UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi हिन्दी-संस्कृत अनुवाद are part of UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi . Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi हिन्दी-संस्कृत अनुवाद.
Board | UP Board |
Textbook | NCERT |
Class | Class 11 |
Subject | Sahityik Hindi |
Chapter | Chapter 1 |
Chapter Name | हिन्दी-संस्कृत अनुवाद |
Category | UP Board Solutions |
UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi हिन्दी-संस्कृत अनुवाद
हिन्दी-संस्कृत अनुवाद
नवीनतम पाठ्यक्रम के अनुसार इस खण्ड से परीक्षा में किन्हीं चार हिन्दी वाक्यों को संस्कृत में अनुवाद करने के लिए कहा जाता है, जिसके लिए कुल 4 अंक निर्धारित हैं।
हिन्दी के वाक्य को संस्कृत में परिवर्तित करने के लिए दोनों भाषाओं के मूलभूत नियमों की जानकारी अत्यावश्यक है। हिन्दी वस्तुतः संस्कृत का ही परवर्ती विकास है, इसलिए दोनों भाषाओं की शब्द-रचना में विशेष अन्तर नहीं है। कुछ मुख्य अन्तर निम्नवत् हैं
(1) वचन एवं लिङ्ग – हिन्दी में दो वचन (एकवचन और बहुवचन) होते हैं। संस्कृत में द्विवचन भी होने के कारण वचन तीन हैं। इसी प्रकार हिन्दी में दो ही लिङ्ग (पुंल्लिङ्ग, स्त्रीलिङ्ग) होते हैं, संस्कृत में नपुंसकलिङ्ग भी होने के कारण तीन लिङ्ग होते हैं।
(2) पुरुष – संस्कृत में तीन पुरुष होते हैं
(क) प्रथम पुरुष – जिसके सम्बन्ध में बात की जाती है; जैसे – सः (वह), तौ (वे दोनों), ते (वे सब)
(ख) मध्यम पुरुष – जिससे बात की जाती है; जैसे – त्वम् (तुम), युवाम् (तुम दोनों), यूयम् (तुम सब)।
(ग) उत्तम पुरुष – बात करने वाला स्वयं; जैसे – अहम् (मैं ), आवाम् (हम दोनों), वयम् (हम सब)।।
(3) विशेषण – संस्कृत में विशेषण सदा विशेष्य के लिङ्ग तथा वचन का अनुगमन करता है, जब कि हिन्दी में संस्कृत से आये विशेषणों के सन्दर्भ में ऐसा नहीं होती; जैसे
सुन्दर बालक। सुन्दर बालिका। सुन्दर पुस्तक। परन्तु हिन्दी के अपने विशेषण विशेष्य के लिङ्गानुसार बदल जाते हैं; जैसे
काला घोड़ा। काली घोड़ी। |
काले घोड़े। काली घोड़ियाँ।
उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि हिन्दी के अपने विशेषण पुंल्लिङ्ग विशेष्य के वचन (एकवचन, बहुवचन) को भी सूचित करते हैं, पर स्त्रीलिङ्ग विशेष्य के साथ सदा एकवचनान्त ही रहते हैं, उसके बहुवचन को सूचित नहीं करते; जैसे – काली घोड़ियाँ।
संस्कृत से तुलना करने पर तो स्थिति निम्नवत् प्राप्त होती है
रूप ही सम्भव हैं, संस्कृत के समान ये समस्त विभक्तियों (कारकों) में भिन्न-भिन्न नहीं होते।।
(4) लकार – संस्कृत में प्रमुख लकार पाँच होते हैं, जो विभिन्न भावों को सूचित करते हैं
(क) लट् लकार (वर्तमान काल)।
(ख) लङ् लकार ( भूत काल)।
(ग) लृट् लकार (भविष्यत् काल)।
(घ) लोट् लकार (आज्ञासूचक)।
(ङ) विधिलिङ् लकार (विध्यर्थ, चाहिए, सम्भावना, शक्ति-प्रदर्शन के अर्थ में)।
(5) कारक और विभक्तियाँ – संस्कृत में मोटे तौर पर आठ कारक और सात विभक्तियाँ मानी जाती हैं, किन्तु वास्तव में कारक छ: ही होते हैं। षष्ठी और सम्बोधन को संस्कृत में कारक नहीं माना जाता। ये कारक
और विभक्तियाँ निम्नवत् हैं ।
(6) कर्ता, क्रिया और धातु – क्रिया के करने वाले को कर्ता कहते हैं; जैसे-रामः पठति। इस वाक्य में ‘रामः’ कर्ता है। जिससे किसी काम को करना या होना जाना जाता है, उसे क्रिया कहते हैं; जैसे – रामः पठति। इस वाक्य में ‘पठति’ क्रिया है। क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं; जैसे-‘पठति क्रिया में ‘पद्’ धातु है।
