैंक, DNA पॉलीमरेज, मैग्नीशियम क्लोराइड, डाइमेथाइल सल्फॉक्साइड की आवश्यकता पड़ती है। उपक्रमकों (प्राइमर्स) को दो समुच्चयों की आवश्यकता पड़ती है – एक 5′ से 3′ की ओर जाने के लिये तथा एक 3′ व 5′ की ओर जाने के लिए। प्राइमर्स छोटे रासायनिक संश्लेषित अल्प न्यूक्लियोटाइड हैं जो DNA क्षेत्र के पूरक होते हैं।
PCR के उपयोग इस प्रकार हैं:

  1. रोगाणुओं की पहचान में
  2. विशिष्ट उत्परिवर्तन को पहचानने में
  3. DNA फिंगर प्रिटिंग में
  4. पादप रोगाणुओं का पता लगाने में
  5. विलुप्त जीवों तथा मनुष्यों के ममी अवशेष से DNA खंड के क्लोनिंग में।

(ख) प्रतिबंधन एंजाइम और DNA – प्रतिबंधन एंजाइम को ‘आणविक कैंची’ कहा जाता है। वह एंजाइम जो DNA को काटता है प्रतिबंधन एंडोन्यूक्लिएज कहलाता है। अभी तक 900 से अधिक प्रतिबंधन एंजाइमों की खोज हो चुकी है। ये जीवाणुओं के 230 से अधिक प्रभेदों से अलग किये गये हैं। इनमें से प्रत्येक प्रतिबंधन एंजाइम विभिन्न अनुक्रमों को पहचानते हैं।

प्रतिबंधन एंजाइम डबल स्टेंडेड DNA को खंडित करता है। ये एंजाइम DNA को एक विशेष स्थल पर काटता है; जैसे- एंजाइम ECORI प्लाज्मिड अनुक्रम GAATTC को G और A के मध्य काटता है। प्रतिबंधन एंजाइम के नामकरण में परम्परानुसार नाम का पहला शब्द वंश एवं दूसरा और तीसरा शब्द प्रकेन्द्रकी कोशिकाओं की जाति से लिया गया है जिनसे ये पृथक् किये गये थे। जैसे ECORI को ई० कोलाई RY 13 से प्राप्त किया गया है। ECORI में वर्ण R, RY प्रभेद से लिया गया है।

(ग) काइटिनेज – इस एंजाइम का उपयोग कवक कोशिका को तोड़ने के लिये किया जाता है जिससे DNA के साथ वृहद अणु; जैसे- RNA, प्रोटीन, वसा एवं पॉलिसैकेराइड बाहर निकलते हैं।

प्रश्न 12.
अपने अध्यापक से चर्चा करके पता लगाइये कि निम्नलिखित के बीच कैसे भेद करेंगे?
(क) प्लाज्मिड DNA तथा गुणसूत्रीय DNA
(ख) RNA तथा DNA
(ग) एक्सोन्यूक्लिएज तथा एंडोन्यूक्लिएज
उत्तर
(क) प्लाज्मिड DNA तथा गुणसूत्रीय DNA में अन्तर
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(ख) RNA तथा DNA में अन्तर
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(ग) एक्सोन्यूक्लिएज तथा एंडोन्यूक्लिएज में अन्तर
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परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जीनी-इन्जीनियरिंग में जैविक कैंची का कार्य करने वाला एन्जाइम है – (2017)
(क) लाइगेज
(ख) न्यूक्लिएज
(ग) पॉलीमरेज
(घ) रिस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज
उत्तर
(घ) रिस्ट्रिक्शन एण्डोन्यूक्लिएज

प्रश्न 2.
डी०एन०ए० खण्डों की पहचान करते हैं – (2017)
(क) नॉर्दर्न ब्लोटिंग से
(ख) सदर्न ब्लोटिंग से
(ग) वेस्टर्न ब्लोटिंग से
(घ) इन सभी से
उत्तर
(ख) सदर्न ब्लोटिंग से

