UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi काव्यांजलि Chapter 6 कविवर बिहारी

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi काव्यांजलि Chapter 6 कविवर बिहारी are part of UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi . Here we have given UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi काव्यांजलि Chapter 6 कविवर बिहारी.

Board UP Board
Textbook NCERT
Class Class 11
Subject Sahityik Hindi
Chapter Chapter 6
Chapter Name कविवर बिहारी
Number of Questions 5
Category UP Board Solutions

UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi काव्यांजलि Chapter 6 कविवर बिहारी

कवि-परिचय एवं काव्यगत विशेषताएँ

Bihari Ke Dohe Class 11 प्रश्न:
बिहारी का जीवन-परिचय लिखिए।
या
बिहारी की काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
या
कविवर बिहारी का जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों का नामोल्लेख कीजिए तथा साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय – कविवर बिहारी का जन्म संवत् 1660 (सन् 1603 ई०) के लगभग ग्वालियर के निकट वसुआ गोविन्दपुर नामक ग्राम में हुआ था। ये चतुर्वेदी ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम केशवराय था। इनकी युवावस्था ससुराले (मथुरा) में ही बीती थी। अधिक दिन तक ससुराल में रहने के कारण इनका आदर कम हो गया; अतः ये खिन्न होकर जयपुर-नरेश महाराजा जयसिंह के यहाँ चले गये। इस जीवन में इन्हें अनेक कटु अनुभव प्राप्त हुए, जिनके सम्बन्ध में इनकी सतसई में कई दोहे मिलते हैं। कहा जाता है कि उस समय जयसिंह अपनी नवोढ़ा रानी के प्रेम में लीन थे; अत: राजकाज बिल्कुल नहीं देखते थे। इस पर बिहारी ने निम्नलिखित दोहा लिखकर महाराजा के पास भेज दिया

नहिं परागु नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहिं काले।
अली कली ही सौं बँध्यो, आगैं कौन हवाल॥

राजा के हृदय पर इस दोहे ने जादू का-सा असर किया। वे पुन: राजकाज में रुचि लेने लगे। बिहारी बड़े गुणज्ञ थे। उन्हें अनेक विषयों की जानकारी थी। सुह बात उनकी सतसई का अध्ययन करने पर स्पष्ट रूप से ज्ञात हो जाती है। अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद बिहारी को वैराग्य हो गया और वे दरबार छोड़कर वृन्दावन चले गये। वहाँ पर संवत् 1720 (सन् 1663 ई०) के आस-पास इनकी मृत्यु हो गयी।

ग्रन्थ – बिहारी ने कुल 719 दोहे लिखे हैं, जिन्हें ‘बिहारी सतसई के नाम से संगृहीत किया गया है। इसकी अनेक टीकाएँ लिखी जा चुकी हैं। ‘बिहारी-सतसई’ के समान लोकप्रियता रीतिकाल के किसी अन्य ग्रन्थ को प्राप्त न हो सकी।

काव्यगत विशेषताएँ

भावपक्ष की विशेषताएँ
बिहारी रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि थे। इनकी ‘सतसई में नायिका–भेद, नखशिख-वर्णन, विभावों, अनुभावों, संचारी भावों आदि का चित्रण प्रमुख रूप से पाया जाता है, जो रीतिकाल की परम्परा के अनुकूल है। दोहे जैसे छोटे छन्द में बिहारी ने भाव का सागर लहरा दिया है। यह वास्तव में गागर में सागर भरने जैसा कार्य है। इसी विशेषता के कारण उनके दोहों की प्रशंसा करते हुए किसी कवि ने कहा है

सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर। ।
देखने में छोटे लगैं, घाव करें गम्भीर ॥

सौन्दर्य के चितेरे – बिहारी सौन्दर्य के रससिद्ध कवि थे। इन्होंने बाह्य और आन्तरिक दोनों प्रकार के सौन्दर्य का सुन्दर चित्रण किया है। नायिका के बाह्य सौन्दर्य का एक चित्र निम्नांकित है

नीको लसत ललाट पर, टीको ज़रित जराय।
छविहिं बढ़ावत रवि मनौ, ससि मंडल में आये।

प्रकृति-चित्रण – बिहारी ने प्रकृति का कहीं-कहीं आलम्बन-रूप में भी चित्रण किया है, जो रीतिकाल के कवियों में कम मिलता है। ठण्डी हवा का यह स्वरूप द्रष्टव्य है

लपटी पुहुप पराग पर, सनी सेंद मकरंद ।
आवति नारि नवोढ़ लौ, सुखद वायु गति मंद।।

प्रकृति का उद्दीपन रूप में चित्रण तो रीतिकाल की सामान्य विशेषता ही थी। उसके सुन्दर चित्रों की ‘बिहारी-सतसई’ में भरमार है।

भक्ति-भावना – बिहारी श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद उनका जीवन भगवद्भक्ति में ही बीता। अपने भक्ति सम्बन्धी दोहों में उन्होंने सच्ची और दृढ़ भक्ति पर बल दिया है। उनकी भक्ति सखा-भाव की है। उनका यह दृढ़ विश्वास है कि जब तक मन में कपट है, तब तक भगवान् की प्राप्ति असम्भव है

