UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ

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Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 1
Chapter Name मुक्तियज्ञ (सुमित्रानन्दन पन्त)
Number of Questions 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi खण्डकाव्य Chapter 1 मुक्तियज्ञ (सुमित्रानन्दन पन्त)

प्रश्न 1:
‘मुक्तियज्ञ’ की कथावस्तु (कथानक) संक्षेप में लिखिए।
या
” ‘मुक्तियज्ञ’ की राष्ट्रीयता और देशभक्ति संकुचित नहीं है।” समीक्षा कीजिए।
या
” ‘मुक्तियज्ञ’ में गांधी युग के स्वर्ण-इतिहास का काव्यात्मक आलेख है।” प्रस्तुत कथन के आधार पर ‘मुक्तियज्ञ’ की कथावस्तु की व्याख्या कीजिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ के आधार पर स्वतन्त्रता-प्राप्ति और उससे उत्पन्न समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ का क्या आशय है? स्वपठित खण्डकाव्य ‘मुक्तियज्ञ’ के आधार पर उत्तर दीजिए।
या
‘दमन-चक्र चल पड़ा निरंकुश’, ‘मुक्तियज्ञ’ के इस कथन की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
या
” ‘मुक्तियज्ञ’ में पन्त जी ने सत्याग्रह आन्दोलन का चित्रण काव्यात्मक ढंग से किया है।” इस कथन की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
या
“‘मुक्तिय’ में भारत के स्वतन्त्रता-युद्ध का आद्योपान्त वर्णन है।” इस कथन के पक्ष में अपना विचार लिखिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ में वर्णित मुख्य घटनाओं का वर्णन कीजिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में वर्णित राजनैतिक घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा विरचित ‘लोकायतन’ महाकाव्य का एक अंश है। इस अंश में भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन की गाथा है। ‘मुक्तियज्ञ’ की कथावस्तु संक्षेप में निम्नवत् है
गांधी जी साबरमती आश्रम से अंग्रेजों के नमक-कानून को तोड़ने के लिए चौबीस दिनों की यात्रा पूर्ण करके डाण्डी गाँव पहुँचे और सागरतट पर नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा

वह प्रसिद्ध डाण्डी यात्रा थी, जन के राम गये थे फिर वन।
सिन्धु तीर पर लक्ष्य विश्व का, डाण्डी ग्राम बना बलि प्रांगण।

गांधी जी का उद्देश्य नमक बनाना नहीं था, वरन् इसके माध्यम से वे अंग्रेजों के इस कानून का विरोध करना और जनता में चेतना उत्पन्न करना चाहते थे। यद्यपि उनके इस विरोध के आधार सत्य और अहिंसा थे, किन्तु अंग्रेजों का दमन-चक्र पहले की भाँति ही चलने लगा। गांधी जी तथा अन्य नेताओं को अंग्रेजों ने कारागार में डाल दिया। जैसे-जैसे दमन-चक्र बढ़ता गया, वैसे-वैसे ही मुक्तियज्ञ भी तीव्र होता गया। गांधी जी ने भारतीयों को स्वदेशी वस्तु के प्रयोग और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए प्रोत्साहित किया। सम्पूर्ण देश में यह आन्दोलन फैल गया। समस्त देशवासी स्वतन्त्रता आन्दोलन में एकजुट होकर गांधी जी के पीछे हो गये। इस प्रकार गांधी जी ने भारतीयों में एक अपूर्व उत्साह एवं जागृति उत्पन्न कर दी।

गांधी जी ने अछूतों को समाज में सम्मानपूर्ण स्थान दिलवाने के लिए आमरण अनशन आरम्भ किया। महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीयों ने अंग्रेजों से संघर्ष का निर्णय किया। सन् 1927 ई० में साइमन कमीशन भारत आया। भारतीयों द्वारा इस कमीशन का पूर्ण बहिष्कार किया गया। सन् 1942 ई० में गांधी जी ने अंग्रेजो भारत छोड़ो’ का नारा लगा दिया। उसी रात्रि में गांधी जी व अन्य नेतागण बन्दी बना लिये गये और अंग्रेजों ने बालकों, वृद्धों और स्त्रियों तक पर भीषण अत्याचार आरम्भ कर दिये। इन अत्याचारों के कारण भारतीयों में और अधिक आक्रोश उत्पन्न हो उठा। चारों ओर हड़ताल और तालाबन्दी हो गयी। सब कामकाज ठप्प हो गया। अंग्रेजी शासन इस आन्दोलन से हिल गया। कारागार में ही गांधी जी की पत्नी कस्तूरबा का देहान्त हो गया। पूरे देश में अंग्रेजों के विरुद्ध प्रबल आक्रोश एवं हिंसा भड़क उठी थी। सन् 1942 ई० में भारत की पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग की गयी। अंग्रेजों के प्रोत्साहन पर मुस्लिम लीग ने भारत विभाजन की माँग की। अन्तत: 15 अगस्त, 1947 ई० को अंग्रेजों ने भारत को मुक्त कर दिया।

