UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 4 जय सुभाष (खण्डकाव्य)

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UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 4 जय सुभाष (खण्डकाव्य)

Jai Subhash Ka Charitra Chitran प्रश्न 1
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए। [2012, 15 16]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य का सारांश लिखिए। [2009, 10, 11, 12, 14, 15]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य की कथा संक्षेप में लिखिए। [2009, 11, 12, 13, 14, 15, 18]
या
“जय सुभाष’ का कथानक राष्ट्रभक्ति से पूर्ण है।” सोदाहरण समझाइए। “जय सुभाष’ खण्डकाव्य का कथानक स्पष्ट कीजिए। [2011]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य हमें राष्ट्रीयता की प्रेरणा देता है। कथन की पुष्टि कीजिए। [2014]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य की प्रमुख घटना का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
प्रस्तुत खण्डकाव्य नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के व्यक्तित्व और आदर्श गुणों का परिचय प्रदान करने वाली एक सुन्दर रचना है। इस काव्य का सम्पूर्ण कथानक सात सर्गों में विभक्त है। इसका सर्गवार सारांश इस प्रकार है

सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 (UPBoardSolutions.com) ई० को कटक (उड़ीसा) में हुआ था। इनके पिता को नाम ‘जानकीनाथ बोस’ और माता का नाम ‘प्रभावती देवी’ था।

बड़े होने पर सुभाष ने अपनी तीव्र बुद्धि का परिचय दिया। इन्होंने अपने परिश्रम एवं लगन से सभी शैक्षिक परीक्षाओं में उत्तम अंक प्राप्त किये। प्रेसीडेन्सी कॉलेज में पढ़ते समय ऑटेन नामक अंग्रेज प्रोफेसर द्वारा, भारतीयों की निन्दा सुनकर इन्होंने उसके गाल पर एक तमाचा मारकर स्वाभिमान, देशभक्ति एवं साहस का अद्भुत उदाहरण दिया। इन्होंने बी० ए० की परीक्षा तथा विदेश जाकर आई० सी० एस० की परीक्षा उत्तीर्ण की। महात्मा गाँधी और देशबन्धु चितरंजनदास से प्रभावित होकर सरकार द्वारा प्रदत्त आई० सी० एस० के उच्च पद को त्याग दिया और स्वतन्त्रता संग्राम में सम्मिलित हो गये।

 

द्वितीय खण्डकाव्य के सर्ग में सुभाष के भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने का वर्णन है। सन् 1921 ई० में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में असहयोग आन्दोलन व्यापक रूप से चल रहा था। उन्हीं दिनों देशबन्धु जी ने एक नेशनल कॉलेज की स्थापना की, जिसका प्रधानाचार्य उन्होंने सुभाष को नियुक्त कर दिया। सुभाष ने छात्रों में देशप्रेम और स्वतन्त्रता की भावना जाग्रत की और राष्ट्र-भक्त स्वयंसेवकों की एक सेना तैयार की। ये पं० मोतीलाल नेहरू द्वारा स्थापित ‘स्वराज्य पार्टी के प्रबल समर्थक थे। इन्होंने दल के कई प्रतिनिधियों को कौंसिल में प्रवेश कराया। इन्होंने कलकत्ता महापालिका का खूब विकास किया। सरकार ने इन्हें अकारण ही अलीपुर जेल में डाल दिया। इनका अधिकांश जीवन कारागार में ही व्यतीत हुआ।

खण्डकाव्य के तीसरे सर्ग की कथा सन् 1928 से आरम्भ होती है। सन् 1928 ई० में कलकत्ता के कांग्रेस के 46वें अधिवेशन में पं० मोतीलाल नेहरू को अध्यक्ष बनाया गया। इसी समय लोगों को सुभाष की संगठन-कुशलता का परिचय मिला। इसके बाद सुभाष को कलकत्ता नगर का मेयर निर्वाचित किया गया। इन्होंने पुनः सभाओं में ओजस्वी भाषण दिये, जिनको सुनकर इन्हें सिवनी, भुवाली, अलीपुर और माण्डले जेल में भेजकर यातनाएँ दी गयीं, जिससे इनका स्वास्थ्य बिगड़ गया। इन्हें स्वास्थ्य-लाभ के लिए पश्चिमी देशों में भेजा गया। इन्होंने वहाँ ‘द इण्डियन स्ट्रगल’ नामक पुस्तक लिखी। भारत लौटने पर अगले वर्ष हीरापुर के कांग्रेस अधिवेशन में इन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर सम्मानित किया गया।

चतुर्थ सर्ग में हीरापुर अधिवेशन से लेकर ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ की (UPBoardSolutions.com) स्थापना तक का वर्णन है। ताप्ती नदी के तट पर बिठ्ठल नगर में कांग्रेस का इक्यावनवाँ अधिवेशन हुआ। इन्हें अधिवेशन का अध्यक्ष बनाकर सम्मानित किया गया। इससे आजादी का आन्दोलन और अधिक तीव्र हो उठी।

