UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 4 आलोकवृत्त

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 4
Chapter Name आलोकवृत्त (गुलाब खण्डेलवाल)
Number of Questions 6
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 4 आलोकवृत्त (गुलाब खण्डेलवाल)

प्रश्न 1:
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की कथावस्तु संक्षेप में बताइए।
या
‘आलोकवृत्त की कथावस्तु (कथानक) पर प्रकाश डालिए।
या
‘आलोकवृत्त’ का कौन-सा सर्ग आपको सर्वोत्तम प्रतीत होता है और क्यों ? सोदाहरण समझाइए।
या
‘आलोकवृत्त’ के चतुर्थ सर्ग का सारांश लिखिए।
या
‘आलोकवृत्त के आधार पर महात्मा गांधी के जीवनवृत्त की किसी प्रमुख घटना का वर्णन कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर सन् 1942 ई० की जनक्रान्ति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
या
‘आलोकवृत्त’ काव्य में वर्णित स्वतन्त्रता-प्राप्ति की प्रमुख घटनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ के तृतीय सर्ग के आधार पर गांधी जी के अफ्रीका-प्रवास के जीवन पर प्रकाश डालिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के सप्तम सर्ग का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के द्वितीय सर्ग के आधार पर गांधी जी का जीवन-परिचय प्रस्तुत कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ के आधार पर स्वाधीनता की ऐतिहासिक यात्रा की संक्षिप्त समीक्षा कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर देश के स्वतन्त्रता संग्राम में गांधी जी के योगदान का वर्णन कीजिए।
या
” ‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य आधुनिक भारत के महान संघर्ष का जीता-जागता सच्चा इतिहास है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की पंचम एवं षष्ठ सर्ग की कथा पर प्रकाश डालिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य में वर्णित प्रमुख घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
“आलोकवृत्त’ के कथानक में आठ सर्ग हैं, जिनकी कथावस्तु संक्षेप में निम्नलिखित है

प्रथम सर्ग : भारत का स्वर्णिम अतीत

प्रथम सर्ग में कवि ने भारत के अतीत के गौरव तथा तत्कालीन पराधीनता का वर्णन किया है। कवि ने बताया है। कि भारत वेदों की भूमि रही है। भारतवर्ष ने ही संसार को सर्वप्रथम ज्ञान की ज्योति दी थी, किन्तु दुर्भाग्यवश एक समय ऐसा आया कि भारतवासी यह भूल गये कि हम कितने गौरवमण्डित थे ? इसका परिणाम यह हुआ कि भारतवर्ष सैंकड़ों वर्ष तक दासता की बेड़ियों में जकड़ा रहा। सन् 1857 ई० की क्रान्ति के पश्चात् गुजरात के ‘पोरबन्दर’ नामक स्थान पर एक दिव्य ज्योतिर्मय विभूति मोहनदास करमचन्द गांधी के रूप में प्रकट हुई, जिसने हमें विदेशियों की दासता से मुक्त करवाया।

द्वितीय सर्ग : गांधी जी का प्रारम्भिक जीवन

द्वितीय सर्ग में गांधी जी के जीवन के क्रमिक विकास पर प्रकाश डाला गया है। वे बचपन में कुसंगति में फैंस गये थे, किन्तु शीघ्र ही उन्होंने अपने पिता के समक्ष अपनी त्रुटियों पर पश्चात्ताप किया और दुर्गुणों को सदैव के लिए छोड़ने की प्रतिज्ञा की और आजीवन उसका निर्वाह किया। इसके बाद कस्तूरबा के साथ गांधी जी का विवाह हुआ। इसके कुछ समय बाद उनके पिताजी का देहान्त हो गया। वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैण्ड गये। उनकी माँ ने विदेश में रहकर मांस-मदिरा का प्रयोग न करने के लिए समझाया

मद्य-मांस-मदिराक्षी से बचने की शपथ दिलाकर।
माँ ने तो दी विदा पुत्र को मंगल तिलक लगाकर।।

इंग्लैण्ड में सात्त्विक जीवन व्यतीत करते हुए भी वे एक दिन एक कलुषित स्थान पर पहुँच गये, लेकिन उन्होंने अपने चरित्र को कलुषित होने से बचा लिया। वहाँ से वे बैरिस्टर बनकर भारत लौटे। भारत आने पर उन्हें उनकी माता के देहान्त का दुःखद समाचार मिला। यहीं पर द्वितीय सर्ग की कथा समाप्त हो जाती है।

तृतीय सर्ग : गांधी जी का अफ्रीका-प्रवास

तृतीय सर्ग में गांधी जी के अफ्रीका में निवास का वर्णन है। एक बार रेलगाड़ी में यात्रा करते समय एक गोरे अंग्रेज ने उन्हें काला होने के कारण अपमानित करके रेलगाड़ी से नीचे उतार दिया। रंगभेद की इस कुटिल नीति से गांधी जी के हृदय को बहुत दु:ख पहुँचा। वे भारतीयों की दुर्दशा से चिन्तित हो उठे। यहाँ पर कवि ने गांधी जी के मन में उत्पन्न अन्तर्द्वन्द्व का बड़ा सुन्दर चित्रण किया है। गांधी जी ने सत्य और अहिंसा का सहारा लेकर असत्य और हिंसा का सामना करने का दृढ़ निश्चय किया। अपनी जन्मभूमि से दूर विदेश की भूमि पर उन्होंने मानवता के उद्धार का प्रण लिया