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आनुवंशिक इंजीनियरिंग में प्रयुक्त होने वाला सबसे सामान्य बैक्टीरिया कौन-सा है?
उत्तर
ई० कोलाई।

प्रश्न 2.
आनुवंशिकी अभियांत्रिकी में उपयोगी किन्हीं दो एन्जाइमों के नाम तथा कार्य लिखिए। (2017)
उत्तर

  1. प्रतिबंधन एण्डोन्यूक्लिएज एंजाइम (Restriction Endonuclease Enzyme) – यह DNA के भीतर विशिष्ट स्थलों पर ही DNA को काटता है।
  2. DNA लाड़गेजिज (DNA Ligases) – यह एंजाइम DNA के खुले सिरों को जोड़ता है।

प्रश्न 3.
आण्विक कैंचियाँ क्या हैं? इसकी परिभाषा दीजिए। (2017)
उत्तर
प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम को आण्विक कैंची कहते हैं। यह DNA को खंडों में काटता है।

प्रश्न 4.
एण्डोन्यूक्लिएज का क्या कार्य है?
उत्तर
एण्डोन्यूक्लिएज DNA को भीतर से विशिष्ट स्थलों पर काटते हैं।

प्रश्न 5.
प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज कब कार्य करता है?
उत्तर
प्रत्येक प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज DNA अनुक्रम की लम्बाई के निरीक्षण के बाद कार्य करता है।

प्रश्न 6.
DNA के खंडों को आपस में किस एन्जाइम से जोड़ा जाता है?
उत्तर
लाइगेज।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्लाज्मिड्स क्या होते हैं। प्राणियों के जीवन में इनकी उपयोगिता का वर्णन कीजिए। (2009)
या
प्लाज्मिड्स के चार प्रमुख गुण लिखिए। (2010)
या
प्लाज्मिड्स कहाँ पाये जाते हैं? इनका उपयोग क्या और कहाँ होता है? (2011, 16, 17)
या
प्लाज्मिड्स क्या हैं और ये कहाँ पाये जाते हैं? (2015, 17)
या
प्लाज्मिड पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2018)
उत्तर
प्लाज्मिड्स
प्लाज्मिड्स (plasmids) जीवाणु कोशिका में प्राकृतिक रूप से पाये जाते हैं। यह एक दोहरे स्टैण्ड वाला DNA अणु है जो केन्द्रकाभ (nucleoid) के बाहर स्थित होता है। प्लाज्मिड्स की प्रतिकृति स्वतन्त्र होती है। जीवाणु प्लाज्मिड में केवल कुछ ही जीन होते हैं जो कई बार लैंगिक जनन से सम्बन्धित होते हैं। इन जीनों की जीवाणु कोशिका की अन्य जैव प्रक्रियाओं में कोई भूमिका नहीं होती है। इनमें उपस्थित जीन्स, प्रतिरोधी पदार्थों के निर्माण, किण्वन आदि क्रियाओं का नियमन भी करते हैं। स्वनियन्त्रित प्रतिकृति गुण होने के कारण निम्न दो प्रकार के प्लाज्मिड्स ज्ञात हैं –

1. एकल प्रतिलिपि प्लामिडस (Single Copy Plasmids) – ये प्लाज्मिड्स प्रतिकृति करके केवल एक ही प्रतिलिपि (copy) बनाते हैं।

2. बहुप्रतिलिपि प्लाज्मिड्स (Multicopy Plasmids) – ये प्लाज्मिड्स प्रतिकृति करके एक से अधिक प्रतिलिपियाँ बनाते हैं। इस प्रकार की एक जीवाणु कोशिका में परिणामस्वरूप 10 – 12 प्लाज्मिड्स पाये जा सकते हैं (कभी-कभी इनकी संख्या 1000 तक भी होती है)। ऐसे प्लाज्मिड्स का उपयोग क्लोनिंग साधन के रूप में किया जाता है।