 

इसके बाद त्रिपुरा में कांग्रेस का अगला अधिवेशन हुआ। इसमें कांग्रेस अध्यक्ष के चयन में दो नेताओं में मतभेद हो गया। उस समय कांग्रेस को विघटन से बचाने के लिए सुभाष ने कांग्रेस से त्यागपत्र देकर ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ (अप्रगामी दल) की स्थापना की। अब सुभाष सबकी श्रद्धा और आशा के केन्द्र बनकर सबके प्रिय नेताजी’ बन गये थे। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि अपनी मातृभूमि को मुक्त कराने के लिए सुभाषचन्द्र बोस अंग्रेज सरकार की यातनाओं को निरन्तर सहन करते रहे।

पञ्चम सर्ग में सुभाष के छद्मवेश में घर से भाग जाने की कथा का वर्णन है। सुभाष जब घर में नजरबन्द थे, तब सरकार ने इनकी समस्त गतिविधियों पर कड़ा प्रतिबन्ध लगा रखा था। 15 जनवरी, 1941 ई० को जाड़े की अर्द्ध-रात्रि में दाढ़ी बढ़ाये हुए, ये एक मौलवी के वेश में पुलिस की आँखों में धूल झोंककर कल गये और फ्रण्टियर मेल से पेशावर पहुँच गये और वहाँ से बर्लिन। बर्लिन में इन्होंने ‘आजाद हिन्द फौज’ की स्थापना की। दूर रहकर स्वतन्त्रता-संग्राम का नेतृत्व करना कठिन जानकर ये पनडुब्बी द्वारा टोकियो पहुँचे। जापानियों ने इन्हें पूरा सहयोग दिया। सहगल, शाहनवाज, ढिल्लन और लक्ष्मीबाई ने वीरता से इसे सेना का नेतृत्व किया। सुभाष ने दिल्ली चलो’ का नारा हर दिशा में गुंजित कर दिया। ‘आजाद हिन्द फौज’ का हर सैनिक स्वतन्त्रता संग्राम में जाने को उत्सुक था।

षष्ठ सर्ग में ‘आजाद हिन्द फौज के भारत पर आक्रमण तथा प्राप्त विजय का वर्णन है। सुभाष ने ‘आजाद हिन्द फौज के वीरों को दिल्ली चलो’ और ‘जय हिन्द’ के नारे दिये। इन्होंने “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” कहकर युवकों का आह्वान किया। आजाद हिन्द सेना ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये और उनके शिविरों पर चढ़ाई करके कई मोर्चे परे उनको अविस्मरणीय करारी हार दी।

सप्तम सर्ग में द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी तथा जापान की पराजय की चर्चा की गयी है। संसार में सुख-दु:ख और जय-पराजय का चक्र चलता रहता है। अंग्रेजों का पलड़ा धीरे-धीरे भारी होने लगा। आजाद हिन्द फौज की भी जय के बाद पराजय होने लगी। अगस्त, 1945 ई० में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नगरों पर अमेरिका द्वारा अणुबम गिरा दिया गया। जापान ने मानवता की रक्षा के लिए जनहित में आत्मसमर्पण कर दिया। 18 अगस्त, 1945 ई० को ताइहोक में इनका विमान आग लगने से दुर्घटनाग्रस्त हो गया और सुभाष भी नहीं बच सके। जब तक सूर्य, चन्द्र और तारे रहेंगे, भारत के घर-घर में सुभाष अपने यश के रूप में अमर रहेंगे। उनकी यशोगाथा नवयुवकों को त्याग, देशप्रेम और बलिदान की प्रेरणा देती रहेगी।

Jay Subhash Khand Kavya प्रश्न 2

‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के आधार पर सुभाषचन्द्र बोस के प्रारम्भिक जीवन (विद्यार्थी जीवन व बाल जीवन) पर प्रकाश डालिए। [2011]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के प्रथम सर्ग का सारांश लिखिए। [2010, 11, 14, 18]
उत्तर
सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 ई० को कटक (उड़ीसा) में हुआ था। इनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस’ और माता का नाम ‘प्रभावती देवी’ था। इनकी माताजी अत्यन्त विदुषी धार्मिक महिला थीं। इन्होंने बचपन में अपनी माताजी से राम, कृष्ण, अर्जुन, (UPBoardSolutions.com) बुद्ध, महावीर, शिवाजी, प्रताप आदि की कथाएँ सुनी थीं। बालक सुभाष पर उन्हीं के शील और शौर्य का प्रभाव पड़ा।