पशु-बल के सम्मुख आत्मा की शक्ति जगानी होगी।
मुझे अहिंसा से हिंसा की आग बुझानी होगी।

सत्य और अहिंसा के इस मार्ग को उन्होंने सत्याग्रह का नाम दिया। गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में सैकड़ों सत्याग्रहियों का नेतृत्व किया। दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष-समाप्ति के साथ ही तृतीय सर्ग समाप्त हो जाता है।

चतुर्थ सर्ग : गांधी जी का भारत आगमन

चतुर्थ सर्ग में गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट आते हैं। भारत आकर गांधी जी ने लोगों को स्वतन्त्रता प्राप्त करने हेतु जाग्रत किया। उन्होंने साबरमती नदी के तट पर अपना आश्रम बनाया। अनेक लोग गांधी जी के अनुयायी हो गये, जिनमें डॉ० राजेन्द्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, विनोबा भावे, ‘राजगोपालाचारी’, सरोजिनी नायडू, ‘दीनबन्धु’, मदनमोहन मालवीय, सुभाषचन्द्र बोस आदि प्रमुख थे। अंग्रेज देश की जनता पर भारी अत्याचार कर रहे थे। गांधी जी ने चम्पारन में नील की खेती को लेकर आन्दोलन आरम्भ किया; जिसमें वे सफल हुए। एक अंग्रेज द्वारा अपनी पत्नी के हाथों गांधी जी को विष देने तक का प्रयास किया गया, परन्तु वह स्त्री गांधी जी के दर्शन कर ऐसा ने कर सकी। इसके विपरीत उन दोनों को हृदय-परिवर्तन हो गया। इसी सर्ग में ‘खेड़ा-सत्याग्रह का वर्णन भी हुआ है। कवि ने इस सत्याग्रह में सरदार वल्लभभाई पटेल को चरित्र-चित्रण विशेष रूप से किया है।

पंचम सर्ग : असहयोग आन्दोलन

इस सर्ग में कवि ने यह चित्रित किया है कि गांधी जी के नेतृत्व में स्वाधीनता आन्दोलन निरन्तर बढ़ता गया। अंग्रेजों की दमन-नीति भी बढ़ती गयी। गांधी जी के नेतृत्व में स्वतन्त्रता-प्रेमियों का समूह नागपुर पहुँचता है। नागपुर के कांग्रेस-अधिवेशन में गांधी जी के ओजस्वी भाषण ने भारतवर्ष के लोगों में नयी स्फूर्ति भर दी, किन्तु अंग्रेजों की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति ने हिन्दुओं-मुसलमानों में साम्प्रदायिक दंगे करवा दिये। गांधी जी को बन्दी बना लिया गया। उन्होंने सत्याग्रह का कार्यक्रम स्थगित कर दिया। कारागार से छूटने के बाद उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता, शराब-मुक्ति, हरिजनोत्थान, खादी-प्रचार आदि रचनात्मक कार्यों में अपना सम्पूर्ण समय लगाना आरम्भ कर दिया। हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए गांधी जी ने इक्कीस दिनों का उपवास रखा

आत्मशुद्धि का यज्ञ कठिन, यह पूरा होने को जब आया।
बापू ने इक्कीस दिनों के, अनशन का संकल्प सुनाया।

फिर लाहौर में पूर्ण स्वतन्त्रता के प्रस्ताव के साथ ही पाँचवाँ सर्ग समाप्त हो जाता है।

षष्ठ सर्ग : नमक सत्याग्रह

इस सर्ग में गांधी जी द्वारा चलाये गये नमक-सत्याग्रह का वर्णन हुआ है। गांधी जी ने समुद्रतट पर बसे ‘डाण्डी नामक स्थान की पैदल यात्रा 24 दिनों में पूरी की। नमक आन्दोलन में हजारों लोगों को बन्दी बनाया गया। अंग्रेज सरकार ने लन्दन में ‘गोलमेज सम्मेलन बुलाया, जिसमें गांधी जी को आमन्त्रित किया गया। इसके परिणामस्वरूप सन् 1937 ई० में ‘प्रान्तीय स्वराज्य की स्थापना हुई। इसके साथ ही षष्ठ सर्ग समाप्त हो जाता है।

सप्तम सर्ग : सन् 1942 की जनक्रान्ति

द्वितीय विश्वयुद्ध आरम्भ हो गया। अंग्रेज सरकार भारतीयों का सहयोग तो चाहती थी, किन्तु उन्हें पूर्ण अधिकार देना नहीं चाहती थी। क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद 1942 ई० में गांधी जी ने अंग्रेजो भारत छोड़ो’ का नारा दिया। सम्पूर्ण देश में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी। इसका वर्णन कवि ने बड़े ही सजीव रूप से किया है

थे महाराष्ट्र-गुजरात उठे, पंजाब-उड़ीसा साथ उठे।
बंगाल इधर, मद्रास उधर, मरुथल में थी ज्वाला घर-घर ॥

कवि ने इस आन्दोलन का वर्णन अत्यधिक ओजस्वी भाषा में किया है। बम्बई अधिवेशन के बाद गांधी जी सहित सभी भारतीय नेता जेल में डाल दिये जाते हैं। पूरे देश में इसकी विद्रोही प्रतिक्रिया होती है। कवि के शब्दों में,