अंग्रेजों ने भारत और पाकिस्तान के रूप में देश का विभाजन करवा दिया। एक ओर तो देश में स्वतन्त्रता का उत्सव मनाया जा रहा था, दूसरी ओर नोआखाली में हिन्दू और मुसलमानों के बीच संघर्ष हो गया। गांधी जी ने इससे दु:खी होकर आमरण उपवास रखने का निश्चय किया।

30 जनवरी, 1948 ई० को नाथूराम गोडसे ने गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी। इस दु:खान्त घटना के पश्चात् कवि द्वारा भारत की एकता की कामना के साथ इस काव्य का अन्त हो जाता है। इस प्रकार इस खण्डकाव्य का आधारे-फलक बहुत विराट् है और उस पर कवि पन्त द्वारा बहुत सुन्दर और प्रभावशाली चित्र खींचे गये हैं। इसमें उस युग का इतिहास अंकित है, जब भारत में एक हलचल मची हुई थी और सम्पूर्ण देश में क्रान्ति की आग सुलग रही थी। इसमें व्यक्त राष्ट्रीयता और देशभक्ति संकुचित नहीं है। निष्कर्ष रूप में मुक्तियज्ञ गांधी-युग के स्वर्णिम इतिहास का काव्यात्मक आलेख है।

प्रश्न 2:
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की कथावस्तु की समीक्षा कीजिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के कथानक का विश्लेषण कीजिए।
या
” ‘मूक्तियज्ञ’ के आख्यान में काल्पनिक तत्त्वों का समावेश नहीं है।” इस कथन को सिद्ध कीजिए।
या
” ‘मुक्तियज्ञ’ व्यक्तिप्रधान न होकर समष्टिप्रधान है।” सोदाहरण समझाइए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ की राष्ट्रीयता और देशभक्ति सम्बन्धी भावनाओं पर प्रकाश डालिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ के कवि ने अपनी दृष्टि प्राचीन इतिहास और पुराण से हटाकर आधुनिक इतिहास से काव्य-सामग्री ग्रहण की है-इस कथन को ध्यान में रखते हुष्ट इस खण्डकाव्य की कथावस्तु का विवेचन कीजिए। ”
या
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में देशभक्ति की भावना रूपायित है।” इस कथन की सोदाहरण समीक्षा कीजिए।
या
” ‘मुक्तियज्ञ’ भौतिकता और अध्यात्मपरक चिन्तन के संघर्ष की कथा है।” इस कथन पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
या
“मुक्तिंय की आत्मा में एक महाकाव्य जैसी गरिमा है’, सावित्री सिन्हा के इस कथन की मीमांसा कीजिए।
या
“मूवितयश’ में अभिव्यक्त गांधीदर्शन की आत्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि को स्पष्ट कीजिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ की राष्ट्रीयता और देशभक्ति संकुचित नहीं हैं। कथन के परिप्रेक्ष्य में मुक्तियज्ञ की कथा-वस्तु की विवेचना कीजिए।
या
‘मुक्तियन’ खण्डकाव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
तर पन्त जी द्वारा रचित ‘मुक्तियज्ञ’ की कथावस्तु की मुख्य विशेषताएँ निम्नवत् हैं

(1) विराट् ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
‘मुक्तियज्ञ’ में (सन् 1921 से 1947 ई० तक के) भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का इतिहास विद्यमान है। इस प्रकार इस काव्य की कथावस्तु की पृष्ठभूमि अत्यन्त विस्तृत और ऐतिहासिक है। इसके साथ ही इसमें द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान पर गिराये गये परमाणु बमों को भी उल्लेख है। इस समयावधि में घटित घटनाचक्रों में परिस्थितियों की विभिन्नता एवं अनेकरूपता है। इसकी व्यापकता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि इसकी कथावस्तु किसी महाकाव्य में ही समाहित हो सकती थी, किन्तु पन्त जी ने अत्यधिक कुशलता से इस विशाल पृष्ठभूमि को एक छोटे-से खण्डकाव्य में समेट लिया है, जो स्वयं में भारतीय स्वतन्त्रता, संग्राम एवं विश्व-मानवता की व्यापकता को समाहित किये हुए है।