बड़े होने पर सुभाष ने अपनी तीव्र बुद्धि का परिचय दिया। इन्होंने अपने परिश्रम एवं लगन से सभी शैक्षिक परीक्षाओं में उत्तम अंक प्राप्त किये। विद्यालय में अपने गुरु बेनीमाधव जी के प्रभाव से, इनमें दीन-हीनों और दु:खी-दरिद्रों के प्रति प्रेम, करुणा एवं सेवाभाव जाग्रत हुआ। इन्होंने अपनी अल्प आयु में ही जाजपुर ग्राम में भयंकर बीमारी फैलने पर रोगियों की सेवा-सुश्रूषा की। प्रथम श्रेणी में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करके इन्होंने कलकत्ता के प्रेसीडेन्सी कॉलेज में प्रवेश लिया तथा सुरेशचन्द्र बनर्जी से आजीवन अविवाहित रहने की प्रेरणा प्राप्त की। कलकत्ता में महर्षि विवेकानन्द का ओजस्वी भाषण सुनकर सत्य की खोज में मथुरा, हरिद्वार, वृन्दावन, काशी आदि तीर्थों एवं हिमालय की कन्दराओं में भ्रमण किया, परन्तु कहीं भी इन्हें शान्ति न मिली। इन्होंने पुन: पढ़ाई प्रारम्भ कर दी। प्रेसीडेन्सी कॉलेज में ऑटेन नामक अंग्रेज प्रोफेसर द्वारा, भारतीयों की निन्दा सुनकर देशापमान को सहन नहीं कर सकने के कारण इन्होंने उसके गाल पर एक तमाचा मारकर स्वाभिमान, देशभक्ति एवं साहस का अद्भुत उदाहरण दिया। इस अपराध के लिए इन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। अन्य कॉलेज में प्रवेश पाकर इन्होंने बी० ए० की परीक्षा तथा विदेश जाकर आई० सी० एस० की परीक्षा उत्तीर्ण की। स्वदेश लौटने पर इन्होंने देश की दयनीय दशा देखी। महात्मा गाँधी और देशबन्धु चितरंजनदास से प्रभावित होकर सरकार द्वारा प्रदत्त आई० सी० एस० के उच्च पद को । (UPBoardSolutions.com) त्याग दिया और स्वतन्त्रता संग्राम में सम्मिलित हो गये।।

जय सुभाष का चरित्र चित्रण  प्रश्न 3

‘जय सुभाष के द्वितीय सर्ग का सारांश (कथानक, कथावस्तु, कथासार) अपने शब्दों में लिखिए। [2010, 13, 14, 15, 17, 18]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के आधार पर भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में सुभाष के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर
खण्डकाव्य के इस सर्ग में सुभाष के भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने का वर्णन है। भारतवर्ष में अंग्रेजों के अत्याचार और अन्याय को देखकर भारतमाता को परतन्त्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए सुभाष ने अपना जीवन देश को अर्पित कर देने का निश्चय किया। सन् 1921 ई० में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में असहयोग आन्दोलन व्यापक रूप से चल रहा था। छात्रों ने विद्यालयों का एवं वकीलों ने न्यायालयों का बहिष्कार करके आन्दोलन को तीव्र बनाया। बंगाल में देशबन्धु चितरंजनदास आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे थे। उन्हीं दिनों देशबन्धु जी ने एक नेशनल कॉलेज की स्थापना की, जिसका प्रधानाचार्य उन्होंने सुभाष को नियुक्त कर दिया। सुभाष ने छात्रों में देशप्रेम और स्वतन्त्रता की भावना जाग्रत की और राष्ट्र-भक्त स्वयंसेवकों की एक सेना तैयार की। इस सेना ने बंगाल के घर-घर में स्वतन्त्रता का सन्देश गुंजा दिया। इस सेना के भय से अंग्रेजी सत्ता डोल उठी, जिसके परिणामस्वरूप सरकार ने देशबन्धु और सुभाष को जेल में बन्द कर दिया। जेल में जाकर (UPBoardSolutions.com) उनका साहस व शक्ति और बढ़ गये। जब ये जेल से मुक्त हुए, तब बंगाल भीषण बाढ़ से ग्रस्त था। सुभाष ने तन-मन-धन से बाढ़-पीड़ितों की सहायता की। ये पं० मोतीलाल नेहरू द्वारा स्थापित ‘स्वराज्य पार्टी के प्रबल समर्थक थे। इन्होंने दल के कई प्रतिनिधियों को कौंसिल में प्रवेश कराया। कलकत्ता महापालिका के चुनाव में सुभाष बहुमत से जीते। सुभाष को अधिशासी अधिकारी नियुक्त किया गया। इन्होंने १ 3,000 निर्धारित वेतन के बजाय केवल आधा वेतन लेकर महापालिका का खूब विकास किया। सरकार ने इनकी बढ़ती हुई लोकप्रियता से चिढ़कर इन्हें अकारण ही अलीपुर जेल में डाल दिया। वहाँ से बरहामपुर और माण्डले जेल में भेजकर इन्हें बड़ी यातनाएँ दी गयीं। इस कारण इनका स्वास्थ्य खराब हो गया। दृढ़ स्वर से जनता की माँग के कारण ये जेल से छोड़ दिये गये। कारागार से छूटते ही इन्होंने पुनः संघर्ष आरम्भ कर दिया। इनका अधिकांश जीवन कारागार में ही व्यतीत हुआ।