जब क्रान्ति लहर चल पड़ती है, हिमगिरि की चूल उखड़ती है।
साम्राज्य उलटने लगते हैं, इतिहास पलटने लगते हैं।

इस सर्ग में कवि ने गांधी जी एवं कस्तूरबा के मध्य हुए एक वार्तालाप का भी भावपूर्ण चित्रण किया है जिसमें गांधी जी के मानवीय स्वभाव और कस्तूरबा की सेवा-भावना, मूक त्याग और बलिदान का सम्यक् निरूपण किया है।

अष्टम सर्ग : भारतीय स्वतन्त्रता का अरुणोदय

अष्टम सर्ग का आरम्भ भारत की स्वतन्त्रता से किया गया है। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् देशभर में हिन्दू-मुस्लिम-साम्प्रदायिक दंगे हो जाते हैं। गांधी जी को इससे बहुत दुःख हुआ। वे ईश्वर से प्रार्थना करते हैं

प्रभो ! इस देश को सत्पथ दिखाओ, लगी जो आग भारत में बुझाओ।
मुझे दो शक्ति इसको शान्त कर दें, लपट में रोष की निज शीश धर दें।

इस कल्याण-कामना के साथ ही यह खण्डकाव्य समाप्त हो जाती है।

प्रश्न 2:
कवि ने ‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की रचना सोद्देश्य की है। इस कथन को समझाइट।
या
” ‘आलोकवृत्त’ मनुष्य के जीवन में आशा और आस्था का आलोक विकीर्ण करता हुआ उसे मानवता के उच्चतम शिखरों की ओर उन्मुख करता है।” इस कथन की सार्थकता सोदाहरण सिद्ध कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य का सन्देश अपने शब्दों में लिखिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य का उद्देश्य महात्मा गांधी के आदर्शों का निदर्शन है। प्रमाणित कीजिए।
या
“‘आलोकवृत्त’ में स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास की झाँकी के दर्शन होते हैं।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ में जीवन के श्रेष्ठ मूल्यों का उद्घोष है। सिद्ध कीजिए।
या
“‘आलोकवृत्त’ पीड़ित मानवता को सत्य और अहिंसा का शाश्वत सन्देश देता है।” इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं ?
या
“‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य में भारत के सांस्कृतिक-ऐतिहासिक इतिहास को वाणी दी गयी है।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
या
” ‘आलोकवृत्त में युग-युग तक मानवता को सत्य, प्रेम और अहिंसा के दिव्य सन्देश से अनुप्राणित करने की भावना है।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के उद्देश्य (सन्देश) को स्पष्ट कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य में वर्णित जीवन के अनुकरणीय मूल्यों पर अपने विचार उदाहरण सहित लिखिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य राष्ट्रीय चेतना का एक प्रतीक है। सिद्ध कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य का कथानक देश-प्रेम और मानव-कल्याण की भावना से ओत-प्रोत है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
या
” ‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य में ऐसे चिरंतन आदर्शों और सार्वभौम मूल्यों का प्रतिपादन है, जो मानव समाज को प्रेरणा देता है।” इस दृष्टि से ‘आलोकवृत्त’ पर अपना विचार प्रस्तुत कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य में वर्णित गांधी जी के मानसिक संघर्ष को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
शीर्षक की सार्थकता – कवि गुलाब खण्डेलवाल ने आलोकवृत्त’ में महात्मा गांधी के सदाचार एवं मानवता के गुणों से आलोकित व्यक्तित्व को चित्रित किया है। इस खण्डकाव्य का विषय, उद्देश्य एवं मूल भावना यही है। महात्मा गांधी के जीवन को हम आलोक स्वरूप कह सकते हैं, क्योंकि उन्होंने भारतीय संस्कृति की चेतना को अपने सद्गुणों एवं सविचारों से आलोकित किया है। विश्व में सत्य, प्रेम, अहिंसा आदि मानवीय भावनाओं का आलोक उनके द्वारा ही फैलाया गया; इसलिए उनके जीवन-वृत्त को ‘आलोक-वृत्त’ कहना युक्तियुक्त ही है। इस दृष्टिकोण से यह शीर्षक उपयुक्त है। यह शीर्षक महात्मा गांधी के जीवन, उनके चरित्र, गुणों, सिद्धान्तों एवं दर्शन को पूर्णरूपेण परिभाषित करने में सफल हुआ है। प्रत्येक साहित्यिक रचना के पीछे लेखक का कोई-न-कोई उद्देश्य अवश्य होता है। ‘आलोकवृत्त’ में भी कवि का उद्देश्य निहित है। इसका उद्देश्य या सन्देश निम्नवत् है

(1) स्वदेश-प्रेम की प्रेरणा – इस खण्डकाव्य का सर्वप्रथम उद्देश्य देशवासियों के हृदय में स्वदेश-प्रेम की भावना जाग्रत करना है। कवि ने भारत के गौरवमय अतीत का वर्णन कर लोगों को अपने महान् देश का । वास्तविक स्वरूप दिखाया है

जिसने धरती पर मानवता का, पहला जयघोष किया था।
बर्बर जग को सत्य-अहिंसा का, पावन सन्देश दिया था।