(2) संक्षेपीकरण:
‘मुक्तियज्ञ’ की कथावस्तु में यद्यपि विस्तृत घटनाएँ हैं; किन्तु उन्हें बहुत ही संक्षिप्त रूप दिया गया है। सन् 1930 ई० की डाण्डी-यात्रा से कथा का आरम्भ होता है। गांधी जी सत्य और अहिंसा के बल पर अंग्रेज सरकार के विरुद्ध संघर्ष करते हैं। ‘गोलमेज सम्मेलन’ से भारत को कोई लाभ नहीं होता। द्वितीय विश्वयुद्ध में भारत मित्र-राष्ट्रों की सहायता करता है। सन् 1942 ई० में अंग्रेजो भारत छोड़ो’ का नारा लगता है। अंग्रेज और अधिक अत्याचार करते हैं। सम्पूर्ण देश में विद्रोह भड़क जाता है, अंग्रेजों को यहाँ से भागना पड़ता है और 1947 ई० में भारत स्वतन्त्र हो जाता है। अन्त में 1948 ई० में गांधी जी ‘नाथूराम गोडसे की गोली से मारे जाते हैं।

(3) प्रमुख घटनाओं का काव्यात्मक आलेख:
‘मुक्तियज्ञ सुनियोजित ढंग से सर्गबद्ध कथा नहीं है, वरन् इसमें सन् 1921 से 1947 ई० के बीच घटित भारतीय स्वतन्त्रता-संग्राम की प्रमुख घटनाओं का सुन्दर चित्रण है। ‘मुक्तियज्ञ से पूर्व हिन्दी में जितने भी खण्डकाव्य लिखे गये, उन सभी की कथावस्तु इतिहास एवं पुराणों से ली गयी थी। यद्यपि इन खण्डकाव्यों के रचयिताओं ने इनमें आधुनिक विचारधारा एवं दृष्टिकोण को भी स्थान दिया था, तथापि इनकी कथाओं का आधार प्राचीन इतिहास एवं पुराणों से ही सम्बन्धित रहा। ‘मुक्तियज्ञ’ प्रथम खण्डकाव्य है जिसमें पहली बार किसी कवि ने आधुनिक युग में घटित कुछ ही वर्ष पूर्व की घटनाओं पर दृष्टि डाली। इस प्रकार ‘मुक्तियज्ञ’ गांधी-युग के स्वर्णिम इतिहास का काव्यात्मक आलेख है।

(4) गांधीवाद की राष्ट्रीय विचारधारा को चिन्तन:
‘मुक्तियज्ञ’ की कथावस्तु इतिहास पर आधारित है। कथा में काव्यात्मकता और भावात्मकता का मिश्रण है, फिर भी इसमें गांधीवादी विचारधारा का समावेश है। वस्तुतः यह भौतिकवादी, आध्यात्मिक और राष्ट्रीयता के विचारों का संग्रह है। इसमें सत्य, अहिंसा, हरिजनोद्धार, नशाबन्दी, नारी-जागरण, आत्म-स्वातन्त्र्य आदि गांधीवादी चिन्तन और विचारधाराओं को सुन्दर काव्यात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया है।

(5) विचारप्राधान्य:
‘मुक्तियज्ञ’ में गांधीवादी वैचारिकता का भावात्मक वर्णन एवं चित्रण हुआ है। यह भौतिकवादी और आध्यात्मिक विचारों के संघर्ष का काव्ये बन गया है। प्रकट विचारों में उत्कृष्टता विद्यमान है। इस प्रकार ‘मुक्तियज्ञ’ पूर्णतया सत्य आधारित, सार्थक और राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत खण्ड-काव्य है। यह वास्तव में व्यक्तिप्रधान काव्य न होकर समष्टिप्रधान काव्य है; क्योंकि इसके नायक महात्मा गांधी का कोई भी कार्य उनके अपने लिए नहीं था, वरन् उन्होंने जो कुछ भी किया, राष्ट्र, समाज और मानवता की उन्नति के लिए ही किया।