 

जय सुभाष खण्डकाव्य प्रश्न 4
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के तृतीय सर्ग का सारांश (कथानक, कथावस्तु, कथासार) लिखिए। [2011, 13, 18]
या
‘जय सुभाष’ के आधार पर कलकत्ता में आयोजित 1928 ई० के कांग्रेस अधिवेशन का वर्णन कीजिए और बताइए कि इस अवसर पर सुभाष की क्या भूमिका रही ?
उत्तर
सन् 1928 ई० में कलकत्ता के कांग्रेस के 46वें अधिवेशन में पं० मोतीलाल नेहरू को अध्यक्ष बनाया गया। उनके सम्मान में अड़तालीस घोड़ों के रथ में शोभा-यात्रा निकाली गयी, जिसमें स्वयंसेवकों के दल का नेतृत्व स्वयं सुभाष कर रहे थे। इसी समय लोगों को सुभाष की संगठन-कुशलता का परिचय मिला। पं० मोतीलाल नेहरू ने अपने अध्यक्षीय भाषण में इनके उत्साह, कार्यकुशलता, देशप्रेम और कर्मठता की भूरि-भूरि प्रशंसा की। |

इसके बाद सुभाष को कलकत्ता नगर का मेयर निर्वाचित किया गया। इनके कार्यकाल में ही स्वतन्त्रता-सेनानियों का एक जुलूस निकला, जिसका नेतृत्व स्वयं सुभाष कर रहे थे। इस जुलूस पर पुलिस ने लाठीचार्ज करके सुभाष को लाठियों से बहुत पीटा और नौ माह के लिए इन्हें अलीपुर जेल में डाल दिया। जेल से छूटने पर इन्होंने पुन: सभाओं में ओजस्वी भाषण दिये, जिनको सुनकर देशभक्त युवकों को खून खौल उठा, तब इन्हें सिवनी जेल में डाल दिया गया। वहाँ से भुवाली, अलीपुर और माण्डले जेल में भेजकर यातनाएँ दी गयीं, जिससे इनका स्वास्थ्य बिगड़ गया। इन्हें स्वास्थ्य लाभ के लिए पश्चिमी देशों में भेजा (UPBoardSolutions.com) गया। वहाँ जाकर इन्होंने यूरोप के वैभव को देखा और भारत से उसकी तुलना की। इन्होंने अपने देश की दशा और जनता के आन्दोलन को यथार्थ चित्र पश्चिमी देशों के सम्मुख रखा। वहाँ से पिता की बीमारी को समाचार सुनकर भारत आये, परन्तु पिता के अन्तिम दर्शन न पा सके। महान् शोक के कारण, स्वास्थ्य लाभ के लिए इन्हें पुनः यूरोप जाना पड़ा। इन्होंने वहाँ ‘द इण्डियन स्ट्रगल’ नामक पुस्तक लिखकर देशप्रेम की भावना और भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का सजीव वर्णन किया। ये विदेशों में रहकर स्वदेश का सम्मान बढ़ाते रहे। सन् 1936 ई० में स्वदेश वापस आने पर इन्हें पुन: जेल भेज दिया गया। जेल में स्वास्थ्य खराब हो जाने के कारण इन्हें स्वास्थ्य-लाभ के लिए एक बार फिर यूरोप भेजा गया। कुछ समय बाद पं० जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में लखनऊ में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में सभी नेताओं और जनता ने सुभाष के त्याग और बलिदान की भूरि-भूरि प्रशंसा की। भारत लौटने पर अगले वर्ष हीरापुर के कांग्रेस अधिवेशन में इन्हें कांग्रेस को अध्यक्ष बनाकर सम्मानित किया गया।

सुभाष चंद्र बोस का चरित्र चित्रण प्रश्न 5
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के आधार पर इसके चतुर्थ सर्ग का सारांश (कथानक, कथावस्तु) लिखिए। [2017]
उत्तर
इस सर्ग में हीरापुर अधिवेशन से लेकर ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ की स्थापना तक का वर्णन है। ताप्ती नदी के तट पर बिट्ठल नगर में कांग्रेस का इक्यावनवाँ अधिवेशन हुआ। इक्यावन पताकाओं से सुसज्जित, इक्यावन द्वारों से, इक्यावन बैलों के रथ में बैठाकर सुभास का भव्य एवागत किया गया और इन्हें अधिवेशन का अध्यक्ष बनाकर सम्मानित किया गया। अध्यक्ष पद से इनके ओजस्वी भाषण को सुनकर नवयुवकों में देशप्रेम, एकता और बलिदान की भावना जाग उठी। इससे आजादी का आन्दोलन और अधिक तीव्र हो उठा।