प्लाज्मिड की एक विशेषता है कि इसका डी०एन०ए० विजातीय डी०एन०ए० खण्ड से जुड़कर भी दूसरी कोशिका में प्रवेश करने की क्षमता बनाये रखता है। ऐसे प्लाज्मिड्स ही वेक्टर के रूप में प्रयुक्त होते हैं। सबसे पहला आनुवंशिक इंजीनियरिंग से तैयार किया गया वेक्टर प्लाज्मिड PBR322 था जिसे ई० कोलाई के COIE प्लाज्मिड से तैयार किया गया था। दूसरी ओर प्लाज्मिड्स जीवाणु कोशिकाद्रव्य में मुक्त रूप से पाये जाते हैं। इन्हें सहज ही यहाँ से पृथक् किया जा सकता है।

विस्तृत उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जीनी अभियान्त्रिकी (प्रौद्योगिकी) क्या है? मनुष्य के लिए लाभदायक विभिन्न क्षेत्रों में इसके अनुप्रयोगों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए। (2018)
या
जीनी अभियान्त्रिकी क्या होती है? इसे पुनर्संयोजी डी०एन०ए० प्रौद्योगिकी क्यों कहते हैं? मानव हित में इसकी उपयोगिता का उल्लेख कीजिए। (2009, 12, 13, 15)
या
जेनेटिक इंजीनियरिंग की प्रयोज्यता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। (2010)
या
जैव प्रौद्योगिकी से आप क्या समझते हैं? (2014)
या
आनुवंशिक अभियान्त्रिकी के मानव हित में चार अनुप्रयोग लिखिए। (2014, 16)
या
जैव प्रौद्योगिकी की उपयोगिता पर टिप्पणी लिखिए। (2013)
या
जैव प्रौद्योगिकी के किन्हीं दो उपयोगों का उल्लेख कीजिए। (2014)
या
आनुवंशिक अभियान्त्रिकी से आप क्या समझते हैं? चिकित्सा अथवा कृषि-क्षेत्र में आनुवंशिक अभियान्त्रिकी की उपयोगिताएँ लिखिए। (2015)
या
जैव प्रौद्योगिकी के बारे में आप क्या जानते हैं? जैव प्रौद्योगिकी के मानव स्वास्थ्य के क्षेत्र में दो उपयोग बताइए। (2015, 17)
या
आनुवंशिक इन्जीनियरिंग क्या है? इसका कोई एक उपयोग लिखिए। (2017)
उत्तर
आनुवंशिक इंजीनियरी या जीनी अभियान्त्रिकी/प्रौद्योगिकी
आनुवंशिक अभियान्त्रिकी या जेनेटिक इन्जीनियरिंग या जीन अभियान्त्रिकी को जीन क्लोनिंग (gene cloning) भी कहते हैं। जीवों में समलक्षणी गुणों (phenotypic characters) में परिवर्तन हेतु आनुवंशिक पदार्थ (genetic material) को जोड़ना (adding), हटाना (removing) या ठीक करना (repairing) आनुवंशिक इंजीनियरी का उद्देश्य है। क्योंकि DNA अणुओं में जोड़-तोड़ जीनी अभियान्त्रिकी को आधार होता है, इसे पुनर्संयोजी डी०एन०ए० प्रौद्योगिकी भी कहते हैं।

जीन अभियान्त्रिकी में आनुवंशिक पदार्थ का हेर-फेर (manipulation) पूर्व निर्धारित लक्ष्य की ओर निर्देशित किया जाता है। अर्थात् जीवों के आनुवंशिक पदार्थ (DNA) में जोड़-तोड़ करके उनके दोषपूर्ण आनुवंशिक लक्षणों के जीन्स को हटाकर, उनके स्थान पर DNA में उत्कृष्ट लक्षणों के जीन्स को समाविष्ट करना ही जीनी अभियान्त्रिकी (genetic engineering) है।