प्रश्न 3:
‘मुक्तियज्ञ’ के नायक (प्रमुख पात्र) का चरित्र-चित्रण कीजिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ के आधार पर गांधी जी की चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
या
” ‘मुक्तियज्ञ’ में महात्मा गांधी के व्यक्तित्व का वही अंश उभारा गया है, जो भारतीय जनता को शक्ति और प्रेरणा देता है।” सतर्क प्रमाणित कीजिए।
या
” ‘मुक्तियज्ञ’ में व्यक्ति गांधी का चित्रण कवि का ध्येय नहीं है, राष्ट्रपिता और राष्ट्रनायक गांधी ही ‘मुक्तियज्ञ’ के मुख्य पुरोधा हैं।” इस कथन के आधार पर गांधी जी के समष्टिप्रधान चरित्र का उद्घाटन कीजिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ का अभिप्राय स्पष्ट करते हुए उसके नायक के कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ के प्रमुख नायक के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।
या
“गांधी जी राष्ट्र के लिए एक समर्पित व्यक्ति हैं।” उक्ति पर प्रकाश डालिए।
या
” ‘मुक्तियज्ञ’ में महात्मा गांधी का यशोमय चित्रण किया गया है।” इस कथन की युक्तिसंगत पुष्टि कीजिए।
या
“गाँधीजी का सम्पूर्ण जीवन विश्वबन्धुत्व व लोकमंगल के लिए था।” इस कथन के आलोक में उनकी चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
‘मुक्तियज्ञ’ काव्य के आधार पर गांधी जी की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नवत् हैं

(1) प्रभावशाली-व्यक्तित्व: गांधी जी का आन्तरिक व्यक्तित्व बहुत अधिक प्रभावशाली है। उनकी वाणी में अद्भुत चुम्बकीय प्रभाव था। उनकी डाण्डी यात्रा के सम्बन्ध में कवि ने लिखा है

वह प्रसिद्ध डाण्डी यात्रा थी, जन के राम गये थे फिर वन ।
सिन्धु तीर पर लक्ष्य विश्व का, डाण्डी ग्राम बना बलि प्रांगण ॥

(2) सत्य, प्रेम और अहिंसा के प्रबल समर्थक – ‘मुक्तियज्ञ’ में गांधी जी के जीवन के सिद्धान्तों में सत्य, प्रेम और अहिंसा प्रमुख हैं। अपने इन तीन आध्यात्मिक अस्त्रों के बल पर ही गांधी जी ने अंग्रेज सरकार की नींव हिला दी। इन सिद्धान्तों को वे अपने जीवन में भी अक्षरश: उतारते थे। उन्होंने कठिन-से-कठिन परिस्थिति में भी सत्य, अहिंसा और प्रेम का मार्ग नहीं छोड़ा।

(3) दृढ़-प्रतिज्ञ – ‘मुक्तियज्ञ’ के नायक गांधी जी ने जो भी कार्य आरम्भ किया, उसे पूरा करके ही छोड़ा। वे अपने निश्चय पर अटल रहते हैं और अंग्रेजी सत्ता के दमन चक्र से तनिक भी विचलित नहीं होते। उन्होंने नमक कानून तोड़ने की प्रतिज्ञा की तो उसे पूरा भी कर दिखाया

प्राण त्याग दूंगा पथ पर ही, उठा सका मैं यदि न नमक-कर।
लौट न आश्रम में आऊँगा, जो स्वराज ला सका नहीं घर ॥

(4) जातिवाद के विरोधी – गांधी जी का मत था कि भारत जाति-पाँति के भेदभाव में पड़कर ही शक्तिहीन हो । रहा है। उनकी दृष्टि में न कोई छोटा था, न अस्पृश्य और न ही तुच्छ। इसी कारण वे जातिवाद के कट्टर विरोधी थे

भारत आत्मा एक अखण्डित, रहते हिन्दुओं में ही हरिजन।
जाति वर्ण अघ्र पोंछ, चाहते, वे संयुक्त रहें भू जनगण ।।

(5) जन-नेता – ‘मुक्तियज्ञ’ के नायकं गांधी जी सम्पूर्ण भारत में जन-जन के प्रिय नेता हैं। उनके एक संकेत मात्र पर ही लाखों नर-नारी अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तत्पर रहते हैं; यथा

मुट्ठी-भर हड्डियाँ बुलातीं, छात्र निकल पड़ते सब बाहर।
लोग छोड़ घर-द्वार, मान, पद, हँस-हँस बन्दी-गृह देते भर॥

भारत की जनता ने उनके नेतृत्व में ही स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ी और अंग्रेजों को भगाकर ही दम लिया।

(6) मानवता के अग्रदूत – ‘मुक्तियज्ञ’ के नायक गांधी जी अपना सम्पूर्ण जीवन मानवता के कल्याण में ही लगा देते हैं। उनका दृढ़ विश्वास है कि मानव-मन में उत्पन्न घृणा, घृणा से नहीं अपितु प्रेम से मरती है। वे आपस में प्रेम उत्पन्न कर घृणा एवं हिंसा को दूर करना चाहते थे। वे हिंसा का प्रयोग करके स्वतन्त्रता भी नहीं चाहते थे; क्योंकि उनका मानना था कि हिंसा पर टिकी हुई संस्कृति मानवीयता से रहित होगी