इसके बाद त्रिपुरा में कांग्रेस का अगला अधिवेशन हुआ। इसमें कांग्रेस के दो नेताओं पट्टाभि । सीतारमैया और सुभाष में चुनाव हुआ, जिसमें सुभाष विजयी हुए। गाँधीजी क्योंकि पट्टाभि सीतारमैया का समर्थन कर रहे थे, इसीलिए उन्होंने पट्टाभि (UPBoardSolutions.com) सीतारमैया की हार को अपनी हार समझा। उस समय कांग्रेस को विघटन से बचाने के लिए सुभाष ने कांग्रेस से त्यागपत्र देकर ‘फॉरवर्ड ब्लॉक’ (अग्रगामी दल) की स्थापना की एवं सारे देश में घूम-घूमकर स्वतन्त्रता की ज्योति जगायी। अब सुभाष सबकी श्रद्धा और आशा के केन्द्र बनकर सबके प्रिय नेताजी’ बन गये थे। कलकत्ता में ‘ब्लैक हॉल’ संस्मारक; जिसके बारे में कहा जाता था कि यहाँ अनेक अंग्रेजों को सन् 1857 ई० में भारतीयों द्वारा जिन्दा जला दिया गया था; को हटाने के लिए आन्दोलन करते समय सरकार ने इन्हें फिर जेल में डाल दिया। इन्होंने जेल में भूख हड़ताल की। सरकार को इनके जेल में रहते ही संस्मारक हटाना पड़ा। जनता के प्रबल आग्रह करने पर इन्हें जेल से छोड़कर घर में नजरबन्द कर दिया गया। निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि अपनी मातृभूमि को मुक्त कराने के लिए सुभाषचन्द्र बोस अंग्रेज सरकार की यातनाओं को निरन्तर सहन करते रहे।

जय सुभाष खंडकाव्य  प्रश्न 6

‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के आधार पर बताइए कि सुभाषचन्द्र बोस किन परिस्थितियों में वेश छोड़कर विदेश गये ? वहाँ जाकर उनके द्वारा भारत की स्वतन्त्रता के लिए किये गये प्रयत्नों का वर्णन कीजिए। [2009, 10]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के ‘पाँचवें सर्ग’ का सारांश (कथासार लिखिए। [2011, 12, 13, 14, 16, 17]
[संकेत द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ सर्ग से परिस्थितियों का उल्लेख करते हुए पाँचवें सर्ग का सारांश लिखिए।]
उत्तर
इस सर्ग में सुभाष के छद्मवेश में घर से भाग जाने की कथा का वर्णन है। सुभाष जब घर में नजरबन्द थे, तब सरकार ने इनकी समस्त गतिविधियों पर कड़ा प्रतिबन्ध लगा रखा था। गुप्तचरों की कड़ी नजर और पुलिस का पहरा रहने पर भी सुभाष 15 जनवरी, 1941 ई० को जाड़े की अर्द्ध-रात्रि में दाढ़ी बढ़ाये हुए, एक मौलवी के वेश में पुलिस की आँखों में धूल झोंककर निकल गये और फ्रण्टियर मेल से पेशावर पहुँच गये। वहाँ से उत्तमचन्द नाम के व्यक्ति के प्रयास से बर्लिन पहुँच गये। पेशावर से काबुल तक की इनकी यह यात्रा अति भयानक थी। इन्हें अनेक कष्ट सहते हुए अनेक छद्मवेश धारण (UPBoardSolutions.com) करने पड़े। बर्लिन में इन्होंने ‘आजाद हिन्द फौज’ की स्थापना की। दूर रहकर स्वतन्त्रता-संग्राम का नेतृत्व करना कठिन जानकर ये पनडुब्बी द्वारा टोकियो पहुँचे। जापानियों ने इन्हें पूरा सहयोग दिया। वहाँ से रासबिहारी के साथ ये सिंगापुर आये। इनकी सेना में विदेशों में रहने वाले अनेक भारतीय भी सम्मिलित हो गये। इन्होंने तन-मनधन से सुभाष को पूरा सहयोग दिया। इन्होंने गाँधीजी, नेहरू, आजाद और बोस के नाम से चार ब्रिगेड तैयार किये जिनमें पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियाँ भी सम्मिलित थीं। सहगल, शाहनवाज, ढिल्लन और लक्ष्मीबाई ने वीरता से इंस सेना का नेतृत्व किया। हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई सभी धर्मावलम्बी एकजुट होकर स्वतन्त्रता संग्राम के लिए तत्पर हो गये। सुभाष ने दिल्ली चलो’ का नारा हर दिशा में गुंजित कर दिया। ‘आजाद हिन्द फौज का हर सैनिक स्वतन्त्रता संग्राम में जाने को उत्सुक था।

