UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi स्वास्थ्यपरक निबन्ध

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 9
Chapter Name स्वास्थ्यपरक निबन्ध
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi स्वास्थ्यपरक निबन्ध

स्वास्थ्यपरक निबन्ध

जीवन में खेलकूद की आवश्यकता और स्वरूप

सम्बद्ध शीर्षक

  • स्वस्थ तन, स्वस्थ मन
  • जीवन में खेलों का महत्त्व
  • विद्यालयों में खेल की उपादेयता
  • व्यायाम और योगासन का महत्त्व
  • स्वास्थ्य शिक्षा एवं योगासन
  • विद्यालयों में स्वास्थ्य-शिक्षा का अद्यतन रूप
  • विद्यालयों में शारीरिक-शिक्षा का वर्तमान स्वरूप

प्रमुख विचार-बिन्दु

  1.  प्रस्तावना,
  2.  स्वास्थ्य : जीवन का आधार,
  3.  शिक्षा तथा खेलकूद,
  4. खेलकूद के विविध रूप,
  5. शिक्षा में खेलकूद का महत्त्व,
  6.  शिक्षा और खेलकूद में सन्तुलन,
  7.  उपसंहार।

प्रस्तावना –  शिक्षा मनुष्य के सर्वांगीण विकास के लिए जीवन की आधारशिला है। व्यक्ति के प्रकृत रूप से सच्चे मानवीय रूप में विकास ही शिक्षा का मूल उद्देश्य है। शिक्षा मस्तिष्क को स्वस्थ बनाती है। इस प्रकार शिक्षा की सार्थकता व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक और आध्यात्मिक विकास में निहित है। सर्वविदित है कि स्वस्थ मस्तिष्क स्वस्थ शरीर में ही निवास करता है। स्वस्थ शरीर तभी सम्भव है, जब यह गतिशील रहे; खेलकूद, व्यायाम आदि से इसे पुष्ट बनाया जाए। इसीलिए विश्व के लगभग प्रत्येक देश में स्वाभाविक रूप से खेलकूद और व्यायाम पाये जाते हैं।

स्वास्थ्य : जीवन का आधार – मानव-जीवन के समस्त कार्यों का संचालन शरीर से ही होता है। हमारे यहाँ तो कहा भी गया है-‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।’ सच ही है – शरीर के होने पर ही व्यक्ति सभी प्रकार से साधनसम्पन्न हो सकता है। जान है तो जहान है। यहाँ पर जान से तात्पर्य है स्वस्थ शरीर। इसलिए प्रत्येक काल में, हर देश, हर समाज में स्वास्थ्य की महत्ता पर बल दिया गया है। इसे जीवन का सबसे बड़ा सुख मानते हुए कहा गया है- पहला सुख निरोगी काया।’ इसी सुख की प्राप्ति खेलकूद और व्यायाम से होती है।

शिक्षा तथा खेलकूद – शिक्षा तथा खेलकूद का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। शिक्षा मनुष्य को सर्वांगीण विकास करती है। शारीरिक विकास इस विकास का पहला रूप है, जो खेलकूद में गतिशील रहने से ही सम्भव है। मस्तिष्क भी एक शारीरिक अवयव है; अत: खेलकूद को अनिवार्य रूप से अपनाने पर मस्तिष्क भी परिपक्व होता है और वह शिक्षा में भी आगे बढ़ता है। इस प्रकार खेलकूद मानसिक, चारित्रिक और आध्यात्मिक विकास से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। शिक्षा से खेलकूद की इस घनिष्ठता को दृष्टिगत रखकर ही प्रत्येक विद्यालय में खेलकूद की व्यवस्था की जाती है और इनसे सम्बद्ध व्यवस्था पर पर्याप्त धनराशि व्यय की जाती है।

खेलकूद के विविध रूप – कुछ नियमों के अनुसार शरीर को पुष्ट और स्फूर्तिमय तथा मन को प्रफुल्लित बनाने के लिए जो शारीरिक गति की जाती है, उसे ही खेलकूद और व्यायाम कहते हैं। खेलकूद और व्यायाम का क्षेत्र बहुत व्यापक है तथा इसके अनेकानेक रूप हैं। रस्साकशी, कबड्डी, खो-खो, ऊंची कूद, लम्बी कूद, तैराकी, हॉकी, फुटबॉल, क्रिकेट, बैडमिण्टन, जिमनास्टिक, लोहे का गोला उछालना, टेनिस, स्केटिंग आदि खेलकूद के ही विविध रूप हैं। इनसे शरीर में रक्त का संचार तीव्र होता है और अधिक ऑक्सीजन की आपूर्ति के कारण प्राणशक्ति बढ़ती है। इसीलिए खेलकूद हमारे शरीर को पुष्ट बनाते हैं। सभी लोग सभी स्थानों पर नियमित रूप से सुविधापूर्वक खेलकूद नहीं कर सकते, इसीलिए शरीर और मन को पुष्ट बनाने के लिए व्यायाम करते हैं।

शिक्षा में खेलकूद का महत्त्व – केवल पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त करके मानसिक विकास कर लेने मात्र को ही शिक्षा मानना नितान्त भ्रम है। सच्ची शिक्षा मानसिक विकास के साथ-साथ शारीरिक, चारित्रिक, और आध्यात्मिक विकास में सहायक होती है, जिससे मनुष्य सच्चे अर्थों में मनुष्य बनता है। शिक्षा के क्षेत्र में खेलकूद अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