घृणा, घृणा से नहीं मरेगी, बल प्रयोग पशु साधन निर्दय।
हिंसा पर निर्मित भू-संस्कृति, मानवीय होगी न, मुझे भय॥

(7) लोक-पुरुष – मुक्तियज्ञ में गांधी जी एक लोक-पुरुष के रूप में पाठकों के समक्ष आते हैं। इस सम्बन्ध में कवि कहता है

संस्कृति के नवीन त्याग की, मूर्ति, अहिंसा ज्योति, सत्यव्रत ।
लोक-पुरुष स्थितप्रज्ञ, स्नेह धन, युगनायक, निष्काम कर्मरत ॥

(8) साम्प्रदायिक एकता के पक्षधर – स्वतन्त्रता-प्राप्ति के समय देश में हिन्दुओं और मुसलमानों में भीषण संघर्ष हुआ। इससे गांधी जी का हृदय बहुत दु:खी हुआ। साम्प्रदायिक दंगा रोकने के लिए गांधी जी ने आमरण अनशन कर दिया। गांधी जी सोच रहे हैं

मर्म रुधिर पीकर ही बर्बर, भू की प्यास बुझेगी निश्चय।

(9) समद्रष्टा –  गांधी जी सबको समान दृष्टि से देखते थे। उनकी दृष्टि में न कोई बड़ा था और न ही कोई छोटा। छुआछूत को वे समाज का कलंक मानते थे। उनकी दृष्टि में कोई अछूत नहीं था

छुआछूत का भूत भगाने, किया व्रती ने दृढ़ आन्दोलन,
हिले द्विजों के रुद्र हृदय पर, खुले मन्दिरों के जड़ प्रांगण।

इस प्रकार ‘मुक्तियज्ञ’ के नायक गांधी जी महान् लोकनायक; सत्य, अहिंसा और प्रेम के समर्थक; दृढ़-प्रतिज्ञ, निर्भीक औंरं साहसी पुरुष के रूप में सामने आते हैं। कवि ने गांधी जी में सभी लोक-कल्याणकारी गुणों का समावेश करते हुए उनके चरित्र को एक नया स्वरूप प्रदान किया है।

प्रश्न 4:
‘मुक्तियज्ञ’ के काव्य कौशल पर प्रकाश डालिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ के काव्य-सौन्दर्य पर अपना पक्ष प्रस्तुत कीजिए।
या
खण्डकाव्य की दृष्टि से मुक्तियज्ञ’ की समीक्षा कीजिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ की भाषा-शैली की क्या विशेषताएँ हैं ?
या
‘मुक्तियज्ञ’ की भाषा-शैली पर उदाहरण सहित प्रकाश डालिए।
या
आकार की लघुता के बावजूद ‘मुक्तियज्ञ’ की आत्मा में एक महाकाव्य जैसी गरिमा है।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के रचना-विधान पर एक टिप्पणी लिखिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ की कथावस्तु खण्डकाव्य की दृष्टि से कितनी सफल है ? स्पष्ट कीजिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की रचना में कवि की सफलता का विश्लेषण कीजिए।
या
खण्डकाव्य के लक्षणों (विशेषताओं) का ध्यान रखते हुए सिद्ध कीजिए कि ‘मुक्तियज्ञ’ एक सफल खण्डकाव्य है।
या
” ‘मुक्तियज्ञ’ में कवि की दृष्टि कथा पर अधिक व कथन की शैली पर कम टिकी है।” इस बात से आप कहाँ तक सहमत हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी भी साहित्यिक रचना का काव्य-सौन्दर्य दो प्रकार का होता है – भावपक्षीय तथा कलापक्षीय। यहाँ ‘मुक्तियज्ञ का काव्य-सौन्दर्य निम्नवत् प्रस्तुत है-

(अ) भावगत विशेषताएँ
‘मुक्तियज्ञ काव्य की प्रमुख भावगत् विशेषताएँ निम्नवत् हैं

(1) विचारप्रधानता – ‘मुक्तिधज्ञ’ एक विचारप्रधान काव्य है। इस काव्य में गांधी-दर्शन की विशद् व्याख्या की गयी है। कवि ने गांधी जी के विचारों को बड़े ही सरस, सरल और रुचिकर ढंग से प्रस्तुत किया है। कवि ने गांधी जी की विचारधारा को सत्य, अहिंसा, प्रेम, नारी-जागरण, हरिजनोद्धार, भारतीय कला और संस्कृति की रक्षा, अतिभौतिकता का विरोध, मदिरा के विरुद्ध आन्दोलन तथा स्वदेशी वस्तुओं पर बल आदि रूपों में प्रस्तुत किया है। सम्पूर्ण काव्य में गरिमा एवं गम्भीरता है। गांधी दर्शन एवं भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के भावों को सरल ढंग से प्रस्तुत करते हुए उसका सम्बन्ध विश्व-मानवतावाद से जोड़ा है