तौ लौ या मन सदन में, हरि आर्दै केहि बाट।
निपट जटै नैं लौ विकट, खुलै न कपट कपाट॥

मुक्तक कवि के रूप में – मुक्तक काव्य में सफलता पाने के लिए कवि में दो बातों का होना नितान्त आवश्यक होता है (1) भावों को समेटने की शक्ति तथा (2) थोड़े शब्दों में अधिक बात कह सकने की क्षमता। बिहारी में ये दोनों गुण पूर्ण रूप में विद्यमान थे। उन्होंने अपने दोहों में व्यंजना का सहारा लेकर बहुत कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कहकर चमत्कार कर दिखाया है।

अनुभाव-योजना – अनुभावों की योजना में बिहारी बड़े कुशल हैं। थोड़े-से शब्दों में वे एक पूरा सवाक् चित्र-सा खड़ा कर देते हैं

कहत नटत रीझत खिझत, मिलत खिलत लजियात ।
भरे भौन मैं करते हैं, नैननु ही सौं बात ॥

इस दोहे में कवि ने नायक और नायिका का पूरा वार्तालाप आँखों के इशारों में ही करा दिया है।

रस-योजना – यद्यपि बिहारी मुख्यतः श्रृंगारी कवि थे, तथापि इनके दोहों में हास्य, शान्त आदि रसों को भी परिपाक मिलता है। बिहारी को सर्वाधिक सफलता श्रृंगार वर्णन में मिली है। श्रृंगार के संयोग और वियोग दोनों ही पक्षों का चित्रण करने में इन्होंने ‘अपूर्व कौशल दिखाया है। प्रेमिका के संयोग श्रृंगार का चित्रण कितना मनोहारी है

बतरस-लालच लाल की, मुरली धरी लुकाइ।
सौंह करै भौंहनु हँसै, दैन कहै नटि जाई॥

कलापक्ष की विशेषताएँ

भाषा – इनकी भाषा ब्रजभाषा है, जिसमें कहीं-कहीं बुन्देली, अरबी, फारसी आदि के शब्द भी पाये जाते हैं। मुहावरों के प्रयोग द्वारा भाषा में बहुत प्रवाह आ गया है। बिहारी की भाषा इतनी सुगठित है कि उसका एक शब्द भी अपने स्थान से हटाया नहीं जा सकता।

शैली
– बिहारी की शैली विषय के अनुसार बदलती है। भक्ति एवं नीति के दोहों में प्रसाद गुण की तथा श्रृंगार के दोहों में माधुर्य एवं प्रसाद की प्रधानता है।

अलंकार-विधान – बिहारी ने अलंकारों का अधिकारपूर्वक प्रयोग किया है। असंगति अलंकार का एक उदाहरण द्रष्टव्य है

दृग उरझत टूटत कुटुम, जुरत चतुर-चित प्रीति ।
परति गाँठ दुरजन हियै, दई नई यह रीति ॥

साहित्य में स्थान – निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि बिहारी उच्चकोटि के कवि एवं कलाकार थे। असाधारण कल्पना-शक्ति, मानव-प्रकृति के सूक्ष्म ज्ञान तथा कला-निपुणता ने बिहारी के दोहों में अपरिमित रस भर दिया है। इन्हीं गुणों के कारण इन्हें रीतिकालीन कवियों का प्रतिनिधि कवि कहा जाता है।

पद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न-दिए गए पद्यांशों को पढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

भक्ति एवं शृंगार

बिहारी के दोहे कक्षा 11 प्रश्न 1:
अजौं तरुयौना ही रह्यौ, श्रुति सेवत इक रंग ।
नाक बास बेसरि लह्यौ, बसि मुकतनु के संग ।।

(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताइट।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) बेसर नामक आभूषण कहाँ पहना जाता है?
(iv) वेदों के अध्ययन से श्रेष्ठ किसे बताया गया है?
(v) प्रस्तुत दोहे में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
(i) यह दोहा महाकवि बिहारी की विख्यात कृति ‘सतसई’ से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘भक्ति एवं श्रृंगार’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा निम्नवत् लिखिए
शीर्षक का नाम – भक्ति एवं श्रृंगार।
कवि का नाम – कविवर बिहारी ।
[संकेत – इस शीर्षक के शेष सभी पद्यांशों के लिए प्रश्न (i) का यही उत्तर लिखना है।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – निरन्तर कानों का सेवन करने पर भी कान का आभूषण, निम्न स्थान पर ही रहा; अर्थात् उसका आज तक उद्धार न हो सका, जबकि नाक के आभूषण ने मोतियों के साथ बसकर, नाक के उच्च स्थान को प्राप्त कर लिया। तात्पर्य यह है कि निरन्तर वेदों की वाणी सुनकर भी एक व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त न कर सका, जब कि निम्न समझे जाने वाले अन्य व्यक्ति ने सत्संगति के माध्यम से उच्चावस्था अथवा मोक्ष को प्राप्त कर लिया।
(iii) बेसर नामक आभूषण कान में पहना जाता है।
(iv) वेदों के अध्ययन से श्रेष्ठ सत्संग को बताया गया है।
(v) प्रस्तुत दोहे में श्लेष अलंकार है।