मानसिक विकास की दृष्टि से भी खेलकूद बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। खेलकूद से पुष्ट और स्फूर्तिमय शरीर ही मन को स्वस्थ बनाता है। अंग्रेजी की यह कहावत “There is a sound mind in a sound body.” अर्थात् स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है, बिल्कुल सत्य है। रुग्ण और दुर्बल शरीर व्यक्ति को चिड़चिड़ा, असहिष्णु और स्मृति-क्षीण बनाते हैं, जिससे वह शिक्षा ग्रहण करने योग्य नहीं रह जाता। खेलकूद हमारे मन के प्रफुल्लित और उत्साहित बनाये रखते हैं। खेलों से नियम-पालन का स्वभाव विकसित होता है और मन एकाग्र होता है। शिक्षा-प्राप्ति में ये तत्त्व महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, परन्तु आज के वातावरण में अधिकतर माता-पिता अपने बच्चों के केवल अक्षर-ज्ञान पर ही विशेष बल दे रहे हैं। परीक्षा में अधिक अंकों सहित उत्तीर्ण होना तथा किसी-न-किसी प्रकार अच्छी नौकरी को प्राप्त करना ही उनका उद्देश्य होता है।

खेलकूद चारित्रिक विकास में भी योगदान देते हैं। खेलकूद से सहिष्णुता, धैर्य और साहस का विकास होता है। तथा सामूहिक सद्भाव और भाईचारे की भावना पनपती है। इन चारित्रिक गुणों से एक मनुष्य सही अर्थों में शिक्षित और श्रेष्ठ नागरिक बनता है। शिक्षा-प्राप्ति के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को भी हम खेल में आने वाले अवरोधों की भाँति हँसते-हँसते पार कर लेते हैं और सफलता की मंजिल तक पहुँच जाते हैं। इस प्रकार जीवन की अनेक घटनाओं को हम खिलाड़ी की भावना से ग्रहण करने के अभ्यस्त हो जाते हैं।

खेलकूद के सम्मिलन से शिक्षा में सरलता, सरसता और रोचकता आ जाती है। शिक्षाशास्त्रियों के अनुसार, खेल के रूप में दी गयी शिक्षा तीव्रगामी, सरल और अधिक प्रभावी होती है। इसे ‘शिक्षा की खेल-पद्धति’ कहते हैं। मॉण्टेसरी और किण्डरगार्टन आदि की शिक्षा-पद्धतियाँ इसी मान्यता पर आधारित हैं। इससे स्पष्ट है कि शिक्षा में खेलकूद का अत्यधिक महत्त्व है और बिना खेलकूद के शिक्षा सारहीन रह जाती है।

शिक्षा और खेलकूद में सन्तुलन –  शिक्षा में खेलकूद बहुत उपयोगी है; किन्तु यदि कोई खेलकूद पर ही बल दे और शिक्षा के अन्य पक्षों की उपेक्षा कर दे तो यह भी अहितकर होगा। विद्यार्थी का जीवन तो अध्ययनशील, कार्यशील व व्यस्त होना चाहिए, जिसमें एक क्षण का समय भी प्रदूषित वातावरण में व्यतीत नहीं होना चाहिए। हमें बुद्धिजीवी होने के साथ ही श्रमजीवी भी होना चाहिए। पढ़ते समय हम केवल पढ़ाई को ध्यान रखें और खेलकूद के समय एकाग्रचित्त होकर खेलें। यही प्रसन्नता और आनन्द का मार्ग है।

उपसंहार – खेलकूद से क्षमता, उल्लास और स्फूर्ति मिलती है। इससे जीवन रसमय बन जाता है। जीवन-रस से विहीन शिक्षा निरर्थक है; अत: शिक्षा को जीवन्त और सार्थक बनाये रखने के लिए तथा विद्यार्थी के व्यक्तित्व के सम्पूर्ण और समग्र विकास के लिए खेलकूद महत्त्वपूर्ण हैं। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में आवश्यक परिवर्तन कर खेलों को उसके पाठ्यक्रम की अनिवार्य अंग बनाने की भी आवश्यकता है। इनकी परीक्षा की भी उचित प्रणाली और प्रक्रिया विकसित की जानी चाहिए। बस्तियों के शोर-शराबे और घुटनभरे माहौल से शिक्षालयों को दूर, साफ-सुथरे, शान्त और स्वस्थ वातावरण में ले जाए जाने की भी बहुत बड़ी आवश्यकता है। व्यक्तित्व के सम्पूर्ण एवं समग्र विकास का शिक्षा का जो दायित्व है, उसकी पूर्ति तभी सम्भव हो सकेगी। समस्त विश्व ने इस वास्तविकता को स्वीकार किया है तथा प्रत्येक देश में खेलकूद शिक्षा का अनिवार्य अंग बन गये हैं। हमारे देश में इस दिशा में कार्य बहुत कम हुआ है। बाल-विद्यालयों में भी खेलकूद की व्यवस्था का अभाव है। देश की भावी पीढ़ी को सुयोग्य, सुशिक्षित और विकासोन्मुख बनाने के लिए शिक्षा और खेलकूद में समन्वय का होना अत्यावश्यक है।

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