Jay Subhash प्रश्न 7
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के षष्ठ सर्ग का सारांश लिखिए। [2009, 13, 17]
उत्तर
षष्ठ सर्ग में ‘आजाद हिन्द फौज के भारत पर आक्रमण तथा प्राप्त विजय का वर्णन है। सुभाष ने ‘जाद हिन्द फौज के वीरों को दिल्ली चलो’ और ‘जय हिन्द’ के नारे दिये। इन्होंने “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” कहकर युवकों का आह्वान किया। इस प्रकार इन्होंने अपनी सेना के वीरों में देश की स्वतन्त्रता के लिए बलिदान देने की प्रबल भावना भर दी। सेना के वीर इनके ओजपूर्ण भाषणों को सुनकर शत्रु की विशाल सैन्य-शक्ति की परवाह न (UPBoardSolutions.com) करके, विजय प्राप्त करते हुए 18 मार्च, 1944 ई० को कोहिमा तक पहुँच गये। भयंकर गोलाबारी करके इन्होंने इम्फाल नगर को घेरकर शत्रु को पीछे भगा दिया। अराकान पर्वत-शिखर पर भी भारतीय तिरंगा लहराने लगा। आजाद हिन्द सेना ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये और उनके शिविरों पर चढ़ाई करके कई मोर्चे पर उनको अविस्मरणीय करारी हार दी।

Jay Subhash Khandkavya  प्रश्न 8

‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के सप्तम (अन्तिम) सर्ग की कथा लिखिए। [2012, 14]
उत्तर
सप्तम सर्ग में द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी तथा जापान की पराजय की चर्चा की गयी है। संसार में सुख-दु:ख और जय-पराजय का चक्र चलता रहता है। अंग्रेजों का पलड़ा धीरे-धीरे भारी होने लगा। आजाद हिन्द फौज की भी जय के बाद पराजय होने लगी। अंग्रेजों ने बर्मा (अब म्यांमार) में आकर अपना स्वत्व स्थापित कर लिया। अगस्त 1945 ई० में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नगरों पर अमेरिका द्वारा अणुबम गिराकर सर्वनाश कर दिया गया। जापान ने मानवता की रक्षा के लिए जनहित में अमेरिका के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। सुभाष ने स्थिति अनुकूल न जानकर आजाद हिन्द फौज के आत्मसमर्पण करने का भी निर्णय किया। उन्होंने सेना के वीरों को बधाई देते हुए पुन: आकर उचित समय पर स्वतन्त्रता का बीड़ा उठाने का आश्वासन दिया। वे विमान द्वारा टोकियो में जापान के प्रधानमन्त्री (UPBoardSolutions.com) हिरोहितो से मिलने जाना चाहते थे। 18 अगस्त, 1945 ई० को ताइहोक में विमान आग लगने से दुर्घटनाग्रस्त हो गया और सुभाष भी नहीं बच सके। इस दु:खद समाचार को सुनकर हर मनुष्य रो पड़ा। भारत में बहुतों के मन में अब तक यही धारणा है कि सुभाष आज भी जीवित हैं। जब तक सूर्य, चन्द्र और तारे रहेंगे, भारत के घर-घर में सुभाष अपने यश के रूप में अमर रहेंगे। उनकी यशोगाथा नवयुवकों को त्याग, देशप्रेम और बलिदान की प्रेरणा देती रहेगी।

Jay Subhash Ka Charitra Chitran प्रश्न 9
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के आधार पर नायक (प्रमुख पात्र) नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का चरित्र-चित्रण कीजिए। [2010, 11, 12, 13, 14, 15, 16, 17, 18]
या
‘सुभाष में अनेक गुणों का समावेश था।”जय सुभाष’ के आधार पर खण्डकाव्य के नायक की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए। [2009, 10, 11, 12, 13, 14]
या

‘जय सुभाष खण्डकाव्य के आधार पर सुभाषचन्द्र बोस की चार विशेषताओं पर प्रकाश डालिए, जो आपको अधिकाधिक प्रभावित करती हैं। [2009, 14]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए कि सुभाषचन्द्र त्याग, अदम्य साहस और नेतृत्व क्षमता के प्रतीक हैं। [2010]
या
‘जय सुभाष’ खण्डकाव्य के प्रमुख पात्र की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए। [2015, 17, 18]
उत्तर
श्री विनोदचन्द्र पाण्डेय ‘विनोद’ द्वारा रचित ‘जय सुभाष’ नामक खण्डकाव्य स्वतन्त्रता-संग्राम के महान् सेनानी सुभाषचन्द्र बोस के त्याग, देशभक्ति एवं बलिदानपूर्ण जीवन की गाथा प्रस्तुत करता है। प्रस्तुत काव्य का उद्देश्य सुभाषचन्द्र बोस के व्यक्तित्व एवं गुणों को उजागर करना है। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ही प्रस्तुत खण्डकाव्य के नायक हैं। इनके चारित्रिक गुण इस प्रकार हैं|

(1) कुशाग्र बुद्धि एवं प्रखर प्रतिभाशाली-सुभाष बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के और प्रतिभाशाली थे। इन्होंने मैट्रिक और इण्टर की परीक्षाएँ प्रथम स्थान प्राप्त करके उत्तीर्ण की थीं। विदेश जाकर इन्होंने आई० सी० एस० की परीक्षा उत्तीर्ण की। उस समय किसी (UPBoardSolutions.com) भारतीय के लिए यह परीक्षा उत्तीर्ण करना अत्यन्त गौरव की बात थी। आगे चलकर कलकत्ता अधिवेशन में इनकी प्रबन्ध-कुशलता, आजाद हिन्द फौज और फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना एवं पुलिस की आँखों में धूल झोंककर कड़ी निगरानी से निकल भागना इनकी विलक्षण प्रतिभा को सूचित करते हैं।