इस प्रकार कवि भारत के अतीत का वर्णन करके भारत की वर्तमान अधोगति के प्रति भारतीय जनता के हृदय में टीस, आक्रोश एवं चेतना जाग्रत करना चाहता है।

(2) सत्य-अहिंसा का महत्त्व – आलोकवृत्त के माध्यम से कवि ने सत्य और अहिंसा को प्रतिष्ठित किया है। कवि ने देश की स्वाधीनता हेतु सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देकर लोगों को श्रेष्ठ आचरणवान् बनने की शिक्षा दी है। कवि ने गांधी जी का उदाहरण प्रस्तुत करके यह सिद्ध किया है कि हम सत्य और अहिंसा के द्वारा अपने प्रत्येक संकल्प को पूरा कर सकते हैं

अहिंसा ने अजब जादू दिखाये।
विरोधी हैं खड़े कन्धा मिलाये ॥

(3) सहयोग एवं राष्ट्रीय एकता – कवि यह अनुभव करता है कि अंग्रेज शासकों ने हमारे देश में तरह-तरह की फूट डालकर देश को विघटित करने का प्रयास किया है। उसका मानना है कि हमारे देश की स्वतन्त्रता, एकता एवं सहयोग की भावना के आधार पर ही सुरक्षित रह सकती है। इसी को ध्यान में रखते हुए आलोकवृत्त’ खण्डकाव्यं में यह सन्देश दिया गया है कि हमें साम्प्रदायिक एवं प्रान्तीय भेदभाव को भूलकर राष्ट्र की एकता बनाये रखनी है

यदि मिलकर इस राष्ट्र-यज्ञ में, सब कर्तव्य निभायें अपना।
एक वर्ष में हो पूरा, मेरा रामराज्य का सपना ॥

(4) मानवमात्र का कल्याण – कवि ने मात्र भारत के ही कल्याण की कामना नहीं की है, वरन् वह तो सम्पूर्ण मानवता का कल्याण चाहता है

जुड़ता जब सम्बन्ध हृदय का, भेदभाव मिट जाता है।
देश-जाति रंगों से गहरा, मानवता का नाता है।

(5) मानवीय-मूल्यों की प्रतिष्ठा-आलोकवृत्त’ के रचनाकार का उद्देश्य यह रहा है कि सर्वत्र सत्य, प्रेम,
सदाचार, न्याय, सहिष्णुता आदि मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा हो; उदाहरणार्थ

प्रेम सृष्टि का मूल्य धर्म, चेतना का नियम सनातन ।
इसके कारण ही विनाश से, बचो आज तक जीवन ॥
X                          X                     X
लोकतन्त्र का रथ समता के, पहियों पर चलता है।

(6) त्याग तथा बलिदान की भावना का सन्देश – कवि का एक सन्देश देश के लिए त्याग एवं बलिदान से सम्बन्धित है। गांधी जी ने देश की स्वतन्त्रता के लिए बड़े से बड़ा बलिदान किया तथा अनेक कष्ट सहे। कवि ने गांधी जी के उदाहरण को प्रस्तुत करके देश के युवकों को देश के लिए त्याग एवं बलिदान का सन्देश दिया है।

(7) पवित्र साधन अपनाने का सन्देश – गांधी जी का विचार था कि उत्तम साध्यों की प्राप्ति के लिए पवित्र साधनों को ही अपनाना चाहिए। गांधी जी ने देश की स्वतन्त्रता के लिए प्रेम, सत्य तथा अहिंसा को ही साधन के रूप में अपनाया था। गांधी जी के जीवन के उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कवि ने प्रत्येक को केवल पवित्र साधनों को ही अपनाने का महान् सन्देश दिया है।
इस प्रकार आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य गांधी जी के जीवन-चरित को माध्यम बनाकर राष्ट्रप्रेम, सत्य, अहिंसा, परोपकार, न्याय, समता, सदाचार आदि की प्रेरणा देने के अपने उद्देश्य में पूर्णतः सफल रहा है।

प्रश्न 3:
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की कथावस्तु की समीक्षा कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ के संवाद-सौष्ठव की निदर्शना कीजिए।
या
खण्डकाव्य की दृष्टि से ‘आलोकवृत्त’ का मूल्यांकन कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ एक सफल खण्डकाव्य है। इस उक्ति की सप्रमाण पुष्टि कीजिए।
या
इतने बड़े कथानक को ‘आलोकवृत्त’ में समेटकर कवि ने अपनी प्रबन्ध पदता का परिचय दिया है। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
‘आलोकवृत्त’ की कथावस्तु भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित है। कवि ने कल्पना का पुट देकर कथा को सरस तथा हृदयस्पर्शी बना दिया है। कवि ने भारत के अतीत के गौरव का स्मरण करते हुए तत्कालीन स्थिति का वर्णन किया है। आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की कथावस्तु की मुख्य विशेषताएँ निम्नवत् हैं

(1) प्रभावपूर्ण चित्रण और सुगठित घटनाक्रम – ‘आलोकवृत्त’ की कथावस्तु के माध्यम से कवि ने भारतीय स्वाधीनता संग्राम का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत किया है। आरम्भ के चार सर्गों में स्वाधीनता-आन्दोलन की पृष्ठभूमि तैयार की गयी है और अन्तिम चार सर्गों में दक्षिण अफ्रीका से गांधी जी के भारत-आगमन, स्वतन्त्रता-आन्दोलन, स्वतन्त्रता-प्राप्ति और स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में हुए साम्प्रदायिक दंगों का इतिहास रोचक शैली में कलात्मक रूप से प्रस्तुत किया है।