इस तकनीक में दो DNA अणुओं को सर्वप्रथम कोशिका केन्द्रक से पृथक् किया जाता है और एक या अधिक प्रकार के विशेष एन्जाइम, रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम (restriction enzyme) के द्वारा उनके टुकड़े किये जाते हैं। इसके बाद इन टुकड़ों को इच्छानुसार जोड़कर कोशिका में पुनरावृत्ति व जनन के लिए पुनः स्थापित कर दिया जाता है। संक्षेप में जीन क्लोनिंग या आनुवंशिक इन्जीनियरिंग विदेशी (foreign) DNA के एक विशिष्ट टुकड़े को कोशिका में स्थापित करना होता है।

आर्बर (Arber, 1962) ने बैक्टीरिया कोशिकाओं में रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम (restriction enzyme) नामक ऐसे पदार्थ की उपस्थिति की जानकारी प्राप्त की जो किसी भी बाह्य डी०एन०ए० को विशिष्ट टुकड़ों में तोड़ने के लिए एक तीव्र रसायन का कार्य करता है। यह न्यूक्लिक अम्ल की फॉस्फेट-शर्करा बन्धता को तोड़ता है। किसी बैक्टीरिया पर जब कोई विषाणु आक्रमण करता है तब यह प्रक्रिया उसमें रक्षास्थल का कार्य करती है। स्मिथ (Smith, 1970) ने ग्राम ऋणात्मक बैक्टीरिया हीमोफिलस इन्फ्लुएन्जी (Hemophilus influenzae) से रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम विलगित किया और सन् 1971 में नैथन्स ने बन्दर के ट्यूमर विषाणु (एसवी 40) के DNA को तोड़ने के लिए एक एन्जाइम का उपयोग किया।

सन् 1978 तक लगभग 100 से भी अधिक विभिन्न प्रकार के रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम या निर्बन्धन एण्डोन्यूक्लिएज (restriction endonuclease) विलगित करके लक्षणित किये जा चुके थे। इस प्रकार इसकी खोज सन् 1970 में आर्बर, नैथन्स एवं स्मिथ (Arber, Nathans and Smith) ने की। इसके लिए उन्हें वर्ष 1978 ई० में नोबेल पुरस्कार भी मिला। इसी से जीन अभियान्त्रिकी की नींव पड़ी।

जीनी अभियान्त्रिकी के विभिन्न उपयोग
आनुवंशिक इंजीनियरिंग का प्रयोग व्यावसायिक उत्पादनों, अनेक मानव जीन्स की खोज, रोगों के कारण व उनके इलाज की सहायता में हो रहा है। हम जीन्स के नियन्त्रण में संश्लेषित होने वाले अनेक लाभदायक पदार्थों का औद्योगिक स्तर पर उत्पादन कर सकते हैं। इस प्रौद्योगिकी के महत्त्वपूर्ण प्रयोज्य इस प्रकार हैं –

1. जीन्स का निर्माण – किसी विशेष कोशिका से m-RNA अणु को अलग करके प्रतिवर्ती ट्रांस्क्रिप्टेज (reverse transcriptase) एन्जाइम की सहायता से इस पर DNA श्रृंखला का संश्लेषण कराया जा सकता है।

2. जीन का विश्लेषण तथा संग्रह – DNA अणुओं को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर उनका संग्रह करके किसी भी जीव के सम्पूर्ण जीनोम का विश्लेषण किया जा सकता है। इसे “जीनी संग्रह के रूप में रिकॉर्ड किया जा सकता है। संग्रह की इस विधि को “शॉटगन विधि (shotgun method)’ कहते हैं।

3. जीन्स को प्रतिस्थापन – जीनी चिकित्सा (gene therapy) से अवांछित जीन्स को हटाया जा सकता है और इसके स्थान पर नये वांछित जीन्स को प्रवेश कराया जा सकता है। इस प्रकार
व्यक्ति की लम्बाई, बुद्धि, ताकत आदि को नियन्त्रित किया जा सकता है।