(2) समाजसेवी, अनुपम त्यागी एवं कष्टे-सहिष्णु–सुभाष मानवमात्र के सेवक थे। इन्होंने बंगाल में बाढ़ आने पर बाढ़-पीड़ितों की अपूर्व सहायता की। जाजपुर में महामारी के फैलने पर इन्होंने रोगियों की सेवा की। देश की स्वतन्त्रता के लिए आह्वान होने पर इन्होंने आई० सी० एस० जैसे उच्च पद को छोड़कर महान् त्याग का परिचय दिया। इन्होंने देश को स्वतन्त्र कराने के लिए जैसी कठोर यातनाएँ सहीं, वे अवर्णनीय हैं। इनकी मानव-सेवा की भावना के विषय में पाण्डेय जी ने लिखा है –

दुःखी जनों का कष्ट कभी वह, नहीं देख सकते थे।
दोस्तों की सेवा करने में, वह न कभी थकते थे।

(3) स्वाभिमानी, साहसी और निर्भीक–सुभाष में स्वाभिमान और निर्भीकता की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी। ये किसी भी तरह अपने देश का अपमान नहीं सह सकते थे। छात्रावस्था में प्रोफेसर ऑटेन द्वारा भारतीयों की निन्दा सुनकर इन्होंने ऑटेन को तमाचा जड़कर अपने स्वाभिमान को परिचय दिया था। इन्होंने आई० सी० एस० का गौरवपूर्ण पद भी इसलिए त्याग दिया था कि अंग्रेजों की नौकरी करना इनके स्वाभिमान के अनुकूल नहीं था

स्वाभिमान का परिचय सबको, हो निर्भीक दिया था।
ले देशापमान का बदला, उत्तम कार्य किया था।

(4) महान् देशभक्त और स्वतन्त्रता-प्रेमी–सुभाष देश की स्वाधीनता के अद्वितीय (UPBoardSolutions.com) आराधक थे। इन्होंने गाँधीजी और देशबन्धु चितरंजनदास के आह्वान पर राष्ट्र की स्वतन्त्रता के लिए अपनी युवावस्था अर्पित कर दी

की सुभाष ने राष्ट्र-प्रेम हित अर्पित मस्त जवानी।
मुक्ति युद्ध के बने शीघ्र ही वे महान् सेनानी॥

उनके हृदय में आजादी की ज्वाला निरन्तर जलती रही। अनेक बार जेल-यातनाएँ सहने पर भी इन्होंने देश-सेवा का व्रत नहीं छोड़ा। अनेक बार अपने प्राणों को खतरे में डाला, शोषक अंग्रेजों से युद्ध किये और अन्त में बलिदान हो गये। इन्होंने अपने ओजस्वी भाषणों और कार्य-कलापों से समस्त देशवासियों के हृदय में स्वतन्त्रता की अग्नि प्रज्वलित कर दी।

(5) उत्साह की प्रतिमूर्ति–वीरता, उत्साह तथा साहस सुभाष के चरित्र के मुख्य गुण थे। उनके इन गुणों को देखकर जहाँ सामान्य जन प्रायः चकित रह जाते थे, वहीं अंग्रेज प्रायः भयभीत हो जाते थे। अंग्रेजी शासन इन्हें प्रायः कैद कर देता था, लेकिन ये इससे (UPBoardSolutions.com) हतोत्साहित नहीं होते थे। एक बार अंग्रेजों द्वारा घर में ही नजरबन्द कर दिये जाने पर ये अपनी बुद्धि, चतुरता तथा योजनाबद्धता द्वारा अंग्रेज सैनिकों की आँखों में धूल झोंककर भाग निकले और वेश बदलकर काबुल, जर्मनी तथा जापान पहुँच गये। विदेश में रहकर इन्होंने भारतीय युवकों को उत्साहित किया और आजाद हिन्द फौज का गठन किया। इनके भाषण उत्साह से परिपूरित होते थे। इनके उत्साह का ही प्रतिफल था कि आजाद हिन्द फौज को अंग्रेजी सेनाओं के विरुद्ध युद्ध में अनेक स्थानों पर सफलता प्राप्त हुई थी।

(6) जनता के प्रिय नेता–सुभाष सच्चे अर्थों में जनता के प्रिय नेता थे। अपने महान् गुणों एवं अनुपम देश-भक्ति के कारण वे करोड़ों देशवासियों के श्रद्धापात्र बन गये थे

वह थे कोटि-कोटि हृदयों के, एक महान् विजेता।
मातृभूमि के रत्न अलौकिक, जन-जन के प्रियनेता।