(2) सफल चरित्रांकन : गांधी जी की जीवनी – आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य वास्तव में गांधी जी की संक्षिप्त जीवन-कथा है। कवि ने गांधी जी के जन्म; शैशवकालीन घटनाओं; पिता की मृत्यु; कस्तूरबा से विवाह; इंग्लैण्ड-यात्रा; दक्षिण अफ्रीका से स्वदेश लौटना; चम्पारन-खेड़ा सत्याग्रह; कलकत्ता, कानपुर, लाहौर के कांग्रेस-अधिवेशन; नमक सत्याग्रह; गोलमेज सम्मेलन; 1942 ई० में भारत छोड़ो आन्दोलन; कस्तूरबा की मृत्यु; साम्प्रदायिक संघर्ष; इक्कीस दिनों का अनशन तथा स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद गांधी जी के मन की चिन्ता का क्रमबद्ध वर्णन प्रस्तुत किया है। वास्तव में यह गांधी जी की काव्यात्मक संक्षिप्त जीवनी है।

(3) कथा-संगठन – आलोकवृत्त’ का आरम्भ भारत के गौरवमये अतीत से होता है। इसके साथ ही । गांधीकालीन भारत की दुर्दशा का वर्णन किया गया है, जो बहुत ही प्रेरणाप्रद है। गांधी जी का शिक्षा ग्रहण करने इंग्लैण्ड जाना; वहाँ से बैरिस्टर बनकर दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह करना तथा तत्पश्चात् कथा का उतारे दिखाया गया है। इसके बाद भारतवर्ष तथा विश्व की मंगल-कामना के साथ कथावस्तु का अन्त हो जाता है।

विषमता, फूट, मिथ्याचार भागे, सभी का हो उदय, नव ज्योति जागे।
विजित हों प्यार से तक्षक विषैले, दयामय! विश्व में सद्भाव फैले ॥

इस प्रकार कथावस्तु पाँचों कार्यावस्थाओं की दृष्टि से पूर्ण सफल है।
खण्डकाव्य के शिल्प के अनुसार ‘आलोकवृत्त’ को आठ सर्गों में विभक्त किया गया है। सर्गों का क्रम कवि की रचनात्मक प्रतिभा का द्योतक है। कवि ने इस खण्डकाव्य में महात्मा गांधी के समग्र जीवन-वृत्त को इस रूप में चित्रित किया है कि भारतीय स्वतन्त्रता-संग्राम के पूरे इतिहास के साथ-साथ गांधी जी के सत्य और अहिंसा के सिद्धान्त भी पूरी तरह प्रतिपादित होते हैं।

(4) संवाद-योजना – कथावस्तु के विस्तार के कारण इस खण्डकाव्य में संवाद-योजना को प्रमुखता प्रदान नहीं की गयी है। यद्यपि यह खण्डकाव्य प्रधान रूप से वर्णनात्मक ही है; तथापि विभिन्न स्थानों पर महात्मा गांधी के संक्षिप्त संवाद भी प्रस्तुत किये गये हैं। कुछ अन्य पात्रों द्वारा भी संवादों का प्रयोग हुआ है, किन्तु इसे नगण्य ही कहा जाएगा।

(5) पात्र एवं चरित्र-चित्रण – आलोकवृत्त’ में गांधी जी का चरित्र धीरोदात्त नायक के रूप में विकसित हुआ है। यद्यपि उनमें मानवोचित दुर्बलताएँ हैं; परन्तु अपनी ईमानदारी, सरलता, सत्यनिष्ठा और लगन के बल पर वे उन दुर्बलताओं पर सहज विजय प्राप्त कर लेते हैं। गांधी जी में दम्भ और पाखण्ड का लेशमात्र अंश भी नहीं है। वे अपने प्रेम से विरोधियों तक के हृदय को जीत लेते हैं। मानवता में उनकी अखण्ड आस्था है और इसी आस्था के बल पर वे देश, जाति और भेदभाव पर आधारित सीमाओं का अतिक्रमण करके मानव-एकता को प्रतिष्ठित करते हैं। मानव-हृदय की एकता और सभी के प्रति पारस्परिक समानता का भाव उनके अहिंसा-सिद्धान्त की आधारशिला है। इस प्रकार प्रस्तुत खण्डकाव्य में गांधी जी को चरितनायक बनाकर उनके प्रेरणाप्रद विचारों को वाणी दी गयी है। अन्य पात्रों का समावेश नायक के चरित्र पर प्रकाश डालने हेतु प्रसंगवश ही किया गया है। वे कवि के उद्देश्य को अभिव्यक्ति देने में सहायकमात्र हैं।

