UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 4 हिमालयः

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 4
Chapter Name हिमालयः
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi संस्कृत दिग्दर्शिका Chapter 4 हिमालयः

Sanskrit Class 11 Chapter 4 अवतरणों का ससन्दर्भ अनुवाद

Class 11 Hindi Sanskrit Chapter 4 (1)
भारतदेशस्य …………………… प्रान्तरे तिष्ठति।

भारतदेशस्य ……………………. प्रदेशाः च सन्तिः ।
भारतदेशस्य …………………….. नाम सुप्रसिद्धम्।
भारतदेशस्य ………………….. उन्नततमानि सन्ति।

[नाम्नाभिधीयते (नाम्ना +अभिधीयते) = नाम से पुकारा जाता है। हिमगिरिरित्यपि (हिमगिरिः + इति + अपि) – हिमगिरि भी। उन्नतानि = ऊँची। आच्छादितानि = ढकी हुई। प्रभृतीनि = इत्यादि। उन्नततमानि – सबसे ऊँचे। अधित्यका = पर्वत के ऊपर की समतल भूमि, पठार। त्रिविष्टप-तिब्बत प्रान्तरे = भूभाग में, प्रदेश में।]

सन्दर्भ – यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के ‘हिमालयः’ शीर्षक पाठ से अवतरित है।
[ विशेष—इस पाठ के अन्य सभी अवतरणों में यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।]

अनुवाद – भारत देश की अत्यन्त विस्तृत उत्तर दिशा में विद्यमान् पर्वत को लोग ‘पर्वतराज हिमालय’ के नाम से पुकारते हैं। इसकी बहुत ऊँची चोटियाँ संसार के सारे पर्वतों को जीतती हैं; इसी कारण लोग इसे पर्वतों की । राजा कहते हैं। इसकी ऊँची चोटियाँ सदा बर्फ से ढकी रहती हैं, इसलिए यह ‘हिमालय’ (हिम + आलय = बर्फ का घर) या ‘हिमगिरि’ (हिम + गिरि = बर्फ का पहाड़) के नाम से भी सुप्रसिद्ध है। इसके ‘एवरेस्ट’, ‘गौरीशंकर’ जैसे शिखर संसार में सबसे ऊँचे हैं। इसके ऊपरी समतल भाग में (पठार पर) तिब्बत, नेपाल, भूटान पूर्ण सत्तासम्पन्न देश हैं, (और) कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, असम, सिक्किम, मणिपुर जैसे भारतीय प्रदेश हैं। उत्तर भारत का पर्वतीय भाग (गढ़वाल, कुमाऊँ आदि) भी हिमालय के ही अन्तर्वर्ती भू-भाग में ( श्रेणियों के मध्य) स्थित है।

Himalaya Sanskrit Class 11 (2)
अयं पर्वतराजः …………………….. कुर्वन्ति।

(उत्तरसीम्नि-उत्तरी सीमा पर। प्रहरीव (प्रहरी +इव) – पहरेदार के समान समुदगम्य = निकलकर। स्वकीयैः = अपने। तीर्थोदकैः (तीर्थ + उदकैः) – पवित्र जलों से। पुनन्ति = पवित्र करती है। शस्यश्यामलाम = धनधान्य से परिपूर्ण।]

अनुवाद – यह पर्वतराज (अर्थात् पर्वतों का राजा) भारतवर्ष की उत्तरी सीमा पर स्थित प्रहरी के सदृश शत्रुओं से निरन्तर उसकी रक्षा करता है। हिमालय से ही गङ्गा, सिन्धु, ब्रह्मपुत्र नामक महानदियाँ (तथा) शतद्रु (सतलज), विपाशा (व्यास), यमुना, सरयू, गण्डकी (गण्डक), नारायणी, कौशिकी (कोसी) जैसी नदियाँ भारत की समस्त उत्तर भूमि को अपने पवित्र जल से न केवल पवित्र करती हैं, अपितु इसे धनधान्य से सम्पन्न (हरा-भरा) भी करती हैं।

Sanskrit Digdarshika Class 11 Chapter 4 (3)
अस्योपत्यकासु ……………………. प्रवर्तयति।।

अस्योपत्यकासु (अस्य + उपत्यकासु) =इसकी तलहटी (निम्न भू-भाग) में। वनराजयः = वन समूह (राजि – पंक्ति)| वनस्पतयश्तरवश्च (वनस्पतयः +तरवः +च) = वनस्पतियाँ और वृक्ष। आमयेभ्यो = रोगों से (आमय = रोग)| तरवः (तरु का बहुवचन) = वृक्ष। आसन्यादिगृहोपकरण- निर्माणार्थम (आसन्दी +आदि +गृह +उपकरण + निर्माण +अर्थम्) = कुर्सी आदि घरेलू सामान बनाने के लिए। वर्ष (वर्षा + ऋतौ) = वर्षा ऋतु में। अवरुध्य = रोककर।]

अनुवाद – इसकी तलहटी में विशाल वनसमूह सुशोभित हैं, जहाँ अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियाँ, वनस्पतियाँ और वृक्ष हैं। ये जड़ी-बूटियाँ लोगों की रोगों से रक्षा करती हैं और वृक्ष कुर्सी आदि घरेलू सामान बनाने में प्रयुक्त होते हैं। हिमालय वर्षा ऋतु में दक्षिणी समुद्र से उठने वाले बादलों को रोककर उन्हें बरसने के लिए प्रेरित करता है।