इनकी लोकप्रियता का प्रमाण यह है कि इन्होंने हीरापुर अधिवेशन में गाँधीजी द्वारा समर्थित ‘पट्टाभि सीतारमैया’ को चुनाव में पराजित कर दिया था। जिस मनोयोग और निष्ठा से इन्होंने स्वतन्त्रता-संग्राम का संचालन किया, उससे ये जनता के प्रिय नेता बन गये-

वह हो गये समस्त देश की, श्रद्धा के अधिकारी।
लेने लगे प्रेरणा उनसे, बाल-वृद्ध-नर-नारी॥

(7) ओजस्वी वक्ता–सुभाषचन्द्र बोस की वाणी बड़ी ओजपूर्ण थी। वे अपने ओजस्वी भाषणों द्वारा जनता में देशप्रेम, बलिदान और त्याग का मन्त्र फेंक देते थे। “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ की पुकार पर सहस्रों देशभक्त उनकी सेना में तन-मन-धन से सम्मिलित हो गये। उनकी ओजस्वी वाणी सुनकर, वीर पुरुष प्राण हथेली पर रखकर स्वतन्त्रता-संग्राम में कूद पड़े थे-

लगी गूंजने बंगभूमि में, उनकी प्रेरक वाणी।
मन्त्र मुग्ध होते थे सुनकर, उसको सारे प्राणी॥

उन्होंने अनेक सभाओं में एवं आजाद हिन्द फौज के सम्मुख जो भाषण दिये, वे अत्यन्त ओजस्वी और प्रेरणादायक थे।

(8) महान् सेनानी एवं योद्धा-सुभाष महान् सेनानी और अद्भुत योद्धा थे। ‘आजाद हिन्द फौज का संगठन और कुशल नेतृत्व करके उन्होंने एक श्रेष्ठ सेनापति होने की अपनी क्षमता सिद्ध कर दी थी। अंग्रेजों की विशाल सेना के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करके (UPBoardSolutions.com) उन्होंने अपने अदम्य साहस व बुद्धिमत्ता द्वारा उन्हें कई स्थानों पर पराजित किया तथा अनेक स्थानों पर भारतीय तिरंगा फहराकर अपने को महान् विजेता सिद्ध कर दिया-

सेनानी सुभाष ने भीषण, रण-दुन्दुभी बजाई।।
पाने हेतु स्वराज्य उन्होंने, छेड़ी विकट लड़ाई॥

 

(9) युवा-आन्दोलन के प्रवर्तक-सुभाष युवा-आन्दोलन के प्रवर्तक तथा नवयुवकों के प्रेरणास्रोत थे। इन्होंने पूरे देश की युवक संस्थाओं को एक सूत्र में पिरोकर संगठित युवा-आन्दोलन के सूत्रपात का प्रशंसनीय कार्य किया था। इन्हीं के प्रयत्नों के परिणामस्वरूप भारत में नवजवान सभा की स्थापना हो सकी थी–

नवयुवकों के भी प्रयाण की, आयी है शुभ बेला।
हो सकती है नहीं कभी भी, तरुणों की अवहेला॥

(10) महान् साहित्य सेवी-श्री सुभाष ने अत्यधिक विपरीत परिस्थितियों में ‘द इण्डियन स्ट्रगल पुस्तक लिखकर अपनी साहित्यिक प्रतिभा का परिचय दिया था। इनके भाषण भी साहित्य की अमूल्य निधि है-

लिख इण्डियन स्ट्रगल पुस्तक, ख्याति उन्होंने पायी।
प्रकट किये इसमें सुभाष ने, भाव प्रेरणादायी।

(11) स्वतन्त्रता के जन्मदाता–भारतवर्ष को स्वतन्त्र कराने में सुभाषचन्द्र बोस का योगदान स्तुत्य । है। अंग्रेजों के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़कर इन्होंने उन्हें भयाक्रान्त कर दिया था, जिसके परिणामस्वरूप वे भारत को स्वतन्त्रता प्रदान करने के लिए विवश हो गये थे-

मुक्त हुई उनके प्रयत्न से, अपनी भारतमाता।
दिन पन्द्रह अगस्त का अब भी, उनकी याद दिलाता॥

 

इनके अतिरिक्त नेताजी में अन्य अनेक आदर्श गुण थे, जिनके आधार पर उनके महान् व्यक्तित्व और महान् चरित्र का परिचय मिलता है। इन्होंने जो उच्च आदर्श उपस्थित किया है, वह युग-युग तक संसार के अनेक व्यक्तियों को प्रेरणा प्रदान करता रहेगा। इनके (UPBoardSolutions.com) जीवन से मनुष्य कष्ट-सहने की शक्ति, त्याग-भावना एवं राष्ट्रीयता की शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। इनके आदर्श जीवन से भारत के नवयुवकों को स्वतन्त्रता-प्रेम और त्याग की प्रेरणा मिलती रहेगी–

वीर सुभाष अनन्तकाल तक, शुभ आदर्श रहेंगे।
युग-युग तक भारत के वासी, उनकी कथा कहेंगे।

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