(6) वर्णन में भावात्मकता – आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की कथावस्तु का आरम्भ बड़ा ही रोचक है। मध्य की घटनाएँ कौतूहल बढ़ाने वाली हैं। कथा का अन्त बड़ा ही मार्मिक एवं प्रभावशाली है। खण्डकाव्य के शिल्प के अनुसार ‘आलोकवृत्त’ की कथा वर्णनात्मक है। वर्णनात्मक स्थलों को भावात्मक स्वरूप प्रदान करने में कवि ने अपना पूरा-पूरा प्रयास किया है। मार्मिक स्थलों के चयन में कवि की प्रतिभा एवं सहृदयता भी पूर्णरूपेण परिलक्षित होती है।
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि आलोकवृत्त’ में गांधी जी जैसे महान् लोकनायक के गुणों को आधार बनाकर काव्य-रचना की गयी है। कथा की पृष्ठभूमि विस्तृत है, किन्तु कवि ने गांधी जी की चारित्रिक विशेषताओं को स्पष्ट करने हेतु आवश्यक प्रसंगों का चयनकर उसे इस प्रकार संगठित एवं विकसित किया है कि वह खण्डकाव्य के उपर्युक्त बन गयी है। गौण पात्रों का चित्रण नायक के चरित्र की विशेषताओं को प्रकाशित करने हेतु किया गया है। आदर्शपूर्ण भावनाओं की स्थापना हेतु रचित इस काव्य-ग्रन्थ में यद्यपि रसों एवं छन्दों की विविधता है; तथापि इससे खण्डकाव्य के उद्देश्य एवं उसके विधा सम्बन्धी तत्त्वों पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता। अतः इस काव्यग्रन्थ को एक आदर्श सफल खण्डकाव्य कहना उपयुक्त होगा।

प्रश्न 4:
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर गांधी जी की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के नायक (प्रमुख पात्र) गांधी जी का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ के आधार पर गांधी जी के जीवन और आदर्शों का उल्लेख कीजिए।
या
” ‘आलोकवृत्त’ में गांधी जी धीरोदात्त नायक और लोकनायक के रूप में चित्रित किये गये हैं।” इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? तर्कयुक्त उत्तर दीजिए।
या
” ‘आलोकवृत्त’ में गांधी जी का कृतित्व ही नहीं उनका जीवन-दर्शन और चिन्तन भी अभिव्यक्त हुआ है।” इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर गांधी जी के चरित्र की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के आधार पर गांधी जी के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवतु हैं

(1) सामान्य मानवीय दुर्बलताएँ – गांधी जी का आरम्भिक जीवन एक साधारण मनुष्य की भाँति मानवीय दुर्बलताओं वाला रहा है। उन्होंने एक बार अपने गुरु से छुपकर मांस-भक्षण किया था; उदाहरणार्थ

करने लगे मांस-भक्षण, गुरुजन की आँख बचाकर।।

किन्तु बाद में उन्होंने अपनी इन दुर्बलताओं पर अपनी आत्मिक शक्ति के बल पर पूर्ण विजय पा ली।

(2) देश-प्रेमी – आलोकवृत्त’ में गांधी जी के चरित्र की सर्वप्रथम विशेषता उनका देशप्रेम है। वे देशप्रेम के कारण अनेक बार कारागार जाते हैं, जहाँ उन्हें अंग्रेजों के अपमान-अत्याचार सहने पड़ते हैं। उन्होंने अपना सर्वस्व देश के लिए न्योछावर कर दिया। भारत के लिए उनका कहना था

तू चिर प्रशान्त, तू चिर अजेय,
सुर-मुनि-वन्दित, स्थित,’ अप्रमेय
हे सगुण ब्रह्म, वेदादि-गेय,
हे चिर अनादि हे चिर अशेष
मेरे भारत, मेरे स्वदेश।

(3) सत्य और अहिंसा के प्रबल समर्थक – गांधी जी देश की स्वतन्त्रता केवल सत्य और अहिंसा के द्वारा ही प्राप्त करना चाहते हैं। असत्य और हिंसा का मार्ग उन्हें अच्छा नहीं लगता। वे कहते हैं

पशुबल के सम्मुख आत्मा की, शक्ति जगानी होगी।
मुझे अहिंसा से हिंसा की, आग बुझानी होगी।

अहिंसा व्रत का पूर्ण रूप से पालन उनके जैसा कोई विरला व्यक्ति ही कर सकता है।

(4) दृढ़ आस्तिक – गांधी जी पुरुषार्थी हैं तो भी वे ईश्वर की सत्ता में अटूट विश्वास रखते हैं। उनका मानना है। कि साधन पवित्र होने चाहिए और परिणाम ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए। वे प्रत्येक कार्य ईश्वर को साक्षी मानकर करते हैं। यही कारण है कि वे मात्र पवित्र साधनों को प्रयोग ही उचित समझते हैं

क्या होगा परिणाम सोच हूँ, पर क्यों सोचें, वह तो।
मेरा क्षेत्र नहीं, स्रष्टा का, जो प्रभु करे वही हो ।।

(5) स्वतन्त्रता-प्रेमी – गांधी जी के जीवन का मूल उद्देश्य भारत को स्वतन्त्र करवाना है। वे भारतमाता की स्वतन्त्रता के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। देशंवासियों को परतन्त्रता की बेड़ियाँ काटने के लिए प्रेरित करते हुए वे कहते हैं

जाग तुझे तेरी अतीत, स्मृतियाँ धिक्कार रही हैं।
जाग-जाग तुझे भावी, पीढ़ियाँ पुकार रही हैं।

(6) मानवतावादी – गांधी जी मानव-मानव में अन्तर नहीं मानते। वे सबके लिए समानता के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं। उन्होंने जीवन भर ऊँच-नीच, जाति-पाँति और रंग-भेद का डटकर विरोध किया। अछूत कहे जाने वाले भारतीयों के उद्धार के लिए वे सतत प्रयत्नशील रहे। इस भेदभाव से उन्हें बहुत दुःख होता था