बिहारी की काव्यगत विशेषताएँ Pdf  प्रश्न 2:
बतरस-लालच लाल की, मुरली धरी लुकाइ ।
सौंह करै, भौंहनु हँसै, दैन कहैं नटि जाई ।।

(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताइट।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) राधिकाजी श्रीकृष्ण की मुरली छिपाकर क्यों रख देती हैं?
(iv) श्रीकृष्ण के मुरली के बारे में पूछने पर राधिकाजी क्या कहती हैं?
(v) ‘बतरस-लालच लाल की’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
(i) रेखांकित अंश की व्याख्या – राधिकाजी ने बातों का रस लेने के लालच से लाल ( श्रीकृष्ण) की मुरली कहीं छिपाकर रख दी है। श्रीकृष्ण उनसे पूछते हैं कि क्या मेरी मुरली तुम्हारे पास है? इस पर राधिका शपथ लेने लगती हैं (कि मुरली का मुझे कुछ पता नहीं है), किन्तु भौंहों में मुस्करा देती हैं (जिससे श्रीकृष्ण को उनके पास मुरली होने का सन्देह हो जाता है)। जब श्रीकृष्ण उनसे मुरली देने के लिए कहते हैं तो वे साफ मना कर देती हैं (कि मुरली मेरे पास नहीं है)।
(iii) राधिकाजी वार्तालाप के आनन्द के लोभ से मुरली छिपाकर रख देती हैं।
(iv) श्रीकृष्ण के मुरली के बारे में पूछने पर राधिकाजी शपथ लेने लगती हैं किन्तु भौंहों में मुस्करा देती हैं।
(v) अनुप्रास अलंकार।

बिहारी के श्रृंगार रस के दोहे प्रश्न 3:
कहत नटत रीझत खिझत, मिलत खिलत लजियात ।
भरे भौन मै करत हैं, नैननु ही सौं बात ॥

(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताइट।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) प्रस्तुत दोहे के अनुसार नायक-नायिका भरे हुए भवन में किस तरह बातें कर लेते हैं?
(iv) नायक और नायिका के नेत्र मिल जाने पर क्या होता है?
(v) प्रस्तुत दोहे में कौन-सा रस है?
उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – देखो, कैसी चातुरी से ये दोनों परिजनों से भरे हुए भवन में आँखों-ही-आँखों में अपने मतलब की सब बातें कर लेते हैं। नायक कुछ कहता है (रति की प्रार्थना करता है), जिस पर नायिका मना कर देती है। नायक उसकी इस (मना करने की) चेष्टा पर रीझता है, तब नायिका उसकी रीझने की चेष्टा पर बनावटी खीझ प्रकट करती है। फिर दोनों की दृष्टि मिल जाती है और दोनों का चित्त खिल (प्रसन्न हो) उठता है। नायक, नायिका के चटपट खीझ छोड़ देने पर हँस देता है और नायिका उसके हँस देने पर लज्जालु हो जाती है।
(iii) प्रस्तुत दोहे के अनुसार नायक-नायिको भरे हुए भवन में आँखों के इशारों से बातें कर लेते हैं।
(iv) नायक-नायिका के नेत्र मिल जाने पर दोनों के चित्त खिल उठते हैं।
(v) प्रस्तुत दोहे में श्रृंगार रस है।

कक्षा 11 हिन्दी साहित्य प्रश्न 4:
अनियारे दीरघ दृगनु, किती न तरुनि समान ।
वह चितवनि औरै कछु, जिहिं बस होत सुजान ॥

(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम बताइए।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
(iii) किनकी रीति एक-जैसी नहीं होती?
(iv) चतुर लोग किन पर अनुरक्त होते हैं?
(v) प्रस्तुत दोहा कौन-से रस का उपयुक्त उदाहरण है?
उत्तर:
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या – बिहारी कहते हैं कि यद्यपि नुकीली और बड़े नेत्रों वाली अनेक ‘स्त्रियाँ संसार में हैं और उन सभी का नेत्र-सौन्दर्य भी एक-सा प्रतीत होता है, तथापि सौन्दर्य के पारखी अथवा रसिकजन ऐसी सभी दृष्टियों पर अनुरक्त नहीं होते। वे तो उस विशेष प्रकार की दृष्टि के ही वशीभूत होते हैं, जो प्रेमपूर्ण और किसी-किसी की ही होती हैं।
(iii) सभी बड़े नेत्रों वाली स्त्रियों की रीति एक-जैसी नहीं होती।
(iv) जिनमें कुछ विशेष आन्तरिक भाव होता है चतुर लोग उन पर अनुरक्त होते हैं।
(v) प्रस्तुत दोहा श्रृंगार रस का?उपयुक्त उदाहरण है।

We hope the UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi काव्यांजलि Chapter 6 कविवर बिहारी help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 11 Sahityik Hindi काव्यांजलि Chapter 6 कविवर बिहारी, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.

error: Content is protected !!
Scroll to Top