Class 11 Sanskrit Chapter 4 (4)
अस्योपत्यकायां …………………. भ्रमणाय आकर्षन्ति ।

अस्योपत्यकायां ……………………… अभिधीयते।
अस्योपत्यकासु ……………………… प्रसिद्ध आसीत्।
अस्योपत्यकायां ……………………… मनो न हति।

[ स्वकीयाभिः = अपनी। सुषमाभिः — सुन्दरता से। संज्ञया = नाम से। अभिहितः भवति = पुकारा जाता है। ततश्च (ततः + च) पूर्वस्यां – और उससे पूर्व (दिशा) में। ग्रीष्मत (ग्रीष्म +ऋतौ) = ग्रीष्म ऋतु में। बलादिव (बलात् +इव) = बलपूर्वक-सा। एभ्योऽपि (एभ्यः +अपि) = इनके भी। भागेऽवस्थितः (भागे + अवस्थितः) – भाग में स्थित कामरूपतया – इच्छानुसार रूप धारण करने के कारण, सुन्दरता के कारण। कामरूप = असम का एक जिला, जहाँ कामाख्या देवी का मन्दिर है।

अनुवाद – इसकी तलहटी (घाटी) में स्थित कश्मीर प्रदेश अपनी शोभा के कारण संसार में ‘पृथ्वी के स्वर्ग के नाम से पुकारा जाता है और उससे पूर्व दिशा में स्थित ‘किन्नर देश’ प्राचीन साहित्य में ‘देवभूमि’ (देवताओं का निवास-स्थान) नाम से प्रसिद्ध था। आज भी ‘कुलू घाटी’ के नाम से प्रसिद्ध यह प्रदेश अपनी सुन्दरता से किसका मन नहीं हरता है। शिमला, देहरादून, मसूरी, नैनीताल जैसे नगर ग्रीष्म ऋतु में देश के धनी लोगों को घूमने के लिए बलपूर्वक अपनी ओर खींचते हैं (अर्थात् देश के धनवान् लोग इसके सौन्दर्य पर आकर्षित होकर ही यहाँ घूमने के लिए आते हैं)। इनसे और भी पूर्व में स्थित सर्वाधिक सुन्दर प्रदेश अपने इच्छानुसार रूप धारण करने के कारण कामरूप’ नाम से पुकारा जाता है।

विशेष – असम का ‘कामरूप जिला प्राचीनकाल से ही अपने जादू-टोने के लिए प्रसिद्ध रहा है। लोगों का विश्वास था कि वहाँ के तन्त्र-मन्त्र विशेषज्ञ किसी भी व्यक्ति को किसी भी रूप (भेड़, बकरी आदि) में बदल सकते थे। इसी कारण इसका नाम ‘कामरूप’ (काम = इच्छानुसार + रूप = रूप धारण कर सकने वाला) पड़ गया।

संस्कृत दिग्दर्शिका क्लास 11 Chapter 4 (5)
अस्यैव कन्दरासु …………………. पर्वतराजः इति।

अस्यैव कन्दरासु ………………… तीर्थस्थानानि सन्ति।
अस्यैव कन्दरासु ………………………. स्वीकृतमस्ति ।

[ अस्यैव (अस्य+एव) इसकी ही। कन्दरासु-गुफाओं में। तपस्यन्तः -तप करते हुए सिद्धिमत्वम् – सिद्धि देने वाली शक्ति को। विलोक्यैव (विलोक्य +एव) = देखकर ही। उपल्लरे = गुफा में। गिरीणाम् = पर्वतों की। धिया = बुद्धि से (युक्त)| विप्रोऽजायत (विप्रः +अजायत) = ब्राह्मण हुए। प्रदातुः- देने वाले का। सुतराम् = अत्यधिक समादृतः = सम्मानित। ]

अनुवाद – इसकी गुफाओं में तप करते हुए अनेक ऋषियों और मुनियों ने परम सिद्धि प्राप्त की। इसकी सिद्धि देने की क्षमता को देखकर ही ‘पर्वतों की गुफा में और नदियों के संगम पर ब्राह्मणों (ब्रह्मप्राप्ति के इच्छुक साधकों) ने बुद्धत्व (ज्ञान) प्राप्त किया ऐसा कहते हुए वैदिक ऋषियों ने इसके महत्त्व को स्वीकार किया। पुराणों में सब प्रकार की सिद्धियाँ देने वाले शिव का स्थान इसी पर्वत के कैलास शिखर पर माना गया है।
इसी के प्रदेशों में बदरीनाथ, केदारनाथ, पशुपतिनाथ, हरिद्वार, ऋषिकेश, वैष्णव देवी, ज्वाला देवी आदि तीर्थस्थल हैं। इसलिए यह पर्वतराज हिमालय रक्षक, पालक, समस्त ओषधियों का संरक्षक तथा सभी सिद्धियों का प्रदाता होने से भारतवासियों में ‘पर्वतराज’ (पर्वतों का राजा) के नाम से अति आदर को प्राप्त है।

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