जिसने मारा मुझे, कौन वह, हाथ नहीं क्या मेरी।
मानवता तो एक, भिन्न बस उसका-मेरा घेरा॥

(7) भावात्मक, राष्ट्रीय और हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक – गांधी जी ‘विश्वबन्धुत्व’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना से ओत-प्रोत थे। वे सभी को सुखी व समृद्ध देखना चाहते थे। इन्होंने भारत की समग्र जनता को एकता के सूत्र में बाँधने के लिए जीवन-पर्यन्त प्रयास किया और हिन्दू-मुसलमानों को भाई-भाई की तरह रहने की प्रेरणा दी। उनका कहना था

यदि मिलकर इस राष्ट्रयज्ञ में सब कर्तव्य निभायें अपना,
एक वर्ष में ही पूरा हो मेरा रामराज्य का सपना।

(8) आत्मविश्वासी – गांधी जी आत्मविश्वास से परिपूर्ण थे, उन्होंने जो कुछ भी किया पूर्ण आत्मविश्वास के साथ किया और उसमें वे सफल भी हुए। उनका मानना था

शासित की स्वीकृति न मिले तो शासक क्या कर लेगा
यदि आधार मिटे भय का तो एकतन्त्र ठहरेगा।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि एक श्रेष्ठ मानव में जितने भी मानवोचित गुण हो सकते हैं वे सभी महात्मा गांधी में विद्यमान थे।

प्रश्न 5:
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य के काव्य-सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ के काव्य-वैभव (काव्य-सौन्दर्य) की समीक्षा कीजिए।
या
“काव्य-कला की दृष्टि से ‘आलोक-वृत्त’ एक श्रेष्ठ रचना है।” इस कथन को सिद्ध कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
किसी भी रचना के काव्य-सौन्दर्य के अन्तर्गत उसके भावपक्ष और कलापक्ष के सौन्दर्य की समीक्षा की जाती है। ‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य का काव्य-सौन्दर्य अथवा इसकी काव्यगत विशेषताएँ निम्नवत् हैं

(अ) भावगत विशेषताएँ

(1) कथावस्तु-वर्णन – ‘आलोकवृत्त काव्य में आठ सर्ग हैं। इन सर्गों में कवि ने गांधी जी के सम्पूर्ण जीवन के साथ भारतीय स्वतन्त्रता-संग्राम का इतिहास भी प्रस्तुत किया है। कवि ने इतिहास एवं जीवन-गाथा के साथ-साथ श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों की स्थापना भी की है।

(2) रस-योजना – आलोकवृत्त’ में कवि ने विभिन्न मानव मन:स्थितियों के साथ-साथ वीर, शान्त और करुण रसों को निरूपित किया है; उदाहरणार्थ

वीर रस – जब क्रान्ति लहर चल पड़ती है, हिमगिरि की चूल उखड़ती है।
साम्राज्य उलटने लगते हैं, इतिहास पलटने लगते हैं।
शान्त रस – पर कैसे प्रतिकार असत् का, हिंसा का पशुबल का ।
कैसे सम्भव शमन द्वेष के, इस नरमेध-अनल का ॥
करुण रस – चीत्कार हुआ ज्यों सहसा डूबे रहे जन का
दौड़ा पति सुनकर शब्द प्रिया के क्रन्दन का।
देखा कि साश्रु वह अतिथि-पदों में पड़ी हुई।
सिसकियाँ विकल भरती थी भू में गड़ी हुई।

(3) प्रकृति-चित्रण – कवि ने ‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य में प्रकृति-चित्रण कम ही किया है। कुछ स्थलों पर प्रकृति को पृष्ठभूमि के रूप में चित्रित किया गया है; उदाहरणार्थ

पद-प्रान्त में सागर गरजता सिंह-सा, झलमल गले से हीरकों के हार-सी।
गंगा तरुणिजा, गोमती, गोदावरी, कृष्णादिका, सिर पर मुकुट हिमवान का ॥

(ब) कलागत विशेषताएँ

(1) भाषा – आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की भाषा सरल, सुबोध, परिमार्जित एवं रोचक खड़ी बोली हिन्दी है। भाषा में माधुर्य, ओज एवं प्रसाद गुण विद्यमान हैं। कवि ने अनेक प्रचलित मुहावरों एवं लोकोक्तियों का प्रयोग भी किया है ।

कट जाता शासन का पत्ता। मुँह के बल गिर पड़ती सत्ता।

इस खण्डकाव्य की भाषा अत्यन्त सरल और बिम्बमय है। सीधे-सादे शब्दों में बड़ी बातें कहने में कवि की । कला सराहनीय है। भाषा की बिम्बमयता का एक उदाहरण देखिए

हँस हँसकर अंगारे चुगते शशि की ओर चकोर चले।
जैसे घन पाहन-वर्षण में पर फैलाये मोर चले।।

ओज गुण का निर्वाह तो खण्डकाव्य में आद्योपान्त किया गया है। प्रसाद गुण तो इसकी प्रत्येक पंक्ति में देखा जा सकता है। जिन प्रसंगों में माधुर्य की अपेक्षा है, वहाँ भाषा अत्यन्त मधुर रूप ग्रहण कर लेती है।