4. रोगजनक विषाणुओं का रूपान्तरण – रोगजनक विषाणुओं के आनुवंशिक पदार्थ में परिवर्तन करके कैंसर, एड्स (AIDS) आदि रोगों के विषाणुओं को रोगजनक के बजाय इन्हीं रोगों के
उपचार में प्रयोग किया जा सकता है।

5. विषाणु प्रतिरोधी मुर्गियाँ – जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा मुर्गियों की ऐसी प्रजातियों का विकास किया गया है जो विषाणुओं के संक्रमण का प्रतिरोध करती हैं।

6. व्यक्तिगत जीन्स को अलग करना – कुछ जीन्स को अलग करने की तकनीक विकसित की गयी, जो निम्नलिखित समूहों में वर्गीकृत की जा सकती हैं –

  1. विशेष प्रकार की प्रोटीन बनाने वाली जीन,
  2. r-RNA की जीन्स तथा
  3. नियन्त्रण करने वाली जीन्स; जैसे- प्रोमोटर जीन तथा रेगुलेटरी जीन। चूजों में ओवोएल्ब्यूमिन की जीन, चूहों में ग्लोबिन तथा इम्यूनोग्लोबिन जीन्स, अनाजों व लेग्यूम्स में प्रोटीन संग्रह की जीन्स आदि को पृथक् किया जा चुका है।

7. समुद्री तेल फैलाव का सफाया – इसमें पहले एक प्लाज्मिड में कई जीन्स को जोड़कर एक पुनसँयोजित DNA बनाया जाता है और इसका पुंजकीकरण करके एक समुद्री जीवाणु में प्रवेश कराया जाता है। यह जीवाणु समुद्री सतह पर फैले तेल का सफाया कर देता है। इसे उच्चझक्की जीवाणु (superbug bacterium) कहते हैं।

8. पौधों में नाइट्रोजन अनुबन्धन – पुनर्संयोजी DNA प्रौद्योगिकी के द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्षमता रखने वाले जीवाणुओं का संवर्द्धन करके इन्हें फलीरहित पादपों में प्रविष्ट कराया जाता है।

9. आनुवंशिक रोगों का पता लगाना – अनेक रोगों का गर्भ में ही एम्निओसेण्टेसिस (amniocentesis) तकनीक द्वारा पता लगाया जाता था, किन्तु DNA पुनर्संयोजन तकनीक द्वारा पुंजकीकृत डी०एन०ए० क्रम (cloned DNA sequence) के उपलब्ध होने से गर्भस्थ शिशु के पूरे जीनोटाइप का निरीक्षण किया जा सकता है। इस विधि के द्वारा बिन्दु उत्परिवर्तन, विलोपन आदि सभी उत्परिवर्तनों का पता लगाया जा सकता है। इस विधि का प्रयोग गर्भस्थ शिशु में थैलेसीमिया, फिनाइलकीटोन्यूरिया आदि रोगों का पता लगाने के लिए किया जा रहा है।

10. औद्योगिक रसायन – पेट्रोल, ईंधन, कीटनाशी, आसंजक (adhesives), प्रणोदक (propellants), विलायक (solvents), रंजक (dyes), विस्फोटक आदि कई प्रकार के पदार्थ हमें खनिज तेल पदार्थों से प्राप्त होते हैं। इन्हें हम जीनी अभियान्त्रिकी द्वारा रूपान्तरित जीवाणुओं की सहायता से पादपों के किण्वन से प्राप्त कर सकते हैं।

11. इस तकनीक के द्वारा इन्सुलिन तथा मानव वृद्धि हॉर्मोन का उत्पादन किया जा रहा है।

12. इस तकनीक द्वारा मानव इण्टरफेरॉन (interferon) (ल्यूकोसाइटिक इण्टरफेरॉन, फाइब्रोब्लास्टिक इण्टरफेरॉन, प्रतिरक्षक इण्टरफेरॉन) का उत्पादन किया जा रहा है।

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