प्रतिध्वनित होता जगती में, भारत आत्मा को नैतिक पण,
नयी चेतना शिखा जगाता, आत्म-शक्ति से लोक उन्नयन।

(2) युग चित्रण – ‘मुक्तियज्ञ’ काव्य में भारतीय स्वतन्त्रता-संग्राम का इतिहास पूरी तरह वर्णित है। गांधी जी के नेतृत्व में स्वाधीनता आन्दोलन, अंग्रेजों के अत्याचार और अन्त में भारतीयों द्वारा स्वराज्य-प्राप्ति इन सभी घटनाओं का आद्योपान्त वर्णन ‘मुक्तियज्ञ’ में हुआ है। डॉ० सावित्री सिन्हा के अनुसार-आकार की लघुता के बावजूद ‘मुक्तियज्ञ’ की आत्मा में एक महाकाव्य जैसी गरिमा है।”

(3) रस-योजना – रस-निष्पत्ति की दृष्टि से मुक्तियज्ञ’ वीर रसप्रधान काव्य है। इसमें गांधी जी तथा अन्य लोगों के त्याग और बलिदान की साहसपूर्ण कथा लिखी गयी है। भारतीयों के अंग्रेजों के विरुद्ध अहिंसात्मक संघर्ष में वीर रस के दर्शन होते हैं

गूँज रहा रण शंख, गरजती, भेरी, उड़ता, सुर धनु केतन।
ऊर्ध्व असंख्य पदों से धरती, चलती, यह मानवता का रण ॥

कवि ने वीर रस के साथ-साथ अंग्रेजों के दमन में तथा अकाल-चित्रण आदि के मार्मिक स्थलों पर करुण और शान्त रस की भी सुन्दर व्यंजना की है।

(4) प्रकृति-चित्रण की न्यूनता – कविवर सुमित्रानन्दन पन्त प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। उनकी प्रायः प्रत्येक काव्य-रचना में प्रकृति का अनेक रूपों में चित्रण हुआ है, किन्तु ‘मुक्तियज्ञ’ में लगता है कि उन्हें प्रकृतिचित्रण का कहीं अवकाश ही नहीं मिला; क्योंकि मुक्तियज्ञ एक विचार एवं समस्या प्रधान काव्य-रचना है।

(ब) कलागत विशेषताएँ

यद्यपि ‘मुक्तियज्ञ’ में पन्त जी की कलात्मक काव्य-प्रतिभा का उपयोग नहीं के बराबर हुआ है, तथापि इस दृष्टि से भी इनकी कलात्मकता के निम्नवत् कई रूपों में दर्शन होते हैं

(1) भाषा – ‘मुक्तियज्ञ की भाषा संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली और सरल हिन्दी है। यह परिपक्व और व्यंजना-शक्ति से परिपूर्ण है। भाषा में अभिव्यक्ति की सरलता, बोधगम्यता और चित्रात्मकता के साथ-साथ सरसता और सुकुमारता के दर्शन भी होते हैं। कवि ने अनेक स्थलों पर कठिन शब्दावली का भी प्रयोग किया है, जिस कारण कहीं-कहीं भाषा बोझिल-सी बन गयी है। भाषा में ओज, माधुर्य और प्रसाद गुण विद्यमान है। भाषा भावात्मक एवं दार्शनिक विचाराभिव्यक्ति में समर्थ है। एक उदाहरण द्रष्टव्य है

झोंक आग में तन के कपड़े, गिरते पद पर पागल स्त्री-नर।
भेद कभी इतिहास कहेगा, कौन पुरुष चला युग-भू पर॥

कवि की बिम्ब-योजनाओं का एक उदाहरण द्रष्टव्य है

चरु की स्निग्ध घृताहुतियाँ ज्यों, हों उठतीं मुख-वह्नि प्रज्वलित।
विंनत अहिंसा की नर-बलियाँ, पशु का दर्प हुआ उत्तेजित ॥