(2) शैली – प्रबन्ध शैली में लिखे गये आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की घटनाओं के वर्णन में वर्णनात्मक शैली की चित्रोपमता और प्रतीकात्मकता के दर्शन होते हैं। यंत्र-तत्र संवादात्मकता भी है, किन्तु शैली का स्वरूप वर्णनात्मक ही है। वर्णनात्मक शैली में भावात्मकता को स्थान देकर इन्होंने अपने भावों को कुशल अभिव्यक्ति दी है।

(3) छन्द-विधान – आलोकवृत्त’ में छन्दों की विविधता है। 16 मात्राओं के छोटे छन्द से लेकर 32 मात्राओं के लम्बे छन्दों का प्रयोग इसमें सफलतापूर्वक किया गया है। प्रथम सर्ग में मुक्त छन्द का प्रयोग हुआ है। सर्गों के मध्य में गीत-योजना भी की गयी है, जिससे राष्ट्रीय भावनाओं की वृद्धि में सहयोग मिला है।

(4) अलंकार-योजना – आलोकवृत्त’ काव्य में कवि ने उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, यमक, अनुप्रास, श्लेष आदि अलंकारों का सफल प्रयोग किया है। अलंकार-प्रयोग में स्वाभाविकता है। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं

रूपक    –      कैसे सम्भव शमन द्वेष के,
इस नरमेध-अनल का।।
उपमा     –    पद-प्रान्त में सागर गरजता सिंह-सा।
पद-प्रान्त म साग
यमक     –        मन्मथ धन्य प्रथम नायक का,
जिसने मन मथ डाला।

निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि ‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की रचना महान् लोकनायक गांधी जी के गुणों को आधार बनाकर की गयी है। गौण पात्रों का चरित्रांकन नायक गांधी जी के चरित्र की विशेषताओं को प्रकाशित करने हेतु ही किया गया है। यद्यपि इस खण्डकाव्य में रसों एवं छन्दों की विविधता है तथापि इससे उद्देश्य एवं विधा से सम्बद्ध तत्त्वों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अत: इसे एक सफल खण्डकाव्य कहा जा सकता है।

प्रश्न 6:
‘आलोकवृत्त’ में भारत के स्वाधीनता संग्राम की सही झाँकी मिलती है ? पुष्टि कीजिए।
या
‘आलोकवृत्त’ के आधार पर भारत के स्वतन्त्रता-संग्राम का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
या
आलोकवृत्त’ नाटक में वर्णित घटनाओं को अपने शब्दों में लिखिए।
या
“‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य आधुनिक भारत के संघर्षों की झाँकी प्रस्तुत करने में सफल है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘आलोकवृत्त’ खण्डकाव्य की कथावस्तु आठ सर्गों में विभक्त है। प्रथम सर्ग में भारत के गौरवशाली अतीत का, उसके बाद पराधीनता का और सन् 1857 ई० की क्रान्ति के बाद नयी ज्योति के रूप में गांधी जी के उदय का वर्णन है। द्वितीय सर्ग में गांधी जी के प्रारम्भिक जीवन और फिर इंग्लैण्ड से उच्च शिक्षा प्राप्त कर स्वदेश लौटने तथा उनकी माता की मृत्यु का वर्णन है। तृतीय सर्ग में गांधी जी द्वारा अफ्रीका में रंग-भेद से दु:खी भारतीयों का वर्णन है, जिन्हें दुर्दशा से मुक्ति दिलाने के लिए गांधी जी ने उनका नेतृत्व किया और सत्याग्रह आन्दोलन चलाया। चतुर्थ सर्ग में गांधी जी भारत लौट आये और उन्होंने देशवासियों को स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए जगाया। इसमें चम्पारन और खेड़ा के आन्दोलन का वर्णन है। पंचम सर्ग में अंग्रेजों के दमन, साम्प्रदायिक दंगे भड़कने, गांधी जी को बन्दी बनाने और फिर जेल से छूटने के बाद गांधी जी द्वारा हिन्दी-मुस्लिम एकता, शराब-मुक्ति, हरिजन-उत्थान, खादी-प्रचार आदि कार्यक्रमों का वर्णन है और लाहौर में पूर्ण स्वतन्त्रता प्रस्ताव के वर्णन के साथ यह सर्ग समाप्त हो जाता है। इसी सर्ग में हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए गांधी जी के 21 दिनों के उपवास का भी वर्णन है

आत्म शुद्धि का यज्ञ कठिन यह पूरा होने को जब आया।
बापू ने इक्कीस दिनों के अनशन का संकल्प सुनाया ।।

छठे सर्ग में नमक आन्दोलन, लन्दन के गोलमेज सम्मेलन और 1937 के प्रान्तीय स्वराज्य की स्थापना का वर्णन है। सातवें सर्ग में 1942 के ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन का और आठवें सर्ग में भारतीय स्वतन्त्रता के अरुणोदय के साथ-साथ विभाजन के कारण भड़के दंगों से दु:खी गांधी जी की कल्याण-कामना का वर्णन है, जिसमें उन्होंने कहा है

प्रभो इस देश को सत्पथ दिखाओ।
लगी जो आग भारत में बुझाओ ॥

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि ‘आलोकवृत्त’ में भारत के स्वाधीनता संग्राम की सही झाँकी मिलती है।

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