अनुवाद के सामान्य नियम
हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद करते समय सर्वप्रथम कर्ता पर ध्यान देना चाहिए कि कर्ता किस वचन तथा किस पुरुष में है। हम जानते हैं कि संस्कृत में तीन पुरुष और तीन वचन होते हैं। इस प्रकार कुल नौ कर्ता हुए। मध्यम पुरुष और उत्तम पुरुष के कर्ता निश्चित होते हैं अर्थात् ये कभी नहीं बदलते। शेष समस्त कर्ता प्रथम पुरुष के अन्तर्गत आते हैं। निम्नलिखित तालिका को ध्यानपूर्वक पढ़िए
कर्ता जिस वचन का होगा, क्रिया भी उसी वचन की होगी। हम जानते हैं कि संस्कृत में पाँच लकारों का प्रयोग किया जाता है, जो पाँचों कालों की क्रिया के लिए प्रयुक्त होते हैं। इस प्रकार प्रत्येक लकार की क्रिया के पुरुष और वचन के अनुसार नौ रूप होते हैं, जिनका प्रयोग कर्ता की स्थिति के अनुसार किया जाता है।
लट् लकार (वर्तमान काल)
लङ् लकार (भूत काल)
लृट् लकार (भविष्यत् काल)
लोट् लकार (आज्ञासूचक)
विधिलिङ् लकार (‘चाहिए’ अर्थ में)
संस्कृत में अव्यय सदा अपरिवर्तित रहते हैं; उदाहरणार्थ-अकस्मात्, अतः, अतीव, अत्र, अद्य, अधुना (अब), एव (ही), अलम् (बस), इदानीम् (अब) आदि अव्यय हैं। वाक्य में ये सर्वदा इसी रूप में प्रयुक्त होंगे। संस्कृत में कुछ शब्दों के साथ विभक्ति विशेष का ही प्रयोग होता है, जो हिन्दी से भिन्न है। उदाहरणार्थ हिन्दी में कहते हैं-‘मैं उसके साथ जाऊँगा’ पर संस्कृत में ‘अहं तेन सह गमिष्यामि’ ही कहेंगे अर्थात् ‘सह अव्यय के साथ तृतीया विभक्ति का ही प्रयोग होगा, जो ‘तेन’ सर्वनाम में है। इसी प्रकार विना’ अव्यय के साथ भी तृतीया का प्रयोग होगा; जैसे—’रामेण विना सः न गमिष्यति’ (राम के बिना वह नहीं जायेगा)। इसी प्रकार ‘दा (देना) क्रिया के साथ ग्रहीता (दी हुई वस्तु को लेने वाले) के लिए चतुर्थी का ही प्रयोग होगा, हिन्दी के समान कर्म कारक (द्वितीया विभक्ति) का नहीं; ‘वह बालक को पुस्तक देता है’ के लिए संस्कृत में ‘स: बालकाय पुस्तकं ददाति ही होगा। ये सभी नियम सतत अभ्यास से ही सीखे जा सकते हैं। विभक्तियों के ज्ञान के लिए ‘विभक्ति परिचय’ प्रकरण का विधिवत् अध्ययन करें।
उपर्युक्त सभी बातों को ध्यान रखकर अनुवाद करने से अनुवाद शुद्ध होगा।
विभक्तियों के अनुसार अनुवाद
प्रथमा विभक्ति (कर्ता कारक)
द्वितीया विभक्ति (कर्म कारक)
तृतीया विभक्ति (करण कारक)
चतुर्थी विभक्ति (सम्प्रदान कारक)
पञ्चमी विभक्ति (अपादान कारक)
षष्ठी विभक्ति (सम्बन्ध कारक)
सप्तमी विभक्ति (अधिकरण कारक)
अभ्यास
निम्नलिखित वाक्यों के संस्कृत में अनुवाद कीजिए
-
- वन्दना पुस्तक पढ़ती है।
- राम फल खाता है।
- वे दोनों खेलते हैं।
- हम सब गाना गाते हैं।
- तुम हँस रहे थे।
- उसने नाटक देखा।
- वे सब पाठ याद करेंगे।
- तुम दोनों निबन्ध लिखोगे।
- शीला खाना पकाये।
- रमेश स्कूल जाए।
- उसे परीक्षा की तैयारी करनी चाहिए।
- हमें बड़ों का आदर करना चाहिए।
- महिमा स्कूल जाती है।
- तुम्हें दूध पीना चाहिए।
- वे बाण से मृग को मारेंगे।
- हाथी ने सँड़ से पानी पीया।
- विद्या विनय के लिए होती है।
- गुरुजी को नमस्कार।
- चूहा बिल से निकलता है।
- कुसुम स्कूल से आयी।
- गुलाब का फूल सफेद है।
- तुम्हारा क्या नाम है?
- जल में मछली रहती है।
- उपवन में पेड़ हैं।।
पाठ्य-पुस्तक ‘संस्कृत दिग्दर्शिका’ के पाठों से सम्बद्ध अनुवाद
निम्नलिखित वाक्यों की संस्कृत में अनुवाद कीजिए
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