(2) शैली – कवि ने ‘मुक्तियज्ञ’ में सीधी-सादी अभिधाप्रधान मूर्त शैली अपनायी है। इसमें गाम्भीर्य है, प्रौढ़ता है और साथ ही संरलता भी है। इसमें कवि ने किसी प्रकार की कलात्मकता अथवा काल्पनिकता का चमत्कारपूर्ण समावेश नहीं किया है। कवि की दृष्टि कथ्य के महत्त्व पर अधिक और कथन की शैली पर कम टिकी है। इनकी भाषा-शैली में इनकी परिपक्व व्यंजना-शैली का परिचय मिलता है; उदाहरणार्थ

मुखर तर्क के शब्द-जाल में, भटक न खो जाए अन्तः स्वर,
गुरुता से सौजन्य, बुद्धि से, हृदय-बोध था उनको प्रियतर।

(3) अलंकार-योजना – ‘मुक्तियज्ञ’ में क़वि ने अलंकारों का प्रयोग विषय की स्पष्टता के लिए ही किया है; क्योंकि उनकी दृष्टि कथन के ढंग पर न होकर कथ्य पर लगी रही है। फिर भी कवि ने उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास, मानवीकरण आदि अलंकारों का प्रयोग किया है; उदाहरणार्थ

उपमा: उन्नत जन वर देवदारु-से, स्वर्णछत्र सिर पर तारक नभ।
सौम्य आस्य, उन्मुक्त हास्यमय, प्रातः रवि-सा स्निग्ध स्वर्णप्रभ॥
मानवीकरण – जगे खेत खलिहान, बाग फड़, जगे बैल हँसिया हल विस्मित ।
हाट बाट गोचर घर-आँगन, वापी पनघट जगे चमत्कृत ।।

(4) छन्द-विधान – ‘मुक्तियज्ञ’ में कवि ने भावात्मक मुक्त छन्द का प्रयोग किया है। सम्पूर्ण काव्य की रचना में 16 मात्राओं की चार-चार पंक्तियों वाले छन्द का प्रयोग किया गया है। कवि ने कुछ स्थानों पर छन्द-परिवर्तन भी किया है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि मुक्तियज्ञ’ की कथा की पृष्ठभूमि का विस्तार अधिक है, फिर भी कवि ने उसके मुख्य प्रसंगों को इस प्रकार क्रमबद्ध किया है कि कथा के क्रमिक विकास में बाधा नहीं आयी है। इस रचना में एक ही रस और एक ही छन्द का प्रयोग किया गया है, इस दृष्टि से भी यह रचना खण्डकाव्य के लिए अपेक्षित विशेषताओं से विभूषित है।

प्रश्न 5:
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में निहित रचनाकार के प्रयोजन को स्पष्ट कीजिए।
या
” ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य का उद्देश्य मानव जाति में भाईचारा और एकता की भावना जगाना है।” इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
या
” ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की पावन भावना प्रतिपादित हुई है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
या
‘मूक्तियज्ञ’ के नामकरण की सार्थकता पर प्रकाश डालिए। ”
या
‘मुक्तियज्ञ’ में भारतीय समाज के उच्च आदर्शों का निरूपण हुआ है।” इस कथन को सिद्ध कीजिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए। ”
या
‘मुक्तियज्ञ’ में गांधी-युग के सैद्धान्तिक और व्यावहारिक पक्ष को ऐतिहासिक और सामाजिक पृष्ठभूमि पर उतारा गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
या
” ‘मुक्तियज्ञ’ में गांधीवादी विचारधारा के माध्यम से विश्वबन्धुत्व और मानवतावाद की रतिष्ठा की गयी है।” सोदाहरण विवेचना कीजिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ में अभिव्यक्त सामाजिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना का प्रतिपादन किया गया है।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य राष्ट्रीयता और देशभक्ति का प्रतिपादन करने वाला खण्डकाव्य है।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य की कथावस्तु की आधुनिकता पर प्रकाश डालिए।
या
” ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य में विश्व-एकता तथा विश्व-कल्याण का स्वर मुखरित हुआ है।” सिद्ध कीजिए।
या
‘मुक्तियज्ञ’ से क्या सन्देश मिलता है ?
उत्तर:
कविवर सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘मुक्तियज्ञ’ एक उद्देश्यप्रधान रचना है। इस खण्डकाव्य में अनेक प्रयोजन मुखर हुए हैं। इसके मुख्य उद्देश्य निम्नवत् हैं

(1) तत्कालीन परिस्थितियों से परिचय – पन्त जी ने ‘मुक्तियज्ञ’ रचना के माध्यम से जन-मानस को भारत के परतन्त्र युग की उन भीषण परिस्थितियों से अवगत कराया है, जो क्रूर सामन्तवाद की निर्दयता का परिचय देती हैं। इस उद्देश्य में कवि पूरी तरह सफल रहा है।

(2) भारतीय स्वतन्त्रता-संग्राम की झलक – प्रस्तुत खण्डकाव्य में कवि ने भारतीय स्वतन्त्रता-संग्राम की झलक प्रस्तुत की है। कवि संघर्ष को प्रेरणादायक मानता है। इसलिए वह चाहता है कि इसकी झलक जनमानस तक पहुँच जाए। कवि कहता है कि अन्यायी क्रूरता से जब भीषण विद्रोह भड़कता है तो वह किसी भी शक्ति के रोके नहीं रुकता

अन्यायी के क्रूर कृत्य से, जब विद्रोह भड़कता है भीषण।
उस अन्तर्गत विप्लव को, रोक नहीं पाते शत रावण ।।

(3) शाश्वत मूल्यों की स्थापनों – इस काव्य-रचना में पन्त जी अराजकता के तत्कालीन एवं आधुनिक युग में भी सत्य, अहिंसा, प्रेम, न्याय और करुणा जैसे शाश्वत गुणों को आधार मानकर जीवन-मूल्यों की स्थापना करते हैं। कवि ने पश्चिमी भौतिकवादी दर्शन और गांधीवादी मूल्यों के बीच संघर्ष का चित्रण किया है और अन्त में गांधीवादी जीवन-मूल्यों की विजय का शंखनाद किया है

मानव आत्मा की विमुक्ति की, भारत मुक्ति प्रतीक असंशय ।
करे विश्व मन के जड़ बन्धन, हुआ चेतना का अरुणोदय ॥

(4) लोक-मंगल का सन्देश –  पन्त जी ने ‘मुक्तियज्ञ’ के माध्यम से संसार को लोक-मंगल का सन्देश दिया है। वे भारत की स्वतन्त्रता में समस्त संसार की मुक्ति को निहारते हैं। कवि ने काव्य के नायक गांधी जी को लोकपुरुष के रूप में चित्रित किया है, जो जातिवाद, साम्प्रदायिकता और रंगभेद के कट्टर विरोधी हैं तथा इन बुराइयों को दूर करने के लिए कृतसंकल्प हैं।

(5) विश्वबन्धुत्व और मानवतावाद को प्रसार – कवि ने प्रस्तुत रचना में सत्य की असत्य पर और अहिंसा की हिंसा पर विजय दिखाकर मानवता के प्रति सच्ची आस्था व्यक्त की है। इससे विश्वबन्धुत्व, प्रेम एवं सहयोग की भावना को बल मिलेगा और विश्व में एकता स्थापित होगी। कवि का यह जीवन-दर्शन भारतीय स्वतन्त्रता के आन्दोलन की पृष्ठभूमि में तथा गांधीवादी दर्शन के रूप में भारतीय परतन्त्रता के परिप्रेक्ष्य में मुखरित होता है और ‘मुक्तियज्ञ’ का यह पावन धुआँ विश्व-मानवता एवं विश्व-प्रेम का विराट स्वरूप धारण कर लेता है

हिरोशिमा नागासाकी पर, भीषण अणुबम का विस्फोटन,
मानवता के मर्मस्थल का, कभी भरेगा क्या दुःसह व्रण।.

निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि उपर्युल्लिखित उद्देश्य ही ‘मुक्तियज्ञ’ की रचना के मर्म हैं और कवि ने इसी सैद्धान्तिक पक्ष को व्यावहारिक रूप में सामाजिक पृष्ठभूमि पर उतारा है। गांधीवादी दर्शन को माध्यम बनाकर कवि ने विश्व-बन्धुत्व और मानवतावाद की स्थापना की है।

नामकरण की सार्थकता – ‘मुक्तियज्ञ’ खण्डकाव्य का सम्पूर्ण कथानक भारत के स्वतन्त्रता संग्राम से जुड़ा हुआ है। इस खण्डकाव्य के नायक महात्मा गांधी हैं, जिनके लक्षण परम्परागत नायकों से हटकर हैं। इनका यही व्यक्तित्व भारतीय जनता को शक्ति और प्रेरणा देता है। भारत को स्वतन्त्र कराने के लिए इन्होंने एक प्रकार से एक यज्ञ का ही आयोजन किया था, जिसमें देश के अनेकानेक देशभक्त नवयुवक अपने प्राणों की आहुति देते हैं। देश की मुक्ति के लिए आयोजित किये गये यज्ञ के कारण ही इस खण्डकाव्य का नाम ‘मुक्तियज्ञ’ पूर्णतया सटीक एवं सार्थक है।

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